Sunday, 3 August 2014

वरदान होते हैं सच्चे मित्र

 

वरदान होते हैं सच्चे मित्र

रिश्तों का बंधन जन्म के साथ ही जुड़ा होता है। इन पारिवारिक रिश्तों के साथ-साथ एक बहुत महत्वपूर्ण रिश्ता होता है- दोस्ती का रिश्ता, जो हम अपने विवेक से बनाते हैं। मित्र बनाना या मित्रता करना मानवीय स्वभाव है। छोटे बच्चों से लेकर बड़े-बुजुर्गों तक सभी के मित्र होते हैं।
कहा जा सकता है कि बिना मित्रों के सामाजिक जीवन नीरस होता है। कुछ लोग मित्र बनाने में माहिर होते हैं तो कुछ लोगों को दोस्ती करने में बहुत समय लगता है। मित्र पाने की राह है खुद किसी का मित्र बन जाना।
मित्रता करने के लिए स्वयं पहल करने से झिझकें नहीं।
मुस्कुराहट के साथ पहला कदम बढ़ाएँ। अपना परिचय देते हुए सामने वाले का परिचय प्राप्त करें।
वार्तालाप के दौरान अपनी हैसियत या पैसे का रौब जताने का प्रयास न करें और न ही दूसरे की स्थिति को कमजोर बताने की कोशिश करें।
कुछ अपनी कहें तो कुछ सामने वाले की भी सुनें।
एक-दूसरे की रुचियों के बारे में जानने का प्रयास करें। समान अभिरुचियों वालों में दोस्ती होने की संभावना अधिक रहती है। मगर एक-दूसरे से विपरीत शौक रखने वालों में मित्रता न हो, ऐसा भी नहीं।
मित्रता का रिश्ता बेहद खूबसूरत होता है, यदि उसमें छल, कपट का समावेश न हो। विद्वानों ने कहा है- 'मित्रता करने में धैर्य से काम लें। किंतु जब मित्रता कर ही लो तो उसे अचल और दृढ़ होकर निभाओ।

मित्र बनाते वक्त

 किसी की ऊपरी चमक-दमक देखकर उससे आकर्षित होकर मित्र न बनाएँ।
 जो सभ्य और शालीन हो।
 जो पढ़ाई, खेलकूद या सामाजिक गतिविधियों में रुचि रखे।
 जिसकी संगति अच्छी हो।
पारिवारिक रिश्तों के विपरीत बिना किसी अधिकार के परस्पर सहयोग और विश्वास ही सच्ची मित्रता की बुनियाद होती है। सच्चे मित्र हमारे जीवन में एक अहम भूमिका निभाते हैं। वे हमारे जीवन के हर उतार-चढ़ाव के राजदार होते हैं। बचपन की मित्रता बड़ी निश्छल और गहरीहोती है और यह समय के साथ-साथ और गहरी होती जाती है, यदि इसमें स्वार्थ का समावेश न हो तो।

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