कहते हैं हमें अपनी उम्र बरसों से नहीं, बल्कि अपने दोस्तों की संख्या से मापनी चाहिए। दोस्ती का हमारे जीवन को बनाने और उसे दिशा देने में अहम किरदार होता है। कहते है कि दोस्ती के रिश्ते में दिमाग की कोई भूमिका नहीं होती है। दोस्ती दिमाग से नहीं बल्कि दिल से की जाती है और यह भरपूर जीवन जीने के लिए आवयश्क घटक है। शायद दोस्तों के बिना हम अच्छे जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते।
न्यूरोसाइंटिस्ट्स के अनुसार
हमारा मानना है कि दोस्ती में दिमाग का कोई काम नहीं होता है, लेकिन न्यूरोसाइंटिस्ट्स के अनुसार, दोस्त न केवल आपको भावनात्मक रूप से सहयोग देते है बल्कि दोस्ती में इतनी शक्ति होती है कि यह मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने में भी मदद करती है। अच्छे दोस्त आपके जीवन के साथ-साथ आपके दिलोदिमाग को भी खुशनुमा बनाये रखते हैं।
डिमेंशिया से सुरक्षा
अकेलेपन से डिमेंशिया के विकास का जोखिम दोगुना तक बढ़ जाता है। न्यूरोसाइंटिस्ट्स रिसर्च के अनुसार, सामजिक जुड़ाव आपको डिमेंशिया के खतरे को कम करता है। यानी उम्र के किसी भी पड़ाव पर आपके साथ अच्छे दोस्त हैं, तो डिमेंशिया जैसी मानसिक बीमारी आपसे काफी दूर रहती है।
मस्तिष्क में लचीलापन
न्यूरोसाइंटिस्ट्स के अनुसार, सामाजिक नेटवर्क के साथ बड़े पैमाने पर जुड़ी महिलाओं में संज्ञानात्मक गिरावट का खतरा कम होता है। इसके अलावा विभिन्न प्रकार की गतिविधियों में भाग लेने से मस्तिष्क में लचीलापन आता है। यानी आपका दिमाग परिस्थितियों का बेहतर आकलन कर उनके हिसाब से खुद को बेहतर तैयार कर पाता है।
ज्ञान-संबंधी सोच
न्यूरोसाइंटिस्ट्स का कहना है कि दोस्ती के बारे में सोचने मात्र से ही हमारे मस्तिष्क के कार्य ठीक प्रकार से होने लगते है। इसमें मानसिक गिरावट और रोग के लिए एक प्रतिरोध का निर्माण करने की क्षमता होती है। इससे हमारे संज्ञानात्मक विकास में भी मदद मिलती है। हम चीजों को बेहतर ढंग से याद रख पाते हैं। घटनाओं को संचय करने की हमारी क्षमता में भी इजाफा होता है।
स्वस्थ कोशिकाओं का निर्माण
एक स्वस्थ सामजिक जीवन यानी दोस्तों के साथ में स्वाभाविक रूप से सोच, भावना, संवेदन, तर्क और अंर्तज्ञान शामिल होते है। ये मानसिक रूप से उत्तेजक गतिविधियां न्यूरॉन्स के बीच मस्तिष्क की स्वस्थ कोशिकाओं के निर्माण और नए कनेक्शन के निर्माण और गठन में मदद करती है।
उम्र बढ़ती है
इतना ही नहीं, दोस्ती आपकी उम्र में कुछ अहम और स्वस्थ बरस भी जोड़ देती है। मेटा विश्लेषण में 148 अध्ययनों में लगभग 300,000 लोगों पर सात साल से अधिक अध्ययन में पाया कि जो लोग मजबूत सामजिक रिश्ते में होते हैं, वे कमजोर सामजिक रिश्तों की तुलना में लंबा और स्वस्थ जीवन जीते हैं।
जोखिम कारकों को बढ़ावा
न्यूरोसाइंटिस्ट्स के अनुसार, अकेलापन और सामजिकता के अभाव की तुलना इन जोखिम कारकों से की जा सकती है। आप मानें या ना मानें लेकिन अकेलपन का जीवन दिन में 15 सिगरेट पीने, शराबी के सेवन, कसरत न करने से भी ज्यादा हानिकारक माना गया है। इसके साथ ही इसे मोटापे से भी दोगुना खतरनाक कहा गया है।
जिम्मेदारी को महसूस करना
बर्मिंघम यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जूलियन होल्ट-लंस्टड के अध्ययन के मुताबिक 'जब कोई किसी समूह से जुड़ता है या अन्य लोगों की जिम्मेदारी को महसूस करता है, तो उद्देश्य को पूरा करने की भावना उस व्यक्ति में खुद की बेहतर देखभाल और कम जोखिम को उठाने की भावना पैदा करती है। यानी व्यक्ति अपने प्रति अधिक उत्तरदायी हो जाता है।Ó
स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद
एक अन्य लेखक प्रोफेसर टिमोथी स्मिथ, आधुनिक सुविधाओं और प्रौद्योगिकी सामाजिक नेटवर्क कुछ लोगों को सोचने पर मजबूर करता है कि सामाजिक नेटवर्क आवश्यक नहीं हैं। लेकिन ऐसा नहीं है लगातार दोस्तों के संपर्क में रहना न केवल मनोवैज्ञानिक रूप से बल्कि इसका असर सीधे रूप से हमारे शारीरिक स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभकारी है।
एक स्वस्थ सामजिक जीवन यानी दोस्तों के साथ में स्वाभाविक रूप से सोच, भावना, संवेदन, तर्क और अंर्तज्ञान शामिल होते है।
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