Thursday 2 May 2019

गर्मियों में भी बनाए रखें सेहत


गर्मी के दिनों में अपने सेहत का ध्यान रखना काफी जरूरी है। बदलते मौसम में फिट बने रहना सभी के लिए आवश्यक है, और इसके लिए जरूरी है कि हम अपनी जीवन शैली बदलें जिससे गर्मी के दिनो मे हम पूरी तरह स्वस्थ रह सके। गर्मी के दिनो मे खान-पान की गड़बड़ी, पानी की खराबी आदि कारणों से बीमारियां भी हो सकती है, अगर आपने थोड़ी सी लापरवाही कर दी तो लू, हीट स्ट्रोक, पेट की समस्या, अतिसार, आदि कई बीमारियों की चपेट में आसानी आ सकते हैं। इसलिये इस मौसम में आवश्यक है कि हम अपने खान-पान से लेकर पहनावे तक में परिवर्तन लाये, और उसे मौसम के अनुसार बनाये। गर्मी से बचाव की प्लानिंग गर्मी शुरू होते ही कर लेनी चाहिये। जिससे हम मौसम के प्रतिकूल असर से अपने आपको आसानी से बचा सके।

पानी पियें

गर्मी में लू लगना, हीट स्ट्रोक की समस्या, पेट की समस्या से बचने के लिए जरूरी है खूब पानी पियें। अन्य मौसम की तुलना में इस मौसम में शरीर को ज्यादा पानी की आवश्यकता होती है। यदि उचित मात्रा में पानी न पिया जाए, तो कोशिकाओं में पानी की कमी हो जाती है जिससे इलेक्ट्रोलाइट का संतुलन बिगड़ जाता है और बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।

घर में ही रहें

गर्मी में बीमारियें से बचने के लिए घर में रहना ज्यादा बेहतर है। अगर बहुत जरूरी काम न हो तो घर से बाहर न निकलें। अगर बाहर जाना हो तो ऐसी जगह जायें जो ठंडी हो। यानी अगर आपको शॉपिंग करनी है तो सामान्य शॉप की बजाय मॉल्स में जाकर शॉपिंग कीजिए इससे आपको गर्मी नहीं लगेगी।

हल्के कपड़े पहनें

गर्मी के मौसम में बीमारियों से बचने के लिए हल्के कपड़े पहनें। आपके कपड़ों का न केवल वजन हल्का हो बल्कि उनका रंग भी हल्का होना चाहिए। इस समय काले रंग के कपड़े बिलकुल न पहनें, ज्यादा से ज्यादा सफेद कपड़े ही पहनें। गर्मी मे हल्के रंगो वाले कॉटन कपड़े पहने, जो आरामदायक हो और गर्मी से बचाये।

सनस्क्रीन का प्रयोग

गर्मी के मौसम में धूप के संपर्क में आने से त्वचा संबंधित बीमारियां जैसे - रैशेज, टैनिंग आदि हो सकती है। इससे बचने के लिए जरूरी है बाहर निकलते वक्त सनस्क्रीन का प्रयोग करें। बाहर निकलते वक्त एसपीएफ 15-20 वाले सनस्क्रीन का प्रयोग कीजिए, इससे 12-15 घंटे तक आपकी त्वचा सूर्य की हानिकारक किरणों से बच सकेगी।

छतरी या टोपी

गर्मी के प्रकोप से बचने के लिए बाहर निकलते वक्त अच्छे से तैयारी करके जायें, यानी छतरी या टोपी का प्रयोग करें। इससे आपका शरीर सूर्य की सीधे संपर्क में नहीं आता है और गर्मी नहीं लगती।

बाहर जाने का समय

गर्मी के मौसम में बाहर जाने के समय को निर्धारित कीजिए। कोशिश कीजिए कि दोपहर के वक्त बाहर निकलने से बच सकें, क्योंकि इस वक्त सबसे ज्यादा गर्मी होती है। शाम के वक्त या सुबह के वक्त ही घर से बाहर निकलिये।

फल और सब्जियां

गर्मी के प्रकोप को कम करने और आपको बीमारियों से बचाने में ताजे फल और हरी सब्जियों का बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहता है। इस मौसम में ककड़ी, खीरा, तरबूज, खरबूज आदि का सेवन करना चाहिए।

अधिक थकान से बचें

इस मौसम में ऐसी कोई एक्टीविटी न करें जिसके कारण थकान हो सकती है। अगर आप व्यायम करते हैं तो आउटडोर व्यायाम न करें, सुबह के वक्त जब मौसम ठंडा हो तभी व्यायाम करें।

खानपान का ख्याल करें

इस मौसम में खानपान में अनियमितता के कारण पेट की समस्या, डायरिया, उल्टी, फूड प्वॉइजनिंग हो सकती है। इसलिए खानपान पर विशेष ध्यान दीजिए। बाहर का और डिब्बाबंद खाना बिलकुल न खायें।

बेकिंग सोडा और एलोवेरा जेल

गर्मी में आँखो एवं त्वचा पर तापमान का बुरा असर पड़ता है। ऐसे में जरूरी है कि इनका विशेष ध्यान रखा जाये। आँखो को ठन्डे पानी से थोड़ी-थोड़ी देर मे साफ करते रहे। गर्मी के मौसम में तेज धूप से अक्सर त्वचा पर एलर्जी या रैशेज हो ही जाते हैं। इनसे छुटकारे के लिए आप रैशेज पर एलोवेरा जेल लगाएं जिससे त्वचा को ठंडक मिलेगी और रैशेज ठीक हो जायेंगे। नहाने के पानी में चुटकी भर बेकिंग सोडा मिलाकर नहाने से भी गर्मियों में त्वचा पर एलर्जी नहीं होती है।

एनर्जी ड्रिंक लें

गर्मी में सर्वाधिक आवश्यकता एनर्जी ड्रिंक की होती है। इससे हमारे शरीर में पानी की कमी नही होती है। गर्मी में छाछ, फ्रूट ज्यूस, मिल्कशेक, नीबू, पोदीना पानी एवं नारियल पानी को जरूर पीएं। कोल्ड ड्रिंक लेने से बचे। इनसे थोड़ी देर के लिए राहत तो मिलती है, पर ये हानिकारक होते है।

धूप से आने के बाद एसी या कूलर से बचे

जब भी बाहर से घर मे आएं सीधे एसी या कूलर वाले रूम में प्रवेश न करें। ठीक इसके विपरीत यदि एसी, कूलर की हवा मे बैठे है तो सीधे बाहर धूप मे न जाए। पहले अपने शरीर को सामान्य तापमान मे लाएँ फिर घर से बाहर निकले। सुबह शाम ठन्डी हवा मे अवश्य टहलें।

Monday 8 April 2019

अस्थमा के उपचार के लिए होम्योपैथी



अस्थमा पूरे विश्व भर में एक सामान्य बीमारी है, जो कि जानलेवा भी हो सकती है। ऐसे में होमियोपैथी उपचार लाभकारी होता है। यह अस्थमा के उपचार के लिए उपयोगी सिद्ध हुआ है और यह चिकित्सा का एक संपूर्ण तंत्र है, जो कि शरीर की प्राकृतिक तौर पर अपने आप चंगा होने की प्रवृति को बढाता है। फिर भी  होमियोपैथी उपचार शुरू करने से पहले किसी होमियोपैथिक चिकित्सक की राय अवश्य लें।

स्थमा के उपचार के लिए अनेक होमियोपैथिक औषधियां बेहद उपयोगी हैं। अस्थमा के एक गम्भीर दौरे में आपको यह सलाह दी जाती है कि आप एक चिकित्सक से संपर्क करें। अस्थमा के गम्भीर दौरे के खत्म होने के बाद होमियोपैथी उपचार लेने से भविष्य में होनेवाले अस्थमा की बारंबारता और तीव्रता घट जाती है। अस्थमा के उपचार के लिए उपयोग में आनेवाली औषधियों में से कुछ सामान्य औषधियां --

आर्सेनिकम-अलबम: इस दवा का उपयोग सामान्य तौर पर एक एक्यूट अस्थमा के रोगी के लिए किया जाता है। इसका उपयोग आम तौर पर बैचेनी, भय, कमजोरी और आधी रात को या आधी रात के बाद इन लक्षणों का बढना, जैसे लक्षणों से पीडित मरीजों के लिए किया जाता है।

हाऊस डस्ट माईट: इस दवा का उपयोग अक्सर ऐसे मरीजों के लिए किया जाता है, जिन्हें घर में होनेवाली धूल से एलर्जी होती है। चूंकि लोगों में धूल की एलर्जी होना आम बात है, इस दवा को अस्थमा के एक गम्भीर दौरे के लिए एक महत्वपूर्ण उपचार माना जाता है।

स्पोंजिआ (रोस्टेड स्पंज) : यह दवा उन अस्थमा से पीडित लोगों के लिए उपयोग में लाई जाती है, जिनको बेहद कष्टदायी खांसी होती है, और छाती में बहुत कम या बिल्कुल भी कफ नहीं होता है। इस प्रकार का अस्थमा एक व्यक्ति को ठंड लगने के बाद शुरू होता है। इन मरीजो में अक्सर सूखी खांसी होती है।

लोबेलिआ (भारतीय तंबाकू) :  इस दवा का उपयोग उन अस्थमा से पीडित लोगों के लिए बेहद फायदेमन्द है, जिन्हें सांस की घरघराहट के साथ एक लाक्षणिक (टिपिकल) अस्थमा का दौरा पडता है। (इसमें छाती में दबाव का एक अहसास और सूखी खांसी भी शामिल है)

सेम्बकस नाइग्रा (एल्डर) : इस दवा का उपयोग उन अस्थमा से पीडि़त लोगों के लिए बेहद फायदेमन्द है, जिन लोगों में सांस की घरघराहट की आवाज के साथ दम घुटने के लक्षण दिखाई देते हैं, खासकर यदि ये लक्षण आधी रात को या आधी रात के बाद, या लेटने के दौरान या जब मरीज ठंडी हवा के संपर्क में आते हैं, ऐसी स्थिति में अधिक बढते हैं।

इपेकक्युआन्हा (इपेकाक रूट)  : इस दवा का उपयोग उन अस्थमा से पीडित लोगों के लिए बेहद फायदेमन्द है, जिन लोगों की छाती में बहुत अधिक मात्रा में बलगम होता है।

एंटीमोनियम टेर्टारिकम (टार्टर एमेटिक) : इसका उपयोग उन अस्थमा से पीडित बुजुर्गों और बच्चों के लिए बेहद फायदेमन्द है, जिनकी पूर्ण श्वसन-प्रश्वसन प्रक्रिया में शिथिलता या तेजी हो।

केमोमिला, ब्रायोनिआ (व्हाईट ब्रायोनी), काली-बायक्रोमियम, नक्स वोमिका जैसी दवाईयां अस्थमा के उपचार के लिए उपयोग में लाई जाती हैं। नैदानिक जांच से पता चलता है कि अस्थमा के उपचार के लिए होमियोपैथिक दवाईयां असरकारक होती हैं।

अस्थमा एक गम्भीर बीमारी है, जिसे एक प्रशिक्षित होमियोपैथिक चिकित्सक की देखरेख में ठीक किया जा सकता है। होमियोपैथिक औषधियां दीर्घकालिक अस्थमा में लक्षणों को नियंत्रित करने में मदद करती हैं। हालांकि यदि आप एलोपैथी दवाईयां ले रहीं हैं, तो अपने एलोपैथी चिकित्सक से परामर्श लेकर एलोपैथी दवाओं की मात्रा को घटा लेना चाहिए। अधिकतर होमियोपैथिक दवाईयां एलोपैथी दवाओं को प्रभावित नहीं करती हैं। लेकिन यदि आप एलोपैथी की दवाईयां ले रहे हैं, तो अपने मन से होमियोपैथी चिकित्सा को शुरू न करें, किसी होमियोपैथिक चिकित्सक से परामर्श अवश्य लें।

Friday 5 April 2019

कैंसर की चिकित्सा के लिए होम्योपैथी



कैंसर सबसे भयानक रोगों में से एक है। कैंसर के रोग की परंपरागत औषधियों में निरंतर प्रगति के बावूद इसे अभी तक अत्यधिक अस्वस्थता और  मृत्यु के साथ जोडा़ जाता है। और कैंसर के उपचार से अनेक दुष्प्रभाव जुडे हुए हैं। कैंसर के मरीज कैंसर पेलिएशन, कैंसर उपचार से होनेवाले  दुष्प्रभावों के उपचार के लिए, या शायद कैंसर के उपचार के लिए भी अक्सर परंपरागत उपचार के साथ साथ होम्योपैथी चिकित्सा को भी जोडते हैं।

दुष्प्रभावों को नियंत्रित करने के लिए होम्योपैथी चिकित्सा

रेडिएशन थैरेपी, कीमोथैरेपी और हॉर्मोन थैरेपी जैसे परंपरागत कैंसर के उपचार से अनेकों दुष्प्रभाव पैदा होते हैं। ये दुष्प्रभाव हैं- संक्रमण, उल्टी होना,  जी मितलाना, मुंह में छाले होना, बालों का झडऩा, अवसाद (डिप्रेशन), और कमजोरी महसूस होना। होम्योपैथी उपचार से इन लक्षणों और दुष्प्रभावों  को नियंत्रण में लाया जा सकता है। रेडियोथेरिपी के दौरान अत्यधिक त्वचा शोध (डर्मटाइटिस) के लिए 'टॉपिकल केलेंडुलाÓ जैसा होम्योपैथी उपचार और  केमोथेरेपी-इंडुस्ड स्टोमाटिटिस के उपचार में 'ट्राउमील एस माऊथवाशÓ का प्रयोग असरकारक पाया जाता है। कैंसर के उपचार के लिए वनस्पति,  जानवर, खनिज पदार्थ और धातुओं से प्राप्त 200 से भी अधिक होम्योपैथी दवाईयां उपयोग में लाई जाती हैं। कैंसर के उपचार के लिए उपयोग में  आने वाली कुछ सामान्य औषधियों में एमोनियमकार्ब, एनाकारडिअम-ओरिएंटेल, कान्डूरांगो, केलकेरिया-आयोड, कैम्फर, सीना, ग्रिंडेलिआ, जेबोरेंडी, म्यूरेक्स, मायरिस्टिका, नेट्रम-आर्स, नक्स-मोस्चाटा, रुटा, टेरेबिंथिना, यूरिआ, वेरेट्रम-एल्ब, विंका-माइनोर शामिल हैं।

कैंसर के लिए होम्योपैथी उपचार

होम्योपैथी उपचार सुरक्षित हैं और कुछ विश्वसनीय शोधों के अनुसार कैंसर और उसके दुष्प्रभावों के इलाज के लिए होम्योपैथी उपचार असरदायक हैं। यह उपचार आपको आराम दिलाने में मदद करता है और तनाव, अवसाद, बैचेनी का सामना करने में आपकी मदद करता है। यह अन्य लक्षणों और उल्टी, मुंह के छाले, बालों का झडऩा, अवसाद और कमजोरी जैसे दुष्प्रभावों को घटाता है। ये औषधियां दर्द को कम करती हैं, उत्साह बढा़ती हैं और तन्दुरस्ती का बोध कराती हैं, कैंसर के प्रसार को नियंत्रित करती हैं, और प्रतिरोधक क्षमता को बढाती हैं। कैंसर के रोग के लिए एलोपैथी उपचार के उपयोग के साथ-साथ होम्योपैथी चिकित्सा का भी एक पूरक चिकित्सा के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं। सिर्फ होम्योपैथी दवाईयां या एलोपैथी उपचार के साथ साथ होम्योपैथी दवाईयां ब्रेन ट्यूमर, अनेक प्रकार के कैंसर जैसे के गाल, जीभ, भोजन नली, पाचक ग्रन्थि, मलाशय, अंडाशय, गर्भाशय; मूत्राशय, ब्रेस्ट और प्रोस्टेट ग्रंथि के कैन्सर के उपचार में उपयोगी पाई गई हैं।
होम्योपैथी औषधियां सुरक्षित मानी जाती हैं। कभी-कभी आपके लक्षण नियंत्रित होने से पहले थोडा़ और अधिक बिगड़ भी सकते हैं। हाल ही में किए  गए शोध के अनुसार किसी प्रशिक्षित होमियोपैथिक चिकित्सक की देखरेख में ली गई होम्योपैथी औषधियां सुरक्षित थी और कम दुष्प्रभाव दिखाई दिए। 

Thursday 4 April 2019

सिर्फ ऑपरेशन नहीं, होम्योपैथी से भी प्रोस्टेट रोग का इलाज संभव


 50 वर्ष पार कर चुके पुरुषों में प्रोस्टेट ग्रंथि का बढऩा एक आम समस्या है. जिसके कारण बार-बार बाथरूम जाना पड़ता है और कई बार तो पेशाब रुक जाने की तकलीफदेह परिस्थिति से भी मरीज को गुजरना पड़ता है.
यूरोलोजिस्ट का कहना है कि 50 वर्ष पार करने के बाद अगर पेशाब करने में किसी तरह की तकलीफ हो तो फौरन डॉक्टर को दिखाना चाहिए. प्रोस्टेट असल में मेल रिप्रोडक्टिव ग्लैंड है, जिसका मुख्य काम शुक्राणु वहन करना है.

 50 वर्ष पार करने के बाद इसके कार्य करने की गति धीमी होने लगती है, जिससे यह ग्रंथि बढऩे लगती है. प्रोस्टेट ग्रंथि मूत्र थैली के ऊपर रहती है. फलस्वरूप इसका आकार बढऩे से मूत्र नली व मूत्र थैली पर दबाव बढऩे से पेशाब संबंधी विभिन्न प्रकार की समस्यायें उत्पन्न होने लगती हैं. जिसे बिनाइन प्रोस्टेटिक हाइपरप्लेसिया (बीपीएच) कहते हैं.

इस रोग में पेशाब करने में दिक्कत होती है. पेशाब करने के फौरन बाद फिर से पेशाब करने की इच्छा होती है. पेशाब करने पर जलन होती है. कई बार पेशाब के साथ रक्त भी निकलता है. अचानक पेशाब बंद होने पर पेट के नीचे दर्द होने लगता है. डॉक्टर के अनुसार प्रोस्टेट की दिक्कत की ओर अगर फौरन ध्यान नहीं दिया गया तो मामला जटिल हो सकता है.

मूत्र थैली में पेशाब जमने से यूरिन इनफेक्शन हो सकता है. मूत्र थैली में स्टोन होने की संभावना होती है. हाइड्रोनेफ्रोसिस नामक समस्या भी हो सकती है. किडनी का कार्य भी बाधित हो सकता है. इसलिए ऐसी कोई भी समस्या होने पर फौरन डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए.

बिनाइन प्रोस्टेटिक हाइपरप्लेसिया (बीपीएच) होने पर लोगों को ऑपरेशन का डर सताने लगता है. पर याद रखने की जरूरत है कि यह रोग केवल होम्योपैथिक दवाइयों के द्वारा भी नियंत्रित किया जा सकता है.
 डॉक्टर ए.के. द्विवेदी के अनुसार होम्योपैथिक दवा लेने से इस रोग का इलाज पूरी तरह से संभव है. पर जिन पर दवा कारगर नहीं होती है, उन्हें सजर्री करानी पड़ सकती है क्योंकि होम्योपैथिक दवाइयों का चयन मरीजों के लक्षण के आधार पर अलग-अलग हो सकता है तथा मरीज के शरीर पर उनका प्रभाव भी अलग-अलग तरह से हो सकता है।

डॉ. द्विवेदी के अनुसार ऐसे कई मरीज जिनके प्रोस्टेट की साइज बढ़ी हुई थी को होम्योपैथिक इलाज से काफी आराम मिला तथा कई लोगों का प्रोस्टेट सामान्य हो गया जिससे उनको होने वाली पेशाब करने की समस्या में पूरी तरह से राहत मिल गई और होम्योपैथिक इलाज के बाद सोनोग्राफी जांच कराने पर पोस्ट वाइड यूरिन भी सामान्य हो गया। पेशाब का बार-बार होना, रुकावट होना, दर्द और जलन के साथ होना हर लक्षणों के आधार चयन किया जा सकता है और सभी पर होम्योपैथिक दवाइयों के बहुत अच्छे परिणाम मरीजों पर मिले हैं। यदि मरीज पीएएस लेवल बढ़ा हुआ आ रहा है तो प्रोस्टेट कैंसर की संभावना हो सकती है ऐसे मरीजों पर भी होम्योपैथिक दवाइयां कारगर हो रही हैं। ऐसे मरीज पूर्व में प्रोस्टेट का ऑपरेशन करा लिया है और उनकी पेशाब की समस्या का समाधान नहीं हुआ है उन पर भी होम्योपैथिक दवाइयों के अच्छे  परिणाम मिल रहे हैं। यहां पर कुछ होम्योपैथिक दवाएं जिनका प्रोस्टेट पर बहुत ही अच्छा परिणाम है- कोनियम, एपिस-मेल, एसिड-नाइट्रिकम, मेडोरिनम, सेबल-सेरूलूटा, एपोसाइनम, सारसापेरिला, कैंथेरिस।

Monday 1 April 2019

होम्योपैथी में जटिल रोगों का सरल उपचार



होम्योपैथी सिर्फ सामान्य सी दिखने वाली बीमारियों को ठीक करने में ही उपयोगी नहीं है, अपितु असाध्य एवं जटिल रोगों में भी काफी प्रभावशाली है। लोगों में यह धारणा है कि असाध्य रोग तो ठीक ही नहीं हो सकते हैं, परन्तु आज के समय की मांग है होम्योपैथी दवाएं, जिनके प्रभावी व शीघ्र असर से जटिल बीमारियों में भी मरीज को काफी राहत पहुंचाई जा सकती है। आज के परिपेक्ष्य में देखा जाए तो सबसे ज्यादा मरीज कैंसर के पाए जाते हैं। सभी प्रकार के कैंसर में होम्योपैथी दवाएं प्रभावशाली तरीके से आराम दिलवाती हैं जिससे यदि बीमारी आखिरी स्टेज में भी है तो भी मरीज को होम्योपैथी द्वारा स्वास्थ्य लाभ मिल सकता है। कैंसर में कीमोथैरेपी, रेडियोथैरेपी से बहुत ज्यादा साइड इफेक्ट होने लगते हैं, जिससे मरीज हताश होने लगता है। यदि कैंसर सहित अन्य सभी बीमारियों के मरीज बीमारी के प्रारंभिक स्टेज में ही होम्योपैथी दवाइयों का सेवन करें तो बीमारी को आगे बढऩे से रोका जा सकता है एवं पूरी तरह से ठीक भी किया जा सकता है। कई असाध्य बीमारियां जैसे प्रोस्टेट, अप्लास्टिक एनीमिया, ए.वी.एन., अस्थमा, अर्थराइटिस जिसमें मरीज को यही समझाया जाता है कि ऑपरेशन या सर्जरी ही आखिरी उपाय है, परन्तु होम्योपैथी दवाइयों से इन सभी असाध्य बीमारियों पर आसानी से आराम पाया जा सकता है।

ऐसी बीमारियां जो ऑपरेशन के बाद भी बार-बार हो सकती हैं जैसे पथरी, फिशर-फिश्चुला, पाइल्स, साइनोसाटिस तथा स्पॉनडिलाइटिस इत्यादि को बार-बार होने से होम्योपैथिक के प्रयोग से रोका जा सकता है।
होमियोपैथिक दवाएं कई प्रकार के एक्यूट और क्रॉनिक रोगों में प्रभावी होती हैं। चूंकि यह एक वैज्ञानिक चिकित्सा पद्धति है, इसका उपयोग किसी भी व्यक्ति (नवजात शिशु, बूढे लोगों, गर्भवती स्त्रियों) के लिए हो सकता है। होम्योपैथिक दवाएं दुनिया भर में उपयोग में लाई जाती हैं, और खासकर भारत में सबसे ज्यादा प्रचलित हैं।

Sunday 3 February 2019

उम्र बढऩे के साथ बढऩे लगती है प्रोस्टेट कैंसर की संभावना



प्रोस्टेट कैंसर फैलने के कई कारण हैं। लेकिन शुरूआती अवस्था में प्रोस्टेट कैंसर के फैलने का कारण आनुवांशिक होता है। आनुवांशिक डीएनए प्रोस्टेट कैंसर होने का सबसे प्रमुख कारण है। प्रोस्टेट ग्लैंड यूरिनरी ब्लैडर के पास होता है, इस ग्रंथि से निकलने वाला पदार्थ यौन क्रिया में सहायक बनता है। आमतौर पर उम्र बढऩे के साथ ही प्रोस्टेट कैंसर होने की संभावना ज्यादा होती है, लेकिन आजकल की दिनचर्या के कारण यह किसी भी उम्र के लोगों को हो सकता है। दोनों पैरों में कमजोरी व पीठ में दर्द महसूस होता है। बढ़ती उम्र, मोटापा, धूम्रपान, आलस्यपूर्ण दिनचर्या और अधिक मात्रा में वसायुक्त पदार्थो का सेवन करने के कारण प्रोस्टेट कैंसर होने की संभावना ज्यादा होती है।

प्रोस्टेट क्या है?

प्रोस्टेट ग्रंथि केवल पुरूषो में पाई जाती है जो उनके प्रजनन प्रणाली का एक हिस्सा है। यह मूत्राशय के नीचे और मलाशय के सामने स्थित होती है। पौरूष ग्रंथि मूत्रमार्ग के चारों और होता है, मूत्रमार्ग मूत्र को मूत्राशय से लिंग के रास्ते निष्कासित करता है। वीर्य पुटिका ग्रंथि जो वीर्य का तरल पदार्थ बनाती है पौरूष ग्रंथि के पीछे स्थित होती है। पौरूष ग्रंथि दो भागो में विभाजित होती है, दाँए और बाँए। उम्र के साथ पौरूष ग्रंथि के आकार में परिवर्तन होता रहता है। युवावस्था में पौरूष ग्रंथि के माप में तीव्र वृद्धि होती है। 

कैसे फैलता है प्रोस्टेट कैंसर

प्रोस्टेट कैंसर प्रोस्टेट की कोशिकाओं में बनने वाला एक प्रकार का कैंसर है। यद्यपि पौरूष ग्रंथि में कई प्राकर की कोशिकाएँ पाई जाती है, लगभग सभी प्रोस्टेट कैंसर, ग्रंथि कोशिकाओं से विकसित करते है (एडिनोकार्सिनोमा)। प्रोस्टेट कैंसर आमतौर पर बहुत ही धीमी गति से बढ़ता है। ज्यादातर रोगियों में तब तक लक्षण नही दिखाई देते जब तक कि कैसर उन्नत अवस्था में नही पहुँचता। प्रोस्टेट कैंसर के मरीजों में से अधिकांश अन्य कारणों से मरते हैं। कई मरीजों को तो ज्ञात ही नहीं होता कि उन्हें प्रोस्टेट कैंसर हैं। लेकिन एक बार प्रोस्टेट कैंसर विकसित हो जाता है और बाहर की तरफ फैलने लगता है तो यह खतरनाक हो जाता है।

प्रोस्टेट कैंसर फैलने के कारण

बढ़ती उम्र 
प्रोस्टेट कैंसर सबसे ज्यादा 40 साल की उम्र के बाद होता है। उम्र बढऩे के साथ ही प्रोस्टेट ग्लैंड बढऩे लगती है जो कि कैंसर होने की संभावना को बढ़ाती है। 50 साल की उम्र पार कर रहे लोगों में यह कैंसर बहुत तेजी से फैलता है। प्रोस्टेट कैंसर के हर 3 में से 2 मरीजों की उम्र 65 या उससे ज्यादा होती है।
आनुवांशिक बीमारी 
प्रोस्टेट कैंसर आनुवांशिक भी होता है। घर में अगर किसी भी व्यक्ति या रिश्तेदार को प्रोस्टेट कैंसर होता है तो बच्चों में इसके होने की संभावना ज्यादा होती है। अगर किसी के भाई को अपने पिता से यह इंफेक्शन मिलता है तो उसके छोटे भाई को भी इससे प्रभावित होने की संभावना ज्यादा होती है।
खान-पान 
आधुनिक जीवनशैली में खान-पान भी प्रोस्टेट कैंसर के फैलने का प्रमुख कारण बन गया है। लेकिन अभी इस बारे में कोई निश्चित निष्कर्ष नहीं निकल पाया है। जो आदमी लाल मांस (रेड मीट) या फिर ज्यादा वसायुक्त डेयरी उत्पादों का प्रयोग करते हैं उनमें प्रोस्टेट कैंसर होने की संभावना ज्यादा होती है। लेकिन ज्यादा वसायुक्त खाद्य-पदार्थों का सेवन ही प्रोस्टेट कैंसर का प्रमुख कारण है इस बात पर अभी भी आशंका है। जंक फूड का सेवन भी प्रोस्टेट कैंसर होने की संभावना को बढ़ाता है। 
मोटापा 
मोटापा कई बीमारियों की जड़ है। मोटे लोगों को डायबिटीज कई सामान्य बीमारियां होना आम बात है। लेकिन मोटापा प्रोस्टेट कैंसर के फैलने का एक कारण है। मोटापे से ग्रस्त लोगों को प्रोस्टेट कैंसर होने की ज्यादा संभावना होती है। लेकिन इस तथ्य की पुष्टि नहीं हो पायी है कि मोटापा भी प्रोस्टेट कैंसर होने का प्रमुख कारण है लेकिन कुछ अध्ययनों में यह बात सामने आयी है। 
धूम्रपान 
धू्म्रपान करने से मुंह और फेफड़े का कैंसर तो होता है लेकिन धूम्रपान प्रोस्टेट कैंसर को भी बढ़ाता है। धूम्रपान करने वालों को प्रोस्टेट कैंसर होने की ज्यादा संभावना होती है। सिगरेट में पाया जाने वाला निकोटीन प्रोस्टेट कैंसर को बढ़ाता है। 
कम प्रजनन क्षमता वाले लोगों में भी प्रोस्टेट कैंसर होने की ज्यादा संभावना होती है। यदि सही समय पर इस मर्ज का पता लग जाए, तो सर्जरी के जरिए प्रोस्टेट कैंसर से निजात पाना संभव है। इसलिए अगर उम्र बढऩे के बाद प्रोस्टेट कैंसर के लक्षण दिखे तो चिकित्सिक से संपर्क जरूर कीजिए।

होम्योपैथिक समाधान 

जैसे-जैसे व्यक्ति की उम्र बढऩे लगती है उसे बीमारियों का दु:ख-दर्द सताने लगता है। बढ़ती उम्र के साथ प्रोस्टेट का बढऩा, प्रोस्टेट का कैंसर जैसी शिकायतों का सामना होने लगता है और व्यक्ति को आपरेशन, कीमोथैरेपी, रेडियोथेरेपी के बाद भी उस दर्द से छुटकारा नहीं मिलता तब वो होम्योपैथिक के शरण में आते हैं। देश ही नहीं अपितु विदेशों में भी कई अतंरराष्ट्रीय कांफे्रस में होम्योपैथिक चिकित्सा द्वारा प्रोस्टेट कैंसर की बीमारी पर अपना व्याख्यान एवं शोध पत्र पढ़ चुके डॉ. ए.के. द्विवेदी के अनुसार उनके पास जब तक मरीज पहुंचता है उसके उम्र के आखिरी पड़ाव में होता है, बीमारी का अंतिम स्टेज होता है और सभी उपलब्ध उपायों को आजमाने के बाद आशानुरूप परिणाम नहीं मिलने के कारण निराशा और हताशा से ग्रसित हो जाता है। ऐसे सभी निराश मरीजों पर इंदौर स्थित एडवांस्ड होम्यो हेल्थ सेंटर एवं होम्योपैथिक अनुसंधान केंद्र से होम्योपैथी की ५० मिलिसिमल पोटेंसी की दवाइयों के प्रयोग से हजारों मरीजों को प्रोस्टेट की समस्या से छुटकारा दिलाते हुए मानसिक सम्बल प्रदान करने का कार्य कर रहे हैं। डॉ. ए.के. द्विवेदी के अनुसार जब भी आपको मूत्र से संबंधित कोई भी परेशानी होने लगे तो तुरंत ही उचित जांच कराते हुए होम्योपैथिक चिकित्सा को अपनाएं।

Tuesday 1 January 2019

सकारात्मक ऊर्जा का प्रयोग कर सम्पूर्ण विकास करते रहे

कैलेण्डर नववर्ष यानि आने वाले कल का स्वागत और बीते हुए वर्ष की विदाई!
स्वागत और विदाई दोनों शब्दों में विरोधाभास है फिर भी दोनों 
महत्वपूर्ण हैं क्योंकि जब तक पुराना विदा न होगा 
तब तक नए का स्वागत कैसे होगा।
हमने हमारी बीती जिंदगी या वर्ष में जो भी गलती की हो उसे सुधारने के लिए 
फिर नया वर्ष, नया समय हमें ईश्वर की ओर से प्राप्त हुआ है 
जिसमें हम अपनी सम्पूर्ण सकारात्मक ऊर्जा का उपयोग कर 
हमारे आने वाले कई नववर्षों का आनंद उठा सके 
और जीवन के उल्लास का उत्सव मनाते रहें...
इसी कामना के साथ कैलेण्डर नववर्ष 
२०१९ की हार्दिक शुभकामनाएं...
डॉ. ए.के. द्विवेदी