Thursday 26 February 2015

बीते कल से सीखिए सेहतमंद रहिए


आज पहले की तुलना में न सिर्फ बीमारियां बढ़ रही हैं बल्कि कौन-सी उम्र में क्या बीमारी होगी, इसका फर्क भी मिट रहा है। इसके लिए काफी हद तक हमारी जीवनशैली और खानपान में आ रहा बदलाव जिम्मेदार है। कैसे अपने बीते कल से सीखकर हम अपना आज सेहतमंद बना सकते हैं, जानें...
आज आठ साल का बच्चा शुगर का मरीज है...छह महीने की बच्ची कैंसर से जूझ रही है..तीस साल की महिला जोड़ों के दर्द से परेशान है...कभी सोचा है कि कल ऐसा क्यों नहीं था? कारण एकदम साफ है। समय की अंधी दौड़ में भागते-भागते हम पीछे मुड़कर देखना और सोचना भूल गए हैं। अगर हम ऐसा करते तो यकीनन जान पाते कि हमारी लगभग हर चीज में औषधीय गुण छिपे हैं। जरूरत है तो सिर्फ उस ओर रुख करने की। तो चलिए गौर करते हैं कुछ ऐसे ही बिंदुओं पर...

मोटा अनाज है जरूरी

क्या कभी सोचा है कि हमारे दादा-दादी के जमाने में ये मल्टीग्रेन आटा, मसाला ओट्स सरीखी चीजें नहीं होती थीं, फिर भी वो हमसे ज्यादा फिट कैसे रहते थे? आखिर क्यों हमें या हमारे अपनों को छोटी-सी उम्र में हाई बीपी, शुगर, कैंसर आदि बीमारियों से दो-चार होना पड़ रहा है? हमारी खुराक में शामिल अनाज से कैल्शियम, आयरन, फाइबर वगैरह दूर हो गए हैं। मौसमी फसल बाजरा, ज्वार आदि की जगह गेहूं और चावल ने ले ली है। नतीजा मोटापा, हाई ब्लड प्रेशर, शुगर तेजी से बढ़ रहा है। इस बाबत न्यूट्रीशनिस्ट बताते हैं कि पहले लोग मोटा अनाज यानी बाजरा, ज्वार, मकई आदि के आटे का प्रयोग मौसम के हिसाब से करते थे। ये अनाज कैल्शियम, आयरन, फाइबर, माइक्रो मिनरल के स्रोत हैं। पॉलिश वाले चमकदार चावल की जगह लोग सावां चावल सरीखे सुपाच्य चावल का प्रयोग करते थे।

मसालों में छिपी है दवा

छींक आने पर दादी के हल्दी वाले दूध के नुस्खे से तो अब वैज्ञानिक भी इत्तफाक रखते हैं। हल्दी में बहुत सारे गुण हैं। यह खून साफ करती है, सर्दी-जुकाम में राहत देती है। हल्दी कैंसर प्रतिरोधक के रूप में भी काम करती है। आपकी रसोई में इसके आलावा रोग प्रतिरोधक क्षमता में इजाफा करने वाले और भी कई मसाले हैं। इनका इस्तेमाल आप रोज करती हैं। जैसे जीरा हमारे पाचन तंत्र को ठीक रखता है, काली मिर्च सांस संबंधी समस्याओं में कारगर होती है, मेथी मधुमेह को नियंत्रित करती है। अगर हम सिल और मिक्सी में पिसे मसालों की तुलना करें तो उसमें भी हमारा पुराना तरीका बेहतर साबित होता है। सिल में पिसा मसाला या चटनी न सिर्फ ज्यादा स्वादिष्ट होती है, बल्कि उसमें बट्टे से होने वाले घर्षण के कारण मसालों के पोषक तत्व पर भी असर नहीं पड़ता, जबकि मिक्सी में मसालों के पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं।

गुड़ है अच्छा

गुड़ की मिठाई-कभी कल्पना की है, नहीं तो करके देखिए। सेहत और स्वाद दोनों ही मिल सकेगा। गुड़ गन्ने के रस को पकाकर बनाया जाता है। इसमें आयरन, कैल्शियम, फास्फोरस, निकल सरीखे कई पोषक तत्व की भरपूर मात्रा होती है। गुड़ हिमोग्लोबिन का अच्छा स्त्रोत है, नर्वस सिस्टम को मजबूत करता है, पाचनतंत्र ठीक रखता है और खून को साफ करता है। जबकि साफ-सुथरी सफेद दिखने वाली चीनी हमें सिर्फ और सिर्फ कैलोरी देती है। नतीजा मोटापा, हाई ब्लड प्रेशर, हाई शुगर।

देसी है बेहतर

मिट्टी की सोंधी-सी महक। जिसने भी वो दौर देखा है वह हमेशा उसे याद करता है। विज्ञान भी मान चुका है कि मिट्टी के बर्तन में पके खाने में पोषक तत्व ज्यादा मात्रा में होते हैं। हमारे किचन में लोहे के तवे और कड़ाही की जगह नॉनस्टिक पैन ले ली है पर, असलियत यह है कि जल्द खाना बनाने के चक्कर में हम बीमारी को न्योता दे रहे हैं।

Tuesday 24 February 2015

मेटाबोलिक डिसऑर्डर नजरअंदाज न करें


क्या आपके शरीर में पोषक तत्व उचित मात्रा में बन रहे हैं? क्या आहार का पोषक तत्व में परिवर्तन सही तरह से हो पा रहा है? कहीं आपके शरीर में शर्करा अधिक या इन्सुलिन कम तो नहीं हो रही? क्या प्रोटीन उचित मात्रा में बन रहा है? यदि इस तरह की कुछ भी परेशानी है तो उसे हल्के में न लें, क्योंकि यह मेटाबोलिक डिसऑर्डर यानी चयापचय विकार के कारण हो सकता है।
हमारा शरीर सही तरह से काम करे, इसके लिए जरूरी है कि खाया गया आहार सही तरीके से ऊर्जा में बदले। शरीर द्वारा आहार को ऊर्जा में बदलने की जो पूरी प्रक्रिया की जाती है, उसे मेटाबोलिज्म यानी चयापचय प्रक्रिया कहते हैं।
हमारा आहार प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और वसा से युक्त होता है। हमारे पाचन तंत्र में कुछ ऐसे रसायन होते हैं, जो खाने को शरीर के भीतर ही शर्करा और एसिड में बदलते हैं। शरीर यह ईंधन या तो तुरंत इस्तेमाल कर लेता है या फिर इस ऊर्जा को शरीर के ऊतकों, जिगर, मांसपेशियों और शरीर में वसा के रूप में जमा कर लेता है। जब इस प्रक्रिया को असामान्य रासायनिक प्रतिक्रियाएं बाधित करने लगती हैं तो चयापचय विकार पनपने लगता है। ऐसा होने पर व्यक्ति के स्वस्थ रहने के लिए आवश्यक तत्व या तो जरूरत से अधिक मात्रा में बनने लगते हैं या अत्यंत कम मात्रा में बनते हैं।

क्या हैं इसके दुष्परिणाम

हमारे शरीर में होने वाली चयापचय प्रक्रिया के बिगडऩे से विभिन्न तरह के रोगों से ग्रस्त होने की आशंका बढ़ जाती है। यही नहीं, अलग-अलग उम्र में चयापचय विकार से होने वाले रोग भी भिन्न हो सकते हैं। इन रोगों के लक्षण, कारण और इलाज भी रोग व उसकी स्थिति पर ही निर्भर करते हैं। हालांकि चयापचय प्रक्रिया के सुचारु रूप से कार्य न करने से होने वाली अधिकांश बीमारियों के इलाज संभव हैं।
कौन-कौन सी बीमारियां हो सकती हैं
  • डायबिटीज
  • थायराइड की परेशानी
  • यूरिक एसिड बढऩा
  • लिपिड विकार
  • गुर्दे और अग्नाशय से जुड़ी स्वास्थ्य समस्याएं

बचाव के लिए क्या करें

  • स्वस्थ जीवनशैली अपनाएं। सोने-जागने का समय निर्धारित करें और पूरी नींद लें। नियमित व्यायाम या वॉकिंग/जॉगिंग करें।
  • संतुलित आहार लें। अपने लिए जरूरी संतुलित आहार के बारे में आप स्वयं तय न कर पा रहे हों तो एक बार डायटीशियन से मिल कर जरूरी सलाह ले लें।
  • सेहत संबंधी परेशानियों को नजरअंदाज न करें और डॉक्टर से मिल कर जरूरी उपचार कराएं।
  • आपको डायबिटीज, बीपी जैसी कोई स्वास्थ्य संबंधी स्थाई समस्या है तो उसके लिए ली जाने वाली दवाओं को कभी नजरअंदाज न करें।

Monday 23 February 2015

कैसे बनाएं त्वचा को रेशमी और कोमल


सुंदरता में सबसे ज्यादा योगदान होता है साफ और चमचमाती त्वचा का। हम सभी मुलायम और चिकनी त्वचा के साथ पैदा होते हैं, पर वक्त गुजरने के साथ हमारी त्वचा का टेक्सचर खराब हो जाता है, खास तौर पर चेहरे की त्वचा पर असर जल्दी आता है। चेहरे की त्वचा की खूबसूरती को बनाए रखने के लिए क्या-क्या करें, आइये जानते हैं-

त्वचा की समस्याएं

चेहरे की त्वचा की सबसे आम समस्या है-मुंहासे। युवावस्था में यह समस्या सबसे ज्यादा होती है। वक्त बीतने के साथ मुंहासे तो चले जाते हैं, लेकिन निशान छोड़ जाते हैं। इसलिए उपचार से ज्यादा जरूरी है कि उन्हें होने से रोका जाए। त्वचा की सफाई का विशेष ध्यान रखा जाए, अच्छी कंपनी के प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करें और कॉस्मेटिक का उपयोग कम से कम करें। 'जिन लोगों में मुंहासों की समस्या अधिक होती है उनके शरीर में इंसुलिन का स्त्राव औसत से अधिक होता है। इसके लिए जरूरी है कि अपने भोजन में कार्बोहाइट्रेट और डेयरी उत्पादों का सेवन कम करें।Ó आंखों के आसपास मौजूद डार्क सर्कल चेहरे की सुंदरता में ग्रहण लगा देते हैं। यहां की त्वचा बहुत पतली और नाजुक होती है, इसलिए जल्दी ही काली पड़ जाती है। यहां झुर्रियां भी अधिक पड़ती हैं। इस स्थान की त्वचा की सुंदरता और सुरक्षा के लिए जरूरी है कि पर्याप्त रोशनी में पढ़ा जाए, संतुलित भोजन और पर्याप्त नींद ली जाए।

त्वचा की सेहत का रखें ख्याल

चेहरे की त्वचा बहुत नाजुक होती है। दाग-धब्बे दूर करने और चेहरे को निखारने के लिए जो प्रोडक्ट बाजार में मिलते हैं। वह पिगमेंटेशन को दूर नहीं करते, सिर्फ त्वचा को ब्लीच कर देते हैं। पहले अपनी त्वचा के प्रकार और उसकी समस्याओं को समझें उसके बाद ही कॉस्मेटिक खरीदें। हर्बल प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल ज्यादा करें।
कई अध्ययनों में यह तथ्य उभर कर आया है कि व्यायाम और योग से शरीर में रक्त का संचरण बढ़ता है, तनाव कम होता है, जिससे त्वचा में निखार आता है और त्वचा की कई समस्याएं दूर हो जाती हैं। डायटीशियन सुहासिनी अग्रवाल कहती हैं, 'त्वचा की रंगत और स्वास्थ्य के लिए जरूरी है कि भोजन में हरी पत्तेदार सब्जियों, मौसमी फलों, मेवों और दही को शामिल करें और जंक फूड, सॉफ्ट ड्रिंक, अधिक तैलीय और मसालेदार भोजन से बचें। ग्रीन टी का सेवन बहुत लाभदायक होता है, क्योंकि इसमें एंटीऑक्ससीडेंट होते हैं। जो सुंदर त्वचा के लिए वरदान हैं।Ó पानी और ताजे फलों का जूस त्वचा की नमी बनाए रखने में मददगार है। सुबह एक गिलास गुनगुने पानी में एक नीबू निचोड़कर पीने से पेट साफ रहता है, टॉक्सिन शरीर से बाहर निकल जाते हैं।

Sunday 22 February 2015

कॉफी के दीवाने ही समझे कॉफी की दीवानगी


कॉफी सिर्फ एक बेवरेज नहीं है, बल्कि एक लाइफस्टाइल बन गई है। आप सुबह खुद को जगाने के लिए, दिन भर नींद भगाने के लिए और किसी दोस्त या समवन स्पेशल से मुलाकात का बहाना बनाने के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं। कुल मिलाकर, हर रोज, हर सिचुएशन में आप कॉफी को याद करते हैं।
कॉफी, जिसके दीवानों की गिनती लगातार बढ़ती ही जा रही है, आसानी से उपलब्ध होने वाली चीज है। दुनिया के लगभग हर कोने में कॉफी पी जाती है। कॉफी लवर्स की अपनी एक जमात है। कुछ ऐसी बातें भी हैं जो सिर्फ कॉफी के दीवाने ही समझ सकते हैं। अगर आप भी उन्हीं दीवानों में से हैं तो आइये जानें वो कौन सी बातें हैं जो आपके सिवा और कोई नहीं समझ पाता।

दिन की शुरुआत बिना कॉफी के? न बाबा न!

कुछ लोग ऐसे होते हैं जो अपनी सुबह की शुरुआत सूरज को नहीं बल्कि कॉफी के मग को देखकर करते हैं। कॉफी मग उनकी सुबह का अलार्म होता है, जो उन्हें जगाता है। कॉफी की वो भीनी-भीनी खुशबू जब उनके पास पहुंचती है तो वो नींद और आलस छोड़ कर खुद-ब-खुद उठ कर बैठ जाते हैं।

सारे ब्रांड और टेस्ट की जानकारी

मार्केट में कितने ब्रांड की कॉफी मिलती है आपको ये जानना हो तो कॉफी के किसी दीवाने से पूछिये। वो आपको मार्केट में अवेलेबल कॉफी ब्रांड के नाम और टाइप बताने के साथ-साथ उनकी रेटिंग भी आसानी से बता देंगे। यानी आप कौन सी कॉफी लें और कौन सी नहीं, इस बात की सलाह आपको कॉफी लवर से बेहतर कोई नहीं दे पाएगा।

ये लत नहीं, लगाव है प्यारे!

आपके घर वाले, गर्लफ्रेंड, कलीग और फ्रेंड्स सभी इस बात के लिए आपके पीछे पड़े रहते हैं कि आपको कॉफी की लत लग गई है। आपके जानने वाले लोग अक्सर आपको 'कॉफी पीने के नुकसानÓ नाम के आर्टिकल में टैग करते रहते हैं। लेकिन आपकी नजर में ये सब नादान हैं! दरअसल, सब आपके कॉफी के लगाव को कॉफी की लत समझ बैठे हैं।

क्या है आपका टेस्ट

आप अपने किसी भी दोस्त को लेकर अपने एरिया के किसी भी कैफे में चले जाएं, आपकी शक्ल देखते ही वेटर आपकी पसंद की कॉफी का ऑर्डर ले आएगा। आप अपनी कॉफी के स्टाइल के लिए इतने पर्टिक्यूलर हैं कि कैफे में जो शख्स आपका ऑर्डर तैयार करता है उसे सब याद हो चुका है कि आपकी कॉफी कितनी हार्ड, कितनी शुगर वाली और उसमें कितनी क्रीम होती है।

कॉफी मग की भरमार

आपका कॉफी का शौक आपके दोस्तों और जानने वालों के लिए एक मुश्किल को आसान कर देता है। दरअसल, आपको बर्थडे, फेयरवेल पार्टी या किसी भी खास मौके पर क्या तोहफा देना है, इस बात पर किसी को ज्यादा सोचना नहीं पड़ता। सब आपको अलग-अलग तरह के कॉफी मग बतौर तोहफे में दे देते हैं, और आप भी इस तोहफे से काफी खुश हो जाते हैं। इस वजह से आपके पास कॉफी मग का एक इतना बड़ा कलेक्शन है कि आप लगातार दो हफ्ते बिना कॉफी मग रिपीट किये कॉफी पी सकते हैं।

जिन्हें कॉफी पसंद नहीं, वो आपको पसंद नहीं

अक्सर आपका सामना उन लोगों से होता है, जो आपसे कहते हैं, 'मुझे कॉफी पसंद नहीं!Ó ऐसे लोग जिन्हें कॉफी पसंद नहीं आती, आप भी उनको पसंद नहीं करते। आप इन लोगों के ऊपर भरोसा कतई नहीं कर पाते। आपको हमेशा ये बात हैरान करती है कि कॉफी कैसे किसी को पसंद नहीं आ सकी। ये थीं कुछ ऐसी बातें जिन्हें हर कॉफी का शौकीन आसानी से समझ सकता है।

Saturday 21 February 2015

बतायें जरूरी बातें जब बच्चा हो घर पर अकेला


वर्तमान एकल परिवार की संख्या बढ़ रही है और ज्यादातर घरों में पति-पत्नी दोनों काम करते हैं। ऐसे में घर में तीसरा मेहमान यानी बच्चा होने के बाद प्रोफेशनल लाइफ प्रभावित होती है। लेकिन धीरे-धीरे आपका बच्चा बड़ा होता है और आपको लगता है अकेले बच्चे को घर पर छोड़कर आप अपने काम से बाहर जा सकते हैं।
बच्चे को घर पर अकेले छोड़कर जाना किसी मुसीबत को बुलाने से कम नहीं है, लेकिन अगर आपको लगता है कि आपका बच्चा समझदार हो गया है और वह अकेले घर पर रह सकता है तो कुछ जरूरी बातें बताकर अकेले उसे घर पर रख सकते हैं और अपने काम के लिए बाहर जा सकते हैं। तो बच्चे को घर पर अकेला छोडऩे से पहले उसे कुछ जरूरी बातें बताकर जायें।

इमर्जेंसी नंबर की जानकारी

बच्चे को घर पर अकेला छोड़ते समय सभी जरूरी नंबरों की एक लिस्ट रख कर जाइये। इस लिस्ट में आपका नंबंर होने के अलावा सारे इमरजेंसी नंबर होने चाहिए जिससे जरुरत के समय आपके बच्चे आपको फोन मिलाकर स्थिति की जानकारी दे सकें। बच्चों को इमरजेंसी नंबरों के बारे में अच्छे से जानकारी दीजिए और उन्हें उसकी उपयोगिता की जानकारी दीजिए।

कमरे में लॉक न करें

अगर आप बाहर जा रहे हैं तो बच्चे को कमरे में लॉक करके बिलकुल भी न जायें। अगर आप बाहर हैं और बच्चे को घर में लॉक करके जा रहे हैं और आपके पीछे कोई दुर्घटना हो गई तो बच्चे के लिए मुसीबत हो सकता है। अगर घर में आग लग गई तो वह जल सकता है, इसलिए बच्चे को कभी लॉक करके न जायें।
बच्चों को कुछ जानकारी दें
बच्चों को घर में बंद करके जाने के बजाय उन्हें कुछ जानकारी दीजिए, उन्हें बताइये कि क्या करना सही है क्या गलत है। आपको अपने बच्चों को बताना चाहिये कि उन्हें घर से बाहर बेवजह नहीं निकलना चाहिये और इसके साथ जाते समय अपने पड़ोसियों को भी सूचित कर दें।
दरवाजा बंद रखना सिखाइये
जब मां-बाप घर में नहीं होते, तो चोरी की घटना होना आम बात होती है। घर पर बच्चों को अकेला छोडने से पहले उन्हें सिखाएं कि खुद को अंदर कैसे बंद रखा जाता है। दरवाजा कैस लॉक करना है और उसे कैसे खोलना है। ये सारी बातों को उनको सिखाएं।

किचन है खतरनाक

अगर आप बच्चे को घर में अकेला छोड़ रहे हैं तो किचन से उन्हें दूर रखिये। घर छोड़ते वक्त किचन बंद कर के जाना चाहिये। अगर बच्चों के लिए खाना बाहर रखना संभव है, तो रख दें। साथ ही गैस की वाल्व बंद करके ही जाएं। चाकू, छूरी को अंदर लॉक कर दें वरना बच्चे उसे खिलौना समझ कर खेलने लगते हैं और इससे चोटिल हो सकते हैं।

टीवी टाइम

बच्चे घर में होते हैं तो अपने मन की मर्जी चलाना चाहते हैं, उनकी नजर टीवी पर पहले पड़ती है। वह टीवी पर हर वह चीज देखना चाहते हैं, जो आप उन्हें देखने से मना करते हैं। इसलिए बच्चे को बता कर जायें कि उसे टीवी कब देखना चाहिए, और ऐसे चैनल लॉक करके जाइये जिससे बच्चे को गंदी शिक्षा और जानकारी मिलती हो। घर से पहले पूरी तरह सुनिश्चित कीजिए कि आपका बच्चा घर में पूरी तरह सुरक्षित है या नहीं। उसकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के बाद ही उसे घर में अकेला छोड़ें।

Friday 20 February 2015

धूप सेकने से बढती है सेक्स ड्राइव की क्षमता


धूप से न सिर्फ विटामिन डी मिलता है बल्कि इससे सेक्स ड्राइव में भी इजाफा होता है। एक शोध में पता चला है कि धूप सेक्स ड्राइव के लिए जिम्मेदार टेस्टोस्टेरोन हार्मोन के अधिक बहाव में इजाफा करता है। प्राप्त जानकारी के अनुसार ऑस्ट्रिया की मेडिकल यूनिवर्सिटी में हुई एक रिसर्च के अनुसार धूप सेकने से पुरूषों के सेक्स ड्राइव में इजाफा होता है।
शोध में पता लगा कि जिन लोगों के खून में विटामिन डी की मात्रा अधिक थी, उनमें सेक्सुअल हार्मोन टेस्टेस्टेरोन की मात्रा भी ज्यादा पायी गई। शोधकर्ताओं के अनुसार एक घंटे की धूप सेकने से टेस्टेस्टेरोन के स्तर में 69 प्रतिशत का इजाफा होता है।

Thursday 19 February 2015

दांत दर्द में पाएं राहत


दांत में कैविटी की शिकायत और दर्द होना आम है। लेकिन यदि दांत में होने वाला दर्द लंबे समय तक बना रहे तो यह परेशानी का कारण बन सकता है। दांतों के दर्द या फिर अन्य परेशानी होने में बहुत अंतर होता है।
दांत के दर्द में बहुत परेशानी होती है, इस दर्द के होने के कई कारण हो सकते हैं। कई बार कुछ गलत खाना भी दांत दर्द का कारण बन जाता है। दांतों की ठीक से सफाई न होने या कीड़ा लगने से भी दांतों में दर्द की समस्या हो जाती है। दांतों में संक्रमण भी दर्द का कारण हो सकता है। अक्सर लोग दांत दर्द होने पर एलोपैथिक दवाईयों का सेवन करते हैं, लेकिन इस दर्द से राहत के लिए कई अन्य घरेलू उपचार भी हो सकते हैं।
एलोपैथिक दवाओं का सेवन आपके लिए नुकसानदेह हो सकता है। ऐसे में इस समस्या से राहत पाने के लिए आपको घरेलू नुस्खों को अपनाना चाहिए। घरेलू नुस्खे नुकसानदेह नहीं होते और एलोपैथिक दवाओं के मुकाबले ज्यादा फायदेमंद होते हैं। इस लेख के जरिए हम आपको बताते हैं दांत दर्द में आराम देने वाले ऐसे ही कुछ घरेलू नुस्खों के बारे में।

सरसों का तेल

दांतों में दर्द की समस्या रहने पर आप नियमित रूप से सरसों के तेल में हल्दी और नमक मिलाकर अंगुली से दांतों पर रगड़ें, फायदा मिलेगा। यदि ज्यादा दर्द हो रहा है तो तुरंत राहत पाने के लिए 15 मिनट तक लगातार मालिश करें। यदि आपके दांत में दर्द नहीं भी है, तो सरसों के तेल और नमक की मालिश से आपके दांत हमेशा के लिए स्वस्थ रहेंगे।

हींग

हींद दांतों के दर्द से तुरंत राहत देती है। हींग को मौसंबी के रस में भिगोने के बाद दर्द वाले दांत के पास रखें। मौसंबी न होने पर आप हींग को नींबू के रस में भी डुबो सकती हैं। ऐसा करने से आपको कुछ देर बाद दांत दर्द में आराम मिलेगा।

बर्फ

बर्फ दर्द वाली जगह को सुन्न करने में मदद करता है। यदि आप दर्द वाले दांत पर कुछ समय के लिए बर्फ रखेंगे तो आपको राहत मिलेगी। यदि आपके दांत में खाली होने के कारण दर्द हो रहा है, तो बर्फ न रखें। ऐसे में बर्फ का टुकड़ा रखना ज्यादा परेशानी भरा हो सकता है।

लौंग

लौंग का सेवन या लौंग का तेल दांत दर्द में बहुत ही असरदार होता है। जिस दांत में दर्द हो रहा है, उस पर लौंग का तेल लगाने से वैक्टीरिया के असर को कम किया जा सकता है। दरअसल, दांतों में कई बार बैक्टीरिया जम जाते हैं और ये दर्द का कारण होता है।

प्याज

आमतौर पर सलाद के रूप में खाई जाने वाली प्याज एक अच्छे दर्द निवारक का भी काम करती है। दर्द होने पर प्याज का सेवन या प्याज का रस लगाने से राहत मिलती है। कच्ची प्याज के सेवन से मुंह घाव और बैक्टीरिया आदि खत्म हो जाते हैं।

लहसुन

लहसुन की एक कली को सेंधा नमक के साथ पीसकर दर्द वाले दांत में लगाने से दर्द में राहत मिलती है। यदि आप इसे पीस भी न सकें तो लहसुन की कली को दर्द वाले दांत के ऊपर रखने से आराम मिलेगा।

तंबाकू

अक्सर देखा जाता है कि जो लोग तंबाकू का सेवन करते हैं, उन्हें दांत दर्द की शिकायत कम होती है। तंबाकू में नमक मिलाकर इस पाउडर से रोजाना ब्रश करने से दांतों में दर्द की शिकायत नहीं रहती।

गर्म पानी से सेंक

यदि आप कोई प्रयोग नहीं करना चाहते, तो दर्द वाली जगह पर गर्म पानी के सेंक से आराम मिलेगा। आप चाहे तो गर्म पानी से गार्गल भी कर सकते हैं। गर्म पानी से भाप लेने से भी दांतों के दर्द को दूर करने में मदद मिलती है। गर्म पानी हल्का नमक डालना फायदेमंद रहेगा।

Wednesday 18 February 2015

जननांगों पर मस्से या दानें


जननांगों पर मस्से (जेनिटल वाटर्स) होने का कारण ह्यूमन पैपीलोमा-वायरस (एचपीवी) है। यह पूरे विश्व में सबसे आम पाया जाने वाला यौनसंचारित रोग है। आपके जननांगों (लिंग, योनि या गुदा) पर एचपीवी संक्रमण हो सकता है, इसके साथ-साथ यह आपके मुंह के अंदर और गले में भी हो सकता है।
एचपीवी से संक्रमित अधिकांश लोगों को इसका पता नहीं चलता क्योंकि उन्हें मस्से या दाने होने का पता नहीं होता। फिर भी संक्रमित व्यक्ति से यह दूसरों को लग सकता है।
जननांग पर हुए मस्सों का कोई इलाज नहीं है। या तो वे अपने-आप ठीक हो जाते हैं अथवा इन्हें दबाने के लिए आपको उपाय तलाशने होते हैं।

जननांग पर मस्से कैसे होते हैं?

असुरक्षित मुख, यौन और गुदा मैथुन करने से आपको जननांग पर मस्से हो सकते हैं। साथ ही यह विषाणु किसी ऐसे व्यक्ति के सेक्स ट्वाय का प्रयोग करने से भी आपको हो सकता है, जिसके जननांग पर मस्से तो नहीं हैं किंतु वह ह्यूमन पैपीलोमावायरस से संक्रमित है।
साथ-साथ नहाने, एक ही तौलिया, प्याले या चम्मच, कांटे आदि का प्रयोग करने से यह आपको नहीं लगता हैं, न तो यह तरण ताल (स्वीमिंग पूल) में तैरने या टॉयलेट सीट का प्रयोग करने से होता है।
जननांग पर होने वाले मस्सों (जेनाइटल वार्ट्स) के लक्षण क्या हैं?
जननांग पर होने वाले मस्सों से बचने के लिए आप निम्नलिखित उपाय कर सकते हैं-
1. टीके लगवाएं
2. जेनाइटल वार्ट्स, जिस विषाणु, ह्यूमन पैपीलोमा-वायरस (एचपीवी) के कारण होता है, उससे प्रतिरक्षा के लिए टीके उपलब्ध हैं।
ऐसे 40 प्रकार के एचपीवी जिनके कारण जेनिटल वार्ट्स होते हैं, इनमें से केवल 4 सबसे आम एचपीवी के खिलाफ ये टीके सुरक्षा प्रदान करते हैं। महिलाओं और लड़कियों के लिए दो टीके - सर्वारिक्स और गार्डासिल, उपलब्ध हैं। गार्डासिल सभी चार प्रकार के एचपीवी से सुरक्षा प्रदान करता है, इसकी तुलना में सर्वारिक्स केवल दो प्रकार के एचपीवी से सुरक्षा प्रदान करता है। पुरुषों और लड़कों के लिए केवल गार्डासिल उपलब्ध है। लड़कियां एवं लड़के दोनों ही इन टीकों को 9 से 26 वर्ष की उम्र के बीच लगवा सकते हैं।
3. हमेशा कंडोम का प्रयोग करें।
कंडोम का प्रयोग करने से आपको जेनिटल वार्ट्स होने या उनके फैलाने का जोखिम कम हो सकता है। हालांकि उनसे पूरी तरह जोखिम खत्म नहीं होता, क्योंकि जेनिटल वार्ट्स उन जगहों पर भी हो सकते हैं जो कंडोम से नहीं ढकी होती हैं।
4. कम साथियों के साथ यौन संबंध बनाएं।
आपको जेनिटल वार्ट्स होने का जोखिम उतना ही बढ़ता जाता है, जितने अधिक आपके यौन संबंध बनाने वाले साथी होते हैं- यौन संबंध बनाने वाले साथियों की संख्या के साथ-साथ यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि आपके पूरे जीवन काल में आपके कितने यौन संबंध बनाने वाले साथी रहे हैं।

Tuesday 17 February 2015

मौत भी दूर भागती है शिव के इस मंत्र से


महाशिवरात्रि पर विशेष

मौत भी दूर भागती है शिव के इस मंत्र से

भगवान शिव की उपासना करने से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है। यहां तक की मृत्यु को भी हराया जा सकता है। ऐसा ही मंत्र है महामृत्युंजय मंत्र। यह मंत्र पितृदोष, वास्तु दोष, कालसर्प दोष, शनि की साढ़ेसाती, ढैय्या आदि के दुष्प्रभावों को कम करता है। यदि कोई व्यक्ति बहुत अधिक बीमार है या मरणासन्न स्थिति में हो तो यह मंत्र सबसे अचूक उपाय है। महाशिवरात्रि के दिन यदि इस मंत्र का जप किया जाए तो साधक निरोगी होता है लंबी उम्र पाता है।

महामृत्युंजय मंत्र

ऊँ त्रयम्बकं यजामहे सुगंधिम पुष्टिवर्धनम
उर्वारुकमिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय मा मृतात

कैसे करें जप?


  • महाशिवरात्रि के दिन जल्दी उठकर साफ  वस्त्र पहनकर सबसे पहले भगवान शिव की पूजा करें।
  • भगवान शिव को बिल्व पत्र व भांग अर्पित करें।
  • इसके बाद एकांत में कुश के आसन पर बैठकर रुद्राक्ष की माला से इस मंत्र का जप करें।
  • महाशिवरात्रि के दिन कम से कम 21 माला जप अवश्य करें।
  • आप प्रतिदिन इस मंत्र का जप करना चाहें तो 5 माला जप करें।
  • यदि जप का समय, स्थान, आसन, तथा माला एक ही हो तो यह मंत्र शीघ्र ही सिद्ध हो जाता है।

शिवरात्रि का महत्व

शिवरात्रि का अर्थ है, शिवजी की रात्रि और यह भगवान शिवजी के सम्मान में मनायी जाती है। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का शिव ध्यानस्थ स्वरुप हैं। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में सिर्फ शिव ही व्याप्त हैं। यह ब्रह्माण्ड के प्रत्येक अणु में व्याप्त हैं। इनका कोई आकार या रूप नहीं हैं परन्तु यह सभी आकार या रूप में मौजूद हैं और करुणा से परिपूर्ण हैं। लिंग का अर्थ चिन्ह होता हैं और इस तरह इसका प्रयोग स्त्रीलिंग और पुल्लिंग के रूप में होने लगा। सम्पूर्ण चेतना की पहचान लिंग के रूप में होती है। तमिल भाषा में एक कहावत हैं 'अंबे शिवन, शिवन अंबेÓ जिसका अर्थ है शिव प्रेम हैं और प्रेम ही शिव है, सम्पूर्ण सृष्टि की आत्मा को ईश या शिव कहते हैं।
श्रद्धालु इस दिन रजस और तमस को संतुलन में लाने के लिए और सत्व (वह मौलिक गुण जिससे कृत्य सफल होते हैं) में बढ़ोत्तरी करने के लिए उपवास करते हैं। नम: शिवाय मंत्रोचारण की गूँज निरंतर होती रहती हैं। मंत्र उच्चारण वातावरण, मन और शरीर में पंच महाबूतों का संतुलन बनाता है।
इस शुभ उर्जा को पृथ्वी पर लाकर हमारे स्वयं को और समृद्ध बनाने के लिए पारंपरिक अनुष्ठान किये जाते हैं,परन्तु भक्ति भाव सबसे महत्वपूर्ण है। पर्यावरण और मन के पांच तत्वों में सामंजस्य लाने के लिए? नम: शिवाय का मंत्रोचारण किया जाता है।
सम्पूर्ण सृष्टि शिव का नृत्य है, सारी सृष्टि चेतना सिर्फ एक चेतना जो उस एक बीज, एक चेतना के नृत्य से सारे विश्व में लाखो हजारों प्रजातियाँ प्रकट हुई हैं। इसलिए यह असीमित सृष्टि शिव का नृत्य है 'शिव तांडवÓ।
वह चेतना जो परमानन्द, मासूम, सर्वव्यापी है और वैराग्य प्रदान करती है, वह शिव है। सारा विश्व जिस भोलेभाव और बुद्धिमत्ता की शुभ लय से चलता है वह शिव है। वे उर्जा के स्थिर और अनंत स्त्रोत्र हैं, वे स्वयं की अनंत अवस्था हैं, शिव सृष्टि के हर कण में समाएं हैं।
जैसे जल में स्पंज, रसगुल्ले में चाशनी, जब मन और शरीर शिव तत्व में तल्लीन होते है, तो छोटी छोटी इच्छाये बिना किसी प्रयास के पूर्ण हो जाती हैं, इसलिए व्यक्ति को बड़ी इच्छा रखनी चाहिए।
एक बार किसी ने प्रश्न किया शिवरात्रि ही क्यों? शिव दिन क्यों नहीं?
रात्रि का अर्थ वह जो आपको अपनी गोद में लेकर सुख और विश्राम प्रदान करे। रात्रि हर बार सुखदायक होती है, सभी गतिविधियां ठहर जाती हैं, सब कुछ स्थिर और शांतिपूर्ण हो जाता है, पर्यावरण शांत हो जाता है, शरीर
थकान के कारण निद्रा में चला जाता है। शिवरात्रि गहन विश्राम की अवस्था है। जब मन, बुद्धि और अहंकार दिव्यता की गोद में विश्राम करते हैं तो वह वास्तविक विश्राम है। यह दिन शरीर व मन की कार्य प्रणाली को विश्राम देने का उत्सव है।
वास्तव में रात्रि का एक और अर्थ भी है – वह जो तीन प्रकार की समस्या से विश्राम प्रदान करे वह रात्रि है। यह तीन बातें क्या हैं? शान्ति:, शान्ति:, शान्ति:। शरीर, मन और आत्मा की शांति, आध्यात्मिक, अधिभौतिक अदिदैविक। तीन प्रकार की शान्ति की आवश्यकता हैं, पहली भौतिक सुख, जब आपके आस पास गडबड़ी हो तो आप शान्ति से बैठे नहीं रह सकते। आपको आपके वातावरण, शरीर और मन में शान्ति चाहिये। तीसरी बात हैं आत्मा की शांति। आपके वातावरण में शांति हो सकती है, आप स्वस्थ शरीर का और कुछ हद तक मन की शान्ति का भी आनंद ले सकते है लेकिन यदि आत्मा बैचैन हैं तो कुछ भी सुख दायक नहीं लगता। इसलिए वह शान्ति भी आवश्यक है। इसलिए तीनों प्रकार की शान्ति की मौजूदगी से ही सम्पूर्ण शान्ति प्राप्त हो सकती है। एक के बिना अन्य अधूरे हैं।

Monday 16 February 2015

खूब खाएं दर्द भगाएं


पीरियड्स के दौरान असहनीय दर्द, थकावट और चिड़चिड़ापन आम बात है। भागदौड़ भरी दिनचर्या और असंतुलित भोजन के कारण यह समस्या और बढ़ जाती है। पीरियड्स के दौरान होने वाली परेशानियों को आप कम कर सकती हैं, बस इसके लिए आपको अपने खान-पान पर विशेष ध्यान देना होगा।

मसूर की दाल दूर करेगी थकावट

मसूर की दाल में कार्बोहाइड्रेड, प्रोटीन और फाइबर भरपूर मात्रा पाई जाती है। पीरियड के दौरान होने वाली थकावट से यह आपको काफी हद तक निजात दिला सकती है। यह आपके शरीर में होने वाली ऊर्जा की कमी को नियंत्रित करेगी। मसूर की दाल में ऐसा तत्व पाया जाता है जो मस्तिष्क को शांत रखने में सहायक होता है। मसूर की दाल से बने व्यंजनों को पीरियड्स के दौरान खाकर आप मन और मस्तिष्क दोनों से तरोताजा महसूस करेंगी।

खाएं आयरन से भरपूर खाना

एक वयस्क महिला को एक दिन में जितनी मात्रा में आयरन की जरूरत होती है, उतनी मात्रा में वह उसका सेवन नहीं कर पाती है। ऐसे में महिलाओं के शरीर में आयरन की कमी होना लाजिमी है। पीरियड्स के दौरान महिलाओं के शरीर में तेजी से रक्त की कमी होती है। नतीजा, कमजोरी और थकावट। वैसे तो महिलाओं को आयरनयुक्त खाना हमेशा खाना चाहिए, लेकिन पीरियड्स के दौरान इसका नियमित सेवन आपको अतिरिक्त ऊर्जा प्रदान करेगा। पीरियड्स के दौरान महिलाओं के लिए अंकुरित चना और गुड़ का नाश्ता अच्छा विकल्प हो सकता है।

ब्राउन राइस से पाएं अतिरिक्त पोषण

ब्राउन राइस कार्बोहाइड्रेड का अच्छा स्रोत माना जाता है। इसमें कॉम्पलेक्स कार्बोहाइड्रेड की भरपूर मात्रा होने के कारण यह धीरे-धीरे पचता है। यानी एक कटोरी ब्राउन राइस से बने व्यंजन खाने से आपके शरीर में दिनभर ऊर्जा बनी रहती है। यह मैग्नीशियम और पोटैशियम का भी अच्छा स्रोत होता है। यह पीरियड्स के दौरान शरीर में होने वाली पोषक तत्वों की कमी को पूरा करने में मददगार होता है।

सलाद से पानी की मात्रा होगी संतुलित

भारतीय थाली में लोग सलाद को भले ही ज्यादा तरजीह नहीं देते हैं, लेकिन यह आपको उन दिनों में काफी राहत पहुंचा सकता है। सलाद में पानी की मात्रा काफी होती है। इससे आपके शरीर में पानी की कमी पूरी होगी। सलाद में खीरा, गाजर और चुकंदर को शामिल करें। सलाद आपके खाने के स्वाद को तो बढ़ाएगा ही, आपको दिन भर ऊर्जा भी प्रदान करेगा।

पानी में है सेहत का खजाना

पीरियड्स के दौरान बार-बार पानी पिएं। प्यास न लगने पर भी दो घूंट पानी पीने में कोई बुराई नहीं है। पानी के सेवन से थकावट कम होगी और त्वचा पीरियड्स के दिनों में भी चमकती-दमकती नजर आएगी। पीरियड्स के दौरान पेट और सिर में होने वाले दर्द से भी ढेर सारा पानी पीकर आप बच सकती हैं। रात में सोने के पहले एक गिलास पानी पीकर सोएं। पानी की बोतल बिस्तर के पास रखकर सोएं। रात में जब भी आपको असहज महसूस हो, पानी पिएं। राहत मिलेगी।

दूध-दही से दूर होगी कैल्शियम की कमी

प्रोटीन और कैल्शियम की सबसे अधिक मात्रा दूध और दही में पाई जाती है। वैसे तो महिलाओं को हर दिन दूध पीना चाहिए, लेकिन पीरियड्स के दौरान दूध को अपनी भोजन में शामिल करना न भूलें। अगर आपको सिर्फ दूध पीने में अच्छा नहीं लगता है, तो आप उसमें हेल्थ सप्लीमेंट मिलाकर पी सकती है। हो सके तो दूध में एक चुटकी हल्दी मिलाकर पिएं। हल्दी में एंटीऑक्सिडेंट पाए जाते हैं, जो पीरियड्स के दौरान होने वाले दर्द को कम करता हैं।

Saturday 14 February 2015

तलाशें अपना सच्चा प्यार


प्यार को कहीं तलाशा नहीं जाता, वह तो आपके भीतर ही कहीं होता है।

प्यार जीवन को पूरा करने का अहसास या कहा जाए तो जिंदगी का दूसरा नाम ही तो प्यार है। वेलेंटाइन डे इस प्यार के इजहार और अपने प्यार को खास अहसास दिलाने का दिन है लेकिन, आखिर अपना सच्चा प्यार पाया कैसे जाए। कैसे पहचाना जाए कि यही है आपका वेलेंटाइन-
प्यार को कहीं तलाशा नहीं जाता, वह तो आपके भीतर ही कहीं होता है। ठीक वैसे ही जैसे कस्तूरी मृग की खुशबू उसी में कहीं छुपी होती है, लेकिन वह उसकी तलाश में बावरा सा फिरता रहता है। वैसे ही प्रेम को सांसों की तरह हैं, हर क्षण आपके साथ। लेकिन कई बार इससे वाकिफ होने में अरसा लग जाता है। हमारी नजरों के सामने ही होता है वो, लेकिन हम उसे स्वीकार नहीं पाते। शंकायें, दुविधायें, सवाल और कई अन्य कारण उस वास्तविकता को कहीं ढंक देते हैं। और कई बार किसी से पहली ही मुलाकात में दिल के भीतर से यह आवाज आने लगती है कि हां यह वही है, जिसके लिए तुम इतने बेकरार थे। और जब भी यह अनुभूति होती है, तो यूं लगता है जैसे सारे बादल छंट गए।
प्यार तो इनसान के डीएनए में है। आदम और हौव्वा से शुरू हुआ यह प्रेम और फिर फैलता ही चला गया। आदम ने जन्नत सिर्फ हौव्वा के लिए छोड़ी, वो उसके बिना अधूरा जो था। लेकिन, उस दौर में न आदम के पास विकल्प थे और न ही हौव्वा के पास। लेकिन, आज का दौर जरा अलग है। आज सच्चा प्यार मिलना मुश्किल है, क्योंकि आज अरबों की आबादी में आपको किसी ऐसे शख्स से मिलना जरूरी है जिससे लिए दिल धड़क उठे।

कौन है वो

सबसे जरूरी बात, सच्चा प्यार किसी एक दिन का मोहताज नहीं होता। यह तो जिदंगी भर का अहसास होता है। प्यार का कोई फॉर्म्ूला नहीं, जो लगाया और उत्तर मिल गया। हर किसी को अलग तरह से होता है इसका अहसास और जब यह अहसास होता है, तो दुनिया में सब कुछ खूबसूरत नजर आने लगता है। हर ओर होती हैं बस  खुशियां ही खुशियां। यह मामला दिल का है, और यह कमबख्त दिल भला कब किसकी सुनता है। किस्मत खुद-ब-खुद उस शख्स से मिलवा देती है, और यह कह उठता है तुम ही तो हो, इतने बरसों से तलाश रहा था मैं जिसे। लेकिन, दुविधायें फिर भी आपकी राह में रोड़े अटका सकती हैं। चलिए हम आपका रास्ता साफ करने में मदद करते हैं। हो सकता है कि आपका प्यार आपकी आंखों के सामने हो और आप उसे देख न पा रहे हों। यह भी हो सकता है कि वो दुनिया के दूसरे कोने में बैठा हो आप की तरह तन्हा और आप ही का इंतजार करते हुए। चाहे जो भी हो, कोई न कोई इस दुनिया में आपके लिए जरूर बना है।

पहली नजर का प्यार हर नजर का प्यार

प्रेम का सार यही है- 'पहली नजर का प्यार, आखिरी नजर का प्यार और हर नजर का प्यारÓ। जब आपका पहली नजर में ही किसी को देखते ही उसकी ओर खिंचने लगे, तो इसे एक इशारा समझें। इशारा कि आपको प्यार हो चला है। पहली नजर का प्यार ही प्यार हो यह जरूरी नहीं, लेकिन यह प्यार का आधार जरूर हो सकता है। लेकिन, आप किसी को पहली बार देखते ही उसके खयालों में खोये रहते हैं, तो जनाब आपका दिल किसी की नजरों में गिरफ्तार हो चला है, हुजूर आपको प्यार हो चला है।

सीमाओं से परे

इश्क की कोई हद नहीं होती। यह खुद तय करता है अपने नियम और कायदे। जिसके लिए आपके दिल में प्रेम होता है उसकी मदद करने के लिए आप कुछ भी करते हैं। आपको ऐसा करते हुए न कभी अजीब लगता है और न ही आपको कुछ अलग करने का अहसास ही होता है। अगर दूसरा व्यक्ति भी आपकी मदद के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार है, तो जनाब यही प्यार है। प्यार में शर्तें नहीं होतीं, प्यार में सौदा नहीं होता। यह तो होता है और होता है.... प्यार मैं और तुम के बीच की दूरियां पाटते हुए हम तक ले जाने का नाम है।

सब कुछ भुला के

कहते हैं,  'इश्क न पूछे दीन धर्म और इश्क न पूछे जातÓ। प्रेम नियमों पर कहां चलता है। सामाजिक वृजनायें तोडऩे का नाम ही तो प्यार है। आपके दोस्तों की सलाह, पढ़ी-पढ़ाई बातें, आपके कुछ पूर्वाग्रह... सब नेपृथ्य में चले जाते हैं और रह जाता है तो बस प्रेम। आपके हृदय में तमाम बातों को झुठलाया जाता है, और आपको अहसास होता है कि यही है वो सच्चा प्यार। प्यार विकल्प नहीं तलाशता। आपको कोई इनसान पसंद है, तो बस पसंद है... अपनी खूबियों और खामियों के साथ। आप वैसे ही चाहते हैं उसे... इस बात से बेपरवाह कि वो भी आपके बारे में वैसा ही सोचे। प्यार कोई निवेश नहीं जिसमें आपको रिटर्न की उम्मीद हो। प्यार है, तो बस है। और अगर आप भी ऐसा ही सोचते हैं, तो मान लीजिए कि यह हर लिहाज से सच्चा प्यार है।

प्यार का दर्द है...

उसकी हंसी हो या नजर... उसकी बातें हो या व्यवहार सब कुछ आपके लिए खास होता है। अगर उसे देखते ही दिल में मीठा दर्द हो उठे, तो समझ जाइए कि दिल आपसे कुछ कह रहा है। उसके देखते ही आपका दिल प्रेम से भर आता है। सारी दुनिया में सबसे प्यारा दिखता है वो। ठीक वैसे ही जैसे मां-बाप के लिए उनकी औलाद होती है। अगर किसी को देखकर आपके दिल में भी ऐसा हो, तो मान जाइए कि आप प्यार में हैं। इंतजार मत कीजिए डूब जाइए इस दरिया में।

खिंचा जाऊं मैं तेरी ओर

प्रेम महज आकर्षण नहीं यह और बात है, लेकिन आकर्षण के बिना प्रेम संभव भी नहीं। प्रेम का आधार है आकर्षण... अगर हर सूरत में आप दोनों एक दूजे के साथ रहना चाहते हैं और किसी भी कीमत पर आपको जुदाई बर्दाश्त नहीं, तो यह इशारा है सच्चे प्यार का। आपके दिल को जो भा जाए, जरूरी नहीं कि वो देखने में हूर की तरह हो, कहते हैं लैला का रंग बेहद काला था, लेकिन कैस को वो ऐसी भायी कि वो गलियों में मजनूं बनकर घूमने लगा। अगर, आपके दिल में भी यह आकर्षण महीनों बना रहता है, तो जनाब आपको सच्चे वाला प्यार हो गया है। 

सबसे जरूरी बात, प्रेम सत्य का ही प्रतिबिंब है। अगर यह सच नहीं है, तो प्रेम नहीं है। तो सच और सत्तचरित्र होना ही प्रेम की पहली और आखिरी शर्त है।

वेलेंटाइन डे पर तोहफे के साथ फूल देना न भूलें


वेलेंटाइन डे पर लोग कुछ न कुछ खास तोहफा देना चाहते हैं. आप भी देना चाहते होंगे. बहुत अच्छी बात है, मगर इन तोहफों की भीड़ में 'उनके लिएÓ फूल ले जाना मत भूलिएगा. क्योंकि फूल ही हैं जो आपके दिल की बात उन तक पहुंचाते हैं. फूल बगैर एक शब्द बोले, आसानी से आपके मन का हर राज खोल देते हैं.
क्यों याद नहीं है? जब आपने पहली बार लाल गुलाब दिया था तो आपको कहने की जरूरत ही नहीं पड़ी थी कि 'मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूं.Ó आज भी उस एहसास को जिंदा रखते हुए अपने महंगे तोहफों के बीच कुछ प्यारे से फूल रखना न भूलें.
वेलेंटाइन डे पर फूलों का खास महत्व होता है. आप चाहे कितना भी महंगा तोहफा दे दें, फूलों के बगैर वह अधूरे होते हैं. तोहफे आपके दिल की बात नहीं कहते.

उम्मीद है कि इस वेलेंटाइन डे आपके दिल के आंगन में सच्चे प्यार का फूल खिले...

Friday 13 February 2015

यौवन काल में किशोरियों की उचित देखभाल


बाल्यावस्था की सादगी और भोलेपन की दहलीज पार करके जब किशोरियां यौवनावस्था में प्रवेश करती हैं, यही वय:संधि कहलाती है। इस दौर में परिवर्तनों का भूचाल आता है। शरीर में आकस्मिक आए परिवर्तन न केवल शारीरिक वृद्धि व नारीत्व की नींव रख़ते हैं, वरन मानसिक परिवर्तनों के साथ मन में अपनी पहचान व स्वतंत्रता को लेकर एक अंर्तद्वंद भी छेड देते हैं। इन परिवर्तनों से अनभिज्ञ कई लडकियां यह सोचकर परेशान हो उठती हैं कि वे किसी गंभीर बीमारी से त्रस्त तो नहीं है।
यौन काल की यह अवधि 11 से 16 वर्ष तक होती है। कद में वृद्धि, स्तनों व नितंबों का उभार, प्यूबर्टी, शरीर में कांति व चेहरे पर लुनाई में वृद्धि- ये बाहरी परिवर्तनों का कारण होता है। आंतरिक रूप में डिंब-ग्रंथि का सक्रिय होकर एस्ट्रोजन व प्रोजेस्ट्रॉन हॉर्मोन्स का रक्त में सक्रिय होना। इस दौरान जनन यंत्रों का विकास होता है व सबसे बडा लक्षित परिवर्तन होता है मासिक धर्म का प्रारंभ होना। इस दौरान प्रकृति नारी को मां बनने के लिए शारीरिक व मानसिक रूप से विकसित करती है।

रोमांच व आश्चर्य का मिश्रित भाव

शारीरिक बदलाव अकेले नहीं आते, इनसे जुडे अनेक प्रश्न व भावनाएं मन के अथाह सागर में हिलोरें लेने लगती हैं। रोमांच और आश्चर्य मिश्रित मुग्धभाव के साथ वह एक अनजाने भय और संकोच से भी घिर जाती है। कभी सुस्त तो कभी उत्साहित। कभी लज्जाशील-विनम्र तो कभी उद्दंड, गुस्सैल और चिड़चिड़ी। उसे कुछ समझ नहीं आता कि क्या और क्यों हो रहा है और शुरू होता है परिवार वालों के साथ अपनी पहचान और स्वतंत्रता का प्रतिद्वंद्व।

मासिक धर्म से उत्पन्न परिवर्तन

मासिक धर्म से संबंधित मासिक व भावनात्मक परिवर्तन सबसे कठिन होता  है। लडकी स्वयं को बंधनयुक्त व लडकों से हीन समझने लगती है। वह समाज के प्रति आक्रोशित हो उठती है। लडकियों के आगामी जीवन को सामान्य, सफल, आत्मविश्वासी, व्यवहारकुशल और तनावरहित बनाने के लिए अति आवश्यक है इस अवस्था को समझना, उन्हें शारीरिक परिवर्तनों व देखरेख से अवगत कराना, मानसिक व शारीरिक परिवर्तनों पर चर्चा करना और समय-समय पर उन्हें पोषक भोजन, व्यायाम, विश्राम, मनोरंजन आदि के प्रति जागरूक करना ताकि उनका विकास सही हो सके।

विशेष सावधानी की जरूरत

यदि वय:संधि 11-12 वर्ष से पूर्व आ जाए या 16-17 वर्ष से अधिक विलंबित हो जाए तो दोनों ही स्थितियों में यौन ग्रंथियों की गडबडिय़ों की उचित जांच व इलाज अति आवश्यक है। यदि लडकी अल्पायु में जवान होने लगे तो न केवल देखने वालों को अजीब लगता है वरन् लडकी स्वयं पर पडती निगाहों से घबराकर विचलित हो सकती है। कई बार शीघ्र कामेच्छा जागृत होकर नासमझी में अनुचित कदम उठा सकती है। ऐसे में न केवल उसे उचित शिक्षित कर सावधानियां बरतनी चाहिए बल्कि डॉक्टर की भी राय लेनी चाहिए कि डिंबकोषों की अधिक सक्रियता, कोई भीतरी खऱाबी या कोई ट्यूमर तो नहीं।

डॉक्टरी जांच की आवश्यकता

यदि वय:संधि 17 वर्ष से अधिक विलंबित हो तो भी डॉक्टरी परीक्षण अति आवश्यक है। कई बार वंशानुगत या जन्मजात किसी कमी के कारण मासिक धर्म नहीं होता। ऐसे में लापरवाही ठीक नहीं, क्योंकि लडकियां हीन भावना व उदासीनता का शिकार हो सकती है व हताश हो आत्महत्या जैसे दुष्कृत्य भी कर सकती है। समय पर इलाज से शारीरिक व मानसिक वृद्धि सुनिश्चित की जा सकती है।

मां का दायित्व

माताओं को चाहिए कि वे स्वयं लडकियों को भी उनके भीतर होने वाले परिवर्तनों के बारे में सही ज्ञान दें। पोषक भोजन, उचित व्यायाम, स्वास्थ्यवर्धक दिनचर्या व स्वच्छता के बारे में प्रेरित करें।

मासिक धर्म

प्रारंभ- अधिकांशत: 10 से 13 वर्ष की आयु में प्रथम मासिक आ जाता है, पर यदि 8 साल के पहले प्रारंभ हो जाए या 16 साल तक भी न हो तो अपने डॉक्टर से संपर्क करें।
चक्र- प्राय: 24 से 25 दिन का होता है, किंतु यदि अतिशीघ्र हो या 35 दिन से अधिक विलंब हो तो यह हारमोन की गडबडी का सूचक है।
रक्तस्राव- साधारणत: 4-5 दिन की अवधि में 50-80 मिली रक्त जाता है, किंतु यदि ज्यादा मात्रा व अवधि में खून जा रहा हो या गट्टे जाते हों तो खून की कमी होने का डर बना रहता है।
दर्द- मासिक में थोडा-बहुत दर्द होना स्वाभाविक है, पर यदि असहनीय दर्द हो तो डॉक्टरी परीक्षण आवश्यक है।
श्वेत प्रदर- माह के मध्य में जब अंडा फूटता है तो मासिक प्रारंभ होने के 1-2 दिन पूर्व जननांग से थूक समान स्राव होना स्वाभाविक है, पर गाढा दही समान व खुजलीयुक्त स्राव संक्रमण के कारण होता है।

कुछ सामान्य समस्याएं 

कद
किशोरियों का कद औसतन माता-पिता के कद पर आश्रित होता है। पौष्टिक आहार एवं उचित व्यायाम द्वारा इसे प्रभावित किया जा सकता है, अत्यधिक बौनापन व ऊंचा कद दोनों ही हारमोन की गडबडी के सूचक हैं।
स्तन व नितंब में उभार
आजकल गरिष्ठ व तेलयुक्त भोजन व जंक फूड्स के सेवन के कारण किशोरियों के कम उम्र में ही वक्ष विकसित होने लगते हैं और नितंब में उभार आ जाता है। स्तनों में थोडा बहुत दर्द, विशेषकर माहवारी के दौरान स्वाभाविक है। शारीरिक विकास में अनियमितता नजऱ आने पर स्त्रीरोग विशेषज्ञ को अवश्य दिखाएं।

Tuesday 10 February 2015

प्रोस्टेट कैंसर के लिए होम्योपैथी


प्रोस्टेट कैंसर पुरुषों में होने वाला आम कैंसर है। होम्योपैथिक दवाइयों से प्रोस्टेट की सभी परेशानी में आशानुरूप परिणाम मिल रहा है। दवा खाने में आने वाले मरीजों में बड़े प्रोस्टेट, पूरी तरह से पेशाब की थैली (यूरिनरी ब्लैडर) खाली न होना, बार-बार पेशाब आना, पेशाब में जलन अथवा दर्द होने के साथ-साथ प्रोस्टेट कैंसर, एडिनोकार्सिनोमा के मरीज नियमित रूप से आते हैं जिन्हें होम्योपैथी दवाइयों से काफी लाभ मिल रहा है। कई मरीज जिनकी उम्र ६० वर्ष से ८० वर्ष थी तथा जिनको स्वयं पेशाब पूरी न होने के कारण कैथेटर द्वारा पेशाब करने की सलाह अन्य चिकित्सकों (सर्जन) द्वारा दी गई थी। होम्योपैथिक दवाइयों के कुछ समय के प्रयोग से उन्हें कैथेटर से भी मुक्ति मिल गई और पेशाब से संबंधित सभी समस्याएं भी खत्म हो गई। 
कैंसर के उपचार के लिए वनस्पति, जानवर, खनिज पदार्थ और धातुओं से बनी 200 से भी अधिक होम्योपैथी दवाईयां उपयोग में लाई जा सकती हैं। कैंसर के उपचार के लिए उपयोग में आने वाली होम्योपैथिक औषधि का चयन रोगी के लक्षण तथा रोग की अवस्था एवं उसकी पैथालॉजिकल रिपोर्ट के आधार पर की जा सकती है।
होम्योपैथी उपचार सुरक्षित हैं और शोध के अनुसार कैंसर और उसके दुष्प्रभावों के इलाज के लिए होम्योपैथी उपचार असरदायक हैं। यह उपचार आपको आराम दिलाने में मदद करता है और तनाव, अवसाद, बैचेनी का सामना करने में मरीज की मदद करता है। यह उल्टी, मुंह के छाले, बालों का झडऩा, अवसाद और कमज़ोरी जैसे दुष्प्रभावों को घटाता है। ये औषधियां दर्द को कम करती हैं, उत्साह बढा़ती हैं और तन्दुरूस्ती का बोध कराती हैं, कैंसर के प्रसार को नियंत्रित करती हैं, और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाती हैं। कैंसर के रोग के लिए एलोपैथी उपचार के उपयोग के साथ-साथ होम्योपैथी चिकित्सा का भी एक पूरक चिकित्सा के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं।
रेडिएशन थैरेपी, कीमोथैरेपी और हॉर्मोन थैरेपी जैसे परंपरागत कैंसर के उपचार से अनेकों दुष्प्रभाव पैदा होते हैं। ये दुष्प्रभाव हैं - संक्रमण, उल्टी होना, जी मिचलाना, मुंह में छाले होना, बालों का झडऩा, अवसाद (डिप्रेशन), और कमज़ोरी महसूस होना। होम्योपैथी उपचार से इन लक्षणों और दुष्प्रभावों को नियंत्रण में लाया जा सकता है। रेडियोथेरिपी के दौरान अत्यधिक त्वचा शोथ (डर्मटाइटिस) और कीमोथेरेपी-इंडुस्ड स्टोमेटायटिस के उपचार में होम्योपैथिक दवाइयां का प्रयोग असरकारक पाया जा रहा है।

-डॉ. ए. के. द्विवेदी
बीएचएमएस, एमडी (होम्यो)
प्रोफेसर, एसकेआरपी गुजराती होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज, इंदौर
संचालक एडवांस्ड होम्यो हेल्थ सेंटर एवं
होम्योपैथिक मेडिकल रिसर्च प्रा. लि., इंदौर

Saturday 7 February 2015

आधुनिक बनें सेहत से न खेलें


सोने की आसमान छूती कीमतों के चलते युवाओं का रुझान आर्टिफिशियल ज्वेलरी की ओर तेजी से बढ़ता जा रहा है। भला ऐसा हो भी क्यों न, वह जेब पर भारी भी नहीं पड़ती और उसके खोने या चोरी होने पर ज्यादा दुख भी नहीं होता। फैशन के जमाने में ऐसी और भी अनेक एक्सेसरीज हैं, लेकिन उनके इस्तेमाल में लापरवाही सेहत पर भारी भी पड़ सकती है। फैशन की चीजों को अपनाने से पहले और बाद में कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है। आइए जानें, क्या-क्या सावधानियां बरतें।
बाजार में मिलने वाली आकर्षक, चमकती, रंग-बिरंगी आर्टिफिशियल ज्वेलरी और आपको फैशनेबल बनाने वाली अन्य चीजें बेशक बहुत सुन्दर और सस्ती होती हैं, परन्तु यह जानना जरूरी है कि इन्हें पहनना आपकी त्वचा और सेहत के लिए महंगा साबित न हो जाये।

एलर्जी के लक्षण

कई बार आर्टिफिशियल ज्वेलरी पहनने से त्वचा पर लाल चकत्ते, रैशेज, खुजली व दाने उभर आते हैं। कई युवक व युवतियों को कान व नाक के गहने पहनने के एक घंटे के अंदर ही खुजली होने लगती है और कुछ ही देर में त्वचा पर घाव या फफोले हो जाते हैं। धातुओं से एलर्जी का प्रभाव ज्यादातर त्वचा की ऊपरी सतह पर ही होता है, परन्तु कई बार इन घावों से बने दागों को ठीक होने में सालों लग जाते हैं। इसलिए बेहतर होगा कि आप ऐसी धातुओं के प्रयोग से बचें ।

कब तक रहते हैं लक्षण

वैसे तो आर्टिफिशियल ज्वेलरी से होने वाली एलर्जी के लक्षण ठीक होने में दो से तीन घंटे लग जाते हैं, परन्तु कभी-कभी एलर्जी के निशान और सूजन 2-३ दिनों तक भी बनी रह सकती है। ऐसे में आप घर पर ही उनकी देखभाल कर सकते हैं। उस त्वचा पर लैक्टो कैलामिन, एलोवेरा का रस, मॉइस्चराइजर, टेलकम पाउडर आदि लगा सकते हैं। अगर फिर भी सूजन व लालिमा बनी रहे तो बिना देर किए किसी अच्छे त्वचा विशेषज्ञ से सलाह लें और उपचार कराएं।

न करें नजरअंदाज

अगर लक्षणों को नजरअंदाज करते हुए आर्टिफिशियल ज्वेलरी लंबे समय तक पहनी जाये तो वह समस्या कॉन्टेक्ट डर्मेटाइटिस का रूप ले सकती है। ऐसे में आभूषण के संपर्क में रहने वाले अंग में सूजन आ जाती है। त्वचा लाल हो सकती है। उस पर पानी से भरे दाने उठ सकते हैं। उन से पानी रिस सकता है, पपड़ी जम सकती है। त्वचा सख्त हो कर खुरदरी और मोटी हो जाती है। संक्रमण हो जाने पर मवाद भी पड़ सकता है। उस हिस्से में खूब खुजली के साथ जलन होती है।

पियर्सिग का फैशन

पियर्सिग का फैशन इन दिनों पूरे जोरों पर है। हालांकि पियर्सिग करने का चलन हमारे देश में करीब 25 सौ साल पुराना है। पहले लोग अपने कान और नाक में पियर्सिग करा कर उन्हें सुन्दर आभूषणों से अलंकृत करते थे, वहीं अब युवा नाक, कान के अलावा आंख की भोहों, जीभ, नाभि, छाती व होठों के ऊपर भी पियर्सिग करवाने लगे हैं। पियर्सिग करते समय अक्सर आर्टिफिशियल ज्वेलरी का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे संक्रमण की आशंका दोगुनी हो जाती है।
पियर्सिग एक पारंपरिक तरीका है, जिसमें त्वचा पर पंक्चर करके उसमें ज्वेलरी पहनी जाती है। जैसे-जैसे पियर्सिग से जुड़ी तकनीक आधुनिक होती गई, वह सुरक्षित होती गई और इससे जुड़े जोखिम भी कम होते गए। फिर भी डॉक्टरों के मुताबिक पियर्सिग से जुड़े गंभीर संक्रमण के कारण अभी भी हर साल पियर्सिग पहनने वालों में 10 से 15 प्रतिशत लोग हॉस्पिटल आते हैं।

जांच करते रहें

पियर्सिग करवाने के बाद संक्रमण के बारे में चेक कराते रहना जरूरी है। आपको दो-तीन दिन तक पियर्सिग वाली जगह के आसपास छूने पर कुछ गर्म-सा महसूस होगा, लेकिन इससे ज्यादा दिन तक अगर ऐसा होता है तो संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है। उसके आसपास की त्वचा लाल होने लगे या सूजन आने लगे या फिर उस जगह से पस निकलने लगे तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।

बरतें सावधानी

  • संक्रमण से बचने के लिए पियर्सिग किसी प्रोफेशनल से ही करवाएं। अक्सर युवा पैसे बचाने की कोशिश में ऐसी जगह से भी पियर्सिग करा लेते हैं, जहां साफ-सफाई पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जाता। इससे संक्रमण की आशंका काफी बढ़ जाती है।
  • पियर्सिग कराने से पहले देख लें कि उस क्लीनिक में साफ-सफाई की पर्याप्त व्यवस्था है या नहीं।
  • जिस गन से छेद किया जाने वाला है, उसका भी हर बार साफ किया जाना जरूरी है।
  • पियर्सिग करवाने के बाद उस क्षेत्र को अच्छी तरह से साफ करना चाहिए और वहां एंटीबायोटिक क्रीम लगाना जरूरी है। इससे संक्रमण नहीं होगा। ऐसा आप 15 दिनों तक रोज करें।
  • अगर पियर्सिग के बाद संक्रमण हो गया है तो डॉक्टर की सलाह के बाद एंटीबायोटिक टेबलेट ले सकते हैं।

Friday 6 February 2015

किस्मत और कैंसर


कैंसर के बारे में हमारी जानकारी लगातार बढ़ रही है,  लेकिन अब भी यह बहुत रहस्यमय बनी हुई है। इसका ठीक-ठीक कारण भी हमें पता नहीं है और इस वजह से इसका ठीक-ठीक इलाज भी नहीं है। कैंसर का इलाज मुख्यत यही है कि कैंसरग्रस्त हिस्से को या तो दवाओं से या रेडिएशन से नष्ट कर दिया जाता है या सर्जरी करके निकाल दिया जाता है। कारण पता नहीं है,  इसलिए इसे खत्म करने का कोई अचूक इलाज हमारे पास नहीं है।
हम यह जानते हैं कि कुछ आनुवंशिक कारणों और कुछ जीवन-शैली या पर्यावरण से जुड़े कारणों की वजह से कैंसर होने की आशंका बहुत बढ़ जाती है। लेकिन ये कारण कैंसर होने में सहायक होते हैं,  इनकी वजह से कैंसर होता है,  यह नहीं कह सकते। अब एक शोध ने बताया है कि कैंसर के एक-तिहाई प्रकार ही ऐसे हैं,  जिनका आनुवंशिक कारणों या जीवन- शैली से संबंध है। बाकी दो-तिहाई सिर्फ 'बदकिस्मतीÓ से होते हैं। यानी उनके होने के कोई प्रमुख कारण नहीं बताए जा सकते।
कैंसर होने की प्रक्रिया संक्षेप में यह है कि शरीर में हर वक्त बड़ी संख्या में कोशिकाएं मरती रहती हैं और नई कोशिकाएं बनती रहती हैं। नई कोशिकाएं,  पुरानी कोशिकाओं के विभाजन से बनती हैं। शरीर में यह प्राकृतिक व्यवस्था रहती है कि जितनी जरूरत हो,  उतनी नई कोशिकाएं बनती हैं,  उसके बाद विभाजन बंद हो जाता है। कैंसर होने का मतलब है,  इस प्रक्रिया में गड़बड़ी। यानी कुछ कोशिकाओं का विभाजन बंद न होना। शरीर में नई कोशिकाएं बनाने का काम कुछ बुनियादी किस्म के 'स्टेम सेलÓ करते हैं,  जो शरीर के किसी अंग की जरूरत के हिसाब से उस किस्म की कोशिकाएं बनाने लगते हैं। अमेरिका में हुए इस शोध में देखा गया कि दो-तिहाई किस्म के कैंसर में स्टेम सेल के जेनेरिक स्वरूप में बिना किसी ज्ञात कारण के बदलाव हो जाता है,  उसमें न कोई आनुवंशिक कारण देखा जा सकता है, न ही जीवन-शैली संबंधी कोई कारण। लेकिन एक-तिहाई किस्म के कैंसर का आनुवंशिक या जीवन-शैली से जुड़े कारणों से सीधा संबंध देखा जा सकता है, इनमें फेफड़ों और त्वचा का कैंसर शामिल है।
यानी धूम्रपान व कैंसर का रिश्ता बहुत साफ है, वैसे ही तेज धूप की अल्ट्रावायलेट किरणों का त्वचा के कैंसर से सीधा संबंध है। किंतु इसका अर्थ यह नहीं कि धूम्रपान से ही कैंसर होता है,  इसका मतलब यही है कि धूम्रपान करने पर कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है। अभी हमारी जानकारी कैंसर के आनुवांशिककारणों तक सीमित है, उसके केंद्रीय कारण तक हम नहीं पहुंच पाए हैं। कई जानकारों का कहना है कि कैंसर से संबंधित शोध में चिकित्सा तंत्र का यह अहंकार आड़े आ रहा है कि तंत्र स्वीकार करना नहीं चाहता कि वह किसी चीज के बारे में नहीं जानता। इसलिए डॉक्टर कैंसर के तरह-तरह के कारण बताते हैं और बुनियादी कारणों तक नहीं पहुंच पाते। यह शोध ईमानदारी से स्वीकार करता है कि दो-तिहाई किस्म के कैंसर के बारे में हमें कोई जानकारी नहीं है। इस स्वीकारोक्ति से कहीं न कहीं कैंसर के बहुत बुनियादी कारणों तक पहुंचने में मदद मिलेगी। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि कैंसर से बचने के एहतियात न बरते जाएं।
जिन एक-तिहाई किस्म के कैंसर पर जीवन- शैली का असर होता है,  उनमें कई बहुत आम कैंसर भी हैं। स्वस्थ जीवन- शैली कैंसर से बचने की शत-प्रतिशत गारंटी नहीं है, लेकिन इससे कई किस्म के कैंसर होने की आशंका बहुत ही कम हो जाती है। वैसे भी शत-प्रतिशत जिंदगी में क्या होता है?  इसलिए स्वस्थ जीवन-शैली को अपनाए रहने में ही भला है, बाकी किस्मत पर छोड़ दें।

Thursday 5 February 2015

प्रोस्टेट कैंसर: बेहतर उपाय रोबोटिक सर्जरी


प्रोस्टेट कैंसर का इलाज अब रोबोटिक प्रोस्टेटेक्टामी से काफी सफलतापूर्वक किया जाने लगा है, जिसमें कैंसर वाली प्रोस्टेट ग्रंथि को हटाने के लिए रोबोटिक आर्म का इस्तेमाल किया जाता है। क्या है यह तकनीक और क्या हैं इसके फायदे, आइए जानें।
प्रोस्टेट कैंसर 65 साल से अधिक उम्र के पुरुषों को होने वाले सबसे आम कैंसर में से एक है। ऐसी सभी दिक्कतों में आमतौर पर सर्जिकल हस्तक्षेप की जरूरत होती है। आजकल प्रोस्टेट कैंसर नई रोबोटिक आर्म वाली तकनीक से भी निकाला जा सकता है, जिसमें परंपरागत सर्जरी के मुकाबले बेहद कम समस्याएं आती हैं। पिछले दो दशकों के दौरान, मेडिकल सर्जरी की दिशा में शोधकर्ताओं ने काफी प्रगति की है, जिसमें प्रोस्टेट कैंसर के इलाज के लिए रोबोटिक तकनीक भी खास है। रोबोटिक प्रोस्टेटेक्टामी परंपरागत प्रोस्टेट रिमूविंग सर्जरी के मुकाबले कई तरह से खास और फायदेमंद है।
रोबोटिक प्रोस्टेटेक्टामी से सर्जन को प्रोस्टेट ग्रंथि और इसके आस-पास की नसें परंपरागत तरीके के मुकाबले ज्यादा स्पष्ट दिखती हैं। ज्यादा लचीले और घुमाने में आसान रोबोटिक आर्म्स के इस्तेमाल से हो रही सर्जरी ज्यादा सफल भी होती है। प्रोस्टेट पुरुष के प्रजनन संबंधी अंग का एक बाहरी ग्लैंड है। प्रोस्टेट ग्लैंड सीमेन और स्पर्म को सुरक्षित रखने वाले फ्ल्यूइड बनाने के अलावा यूरीन को कंट्रोल करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

क्या है प्रोस्टेटेक्टामी

प्रोस्टेटेक्टामी एक सर्जरी प्रक्रिया है, जिसमें पूरा प्रोस्टेट ग्लैंड हटा दिया जाता है। यह उस मामले में किया जाता है, जिसमें बीमारी का शुरुआत में ही पता लग जाता है और यह पक्का होता है कि कैंसर ग्लैंड के बाहर तक नहीं फैला है। कई बार प्रोस्टेट कैंसर बहुत धीरे-धीरे बढ़ता है। ऐसे में मरीजों को इलाज की जरूरत नहीं होती, लेकिन ग्लैंड की नियमित जांच की जरूरत होती है।
इलाज के सर्जिकल विकल्प
ऐसे मामलों में, जिनमें कैंसर का पता शुरू में ही लग जाता है, प्रोस्टेट ग्लैंड के बाहर फैलने से पहले प्रोस्टेट ग्रंथि और इसके आस-पास के कुछ ऊतकों को हटाने के लिए सर्जिकल हस्तक्षेप किया जाता है। इससे प्रभावी रूप से कैंसर बाहर फैलने से रुक जाता है। रेडिकल प्रोस्टेटेक्टामी के नाम से जानी जाने वाली यह प्रक्रिया प्रोस्टेट कैंसर के इलाज का सबसे आम तरीका है।

कैसे होता है इसका इस्तेमाल

ओपेन प्रोस्टेटेक्टामी: इसमें एक बड़ा कट लगता है, जो नाभि से लेकर प्युबिक बोन तक होता है। ऐसे में यह समझा जा सकता है कि इसमें रक्त का कितना नुकसान होता है, कितना दर्द झेलना पड़ता है और कट का घाव भरने में कितना लंबा समय लगता है।
लैप्रोस्कोपिक प्रोस्टेटेक्टामी: इस तरीके में एक छोटा-सा चीरा लगता है। ओपन प्रोस्टेटेक्टामी के मुकाबले बेहद कम रक्त का नुकसान होता है और रोगी की रिकवरी बहुत जल्दी होती है।

रोबोटिक प्रोस्टेटेक्टामी

प्रोस्टेट कैंसर को हटाने के लिए प्रोस्टेट-असिस्टेड लैप्रोस्कोपिक सर्जरी की दिशा में हुई नई प्रगति ने परंपरागत तरीके की तुलना में कई फायदे हैं। कम चीरा लगाने वाली सर्जरी, रोबोटिक प्रोस्टेटेक्टामी में कम ट्रॉमा होता है और मरीज को आराम जल्दी मिलता है।
रोबोटिक प्रोस्टेटेक्टामी में रोबोटिक इंस्ट्रमेंट से काम किया जाता है। अपने हाथों से ऑपरेशन करने के बजाय डॉक्टर इसमें स्टेट-ऑफ-द-आर्ट रोबोटिक तकनीक का इस्तेमाल करते हैं। इसमें ज्यादा स्पष्टता और नियंत्रण रहता है। यह सर्जिकल डिवाइस रेजोल्युशन कैमरा से लैस होता है। यह 10 गुना ज्यादा मैग्निफाइड होता है, जिससे प्रोस्टेट और उसके आस-पास के नब्ज और टिश्यूज की 3 डाइमेंशन इमेज दिखाई देती है।  इसके साथ ही माइक्रो-सर्जिकल इंस्ट्रमेंट इसे ज्यादा लचीला और घुमावदार बनाते हैं, जिससे किसी भी तरह की गलती होने का आशंका नहीं के बराबर रहती है।
सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें एक छोटे से चीरे,1 से 2 सेंटीमीटर, के जरिए सर्जरी की जाती है। इससे ऑपरेशन के बाद मरीज की रिकवरी भी तेजी से होती है। इस सर्जरी के लिए खास प्रशिक्षण वाले डॉंक्टरों की जरूरत होती है, जो रोबोटिक प्रोसीजर संबंधी सभी जानकारियों से लैस हों।

कैसे काम करते हैं रोबोटिक आर्म

रोबोटिक आर्म कंप्यूटर द्वारा गाइड किए जाते हैं। ऐसे में नव्र्ज और प्रोस्टेट ग्लैंड को कोई नुकसान होने का खतरा नहीं रहता। प्रक्रिया के बाद शक्तिहीनता का खतरा कम रहता है। यह एक ऐसा रिस्क है, जो परंपरागत प्रोस्टेटेक्टामी सर्जरी में अपेक्षकृत ज्यादा होता है।

Wednesday 4 February 2015

प्रोस्टेट कैंसर से 'सेक्स लाइफÓ खतरे में?


एक आंकलन के अनुसार ब्रिटेन में करीब 160,00 लोग ऐसे हैं जिनकी सेक्स लाइफ प्रोस्टेट कैंसर के इलाज के बाद या तो खत्म हो गई, या ठंडी पड़ गई। प्रोस्टेट कैंसर से जुड़े इस तरह के मामले बढ़ते ही जा रहे हैं। माना जा रहा है कि वर्ष 2030 तक ऐसे मामले दोगुने हो जाएंगे। प्रोस्टेट कैंसर के इलाज के दौरान सर्जरी, रेडियोथेरेपी और हार्मोन थेरेपी का इस्तेमाल किया जाता है। इन सबके दुष्प्रभावों में से एक इरेक्टाइल डिस्फंक्शन (स्तंभन दोष) है।
ब्रिटेन में हर साल 40,000 से भी ज्यादा लोगों में प्रोस्टेट कैंसर की पहचान हो रही है। प्रोस्टेट कैंसर से जूझ रहे लोगों में से कुछ में शिराएं स्थाई रुप से क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। इसका नतीजा ये होता है कि उनमें इरेक्शन बना नहीं रह पाता।
कुछ लोगों में इलाज के बाद शरीर से जुड़ी तात्कालिक परेशानियां, तो कुछ में सेक्स से संबंधित मनोवैज्ञानिक समस्याएं पैदा हो जाती हैं। तीन में से दो प्रोस्टेट कैंसर पीडि़त मानते है कि उन्हें इरेक्शन में दिक्कत आती है।

तन्हा सफर

मैकमिलन ने बताया कि पुरुषों को इस बात के लिए भी आश्वस्त करने की जरूरत है कि यदि उन्हें अपने इलाज के बाद सेक्स में परेशानी हो रही है तो, वे आगे आएं। हम उनकी मदद के लिए हमेशा तैयार हैं।
प्रोस्टेट कैंसर से जिंदगी की जंग जीत चुके लंदन के 63 साल के जिम एन्ड्रूज ने अपनी आपबीती बताई। उन्होंने बताया कि जब पहली बार अपनी इस बीमारी के बारे में उन्हें पता चला तो ऐसा लगा मानो अब मौत उनसे ज्यादा दूर नहीं।
मौत के आगे कामेच्छा को शांत कर देने वाली दवाइयों की जरूरत और यौन शिथिलता की समस्या गौण हो गईं।
एन्ड्रूज ने बीबीसी को बताया, जब तक मुझे ये एहसास होता है कि मेरे जीवित होने की संभावनाएं बाकी है, मेरा सेक्स जीवन खत्म हो चुका था। मैं बर्बाद हो चुका था, हम जैसे लोगों के साथ एक और परेशानी ये है कि हमसे कोई भी इसके बारे में बात नहीं करना चाहता। हम अकेले पड़ जाते हैं।

मरीज़ों को मदद

तीन में से दो प्रोस्टेट कैंसर पीडि़त मानते है कि उन्हें इरेक्शन में दिक्कत आती है।
संबंधित आंकड़ों से पता चलता है कि अपने इलाज के बाद पीडि़तों में हताशा और अवसाद की ये भावनाएं प्रमुखता से पाई गईं। मगर इसके लिए ज्यादा कुछ नहीं किया जा सका है।
इस परेशानी से जूझ रहे पुरुषों से बेहद सतर्कतापूर्वक संवाद बनाने की ज़रूरत है, यदि समय रहते हस्तक्षेप किया जाए तो कई लोगों को राहत मिल सकती है। प्रोस्टेट कैंसर से जूझ रहे व्यक्तियों और इससे निजात पा चुके लोगों को ज्यादा से ज्यादा प्रोत्साहित करना जरूरी है।
मैकमिलन कैंसर सपोर्ट चैरिटी चाहती है कि प्रोस्टेट कैंसर से जूझ रहे मरीजों को अनुभवी नर्सें, बेहतर मनोवैज्ञानिक समर्थन और फिजियोथेरेपिस्ट ज्यादा से ज्यादा संख्या में उपलब्ध हों।
इसके अलावा पुरुषों को इस बात के लिए भी प्रोत्साहित करना होगा कि वे प्रोस्टेट कैंसर से जूझने के दौरान अपने स्थानीय डॉक्टर की भी मदद लें। एक व्यक्ति जो प्रोस्टेट कैंसर से जूझ रहा होता है, अपने इरेक्शन की समस्या को सामाजिक कलंक के रुप में देखता है। वो कहते हैं, कई लोग इसे मर्दानगी की कमी से जोड़ते हैं। अपने इरेक्शन को बनाए रख पाने में असफल होने से उनमें हीनता की भावना आ जाती है। वे इस समस्या पर बात करने से भागते हैं, अक्सर वे अपने पार्टनर से भावनात्मक रुप से दूर हो जाते हैं, समाज में अलग-थलग पड़ जाते हैं। परिणाम ये होता है कि मामला और गंभीर हो जाता है।

Tuesday 3 February 2015

कैसे फैलता है प्रोस्टेट कैंसर



प्रोस्टेट कैंसर फैलने के कई कारण हैं, लेकिन शुरूआती अवस्था में प्रोस्टेट कैंसर के फैलने का कारण आनुवंशिक होता है। आनुवंशिक डीएनए प्रोस्टेट कैंसर होने का सबसे प्रमुख कारण है। प्रोस्टेट ग्लैंड यूरीनरी ब्लैडर के पास होती है। इस ग्रंथि से निकलने वाला पदार्थ यौन क्रिया में सहायक बनता है। आमतौर पर उम्र बढऩे के साथ ही प्रोस्टेट कैंसर होने की संभावना ज्यादा होती है। लेकिन आजकल की दिनचर्चा के कारण यह किसी भी उम्र के लोगों को हो सकता है। दोनों पैरों में कमजोरी व पीठ में दर्द महसूस होता है। बढ़ती उम्र, मोटापा, धूम्रपान, आलस्यपूर्ण दिनचर्या और अधिक मात्रा में वसायुक्त पदार्थों का सेवन करने के कारण प्रोस्टेट कैंसर होने की संभावना ज्यादा होती है।

बढ़ती उम्र

प्रोस्टेट कैंसर सबसे ज्यादा 40 की उम्र के बाद होता है। उम्र बढऩे के साथ ही प्रोस्टेट ग्लैंड बढऩे लगती है, जो कि कैंसर होने की संभावना को बढ़ाती है। 50 साल की उम्र पार कर रहे लोगों में यह बहुत तेजी से फैलता है। प्रोस्टेट कैंसर के हर 3 में से 2 मरीजों की उम्र 65 या उससे ज्यादा होती है।

खानपान

आधुनिक जीवनशैली में खान-पान भी प्रोस्टेट कैंसर के फैलने का प्रमुख कारण बन गया है। लेकिन अभी इस बारे में कोई निश्चित निष्कर्ष नहीं निकल पाया है। जो आदमी लाल मांस (रेड मीट) या फिर ज्यादा वसायुक्त डेयरी उत्पादों का प्रयोग करते हैं, उनमें प्रोस्टेट कैंसर होने की संभावना ज्यादा होती है। जंक फूड का सेवन भी प्रोस्टेट कैंसर होने की संभावना को बढ़ाता है।

मोटापा

मोटापा कई बीमारियों की जड़ है। मोटे लोगों को डायबिटीज एवं कई सामान्य बीमारियॉं होना आम बात है। लेकिन मोटापा प्रोस्टेट कैंसर के फैलने का एक कारण है। मोटापे से ग्रस्त लोगों को प्रोस्टेट कैंसर होने की ज्यादा संभावना होती है। लेकिन इस तथ्य की पुष्टि नहीं हो पाई है कि मोटापा भी प्रोस्टेट कैंसर होने का प्रमुख कारण है। लेकिन कुछ अध्ययनों में यह बात सामने आई है।

धूम्रपान

धूम्रपान करने से मुॅंह और फेफड़े का कैंसर तो होता है, लेकिन धूम्रपान प्रोस्टेट कैंसर को भी बढ़ाता है।

आनुवांशिक बीमारी

प्रोस्टेट कैंसर आनुवंशिक भी होता है। घर में अगर किसी भी व्यक्ति या रिश्तेदार को प्रोस्टेट कैंसर होता है तो बच्चों में इसकी होने की संभावना ज्यादा होती है।

प्रोस्टेट कैंसर की जांच करवाएं

हालांकि इस बात पर काफी विवाद रहा है कि क्या पुरुषों को प्रोस्टेट कैंसर की जांच समय समय पर करवानी चाहिए? पर सच्चाई यह है कि पुरुषों को यह जानने का हक़ है अगर वह बिमारी की चपेट में आ सकते हैं। पीएसए जांच और डिजिटल रेक्टल जांच द्वारा किसी भी उम्र के पुरुष के बारे में प्रोस्टेट स्वास्थ्य को लेकर जानकारी मिलती है और फिर वह अपनी चिकित्सा के बारे में सोच सकते हैं।

जानें प्रोस्टेट कैंसर के लक्षणों को

प्रोस्टेट कैंसर के लक्षण
  • प्रोस्टेट कैंसर होने पर रात में पेशाब करने में दिक्कत होती है।
  • रात में बार-बार पेशाब आता है और आदमी सामान्य अवस्था की तुलना में ज्यादा पेशाब करता है।
  • पेशाब करने में कठिनाई होती है और पेशाब को रोका नही जा सकता है यानी पेशाब रोकने में बहुत तकलीफ होती है।
  • पेशाब रुक-रुक कर आता है, जिसे कमजोर या टूटती मूत्रधारा कहते हैं।
  • पेशाब करते वक्त जलन होती है।
  • पेशाब करते वक्त पेशाब में खून निकलता है। वीर्य में भी खून निकलने की शिकायत होती है।
  • शरीर में लगातार दर्द बना रहता है।
  • कमर के निचले हिस्से या कूल्हे या जांघों के ऊपरी हिस्से में जकडाहट रहती है।
प्रोस्टेट कैंसर का इलाज
वृद्धावस्था में प्रोस्टेट कैंसर होने की ज्यादा संभावना होती है। यदि प्रोस्टेट कैंसर का पता स्टेज-1 और स्टेज-2 में चल जाए तो इसका बेहतर इलाज रैडिकल प्रोस्टेक्टामी नामक ऑपरेशन से होता है। लेकिन, यदि प्रोस्टेट कैंसर का पता स्टेज-3 व स्टेज-4 में चलता है तो इसका उपचार हार्मोनल थेरैपी से किया जाता है। गौरतलब है कि प्रोस्टेट कैंसर की कोशिकाओं की खुराक टेस्टोस्टेरान नामक हार्मोन से होती है। इसलिए पीडि़त पुरुष के टेस्टिकल्स को निकाल देने से इस कैंसर को नियंत्रित किया जा सकता है। खान-पान और दिनचर्या में बदलाव करके प्रोस्टेट कैंसर की संभावना को कम किया जा सकता है। ज्यादा चर्बी वाले मांस को खाने से परहेज कीजिए। धूम्रपान और तंबाकू का सेवन करने से बचिए यदि आपको प्रोस्टेट कैंसर की आशंका दिखे तो चिकित्सक से संपर्क जरूर कीजिए।

प्रोस्टेट कैंसर से बचने के लिए ग्रीन टी पीएं

जो पुरुष ग्रीन टी पीते हैं उनमें प्रोस्टेट कैंसर का रिस्क काफी कम होता है और उनका प्रोस्टेट स्वास्थ्य अच्छा रहता है। अपनी रोज़मर्रा की जि़ंदगी में ग्रीन टी को शामिल करने से आपके प्रोस्टेट स्वास्थ्य पर काफी अच्छा असर पड़ेगा। गर्म ग्रीन टी किसी भी समय के खाने के साथ लिया जा सकता है। आइस्ड ग्रीन टी और ग्रीन टी स्मूदी बना कर भी पीया जा सकता है।