Friday, 29 August 2014

गणेश जी की हर बात है खास


भगवान गणपति का पूजन किए बगैर कोई कार्य प्रारम्भ नहीं होता। विघ्न हरण करने वाले देवता के रूप में पूज्य गणेश जी सभी बाधाओं को दूर करने तथा मनोकामना को पूरा करने वाले देवता हैं। श्री गणेश निष्कपटता, विवेकशीलता, अबोधता एवं निष्कलंकता प्रदान करने वाले देवता हैं।
उनके ध्यानमात्र से व्यक्ति उज्जवल भविष्य की ओर अग्रसर होता है। गणपति विवेकशीलता के परिचायक है। गणपति का वर्ण लाल है, उनकी पूजा में लाल वस्त्र, लाल फूल व रक्तचंदन का प्रयोग किया जाता है।
हाथी के कान हैं सूपा जैसे सूपा का धर्म है 'सार-सार को गहि लिए और थोथा देही उड़ायÓ सूपा सिर्फ अनाज रखता है। हमें कान का कच्चा नहीं सच्चा होना चाहिए। कान से सुनें सभी की, लेकिन उतारें अंतर में सत्य को। आंखें सूक्ष्म हैं जो जीवन में सूक्ष्म दृष्टि रखने की प्रेरणा देती हैं। नाक बड़ा यानि दुर्गन्ध (विपदा) को दूर से ही पहचान सकें।
गणेशजी के दो दांत हैं एक अखण्ड और दूसरा खण्डित। अखण्ड दांत श्रद्धा का प्रतीक है यानि श्रद्धा हमेशा बनाए रखना चाहिए। खण्डित दांत है बुद्धि का प्रतीक इसका तात्पर्य एक बार बुद्धि भ्रमित हो, लेकिन श्रद्धा न डगमगाए।
कमर से लिपटा नाग अर्थात: विश्व कुंडलिनी
लिपटे हुए नाग का फण अर्थात : जागृत कुंडलिनी
मूषक अर्थात: रजोगुण। यानी रजोगुण, गणपति के नियंत्रण में है।

Monday, 18 August 2014

श्रीकृष्ण के विविध विग्रह एवं उनकी उपासना


भगवान श्रीकृष्ण को विष्णु का पूर्णावतार माना जाता है। एक ऐसा अवतार जिसमें सम्पूर्ण कलाएं उपस्थित थी, बाल रुप से लेकर मृत्यु तक कृष्ण की लीला वस्तुत: अपरंपार थी। श्रीकृष्ण के कुछ विग्रह इस प्रकार हैं-

पहला स्वरूप : लड्डू गोपाल

धन संपत्ति की प्राप्ति

भगवान श्री कृष्ण जी का ऐसा स्वरुप जिसमें वे एक बालक हैं, जिनके हाथों में लड्डू है ऐसे स्वरुप का ध्यान करें। भगवान के ऐसे चित्र या मूर्ति को हरे रंग के गोटेदार वस्त्र पर स्थापित करें। धूप, दीप, पुष्प आदि चढ़ाकर, सफेद चन्दन प्रदान करें। प्रसाद में खीर अर्पित करें, हरे रंग के आसन पर बैठ कर चन्दन की माला से मंत्र का जाप करें।
मंत्र- ओम स: फ्रें क्लीं कृष्णाय नम:
मंत्र जाप के बाद भगवान् को दूध के छीटे दें।

दूसरा स्वरुप : बंसीबजइया

मानसिक सुख

भगवान श्री कृष्ण जी का ऐसा स्वरुप जिसमें वे एक किशोर हैं, हाथों में बंसी लिए हुए ऐसे स्वरुप का ध्यान करें भगवान के ऐसे चित्र या मूर्ति को नीले रंग के गोटेदार वस्त्र पर स्थापित करें। धूप दीप पुष्प आदि चढ़ाकर, कपूर प्रदान करें प्रसाद में मेवे अर्पित करें, नीले रंग के आसन पर बैठ कर चन्दन की माला से मंत्र का जाप करें।
मंत्र- ओम श्री कृष्णाय क्लीं नम:
मंत्र जाप के बाद भगवान् को घी के छीटे दें।

तीसरा स्वरुप : कालिया मर्दक

व्यापार में तरक्की

भगवान श्री कृष्ण जी का ऐसा स्वरुप जिसमें वे कालिया नाग के सर पर नृत्य मुद्रा में स्थित हैं, ऐसे स्वरुप का ध्यान करें। भगवान के ऐसे चित्र या मूर्ति को काले रंग के गोटेदार वस्त्र पर स्थापित करें, धूप, दीप, पुष्प आदि चढ़ाकर, गोरोचन प्रदान करें, प्रसाद में मक्खन अर्पित करें, काले रंग के आसन पर बैठ कर चन्दन की माला से मंत्र का जाप करें।
मंत्र- ओम हुं ऐं नम: कृष्णाय
मंत्र जाप के बाद भगवान् को दही के छीटे दें।

चौथा स्वरुप : बाल गोपाल

संतान सुख

भगवान श्री कृष्ण जी का ऐसा स्वरुप जिसमें वे एक पालने में झूलते शिशु हैं ऐसे स्वरुप का ध्यान करें, भगवान के ऐसे चित्र या मूर्ति को पीले रंग के गोटेदार वस्त्र पर स्थापित करें। धूप, दीप, पुष्प आदि चढ़ाकर, केसर प्रदान करें, प्रसाद में मिश्री अर्पित करें। पीले रंग के आसन पर बैठ कर चन्दन की माला से मंत्र का जाप करें।
मंत्र- ओम क्लीं क्लीं क्लीं कृष्णाय नम:
मंत्र जाप के बाद भगवान् को शहद के छीटे दें।

पांचवां स्वरुप : माखन चोर

रोगनाश

भगवान श्रीकृष्णजी का ऐसा स्वरूप, जिसमें वे माता यशोदा के सामने ये कहते हुए दिखते हैं कि मैंने माखन नहीं खाया। ऐसे स्वरुप का ध्यान करें। भगवान के ऐसे चित्र या मूर्ति को पीले रंग के गोटेदार वस्त्र पर स्थापित करें। धूप, दीप, पुष्प आदि चढ़ाकर, सच्चा मोती प्रदान करें, प्रसाद में फल अर्पित करें, पीले रंग के आसन पर बैठ कर चन्दन की माला से मंत्र का जाप करें।
मंत्र- ओम हुं ह्रौं हुं कृष्णाय नम:
मंत्र जाप के बाद भगवान् को गंगाजल के छीटे दें।

छठा स्वरुप : गोपाल कृष्ण

मान सम्मान

भगवान श्रीकृष्णजी का ऐसा स्वरुप जिसमें वे वन में सखाओं सहित गैय्या चराते हैं ऐसे स्वरुप का ध्यान करें। भगवान के ऐसे चित्र या मूर्ति को मटमैले रंग के गोटेदार वस्त्र पर स्थापित करें। धूप, दीप, पुष्प आदि चढ़ाकर, मोर पंख प्रदान करें। प्रसाद में मिठाई अर्पित करें। मटमैले रंग के आसन पर बैठ कर चन्दन की माला से मंत्र का जाप करें।
मंत्र- ओम ह्रौं ह्रौं क्लीं नम: कृष्णाय
मंत्र जाप के बाद भगवान् को दूध के छीटे दें।

सातवां स्वरुप : गोवर्धनधारी


क्रूर ग्रह बेअसर

भगवान श्रीकृष्णजी का ऐसा स्वरुप जिसमें वे एक छोटी अंगुली से गोवर्धन पर्वत उठाये हुये दिखते हैं। भगवान के ऐसे चित्र या मूर्ति को लाल रंग के गोटेदार वस्त्र पर स्थापित करें। धूप, दीप, पुष्प आदि चढ़ाकर, पीले पुष्पों का हार प्रदान करें। प्रसाद में मिश्री अर्पित करें। लाल रंग के आसन पर बैठ कर चन्दन की माला से मंत्र का जाप करें।
मंत्र- ओम ऐं कलौं क्लीं कृष्णाय नम:
मंत्र जाप के बाद भगवान को गंगाजल के छीटे दें।

आठवां स्वरुप : राधानाथ

शीघ्र विवाह व प्रेम विवाह

भगवान श्रीकृष्णजी का ऐसा स्वरुप जिसमें राधा और कृष्णजी का प्रेममय झांकी स्वरुप दिखता है ऐसे स्वरुप का ध्यान करें। भगवान के ऐसे चित्र या मूर्ति को गुलाबी रंग के गोटेदार वस्त्र पर स्थापित करें। धूप, दीप, पुष्प आदि चढ़ाकर, इत्र सुगंधी प्रदान करें। प्रसाद में मिठाई अर्पित करें। गुलाबी रंग के आसन पर बैठ कर चन्दन की माला से मंत्र का जाप करें।
मंत्र- ओम हुं ह्रीं स: कृष्णाय नम:
मंत्र जाप के बाद भगवान को शहद के छीटे दें।

नौवां स्वरुप : रक्षा गोपाल

राजकीय कार्यों में सफलता देने वाला

भगवान श्रीकृष्णजी का ऐसा स्वरुप जिसमें वे द्रोपदी के चीर हरण पर उनकी साड़ी के वस्त्र को बढ़ते हुये दिखते हैं ऐसे स्वरुप का ध्यान करें। भगवान के ऐसे चित्र या मूर्ति को मिश्रित रंग के गोटेदार वस्त्र पर स्थापित करें, धूप, दीप, पुष्प आदि चढ़ाकर, मीठे पान का बीड़ा प्रदान करें, प्रसाद में माखन-मिश्री अर्पित करें। मिश्रित रंग के आसन पर बैठ कर चन्दन की माला से मंत्र का जाप करें।
मंत्र- ओम कलौं कलौं ह्रौं कृष्णाय नम:
मंत्र जाप के बाद भगवान् को दही के छीटे दें।

दसवां स्वरुप : भक्त वत्सल

भय नाशक, दुर्घटना नाशक, रक्षक रूप

भगवान श्रीकृष्णजी का ऐसा स्वरुप जिसमें वे सखा भक्त सुदामा के चरण पखारते हैं या युद्ध में रथ का पहिया हाथों में उठाये क्रोधित कृष्ण ऐसे स्वरुप का ध्यान करें। भगवान के ऐसे चित्र या मूर्ति को भूरे रंग के गोटेदार वस्त्र पर स्थापित करें। धूप, दीप, पुष्प आदि चढ़ाकर, एक शंख प्रदान करें। प्रसाद में फल अर्पित करें। भूरे रंग के आसन पर बैठ कर चन्दन की माला से मंत्र का जाप करें।
मंत्र- ओम हुं कृष्णाय नम:
मंत्र जाप के बाद भगवान् को पंचामृत के छीटे दें।

ग्यारहवां स्वरूप : योगेश्वर कृष्ण

परीक्षाओं में सफलता के लिए

भगवान श्रीकृष्णजी का ऐसा स्वरुप जिसमें वे एक रथ पर अर्जुन को गीता का उपदेश करते हैं ऐसे स्वरुप का ध्यान करें। भगवान के ऐसे चित्र या मूर्ति को पीले रंग के गोटेदार वस्त्र पर स्थापित करें। धूप, दीप, पुष्प आदि चढ़ाकर, पुष्पों का ढेर प्रदान करें। प्रसाद में मीठे पदार्थ अर्पित करें। पीले रंग के आसन पर बैठ कर चन्दन की माला से मंत्र का जाप करें।
मंत्र- ओम ह्रौं ह्रौं ह्रौं हुं कृष्णाय न:
मंत्र जाप के बाद भगवान् को दूध के छीटे दें।

बारहवां स्वरुप : विराट कृष्ण

घोर विपदाओं को टालने वाला रूप

भगवान श्रीकृष्णजी का ऐसा स्वरुप जिसमें वे युद्ध के दौरान अर्जुन को विराट दर्शन देते हैं। जिसे संजय सहित वेदव्यास व देवताओं नें देखा ऐसे स्वरुप का ध्यान करें। भगवान के ऐसे चित्र या मूर्ति को लाल व पीले रंग के गोटेदार वस्त्र पर स्थापित करें। धूप, दीप, पुष्प आदि चढ़ाकर, तुलसी दल प्रदान करें। प्रसाद में हलवा बना कर अर्पित करें। पीले या लाल रंग के आसन पर बैठ कर चन्दन की माला से मंत्र का जाप करें।
मंत्र- ओम तत स्वरूपाय कृष्णाय नम:
मंत्र जाप के बाद भगवान् को पंचामृत के छीटे दें।

Thursday, 14 August 2014

स्वतंत्रता का अर्थ


स्वतंत्रता का अर्थ है स्व का तंत्र यानी कि मेरी अपनी प्रणाली, मेरा अपना तरीका। इसी को गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने इस रूप में कहा है कि ‘‘दूसरे के धर्म का पालन करने से बेहतर है स्वधर्म का पालन करते हुए नष्ट हो जाना।’’ यह स्वधर्म ही तो स्व का तंत्र है। गीता में कृष्ण का धर्म हिन्दू, मुसलमान, ईसाई का धर्म नहीं है, बल्कि यह प्रकृति का धर्म है। यह वह धर्म है, जो प्रकृति ने अपनी हर एक रचना को दिया हुआ है और प्रकृति की जितनी भी रचनाएं हैं, सभी एक-दूसरे से भिन्न हैं। यहाँ तक कि यदि आप एक ही पेड़ के दो आम एक ही समय में तोड़कर बारी-बारी से खायें, तो उनके भी स्वाद में आपको फर्क महसूस हो जाएगा, क्योंकि इन दोनों ही आमों का तंत्र अलग-अलग है, भले ही उनको रस पहुँचाने वाली जड़ें एक ही हैं और भले ही उन जड़ों को रस देने वाली ज़मीन भी एक ही है।
तुम स्वयं स्वतंत्र हो, ताकि दूसरा कोई तुम्हें गुलाम न बना सके। इस ‘स्वतंत्र होवो’ का सम्बन्ध मानसिक स्वतंत्रता से है। इसका सम्बन्ध विचारों की स्वतंत्रता से है। इसका सम्बन्ध इस बात से है कि छोटापन छोड़ो। छोटे कमरे में घुटन होती है। छोटे कपड़े पहनने से कसमसाहट बढ़ती है। जहाँ भी छोटापन होगा। वहाँ परेशानी होगी। जहाँ छोटे विचार होंगे, वहाँ घुटन होगी। जहाँ घुटन होगी, वहाँ स्व का तंत्र काम कर ही नहीं सकता। तो ओछापन छोड़ो ताकि विचार स्वतंत्र हो सकें। लगने दो अपने विचारों में बड़ेपन के पंख, ताकि वह हमारे घर, हमारे नगर और यहाँ तक कि हमारे देश और दुनिया को छोड़कर ब्रह्माण्ड की खुलेआम सैर कर सके। छोटे कमरे में घुटन होती है। तोड़ो दिमाग की इस तिहाड़ जेल को, ताकि हमारी चेतना उन्मुक्त होकर ब्रह्माण्ड की चेतना से सम्पर्क करने लायक बन सके।

कैसी हो वर्किंग वुमन की डाइट


कामकाजी महिलाओं का खान-पान आम महिलाओं की अपेक्षा और भी न्यूट्रीशियस और स्वास्थ्यवर्धक होना चाहिए, नहीं तो शरीर अंदर से खोखला होने लगता है। उनकी डाइट कार्यक्षमता के अनुरूप होनी चाहिए। इसके लिए उन्हें चाहिए कि वे डाइट में विटामिन, जिंक, प्रोटीन और कैल्शियम वाली चीजों को शामिल करें।
कामकाजी महिलाओं की डाइट उनके कार्य के अनुरूप होनी चाहिए, यानी स्वास्थ्यवर्धक और न्यूट्रीशियस। अन्यथा, कई तरह की बीमारियां उन पर हावी हो सकती हैं। अगर आप भी कामकाजी हैं, तो जानिए फिट रहने के लिए आपको अपनी डाइट में किन चीजों को शामिल करना चाहिए। कामकाजी महिलाओं का खान-पान आम महिलाओं की अपेक्षा और भी न्यूट्रीशियस और स्वास्थ्यवर्धक होना चाहिए, नहीं तो शरीर अंदर से खोखला होने लगता है। कामकाजी महिलाओं की डाइट उनकी कार्यक्षमता के अनुरूप होनी चाहिए। इसके लिए उन्हें अपनी डाइट में विटामिन, जिंक, प्रोटीन और कैल्शियम वाली चीजें शामिल करनी चाहिए। उन्हें अपना डाइट चार्ट बनाना चाहिए और उसी के हिसाब से डाइट लेनी चाहिए।

करें स्वस्थ नाश्ता

सुबह का नाश्ता पौष्टिकता से परिपूर्ण होना चाहिए। इसलिए आप अपने दिन की शुरूआत दूध, दलिया, कॉर्नफ्लेक्स जैसी स्वास्थ्यवर्धक चीजों से भी कर सकती हैं। सुबह के नाश्ते में एक फल जरूर खाना चाहिए। कोशिश करें कि लाल, पीले या नारंगी रंग के फल खाएं, जैसे स्ट्रॉबेरी, सेब, पपीता या आडू आदि। इनमें विटामिन-ए की मात्रा मिलती है। सुबह चाय की जगह आप स्किमड मिल्क, म_ा, ब्लैक टी या ग्रीन टी लें तो ज्यादा अच्छा रहेगा। दिमागी ताकत के लिए आप स्प्राउट्स या दूध के साथ ड्राई फ्रूट्स भी ले सकती हैं। नाश्ते में कभी-कभार बदलाव के लिए आप ब्राउन ब्रेड या मल्टी ग्रेन ब्रेड से बना सेंडविच भी खा सकती हैं।

लंच में लाएं बदलाव

ब्रेकफास्ट और लंच के बीच सिर्फ 4-5 घंटे का ही गैप होना चाहिए। कामकाजी महिलाओं को लंच में ऐसी चीजें खानी चाहिए जिनमें जिंक की मात्रा अधिक हो। लंच में पालक या ब्रोकली जैसी हरी सब्जियों को शामिल करें। गेहूं की रोटी की जगह बेसन या गेहूं और बेसन मिक्स रोटी भी खा सकती हैं। खाने में एक कटोरी दाल जरूर खाएं। अधिक प्रोटीन के लिए आप पंच मेल दाल यानी पांच तरह की दालों को एक साथ बनाकर खाएं। अगर आपको हरी सब्जी नहीं पसंद है तो उसकी जगह आप रोटी के साथ अंडे की सफेदी की भुजिया या हल्के तेल में पनीर फ्राई करके भी खा सकती हैं। सर्दियों में दही ठंडा होने की वजह से नुकसानदेह हो सकता है इसलिए इसे खाने से बचें। लेकिन सलाद का सेवन जरूर करें। सलाद के लिए आप कटी हुई शिमला मिर्च में तेल डालकर थोड़ा सा ग्रिल कर लें। फिर उसमें कच्ची सब्जियां, सलाद का पत्ता, किशमिश और थोड़ा-सा नींबू डालकर खाएं।

डिनर भी जरूर लें

रात के समय हल्का खाना ही बेस्ट रहता है। हल्के खाने का यह मतलब बिल्कुल भी नहीं है कि आप कुछ खाएं ही न। परांठे की जगह रोटी और कम मसाले वाली सब्जी खाएं। हल्के खाने में आप पोहा, चीला, सलाद, अंडे की सफेदी का ऑमलेट, उबला हुआ अंडा, कॉर्नफ्लेक्स भी खा सकती हैं। इससे फैट भी नहीं बढ़ता है। सर्दियों के इस मौसम में आप सब्जियों का सूप भी पी सकती हैं।

Wednesday, 13 August 2014

मीठी गोलियां : सिरदर्द एवं माइग्रेन से निजात

 

मीठी गोलियां : सिरदर्द एवं माइग्रेन से निजात

होम्योपैथी में लोगों को स्वस्थ करने की अचूक शक्ति होती है। लोग जब सकल प्रयास के बाद थक हार जाते हैं तब हमारे (होम्योपैथिक चिकित्सक) के पास आते हैं।
सिरदर्द एवं माइग्रेन के लिए केवल दर्द निवारक गोलियों पर निर्भर रहना ठीक नहीं है। इस तरह से अपनी बिमारी से छुटकारा नहीं हासिल कर सकते हैं बल्कि अन्य कई बिमारियों को आमंत्रित कर लेते हैं।
जीवन में कभी न कभी हर किसी को सिरदर्द का अनुभव जरूर होता है परन्तु जब वही सिरदर्द लगातार और बार-बार होने लगता है तथा हमारे दैनिक कार्यों को अवरूद्ध करने लगता है। तब हमें काफी परेशानी होने लगती है और सबसे ज्यादा परेशानी तो तब होती है जब सकल प्रयास (सभी प्रकार की दवाईयों) के बाद भी यह सिरदर्द ठीक नहीं होता है और माइग्रेन कहलाने लगता है। माइग्रेन के तीन स्टेज होते हैं- माईल्ड, माडेरेट एवं सीवियर।
माईल्ड तरह के माइग्रेन में कभी-कभी फटने जैसा सिरदर्द होता है और हमारी दैनिक कार्यों में ज्यादा प्रतिकूल असर नहीं पड़ता है।
माडेरेट तरह के माइग्रेन में तेज सिरदर्द के साथ-साथ उल्टी जैसा या मिचली हो सकती है और हमारी दैनिक कार्यों को प्रभावित कर सकता है।
सीवियर माइग्रेन के मरीजों को माह में तीन से पांच बार तक तेज सिरदर्द के साथ उल्टी एवं चक्कर आ सकते हैं तथा दर्द २४ से ७२ घंटे तक रह सकता है और दैनिक कार्य पूर्ण रूप से अवरूद्ध हो सकता है।
माइग्रेन सामान्तया अनुवांशिक होता है। इसके अलावा कुछ न्युरोलॉजिकल वजह तथा ब्रेन ट्यूमर के कारण भी हो सकता है। माइग्रेन के कारण, लक्षणों तथा स्टेज के आधार पर यदि हम होम्योपैथिक दवाइयों का चयन करते हैं तो मरीजों को शीघ्र ही आशानुरूप परिणाम मिलने लगते हैं और धीरे-धीरे बिमारी से निजात मिल जाती है।

जरूरी नहीं लंबा हो इलाज

आमतौर पर लोगों को लगता है कि होम्योपैथी इलाज काफी लंबा होता है। जबकि वास्तविकता यह है कि इन दवाइयों का असर कई कारणों पर निर्भर करता है। रोग यदि पुराना है तो मरीज को ठीक होने में समय लगता है वहीं हाल ही में उत्पन्न हुआ रोग कम अवधि के भीतर ठीक हो जाता है।
साइड इफेक्ट्स न होने की वजह से होम्योपैथिक दवाइयों को लोग प्राथमिकता देते ही हैं, साथ ही ये बच्चों में भी बेहद लोकप्रिय है। वजह यह कि छोटी-छोटी मीठी गोलियों को लेने में बच्चों को कोई तकलीफ भी नहीं होती और दिन में दो बार लेनी हो या तीन बार, मीठे स्वाद की वजह से बच्चे खुद याद रखकर दवाइयों का सेवन कर लेते हैं।

Saturday, 9 August 2014

होम्योपैथी द्वारा टायफाइड चिकित्सा

होम्योपैथी द्वारा टायफाइड चिकित्सा

मोतीझरा अर्थात् टायफाइड भारत तथा अन्य विकसित देशों में व्यापक रूप से विद्यमान रोग है। यह रोग सालमोनेला टाइफी नामक (बैक्टीरिया) से होता है। ये बैक्टीरिया रोगी के तथा वाहक के मलमूत्र के जरिए वातावरण जल आदि को दूषित करते हैं और इस जल से संक्रमित दूध एवं इससे निर्मित पदार्थ एवं अन्य खाद्य पदार्थों का सेवन इस रोग का प्रमुख कारण हैं।

टायफाइड के लक्षण

  •  कब्जियत
  •   कफ
  • सिर में दर्द
  • पेट में दर्द
  • गले में खराश
  • हर समय बुखार रहना।

रोग क्यों होता है?

इस ज्वर से पीडि़त रोगी के मल-मूत्र में इसके कीटाणु रहते हैं। ये कीटाणु जल या खाद्य पदार्थों में पहुंचकर अन्य व्यक्ति को भी इस रोग से संक्रमित करने का खतरा पैदा कर देते हैं। ये कीटाणु मल में अधिकतम पन्द्रह दिन तक जीवित रह सकते हैं। अमाशय में स्थित अम्ल से ये कीटाणु मर जाते हैं परन्तु जब इसका वेग अधिक होता है तब ये अम्ल से भी नहीं मर पाते और कृमि संख्या में बढ़कर ज्वर एवं छोटी आंत में सूजन व घाव उत्पन्न कर देते हैं। साथ-साथ एक प्रकार का विष का उत्सर्ग भी करते हैं जिससे ज्वर आदि के लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं। मरीज को लंबे समय तक परहेज करना पड़ता है। मरीज को हल्का व सुपाच्य भोजन करने के साथ ही उबला पानी पीना चाहिए।
टायफाइड अधिकतर गंदे पानी के सेवन से होने वाली बीमारी है। उबला हुआ पानी पीने और खान पान पर नियंत्रण रखने से बीमारी पर काबू पाया जा सकता है।
आमतौर पर ये बुखार एक से दो हफ्ते तक चलता है। मरीज को १०३-१०४ डिग्री बुखार की शिकायत निरंतर रहती है। कई मरीजों को छाती में जकडऩ भी हो जाती है। इसके अलावा पेट दर्द की परेशानी आम बात है। मरीज को पूरी तरह से ठीक होने में ४-६ सप्ताह लग जाते हैं। हमारे पास आने वाले मरीज जांच रिपोर्ट लेकर आते हैं, जो कि पूरी तरह से डायग्नोस्ट केस होते हैं। साथ ही भूख न लगना, सिरदर्द, शरीर तथा जोड़ों में दर्द, कमजोरी, बाल झडऩा, सुस्ती, थकान इत्यादि समस्याएं बुखार उतर जाने के बाद भी मरीजों में बनी रहती है।
होम्योपैथिक दवाईयों के सेवन से जल्द ही टायफाइड तथा उसके साथ होने वाली अन्य परेशानियों से छुटकारा पा सकते हैं।

Sunday, 3 August 2014

जिनमें ये पांच गुण न हो उनसे दोस्ती करना मूर्खता है... चाणक्य

 

जिनमें ये पांच गुण न हो उनसे दोस्ती करना मूर्खता है... चाणक्य

सभी रिश्ते व्यक्ति के जन्म के साथ ही बनते हैं। जिस घर-परिवार में हमारा जन्म हुआ है वहां से संबंधित सभी लोगों से हमारा रिश्ता स्वत: ही जुड़ जाता है। इन रिश्तों को तोडऩा या जोडऩा व्यक्ति के हाथों में नहीं रहता है। ये रिश्ते हमेशा ही बने रहते हैं। इन रिश्तों के अतिरक्ति एक रिश्ता है जो हम अपने व्यवहार से बनाते हैं, वह है मित्रता। मित्रता ही एकमात्र ऐसा रिश्ता है जो हम खुद जोड़ते हैं। मित्र हम स्वयं चुनते हैं।
सच्चे मित्र ही हमें सभी परेशानियों से बचा लेते हैं और कठिन समय में मदद करते हैं। हमें कैसे मित्र चुनना चाहिए? इस संबंध में आचार्य चाणक्य ने कहा है कि जिस व्यक्ति में अपने परिवार का पालन पोषण करने की योग्यता ना हो, जो व्यक्ति अपनी गलती होने पर भी किसी से न डरता हो, जो व्यक्ति शर्म नहीं करता है, लज्जावान न हो, अन्य लोगों के लिए जिसमें उदारता का भाव न हो, जो इंसान त्यागशील नहीं है, वे मित्रता के योग्य नहीं कहे जा सकते।
चाणक्य के अनुसार यदि कोई व्यक्ति अपने परिवार का भरण-पोषण सिर्फ आलस्य और झूठे अभिमान की वजह से नहीं करते हैं। हमेशा जो व्यर्थ की बातों में समय नष्ट करते हैं। ऐसे लोगों से दूर ही रहना चाहिए। इसके अलावा जो लोग अपनी गलती होने पर भी किसी न डरे, विद्वान और वृद्धजन का आदर-सम्मान नहीं करते हैं। उनसे मित्रता नहीं करना चाहिए। जिन लोगों में लज्जा का गुण न हो, जो किसी भी गलत कार्य को करने में संकोच न करें, जो लज्जा हीन हो उनसे मित्रता नहीं करनी चाहिए। जिन लोगों में अन्य लोगों के लिए उदारता का गुण न हो वे भी मित्रता योग्य नहीं होते हैं। दूसरे के दुख पर उपहास करना, किसी की मदद न करने वालों से मित्रता न करें। इसके अलावा जो लोग त्याग की भावना नहीं रखते हो उनसे भी मित्रता नहीं करना चाहिए।

दूर रहिए नेगेटिव थिंकिंग वाले दोस्तों से

 

दूर रहिए नेगेटिव थिंकिंग वाले दोस्तों से

हम सभी अपने दोस्तों से बहुत प्यार करते हैं। उनके साथ समय बिताना हमें प्रिय लगता है। लेकिन जरा अपने आप से पूछिए कि क्या कुछ दोस्तों से मिलने के बाद आप डिप्रेशन में चले जाते हैं। या आपको घबराहट होने लगती है। या भविष्य के प्रति आपकी चिंता बढ़ जाती है। या फिर आपमें नकारात्मक विचार आने लगते हैं। अगर इनमें से किसी एक प्रश्न का भी उत्तर हाँ है तो सावधान आपको अपने मित्र से दूरी बनाने की जरूरत है। या तो आपकी संगत में वह पॉजिटीव हो जाए या फिर उसकी नेगेटिविटी का आप पर असर ना हो इसलिए आजमाइए कुछ आसान से टिप्स खुद को बचाने के -
  • किसी दोस्त की नकारात्मक बातें सोच-सोच कर आप ऊब गए हैं तो खड़े हो जाइए और 5-10 मिनट टहलें या किसी खुशमिजाज मित्र से फोन पर चलते-चलते बात करें या कोई मधुर संगीत सुनें।
  • नकारात्मक न सोचें क्योंकि इससे तनाव बढ़ता है आप डिप्रेशन में आ जाते हैं।
  • नकारात्मक सोच वाले लोग सकारात्मक सोचने वालों की तुलना में कम जीते हैं।
  • नकारात्मक सोचने वाले लोग अन्य लोगों की तुलना में अधिक भोजन करते हैं। परिणामस्वरूप आगे चलकर उनके बीमार होने की आशंका बढ़ जाती है।
  • नकारात्मक विचार मन में न आएँ, इसके लिए सकारात्मक कार्यों में लग जाएँ।
  • आप चाहें तो प्रकृति के नजदीक जाकर ईश्वर की खूबसूरत संरचना को निहारें, पेड़-पौधे देखें या पक्षियों की आवाज सुनें। मन को सुकून मिलेगा।
  • जब भी मन में नकारात्मक विचार आए तो टीवी पर कोई कॉमेडी प्रोग्राम देखने लगें। कोई अच्छी किताब पढ़ें या रसोई में जाकर मनपसंद व्यंजन बनाएँ।
  • यदि आप किसी अन्य कार्य में व्यस्त हो जाते हैं तो दस मिनट में नकारात्मक विचार स्वत: ही गायब हो जाते हैं।
  • नकारात्मक विचार वाले दोस्तों को समझाने का प्रयास करें अगर वह ना बदले तो उससे बात न करें क्योंकि ऐसे लोग और कुछ करें या न करें लेकिन आपको परेशान अवश्य कर देंगे।
  • दोस्ती अपनी जगह है, दोस्ती में परेशानी भी बाँटी जानी चाहिए लेकिन एक सीमा तक। हर वक्त का रोना आप दोनों के भविष्य के लिए अच्छा नहीं है।
  • इसलिए अच्छा-अच्छा सोचें और अच्छा-अच्छा ही करने की कोशिश करें। यह वक्त अगर चला गया तो फिर लौट कर नहीं आने वाला।

वरदान होते हैं सच्चे मित्र

 

वरदान होते हैं सच्चे मित्र

रिश्तों का बंधन जन्म के साथ ही जुड़ा होता है। इन पारिवारिक रिश्तों के साथ-साथ एक बहुत महत्वपूर्ण रिश्ता होता है- दोस्ती का रिश्ता, जो हम अपने विवेक से बनाते हैं। मित्र बनाना या मित्रता करना मानवीय स्वभाव है। छोटे बच्चों से लेकर बड़े-बुजुर्गों तक सभी के मित्र होते हैं।
कहा जा सकता है कि बिना मित्रों के सामाजिक जीवन नीरस होता है। कुछ लोग मित्र बनाने में माहिर होते हैं तो कुछ लोगों को दोस्ती करने में बहुत समय लगता है। मित्र पाने की राह है खुद किसी का मित्र बन जाना।
मित्रता करने के लिए स्वयं पहल करने से झिझकें नहीं।
मुस्कुराहट के साथ पहला कदम बढ़ाएँ। अपना परिचय देते हुए सामने वाले का परिचय प्राप्त करें।
वार्तालाप के दौरान अपनी हैसियत या पैसे का रौब जताने का प्रयास न करें और न ही दूसरे की स्थिति को कमजोर बताने की कोशिश करें।
कुछ अपनी कहें तो कुछ सामने वाले की भी सुनें।
एक-दूसरे की रुचियों के बारे में जानने का प्रयास करें। समान अभिरुचियों वालों में दोस्ती होने की संभावना अधिक रहती है। मगर एक-दूसरे से विपरीत शौक रखने वालों में मित्रता न हो, ऐसा भी नहीं।
मित्रता का रिश्ता बेहद खूबसूरत होता है, यदि उसमें छल, कपट का समावेश न हो। विद्वानों ने कहा है- 'मित्रता करने में धैर्य से काम लें। किंतु जब मित्रता कर ही लो तो उसे अचल और दृढ़ होकर निभाओ।

मित्र बनाते वक्त

 किसी की ऊपरी चमक-दमक देखकर उससे आकर्षित होकर मित्र न बनाएँ।
 जो सभ्य और शालीन हो।
 जो पढ़ाई, खेलकूद या सामाजिक गतिविधियों में रुचि रखे।
 जिसकी संगति अच्छी हो।
पारिवारिक रिश्तों के विपरीत बिना किसी अधिकार के परस्पर सहयोग और विश्वास ही सच्ची मित्रता की बुनियाद होती है। सच्चे मित्र हमारे जीवन में एक अहम भूमिका निभाते हैं। वे हमारे जीवन के हर उतार-चढ़ाव के राजदार होते हैं। बचपन की मित्रता बड़ी निश्छल और गहरीहोती है और यह समय के साथ-साथ और गहरी होती जाती है, यदि इसमें स्वार्थ का समावेश न हो तो।

Saturday, 2 August 2014

रक्ताल्पता और हर माह परेशानी

 

रक्ताल्पता और हर माह परेशानी

स्वल्परज (मासिक के समय कम रक्तस्त्राव) के कारणों में रक्ताल्पता अथवा नारी की साधारण कमजोरी प्राय: एक बहुत बड़ा कारण होता है। ऐसी स्थिति में प्रयास यह होना चाहिए कि कमजोरी दूर हो और रक्त की मात्रा बढ़े। यदि इसके विपरीत मासिक ठीक करने वाली दवाएं दी जाती रहीं, तो वह सर्वथा निरर्थक सिद्ध होंगी।
नारी के लिए मासिक-धर्म होना, निश्चय ही एक स्वाभाविक क्रिया है। और, एक निश्चित समय पर 3-4 दिनों के स्त्राव के बाद, वह स्वत: बन्द हो जाता है। मासिक धर्म ही नारी के लिए गर्भधारण में प्रकारान्तर से सहायक होता है। मासिक धर्म में अनेक व्यतिक्रम भी उपस्थित होते हैं। ये सभी व्यतिक्रम नारी के साधारण स्वास्थ्य से संबद्ध होते हैं। मात्रा में मासिक कम होना, अधिक होना, असमय एक मास में एक बार से अधिक होना, महीने के अन्तर से होना अथवा मासिक के समय कटि-प्रदेश में दर्द सभी नारी स्वास्थ्य के लिए समस्याएं हैं।
हम मासिक कम होने की समस्याओं पर ही विचार करेंगे। ऐसे कष्ट को स्वल्परज कहते हैं। इस कष्ट के पीछे अनेक कारण हो सकते हैं- यथा डिम्ब-कोष में प्रदाह, डिम्ब-कोष में सूजन या गिल्टी, जरायु का स्थानाच्युत होना, नारी का रक्ताल्पता का शिकार होना, साधारण कमजोरी तथा मानसिक अवसन्नता।
स्वल्परज के पीछे क्या कारण है, इसका निदान तो अपनी जगह आवश्यक है ही, पर निदान के चक्कर में प्राय: रोगिणी ऐसी भ्रमित हो जाती है कि वह दवा खाती ही जाती है और लाभ कुछ नहीं दिखता।

रक्ताल्पता को समझें

रक्ताल्पता का अर्थ है-रक्त की कमी। रक्ताल्पता के शिकार व्यक्ति के रक्त में हीमोग्लोबिन की कमी होती है। हीमोग्लोबिन की रचना में भोजन में आयरन का सही मात्रा में होना अत्यन्त आवश्यक है। श्वसन के द्वारा आए ऑक्सीजन को वही ग्रहण करता है और अपने साथ ही उस ऑक्सीजन को भी कोशिकाओं तक उनके पोषण के लिए पहुंचाता है। हीमोग्लोबिन ही वह पदार्थ है, जो रक्त को लालिमा प्रदान करता है। जिसके रक्त में हीमोग्लोबिन की कमी होगी, उसकी त्वचा का रंग भी पीताभ होगा। इसी कारण आयुर्वेद में इसे 'पाण्डुÓ नाम दिया गया है। रक्ताल्पता से ग्रस्त व्यक्ति मात्र पीताभ ही नहीं होता, उसे भूख नहीं लगती, वह शक्तिहीनता का अनुभव करता है तथा पूरा पोषण प्राप्त करने में अक्षम होता है। इसका कारण है कि शरीर को पूरा पोषण न मिल पाने के कारण, व्यक्ति शारीरिक और मानसिक दोनों ही स्तरों पर प्रभावित होता है। इसके साथ ही तथ्य यह है कि रक्ताल्पता गलत खान-पान और रहन-सहन का प्रतिफल है। इसके कारण एक चक्र बन जाता है- गलत रहन-सहन के कारण रक्त की आपूर्ति में गड़बड़ी और रक्त की आपूर्ति में गड़बड़ी के कारण, कमजोरी में अभिवृद्धि।

उपचार के पीछे दृष्टि

यदि रक्ताल्पता के रोगी का उपचार करना हो, तो व्यक्ति के पूरे शरीर को दृष्टि में रखकर उपचार करना चाहिए। ऐसे व्यक्ति का पूरा ऑर्गेनिज्म सदोष होता है। उसके ही त्रुटिपूर्ण काम के कारण रक्ताल्पता की स्थिति उत्पन्न होती है। पर चिकित्सक रक्ताल्पता का अर्थ लौह की कमी मान कर उसे लौह देना प्रारम्भ कर देते हैं। पर जैसे पहले कहा जा चुका है और कई बार इस खनिज लौह को आत्मसात कर पाने में शरीर असमर्थ होता है।

आहार

प्राकृतिक आयरन प्राप्त करने का सही साधन आहार है। हरी पत्ती वाली भाजियां, फल, सूखे मेवे, चोकर समेत आटा तथा कन समेत चावल शरीर को लौह आपूर्ति के लिए सही साधन है। रक्ताल्पता से सही रूप में मुक्ति पाने के लिए आवश्यक है कि शुरू में तीन-चार दिन रोगी को मात्र फल पर रखा जाए और रोगी जितने दिनों तक फलाहार करती रहे, उतने दिन नित्य उसे हल्के गरम पानी का एनिमा दिया जाए। फलाहार काल में यह भी ध्यान रखने की बात है कि एक बार में मात्र एक ही फल दिया जाए। उसके बाद रूग्णा को धीरे-धीरे साधारण भोजन पर लाया जाए। यथा प्रात: 250 ग्राम मौसम में मिलने वाला कोई एक फल यथा सेब, नाशपती, अमरूद, ककड़ी, खीरा, खरबूजा, आम तथा 50 ग्राम अंकुरित मूंग तथा दोपहर, शाम को चोकरदार आटे की रोटी तथा 250 ग्राम बिना मसाले वाली सादी सब्जी। सब्जी में दोनों समय हरी पत्तियों वाली भाजियां भी पर्याप्त मात्रा में होनी चाहिए। और तीसरे प्रहर गाजर, मौसमी, संतरा, खीरा किसी चीज का 250 ग्राम रस।

चिकित्सा कटिस्नान

स्वल्परज से ग्रस्त नारी को प्रात: सायं कटिस्नान लेकर एक-दो किमी. टहलना अवश्य चाहिए। मासिक के दिनों में कटिस्नान स्थगित कर देना चाहिए, पर यथाशक्ति टहलना जारी रखना चाहिए। कटिस्नान दो मिनट से प्रारम्भ करना चाहिए और बढ़ाकर 5 मिनट तक का लेना चाहिए।

गरम-ठंडा कटिस्नान

स्वल्परज से ग्रस्त नारी को सप्ताह में एक दिन गरम ठंडा कटिस्नान लेना चाहिए। यह भी कटिस्नान के समान ही काम है। पर इसके लिए दो टबों की आवश्यकता होती है। एक टब में गरम पानी होता है और दूसरे में ठंडा। गरम पानी के टब में 3 मिनट बैठें और ठंडे पानी के टब में 1 मिनट और ऐसा तीन बार करें। चौथी बार गरम पानी के टब में 3 मिनट बैठें और ठंडे पानी के टब में 3 मिनट। उसके बाद ठंडे पानी से स्नान कर लें। गरम ठंडा कटिस्नान में ध्यान में रखने वाली दो बातें बहुत जरूरी है। गरम पानी वाले टब का पानी ज्यों-ज्यों ठंडा होता जाए, उसमें गरम पानी मिलाकर पानी का तापमान पूर्ववत करते रहें। और दूसरी बात यह कि स्नान शुरू करने से पहले सिर को धो लें और सिर पर गीला तौलिया लपेट लें। इस तौलिया को पूरे काल में 2-3 बार ठंडे पानी से गीला कर लें।

स्टेमसेल एवं थैलेसीमिया


स्टेमसेल एवं थैलेसीमिया
जिन आनुवंशिक स्वास्थ्य समस्याओं को गंभीर रोगों की श्रेणी में रखा जाता है, थेलासीमिया भी उनमें से एक है। इसमें जीन की संरचना में जन्मजात रूप से गड़बड़ी होने की वजह से शरीर में शुद्ध रक्त का निर्माण नहीं हो पाता और डिफेक्टिव ब्लड शरीर के अपने मेकैनिज्म के जरिये स्वाभाविक रूप से नष्ट हो जाता है। इस वजह से थैलेसीमिया के मरीजों के शरीर में हमेशा खून की कमी रहती है और उसमें हीमोग्लोबिन का स्तर भी बहुत कम रहता है।
अकसर लोग इसे बच्चों की बीमारी समझ लेते हैं, पर वास्तव में ऐसा है नहीं। दरअसल जिनकी रक्त कोशिकाओं की संरचना में बहुत ज्यादा गड़बड़ी होती है, उनमें जन्म के कुछ दिनों के बाद ही इस बीमारी की पहचान हो जाती है, अगर रक्त कोशिकाओं की संरचना में ज्यादा गड़बड़ी न हो तो कई बार लोगों में 60-65 वर्ष की उम्र में भी अचानक इस बीमारी के लक्षण देखने को मिलते हैं।
घबराएं नहीं
कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जिनमें 3 से 15 प्रतिशत तक इस बीमारी के जींस मौजूद होते है, इन्हें थैलेसीमिया कैरियर कहा जाता है। कुछ लोग इसे थैलेसीमिया माइनर का नाम देते हैं, जो कि सर्वथा अनुचित है। यह अपने आप में कोई बीमारी नहीं है। ऐसे लोग सक्रिय और सामान्य जीवन व्यतीत कर सकते हैं। देश के सुपर स्टार अमिताभ बच्चन इस बात की जीती-जागती मिसाल हैं। थैलेसीमिया के कैरियर लोगों को केवल इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वे किसी थैलेसीमिया कैरियर से विवाह न करें। अगर पति-पत्नी दोनों ही इसके कैरियर हों तो बच्चों में इसके लक्षण होने की आशंका बढ़ जाती है। अगर पति-पत्नी दोनों इस बीमारी के वाहक हैं तो गर्भावस्था के शुरुआती दो महीनों में स्त्री को प्रीनेटल डाइग्नोसिस करवा लेना चाहिए। इससे यह मालूम हो जाएगा कि गर्भस्थ भू्रण में थैलेसीमिया के लक्षण हैं या नहीं। अगर रिपोर्ट निगेटिव आए तभी शिशु को जन्म देने का निर्णय लेना चाहिए।
क्या है लक्षण
1. त्वचा की रंगत में स्वाभाविक गुलाबीपन के बजाय पीलापन दिखाई देता है। ऐसे लोगों में अक्सर जॉन्डिस का इन्फेक्शन भी हो जाता है।
2. लिवर बढऩे से पेट फूला हुआ लगता है और हीमोग्लोबिन का स्तर भी काफी कम होता है।
3. अनावश्यक थकान और कमजोरी महसूस होती है।
स्टेम सेल से उपचार
अब तक इसे लाइलाज बीमारी समझा जाता था, क्योंकि नियमित ब्लड ट्रांस्फ्यूजन के अलावा इसका और कोई उपचार नहीं था। यह बल्ड ट्रांस्फ्यूजन मरीज को मौत से बचाए रखने में मददगार साबित होता है, लेकिन यह इस बीमारी का स्थायी उपचार नहीं है। इसे जड़ से समाप्त करने का एकमात्र तरीका स्टेम सेल थेरेपी है। इसके जरिये जन्म के शुरुआती 10 मिनट के भीतर शिशु के गर्भनाल से एक बैग में रक्त के नमूने एकत्र किए जाते है। इसी रक्त में स्टेम सेल्स पाए जाते है। जीवन की ये मूलभूत कोशिकाएं, मानव शरीर के सभी अंगों की रचना का आधार हो
प्रक्रिया स्टेम सेल के संग्रह की
जन्म के बाद दस मिनट के भीतर शिशु के गर्भनाल से थोड़ा सा खून लेकर उसे एक स्टरलाइज्ड बैग में रखा जाता है। सैंपल एकत्र करके उसके तापमान को नियंत्रित रखने के लिए उसे एक खास तरह के कंटेनर में रख कर 36 घंटे के भीतर लैब में पहुंचा दिया जाता है। स्टेम सेल को वहां वर्षो तक संरक्षित रखा जा सकता है। यह प्रक्रिया पूरी तरह सुरक्षित है। इससे मां और बच्चे दोनों को कोई तकलीफ नहीं होती और इसका कोई साइड इफेक्ट भी नहीं होता।
ती है। इनकी तुलना मिट्टी से की जा सकती है, जिसे शिल्पकार मनचाहे आकार में ढाल सकता है। इन्हें शरीर में जहां भी प्रत्यारोपित किया जाता है, ये वहीं दूसरी नई परिपक्व कोशिकाओं का निर्माण करने में सक्षम होती है।

Friday, 1 August 2014

लिवर का ध्यान रखें और सेहतमंद रहें

लिवर का ध्यान रखें और सेहतमंद रहें
एडवांस्ड होम्यो हेल्थ सेंटर इंदौर पर लीवर की बीमारी एवं वर्षा जनित रोग पर कार्यशाला आयोजित की गई जिसमें होम्योपैथिक चिकित्सक एवं होम्योपैथिक चिकित्सा महाविद्यालय के प्राध्यापक डा. ए.के. द्विवेदी ने कहा कि आयु की अवधि का बढ़ाना मात्र ही अच्छे स्वास्थ्य का सूचक नहीं इस समय विश्वभर में स्वास्थ्य की स्थिति बहुत ही गंभीर है। प्राथमिक दृष्टि से आयु की अवधि का बढऩा मात्र ही अच्छे स्वास्थ्य का सूचक नहीं है। शहरी भारतीयों के खानपान के तौर-तरीकों में हाल में बड़े बदलाव देखने को मिले हैं। ढेर सारे कार्बोहाइड्रेट, बिना रिफाइन किया हुआ आटा और कम वसा वाली खुराक से, रुझान अब उच्च वसायुक्त और कम अवशिष्ट वाली खुराक की ओर हो गया है। आधुनिक भारतीय आहार अत्यधिक कार्बोहाइड्रेट और वसायुक्त होता जा रहा है। इसके साथ ही एल्कोहल का सेवन भी बढ़ा है, जिसके नतीजे हृदय की बीमारियों, उच्च रक्तचाप (बीपी), मुधमेह और लिवर (कलेजा) से जुड़ी बीमारियों के रूप में सामने आ रहे हैं।

होम्योपैथी बढ़ाए आपका रक्त

होम्योपैथी बढ़ाए आपका रक्त
रक्ताल्पता का मतलब होता है। रक्त की कमी, जिसका वास्तविक अर्थ है शरीर की प्रत्येक कोशिकाओ और ऊत्तक तक रक्त की कमी, जिसके कारण रक्ताल्पता से पीडि़त व्यक्ति (मरीज) के शरीर में शक्ति की कमी होती चली जाती है उससे दैनिक कार्य नहीं हो पाते है बोलन में तकलीफ होती हैं श्वांस लेने में तकलीफ होती है।
सीढिय़ा नहीं चढ़ पाते है चलने में हांफने लगते हैं लोग यदि ध्यान न दे तो यह लक्षण अस्थमा जैसे प्रतीत होते हैं एक मरीज श्री दीक्षित जी जो एल.आइ.सी में ब्रांच मैनेजर थे। साईनाथ कॉलोनी इन्दौर में रहते है, अपनी श्रीमती जी को लेकर आये और बोले कि उन्हें अस्थमा हो गया है और काफी समय से इलाज करा रहे हैं पर स्वांस की परेशानी में कोई आराम नहीं मिला है। मैंने जब बारीकी से परीक्षण किया तो मुझे पैन सिस्टोलिक मरमर मिला जो एनिमिया में मिलता हैं। मैंने उन्हें समझाने की कोशिश किया कि आपको रक्ताल्पता है अस्थमा नहीं तो वे पहले तो मेरी बात मानने को तैयार ही नहीं हुऐ फिर ऐसा निर्णय हुआ कि क्युं न हिमोग्लोबिन जांच कराकर देखा जाए, जब हिमोग्लोबिन जांच कराया तो उनका ७.४ ग्राम हिमोग्लोबिन आया। उनको 3-4 माह तक लगातार फासफोरस एवं फैरम मेट 3 एक्स दिया गया तथा खाने में चुकन्दर, भूना चना, गुड़ और दूध का सेवन ज्यादा करने को बताया वे बिलकुल ठीक हो गईं और स्वास की समस्या तथा कमजोरी भी ठीक हो गई। कई बार चिकित्सक की थोड़ी सी लापरवाही भी मरीज को लम्बे समय की पीड़ा दे सकती हैं।
अत: केवल लक्षणों के आधार पर दवा देना पूरी तरह से ठीक नहीं है। हमें मरीजों के कुछ पैथोलॉजिकल परीक्षण एक्सरे इत्यादि समय-समय पर कराते रहना चाहिए।
हमारे पास कई ऐसे कैंसर के मरीज आते और जिन्हें कीमोथेरापी व रेडियोथेरापी के बाद रक्ताल्पता हो सकती है। इसमें भी फैरम फासफोरस एवं फैरम मेट अत्यंत कारगर साबित होती है।
ब्लीडिंग पाईल्स अथवा माहवारी में अत्यधिक रक्त स्त्राव भी रक्ताल्पता का प्रमुख कारण जो कि शर्म के कारण लोग तुरन्त परिवार वालों को या डॉक्टर को नहीं बता पाते हैं और लम्बे समय तक रक्तस्त्राव होने के कारण कमजोरी व रक्ताल्पता होना निश्चित है। ऐसे मरीजों में हेमामिलिस लेकेसिस, फैरम फास, एसिड नाईट्रिक, आर्सेनिक, सैबाइना इत्यादि दवाई कारगर है।
होम्योपैथिक दवाइयों से हम रक्ताल्पता के मरीजोको पूरी तरह से ठीक कर सकते हैं बशर्ते हम रक्ताल्पता के कारण को समझकर यदि उसके कारण को भी जब दूर कर सकें ।

एनीमिया

देश के विकास में बाधक एनीमिया
पिछले बीस सालों से देश की औसत आर्थिक विकास दर 6.5 फीसदी रही है। लेकिन यह भी कैसी विडंबना है कि देश के 6 महीने से 5 वर्ष की आयु के 43 फीसदी बच्चे एनीमिक या रक्ताल्पता का शिकार हैं। रक्त में जब एक लेवल के बाद लाल रक्त कोशिकाओं का स्तर गिर जाता है तो शरीर के प्रत्येक हिस्से में संतुलित रूप से ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाती है। ऐसी स्थिति में थकावट महसूस होती है। शायद इसी कारण एनीमिया को 'टायर्ड ब्लडÓ भी कहा जाता है।
सवाल उठता है कि भारत में इतनी तादाद में बच्चे रक्ताल्पता का शिकार क्यों हैं। इसकी मुख्य वजह है कि 15 से 49 आयु वर्ग की 56 फीसदी गर्भवती महिलाएं खून की कमी का शिकार हैं जबकि स्वस्थ मां से ही स्वस्थ बच्चे का जन्म होगा। हर मामले की तरह रक्ताल्पता के मामले में भी राज्यों के बीच भारी असमानता है। इस मामले में हिंदी भाषी राज्यों की स्थिति कुछ ज्यादा ही चिंताजनक है। मौटे तौर पर सभी हिन्दी भाषी राज्यों में राष्ट्रीय औसत से अधिक बच्चे रक्त की कमी का शिकार हैं। इस मामले में उत्तर प्रदेश और बिहार सबसे ऊपर है।
उत्तर प्रदेश के 49 फीसदी और बिहार के 48 फीसदी बच्चे इसकी गिरफ्त में हैं। इसी क्रम में छत्तीसगढ़, आंध्रप्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान और हरियाणा के 47 फीसदी बच्चे खून की कमी का शिकार हैं। इनके बाद पंजाब और गुजरात ही दो ऐसे राज्य हैं जहां राष्ट्रीय औसत से अधिक बच्चे एनीमिक हैं। इन दोनों राज्यों में 45 फीसदी बच्चे एनीमिक हैं जबकि राष्ट्रीय औसत 43 है। इन राज्यों में हरियाणा, पंजाब और गुजरात आर्थिक रूप से विकसित राज्य है। इसके वाबजूद बच्चों की स्थिति बेहतर नहीं है। कर्नाटक में 42 फीसदी तथा महाराष्ट्र, झारखंड और आसाम के 41 फीसदी बच्चे खून की कमी का शिकार हैं। पश्चिम बंगाल और दिल्ली के 31 फीसदी बच्चे एनीमिक है। सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश के 30, हिमाचल प्रदेश के 29, केरल के 21 मिजोरम के 21, गोआ के 19 और मणीपुर के 16 फीसदी बच्चे एनीमिक है।  देखा जाए तो रक्ताल्पता की समस्या से ग्रस्त यह हिस्सा देश के विकास में बड़ा बाधक भी है।
इंडियन मेडिकल एसोसिऐशन के मुताबिक स्कूल ड्रॉपआउट की एक बड़ी वजह एनीमिया है। इसका नतीजा यह होता है कि ऐसे बच्चों का वयस्क होने के बाद भी यथोचित मानसिक विकास नहीं हो पाता है। वह अपने को थका हुआ महसूस करते हैं जिसका कार्यक्षमता पर विपरीत असर पड़ता है। स्वाभाविक है कि इससे देश को आर्थिक नुकसान भुगतना पड़ता है। 'द माइक्रोन्युट्राइन्ट इनेशेटिवÓ के मुताबिक एनीमिया के कारण भारत को सालाना जीडीपी का 1.27 फीसदी का घाटा होता है। आईएमए के मुताबिक तो एनीमिया के कारण बच्चों के सीखने की जो क्षमता प्रभावित होती है उससे देश की जीडीपी को चार फीसदी का घाटा होता है।
प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष तौर पर देश के विकास में बाधक बन रही रक्ताल्पता की समस्या से निजात पाने के लिए सरकारी स्तर पर भी कार्यक्रम चलाऐ जा रहे हैं। लेकिन नतीजा संतोषजनक क्यों नहीं निकल पा रहा है यह एक अहम सवाल है। दूसरा महत्वपूर्ण सवाल यह है कि सरकार द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर एक ही कार्यक्रम चलाया जा रहा है। लेकिन हर राज्यों के नतीजे अलग-अलग क्यों है। इससे एक बात साफ तौर पर जाहिर होती है कि जनकल्याण को लेकर सभी राज्यों में प्रशासन की प्रतिबद्धता एक जैसी नहीं है। इसलिए राज्यों के शीर्ष नेतृत्व को इस ओर ध्यान देना चाहिए।