Wednesday 29 July 2015

घर पर बनाएं प्राकृतिक टूथपावडर


हमारे दिन प्रतिदिन के उत्पादों में पाए जाने वाले रसायनों तथा शरीर पर उनके होने वाले प्रभावों के बारे में जागरूकता आने के कारण हम में से बहुत से लोग ऐसे उत्पादों का इस्तेमाल करना चाहते हैं जो प्राकृतिक हों तथा रसायनों को हमारे घरों से जितना संभव हो दूर रखना चाहते हैं। चाहे वे घर में बने लोशन, शैंपू या टूथपेस्ट ही क्यों न हो। यह एक चमत्कारी पदार्थ होता है जो पानी के संपर्क में आने पर किसी भी प्रकार के विषाक्त पदार्थ, भारी धातुओं, अशुद्धियों या दूषित पदार्थों को अवशोषित कर लेता है।
टूथपेस्ट के लिए असरदार और सस्ते प्राकृतिक विकल्प

बेकिंग सोडा

यह थोडा खुरदुरा होता है तथा दांतों पर जमे हुए किसी भी पदार्थ को हटाने में सहायक होता है। दांतों पर सोड़ा घिसने से दांतों पर जमा हुआ प्लाक और दाग धब्बे निकल जाते हैं।

दालचीनी

यह मुंह में ताज़ी खुशबु भर देती है। यह एंटीबैक्टीरियल भी है अर्थात यह मुंह में बैक्टीरिया नहीं बनने देती अत: मुंह से आने वाली दुर्गन्ध को रोकती है।

लौंग

बहुत पहले से लौंग का उपयोग दांतों और मसूड़ों की समस्या में किया जाता है। यह दांत गिरने के कारण होने वाले दर्द से आराम दिलाने में सहायक होती है।

मिंट

क्या हमें बताने की आवश्यकता है, नि:संदेह ताज़ा सांस के लिए! इसमें एंटीबैक्टीरियल गुण होता है जो आपके दांतों और मुंह को जगमगाता हुआ रखता है।

घर पर टूथपावडर बनाने की विधि

3 टेबलस्पून बेंटोनाइट मिट्टी 2 टेबलस्पून बेकिंग सोड़ा 1 टेबलस्पून पुदीने की सूखी पत्तियों का चूर्ण ½ टेबलस्पून दालचीनी पावडर ½ टेबलस्पून लौंग पावडर आप पुदीना, दालचीनी और लौंग के स्थान पर उनके तेलों का उपयोग भी कर सकते हैं। परन्तु इससे आपके टूथपावडर को कोई द्रव्यमान नहीं मिलेगा। इसके अलावा लौंग और दालचीनी का पावडर मिलाकर पावडर के खुरदुरेपन को बढ़ाते हैं। अत: अच्छा होगा कि इनका पावडर के रूप में उपयोग करें। सभी घटकों को एक कटोरी में मिलाएं तथा कांच के एक मर्तबान में भर लें। धातु के बर्तन का उपयोग न करें।

टूथपावडर का उपयोग कैसे करें

इसका उपयोग दो तरीकों से किया जा सकता है। या तो परिवार के प्रत्येक सदस्य के लिए अलग मर्तबान रखें ताकि वे अपना टूथब्रश उसमें डुबा सकें। या मर्तबान में प्लास्टिक का एक चम्मच रखें तथा लगभग एक चौथाई टी स्पून पावडर लेकर उसे गीले ब्रश पर छिडकें तथा फिर ब्रश करें।

Thursday 16 July 2015

रोग और योग


योग में सेहत का मतलब न तो तन से होता है और न मन से, इसमें सेहत का मतलब सिर्फ ऊर्जा के काम करने के तरीके से होता है। अगर आपका ऊर्जा-शरीर उचित संतुलन और पूर्ण प्रवाह में है, तो आपका स्थूल शरीर और मानसिक शरीर पूरी तरह से स्वस्थ होंगे। इसमें कोई शक नहीं है। ऊर्जा-शरीर को पूर्ण प्रवाह में रखने के लिए किसी तरह की हीलिंग की जरूरत नहीं होती। यह तो अपने मौलिक ऊर्जा-तंत्र में जाकर उसे उचित तरीके से सक्रिय करना है।

मोटापा

अगर आप नियमित तौर पर योग करते हैं तो आपका अधिक वजन जरूर कम हो जाएगा। योग सिर्फ  एक व्यायाम के तौर पर ही काम नहीं करता, बल्कि आपकी पूरी शारीरिक प्रणाली को फिर से जवान बनाता है, साथ ही आपके भीतर ऐसी जागरूकता भी पैदा करता है कि आप खुद ही ज्यादा खाने से बचने लगते हैं। एक बार आपके शरीर में एक खास स्तर की जागरूकता आ जाती है तो उसके बाद आपका शरीर ऐसा बन जाता है कि यह सिर्फ  उतना ही भोजन ग्रहण करता है, जितना इसके लिए जरूरी होता है। जरूरत से ज्यादा भोजन यह कभी नहीं लेगा। ऐसा इसलिए नहीं होता कि आपके शरीर को एक खास तरह से कोई नियमित या नियंत्रित कर रहा है या फिर आपसे कोई डाइटिंग करने के लिए कह रहा है। आपको तो बस योगाभ्यास करना होता है। बाकी काम यह खुद करता है। यह आपकी प्रणाली को इस तरह से तैयार करता है कि वह आपको जरूरत से ज्यादा खाने ही नहीं देती। अगर आप किसी और तरह के व्यायाम या डायटिंग आदि का सहारा लेते हैं तो उसमें आपको खाने को लेकर लगातार अपने आप पर नियंत्रण की कोशिश करनी पड़ती है। योग की मदद से वजन कम करने में सबसे बड़ा फर्क इसी चीज का है।

मधुमेह

अगर आपका ऊर्जा शरीर पूर्ण रूप से कंपायमान है और उसका संतुलन सही है तो शरीर में कोई रोग होगा ही नहीं। योग में मधुमेह को एक गड़बड़ी के तौर पर देखा जाता है। इस रोग को हल्के में नहीं लिया जा सकता। दरअसल, जब हमारे शरीर की मूल संरचना में ही कुछ गड़बड़ होनी आरंभ हो जाती है तो मधुमेह होता है।
सूर्य नमस्कार से शरीर के भीतर इतनी ऊर्जा पैदा होती है कि इसका निरंतर अभ्यास करने वालों को बाहर की सर्दी प्रभावित नहीं कर पाती।
यह हर शख्स में अलग होता है। अगर दस लोगों को मधुमेह है तो उन सभी में शरीर के अंदर होने वाली गड़बड़ी का स्तर और प्रकार दोनों अलग-अलग होंगे। यही वजह है कि मधुमेह से पीडि़त हर शख्स को व्यक्तिगत तौर पर देखे जाने की जरूरत है।
योग का काम आमतौर पर प्राणमय कोष के स्तर पर होता है। आप प्राणमय कोष से शुरुआत करते हैं। प्राणायाम के माध्यम से आप जो भी करते हैं, वह प्राणमय कोष का व्यायाम ही है। यह व्यायाम इस तरीके से किया जाता है कि प्राणमय कोष पूरी तरह दुरुस्त हो जाए। अगर आपका प्राणमय कोष सही तरीके से संतुलित है और ठीक काम कर रहा है तो आपके शरीर में कोई रोग नहीं होगा। अगर आपके ऊर्जा शरीर में संतुलन है, तो दिमाग और शरीर दोनों में रोगों का होना नामुमकिन है। अलग-अलग रोगों से पीडि़त लोग यहां आते हैं। दिल का रोग है तो इलाज वही है। अस्थमा है तो भी इलाज वही है। मधुमेह है तो भी वही इलाज है। वैसे पहले ये जान लीजिए कि यह इलाज है ही नहीं। हम तो बस स्वास्थ्य को ठीक करने की चेष्टा करते हैं। हम तो बस आपके तंत्र को बेहतर बनाते हैं।
योग का काम आमतौर पर प्राणमय कोष के स्तर पर होता है। आप प्राणमय कोष से शुरुआत करते हैं। प्राणायाम के माध्यम से आप जो भी करते हैं, वह प्राणमय कोष का व्यायाम ही है।
आप मणिपूरक चक्र  को देखें, यह शरीर को दो हिस्सों में बांटता है। इसी के चलते ऐसे लोगों के शरीर का निचला हिस्सा गर्म होता है और ऊपरी हिस्सा शीतल हो चुका होता है। इसमें एक संतुलन की आवश्यकता होती है। सूर्य नमस्कार और कुछ आसनों का अभ्यास करने से यह संतुलन हासिल किया जा सकता है।

योगिक अभ्यास

सूर्य नमस्कार और आसन: इनसे मरीज के शरीर में संतुलन आता है। जिन लोगों को साइनिसाइटिस यानी नजला और दमा का रोग है, उनमें नासिका छिद्र बंद होने की समस्या को यह दूर करता है। इनसे शरीर के लिए आवश्यक व्यायाम हो जाता है। शरीर के लिए आवश्यक ऊष्मा भी इनसे पैदा होती है। सूर्य नमस्कार से शरीर के भीतर इतनी ऊर्जा पैदा होती है कि इसका निरंतर अभ्यास करने वालों को बाहर की सर्दी प्रभावित नहीं कर पाती।

प्राणायाम

दमा कई तरह के होते हैं। कुछ एलर्जिक होते हैं, कुछ ब्रोंकाइल होते हैं और कुछ साइकोसोमैटिक  या मनकायिक होते हैं। अगर मामला मनकायिक है तो ईशा योग करने से यह ठीक हो सकता है। ईशा योग करने से इंसान मानसिक तौर से शांत और सतर्क हो जाता है और उसका दमा ठीक हो जाता है। अगर यह एलर्जी की वजह से है तो प्राणायाम करने से यह निश्चित तौर पर ठीक हो सकता है। ईशा योग में जो प्राणायाम सिखाया जाता है, उससे ब्रोंकाइल संबंधी दिक्कत कम हो जाती हैं। अगर एक से दो हफ्तों तक प्राणायाम का रोजाना सही तरीके से अभ्यास कर लिया जाए तो दमा के मरीजों को पचहत्तर फीसदी तक का फायदा महसूस होगा।

Wednesday 15 July 2015

क्या आपको मालूम है कैसे होता है कब्ज


अक्सर आपकी सुबह कब्ज की समस्या से गुजरती है क्या आप सुबह देर तक वॉशरूम में बैठे रहते हैं अगर हां, तो अब देर ना करें और अपनी इस दशा का तुरंत निदान करें। कब्ज होने के कई कारण हो सकते हैं, जिसके बारे में कई लोग अंजान हैं। कब्ज से छुटकारा पाने के  घरेलू उपचार आपको कब्ज, शरीर में कमजोरी, हाईपोथायराइड या सही मात्रा में पानी ना पीने, आदि के कारण सकता है। कब्ज की समस्या दवाइयां खाने के कारण भी हो सकती है। एक बार अगर कब्ज होने का कारण पता चल जाए, तो आप इसका सही से निदान करना भी सीख जाएंगे।
आइये जानते हैं कि कब्ज की समस्या के पीछे आखिर कौन-कौन से कारण छिपे हुए हैं कब्ज के पीछे छिपे हैं ये अजीब कारण पेनकिलर एस्पिरिन और आइब्रूफेन दो ऐसी पेनकिलर्स हैं, जो व्यस्कों में कब्ज पैदा करने के लिये जानी जाती हैं। ऐसे रोगी जो किसी कारणवश इन दवाओं का सेवन कर रहे हैं, उन्हें दिनभर में खूब सारा पानी पीना चाहिये।
  • हाइपोथायराइडिज्म जिनकी थायराइड ग्रंथी ठीक से काम नहीं करती, उनका मेटाबॉलिज्म कमज़ोर हो जाता है। यह पेट पर भी लागू होता है। इस तरह से खाया गया खाना बडी ही देरी से पचता है और कब्ज हो जाता है।
  • एलर्जी कई लोग ऐसे होते हैं जिन्हें दूध, दही और दूध से बनने वाले प्रोडक्ट हजम नहीं होते। इससे उन्हें कब्ज हो जाता है और कई बार तो उन्हें डायरिया भी हो जाता है।
  • व्यायाम में कमी व्यायाम करने से शरीर में मल को निकालने वाला पदार्थ जिसे हम म्यूकस कहते हैं, वह बनता है। लेकिन जब हम व्यायाम नहीं करते हैं या फिर हमारी लाइफस्टाइल में किसी भी प्रकार की दौड भाग नहीं रहती, तो यह बनना बंद हो जाता है, जिससे कब्ज हो जाता है।
  • विटामिन अच्छी सेहत के लिये हम सभी विटामिन का सेवन करते हैं। पर जब यह विटामिन हमारे शरीर में रिएक्ट करने लगे तो कब्ज जैसी समस्या पैदा हो जाती है। हर विटामिन रिएक्शन नहीं पैदा करते। लेकिन कैल्शियम और आयरन कभी-कभी सूट नहीं करते।
  • टॉयलेट को कंट्रोल करने से कई लोगों की आदत होती है कि वह पब्लिक टॉयलेट में जाना पसंद नहीं करते। ऐसा कई बार करने से कब्ज की समस्या पैदा होती है।
  • डिप्रेशन लेने से भी कब्ज होता, यह बात बहुत कम लोग जानते हैं। जब तनावपूर्ण फीलिंग पैदा होती है, तो शरीर का मेटाबॉलिज्म कमजोर पड़ जाता है।
  • एंटासिड सीने में जलन पैदा होने पर अगर आप एंटासिड खाते हैं, तो भी कब्ज हो सकता है। क्योंकि इस दवाई में कैल्शियम और एल्यूमीनियम के घटक होते हैं।
  • पानी की कमी पानी ना पीना भी कब्ज की बीमारी पैदा करता है। अगर आपकी समस्या बहुत ज्यादा बढ़ चुकी है, तो आप गरम पानी का सेवन करें।
  • गर्भावस्था अगर आप गर्भवती हैं तो आप को कई दिनों तक कब्ज की समस्या रह सकती है। आप को इसका इलाज चिकित्सक की देखरेख करवाना चाहिए।

Monday 13 July 2015

बच्चों में बढ़ती कब्ज़ की समस्या कारण और निवारण


स्वस्थ शरीर भगवान की अनुपम भेंट हे स्वस्थ पाचन तत्रं हमारे स्वास्थ का अभिन्न् भाग है। पाचन तंत्र की समस्याओं से अनेक रोगों का जन्म होता है वर्तमान में बदलती जीवन शैली और खान-पान से हमारा स्वास्थय बहुत प्रभावीत हुआ है । विषेषकर बच्चों में इस करण से बहुत सी समस्याएंॅ जन्म ले रही है। खराब पाचन और कब्ज की समस्या बच्चों में विकराल रूप धारण करती जा रही है । प्रस्तुत है इस समस्या से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य तथा मुख्य कारण एवं निवारण ।
बच्चों में कब्ज की उम्र क्या होती है।

बच्चों में कब्ज़ दो उम्र में ज्यादा पाया जाता है

1- जन्मजात
2- ऊपर का आहर शुरू करनें के पश्चात अर्थात जब बच्चा मॉं के दूध के अतिरिक्त ऊपरी आहार लेना शुरू कर दे इसके अलावा स्कूल जाने वाले बच्चों में अव्यवस्थित शौच की आदतों के कारण भी अधिकांश बच्चों में यह समस्या जन्म लेती है ।
बच्चों कब्ज़ के मुख्य कारण क्या है।
बच्चों में कब्ज़ के मुख्य कारण इस प्रकार है ।
1- जन्म से कब्ज़/ शौच न करना: ऑतों में नसों की चाल न  होने से/ ऐसी समस्या के लिए तुरन्त शिशु शल्य चिकित्सक (अतिविशेषज्ञ) से परामर्श लेना चाहिए ।
2- जन्म के बाद बढ़ती उम्र में कब्ज़ का होना भोजन की अनियमितताओं को इंगित करता है । यह समस्या नियमित भोजन और व्यवस्थित दिनचर्या  एवं दवाईयों से ठीक हो सकती है
3- कुछ बच्चों में रीढ की हड्डी, स्नायु तंत्र एवं नसों से संबंधित रोगो के कारण भी यह समस्यां  हो सकती है ।
4- उपर्युक्त तीनों ही स्थितीयों में पीडियाट्रिक सर्जन (बच्चों के सुपरस्पेशिलिस्ट सर्जन) का परामर्श लेना नितांत आवश्यक है। जन्मजात एवं स्नायु रोग संबंधित समस्याओं को इस लेख में शामिल नहीं किया गया है।

बच्चों में कब्ज़ के क्या-क्या- लक्षण होते है ।

बच्चों में कब्ज़ की बीमारी भिन्न-2 रूप से प्रस्तुत होती है। इसका मुख्य कारण प्रतिदिन शौच न करना या 2-3 दिन के अंतर पर ही शौच क्रिया करना है। अधिकांष बच्चों में यह समस्या समय के साथ बढ़ती जाती है। और उनमें कड़ा एवं सूखा मल होना तथा शौच के दौरान रोग इत्यादि लक्षण प्राय: पाये जाते है । ये बच्चें शौच क्रिया के लिए बैठने के बजाय खडे खडे मल-त्याग करते है । कुछ बच्चेे जो कि  प्रतिदिन शौचालय जाते है परन्तु उनका कोई निश्चित समय नहीं होता वे भी कब्ज़ की श्रेणी में ही आते हैं और इनमें यह समस्या बढ़ती जाती है। अधिक समस्या होने पर शौच का रास्ता/मलद्वार बाहर भी निकलता है

वीनिंग क्या है और इसका सही तरीका क्या है।

प्रारंभिक लगभग 6 माह तक मां का दूध ही शिशु के लिए सर्वोत्तम आहार है । इसके बाद उसको मां के दूध के अतिरिक्त भी पोषण की आवष्यकता होती है  जो कि उपरी भेाजन द्वारा पूरा किया जाना चाहिए । मॉं के दूध से उपरी आहार के परिवर्तन की प्रक्रिया को वीनिंग कहते है । इसके लिए बच्चे को मॉ के दूध के अतिरिक्त दाल का पानी, उबला चावल का पानी, दलिया, खिचड़ी, आलू इत्यादी शुरू किया जाता है और धीरे- धीरे उपरी आहार की मात्रा बढ़ाते हुए मां के दूध की मात्रा को घटाया जाता है।

बच्चों को कब्ज से दूर रखने हेतु कैसा भोजन लें!

बच्चों में कब्ज से बचने के लिए भोजन का सबसे महत्वपूर्ण स्थान है। इसके लिए निम्नलिखित भोजन का सेवन करें।
क्या खाएं- हरी पत्तेदार सब्जी, सलाद, फल, खिचडी, दलिया, दाल-चावल, /रोटी, अंडा, केला, दूध, (उपयूक्त मात्रा में ) और पानी अच्छी मात्रा में पिएं ।
क्या न खाएं- टॉफी, चॉकलेट, बिस्किट, चिप्स इत्यादी , मैदा का सामान तली चीज़े (समोसा, कचौरी) अधिक मिर्च एवं चिकनाई,  नमकीन/मिक्चर और अत्यअधिक दूध का सेवन बिल्कुल न करें ।
कब्ज़ से बचने के लिए दिनचर्या में क्या परिवर्तन होने चाहिए ।
कब्ज़ आदि समस्याओं से बचने के लिए दिनचर्या व्यस्थित होना आवश्यक है । इसके लिए प्रतिदिन बच्चों को प्रात: एक कप गुनगुना (हल्का गर्म) दूध देकर 10 मिनट शौच के लिए अवश्य बैठायें। शौच न होने पर भी इसे छोड़ें नहीं और कम से कम 1 माह तक इसका पालन करें और भोजन में लिए परहेज़ का पालन करें । इसके अतिरिक्त बच्चों को साफ़ पानी अच्छी मात्रा में पिलाएंॅ और प्रति 2-3 घंटे में मूत्र-त्याग करनें कों कहें । बाहरी भेाजन से बचें और शारीरिक स्वच्छता का ध्यान रखें । बच्चें के शौच का समय प्रात: काल निश्चित करने का प्रयास करें ।

बच्चों में कब्ज़ की समस्या क्या पूर्ण रूप से ठीक हो सकती है ।

हॉ. बच्चों में कब्ज़ की समस्या  का निवारण पूर्ण रूप  से किया जा सकता है परन्तु उसके लिए उचित चिकित्सकीय परामर्श की महती विशेषता है। योग्य शिशु शल्य चिकित्सक का परामर्श लें। भोजन में आवश्यक परिवर्तन और बच्चों की दिनचर्या को नियंमित करें तो इस समस्या पर काबू पाया जा सकता है। यदि इसका सही समय पर उपचार न हो तो समय के साथ यह समस्या विकराल रूप धारण कर लेती है और बच्चे के शारीरिक एवं मानसिक विकास पर इसका विपरीत प्रभाप पड़ता है। कुछ बच्चों में इसके कारण सर्जरी भी करनी पड़ सकती है ।
नोट: जन्मजात एवं स्नायुरोग संबंधित पाचन तंत्र समस्याओं को इस आलेख में शामिल नहीं किया गया है। इसके लिए पीडियाट्रिक सर्जन से मिल कर परार्मश लेना उचित है ।

Saturday 11 July 2015

ओट्स खाने के 10 फायदे


ओट्स या जई आसानी से पच जाने वाले फाइबर का जबरदस्त स्रोत है। साथ ही यह कॉम्पलेक्स कार्बोहाइडेट्स का भी अच्छा स्रोत है। ओट्स हृदय संबंधी बीमारियों के खतरे को कम करता है। बशर्ते इसे लो सैच्यूरेटिड फैट के साथ लिया जाए। ओट्स एलडीएल की क्लियरेंस बढ़ाता है। ओट्स में फोलिक एसिड होता है जो बढ़ती उम्र वाले बच्चों के लिए बहुत उपयोगी होता है। यह एंटीकैंसर भी होता है। चेहरे के लिये ओटमील फेस स्क्रब ओट में कैल्शियम, जिंक, मैग्नीज, आयरन और विटामिन-बी और ई भरपूर मात्रा में होते हैं। जो लोग डिसलिपिडेमिया और डायबिटीज से पीडि़त हैं उन्हें ओट्स फायदेमंद होता है। गर्भवती महिलाओं और बढ़ते बच्चों को भी ओट्स खाना चाहिए। आईये जाने कुछ और ऐसे ही फायदे-

कोलेस्ट्रॉल

ओट्स में मौजूद बीटा ग्लूकॉन नामक गाढा चिपचिपा तत्व हमारी आंतों की सफाई करते हुए कब्ज की समस्या दूर करता है। इसकी वजह से शरीर में बुरे कोलेस्ट्रॉल जमा नहीं हो पाता। अगर तीन महीने तक नियमित रूप से ओट्स का सेवन किया जाए तो इससे कोलेस्ट्रॉल के स्तर में 5 प्रतिशत तक कमी लाई जा सकती है।

हृदय

ओट्स का सेवन दिल के लिये काफी फायदेमंद होता है। ओट्स में खूब फाइबर मौजूद होता है, और इसमें फॉलीबल फाइबर होता है जो दिल के लिये बहुत अच्छा होता है यही नहीं यह दूसरी बीमारियों से भी बचाता है। इससे शुगर लेवल कम रहता है।

वजन घटाए

इसमें इनसॉल्यूबल और सॉल्यूबल फाइबर होता है, जो फैट बर्निंग के लिए काफी अच्छा है, साथ ही प्रोटीन भी मौजूद होने से पेट भर जाता है। जो लोग जिम जाने का या व्यायाम करने का समय नहीं निकल पाते हैं, वे ओट्स खा के अपना वजन जल्दी और आसान तरीके से कर सकते हैं।

उच्च रक्तचाप

उच्च रक्तचाप हमारे हृदय के लिए बहुत ज्यादा खतरनाक है , इसे समय रहते अगर रोका ना गया तो यह इंसान की जान भी ले सकता है। इससे बचने का सबसे अच्छा उपाय है ओट्स। ओट्स खाने से उच्च रक्तचाप की परेशानी कम होती है क्योंकि इसमें फाइबर होता है जो कोलेस्ट्रोल को नियंत्रित रखता है।

स्तन कैंसर

ओट्स में लिग्नंस और एन्टेरोलैक्टोने जैसे फीटो केमिकल पाए जाते हैं जो कैंसर से लडऩे में सहायक हैं। एन्टेरोलैक्टोने विशेष रूप से, स्तन और अन्य हार्मोन से संबंधित कैंसर की रोकथाम में सहायक है।

इन्टेस्टाइन

आंत और मलाशय के लिए काफी फायदेमंद होता है। ओट्स उनके लिए बहुत लाभदायक है जो लोग अल्सरेटिव कोलाइटिस से पीडि़त हैं। इसे रोज़ खाने से कब्ज़ जैसी परेशानियों से निजात मिल जाता है।

ब्लड शुगर

ब्लड शुगर लेवल को स्थिर रखता है ओट्स में कार्बोहाइड्रेट काफी अच्छी मात्रा में पाया जाता है, जो आपको ऊर्जा देती है। फाइबर की मात्रा ज्यादा होने की वजह से यह धीरे धीरे पचता है, जिसकी वजह से रक्त में मौजूद ग्लूकोस का स्तर बढ़ता नहीं है। अध्ययनों से यह भी पता चला है कि इसको नियमित खाने से टाइप 2 मधुमेह का खतरा काम हो जाता है।

तनाव

ओट्स में फाइबर और मैग्नीशियम पाया जाता है जो दिमाग में सेरोटोनिन की मात्रा बढ़ाता है, जिससे मस्तिष्क शांत रहता है। जिसकी वजह से आपका मूड अच्छा रहता है और नींद भी अच्छी आती है। आप चाहें तो इसमें ब्लूबेरी भी डाल के खा सकते हैं, जिस में एंटीऑक्सीडेंट और विटामिन सी पाया जाता है जो तनाव से लडऩे में मदद करता है।

बूस्ट इम्यूनटी

साबुत अनाज में ओट्स खाने से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। ओट्स में मौजूद फाइबर आपके पाचन तंत्र को मजबूत करता है।

त्वचा 

यह हमारी त्वचा के लिए भी बहुत लाभदायक है। यह त्वचा को नमी देता है साथ ही जिनकी त्वचा बहुत ज्यादा रूखी या उसमें बहुत खुजली और जलन होती है तो ओट्स बहुत उपयोगी है।

Friday 10 July 2015

बवासीर की परेशानी में खाए यह आहार


पाइल्स को बवासीर के नाम से भी जाना जाता है। यह बहुत ही खतरनाक बीमारी है जिसमें मलद्वार के अंदर खून की नसें फूल जाती हैं। मलत्याग के समय अधिक जोर लगाने पर गुदा मार्ग में उपस्थित खून की नसें फूल जाती हैं, जो पाइल्स का कारण बनती हैं। पाइल्स की बीमारी लगभग हर इसांन को अपने जीवन मे कभी ना कभी जरुर होती ही है। कुछ व्यक्तियों में यह रोग पीढ़ी दर पीढ़ी पाया जाता है। इसके लक्षणों में, शौच के दौरान लाल रंग का खून आना, चिकने पदार्थ का रिसाव होना, मलद्वार में खुजली चलना, खून की कमी से कमजोरी, चक्कर आना, थकान होना, भूख नहीं लगना और लगातार कब्ज रहना आदि होता है। मरीज संकोचवश चिकित्सक से समय पर नहीं मिलता और इसी वजह से यह तकलीफ बढ़ जाती है और स्वास्थ्य खराब होने लगता है। अगर आपको भी यह बीमारी है तो, उसे स्वस्थ्य खान-पान से ठीक किया जा सकता है। आइये देखते हैं कि कौन से हैं वे आहार।
  • घुलनशील रेशा युक्त आहार ना केवल पाइल्स को ठीक करेगा बल्कि कब्ज की समस्या से भी छुटकारा दिलाएगा। रोजाना ताजे फल और सब्जियों का सेवन करें और इस बीमारी से निजात पाएं।
  • कुछ तरह की फलियां जैसे, बींस, राजमा, सोया बींस, काली बींस, मटर और दाल आदि में बहुत फाइबर पाया जाता है, जो कि आसानी से हजम भी हो जाते हैं और आंत में जा कर चिपकते भी नहीं हैं।
  • मसालेदार भोजन और आधा पका हुआ भोजन का सेवन बिल्कुल भी ना करें क्योंकि इससे कब्ज होता है। इसके अलावा शराब का सेवन करते हैं तो वो भी बंद कर दें।
  • आम, मौसम्बी, अंजीर और जामुन का ज्यूस पीने से यह समस्या दूर होगी। इसके अलावा अधिक कॉफी भी नुकसानदेह है क्योंकि यह शरीर में पानी की कमी पैदा करती है।
  • सिट्रस या खट्टे फल जैसे, नींबू, संतरा, मुसम्मी, चीज़, दही, सेब, और टमाटर पाइल्स को प्राकृतिक तरीके से ठीक करते हैं। इन्हें अपने आहार में जरुर शामिल करें।
  •  रात को सोने से पहले पानी में अंजीर या खजूर को भिगोने के बाद सुबह खाली पेट इन्हें खा लें। इन दोनों में काफी फाइबर पाया जाता है जो कि पेट के हर रोग को ठीक कर देता है। इसके अलावा रोजाना एक्सरसाइज भी करें।
  • पाइल्स का रोग ठीक करने में केला भी बडा़ लाभदायक साबित होता है। रोजाना खाना खाने के बाद या फिर सुबह खाली पेट केले का सेवन करें।
  • प्राकृतिक रूप से पाइल्स को ठीक करने के लिये खूब पानी पीजिये। दिन में करीब 8-10 गिलास पानी जरुर पिये। इसके अलावा फ्रेश फ्रूट ज्यूस और सब्जियों का सूप पीजिये।

Thursday 9 July 2015

बवासीर


हे मोरोइड गुदा-नाल में वाहिकाओं की वे संरचनाएं हैं जो मल नियंत्रण में सहायता करती हैं।जब वे सूज जाते हैं या बड़े हो जाते हैं तो वे रोगजनक या बवासीर हो जाते हैं। अपनी शारीरिक अवस्था में वे धमनीय-शिरापरक वाहिका और संयोजी ऊतक द्वारा बने कुशन के रूप में काम करते हैं। मनुष्य की गुदा में तीन आवृत या बलियां होती हैं जिन्हें प्रवाहिणी, विर्सजनी व संवरणी कहते हैं जिनमें ही अर्श या बवासीर के मस्से होते हैं आम भाषा में बवासीर को दो नाम दिये गए है बादी बवासीर और खूनी बवासीर। बादी बवासीर में गुदा में सुजन, दर्द व मस्सों का फूलना आदि लक्षण होते हैं कभी-कभी मल की रगड़ खाने से एकाध बूंद खून की भी आ जाती है। लेकिन खूनी बवासीर में बाहर कुछ भी दिखाई नहीं देता लेकिन पाखाना जाते समय बहुत वेदना होती है और खून भी बहुत गिरता है जिसके कारण रक्ताल्पता होकर रोगी कमजोरी महसूस करता है। रोगजनक अर्श के लक्षण उपस्थित प्रकार पर निर्भर करते हैं। आंतरिक अर्श में आम तौर पर दर्द-रहित गुदा रक्तस्राव होता है जबकि वाह्य अर्श कुछ लक्षण पैदा कर सकता है या यदि थ्रोम्बोस्ड (रक्त का थक्का बनना) हो तो गुदा क्षेत्र में काफी दर्द व सूजन होता है। बहुत से लोग गुदा-मलाशय क्षेत्र के आसपास होने वाले किसी लक्षण को गलत रूप से 'बवासीरÓ कह देते हैं जबकि लक्षणों के गंभीर कारणों को खारिज किया जाना चाहिए। हालांकि बवासीर के सटीक कारण अज्ञात हैं, फिर भी कई सारे ऐसे कारक हैं जो अंतर-उदर दबाव को बढ़ावा देते हैं- विशेष रूप से कब्ज़ और जिनको इसके विकास में एक भूमिका निभाते पाया जाता है।
हल्के से मध्यम रोग के लिए आरंभिक उपचार में फाइबर (रेशेदार) आहार, जलयोजन बनाए रखने के लिए मौखिक रूप से लिए जाने वाले तरल पदार्थ की बढ़ी मात्रा, दर्द से आराम के लिए (गैर-एस्टरॉएड सूजन रोधी दवा) और आराम, शामिल हैं। यदि लक्षण गंभीर हों और परम्परागत उपायों से ठीक न होते हों तो अनेक हल्की प्रक्रियाएं अपनायी जा सकती हैं। शल्यक्रिया का उपाय उन लोगों के लिए आरक्षित है जिनमें इन उपायों का पालन करने से आराम न मिलता हो। लगभग आधे लोगों को, उनके जीवन काल में किसी न किसी समय बवासीर की समस्या होती है। परिणाम आमतौर पर अच्छे रहते हैं।

वर्गीकरण एवं बाह्य साधन

बवासीर या पाइल्स एक ख़तरनाक बीमारी है। बवासीर 2 प्रकार की होती है। आम भाषा में इसको ख़ूँनी और बादी बवासीर के नाम से जाना जाता है। कही पर इसे महेशी के नाम से जाना जाता है।
खूनी बवासीर : खूनी बवासीर में किसी प्रकार की तकलीफ नही होती है केवल खून आता है। पहले पखाने में लगके, फिर टपक के, फिर पिचकारी की तरह से सिफॅ खून आने लगता है। इसके अन्दर मस्सा होता है। जो कि अन्दर की तरफ होता है फिर बाद में बाहर आने लगता है। मल के बाद अपने से अन्दर चला जाता है। पुराना होने पर बाहर आने पर हाथ से दबाने पर ही अन्दर जाता है। आखिरी स्टेज में हाथ से दबाने पर भी अन्दर नही जाता है।
बादी बवासीर : बादी बवासीर रहने पर पेट खराब रहता है। कब्ज बना रहता है। गैस बनती है। बवासीर की वजह से पेट बराबर खराब रहता है। न कि पेट गड़बड़ की वजह से बवासीर होती है। इसमें जलन, दर्द, खुजली, शरीर मै बेचैनी, काम में मन न लगना इत्यादि। मल कड़ा होने पर इसमें खून भी आ सकता है। इसमें मस्सा अन्दर होता है। मस्सा अन्दर होने की वजह से पखाने का रास्ता छोटा पड़ता है और वहाँ घाव हो जाता है उसे डाक्टर अपनी जुबान में फिशर भी कहते हें। जिससे असहाय जलन और पीडा होती है। बवासीर बहुत पुराना होने पर भगन्दर हो जाता है। जिसे अंग्रेजी में फिश्चुला कहते हें। भगन्दर में मल के रास्ते के बगल से एक छेद हो जाता है जो पखाने की नली में चला जाता है। और फोड़े की शक्ल में फटता, बहता और सूखता रहता है। कुछ दिन बाद इसी रास्ते से पखाना भी आने लगता है। बवासीर, भगन्दर की आखिरी स्टेज होने पर यह कैंसर का रूप ले लेता है। जिसको रेक्टम कैंसर कहते हैं। जो कि जानलेवा साबित होता है।

कारण

कुछ व्यक्तियों में यह रोग पीढ़ी दर पीढ़ी पाया जाता है। अत: अनुवांशिकता इस रोग का एक कारण हो सकता है। जिन व्यक्तियों को अपने रोजगार की वजह से घंटों खड़े रहना पड़ता हो, जैसे बस कंडक्टर, ट्रॉफिक पुलिस, पोस्टमैन या जिन्हें भारी वजन उठाने पड़ते हों,- जैसे कुली, मजदूर, भारोत्तलक वगैरह, उनमें इस बीमारी से पीडि़त होने की संभावना अधिक होती है। कब्ज भी बवासीर को जन्म देती है, कब्ज की वजह से मल सूखा और कठोर हो जाता है जिसकी वजह से उसका निकास आसानी से नहीं हो पाता मलत्याग के वक्त रोगी को काफी वक्त तक पखाने में उकडू बैठे रहना पड़ता है, जिससे रक्त वाहनियों पर जोर पड़ता है और वह फूलकर लटक जाती हैं। बवासीर गुदा के कैंसर की वजह से या मूत्र मार्ग में रूकावट की वजह से या गर्भावस्था में भी हो सकता है।

उपचार

रोग निदान के पश्चात प्रारंभिक अवस्था में कुछ घरेलू उपायों द्वारा रोग की तकलीफों पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है। सबसे पहले कब्ज को दूर कर मल त्याग को सामान्य और नियमित करना आवश्यक है। इसके लिये तरल पदार्थों, हरी सब्जियों एवं फलों का बहुतायात में सेवन करें। तली हुई चीजें, मिर्च-मसालों युक्त गरिष्ठ भोजन न करें। रात में सोते समय एक गिलास पानी में इसबगोल की भूसी के दो चम्मच डालकर पीने से भी लाभ होता है। गुदा के भीतर रात के सोने से पहले और सुबह मल त्याग के पूर्व दवायुक्त बत्ती या क्रीम का प्रवेश भी मल निकास को सुगम करता है। गुदा के बाहर लटके और सूजे हुए मस्सों पर ग्लिसरीन और मैग्नेशियम सल्फेट के मिश्रण का लेप लगाकर पट्टी बांधने से भी लाभ होता है। मलत्याग के पश्चात गुदा के आसपास की अच्छी तरह सफाई और गर्म पानी का सेंक करना भी फायदेमंद होता है। यदि उपरोक्त उपायों के पश्चात भी रक्त स्राव होता है तो चिकित्सक से सलाह लें। इन मस्सों को हटाने के लिये कई विधियां उपलब्ध है। मस्सों में इंजेक्शन द्वारा ऐसी दवा का प्रवेश जिससे मस्से सूख जायें। मस्सों पर एक विशेष उपकरण द्वारा रबर के छल्ले चढ़ा दिये जाते हैं, जो मस्सों का रक्त प्रवाह अवरूध्द कर उन्हें सुखाकर निकाल देते हैं। एक अन्य उपकरण द्वारा मस्सों को बर्फ में परिवर्तित कर नष्ट किया जाता है। शल्यक्रिया द्वारा मस्सों को काटकर निकाल दिया जाता है।

Tuesday 7 July 2015

भगन्दर : पस्त होने की जरूरत नहीं


भगन्दर गुदा क्षेत्र में होने वाली एक ऐसी बीमारी है जिसमें गुदा द्वार के आस पास एक फुंसी या फोड़ा जैसा बन जाता है जो एक पाइपनुमा रास्ता बनाता हुआ गुदामार्ग या मलाशय में खुलता है। शल्य चिकित्सा के प्राचीन भारत के आचार्य सुश्रुत ने भगन्दर रोग की गणना आठ ऐसे रोगों में की है जिन्हें कठिनाई से ठीक किया जा सकता है। इन आठ रोगों को उन्होंने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ सुश्रुत संहिता में 'अष्ठ महागदÓ कहा है।

भगन्दर कैसे बनता है?

गुदा-नलिका जो कि एक व्यस्क मानव में लगभग 4 से.मी. लम्बी होती है, के अन्दर कुछ ग्रंथियां होती हैं व इन्ही के पास कुछ सूक्ष्म गड्ढे जैसे होते है जिन्हें एनल क्रिप्ट कहते हैं; ऐसा माना जाता है कि इन क्रिप्ट में स्थानीय संक्रमण के कारण स्थानिक शोथ हो जाता है जो धीरे धीरे बढ़कर एक फुंसी या फोड़े के रूप में गुदा द्वार के आस पास किसी भी जगह दिखाई देता है। यह अपने आप फूट जाता है। गुदा के पास की त्वचा के जिस बिंदु पर यह फूटता है, उसे भगन्दर की बाहरी ओपनिंग कहते हैं।
भगन्दर के बारे में विशेष बात यह है कि अधिकाँश लोग इसे एक साधारण फोड़ा या बालतोड़ समझकर टालते रहते हैं, परन्तु वास्तविकता यह है कि जहाँ साधारण फुंसी या बालतोड़ पसीने की ग्रंथियों के इन्फेक्शन के कारण होता है, जो कि त्वचा में स्थित होती हैं; वहीँ भगन्दर की शुरुआत गुदा के अन्दर से होती है तथा इसका इन्फेक्शन एक पाइपनुमा रास्ता बनाता हुआ बाहर की ओर खुलता है। कभी कभी भगन्दर का फोड़ा तो बनता है, परन्तु वो बाहर अपने आप नहीं फूटता है। ऐसी अवस्था में सूजन काफी होती है और दर्द भी काफी होता है।

भगन्दर के लक्षण

  • गुदा के आस पास एक फुंसी या फोड़े का निकलना जिससे रुक-रुक कर मवाद (पस) निकलता है
  • कभी कभी इस फुंसी/फोड़े से गैस या मल भी निकलता है।
  • प्रभावित क्षेत्र में दर्द का होना
  • प्रभावित क्षेत्र में व आस पास खुजली होना
  • पीडि़त रोगी के मवाद के कारण कपडे अक्सर गंदे हो जाते हैं।

भगन्दर प्रकार

आचार्य सुश्रुत ने भगन्दर पीडिका और रास्ते की आकृति व वात पित्त कफ़ दोषों के अनुसार भगन्दर के निम्न 5 भेद बताएं हैं;
    शतपोनक
    उष्ट्रग्रीव
    परिस्रावी
    शम्बुकावृत्त
    उन्मार्गी
आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के अनुसार भी फिश्चुला का कई प्रकार से वर्गीकरण किया गया है परन्तु चिकित्सा की दृष्टि से दो प्रकार का वर्गीकरण उपयोगी है;
लो-एनल : चिकित्सा की द्रष्टि से सरल माना जाता है।
हाई-एनल : चिकित्सा की दृष्टि से कठिन माना जाता है।

भगन्दर का निदान

चिकित्सक स्थानिक परीक्षण द्वारा भगन्दर का चेक-अप करते हैं तथा एक विशेष यन्त्र एषनी के द्वारा भगन्दर के रास्ते का पता किया जाता है।
आजकल एक विशेष एक्स रे जिसे फिस्टुलोग्राम कहते है, की सहायता से भगन्दर के ट्रैक का पता किया जाता है। इसके अतिरिक्त कभी-कभी एमआरआइ की सलाह भी चिकित्सक
देते हैं।

आयुर्वेद क्षार सूत्र चिकित्सा

आयुर्वेद में एक विशेष शल्य प्रक्रिया जिसे क्षार सूत्र चिकित्सा कहते हैं, के द्वारा भगन्दर पूर्ण रूप से ठीक हो जाता है। इस विधि में एक औषधियुक्त सूत्र (धागे) को भगन्दर के ट्रैक में चिकित्सक द्वारा एक विशेष तकनीक से स्थापित कर दिया जाता है। क्षार सूत्र पर लगी औषधियां भगन्दर के ट्रैक को साफ़ करती हैं व एक नियंत्रित गति से इसे धीरे धीरे काटती हैं। इस विधि में चिकित्सक को प्रति सप्ताह पुराने सूत्र के स्थान पर नया सूत्र रखते है।

कारण

भगंदर होने के कई कारण हो सकते है। कुछ प्रमुख कारण निम्न प्रकार है-
  •     गुदामार्ग की अस्वच्छता।
  •     लगातार लम्बे समय तक कब्ज बने रहना।
  •     अत्यधिक साइकिल या घोड़े की सवारी करना।
  •     बहुत अधिक समय तक कठोर, ठंडे गीले स्थान पर बैठना।
  •     गुदामैथुन की प्रवृत्ति।
  •     मलद्वार के पास उपस्थित कृमियों के उपद्रव के कारण।
  •     गुदा में खुजली होने पर उसे नाखून आदि से खुरच देने के कारण बने घाव के फलस्वरूप।
  •     गुदा में आघात लगने या कट - फट जाने पर।
  •     गुदा मार्ग पर फोड़ा-फुंसी हों जाने पर।
  •     गुदा मार्ग से किसी नुकीले वस्तु के प्रवेश कराने के उपरांत बने घाव से।
  •     आयुर्वेदानुसार जब किसी भी कारण से वात और कफ प्रकुपित हो जाता है तो इस रोग के उत्पत्ति होती है।