Monday 1 June 2015

बुखार पर सीधा वार


रिमझिम फुहारों के साथ बरसात का मौसम अपने साथ कई तरह की बीमारियां भी लाता है, जिनमें बुखार बड़ा कॉमन है। डेंगू के मामले भी बढ़ रहे हैं। डेंगू, टायफाइड और मलेरिया के बारे में आइए विस्तार से जानें-

क्या है बुखार

जब हमारे शरीर पर कोई बैक्टीरिया या वायरस हमला करता है तो शरीर अपने आप ही उसे मारने की कोशिश करता है। इसी मकसद से शरीर जब अपना टेम्प्रेचर बढ़ाता है तो उसे बुखार कहा जाता है। अगर शरीर का तापमान सुबह के समय 99 डिग्री फेरेनहाइट से ज्यादा और शाम के वक्त 99.9 डिग्री फेरेनहाइट से ज्यादा है, तो बुखार माना जाता है। अब 98.4 नॉर्मल टेम्प्रेचर का कॉन्सेप्ट बदल चुका है। मलेरिया और डेंगू में बुखार 101 से लेकर 103 डिग्री फेरेनहाइट तक पहुंच जाता है, जबकि वायरल में बुखार की रेंज को बता पाना काफी मुश्किल होता है।

खुद क्या करें

बुखार अगर 102 डिग्री तक है कोई और खतरनाक लक्षण नहीं हैं तो मरीज की देखभाल घर पर ही कर सकते हैं। इसमें तीन चार दिन तक इंतजार कर सकते हैं। मरीज के शरीर पर सामान्य पानी की पट्टियां रखें। पट्टियां तब तक रखें, जब तक शरीर का तापमान कम न हो जाए। अगर इससे ज्यादा तापमान है तो फौरन डॉक्टर को दिखाएं।
मरीज को एसी में रख सकते हैं, तो बहुत अच्छा है, नहीं तो पंखे में रखें। कई लोग बुखार होने पर चादर ओढ़कर लेट जाते हैं और सोचते हैं कि पसीना आने से बुखार कम हो जाएगा, लेकिन इस तरह चादर ओढ़कर लेटना सही नहीं है।
मरीज को हर 6 घंटे में पैरासिटामॉल की एक गोली दे सकते हैं। यह मार्केट में क्रोसिन, कालपोल  आदि ब्रैंड नेम से मिलती है। दूसरी कोई गोली डॉक्टर से पूछे बिना न दें। बच्चों को हर चार घंटे में 10 मिली प्रति किलो वजन के अनुसार इसकी लिक्विड दवा दे सकते हैं। दो दिन तक बुखार ठीक न हो तो मरीज को डॉक्टर के पास जरूर ले जाएं।
साफ-सफाई का पूरा ख्याल रखें। मरीज को वायरल है, तो उससे थोड़ी दूरी बनाए रखें और उसके द्वारा इस्तेमाल की गई चीजें इस्तेमाल न करें। मरीज को पूरा आराम करने दें, खासकर तेज बुखार में। आराम भी बुखार में इलाज का काम करता है।
मरीज छींकने से पहले नाक और मुंह पर रुमाल रखें। इससे वायरल होने पर दूसरों में फैलेगा नहीं।

बुखार कब जानलेवा

सभी बुखार जानलेवा या बहुत खतरनाक नहीं होते, लेकिन अगर डेंगू में हैमरेजिक बुखार या डेंगू शॉक सिंड्रोम हो जाए, मलेरिया दिमाग को चढ़ जाए, टायफायड का सही इलाज न हो, प्रेग्नेंसी में वायरल हेपटाइटिस (पीलिया वाला बुखार) या मेंनिंजाइटिस हो जाए तो खतरनाक साबित हो सकते हैं।

बच्चों का रखें खास ख्याल

  • बच्चों का इम्यून सिस्टम कमजोर होता है इसलिए बीमारी उन्हें जल्दी जकड़ लेती है। ऐसे में उनकी बीमारी को नजरअंदाज न करें।
  • खुले में ज्यादा रहते हैं इसलिए इन्फेक्शन होने और मच्छरों से काटे जाने का खतरा उनमें ज्यादा होता है।
  • बच्चों को घर से बाहर पूरे कपड़े और जूते पहनाकर भेजें। मच्छरों के मौसम में बच्चों को निकर व टी-शर्ट न पहनाएं। रात में मच्छर भगाने की क्रीम लगाएं।
  • बच्चा बहुत ज्यादा रो रहा हो, लगातार सोए जा रहा हो, बेचैन हो, उसे तेज बुखार हो, शरीर पर रैशेज हों, उलटी हो या इनमें से कोई भी लक्षण हो तो फौरन डॉक्टर को दिखाएं।
  • आमतौर पर छोटे बच्चों को बुखार होने पर उनके हाथ-पांव तो ठंडे रहते हैं लेकिन माथा और पेट गर्म रहते हैं इसलिए उनके पेट को छूकर और रेक्टल टेम्प्रेचर लेकर उनका बुखार चेक किया जाता है। बगल से तापमान लेना सही तरीका नहीं है, खासकर बच्चों में। अगर बगल से तापमान लेना ही है तो जो रीडिंग आए, उसमें 1 डिग्री जोड़ दें। उसे ही सही रीडिंग माना जाएगा।
  • 10 साल तक के बच्चे को डेंगू हो तो उसे हॉस्पिटल में रखकर ही इलाज कराना चाहिए क्योंकि बच्चों में प्लेटलेट्स जल्दी गिरते हैं और उनमें डीहाइड्रेशन (पानी की कमी) भी जल्दी होता है।

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