होम्योपैथी द्वारा टायफाइड चिकित्सा
मोतीझरा अर्थात् टायफाइड भारत तथा अन्य विकसित देशों में व्यापक रूप से विद्यमान रोग है। यह रोग सालमोनेला टाइफी नामक (बैक्टीरिया) से होता है। ये बैक्टीरिया रोगी के तथा वाहक के मलमूत्र के जरिए वातावरण जल आदि को दूषित करते हैं और इस जल से संक्रमित दूध एवं इससे निर्मित पदार्थ एवं अन्य खाद्य पदार्थों का सेवन इस रोग का प्रमुख कारण हैं।टायफाइड के लक्षण
- कब्जियत
- कफ
- सिर में दर्द
- पेट में दर्द
- गले में खराश
- हर समय बुखार रहना।
रोग क्यों होता है?
इस ज्वर से पीडि़त रोगी के मल-मूत्र में इसके कीटाणु रहते हैं। ये कीटाणु जल या खाद्य पदार्थों में पहुंचकर अन्य व्यक्ति को भी इस रोग से संक्रमित करने का खतरा पैदा कर देते हैं। ये कीटाणु मल में अधिकतम पन्द्रह दिन तक जीवित रह सकते हैं। अमाशय में स्थित अम्ल से ये कीटाणु मर जाते हैं परन्तु जब इसका वेग अधिक होता है तब ये अम्ल से भी नहीं मर पाते और कृमि संख्या में बढ़कर ज्वर एवं छोटी आंत में सूजन व घाव उत्पन्न कर देते हैं। साथ-साथ एक प्रकार का विष का उत्सर्ग भी करते हैं जिससे ज्वर आदि के लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं। मरीज को लंबे समय तक परहेज करना पड़ता है। मरीज को हल्का व सुपाच्य भोजन करने के साथ ही उबला पानी पीना चाहिए।टायफाइड अधिकतर गंदे पानी के सेवन से होने वाली बीमारी है। उबला हुआ पानी पीने और खान पान पर नियंत्रण रखने से बीमारी पर काबू पाया जा सकता है।
आमतौर पर ये बुखार एक से दो हफ्ते तक चलता है। मरीज को १०३-१०४ डिग्री बुखार की शिकायत निरंतर रहती है। कई मरीजों को छाती में जकडऩ भी हो जाती है। इसके अलावा पेट दर्द की परेशानी आम बात है। मरीज को पूरी तरह से ठीक होने में ४-६ सप्ताह लग जाते हैं। हमारे पास आने वाले मरीज जांच रिपोर्ट लेकर आते हैं, जो कि पूरी तरह से डायग्नोस्ट केस होते हैं। साथ ही भूख न लगना, सिरदर्द, शरीर तथा जोड़ों में दर्द, कमजोरी, बाल झडऩा, सुस्ती, थकान इत्यादि समस्याएं बुखार उतर जाने के बाद भी मरीजों में बनी रहती है।
होम्योपैथिक दवाईयों के सेवन से जल्द ही टायफाइड तथा उसके साथ होने वाली अन्य परेशानियों से छुटकारा पा सकते हैं।
अच्छी जानकारी है...
ReplyDeletenice article
ReplyDeletethanks madam ji
ReplyDeleteSAHI HAI VINAY JI
ReplyDeleteVERY NICE ARTICLE
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