Thursday 4 April 2019

सिर्फ ऑपरेशन नहीं, होम्योपैथी से भी प्रोस्टेट रोग का इलाज संभव


 50 वर्ष पार कर चुके पुरुषों में प्रोस्टेट ग्रंथि का बढऩा एक आम समस्या है. जिसके कारण बार-बार बाथरूम जाना पड़ता है और कई बार तो पेशाब रुक जाने की तकलीफदेह परिस्थिति से भी मरीज को गुजरना पड़ता है.
यूरोलोजिस्ट का कहना है कि 50 वर्ष पार करने के बाद अगर पेशाब करने में किसी तरह की तकलीफ हो तो फौरन डॉक्टर को दिखाना चाहिए. प्रोस्टेट असल में मेल रिप्रोडक्टिव ग्लैंड है, जिसका मुख्य काम शुक्राणु वहन करना है.

 50 वर्ष पार करने के बाद इसके कार्य करने की गति धीमी होने लगती है, जिससे यह ग्रंथि बढऩे लगती है. प्रोस्टेट ग्रंथि मूत्र थैली के ऊपर रहती है. फलस्वरूप इसका आकार बढऩे से मूत्र नली व मूत्र थैली पर दबाव बढऩे से पेशाब संबंधी विभिन्न प्रकार की समस्यायें उत्पन्न होने लगती हैं. जिसे बिनाइन प्रोस्टेटिक हाइपरप्लेसिया (बीपीएच) कहते हैं.

इस रोग में पेशाब करने में दिक्कत होती है. पेशाब करने के फौरन बाद फिर से पेशाब करने की इच्छा होती है. पेशाब करने पर जलन होती है. कई बार पेशाब के साथ रक्त भी निकलता है. अचानक पेशाब बंद होने पर पेट के नीचे दर्द होने लगता है. डॉक्टर के अनुसार प्रोस्टेट की दिक्कत की ओर अगर फौरन ध्यान नहीं दिया गया तो मामला जटिल हो सकता है.

मूत्र थैली में पेशाब जमने से यूरिन इनफेक्शन हो सकता है. मूत्र थैली में स्टोन होने की संभावना होती है. हाइड्रोनेफ्रोसिस नामक समस्या भी हो सकती है. किडनी का कार्य भी बाधित हो सकता है. इसलिए ऐसी कोई भी समस्या होने पर फौरन डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए.

बिनाइन प्रोस्टेटिक हाइपरप्लेसिया (बीपीएच) होने पर लोगों को ऑपरेशन का डर सताने लगता है. पर याद रखने की जरूरत है कि यह रोग केवल होम्योपैथिक दवाइयों के द्वारा भी नियंत्रित किया जा सकता है.
 डॉक्टर ए.के. द्विवेदी के अनुसार होम्योपैथिक दवा लेने से इस रोग का इलाज पूरी तरह से संभव है. पर जिन पर दवा कारगर नहीं होती है, उन्हें सजर्री करानी पड़ सकती है क्योंकि होम्योपैथिक दवाइयों का चयन मरीजों के लक्षण के आधार पर अलग-अलग हो सकता है तथा मरीज के शरीर पर उनका प्रभाव भी अलग-अलग तरह से हो सकता है।

डॉ. द्विवेदी के अनुसार ऐसे कई मरीज जिनके प्रोस्टेट की साइज बढ़ी हुई थी को होम्योपैथिक इलाज से काफी आराम मिला तथा कई लोगों का प्रोस्टेट सामान्य हो गया जिससे उनको होने वाली पेशाब करने की समस्या में पूरी तरह से राहत मिल गई और होम्योपैथिक इलाज के बाद सोनोग्राफी जांच कराने पर पोस्ट वाइड यूरिन भी सामान्य हो गया। पेशाब का बार-बार होना, रुकावट होना, दर्द और जलन के साथ होना हर लक्षणों के आधार चयन किया जा सकता है और सभी पर होम्योपैथिक दवाइयों के बहुत अच्छे परिणाम मरीजों पर मिले हैं। यदि मरीज पीएएस लेवल बढ़ा हुआ आ रहा है तो प्रोस्टेट कैंसर की संभावना हो सकती है ऐसे मरीजों पर भी होम्योपैथिक दवाइयां कारगर हो रही हैं। ऐसे मरीज पूर्व में प्रोस्टेट का ऑपरेशन करा लिया है और उनकी पेशाब की समस्या का समाधान नहीं हुआ है उन पर भी होम्योपैथिक दवाइयों के अच्छे  परिणाम मिल रहे हैं। यहां पर कुछ होम्योपैथिक दवाएं जिनका प्रोस्टेट पर बहुत ही अच्छा परिणाम है- कोनियम, एपिस-मेल, एसिड-नाइट्रिकम, मेडोरिनम, सेबल-सेरूलूटा, एपोसाइनम, सारसापेरिला, कैंथेरिस।

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