Tuesday 30 September 2014

तनाव है थॉयराइड का बड़ा कारण


थॉयराइड एक छोटी ग्रंथि है, जिसका आकार तितली की तरह होता है जो गले के निचले हिस्से में होता है। थायरायड ग्रंथि का काम होता है हार्मोन्स को स्रावित करना। मुख्य हार्मोन्स थॉयराइड के द्वारा  बनता है ट्राईआयोडोथायरोनिन को टी3 व थाईरॉक्सीन को टी4 के नाम से जाना जाता है। यह थॉयराइड हार्मोन्स शरीर की कोशिकाओं को ताकत देते हैं।
थॉयराइड से कई तरह की अन्य समस्याएं भी होने लगती है। महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान थायरायड होने पर बच्चे व मां को कई समस्याओं का सामना करना होता है।

तनाव से बढ़ता है थॉयराइड

हाल ही में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के एक शोध में पता चला है कि तनाव आपके शरीर में थायराक्सिन हार्मोन के स्राव को नियंत्रित करता है। अगर आप लगातार तनाव में रहते हैं तो हार्मोन के स्राव पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। शोध के अनुसार जब तनाव का स्तर बढ़ता है तो इसका सबसे ज्यादा असर हमारी थॉयराइड ग्रंथि पर पड़ता है। यह ग्रंथि से हार्मोन के स्राव को बढ़ा देता है।

पुरुषों में थॉयराइड

तनाव का सबसे ज्यादा असर पुरूषों पर होता है। पुरूषों में होने वाले थॉयराइड  के 50 प्रतिशत मामले तनाव के कारण होते हैं। तनाव के कारण पुरूषों में 'प्राइमरी हाइपो थायरोडिज्मÓ नामक परेशानी ज्यादा होती है। इसमें ग्रंथि काम करना बंद कर देती है। इससे शरीर में रोगों से लडऩे की क्षमता कम हो जाती है और इससे निजात पाना बहुत मुश्किल हो जाता है।
तनाव से थॉयराइड के मामले में लगातार बढोत्तरी हो रही है। डॉक्टरों के मुताबिक पुरूषों में होने वाली आम परेशानी है थायरोटिस। यह सिर्फ तनाव के कारण होता है। थॉयराइड से परेशान 10 में से 5 पुरूषों को थायरोटिस की परेशानी ही होती है।

ईलाज

थायरोटिस का कोई इलाज नहीं है। मगर कुछ ऐहतियात बरत कर इस परेशानी से लंबे वक्त तक बचा जा सकता है। इसके लिए आपको अपने पूरे जीवन रोज सुबह खाली पेट हार्मोन की गोलियां लेनी पड़ती हैं। अगर आप एक सप्ताह के लिए भी गोलियां खानी बंद कर दें तो आपके शरीर का संतुलन खराब हो जाता है।

तनाव

टेंशन कम लें और ज्याद से ज्यादा पोषक वाली चीजों को अपने खाने में शामिल करें।

व्यायाम

हल्के व्यायाम के जरिए थायरायड से बचने में मदद मिल सकती है।

योगासन

थॉयराइड होने के बाद भी कुछ योगासन ऐसे हैं जो इसके स्त्राव के स्तर को नियंत्रित करने में मदद करते हैं।

आसन व प्रणायाम

थॉयराइड के लिए कई आसनों और प्राणायाम हैं। अगर आप रोज सुबह महज 15 मिनट के लिए भी उन्हें करें तो इस परेशानी से बच सकते हैं।

दिमाग के लिए बेहतरीन है दोस्ती


कहते हैं हमें अपनी उम्र बरसों से नहीं, बल्कि अपने दोस्तों की संख्या से मापनी चाहिए। दोस्ती का हमारे जीवन को बनाने और उसे दिशा देने में अहम किरदार होता है। कहते है कि दोस्ती के रिश्ते में दिमाग की कोई भूमिका नहीं होती है। दोस्ती दिमाग से नहीं बल्कि दिल से की जाती है और यह भरपूर जीवन जीने के लिए आवयश्क घटक है। शायद दोस्तों के बिना हम अच्छे जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते।

न्यूरोसाइंटिस्ट्स के अनुसार

हमारा मानना है कि दोस्ती में दिमाग का कोई काम नहीं होता है, लेकिन न्यूरोसाइंटिस्ट्स के अनुसार, दोस्त न केवल आपको भावनात्मक रूप से सहयोग देते है बल्कि दोस्ती में इतनी शक्ति होती है कि यह मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने में भी मदद करती है। अच्छे दोस्त आपके जीवन के साथ-साथ आपके दिलोदिमाग को भी खुशनुमा बनाये रखते हैं।

डिमेंशिया से सुरक्षा

अकेलेपन से डिमेंशिया के विकास का जोखिम दोगुना तक बढ़ जाता है। न्यूरोसाइंटिस्ट्स रिसर्च के अनुसार, सामजिक जुड़ाव आपको डिमेंशिया के खतरे को कम करता है। यानी उम्र के किसी भी पड़ाव पर आपके साथ अच्छे दोस्त हैं, तो डिमेंशिया जैसी मानसिक बीमारी आपसे काफी दूर रहती है।

मस्तिष्क में लचीलापन

न्यूरोसाइंटिस्ट्स के अनुसार, सामाजिक नेटवर्क के साथ बड़े पैमाने पर जुड़ी महिलाओं में संज्ञानात्मक गिरावट का खतरा कम होता है। इसके अलावा विभिन्न प्रकार की गतिविधियों में भाग लेने से मस्तिष्क में लचीलापन आता है। यानी आपका दिमाग परिस्थितियों का बेहतर आकलन कर उनके हिसाब से खुद को बेहतर तैयार कर पाता है।

ज्ञान-संबंधी सोच

न्यूरोसाइंटिस्ट्स का कहना है कि दोस्ती के बारे में सोचने मात्र से ही हमारे मस्तिष्क के कार्य ठीक प्रकार से होने लगते है। इसमें मानसिक गिरावट और रोग के लिए एक प्रतिरोध का निर्माण करने की क्षमता होती है। इससे हमारे संज्ञानात्मक विकास में भी मदद मिलती है। हम चीजों को बेहतर ढंग से याद रख पाते हैं। घटनाओं को संचय करने की हमारी क्षमता में भी इजाफा होता है।

स्वस्थ कोशिकाओं का निर्माण

एक स्वस्थ सामजिक जीवन यानी दोस्तों के साथ में स्वाभाविक रूप से सोच, भावना, संवेदन, तर्क और अंर्तज्ञान शामिल होते है। ये मानसिक रूप से उत्तेजक गतिविधियां न्यूरॉन्स के बीच मस्तिष्क की स्वस्थ कोशिकाओं के निर्माण और नए कनेक्शन के निर्माण और गठन में मदद करती है।

उम्र बढ़ती है

इतना ही नहीं, दोस्ती आपकी उम्र में कुछ अहम और स्वस्थ बरस भी जोड़ देती है। मेटा विश्लेषण में 148 अध्ययनों में लगभग 300,000 लोगों पर सात साल से अधिक अध्ययन में पाया कि जो लोग मजबूत सामजिक रिश्ते में होते हैं, वे कमजोर सामजिक रिश्तों की तुलना में लंबा और स्वस्थ जीवन जीते हैं।

जोखिम कारकों को बढ़ावा

न्यूरोसाइंटिस्ट्स के अनुसार, अकेलापन और सामजिकता के अभाव की तुलना इन जोखिम कारकों से की जा सकती है। आप मानें या ना मानें लेकिन अकेलपन का जीवन दिन में 15 सिगरेट पीने, शराबी के सेवन, कसरत न करने से भी ज्यादा हानिकारक माना गया है। इसके साथ ही इसे मोटापे से भी दोगुना खतरनाक कहा गया है।

जिम्मेदारी को महसूस करना

बर्मिंघम यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जूलियन होल्ट-लंस्टड के अध्ययन के मुताबिक 'जब कोई किसी समूह से जुड़ता है या अन्य लोगों की जिम्मेदारी को महसूस करता है, तो उद्देश्य को पूरा करने की भावना उस व्यक्ति में खुद की बेहतर देखभाल और कम जोखिम को उठाने की भावना पैदा करती है। यानी व्यक्ति अपने प्रति अधिक उत्तरदायी हो जाता है।Ó

स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद

एक अन्य लेखक प्रोफेसर टिमोथी स्मिथ, आधुनिक सुविधाओं और प्रौद्योगिकी सामाजिक नेटवर्क कुछ लोगों को सोचने पर मजबूर करता है कि सामाजिक नेटवर्क आवश्यक नहीं हैं। लेकिन ऐसा नहीं है लगातार दोस्तों के संपर्क में रहना न केवल मनोवैज्ञानिक रूप से बल्कि इसका असर सीधे रूप से हमारे शारीरिक स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभकारी है।

Sunday 28 September 2014

दर्द के उपचार लिए होम्योपैथी


दुनिया में दर्द का कोई ईलाज नहीं है। फिर भी दवाखाने पर प्रति दिन जो मरीज आते हैं वे चाहते हैं कि उन्हें ऐसी कोई होम्योपैथिक दवाई दी जाए जिससे उनका दर्द कम हो जाए। हम यदि दर्द के कारण का पता लगाकर उसका निवारण नहीं करेंगे तो दर्द में राहत मिलना मुश्किल है। दर्द एक आम समस्या है जिसका इलाज अक्सर इंसान ढ़ूंढता है।
दर्द के आम प्रकार- पीठ का दर्द, सिर दर्द, पेट दर्द और जोड़ों का दर्द है जोकि ऑस्टियोआर्थराइटिस या गठिया, माइग्रेन या पेट की अन्य समस्या की वजह से हो सकता है।
तेज दर्द आमतौर पर किसी मांसपेशियों के चोटिल होने, हड्डियों, जोड़ या किसी आंतरिक अंगों में चोट की वजह से हो सकता है। कान का दर्द, सिर दर्द किसी संक्रमण से हो सकता है।
दर्द को कैटेगरी में भी बांटा जा सकता है न्यूरोपैथिक और साइकॉजेनिक में बांटा जा सकता है। गंभीर, तेज और लगातार दर्द इंसान को काम करने, सामाजिक और स्वस्थ जिंदगी में आनंद करने से रोक सकता है। पुराने दर्द में आमतौर पर होम्योपैथिक दवाईयों का प्रयोग करके कई तरह के गंभीर साइड इफेक्ट से बचा जा सकता है।
एलोपैथिक दवाओं के साथ-साथ उपचार के कई अन्य तरीके खोजे गए हैं। पुराने दर्द वाले लोगों का होम्योपैथी इलाज ढूढने का आम कारण है इन्जेक्शन, टैबलेट एवं दर्द निवारक लेप लगाने के बावजूद भी लगातार दर्द बने रहना।

ऑस्टियोआर्थराइटिस

ऑस्टियोआर्थराइटिस के उपचार का मुख्य उद्देश्य दर्द से आराम दिलाना और बिमारियों को नियंत्रण करना। वैसे होम्योपैथी उपचार ऑस्टियोआर्थराइटिस के लिए इफेक्टिव पांरपरिक उपचार है।
ऑस्टियोआर्थराइटिस के इलाज के लिए कुछ होम्योपैथी दवाईयां जैसे रस-टाक्स, ब्रायोनिया, जेल्सिमियम, कास्टिकम, अर्निका, लेकेसिस, कैलकेरिया फॉस आदि अत्यंत प्रभावी है।

कानों के दर्द के लिए

होम्योपैथी दवाएं कानों में दर्द के लिए बहुत ही प्रभावी होती हैं। अगर आपको कान में दर्द है तो किसी होम्योपैथी चिकित्सक से सलाह लें। कान के दर्द में प्रभावी दवाएं पल्सेटिला, बेलाडोना, हीपर सल्फ, कॉलिम्यूर इत्यादि हैं।

गठिया

गठिया के उपचार में प्रयोग होने वाली दवाएं एपिस मेल, अर्निका, ब्रायोनिया, कास्टिकम, पल्सेटिला, रस टॉक्स, रुटा आदि लक्षणानुसार दी जा सकती हैं।

सिरदर्द और माइग्रेन्स

होम्योपैथी दवाईयां जो कि सिर दर्द को ठीक करती हैं व माइग्रेन्स से पूर्ण रूप से निजात दिलाती है जैसे नेट्रमम्यूर, इग्निशिया, पल्सेटिला, ग्लोनाइन इत्यादि।

दांत दर्द

दांतों के इलाज के लिए भी होम्योपैथिक दवाएं प्रभावी होती हैं जैसे कोफिया, मर्कसोल, केमोमिला, प्लेन्टेगो व स्टेफीसेग्रिया आदि।

मोच दर्द

चोट के बाद होने वाले दर्द के उपचार के लिए अर्निका, ब्रायोनिया, रस टॉक्स, रुटा, हाईपेरिकम जैसी होम्योपैथिक दवाओं का प्रयोग किया जाता है।
किसी भी प्रकार के गंभीर और तेज दर्द से बचने के लिए होम्योपैथिक चिकित्सक से सलाह लेकर ही होम्योपैथिक दवाइयों का सेवन करें आशानुरूप परिणाम मिलेंगे।
डॉ. ए. के. द्विवेदी
बीएचएमएस, एमडी (होम्यो)
प्रोफेसर, एसकेआरपी गुजराती होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज, इंदौर
संचालक, एडवांस्ड होम्यो हेल्थ सेंटर एवं होम्योपैथिक मेडिकल रिसर्च प्रा. लि., इंदौर

Friday 26 September 2014

डांडिया में छाया फैशन का जलवा


नवरात्रि के दिनों में हर तरफ गरबा की धूम होती है। इसमें गरबा और डांडिया डांस का अपना अलग महत्व है। चूंकि इसे देवी दुर्गा की पूजा-अर्चना से जोड़कर देखा जाता है, इसलिए दिनोंदिन इसकी महत्ता बढ़ती ही जा रही है। गुजरात का यह पारंपरिक लोक नृत्य कभी सिर्फ गुजरात तक ही सीमित था,फिर धीरे-धीरे कुछ और राज्यों में भी इसकी धुन सुनाई देने लगी। गुजरात के फोक डांस के रूप में जाना जाने वाला डांडिया अब तो देश के कई हिस्सों में अपनी धूम मचा रहा है। इसकी बड़ी वजह है,धार्मिक महत्व के अलावा इसके मौज-मस्ती वाले रंग।
महानगरों से होते हुए कई राज्यों तक अब इसका विस्तार हो चुका है। साथ ही इसमें ग्लैमर और फैशन का तड़का भी शामिल हो गया है। गरबा के दौरान डांडिया डांस के साथ-साथ फैशनेबल परिधानों को लेकर युवाओं के बीच काफी जोश देखने को मिलता है। इस साल के गरबा डांस के दौरान फैशन में क्या खास है आइए डालते हैं एक नजर-

डांडिया में फैशन का तड़का

इस साल गरबा के दौरान पटियाला सलवार पर टीशर्ट और कमर में गोटे वाला दुपट्टा काफी चलन में है जो भीड़ में भी एक अलग लुक दे रहा है। राजपूती शैली की कुर्ती भी इस साल काफी चलन में है। आप भी इसे पहनना पसंद करते हैं तो यह ध्यान रखें कि अगर उसपर भरत वर्क किया हुआ हो तो उस पर कभी भी प्रेस न करें। इससे वह दब जाता है। साथ ही इस बार बैकलेस डीप गले के डिजाइनर ब्लाउज भी आकर्षण का केंद्र बन रहे हैं। फैशन डिजाइनर श्रुति अग्रवाल का कहना है कि गरबा और डांडिया अब महज गुजरात में ही नहीं,मेट्रो सिटीज के लिए आकर्षण का केंद्र बन चुके हैं। गरबा डांस के लिए नेट डिजाइन में मिरर वर्क के साथ कच्ची एंब्रॉयडरी खासतौर से पसंद की जा रही है।

क्या है युवाओं की पसंद

महंगाई को देखते हुए इस बार अधिकांश युवा बाजार से ड्रेस मटीरियल खरीदकर डिजाइनर्स से अपने लिए कपड़े बनवाना ही ज्यादा पसंद कर रहे हैं। इस बारे में कई युवाओं का कहना है कि गुजराती लुक की गरबा ड्रेस में कच्छ पैटर्न, मिरर वर्क और कलर्स एक जैसे होने की वजह से पार्टी में सभी एक जैसे दिखते हैं इसलिए वे डिजाइनर्स की मदद लेकर पर्सनलाइज्ड लुक की कोशिश करते हैं। इनकी बात सही भी है, तभी तो डिजाइनर्स के पास गरबे की ड्रेसेज तैयार करने की डिमांड खूब आ रही है। इनके अनुसार क्लाइंट्स उस तरह की ड्रेस प्रिफर कर रहे हैं,जिसमें पारंपरिक कट्स डिजाइन और मिरर वर्क भी आ जाए और वह उन्हें अलग लुक भी दे ताकि बाद में यही ड्रेस शादियों और दूसरे अवसर पर काम आ जाए। पारंपरिक ड्रेस को कंटेम्पररी लुक देकर इसे और भी खास बना देता है।

मिरर वर्क की भी है मांग

गुजरात के पारंपरिक मिरर वर्क की खासियत यह है कि इसमें कांच को कपड़े पर चिपकाया नहीं जाता बल्कि रंग-बिरंगे धागों से टांका जाता है। घेरेदार केडिय़ों व इसके साथ पहनी जाने वाली रेडीमेड धोती की पटलियों व पगड़ी पर जब अलग- अलग आकार के रंग-बिरंगे सुंदर मिरर टांके जाते हैं तो यह परिधान एक विशेष गरबा परिधान का रूप ले लेता है। इस प्रकार के पारंपरिक गुजराती गरबा परिधान पहनकर जब आप गरबा नृत्य करेंगे तो गरबा करने का मजा ही कुछ और होगा।

डांडिया भी बना स्टाइलिश

अब तो डांडिया भी स्टाइलिश हो गया है। इस बार सभी के हाथों में अगल-अलग प्रकार के डांडिया नजर आ रहे हैं। अगर आपके पास स्टाइलिश डांडिया नहीं है तो आपके गरबा के उत्साह का मजा अधूरा सा प्रतीत होगा। इस साल बाजार में 50 से भी अधिक रंगों,डिजाइंस और वैरायटी में डांडिया उपलब्ध हैं। मखमली कपड़े से बने प्लास्टिक आदि के डांडिया हमेशा ही पसंद किए जाते रहे हैं। पर इस बार की नवरात्र में बेयरिंग और लाइट वाले बेयरिंग डांडिया लोगों को ज्यादा लुभा रहे हैं।

उपाय जो मधुमेह से बचाएं


डायबिटीज आधुनिक जीवनशैली की देन कहा जा सकता है। इस बीमारी से पीछा छुड़ाना लगभग नामुममिन है। लेकिन, समय रहते अगर सतर्क हो जाएं, तो इस बीमारी के दुष्प्रभावों को जरूर कम कर सकते हैं। इससे हमारे लिए सामान्य जीवन जीना आसान हो जाता है। अच्छा तो यही है कि नियमित संतुलित आहार, व्यायाम के जरिए इस बीमारी को होने से रोका जाए। लेकिन, फिर भी यह बीमारी हो जाए तो आपको अतिरिक्त सावधानी बरतने की जरूरत होती है।

खानपान की आदतें सुधारें

अपनी खानपान की आदतों में सुधार करके डायबिटीज के असर को कम किया जा सकता है। मधुमेह के रोगी को खानपान सम्बन्धी अपनी आदतों को लेकर सतर्कता बरतनी पड़ती है। उसे न सिर्फ अपने भोजन अपितु उसकी मात्रा को लेकर भी सजग रहना पड़ता है। मधुमेह रोगी को चाहिए कि वह अपने भोजन में प्रोटीन की मात्रा बढ़ा दे। प्रोटीन का काम शरीर की मरम्मत करना होता है और मधुमेह रोगी के लिए यह बेहद जरूरी पोषक तत्व होता है। इसके साथ ही अपने भोजन में कॉर्बोहाइड्रेट की मात्रा भी कम कर देनी चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि कॉर्बोहाइड्रेट शुगर में परिवर्तित हो जाती है और यही शुगर आपको नुकसान पहुंचाती है।

वजन पर रखें काबू

अगर आपका वजन बढ़ा हुआ है तो सबसे पहले उसे नियंत्रित करें। अधिक वजन और मोटापा डायबिटीज का सबसे बड़ा दुश्मन है। रोजाना सुबह की आधे घंटे की वॉक, साइकलिंग, सीढिय़ों का प्रयोग, योग और एरोबिक्स आदि डायबिटीज को कन्ट्रोल करने में सहायक हैं। इसे अपनी दिनचर्या में शामिल करें। बिस्क-वाक नियमित करें ताकि आपकी मांसपेशियां इंसुलिन पैदा कर सकें और ग्लूकोस को पूरा एब्जार्ब कर सकें।

तनाव से दूर रहें

रक्त में शर्करा की मात्रा का संतुलन गड़बड़ाने में तनाव की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है। तनाव से न सिर्फ वजन बढ़ता है, बल्कि साथ ही इससे शरीर में इंसुलिन प्रतिरोध की भी बड़ी वजह बनता है। तो इसलिए जरूरी है कि तनाव से दूर रहा जाए। इसके लिए योग, हॉट बाथ, कसरत और मसाज आदि उपायों का सहारा लिया जा सकता है।

विटामिन-के

विटामिन-के लेने से शरीर में इंसुलिन की प्रक्रिया में मदद मिलती है जो रक्त में ग्लूकोज के स्तर को ठीक रखता है। डायबिटीज रोग में शरीर में इंसुलिन का स्तर बढऩे से इंसुलिन अणु व उनके कार्य प्रभावी होते हैं। इसलिए आपके आहार में विटामिन-के की मात्रा संतुलित होना भी जरूरी है। हरी पत्तेदार सब्जियां ले जैसे पालक व ब्रोकली जैसे खाद्य पदार्थों में यह विटामिन प्रचुर मात्रा में मिलता है। पुरुषों को 12 माइक्रोग्राम व महिलाओं को 90 माइक्रोग्राम विटामिन-के रोजाना लेना चाहिए।

धूम्रपान छोड़ें

याद रखिए धूम्रपान करने वाले मधुमेह रोगियों में हृदयाघात की आशंका 50 फीसदी अधिक होती है। धूम्रपान हमारी रक्त वाहिनियों को नुकसान पहुंचाता है, जिससे हृदय रोग होने का खतरा बढ़ जाता है।

अधिक पानी पीएं

'जल ही जीवन हैÓ यह तो आपने सुना ही होगा। लेकिन पानी सिर्फ प्यास बुझाने के ही काम नहीं आता, बल्कि कई रोगों के इलाज में भी मददगार होता है। मधुमेह रोगियों के लिए भी पानी काफी अच्छा होता है। वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि अगर आप मधुमेह में भी स्वस्थ जीवन जीना चाहते हैं तो अधिक मात्रा में पानी पिएं।

Wednesday 24 September 2014

नवरात्रि पर क्या करें, क्या न करें...






भारतीय शास्त्रों में नौ दिनों तक निर्वहन की जाने वाली परंपराओं का बड़ा महत्व बताया गया है। इन नौ दिनों में कई मान्यताएं और परंपराएं प्रचलित हैं, जिन्हें हमारे बड़े-बुजुर्गों ने हमें सिखाया है। उनका आज भी हम पालन कर रहे हैं।
 हर कोई चाहता है कि देवी की पूजा पूरी श्रद्धा-भक्ति से हो ताकि परिवार में सुख-शांति बनी रहे। आइए जानते हैं, माता के नौ दिनों में क्या करें, क्या न करें :-

क्या करें


  •         जवारे रखना।
  •         प्रतिदिन मंदिर जाना।
  •         देवी को जल अर्पित करना।  
  •         नंगे पैर रहना।
  •         नौ दिनों तक व्रत रखना।
  •         नौ दिनों तक देवी का विशेष श्रृंगार करना।
  •         अष्टमी-नवमीं पर विशेष पूजा करना।
  •         कन्या भोजन कराना।
  •         माता की अखंड ज्योति जलाना।

क्या न करें


  •         दाढ़ी, नाखून व बाल काटना नौ दिन बंद रखें।
  •         छौंक या बघार नहीं लगाएं।
  •         लहसुन-प्याज का भोजन ना बनाएं।

व्रत में रखें ध्यान



व्रत के दौरान यदि छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखा जाए तो किसी प्रकार की परेशानी नहीं होगी। साथ ही आप अपनी सेहत भी सुधार सकती हैं
  • दिन में दो-तीन बार विभिन्न प्रकार की मेवा खाएं, लेकिन इनको तलें नहीं। इन्हें भूनकर या कच्चा ही खाएं। इनमें किसी प्रकार का नमक न डालें, क्योंकि इनमें कुदरती तौर पर नमक पाया जाता है।
  •  यदि आप सिंघाड़े या कूटू का आटा प्रयोग करती हैं तो उन्हें बिना मोयन की पूड़ी बनाकर खाएं, लेकिन खाने से पहले इन्हें टिश्यू पेपर में रखकर दबा दें, ताकि ये अतिरिक्त तेल सोख लें। कूटू व सिंघाड़े के आटे की कढ़ी भी बना सकती हैं। इसको उबले सांवा चावल के साथ खा सकती हैं।
  • व्रत में दही का प्रयोग अंवश्य करें। केला, खीरा, आम आदि में दही मिलाकर रायता बना सकती हैं।
  •  यदि खीर बनाना चाहती हैं तो साबूदाना की बजाय सेब, केला, लौकी और मखाने की खीर बना सकती हैं।
  • व्रत का मौका आपके लिए सेहत सही करने का भी अच्छा मौका होता है, इस दौरान फल, मेवा, दूध, दही, पनीर, सब्जियों का सेवन थोड़ी-थोड़ी मात्रा में दिन में दो-तीन बार करके सेहत सुधारी जा सकती है।
  • देशी घी का प्रयोग कम करें। इसके स्थान पर मूंगफली का रिफाइन्ड तेल प्रयोग कर सकती हैं। चाहें तो ऑलिव ऑयल का भी प्रयोग कर सकती हैं।
  • चाय का ज्यादा प्रयोग करने के स्थान पर दूध और जूस आदि का सेवन करें।
  • लंबे समय तक भूखे पेट न रहे। यदि व्रत के दिनों में भोजन नहीं करती है तो सुबह के वक्त दूध, दोपहर के समय जूस या फल लें। रात में फलों की सलाद ले सकती है।
  • यदि एक बार भोजन करती है तो भी अधिक मात्रा में भोजन न करे। भोजन करने के बावजूद यदि यह महसूस होता है कि आप अभी भी भूखी है तो फल, मेवा या छेने की मिठाई का सेवन करे।
  • व्रत के दिनों में केवल मीठे पदार्थो पर ही निर्भर न रहे। इससे सिरदर्द हो सकता है, चक्कर आ सकता है और शरीर शिथिल हो सकता है। सेंधा नमक का सेवन करे।
  • यदि आप सेंधा नमक प्रयोग करती है तो याद रखिए कि यह रिफाइन नहीं होता है। जहां तक संभव हो सेंधा नमक को पानी में घोलकर और छानकर इसका इस्तेमाल करे।
  • व्रत के दिनों में केवल एक ही पदार्थ पर निर्भर न रहे। यह खराब आदत है।
  • यदि आप हाई ब्लडप्रेशर से पीडि़त हैं तो व्रत के दौरान भी दवाएं बंद न करे। साथ ही नमक, फैट वाले पदार्थ व मीठा कम लें।
  • यदि मधुमेह से पीडि़त है तो अपनी दवा अवश्य लें। साथ ही संतरा और खीरा, लौकी अधिक लें। पूड़ी, पकौड़ी न खाएं।

बोन मेरो ट्रांसप्लांट से संभव है कैंसर का इलाज


बोन मेरो ट्रांसप्लांट यानी अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण से कैंसर का इलाज करना बहुत ही जटिल काम है। बोन मेरो ट्रांसप्लांट के दौरान पीडि़त व्यक्ति की प्रभावित बोन मेरो को हेल्दी बोन मेरो से बदल दिया जाता है।
इस ट्रांसप्लांट के बाद हेल्दी और नई कोशिकाएं शरीर में मौजूद संक्रमण से लडऩे में मदद करती है और बीमार व्यक्ति अपने को पहले से अधिक स्वस्थ महसूस करने लगता है। इलाज के बाद मरीज का इम्यून सिस्टम पहले से कहीं अधिक बेहतर हो जाता है और वह कैंसर कोशिकाओं से लडऩे में भी मदद करता है। आमतौर पर बोन मेरो ट्रांसप्लांट मरीज का बोन कैंसर के लिंफोमा, मल्टीपल माइलोमा और ल्यूकेमिया इत्यादि से ग्रसित होने पर किया जाता है।
हाल ही में आए शोधों के अनुसार, 1995 से 1999 के बीच लगभग 329 मरीजों का बोन मेरो ट्रांसप्लांट किया गया जिनमें से लगभग 56.5 फीसदी लोग जीवित हैं। हालांकि कई बार कैंसर के मरीजों पर बोन मेरो ट्रांसप्लांट तकनीक के इस्तेमाल के बाद कोई असर नहीं होता जिस कारण कैंसर उनमें लगातार बढ़ता जाता है और ऐसे मरीजों को असमय मौत का जोखिम हो जाता है। उदाहरण के तौर पर स्तन कैंसर। बहुत से शोधों में यह भी बात सामने आई है कि बोन मेरो ट्रांसप्लांट का ब्रेस्ट कैंसर मरीजों पर कोई खास असर नहीं पड़ता।
कैंसर ट्रीटमेंट के लिए तीन तरह के बोन मेरो ट्रांसप्लांट का इस्तेमाल किया जाता है -

ऑटोलॉगस

यह विधि तब प्रयोग में लाई जाती है जब मरीज को इलाज के लिए बोन मेरो ट्रांसप्लांट की जरूरत होती है। इस थेरेपी को शुरू करने से पहले मरीज की हेल्दी बोन मेरो पहले निकाल ली जाती है।

एलोजेनिक

इस विधि में बोन मेरो किसी अन्य व्यक्ति से लिया जाता है। लेकिन इसमें डोनर की बोन मेरो मरीज से मैच करनी चाहिए। इसके लिए डॉक्टर द्वारा ह्यूमन ल्युकोसैट एंटीजेन टेस्ट किया जाता है। यदि डोनर मैच कर जाता है तो दोनों का ब्लड ग्रुप चेक किया जाता है। उसके बाद ही इस विधि के जरिए बोन मेरो ट्रांसप्लांट होती है।

सिन्जेनिक

बोन मेरो ट्रासंप्लांट के लिए इस विधि को बहुत ही कम प्रयोग में लाया जाता है। इस विधि में ट्विंस बोन मेरो का मैच करना जरूरी है यानी मरीज के लिए प्रयोग में लाई जाने वाली बोन मेरो एक जैसी होनी चाहिए। इस कंडीशन के कारण ही इस विधि का बहुत कम इस्तेमाल होता है।
स्टेम सेल ट्रांसप्लांट और बोन मेरो ट्रांसप्लांट दोनों को ही जीवन बचाने के लिए उपयोग में लाया जाता है। लेकिन कैंसर पीडि़तों का जीवन बचाने के लिए यही एकमात्र सोल्युशन नहीं है। वैसे भी बोन मेरो ट्रांसप्लांट हर किसी मरीज के लिए उपयोगी नहीं है। इतना ही नहीं बोन मेरो ट्रांसप्लांट और इस तरह की तकनीको का प्रभाव जितना युवाओं पर पड़ता है उतना बड़ी उम्र के व्यक्ति पर नहीं पड़ता। बोन मेरो ट्रांसप्लांट जैसी तकनीकों की सफलता के लिए उम्र बहुत बड़ा फैक्टर है। क्या आप जानते हैं 55 साल के आसपास की उम्र के लोगों पर बोन मेरो ट्रांसप्लांट तकनीक को नहीं अपनाया जा सकता। इतना ही नहीं बोन मेरो ट्रांसप्लांट से पहले मरीज की स्थिति, उसकी शारीरिक क्षमता और बीमारी की स्टेज इत्यादि का भी ध्यान रखा जाता है।
कैंसर के रोगियों को बोन मेरो ट्रांसप्लांट का उपचार देने से पहले डॉक्टर्स द्वारा कीमीथेरेपी और रेडिएशन थेरपी दी जाती है जिससे मरीज को नुकसान पहुंचाने वाले कैंसर के सेल्स को नष्ट किया जा सकें। बोन मेरो ट्रांसप्लांट के दौरान मरीज को रक्त की बहुत जरूरत होती है। कई बार बोन मेरो ट्रांसप्लांट के बाद मरीज को कई महीने भी लग सकते हैं अपनी हालत को सुधारने में। इतना ही नहीं मरीज का इम्यून सिस्टम मजबूत होने में भी काफी वक्त लग जाता है।

ज्यादा बैठे रहने से भी होती हैं ये बीमारियां...


लम्बे समय तक बैठने से भी हमारे शरीर में कुछ ऐसे परिवर्तन होने लगते हैं जो कि हानिकारक होते हैं। भले ही हम इन पर गौर न कर पाते हैं। उदाहरण के लिए अगर हम टीवी के सामने लम्बे समय तक बैठे रहते हैं तो यह भी हानिकारक है और इससे व्यक्ति कई तरह बीमारियों का शिकार हो सकता है।
आमतौर पर हम दफ्तरों में भी करीब 8-10 घंटे तक कम्प्यूटर के सामने बैठे रहते हैं और यह स्थिति भी निरापद नहीं है क्योंकि इस कारण से आपके सिर से लेकर पैर तक बीमारियां अपनी मौजूदगी बना सकती हैं।

हाई ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्रॉल

लम्बे समय तक बैठने से विभिन्न अंगों को नुकसान हो सकता है। लम्बे समय तक बैठे रहने से उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर) की समस्या हो सकती है और कोलेस्ट्रॉल बढ़ सकता है। 

मांसपेशियों में कमजोरी

आप बैठे रहते हैं तो पीठ और पेट की मांसपेशियां ढीली पडऩे लगती हैं। इसी स्थिति के चलते आपके कूल्हे, पैरों की मांशपेशियां कमजोर पडऩे लगती हैं।

ऑस्टियोपोरोसिस

लम्बे समय तक बैठे रहने से लोगों का वजन भी बढ़ता है और इसके परिणामस्वरूप कूल्हे और इसके नीचे के अंगों की हड्डियां कमजोर हो जाती हैं। शारीरिक सक्रियता की कमी के कारण ही ऑस्टियोपोरोसिस या अस्थि-सुषिरता जैसी बीमारियां आम होती जा रही हैं।

गर्दन में तनाव

लम्बे समय तक कम्प्यूटर पर बैठने या टाइप करने से गर्दन भी सख्त हो जाती है। इस
अस्वाभाविक हालत का परिणाम यह होता है कि गर्दन में तनाव पैदा हो जाती है। इसके कारण कंधों और पीठ में भी दर्द होने लगता है।

पीठ पर बुरा असर

एक जैसी स्थिति में बैठे रहने से रीढ़ की हड्डी की नमनीयता की विशेषता दुष्प्रभावित होती है और इसमें डिस्क क्षतिग्रस्त भी हो सकते हैं। इसलिए सही अवस्था में बैठने के लिए उपाय करने चाहिए।

बचने के लिए क्या करें?

इन अप्रिय स्थितियों से बचने के लिए हम क्या कर सकते हैं तो इसका जवाब है कि आप हल्का व्यायाम करके ही बहुत हद होने वाले नुकसान को रोक सकते हैं।
  • एक्सरसाइज बॉल या बैकलेस स्टूल पर बैठें। इससे आपके सभी महत्वपूर्ण मांसपेशियां सक्रिय हो जाती हैं।
  • आप दिन में एक बार अपने हिप फ्लेक्सर्स (आकुंचकों) को तीन-तीन मिनट के लिए दोनों ओर रखकर बैठें।
  • अगर आप टीवी देख रहे हों या अन्य कोई काम कर रहे हों तो थोड़ी देर के लिए आप चलना शुरू कर दें।
  • भले ही चलने की रफ्तार धीमी हो, लेकिन इससे भी आपकी मांसपेशियां सक्रिय होती हैं।
  • आप बार-बार खड़े होने और बैठने का अभ्यास करें।
  • आप योग मुद्राओं का अभ्यास कर सकते हैं या फिर अपने शरीर को गाय, बिल्ली जैसी मुद्रा में रखें।

Sunday 21 September 2014

सेहत का खजाना पुदीना


क्या आप जानते हैं?

पुदीने के विषय में प्रकाशित एक ताजे शोध से यह पता चला है कि पुदीने में कुछ ऐसे एंजाइम होते हैं, जो कैंसर से बचा सकते हैं।

इसकी विभिन्न प्रजातियाँ यूरोप, अमेरिका, एशिया, अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया मे पाई जाती हैं।

भारत, इंडोनेशिया और पश्चिमी अफ्रीका में बड़े पैमाने पर पुदीने का उत्पादन किया जाता है।

पिपरमिंट और पुदीना एक ही जाति के होने पर भी अलग अलग प्रजातियों के पौधे हैं। पुदीने को स्पियर मिंट के वानस्पतिक नाम से जाना जाता है।

पुदीने को गर्मी और बरसात की संजीवनी बूटी कहा गया है, स्वाद, सौन्दर्य और सुगंध का ऐसा संगम बहुत कम पौधों में दखने को मिलता है। पुदीना मेंथा वंश से संबंधित एक बारहमासी, खुशबूदार जड़ी है। इसकी विभिन्न प्रजातियाँ यूरोप, अमेरिका, एशिया, अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया मे पाई जाती हैं, साथ ही इसकी कई संकर किस्में भी उपलब्ध हैं।

गहरे हरे रंग की पत्तियों वाले पुदीने की उत्पत्ति कुछ लोग योरप से मानते हैं तो कुछ का विश्वास है कि मेंथा का उद्भव भूमध्यसागरीय बेसिन में हुआ तथा वहाँ से यह प्राकृतिक तथा अन्य तरीकों से संसार के अन्य हिस्सों में फैला। लगभग तीस जातियों और पाँच सौ प्रजातियों वाला पुदीने का पौधा आज पुदीना, ब्राजील, पैरागुए, चीन, अर्जेन्टिना, जापान, थाईलैंड, अंगोला, तथा भारतवर्ष में उगाया जा रहा है। लेकिन इसकी विभिन्न जातियों में- पिपमिंट और स्पियरमिंट का प्रयोग ही अधिक होता है। भारतवर्ष में मुख्यतया तराई के क्षेत्रों (नैनीताल, बदायूँ, बिलासपुर, रामपुर, मुरादाबाद तथा बरेली) तथा गंगा यमुना दोआन (बाराबंकी, तथा लखनऊ तथा पंजाब के कुछ क्षेत्रों (लुधियाना तथा जलंधर) में उत्तरी-पश्चिमी भारत के क्षेत्रों में इसकी खेती की जा रही है। पूरे विश्व का सत्तर प्रतिशत स्पियर मिंट अकेले संयुक्त राज्य में उगाया जाता है। पुदीने के विषय में प्रकाशित एक ताजे शोध से यह पता चला है कि पुदीने में कुछ ऐसे एंजाइम होते हैं, जो कैंसर से बचा सकते हैं।

उपयोग

मेन्थोल का उपयोग बड़ी मात्रा में दवाईयों, सौदर्य प्रसाधनों, कनफेक्शनरी, पेय पदार्थो, सिगरेट, पान मसाला आदि में सुगंध के लिये किया जाता है। इसके अलावा इसका उडऩशील तेल पेट की शिकायतों में प्रयोग की जाने वाली दवाइयों, सिरदर्द, गठिया इत्यादि के मल्हमों तथा खाँसी की गोलियों, इनहेलरों, तथा मुखशोधकों में काम आता है। यूकेलिप्टस के तेल के साथ मिलाकर भी यह कई रोगों में काम आता है। अमृतधारा नामक बहुउपयोगी आयुर्वेदिक औषधि में भी सतपुदीने का प्रयोग किया जाता है। विशेष रूप से गर्मियों में फैलने वाली पुदीने की पत्तियाँ औषधीय और सौंदर्योपयोगी गुणों से भरपूर है। इसे भोजन में रायता, चटनी तथा अन्य विविध रूपों में उपयोग में लाया जाता है। संस्कृत में पुदीने को पूतिहा कहा गया है, अर्थात् दुर्गंध का नाश करनेवाला। इस गुण के कारण पुदीना चूइंगम, टूथपेस्ट आदि वस्तुओं में तो प्रयोग किया ही जाता है, चाट के जलजीरे का प्रमुख तत्व भी वही होता है। गन्ने के रस के साथ पुदीने का रस मिलाकर  पीने को स्वास्थ्यवर्धक माना गया है। सलाद में इसकी पत्तियाँ डालकर खाने में भी यह स्वादिष्ट और पाचक होता है। कुछ नहाने के साबुनों, शरीर पर लगाने वाली सुगंधों और हवाशोधकों (एअर फ्रेशनर) में भी इसका प्रयोग किया जाता है।

कुछ घरेलू नुस्खे

  • पुदीने की पत्तियों का ताजा रस नीबू और शहद के साथ समान मात्रा में लेने से पेट की हर बीमारियों में आराम दिलाता है।
  • पुदीने का रस कालीमिर्च और काले नमक के साथ चाय की तरह उबालकर पीने से जुकाम, खाँसी और बुखार में राहत मिलती है।
  • इसकी पत्तियाँ चबाने या उनका रस निचोड़कर पीने से हिचकियाँ बंद हो जाती हैं।
  • सिरदर्द में ताजी पत्तियों का लेप माथे पर लगाने से दर्द में आराम मिलता है।
  • मासिक धर्म समय पर न आने पर पुदीने की सूखी पत्तियों के चूर्ण को शहद के साथ समान मात्रा में मिलाकर दिन में दो-तीन बार नियमित रूप से सेवन करने पर लाभ मिलता है।
  • पेट संबंधी किसी भी प्रकार का विकार होने पर एकचम्मच पुदीने के रस को एक प्याला पानी में मिलाकर पिएँ।
  • अधिक गर्मी या उमस के मौसम में जी मिचलाए तो एक चम्मच सूखे पुदीने की पत्तियों का चूर्ण और आधी छोटी इलायची के चूर्ण को एक गिलास पानी में उबालकर पीने से लाभ होता है।
  • पुदीने की पत्तियों को सुखाकर बनाए गए चूर्ण को मंजन की तरह प्रयोग करने से मुख की दुर्गंध दूर होती है और मसूड़े मजबूत होते हैं।
  • एक चम्मच पुदीने का रस, दो चम्मच सिरका और एक चम्मच गाजर का रस एकसाथ मिलाकर पीने से श्वास संबंधी विकार दूर होते हैं।
  • पुदीने के रस को नमक के पानी के साथ मिलाकर कुल्ला करने से गले का भारीपन दूर होता है और आवाज साफ होती है।

बुखार से बचाव के लिए घरेलू इलाज


ऐसा बुखार जो बार-बार या कई दिनों तक बना रहता है तथा कम-ज्यादा होता रहता है, लेकिन कभी सामान्य नहीं होता। इसी तरह का टाइफाइड का इन्फेक्शन होने के एक सप्ताह बाद रोग के लक्षण नजर आने लगते हैं। कई बार दो-दो माह बाद तक इसके लक्षण दिखते हैं। टाइफाइड और बुखार का घरेलू इलाज से बचाव किया जा सकता है।

बुखार से बचाव के घरेलू इलाज

  • पान का रस, अदरक का रस और शहद को बराबर मात्रा में मिलाकर सुबह-शाम पीने से आराम मिलता है।
  • यदि जुकाम या सर्दी-गर्मी में बुखार हो तो तुलसी, मुलेठी, गाजवां, शहद और मिश्री को पानी में मिलाकर काढा बनाएं और पीएं। इससे जुकाम सही हो जाता है और बुखार भी जल्द ही उतर जाता है।
  • गर्मी के मौसम में टायफायड होने पर लू लगने के कारण बुखार होने का खतरा रहता है। ऐसे में आप कच्चे आम को आग या पानी में पकाकर इसका रस पानी के साथ मिलाकर पीएं।
  • जलवायु परिवर्तन की वजह से बुखार होने तुलसी की चाय पीने से आराम मिलता है। इसके लिए 20 तुलसी की पत्तियां, 20 काली मिर्च, थोड़ी सी अदरक, जरा सी दालचीनी को पानी में डालकर खूब खौलाएं। अब इस मिश्रण को आंच से उतारकर छानें और इसमें मिश्री या चीनी मिलाकर गर्म-गर्म पीएं।
    तुलसी और सूर्यमुखी के पत्तों का रस पीने से भी टायफायड बुखार ठीक होते हैं। करीब तीन दिन तक सुबह-सुबह इसका प्रयोग करें।
  • बुखार में रोगी को अधिक से अधिक आराम की जरूरत होती है। भोजन का खास ख्याल रखें। बुखार होने पर दूध, साबूदाना, चाय, मिश्री आदि हल्की चीजें खाएं। मिश्री का शर्बत, मौसमी का रस, सोडा वाटर और कच्चे नारियल का पानी जरूर पीये।
  • पानी खूब पीएं और पीने के पानी को पहले गर्म करें और उसे ठंडा होने के बाद पीये। अधिक पानी पीने से शरीर का जहर पेशाब और पसीने के रूप में शरीर से बाहर निकल जाता है।
  • लहसुन की कली पांच से दस ग्राम तक काटकर तिल के तेल में या घी में तलकर सेंधा नमक डालकर खाने से सभी प्रकार का बुखार ठीक होता है।
  • तेज बुखार आने पर माथे पर ठंडे पानी का कपड़ा रखें तो बुखार उतर जाता है,और बुखार की गर्मी सिर पर नहीं चढ़ती है।
  • फ्लू में प्याज का रस बार-बार पीने से बुखार उतर जाता है,और कब्ज में भी आराम मिलता है।
    पुदीना और अदरक का काढ़ा पीने से बुखार उतर जाता है। काढ़ा पीकर घंटे भर आराम करें, बाहर हवा में न जाएं।

Saturday 20 September 2014

हर रोग का इलाज गेहूं के जवारे


प्रकृति ने हमें अनेक अनमोल नियामतें दी हैं। गेहूं के जवारे उनमें से ही प्रकृति की एक अनमोल देन है। अनेक आहार शास्त्रियों ने इसे संजीवनी बूटी भी कहा है, क्योंकि ऐसा कोई रोग नहीं, जिसमें इसका सेवन लाभ नहीं देता हो। यदि किसी रोग से रोगी निराश है तो वह इसका सेवन कर श्रेष्ठ स्वास्थ्य पा सकता है।
गेहूं के जवारों में अनेक अनमोल पोषक तत्व व रोग निवारक गुण पाए जाते हैं, जिससे इसे आहार नहीं वरन अमृत का दर्जा भी दिया जा सकता है। जवारों में सबसे प्रमुख तत्व क्लोरोफिल पाया जाता है।  आहार शास्त्रियों के अनुसार क्लोरोफिल (गेहूं के जवारों में पाया जाने वाला प्रमुख तत्व) को केंद्रित सूर्य शक्ति कहा है।
गेहूं के जवारे रक्त व रक्त संचार संबंधी रोगों, रक्त की कमी, उच्च रक्तचाप, सर्दी, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, स्थायी सर्दी, साइनस, पाचन संबंधी रोग, पेट में छाले, कैंसर, आंतों की सूजन, दांत संबंधी समस्याओं, दांत का हिलना, मसूड़ों से खून आना, चर्म रोग, एक्जिमा, किडनी संबंधी रोग, सेक्स संबंधी रोग, शीघ्रपतन, कान के रोग, थायराइड ग्रंथि के रोग व अनेक ऐसे रोग जिनसे रोगी निराश हो गया, उनके लिए गेहूं के जवारे अनमोल औषधि हैं। इसलिए कोई भी रोग हो तो वर्तमान में चल रही चिकित्सा पद्धति के साथ-साथ इसका प्रयोग कर आशातीत लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
गेहूं के जवारों में रोग निरोधक व रोग निवारक शक्ति पाई जाती है। कई आहार शास्त्री इसे रक्त बनाने वाला प्राकृतिक परमाणु कहते हैं। गेहूं के जवारों की प्रकृति क्षारीय होती है, इसीलिए ये पाचन संस्थान व रक्त द्वारा आसानी से अधिशोषित हो जाते हैं। यदि कोई रोगी व्यक्ति वर्तमान में चल रही चिकित्सा के साथ-साथ गेहूं के जवारों का प्रयोग करता है तो उसे रोग से मुक्ति में मदद मिलती है और वह बरसों पुराने रोग से मुक्ति पा जाता है।

कच्ची सब्जियाँ खाइए सेहत बनाइए


भरपूर भोजन के साथ अगर आप अच्छी सेहत का सपना पाले हुए हैं, तो अपने भोजन में किसी कच्ची सब्जी या फल को जरूर शामिल करें। विशेषज्ञों का मानना है कि कच्चे फल और सब्जियाँ भोजन को पचाने में सहायता करने के साथ शरीर के लिए जरूरी पोषक तत्व भी उपलब्ध कराते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार कच्ची सब्जियों और फलों का कोई और विकल्प भी नहीं है।
आहार विशेषज्ञ बताते हैं कि कच्चे फल और सब्जियाँ शेष भोजन के लिए रास्ता साफ करते हैं। कच्चे फल और सब्जियाँ रेशों से भरपूर होने के कारण शेष भोजन के लिए पाचन तंत्र में रास्ता साफ करते हैं। उदाहरण के तौर पर अगर आप पिज्जा खाने जा रहे हैं, तो उसके पूर्व सलाद खाएँ। अगर आप आइसक्रीम खाने जा रहे हैं, तो उसके पूर्व एक सेब खाएँ।
यह प्रक्रिया गरिष्ठ भोजन को पचाने में भी सहायक होती है। उन्होंने कहा इनमें मौजूद रेशे पेट में जाकर फैलते हैं, जिससे कम खाने में ही पेट भरा हुआ महसूस होने लगता है। ऐसा होने से जरूरत से ज्यादा खाने से बचा जा सकता है। रेशे भोजन को पाचन तंत्र में आगे बढऩे में भी सहायता करते हैं।
दिन में हर बार भोजन के साथ एक कच्चा फल या कच्ची सब्जी शरीर को तंदुरुस्त बनाने में सहायता करती है। कच्ची सब्जियों और फलों में उच्च मात्रा में पाचक एंजाइम मौजूद होते हैं, जो शेष खाने को पचाने में सहायक होते हैं।
कच्चे फलों में विटामिन और खनिज भी भरपूर मात्रा में होते हैं। बाजार में विटामिन के लिए कई दवाइयाँ और गोलियाँ मिलती हैं, लेकिन कच्चे फलों का कोई विकल्प नहीं है। गोलियों से शरीर को विटामिन की आपूर्ति होती है, लेकिन विटामिन के प्राकृतिक स्रोत गोलियों के दूरगामी प्रभाव की आशंका को खत्म करते हैं। महिलाओं को स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ दूर करने के लिए अपने भोजन में कच्ची सब्जियों को शामिल करना चाहिए।
कई शोधों ने साबित कर दिया है कि महिलाओं को साल भर अपने भोजन में कम से कम एक कच्ची सब्जी को अवश्य शामिल करना चाहिए। यह रजोनिवृत्ति के बाद की समस्याओं को दूर करने के साथ डायबिटीज की आशंका को कम करता है। उन्होंने बताया कच्ची सब्जियों में एंटी ऑक्सीडेंट होते हैं, जिनसे रक्तचाप की समस्या भी दूर रहती है।

Thursday 18 September 2014

अंकुरित आहार अच्छे स्वास्थ्य का आधार


अंकुरित आहार को अमृत आहार कहा गया है अंकुरित आहार भोजन की सप्राण खाद्यों की श्रेणी में आता है। यह पोषक तत्वों का स्रोत माना गया है। अंकुरित आहार न सिर्फ हमें उन्नत, रोग प्रतिरोधी व उर्जावान बनाता है बल्कि शरीर का आंतरिक शुद्धिकरण कर रोग मुक्त भी करता है। अंकुरित आहार अनाज या दालों के वे बीज होते जिनमें अंकुर निकल आता हैं इन बीजों की अंकुरण की प्रक्रिया से इनमें रोग मुक्ति एवं नव जीवन प्रदान करने के गुण प्राकृतिक रूप से आ जाते हैं।
अंकुरित भोजन क्लोरोफिल, विटामिन (ए, बी, सी, डी और के) कैल्शियम, फास्फोरस, पोटैशियम, मैगनीशियम, आयरन, जैसे खनिजों का अच्छा स्रोत होता है। अंकुरित भोजन को काया कल्प करने वाला अमृत आहार कहा गया है अर्थात् यह मनुष्य को पुनर्युवा, सुन्दर स्वस्थ और रोगमुक्त बनाता है। यह महँगे फलों और सब्जियों की अपेक्षा सस्ता है, इसे बनाना खाना बनाने की तुलना में आसान है इसलिये यह कम समय में कम श्रम से तैयार हो जाता है। बीजों के अंकुरित होने के पश्चात् इनमें पाया जाने वाला स्टार्च- ग्लूकोज, फ्रक्टोज एवं माल्टोज में बदल जाता है जिससे न सिर्फ इनके स्वाद में वृद्धि होती है बल्कि इनके पाचक एवं पोषक गुणों में भी वृद्धि हो जाती है।
खड़े अनाजों व दालों के अंकुरण से उनमें उपस्थित अनेक पोषक तत्वों की मात्रा दोगुनी से भी ज्यादा हो जाती है, मसलन सूखे बीजों में विटामिन 'सीÓ की मात्रा लगभग नहीं के बराबर होती है लेकिन अंकुरित होने पर लगभग दोगुना विटामिन सी इनसे पाया जा सकता है। अंकुरण की प्रक्रिया से विटामिन बी कॉम्प्लेक्स खासतौर पर थायमिन यानी विटामिन बी1, राइबोप्लेविन यानी विटामिन बी2 व नायसिन की मात्रा दोगुनी हो जाती है। इसके अतिरिक्त 'केरोटीनÓ नामक पदार्थ की मात्रा भी बढ़ जाती है, जो शरीर में विटामिन ए का निर्माण करता है। अंकुरीकरण की प्रक्रिया में अनाज/दालों में पाए जाने वाले कार्बोहाइट्रेड व प्रोटीन और अधिक सुपाच्य हो जाते हैं। अंकुरित करने की प्रक्रिया में अनाज पानी सोखकर फूल जाते हैं, जिनसे उनकी ऊपरी परत फट जाती है व इनका रेशा नरम हो जाता है। परिणामस्वरूप पकाने में कम समय लगता है और वे बच्चों व वृद्धों की पाचन क्षमता के अनुकूल बन जाते हैं।
अंकुरित करने के लिये चना, मूँग, गेंहू, मोठ, सोयाबीन, मूँगफली, मक्का, तिल, अल्फाल्फा, अन्न, दालें और बीजों आदि का प्रयोग होता है। अंकुरित भोजन को कच्चा, अधपका और बिना नमक आदि के प्रयोग करने से अधिक लाभ होता है। एक दलीय अंकुरित (गेहूं, बाजरा, ज्वार, मक्का आदि) के साथ मीठी खाद्य (खजूर, किशमिश, मुनक्का तथा शहद आदि) एवं फल लिए जा सकते हैं।
द्विदलीय अंकुरित (चना, मूंग, मोठ, मटर, मूंगफली, सोयाबीन, आदि) के साथ टमाटर, गाजर, खीरा, ककड़ी, शिमला मिर्च, हरे पत्ते (पालक, पुदीना, धनिया, बथुआ, आदि) और सलाद, नींबू मिलाकर खाना बहुत ही स्वादिष्ट और स्वास्थ्यदायक होता है। अंकुरित दानों का सेवन केवल सुबह नाश्ते के समय ही करना चाहिये। एक बार में दो या तीन प्रकार के दानों को आपस में मिला लेना अच्छा रहता है।

अंकुरण की विधि

अंकुरित करने वाले बीजों को कई बार अच्छी तरह पानी से धोकर एक शीशे के जार में भर लें शीशे के जार में बीजों की सतह से लगभग चार गुना पानी भरकर भीगने दें अगले दिन प्रात:काल बीजों को जार से निकाल कर एक बार पुन: धोकर साफ सूती कपडे में बांधकर उपयुक्त स्थान पर रखें। गर्मियों में कपडे के ऊपर दिन में कई बार ताजा पानी छिडकें ताकि इसमें नमी बनी रहे। गर्मियों में सामान्यत: 24 घंटे में बीज अंकुरित हो उठते हैं सर्दियों में अंकुरित होने में कुछ अधिक समय लग सकता है। अंकुरित बीजों को खाने से पूर्व एक बार अच्छी तरह से धो लें तत्पश्चात इसमें स्वादानुसार हरी धनियाँ, हरी मिर्च, टमाटर, खीरा, ककड़ी काटकर मिला सकते हैं, यथासंभव इसमें नमक न मिलाना ही हितकर है।

ध्यान दें

  • अंकुरित करने से पूर्व बीजों से मिटटी, कंकड़ पुराने रोगग्रस्त बीज निकलकर साफ कर लें। प्रात: नाश्ते के रूप में अंकुरित अन्न का प्रयोग करें । प्रारंभ में कम मात्रा में लेकर धीरे-धीरे इनकी मात्रा बढ़ाएँ।
  • अंकुरित अन्न अच्छी तरह चबाकर खाएँ।
  • नियमित रूप से इसका प्रयोग करें।
  • वृद्धजन, जो चबाने में असमर्थ हैं वे अंकुरित बीजों को पीसकर इसका पेस्ट बनाकर खा सकते हैं। ध्यान रहे पेस्ट को भी मुख में कुछ देर रखकर चबाएँ ताकि इसमें लार अच्छी तरह से मिल जाय।

पुरुषों में मूत्राशय कैंसर


वीर्यकोष की कोशिकाओं में अनियंत्रित तरीके से वृद्धि के कारण ही मूत्राशय कैंसर या वृषण कैंसर होता है। यह पुरुषों की सेक्स ग्रंथियां हैं जो अंडकोष की थैली में होती हैं और टेस्टोस्टेरॉन और अन्य हार्मोन का उत्पादन करती हैं। यह थैली प्रजनन कोशिकाओं के लिए भी जिम्मेदार है। कोयले की खानों में कार्यरत श्रमिकों को मूत्राशय कैंसर होने का खतरा अधिक होता है। पथरी भी यदि ज्यादा दिनों तक रहे तो वह कैंसर का रूप ले सकती है।
शुरूआत में यह केवल टेस्टिस तक ही सीमित रहता है लेकिन उसके बाद यह रेट्रोपेरिटोनिल लिम्फ नोड्स तक पंहुच जाता है। रेट्रोपेरिटोनिल लिम्फ नोड्स वह छोटी ग्रंथियां होती हैं जो बैक्टीरिया को फिल्टर करती हैं और ये कैंसर सेल्स लिम्फेटिक फ्लुइड में डायफ्राम और किडनी के बीच बनते हैं। आखिरी स्टेज में कैंसर की कोशिकायें पूरे शरीर में फैल जाती हैं जिससे फेफड़े, दिमाग, लीवर और हड्डियां भी बुरी तरह से प्रभावित होती हैं। अगर कैंसर का समय रहते इलाज ना किया गया तो इससे मृत्यु भी हो सकती है। 95 प्रतिशत स्थितियों में कैंसर घातक होता है और इलाज के अभाव में यह फैलता जाता है।

गांठ का होना

मूत्राशय कैंसर में यदि किसी प्रकार की कोई गांठ है तो यह कैंसर का लक्षण हो सकता है। टेस्टिकल्स में किसी भी प्रकार की गांठ, यह गांठ सामान्यतया मटर के दाने जितनी होती है या उससे भी बड़ी हो सकती है।

टेस्टिकल्स में बदलाव

मूत्राशय कैंसर होने पर अंडकोष में बदलाव होता है। इसके फलस्वरूप टेस्टिकल्स में सिकुडऩ या उसमें किसी भी प्रकार का इनलार्जमेंट होने लगता है। यदि ऐसा कोई लक्षण आपको दिखे तो यह मूत्राशय कैंसर हो सकता है। इसके अलावा टेस्टिकल्स में कठोरता भी आ सकती है।

टेस्टिकल्स का भारी होना

मूत्राशय कैंसर होने पर स्क्रोटम या टेस्टिकल्स में भारीपन आ सकता है। इसकी वजह से व्यक्ति को उसका अंडकोष भारी लगने लगता है।
अंडकोष का सख्त होना
कैंसर के इस प्रकार में सबसे ज्यादा प्रभावित अंग अंडकोष होता है। अंडकोष का सख्त होना भी मूत्राशय कैंसर का लक्षण हो सकता है।

रक्त आना

मूत्राशय कैंसर होने पर पेशाब करने में दर्द होता है, इसके अलावा मूत्र के साथ खून भी निकलता है। यदि आपको पेशाब करने में दिक्कत हो रही हो या मूत्र के साथ खून निकल रहा हो तो यह मूत्राशय कैंसर का लक्षण हो सकता है।

दर्द होना 

मूत्राशय कैंसर होने पर पेट के निचले हिस्से में दर्द होता है। इसके अलावा इसका असर पीठ पर भी पड़ता है। यदि पेट और पीठ में लगातार दर्द हो रहा है तो यह कैंसर का लक्षण है।

सांस लेने में दिक्कत

मूत्राशय कैंसर अंडकोष से शुरू होकर धीरे-धीरे पूरे शरीर में फैल जाता है। चूंकि यह फेफड़ों पर भी असर डालती है जिसकी वजह से व्यक्ति को सांस लेने में दिक्कत हो सकती है।
मूत्राशय कैंसर का पता लगाने का सबसे आसान तरीका है सेल्फ इक्ज़ामिनेशन जो कि हर युवक को 15 साल के बाद शुरू कर देना चाहिए। आप जितना स्वयं को परखेंगे उतना ही अपने टेस्टिकल्स और उसमें होने वाली असमान्यताओं के बारे में जान सकेंगे। यदि आपको ऐसे लक्षण दिखें तो चिकित्सक से तुरंत संपर्क करें।

Wednesday 17 September 2014

सेक्स करने से पहले ये नहीं खाएं आप


आपने खाने-पीने की ऐसी चीजों के बारे में तो सुना होगा जो आपकी सेक्स पावर को बढ़ाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि कुछ ऐसे भी खाने वाली चीजें हैं, जिन्हें खाकर आप उन खास पलों का मजा किरकिरा कर सकते हैं। हमने ऐसी ही कुछ चीजों की लिस्ट बनाई है, जिन्हें आप सेक्स करने से पहले न खाएं तो अच्छा है...

बीन्स

क्या आपको पता है कि बीन्स जल्दी हजम नहीं होती और गैस बना सकती है? इसलिए सेक्स करते समय गैस के तनाव से बचना है तो बीन्स से भी बचें।

लहसुन

सेक्स से पहले लहसुन खाने से बचें। यह न केवल मुंह में दुर्गंध पैदा कर सकता है, बल्कि इसके स्टार्च से आपका पेट भी फूल सकता है।

पनीर

पनीर बहुत लोगों का फेवरिट होता है, लेकिन इसकी महक खाने के बहुत देर बाद तक बनी रहती है। यह आपके पार्टनर को 'ठंडाÓ कर सकती है। अब सेक्स में मजा चाहिए तो इतना कंट्रोल तो जरूरी है ना।

रेड मीट

रेड मीट काफी हेवी होता है और पचने में समय लेता है। इसको खाने के बाद नींद भी आ सकती है, जो आपको बेड में अच्छे से परफॉर्म नहीं करने देगी।

फ्रेंच फ्राइ

फ्रेंच फ्राइ में फैट की अधिक मात्रा होती है, जो ब्लड सर्कुलेशन को धीमा कर सकती है। इसके अलावा इसमें नमक की मात्रा भी ज्यादा होती है, जिससे हाई ब्लड प्रेशर के शिकार व्यक्ति को अपने आपको पूरी तरह उत्तेजित करने में दिक्कत आ सकती है।

पेपरमिंट

अब आप सोच रहे होंगे कि यह क्या बकवास है, पेपरमिंट मुंह में डाल लेने से तो सांसे ताजा हो जाती हैं! शायद आपको पता नहीं कि पेपरमिंट में मौजूद मेंथॉल टेस्टॉस्टेरॉन के लेवल को गिरा सकता है, और आपकी सेक्स ड्राइव को प्रभावित करता है।

क्या एक्शन फिल्में कर सकती हैं दिल को कमज़ोर?


एक्शन मूवीज़ का देश ही नहीं पूरी दुनिया में बड़ा बोलबाला है। फिल्म गुरूओं के मुताबिक एक्शन फिल्मों का बाज़ार पूरी दुनिया में सबसे बड़ा है। लेकिन इन्हें देखकर दर्शक सिर्फ मनोरंजन ही नहीं करते हैं, एक्शन फिल्में सेहत पर भी बुरा प्रभाव डाल सकती हैं। जी हां काफी पहले से ही फिल्मों के मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव को लेकर जानकारों की अलग-अलग प्रकार की टिप्पणियां आती रही हैं, लेकिन यदि एक ब्रिटिश शोध के परिणामों पर गौर फरमाया जाए तो पता चलता है कि एक्शन फिल्में देखकर दिल पर भी कुछ बुरे प्रभाव हो सकते हैं। तो चलिये विस्तार से जानते हैं कि वाकई एक्शन फिल्में देखने का दिल पर कोई प्रभाव होता है।
ब्रिटिश मेडिकल स्टडी ने अपने एक शोध में पाया कि हृदय संबंधी समस्याओं से ग्रस्त लोगों द्वारा एक्शन फिल्में देखने पर, उनके हृदय पर तनाव काफी बढ़ जाता है।

क्या कहता है शोध

यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ़ लंदन तथा सेंट थॉमस अस्पताल के लोगों द्वारा किए एक शोध के अनुसार कमजोर दिल वाले लोगों के दिल पर तनावपूर्ण फिल्में देखने से नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। शोधकर्ताओं ने पाया कि सन 2000 में आई एक्शन थ्रिलर फिल्म वर्टिकल लिमिट देखकर हृदय समस्याओं से ग्रसित लोगों का रक्त दबाव काफी बढ़ गया।
इसी के तहत हुए एक छोटे से अध्ययन में दिल की निलय में इलेक्ट्रोड का पता लगाने की गतिविधि की मदद से 19 लोगों पर नजर रखी गयी। ऐसा माना जाता है कि यह पहला मौका था जब स्वास्थ्य के प्रति सचेत रोगियों पर मानसिक और भावनात्मक तनाव का जैविक प्रभाव देखा गया। शोधकर्ताओं की ऐसी मान्यता थी कि हार्ट पैटर्न में ये बदलाव स्वायत्त (ऑटोनोमिक) तंत्रिका तंत्र से जुड़े होते हैं, जोकि समझ के स्तर से नीचे हैं।
शोधकर्ताओं का कहना है दिल की समस्याओं से पीडि़त लोगों को एक्शन फिल्मों को देखने से ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है, सांस लेने की गति तेज हो जाती है और दिल की प्राकृतिक लय बदल जाती है। अध्ययन के निष्कर्षों के बावजूद, सिनेमा के कारण हुई मौतें अपेक्षाकृत दुर्लभ ही हैं। लेकिन ऐसा होता ही नहीं है, ऐसा भी नहीं है।
गौरतलब है, वर्ष 2010 में उच्च रक्तचाप से पीडि़त एक 42 वर्षीय ताइवानी युवक कि हॉलीवुड फिल्म 'अवतारÓ को 3डी में देखते समय एक स्ट्रोक के कारण मृत्यु हो गई थी। उसके डॉक्टर के अनुसार वह व्यक्ति फिल्म देखकर ओवरएक्साइटेड हो गया था। ठीक इसी वर्ष आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम के एक हॉस्टल में एक भारतीय छात्र का कथित रूप से चार हॉरर फिल्मे एक के बाद एक देखने से निधन हो गया था।

Tuesday 16 September 2014

प्यार एवं रिश्ते


प्यार क्या है? प्यार के कई रुप होते हैं। जिन लोगों को आप प्यार करते हैं, वे अक्सर वो लोग होते हैं जिनके साथ रहना और समय बिताना आपको अच्छा लगता है।
ये वे ही लोग हैं जिन्हें खो देना आप सहन नहीं कर सकते हैं, और वे जिनके बारे में आप सबसे ज़्यादा परवाह करते हैं।
दूसरी ओर, भले ही कोई व्यक्ति आपके साथ बुरा वर्ताव करें या आपको दुख पहुँचाएं, आप तब भी उनसे सचमुच प्यार कर सकते हैं । आप अपने माता-पिता, अपने परिवार, अपने मित्रों या किसी पालतू जानवर और अपने साथी के लिए अलग अलग रुप में प्यार महसूस कर सकते हैं।

प्यार करना एवं प्यार में होना

किसी को प्यार करना एवं उनके प्यार में होना, एक ही बात नहीं है। एक रिश्ते की शुरुआत किसी के प्यार में होने जैसी होती है, जब आप सिफऱ् दूसरे व्यक्ति की अच्छाइयाँ ही देखते हैं और एक तरह से अपने आप को बादलों में घूमता हुआ पाते हैं! कुछ समय बाद इन भावनाओं में बदलाव आ जाते हैं, और तब दूसरे व्यक्ति के लिए आपकी भावनाएं अधिक गहरी, स्थिर, मधुर एवं परवाह करने वाली हो जाती हैं - आप उन्हें प्यार करने लगते हैं।

क्या आप पहली नजऱ के प्यार में विश्वास रखते हैं ?

आप किसी ऐसे व्यक्ति को भी प्यार कर सकते हैं जिन्हें आप ठीक तरह से जानते भी नहीं। या किसी दोस्ती के रिश्ते में भी धीरे धीरे प्यार पनप सकता है। और कभी कभी कुछ लोगों के लिए तभी प्यार की शुरुआत होती हैं जब उन्होंने साथ में सेक्स किया हो।

सामान्यत: प्यार कई चरणों में पनपता है

सबसे पहले यौनिक आकर्षण का आवेष या जुनून होता है, फिर एक बेहद सुंदर, जबरदस्त़ या अत्यधिक तीव्र प्यार में होने वाली भावना और फिर अन्तत: एक गहरा लगाव जो समय के साथ पनपता है और कई सालों तक या जीवन भर रह सकता है।

सुकून भरी नींद है जरूरी


आपने टीवी के एक विज्ञापन में एक्टर सलमान खान को यह कहते हुए सुना होगा कि भागदौड़ भरी जिंदगी में थकना मना है, लेकिन ये जुमला टीवी में ही अच्छा लगता है। असल जिंदगी की भागदौड़ भरी जि़न्दगी में आदमी को थकान लगती है और थकान के बाद इंसान को सबसे ज्यादा जिस चीज की जरूरत होती है, वो है एक सुकून भरी नींद।

सेहत के लिए बुरा है नींद में कमी होना

आज की लाइफस्टाइल में जब लोगो को सोने के लिए भी टाइम निकालना पड़ रहा है। ऐसे में कम नींद के बुरे प्रभाव लोगो की सेहत पर साफ दिखाई देते हैं। पर्याप्त नींद न होने की वजह आपके शरीर और दिमाग पर बुरा असर पड़ता है। यह आपके सामान्य सोचने-समझने की क्षमता पर भी असर डालता है। इसकी वजह से कई गंभीर बीमारियां जैसे ब्लड प्रेशर, तनाव, अवसाद आपको घेर सकती है। आपको इनमें से कोई भी बीमारी पहले से है तो फिर अच्छी नींद के बारे में सोचना चाहिए। रात को अच्छी नींद आपके दिमाग के लिए बहुत जरूरी है, क्योंकि अच्छी नींद आपके हार्मोन के संतुलन को भी प्रभावित कर सकती है।

कैफीन को करें बाय बाय

चाय या कॉफी आपको अच्छी नींद से दूर भगा सकता है। इसमें पाया जाने वाला कैफीन आपको जगाने में मदद करता है। जिसकी वजह से इसको पीने के बाद नींद के लिए काफी इंतजार करना पड़ सकता है। चाय के बजाय आप ग्रीन टी का उपयोग कर सकते हैं।

रात में खाएं कम खाना

अगर आप रात को अच्छे से सोना चाहते हैं तो रात में आपको खाने में कमी करनी पड़ेगी। ज्यादा खाने से पाचन तंत्र में भार पड़ता है।सोने से एक से डेढ़ घंटे पहले हल्का खाना आपको अच्छी नींद आने में मदद करता है। इसके साथ ही आपको पानी भी कम मात्रा में पीना चाहिए जिससे रात में बार बार उठने की वजह से आपकी नींद ना टूटे।

अपनों का सहारा

कई लोगो को नींद ना आने का डर रहता है। इसकी एक वजह दिन भर में किए गए काम का एक तनाव भी शामिल होता है। इसकी वजह से रात भर में नींद कई बार टूटती है। आर्थिक, सामाजिक और पारिवारिक तनाव भी अच्छी नींद में परेशानी पैदा कर सकता है। अगर आपको इस तरह की दिक्कतें हो रही हैं तो अपने करीबी दोस्त, पति या पत्नी से इस बारे में बात कीजिए। परेशानी के बारे में बात करने से आपको ज्यादा मानसिक संबल मिलेगा।

पढ़ाई भी करती है नींद में मदद

नींद से पहले अपने दिमाग को शांत करने का सबसे बढिय़ा उपाय पढऩा है। यह तकनीक पूरी तरह से आप पर निर्भर करती है। कुछ लोगों पर पढाई का उलटा असर भी होता है और वो पढाई की वजह से नींद से काफी दूर चले जाते हैं। इसलिए पढऩे के लिए ज्यादा रोचक किताबों से दूर रहें। इसके साथ ही आप अपना मनपसंद संगीत भी सुन सकते हैं पर ध्यान रहे म्यूजिक लाउड ना हो।

Sunday 14 September 2014

तनाव से बचें खुशियां फिर से पाएं


तनावग्रस्त व्यक्ति को किसी न किसी कार्य में व्यस्त रहना चाहिए। रुचि व स्वभाव के अनुकूल कार्य में छोटी-बड़ी उपलब्धियों के साथ उत्साह का क्रम बना रहता है। यदि लक्ष्य बड़ा हो तो इसे छोटे-छोटे टुकड़ों में बांटें। अपनी प्राथमिकताएं तय करें और वही करें, जिसे आप आसानी से कर सकते हैं।
परिस्थितियों से तालमेल बिठाकर आगे बढऩे में ही समझदारी है। परिस्थिति से तालमेल न बिठा पाना ही तनाव को जन्म देता है। अत: इनसे पलायन नहीं बल्कि धैर्य और विवेकपूर्ण समझौता ही एकमात्र निदान है।
अकेले कमरे में बंद रहने की बजाय बाहर निकलें। प्रकृति-परिवेश के बीच घूमने-फिरने से तनाव में बहुत राहत मिलती है। लोगों के साथ घुल-मिलकर रहने की कोशिश कीजिए। कोई खेल खेलें या धार्मिक एवं सामाजिक गतिविधियों में भाग लेना प्रारम्भ करें।
तनाव की स्थिति में जीवन का कोई भी बड़ा निर्णय न लें। ऐसे में अपने से बड़े, समझदार एवं विश्वसनीय लोगों से सलाह अवश्य लें।
आहार का समुचित चयन करें क्योंकि पिछले दो दशकों में हुए कुछ अध्ययनों से यह स्पष्ट हो गया है कि केवल एक पौष्टिक तत्व की कमी भी अति संवेदनशील व्यक्ति को तनावग्रस्त कर सकती है।
अपनी व्यस्ततम दिनचर्या में से कुछ समय ईश्वर स्मरण के लिए अवश्य निकालें और उन क्षणों में प्रभु स्मरण ही करें। सोने से पहले आध्यात्मिक साहित्य पढ़ें।
धैर्य, क्षमा, दया, सहिष्णुता व सहयोग के प्रयोग करते रहें। किसी से ईष्र्या, द्वेष, घृणा अथवा बैर न करें। मान-शान की मनोवृत्ति से हमेशा दूर रहें क्योंकि इस भावना को ठेस लगने से तनाव पैदा होता है।
लेखन, पेंटिंग, ड्राइंग, नृत्य, ड्रामा जैसी कलात्मक अभिरुचियों से तनाव को शानदार ढंग से कम किया जा सकता है। हंसना-हंसाना तनाव भगाने की सबसे बड़ी दवा है। मनपसंद संगीत भी तनाव से राहत का प्रभावशाली उपाय है। ध्यान साधना, प्राणायाम आदि आध्यात्मिक उपचारों से भी अंतर्मन को तनावरहित बनाया जा सकता है।

खूबसूरत दिखने के बेहतरीन तरीके


सुंदर, आकर्षक, मोहक चेहरा सभी औरतें चाहती है यह उम्र की हर अवस्था में जरूरी है, तभी आप हमेशा सबसे अलग और बेजोड हसीन दिख सकती हैं। लेकिन ब्यूटी को उभारने में हेयर, मेकअप और नेल्स की खूबसूरती बेहद मायने रखती है। लेकिन जरूरी है इनके बारे में सही नॉलेज होना-

नेल एक्सटेंशन

नेल एक्सटेंशन का फैशन इस समय खूब ट्रेंड्स में है। इसमें नेचरल नेल्स के ऊपर आर्टिफिशिल नेल्स लगाए जाते हैं। इनकी हर 20 दिन में रीफिलिंग करवानी पडती है। नेल पियर्सिग भी काफी पॉपुलर हो रहा है।

मेकअप वही जो हो पसंद

मेकअप में कोई खास ट्रेंड फॉलो नहीं किया जा रहा। जो स्किन को सूट करे, वह कर लो। हां, मेकअप के बेस में फाउंडेशन जरूर रखें। हालांकि अब इसे हाथों पर मलने के बजाय ब्रश में भरकर लगाया जाता है, जो ज्यादा इफेक्टिव होता है।

हेयर स्टाइल

हेयर के मामले में कुछ नया होने के बजाए पूरी तरह से पुराना फैशन लौटकर आ गया है। इसमें फ्रेंच स्टाइल की चोटी और ऊंचे जूडे ट्रेंड में हैं। हाफ कर्ल और बालों की लॉन्ग लेंथ की भी खूब डिमांड आ रही है यानि टोटली फंकी लुक।

Saturday 13 September 2014

आलस दूर करने के घरेलु नुस्खे


आजकल की लाइफ भागदौड़ से भरी हुई है। ऐसे में लोगों को अपनी सेहत पर ध्यान देने का वक्त ही नहीं मिलता, जिसके कारण वे कई तरह की बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं। अगर आप चाहते हैं कि बीमारियां आप से कोसो दूर रहे, तो हम आपको यहां कुछ टिप्स बताने जा रहे हैं। हेल्दी रहने के लिए इन टिप्स को आप अपना सकते हैं।
  • रात को सोने से पहले चेहरा धोना चाहिए। दिनभर चेहरे पर चढ़ी धूल के कारण आपकी स्किन खराब हो जाती है, लेकिन इससे बचने का यह सबसे कारगर तरीका होता है।
  • हमें बार-बार बैक्टीरया के हमले का शिकार होना पड़ता है। इसका हमें पता ही नहीं चलता। एंटीबैक्टीरियल क्रीम का इस्तेमाल हाथ धोने में करने से पेट की बीमारियों से आसानी से बचा जा सकता है।
  • डाइट में ज्यादा से ज्यादा फाइबर को शामिल करें। इससे पेट के रोगों में कमी आती है। इसके साथ ही इससे भूख कम लगती है। ऐसा होने से ज्यादा वजन वाले लोगों को वजन कम करने में आसानी होती है।
  • नहाने के बाद पूरी तरह से बाल सुखाएं। ऐसा करने से बालों में होने वाली रूसी से बचा जा सकता है। बहुत से लोगों को गीले बालों में कंघी करने की आदत होती है। ऐसी आदत बाल झडऩे और कमजोर होने की समस्या के लिए जिम्मेदार हो सकती है। इससे बचने के लिए बालों को सुखाना अच्छा होगा।

बॉक्सिंग से कम करें तनाव...

  • अचानक तनाव का सामना करने पर यदि आप पांच मिनट के लिए बॉक्सिंग करते हैं तो आपका तनाव पचास फीसदी तक कम हो जाता है। तनाव में गुस्से को भी इससे कम किया जा सकता है।
  • तनाव की समस्या का बार-बार सामना करने पर कुछ देर के लिए निशाना लगाने वाले वीडियो गेम्स खेलने चाहिए। इससे आपका ध्यान तनाव से हटता है और रिलैक्स महसूस करते हैं।
  • अधिक तनाव होने पर अपने विचारों को एक कागज पर लिखें। इसे एक बॉक्स में डाल दें। जब आप शांत हो जाएं तो उन विचारों को पढ़ें। इससे आपको पता चलेगा कि आपके सामने आने वाली समस्याओं से कैसे मुकाबला किया जा सकता है।

सुधरेगी आंखों की सेहत...

  • रुई को ठंडे पानी में भिगो लें। इसे पांच मिनट के लिए आंखों पर रखें। चाहे तो थोड़ी-थोड़ी देर बाद रुई को बदलते रहें। ऐसा करने से आंखों में हो रहे दर्द को कम किया जा सकता है।
  • खीरे के गोल टुकड़े काट लें। इन्हें दस से पंद्रह मिनट के लिए आंखों पर रखें। यह आंखों को ठंडक देते हैं और इनसे आंखों में रही लाली को कम किया जा सकता है।
  • रुई को ठंडे दूध में भिगोएं। इसे आंखों पर रखने से आंखों की सूजन को आसानी से कम किया जा सकता है।
  • पानी में थोड़ा-सा गुलाबजल मिलाकर इससे आंखें धोने से आंखों में हो रही तेज जलन को कम किया जा सकता है।

हड्डियों को मिलेगी मजबूती....

  • दही का सेवन हड्डियों की मजबूती के लिए बहुत ही लाभदायक होता है। इससे शरीर को विटामिन डी और कैल्शियम की पर्याप्त मात्रा मिलती है।
  • अंडे के सेवन से भी हड्डियां मजबूत होती हैं। लेकिन ध्यान रखना चाहिए कि इसके पीले भाग का सेवन नहीं करें।
  • एक कप पालक हमारी रोजाना की जरूरत का बीस फीसदी कैल्शियम पूरा करने के लिए काफी होता है।

बड़ा है यह अंतर औरतों और मर्दों के दिमाग में


पुरुषों व महिलाओं के दिमाग में यह अंतर चौंकाएगा आपको

पुरुषों और महिलाओं के बीच अंतर का एक नया पहलू हाल में हुए शोध के दौरान सामने आया है। आस्ट्रिया के इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ एप्लाइड सिस्टम्स अनालिसिस के शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में माना है कि पुरुषों का दिमाग गणित में अधिक चलता है जबकि महिलाओं की याददाश्त बेहतर होती है इसलिए वे रटने की अधिक क्षमता रखती हैं।
शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन के आधार पर दावा किया है कि पुरुषों और महिलाओं के दिमाग की संरचना काफी अलग है। इसकी वजह से ही पुरुषों का झुकाव गणित की ओर अधिक होता है जबकि महिलाओं में याद रखने की क्षमता अधिक होती है।
शोध के दौरान 13 देशों के 50 साल से अधिक आयु के 31,000 पुरुषों और महिलाओं को शामिल किया गया है। शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन के आधार पर यह भी माना है कि अगर महिलाओं और पुरुषों के लिए एक जैसा ही माहौल तैयार किया जाए तो महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा बेहतर प्रदर्शन करेंगी। यह शोध प्रोसीडिंग ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस रिपोर्ट जर्नल में प्रकाशित हुआ है।

Friday 12 September 2014

बंद कीजिए पैर हिलाना


आप चुपचाप बैठे हैं या किसी से बात करने में मशगूल हैं, लेकिन पैर हिला रहे हैं। आमतौर पर लोग इसे सामान्य आदत के रूप में लेते हैं। लेकिन विशेषज्ञ इसे बीमारी का संकेत मानते हैं। उनका तो यहां तक कहना है कि पैर हिलाने की आदत पालने वाले लोगों को दिल का दौरा पडऩे का खतरा ज्यादा रहता है। पैर हिलाने की आदत को मेडिकल साइंस में रेस्टलेस लेग्स सिंड्रोम के रूप में जाना जाता है। शोध के मुताबिक पैर हिलाने की समस्या से पीडि़त लोगों में हार्ट अटैक का खतरा दोगुना बढ़ जाता है। शोधकर्ताओं का तो यह भी कहना है कि आरएलएस सीधे तौर पर नींद कम आने की समस्या से जुड़ा हुआ है। हार्वर्ड मेडिकल स्कूल, बोस्टन के प्रमुख शोधकर्ता डॉ. जॉन डब्ल्यू. विंकलमैन ने बताया कि आरएलएस से पीडि़त लोगों में हार्ट अटैक का खतरा दोगुना तक बढ़ जाता है। दरअसल, आरएलएस से पीडि़त व्यक्ति नींद आने से पहले 200 से 300 बार अपना पैर हिला चुका होता है। पैर हिलाने से रक्तचाप (ब्लड प्रेशर) और हार्ट बीट्स (दिल की धड़कन) बढ़ जाती हैं। आगे चलकर यह दिल की बीमारियों (कार्डियोवेस्कुलर डिजीज) की सबसे बड़ी वजह बन जाता है।
शोधकर्ताओं ने यह नतीजा 68 साल की औसत उम्र वाले 34 सौ लोगों पर अध्ययन के बाद निकाला है। शोध के दौरान प्रतिभागियों के आरएलएस लक्षण व उनकी दिल की बीमारियों का तुलनात्मक अध्ययन किया। सात प्रतिशत महिलाओं व तीन प्रतिशत पुरुषों में आरएलएस और दिल की बीमारियों में सीधा संबंध देख गया।
इतना ही नहीं, आरएलएस लक्षणों को जब उम्र, वजन, ब्लड प्रेशर और धूम्रपान जैसे दूसरे कारकों से जोड़ा गया तो पता चला कि पैर हिलाने की मामूली सी लगने वाली आदत दरअसल हार्ट अटैक के खतरे को दोगुना तक बढ़ा देती है। अब तो आप पैर हिलाने के खतरों को जान ही गए है। बेहतर होगा कि यह आदत तुरंत छोड़ दें।

जिम में ऐसे न करें शुरुआत


बॉडी बनाने का शौक नया नहीं लेकिन कई बार जोश-जोश में ऐसी गलतियां हो जाती हैं जिससे लेने के देने पड़ जाते हैं। पहली बार जिम जाने वाले लोग अधिकतर ऐसी गलतियां करते हैं। जिम में कुछ गलतियों को दोहराना अपने शरीर को और खराब करने जैसा है। जिम में इन बातों का रखें खास ख्याल...
ज्यादातर युवा या नौसिखिए जिम के पहले दिन ही सबकुछ पा लेना चाहते हैं। इसके लिए वह पूरा जोश निकाल देते हैं, यह जाने बिना की इस एक्सरसाइज के लिए कितने सेट चाहिए और क्या यह उनके लिए जरूरी है भी। डंबल्स, ऐब क्रंच मशीन, लेवरेज चेस्ट प्रेस, मशीन कोई भी हो, शुरुआती हफ्ते में इसे 1 सेट (10-15 बार) ही रखें।
ध्यान रखिए, आप जिस किसी की बॉडी देखकर इन्सपायर्ड हैं उसने इसे एक दिन में ही नहीं हासिल किया है। इसके पीछे सालों की मेहनत और सही दिशा की जरूरत होती है। जिम के लिए अपना रूटीन निर्धारित अवश्य करें। चेस्ट, शोल्डर्स, बाइसेप्स शरीर के अलग-अलग हिस्से के लिए एक-एक दिन निर्धारित करें और उससे संबंधित मशीन पर निर्धारित दिन ही मेहनत करें।

धीरे-धीरे सेट बढ़ाएं...

  • एक अहम बात गांठ बांध लें, जिम करना और बॉडी बनाने के लिए जितना शारीरिक श्रम चाहिए होता है, उतनी ही मानसिक एकाग्रता भी इसके लिए जरूरी है
  • पॉजिटिव रहकर जज्बे के साथ धीरे-धीरे आगे बढि़ए। शुरुआत में जाकर फिर जिम छोड़ देने की प्रवृत्ति भी बहुतेरे लोगों में होती है।
  • भारत में जिम कल्चर तेजी से आगे बढ़ रहा है। गली-गली में जिम खुलने से एक्सपर्ट्स की डिमांड भी बढ़ी है। ऐसे में आपने कौन सा जिम जॉइन किया है, इसका खास ख्याल रखें। एक बेहतरीन ट्रेनर ही आपकी बॉडी को बेहतरीन शेप दे सकता है। डाइट से लेकर सोने-उठने तक का रूटीन ट्रेनर से ही बनवाएं। और एक्सरसाइज भी उसकी देख-रेख में ही करें।
  • बॉडी बनाने के लिए युवा अक्सर ही ऐसी चीजों का सेवन करते हैं जिसके बुरे परिणाम उन्हें भुगतने पड़ते हैं। बॉडी को बेहतर शेप देने के चक्कर में युवाओं के बाल झडऩे के किस्से भी सामने आए हैं। इसलिए जल्दबाजी में न पड़कर ट्रेनर की सलाह का पालन करें।
  • जिम में आते ही मशीन पर व्यायाम शुरू न करें, क्योंकि इससे आपको चोट लग सकती है, आपकी पीठ अकड़ सकती है और आपके शरीर में दर्द हो सकता है, इसलिए जिम में सबसे पहले हल्के-फुल्के व्यायाम करें, जैसे वार्म-अप और स्ट्रेचिंग।
  • वैसे, सेहत को दुरुस्त रखने के लिए योग, कसरत से बेहतर माध्यम कुछ हो ही नहीं सकता।

Thursday 11 September 2014

मुंह के छाले का बार-बार होना


मुंह का अल्सर बहुत आम हैं और ओरल स्वास्थ्य सामान्य जनसंख्या के लगभग 20 प्रतिशत के आसपास को प्रभावित करती है। इसके अलावा, छालेयुक्त अल्सर के रूप में जाना जाने वाला अल्सर हम में से ज्यादातर लोगों को जीवन में कम से कम एक बार जरूर विकसित होता है। हालांकि मुंह का अल्सर महिलाओं में अधिक आम हैं, लेकिन यह वयस्कों और बच्चों को भी प्रभावित कर सकता हैं। इन दर्दनाक मुंह के छालों का कारण जानकर हमें आसानी से इसे होने से रोक सकते हैं। यहां पर मुंह के छालों के आम कारण के बारे में जानकारी दी गई है।
नींबू, टमाटर, संतरा, स्ट्रॉबेरी और अंजीर जैसे खट्टे फल और सब्जियों जैसे खाद्य पदार्थ मुंह में छालों के लिए ट्रिगर के रूप में काम करते हैं। अन्य आहार स्रोत जैसे चॉकलेट, बादाम, मूंगफली, गेहूं का आटा और बादाम आदि मुंह के छालों के उच्च जोखिम में डाल सकते है।

ओरल हाइजीन से जुड़ी बातें

कठोर खाद्य पदार्थों को चबाना, अत्यधिक ब्रश करना और ब्रेसिज़ की सही प्रकार से फिटिंग आदि अधिकांश लोगों के भी मुंह में छालों का कारण होता है। कुछ लोगों में, सोडियम सल्फेट युक्त टूथपेस्ट का प्रयोग भी इस समस्या को बढ़ा सकता है।

तनाव और चिंता

जब आप उदास या चिंतित होते हैं तो आपके शरीर के साथ मुंह के अल्सर को प्रभावित करने वाले केमिकल का स्राव होता है। इसलिए जो लोग हमेशा तनाव में रहते हैं उनमें मुंह में छालों से पीडि़त होना का उच्च जोखिम रहता है।

पोषक तत्वों की कमी

विटामिन बी 12, आयरन और फोलिक एसिड जैसे पोषक तत्वों की कमी के कारण बीमारी की स्थिति की एक विस्तृत श्रृंखला के उच्च जोखिम में डालने के अलावा मुंह के छालों का कारण भी बन सकता है। मुंह के छाले के खतरे को कम करने के लिए आवश्यक विटामिन और खनिजों से समृद्ध आहार अपनी दिनचर्या में शामिल करें।

पोषक तत्वों की कमी

विटामिन बी 12, आयरन और फोलिक एसिड जैसे पोषक तत्वों की कमी के कारण बीमारी की स्थिति की एक विस्तृत श्रृंखला के उच्च जोखिम में डालने के अलावा मुंह के छालों का कारण भी बन सकता है। मुंह के छाले के खतरे को कम करने के लिए आवश्यक विटामिन और खनिजों से समृद्ध आहार अपनी दिनचर्या में शामिल करें।

हार्मोनल परिवर्तन

शरीर में हार्मोंन के स्तर में परिवर्तन के कारण भी मुंह में छाले होते हैं। यह आमतौर पर मासिक धर्म चक्र के दौरान कुछ महिलाओं में देखने को मिलता है।

चिकित्सा की स्थिति

कुछ नैदानिक स्थितियां जैसे सीलिएक रोग, वायरल संक्रमण और प्रतिक्रियाशील गठिया आदि भी आपको मुंह के छालों के बार-बार होने के जोखिम में डाल सकती है। इसके अलावा प्रतिरक्षा प्रणाली में गड़बड़ी और जठरांत्र रोगों से पीडि़त लोगों में भी मुंह में छालों की समस्या बार-बार होती है।

दवाएं

कभी कभी, रोगों के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाले दवाएं भी मरीजों में मुंह के छालों का कारण बनती है। सीने के दर्द के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली कुछ दर्दनाशक दवाएं जैसे बीटा ब्लॉकर्स भी मुंह में छाले की वृद्धि करता है।

विटामिन डी की कमी दे सकती है यह बड़ा खतरा


न्यूरोलॉजी नाम की पत्रिका में छपे शोध में कहा गया है कि विटामिन डी की कमी से उम्रदराज़ लोगों में पागलपन का ख़तरा बढ़ जाता है। मछली, दालों और त्वचा के सूरज की रोशनी के संपर्क में आने से विटामिन डी मिलता है। ब्रिटेन के शोधकर्ता 65 साल से अधिक की उम्र के 1,650 से अधिक लोगों पर किए अध्ययन के बाद इस नतीजे पर पहुंचे हैं। हालांकि इस नतीजे पर पहुंचने वाला यह पहला शोध नहीं है, लेकिन शोधकर्ताओं का कहना है कि यह अध्ययन काफी विस्तृत था।

बढ़ेगा ख़तरा

यूनिवर्सिटी ऑफ़ एकेस्टर मेडिकल स्कूल के डेविड लेवेलिन के नेतृत्व में अंतरराष्ट्रीय टीम ने लगभग छह साल तक उम्रदराज़ लोगों पर शोध किया। शोध से पहले इन सभी व्यक्तियों में पागलपन, दिल की बीमारियां और दिल का दौरा जैसी बीमारियां नहीं थीं। अध्ययन के अंत में पाया गया कि 1,169 लोगों में विटामिन डी का स्तर अच्छा था और उनमें 10 में से एक व्यक्ति में पागलपन का ख़तरा होने की संभावना थी। जिन 70 व्यक्तियों में विटामिन डी का स्तर बहुत कम था, उनमें से पाँच में से एक में पागलपन का ख़तरा होने की संभावना जताई गई।

Wednesday 10 September 2014

महिलाएं एवं हृदय रोग


हृदय रोग का खतरा आजकल काफी बढ़ गया है, और महिलाओं के लिए हालात पुरुषों की अपेक्षा अधिक चिंताजनक हैं। तनाव, खानपान में अनियमितता, अपनी सेहत के प्रति अनदेखी जैसे तमाम कारण हैं, जिनके चलते महिलायें दिल की बीमारी की अधिक शिकार हो रही हैं।
भारत में हृदय रोग से पीडि़त महिलाओं की तादाद और भी खराब हैं। दुनिया भर में हृदय रोगों के जितने मामले होते हैं उनमें से 15 प्रतिशत मामले अकेले भारतीय महिलाओं के होते हैं। दुनिया भर में 86 लाख महिलाओं की मौत हृदय संबंधी रोगों से होती है।
महिलाओं में पुरुषों से अधिक हृदय रोग का खतरा होता है, क्योंकि महिलाओं के मधुमेह और उच्च रक्तचाप जैसे रोगों की चपेट में आने के खतरे ज्यादा होते हैं। पुरुषों की तुलना में महिलाओं की कोरोनरी धमनियां संकरी होती हैं। इसी वजह से उन्हें धमनियों में अवरोध आने की समस्या अधिक होती है।
पुरुषों की तुलना में महिलाओं को एकमात्र लाभ एस्ट्रोजेन हार्मोन के रूप में मिलता है। जो महिलाओं के शरीर में अच्छे कोलेस्ट्रॉल के स्तर को ऊपर उठाता है तथा खराब कोलेस्ट्राल के स्तर को कम करता है। लेकिन रजोनिवृति के बाद एस्ट्रोजन का स्तर घट जाता है और इसलिए इससे मिलने वाली सुरक्षा भी कम हो जाती है और रजोनिवृति के दस साल बाद महिलाओं को हृदय रोग का खतरा पुरुषों के बराबर और कई मामलों में अधिक होता है।
इस बीमारी की चपेट में आने वाली ज्यादातर महिलायें साठ वर्ष या उससे अधिक आयु की होती हैं। इस आयु में आकर धमनियों में खून के थक्के यानी कोलेस्ट्रोल का जमाव, जिससे धमनियों के बंद हो जाने के कारण उचित रक्त का संचार नहीं होता है। इससे छाती में दर्द और हार्ट अटैक की संभावना बढ़ जाती है। सबसे पहले प्रत्येक महिला को अपनी ब्लड कोलेस्ट्रोल और ब्लड प्रेशर की जांच करानी चाहिए। महिलाओं में इस रोग के लक्षण पुरुषों से भिन्न होते हैं। महिलाओं में हृदय रोग के इलाज के उपायों के बारे में जानें-

सर्जरी

संभव है महिलाओं को हृदय रोग से बचने के लिए सर्जरी की मदद लेनी पड़े। इसके लिए एन्जियोप्लास्टी व सीएबीजी का प्रयोग किया जाता है। डॉक्टर लक्षणों व शारीरिक जांच के बाद ही चिकित्सा की प्रक्रिया और प्रकार के बारे में कोई निर्णय लेगा।
एंजियोप्लास्टी- एंजियोप्लास्टी एक नॉनसर्जिकल प्रक्रिया है जिसे संकरी व ब्लॉक कोरोनरी धमनियों को खोलने के लिए प्रयोग में लाया जाता है। एंजियोप्लास्टी हृदय में रक्त प्रवाह को बढ़ाता है।
ग्राफ्टिंग कोरोनरी धमनी बाईपास- यह एक प्रकार की सर्जरी है जिसमें ब्लॉक व संकरी धमनियों या नसों को शरीर से अलग कर दिया जाता है। इससे हृदय में रक्त का प्रवाह बढ़ जाता है। इस सर्जरी के बाद हृदय रोग से निपटने में मदद मिलती है।

जीवनशैली में बदलाव 

व्यायाम करें- दिल को स्वस्थ रखने के लिए नियमित व्यायाम की जरूरत है। इसके लिए एरोबिक गतिविधियां, जैसे टहलना, जॉगिंग, तैराकी, साइक्लिंग आपके हृदय के लिए फायदेमंद हो सकता है। एक हफ्ते में 4 से 6 बार कार्डियो कसरत करना भी अच्छा रहता है।
मोटापा कम करें - मोटापा कई बीमारियों का कारण हो सकता है। वजन बढऩे से रक्तचाप व कोलेस्ट्रोल की समस्या हो सकती है। इसके अलावा डायबिटीज भी हो सकता है जिससे शरीर में इंसुलिन भोजन को ऊर्जा में बदलने में मदद नहीं करता है। टाइप-2 डायबिटीज से हार्ट अटैक का खतरा बढ़ जाता है।
धूम्रपान ना करें - धूम्रपान करने वाली महिला में हार्ट अटैक की संभावना धूम्रपान न करने वाली महिला से दोगुना अधिक होती है क्योंकि सिगरेट में मौजूद टॉक्सीन धमनियों को सीधा प्रभावित करते हैं। जिससे धमनियों में रक्त संचार के लिए बाधाएं पैदा हो जाती हैं। धूम्रपान से खून की नलियां चिपचिपी हो जाती हैं, जिससे रक्त संचार में अधिक कठिनाई के कारण स्ट्रोक की संभावना बनी रहती है। हृदय रोग से बचाव के लिए महिलाओं को अपना खास ख्याल रखना चाहिए साथ ही रजोनिवृत्ति के बाद कुछ जरूरी जांच अवश्य कराएं जिससे आप हृदय रोग के खतरों से बच सकती हैं।

उच्च रक्तचाप समय पर करें नियंत्रित


एक सर्वेक्षण के अनुसार, हर चार में से एक व्यक्ति उच्च रक्तचाप से प्रभावित है। भारत में शहरी लोगों में उच्च रक्तचाप 25 प्रश व गाँवों में 10 प्रश पाया गया है।
हृ दय द्वारा सारे शरीर को रक्त वाहिनियों के माध्यम से दबाव की क्रिया से रक्त भेजने से पैदा हुए दबाव को रक्तचाप कहते हैं। एक स्वस्थ मनुष्य का रक्तचाप 120 एमएमएचजी सिस्टोलीक व 80 एमएमएचजी डाईस्टोलिक होता है। मोटापा, तनाव, धूम्रपान, मद्यपान, वंशानुगत आदि उच्च रक्तचाप के कारण हो सकते हैं। इसका पूर्ण निवारण नहीं है, परंतु इसको नियंत्रित किया जा सकता है।
संतुलित आहार जैसे गेहूँ, चावल, हरी सब्जियाँ, ताजे फल, मछली तथा संतुलित मात्रा में नमक का सेवन, व्यायाम तथा अपने चिकित्सक द्वारा बताई गई दवाइयाँ लेकर इसे नियंत्रित किया जा सकता है। ध्यान रहे, पंगु होकर दूसरों पर आश्रित न रहना पड़े, इसलिए यदि रक्त दाब सामान्य रखने के लिए दवा की जरूरत हो तो नियमित लें। उच्च रक्तचाप का इलाज आसान और संभव है।

निम्न रक्तचाप : कारण, बचाव और इलाज

हमारे गलत खान पान  और रहन सहन के कारण हम लोग लो ब्लड प्रेशर के शिकार हो जाते हैं। आज हम इसी विषय पर विस्तृत चर्चा करते हैं। हमारे दिल से सारे शरीर को साफ खून की सप्लाई लगातार होती रहती है। अलग-अलग अंगों को होने वाली यह सप्लाई आर्टरीज (धमनियों) के जरिए होती है। ब्लड को प्रेशर से सारे शरीर तक पहुंचाने के लिए दिल लगातार सिकुड़ता और वापस नॉर्मल होता रहता है - एक मिनट में आमतौर पर 60 से 70 बार। जब दिल सिकुड़ता है तो खून अधिकतम दबाव के साथ आर्टरीज में जाता है। इसे सिस्टोलिक प्रेशर कहते हैं। जब दिल सिकुडऩे के बाद वापस अपनी नॉर्मल स्थिति में आता है तो खून का दबाव आर्टरीज में तो बना रहता है, पर वह न्यूनतम होता है। इसे डायस्टोलिक प्रेशर कहते हैं। इन दोनों मापों-डायस्टोलिक और सिस्टोलिक को ब्लड प्रेशर कहते हैं। ब्लड प्रेशर दिन भर एक-सा नहीं रहता। जब हम सोकर उठते हैं तो अमूमन यह कम होता है। जब हम शारीरिक मेहनत का कुछ काम करते हैं जैसे तेज चलना, दौडऩा या टेंशन, तो यह बढ़ जाता है। बीपी मिलीमीटर्स ऑफ मरकरी (एमएमएचजी) में नापा जाता है।
दरअसल निम्न रक्तचाप में रक्त का प्रवाह बहुत धीमा पड़ जाता है अर्थात् ऊपर का रक्तचाप सामान्य से घटकर 90 अथवा 100 रह जाए तथा नीचे का रक्तचाप 80 से घटकर 60 रह जाए, ऐसी स्थिति को निम्न रक्तचाप कहते है। दौर्बल्य, उपवास, भोजन तथा जल की कमी, अधिक शारीरिक तथा मानसिक परिश्रम, मानसिक आघात तथा अधिक रक्त बहने की दशा में यह रोग हो जाता है। निम्न रक्तचाप में नब्ज धीमी पड़ जाती है, थोड़ा सा परिश्रम करने पर रोगी थक जाता है। शरीर का दुर्बल होना, आलस्य, अनुत्साह, शक्ति का घटते जाना, बातें भूल जाना, मस्तिष्क अवसाद, विस्मृति, थोड़ी सी मेहनत में ही चिड़चिड़ाहट, सिर दर्द, सिर चकराना आदि इसके लक्षण होते है।

प्रमुख कारण

  • अधिक मानसिक चिंतन
  • अधिक शोक
  • अधिक क्रोध
  • आहार का असंतुलन होना
  • बहुत अधिक मोटापा
  • पानी या खून की कमी
  • उलटियां, डेंगू-मलेरिया, हार्ट प्रॉब्लम, सदमे, इन्फेक्शन, ज्यादा मोशन आदि
  • अचानक सदमा लगना, कोई भयावह दृश्य देखने या सुनने से भी लो बीपी हो सकता है।

प्रमुख लक्षण

  • चेहरे पर फीकापन।
  • आंखों का लाल हो जाना।
  • नाड़ी की गति धीमी होना।
  • प्यास लगना और तेज रफ्तार से आधी-अधूरी सांसें आना।
  • निराशा या डिप्रेशन
  • धुंधला दिखाई देना
  • थकान, कमजोरी, चक्कर आना

खानपान

  • पालक, मेथी, घीया, टिंडा व हरी सब्जियां लें
  • अनार, अमरूद, सेब, केला व अंगूर खाएं
  • कॉलेस्ट्रॉल बढ़ा हुआ न हो तो थोड़ा-बहुत घी, मक्खन व मलाई खाएं
  • केसर, दही, दूध और दूध से बने पदार्थ खाएं
  • सेंधा नमक का इस्तेमाल करें। 
  • सेब, गाजर या बेल का मुरब्बा चांदी का वर्क लगाकर खाएं।
  • अधिक पानी पीना चाहिए। कम से कम डेढ़ से दो लीटर पानी जरूर पीएं
  • तुलसी, काली मिर्च, लौग और इलायची की चाय बनाकर पीएं। मात्रा सबकी एक-एक ग्राम
  • राई तथा सौठ के चूर्ण को बराबर मात्रा में लेकर पानी में मिलाएं और पैर के तलवों पर लगाएं। 
  • प्रतिदिन सब्जी में लहसून का छौक (तड़का) लेने से निम्न रक्तचाप में तत्काल लाभ होता है।
  • देशी गुड़ हर रोज 50 ग्राम की मात्रा में खाएं।
  • सेब, पपीता, अंजीर, आम आदि का अधिक सेवन करें।
  • प्रतिदिन गाजर के एक गिलास रस में 10 ग्राम शहद मिलाकर पीएं। इसे 30 दिनों तक करें।
  • पुदीने की चटनी या रस में सेंधा नमक, काली मिर्च, किशमिश डालकर सेवन करें।

Sunday 7 September 2014

हृदय के रोगों का कुदरती, घरेलू पदार्थों से ईलाज


माडर्न मेडीसिन में हृदय रोगों के लिये अनेकों दवाएं अविष्कृत हो चुकी हैं। लेकिन कुदरती घरेलू पदार्थों का उपयोग कर हम दिल संबधी रोगों का सरलता से समाधान कर सकते हैं। सबसे अच्छी बात है कि ये उपचार आधुनिक चिकित्सा के साथ लेने में भी कोई हानि नहीं है।
  • लहसुन में एन्टिआक्सीडेन्ट तत्व होते है और हृदय रोगों में आशातीत लाभकारी घरेलू पदार्थ है।लहसुन में खून को पतला रखने का गुण होता है । इसके नियमित उपयोग से  खून की नलियों में कोलेस्टरोल नहीं जमता है। हृदय रोगों से निजात पाने में लहसुन की उपयोगिता कई वैज्ञानिक शोधों में प्रमाणित हो चुकी है। लहसुन की 4 कली चाकू से बारीक काटें,इसे 75 ग्राम दूध में उबालें। मामूली गरम हालत में पी जाएं। भोजन पदार्थों में भी लहसून प्रचुरता से इस्तेमाल करें।
  • अंगूर हृदय रोगों में उपकारी है। जिस व्यक्ति को हार्ट अटैक का दौरा पड चुका हो उसे कुछ दिनों तक केवल अंगूर के रस  के आहार पर रखने के अच्छे परिणाम आते हैं।इसका उपयोग हृदय की बढी हुई धडकन को नियंत्रित करने में सफ़लतापूर्वक किया जा सकता है। हृदयशूल में भी लाभकारी है।
  • शकरकंद भूनकर खाना हृदय को सुरक्षित रखने में उपयोगी है। इसमें हृदय को पोषण देने वाले तत्व पाये जाते हैं। जब तक बाजार में शकरकंद उपलब्ध रहें उचित मात्रा में उपयोग करते रहना चाहिये।
  • आंवला विटामिन सी का कुदरती स्रोत है। अत: यह सभी प्रकार के दिल के रोगों में प्रयोजनीय है।
  • सेवफ़ल कमजोर हृदय वालों के लिये बेहद लाभकारी फ़ल है। सीजन में सेवफ़ल  प्रचुरता से उपयोग करें।
  • प्याज हृदय रोगों में हितकारी है। रोज सुबह 5 मिली. प्याज का रस खाली पेट सेवन करना चाहिये। इससे खून में बढे हुए कोलेस्टरोल को नियंत्रित करने भी मदद मिलती है।
  • हृदय रोगियों के लिये धूम्रपान बेहद नुकसानदेह साबित हुआ है। धूम्र पान करने वालों को हृदय रोग होने की दूगनी संभावना रहती है।
  • जेतून का तैल हृदय रोगियों में परम हितकारी सिद्ध हुआ है। भोजन बनाने में अन्य तैलों की बजाय ओलिव आईल का ही इस्तेमाल करना चाहिये। ओलिव आईल के प्रयोग से खून में अच्छी क्वालिटी का कोलेस्टरोल(हाई डेन्सिटी लिपोप्रोटीन) बढता है।
  • निंबू हृदय रोगों में उपकारी फ़ल है। यह नलिकाओं में कोलेस्टरोल नहीं जमने देता है। एक गिलास मामूली गरम जल में एक निंबू निचोडें, इसमें दो चम्मच शहद भी मिलाएं और पी जाएं। यह प्रयोग सुबह के वक्त  करना चाहिये।
  • रात को सोने से पहिले मामूली गरम जल के टब में गले तक डूबना  हृदय रोगियों के लिये हितकारी बताया गया है। 10-15 मिनिट टब में बैठना चाहिये। यह प्रयोग हफ़्ते में दो बार करना कर्तव्य है।
  • विटामिन ई हृदय रोगों में उपकारी है। यह हार्ट अटैक से बचाने वाला विटामिन है। इससे हमारे शरीर की रक्त कोषिकाओं में पर्याप्त आक्सीजन का संचार होता है।

खाद्य पदार्थ जो बचाए हृदय रोग से


दिल की बीमारी एक ऐसी खतरनाक समस्या है जो लोगों में एक गंभीर चिंता का विषय बन गई है। आजकल प्रोफेशनल लाइफ में इतनी टेंशन है कि कम उम्र वाले लोगो को भी हृदय संबधी रोग हो रहे हैं। तनावग्रस्त होकर काम करते रहना और अपनी डाइट पर ध्यान न देने की वजह से यह रोग आम हो गया है।
वसा मुक्त भोजन का उपभोग करने का निर्णय ही दिल के रोगों को रोकने का एक महत्वपूर्ण कदम है। ऐसे कई फूड हैं जिनका सेवन करने से आप हृदय रोग से मुक्त हो सकते हैं। रेड वाइन,कॉफी, चाय, ओटमील, अलसी का बीज, अखरोट, बादाम, टोफू और ना जाने ही कितने सारे खाघ पदार्थ हैं, जिसे खा कर आप हृदय रोग से मुक्त हो सकते हैं। यह तो हम जानते ही हैं कि शराब पीना हमारे लिए अस्वास्थकर है, पर क्या आप जानते हैं कि यह एक पुराना मिथक है। जिसे 1992 का फ्रेंच विरोधाभास सिद्धांत माना गया है। इसमें इस बात को गलत साबित किया गया है कि रेड वाइन का प्रयोग स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालता है। बल्कि इसमें तो यह बताया गया है कि यह भोजन के माध्यम से सेवन किए गए वसा को पूरी तरह से विसर्जित करने में लाभदायक होता है। आइये जानते हैं कि कौन से ऐसे फूड हैं जो आपको हृदय रोग से बचा सकते हैं। तो जऱा गौर कीजियेगा-

ब्लैक बींस

इनमें फोलेट, एंटीऑक्सीडेंट, मैगनीशियम और खूब सारा फाइबर होता है जो कि दोनों ही कोलेस्ट्रॉल को कंट्रोल करता है।

रेड वाइन

कई हृदय रोग तभी होते हैं जब हृदय तक जाने वाली धमनियों को वसा और बुरा कोलेस्ट्रॉल मिल कर उसके रक्त प्रवाह को ब्लॉक कर देते हैं। यह रक्त वाहिकाओं को साफ करने और शरीर में वसा जमने की वजह से होने वाले नुकसान को रोकने में लाभदायक होता है। महिलाओं को रोज एक गिलास और पुरुषों को दो गिलास से ज्यादा नहीं पीना चाहिये।

टोफू

पनीर की जगह पर टोफू खाना शुरु करें क्योंकि इसमें मिनरल, फाइबर और पॉलीसैच्युरेटेड फैट्स होते हैं जिससे धमनियां खराब वसा के कारण ब्लॉक नहीं होती। टोफू को सूप में डाल कर बनाएं, इससे आपको प्रोटीन भी मिलेगा।

कॉफी

जो लोग दिन में 2 से 4 बार कॉफी या चाय पीते हैं उनको हृदय रोग घटने का चांस होता है, पर जिन्हें मधुमेह है, उनको इसका सेवन कम करना चाहिये। ब्लैक कॉफी ज्यादा फायदेमंद होती है। चाहे ब्लैक टी हो या फिर ग्रीन टी हृदय रोग में सहायक होती हैं।

साल्मन

यह एक खाने योग्य मछली है जिसमें ओमेगा-3 ईपीए और डीएचके भरा पड़ा होता है। ओमेगा 3 ब्लड प्रेशर को कम करता है। यह ब्लड ट्राईग्लीसराइड और सूजन को कम करता है। हृदय रोग से पीडित इंसान को हफ्ते में 2 बार मछली खानी ही चाहिये।

ऑलिव ऑयल

जैतून के तेल में एंटीऑक्सीडेंट होता है, जिसे पॉलीफिनॉल तथा स्वास्थ्य वर्धक मोनोसैच्युरेडेट फैट होता है। इस तेल को खाने से खून की धमनियों से अच्छी तरह से खून पास होता है।

अखरोट

रोजाना मुठ्ठी भर अखरोट खाने से कोलेस्ट्रॉल कम होता है और हृदय की धमनियों में सूजन कम होती है। इसमें ओमेगा-3, मोनोसैच्युरेटेड फैट और रेशा पाया जाता है। आप अखरोट का तेल भी प्रयोग कर सकते हैं क्योंकि उसमें ओमेगा-3 होता है।

बादाम

रोजाना एक मुठ्ठी बादाम खाने से आपको फाइबर और दिल को हेल्दी फैट मिलेगा। यह एलडीएल कोलेस्ट्रॉल को कम कर के मधुमेह का रिस्क भी कम करते हैं।

ओटमील

एक गरम ओटमील का बाउल सुबह नाश्ते में खाने से कई घंटो तक पेट भरा रहता है और यह ब्लड शुगर लेवल को मेंटेन कर के रखता है। इसे खाने से मधुमेह की बीमारी भी दूर रहती है।

अलसी

इसमें फाइबर, फोटोकैमिकल और एएलए जो कि ओमेगा- 3 फैटी एसिड होता है, पाया जाता है। यह दिल के लिये बहुत ही अच्छा है। इसे भून कर खा सकते हैं।

जौ

चावल की जगह पर जौ की रोटी खाना शुरु कर दें। इसमें मौजूद फाइबर, कोलेस्ट्रॉल लेवल और ब्लड ग्लूकोज लेवल को सामान्य बनाए रखता है।

संतरा

इसमें पोटैशियम होने की वजह से यह ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करता है। साथ ही इसमें फाइबर भी होता है।

कॉफी

जो लोग दिन में 2 से 4 बार कॉफी या चाय पीते हैं उनको हृदय रोग घटने का चांस होता है, पर जिन्हें मधुमेह है, उनको इसका सेवन कम करना चाहिये। ब्लैक कॉफी ज्यादा फायदेमंद होती है। चाहे ब्लैक टी हो या फिर ग्रीन टी हृदय रोग में सहायक होती हैं।

गाजर

रिसर्च के मुताबिक यह आपके ब्लड शुगर लेवल को कंट्रोल कर सकता है तथा मधुमेह के रिस्क को भी कम करता है। इसमें घुलन शील रेशा होने के नाते इसको कोलेस्ट्रॉल से लडऩे वाला टॉप का फूड बताया गया है।

चैरी

चैरी में लाल रंग डालता है वही मानव शरीर में यूरिक एसिड को कम करने में सहायक भी होता है। खून में बढा हुआ यूरिक एसिड हार्ट अटैक पैदा कर सकता है। मुठ्ठी भर चैरी, चाहे सूखी हो या फिर ताजी खाने से दिल मजबूत रहेगा।

शकरकन्द

इसमें फाइबर, विटामिन ए और लाइकोपीन होता है जो कि दिल के लिये पूरी तरह से सेफ है। शकरकंद खाने से ब्लड शुगर नहीं बढता साथ में इसे सफेद आलू की जगह पर खा सकते हैं।

Saturday 6 September 2014

ज्यादा चाय पीने से बढता है हृदय रोग का खतरा


यदि आप चाय बार-बार पीते हैं तो सावधान हो जाइए क्योंकि इसमें पाए जाने वाले कैफीन के कारण मूत्र की मात्रा में तीन गुना अधिक वृद्धि होती है। ज्यादा चाय पीने के कारण चाय में पाए जाने वाले कैफीन से मूत्र वृद्धि होने लगती है इससे दूषित मल, जिसका शरीर से मूत्र के रास्ते निकल जाना आवश्यक होता है वह शरीर अन्दर ही संचित होने लगता है, फलस्वरुप गठिया दर्द, गुर्दे संबंधी रोग तथा हृदय संबंधी रोग होने लगते है।
अधिक चाय का सेवन करने से एसिड के कारण पेट फूलना, पेट दर्द, कब्ज, एसिडिटी, बदहजमी, नींद न आना, दांत पीले होना जैसे रोग पैदा होने लगते हैं।
चाय के अत्यधिक प्रयोग से उसमें पाया जाने वाला कैफीन टैनिन नामक विष चाय के प्रभाव को अत्यधिक उत्तेजनाप्रद बनाते हैं। इसका मस्तिष्क पर बुरा प्रभाव पडता है। जैसे-जैसे चाय का नशा बढ़ता जा रहा है वैसे-वैसे हृदय रोग,मानसिक रोगों में भी बढ़ोतरी होती जा रही है। कैफीन के प्रभाव से दिल की धड़कन बढ़ जाती है इससे हृदय रोग बढ़ रहे हैं।

हृदय रोग को निमंत्रण नाश्ता न करना


मानव जीवन शैली में छोटे छोटे परिवर्तन बहुत सी बीमारियों से बचाव का कारण बन सकते हैं और थोड़ी सी सावधानी बरत कर इन बीमारियों से बचा जा सकता है।
उदाहरण स्वरूप अमरीका में होने वाले एक शोध के अनुसार नाश्ता छोडऩे से दिल के दौरे का ख़तरा कई गुना बढ़ सकता है किन्तु समय पर नाश्ता करके इस बीमारी से बचा जा सकता है। शोध में यह बात सामने आई है कि जो लोग नाश्ते से मुंह मोड़ते हैं, उनमें दिल के दौरे या हृदय रोग से मौत का ख़तरा 27 प्रतिशत तक अधिक होता है और रात देर से सोने वाले लोगों में हृदय रोग का ख़तरा 55 प्रतिशत तक बढ़ जाता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि नाश्ते को छोडऩा मोटापे, उच्च रक्तचाप, हाई कोलेस्ट्रॉल, और मधुमेह के साथ दिल के दौरे का कारण बनने वाले मुख्य कारणों में से एक है।

Friday 5 September 2014

शाकाहार बचाए हृदय रोग और कैंसर से


मानें या ना मानें मांसाहार नैतिक, आध्यात्मिक और मानवीय दृष्टि से तो नुकसानदेय है ही, सेहत की दृष्टि से भी हानिकारक है। नैतिक या आध्यात्मिक आधार पर भले मांसाहार छोडऩा गंवारा न हो पर केलिफोर्निया के हृदयरोग विशेषज्ञ डा. डीन ओरनिश के अनुसार केवल शाकाहार अपनाकर हृदय और कैंसर रोग को आसानी से ठीक किया जा सकता है।
दवाईयां तो लेनी होगी लेकिन उनका असर सत्तर प्रतिशत तेजी से होगा। डा. डीन पहले ऐसे चिकित्सा विज्ञानी हैं जो रोगियों को बिना चीर फाड़ किए ठीक करने में यकीन करते हैं। न केवल यकीन करते हैं, बल्कि उन्होंने इलाज के लिए आए मरीजों की खानपान की आदतें बदल कर उन्हें ठीक किया है। ब्रिटेन में हुए एक ताजा अध्ययन के मुताबिक शाकाहारी लोगों में कैंसर और हृदय रोगों का जोखिम मांसाहारी लोगों की तुलना में 40 प्रतिशत और असमय मृत्यु का खतरा 20 प्रतिशत कम होता है। इस अध्ययन के मुताबिक मांसाहार के पक्ष में पर्यावरण, प्रकृति संतुलन और आसानी से पौष्टिक भोजन मिल जाने की जो दलीलें दी जाती हैं वे सब गलत साबित हुई हैं। अध्ययन के अनुसार मनुष्य की आंतों से लेकर पाचन संस्थान के तमाम अंग अवयव जिनमें जीभ, दांत, ओठ, हाथ पैर की अंगुलियां भी शामिल हैं, मांसाहार के लिए कतई उपयुक्त नहीं है।
शरीर स्वयं विकसित हुआ हो या प्रकृति ने बनाया हो वह अनाज और शाकपात से ही पोषक रस खींच सकता है। हजम करने के लिए मांस को जिस हद तक पकाया जाता है, वह गए गुजरे किस्म के अनाज से भी गया बीता हो जाता है। सार यह कि मनुष्य को स्वस्थ और पुष्ट रखने के लिए शाकाहार ही उपयुक्त है। और स्वस्थ शरीर में आत्मा के विकास की पर्याप्त संभावना रहती है।