Saturday 2 August 2014

स्टेमसेल एवं थैलेसीमिया


स्टेमसेल एवं थैलेसीमिया
जिन आनुवंशिक स्वास्थ्य समस्याओं को गंभीर रोगों की श्रेणी में रखा जाता है, थेलासीमिया भी उनमें से एक है। इसमें जीन की संरचना में जन्मजात रूप से गड़बड़ी होने की वजह से शरीर में शुद्ध रक्त का निर्माण नहीं हो पाता और डिफेक्टिव ब्लड शरीर के अपने मेकैनिज्म के जरिये स्वाभाविक रूप से नष्ट हो जाता है। इस वजह से थैलेसीमिया के मरीजों के शरीर में हमेशा खून की कमी रहती है और उसमें हीमोग्लोबिन का स्तर भी बहुत कम रहता है।
अकसर लोग इसे बच्चों की बीमारी समझ लेते हैं, पर वास्तव में ऐसा है नहीं। दरअसल जिनकी रक्त कोशिकाओं की संरचना में बहुत ज्यादा गड़बड़ी होती है, उनमें जन्म के कुछ दिनों के बाद ही इस बीमारी की पहचान हो जाती है, अगर रक्त कोशिकाओं की संरचना में ज्यादा गड़बड़ी न हो तो कई बार लोगों में 60-65 वर्ष की उम्र में भी अचानक इस बीमारी के लक्षण देखने को मिलते हैं।
घबराएं नहीं
कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जिनमें 3 से 15 प्रतिशत तक इस बीमारी के जींस मौजूद होते है, इन्हें थैलेसीमिया कैरियर कहा जाता है। कुछ लोग इसे थैलेसीमिया माइनर का नाम देते हैं, जो कि सर्वथा अनुचित है। यह अपने आप में कोई बीमारी नहीं है। ऐसे लोग सक्रिय और सामान्य जीवन व्यतीत कर सकते हैं। देश के सुपर स्टार अमिताभ बच्चन इस बात की जीती-जागती मिसाल हैं। थैलेसीमिया के कैरियर लोगों को केवल इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वे किसी थैलेसीमिया कैरियर से विवाह न करें। अगर पति-पत्नी दोनों ही इसके कैरियर हों तो बच्चों में इसके लक्षण होने की आशंका बढ़ जाती है। अगर पति-पत्नी दोनों इस बीमारी के वाहक हैं तो गर्भावस्था के शुरुआती दो महीनों में स्त्री को प्रीनेटल डाइग्नोसिस करवा लेना चाहिए। इससे यह मालूम हो जाएगा कि गर्भस्थ भू्रण में थैलेसीमिया के लक्षण हैं या नहीं। अगर रिपोर्ट निगेटिव आए तभी शिशु को जन्म देने का निर्णय लेना चाहिए।
क्या है लक्षण
1. त्वचा की रंगत में स्वाभाविक गुलाबीपन के बजाय पीलापन दिखाई देता है। ऐसे लोगों में अक्सर जॉन्डिस का इन्फेक्शन भी हो जाता है।
2. लिवर बढऩे से पेट फूला हुआ लगता है और हीमोग्लोबिन का स्तर भी काफी कम होता है।
3. अनावश्यक थकान और कमजोरी महसूस होती है।
स्टेम सेल से उपचार
अब तक इसे लाइलाज बीमारी समझा जाता था, क्योंकि नियमित ब्लड ट्रांस्फ्यूजन के अलावा इसका और कोई उपचार नहीं था। यह बल्ड ट्रांस्फ्यूजन मरीज को मौत से बचाए रखने में मददगार साबित होता है, लेकिन यह इस बीमारी का स्थायी उपचार नहीं है। इसे जड़ से समाप्त करने का एकमात्र तरीका स्टेम सेल थेरेपी है। इसके जरिये जन्म के शुरुआती 10 मिनट के भीतर शिशु के गर्भनाल से एक बैग में रक्त के नमूने एकत्र किए जाते है। इसी रक्त में स्टेम सेल्स पाए जाते है। जीवन की ये मूलभूत कोशिकाएं, मानव शरीर के सभी अंगों की रचना का आधार हो
प्रक्रिया स्टेम सेल के संग्रह की
जन्म के बाद दस मिनट के भीतर शिशु के गर्भनाल से थोड़ा सा खून लेकर उसे एक स्टरलाइज्ड बैग में रखा जाता है। सैंपल एकत्र करके उसके तापमान को नियंत्रित रखने के लिए उसे एक खास तरह के कंटेनर में रख कर 36 घंटे के भीतर लैब में पहुंचा दिया जाता है। स्टेम सेल को वहां वर्षो तक संरक्षित रखा जा सकता है। यह प्रक्रिया पूरी तरह सुरक्षित है। इससे मां और बच्चे दोनों को कोई तकलीफ नहीं होती और इसका कोई साइड इफेक्ट भी नहीं होता।
ती है। इनकी तुलना मिट्टी से की जा सकती है, जिसे शिल्पकार मनचाहे आकार में ढाल सकता है। इन्हें शरीर में जहां भी प्रत्यारोपित किया जाता है, ये वहीं दूसरी नई परिपक्व कोशिकाओं का निर्माण करने में सक्षम होती है।

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