Saturday, 2 August 2014

रक्ताल्पता और हर माह परेशानी

 

रक्ताल्पता और हर माह परेशानी

स्वल्परज (मासिक के समय कम रक्तस्त्राव) के कारणों में रक्ताल्पता अथवा नारी की साधारण कमजोरी प्राय: एक बहुत बड़ा कारण होता है। ऐसी स्थिति में प्रयास यह होना चाहिए कि कमजोरी दूर हो और रक्त की मात्रा बढ़े। यदि इसके विपरीत मासिक ठीक करने वाली दवाएं दी जाती रहीं, तो वह सर्वथा निरर्थक सिद्ध होंगी।
नारी के लिए मासिक-धर्म होना, निश्चय ही एक स्वाभाविक क्रिया है। और, एक निश्चित समय पर 3-4 दिनों के स्त्राव के बाद, वह स्वत: बन्द हो जाता है। मासिक धर्म ही नारी के लिए गर्भधारण में प्रकारान्तर से सहायक होता है। मासिक धर्म में अनेक व्यतिक्रम भी उपस्थित होते हैं। ये सभी व्यतिक्रम नारी के साधारण स्वास्थ्य से संबद्ध होते हैं। मात्रा में मासिक कम होना, अधिक होना, असमय एक मास में एक बार से अधिक होना, महीने के अन्तर से होना अथवा मासिक के समय कटि-प्रदेश में दर्द सभी नारी स्वास्थ्य के लिए समस्याएं हैं।
हम मासिक कम होने की समस्याओं पर ही विचार करेंगे। ऐसे कष्ट को स्वल्परज कहते हैं। इस कष्ट के पीछे अनेक कारण हो सकते हैं- यथा डिम्ब-कोष में प्रदाह, डिम्ब-कोष में सूजन या गिल्टी, जरायु का स्थानाच्युत होना, नारी का रक्ताल्पता का शिकार होना, साधारण कमजोरी तथा मानसिक अवसन्नता।
स्वल्परज के पीछे क्या कारण है, इसका निदान तो अपनी जगह आवश्यक है ही, पर निदान के चक्कर में प्राय: रोगिणी ऐसी भ्रमित हो जाती है कि वह दवा खाती ही जाती है और लाभ कुछ नहीं दिखता।

रक्ताल्पता को समझें

रक्ताल्पता का अर्थ है-रक्त की कमी। रक्ताल्पता के शिकार व्यक्ति के रक्त में हीमोग्लोबिन की कमी होती है। हीमोग्लोबिन की रचना में भोजन में आयरन का सही मात्रा में होना अत्यन्त आवश्यक है। श्वसन के द्वारा आए ऑक्सीजन को वही ग्रहण करता है और अपने साथ ही उस ऑक्सीजन को भी कोशिकाओं तक उनके पोषण के लिए पहुंचाता है। हीमोग्लोबिन ही वह पदार्थ है, जो रक्त को लालिमा प्रदान करता है। जिसके रक्त में हीमोग्लोबिन की कमी होगी, उसकी त्वचा का रंग भी पीताभ होगा। इसी कारण आयुर्वेद में इसे 'पाण्डुÓ नाम दिया गया है। रक्ताल्पता से ग्रस्त व्यक्ति मात्र पीताभ ही नहीं होता, उसे भूख नहीं लगती, वह शक्तिहीनता का अनुभव करता है तथा पूरा पोषण प्राप्त करने में अक्षम होता है। इसका कारण है कि शरीर को पूरा पोषण न मिल पाने के कारण, व्यक्ति शारीरिक और मानसिक दोनों ही स्तरों पर प्रभावित होता है। इसके साथ ही तथ्य यह है कि रक्ताल्पता गलत खान-पान और रहन-सहन का प्रतिफल है। इसके कारण एक चक्र बन जाता है- गलत रहन-सहन के कारण रक्त की आपूर्ति में गड़बड़ी और रक्त की आपूर्ति में गड़बड़ी के कारण, कमजोरी में अभिवृद्धि।

उपचार के पीछे दृष्टि

यदि रक्ताल्पता के रोगी का उपचार करना हो, तो व्यक्ति के पूरे शरीर को दृष्टि में रखकर उपचार करना चाहिए। ऐसे व्यक्ति का पूरा ऑर्गेनिज्म सदोष होता है। उसके ही त्रुटिपूर्ण काम के कारण रक्ताल्पता की स्थिति उत्पन्न होती है। पर चिकित्सक रक्ताल्पता का अर्थ लौह की कमी मान कर उसे लौह देना प्रारम्भ कर देते हैं। पर जैसे पहले कहा जा चुका है और कई बार इस खनिज लौह को आत्मसात कर पाने में शरीर असमर्थ होता है।

आहार

प्राकृतिक आयरन प्राप्त करने का सही साधन आहार है। हरी पत्ती वाली भाजियां, फल, सूखे मेवे, चोकर समेत आटा तथा कन समेत चावल शरीर को लौह आपूर्ति के लिए सही साधन है। रक्ताल्पता से सही रूप में मुक्ति पाने के लिए आवश्यक है कि शुरू में तीन-चार दिन रोगी को मात्र फल पर रखा जाए और रोगी जितने दिनों तक फलाहार करती रहे, उतने दिन नित्य उसे हल्के गरम पानी का एनिमा दिया जाए। फलाहार काल में यह भी ध्यान रखने की बात है कि एक बार में मात्र एक ही फल दिया जाए। उसके बाद रूग्णा को धीरे-धीरे साधारण भोजन पर लाया जाए। यथा प्रात: 250 ग्राम मौसम में मिलने वाला कोई एक फल यथा सेब, नाशपती, अमरूद, ककड़ी, खीरा, खरबूजा, आम तथा 50 ग्राम अंकुरित मूंग तथा दोपहर, शाम को चोकरदार आटे की रोटी तथा 250 ग्राम बिना मसाले वाली सादी सब्जी। सब्जी में दोनों समय हरी पत्तियों वाली भाजियां भी पर्याप्त मात्रा में होनी चाहिए। और तीसरे प्रहर गाजर, मौसमी, संतरा, खीरा किसी चीज का 250 ग्राम रस।

चिकित्सा कटिस्नान

स्वल्परज से ग्रस्त नारी को प्रात: सायं कटिस्नान लेकर एक-दो किमी. टहलना अवश्य चाहिए। मासिक के दिनों में कटिस्नान स्थगित कर देना चाहिए, पर यथाशक्ति टहलना जारी रखना चाहिए। कटिस्नान दो मिनट से प्रारम्भ करना चाहिए और बढ़ाकर 5 मिनट तक का लेना चाहिए।

गरम-ठंडा कटिस्नान

स्वल्परज से ग्रस्त नारी को सप्ताह में एक दिन गरम ठंडा कटिस्नान लेना चाहिए। यह भी कटिस्नान के समान ही काम है। पर इसके लिए दो टबों की आवश्यकता होती है। एक टब में गरम पानी होता है और दूसरे में ठंडा। गरम पानी के टब में 3 मिनट बैठें और ठंडे पानी के टब में 1 मिनट और ऐसा तीन बार करें। चौथी बार गरम पानी के टब में 3 मिनट बैठें और ठंडे पानी के टब में 3 मिनट। उसके बाद ठंडे पानी से स्नान कर लें। गरम ठंडा कटिस्नान में ध्यान में रखने वाली दो बातें बहुत जरूरी है। गरम पानी वाले टब का पानी ज्यों-ज्यों ठंडा होता जाए, उसमें गरम पानी मिलाकर पानी का तापमान पूर्ववत करते रहें। और दूसरी बात यह कि स्नान शुरू करने से पहले सिर को धो लें और सिर पर गीला तौलिया लपेट लें। इस तौलिया को पूरे काल में 2-3 बार ठंडे पानी से गीला कर लें।

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