Friday, 31 October 2014

मिथ्स और फैक्ट्स


जल्दी-जल्दी धोने पर बाल टूटेंगे

सिर को गंदा रखने पर ज्यादा बाल झड़ते हैं जबकि नियमित शैंपू करने पर कम। जो लोग एसी में रहते हैं, वे हफ्ते में दो-तीन बार शैंपू करें। जो बाहर का काम करते हैं या जिन्हें पसीना ज्यादा आता है, उन्हें रोजाना बाल धोने चाहिए।

हर्बल शैंपू में डिटर्जेंट नहीं

जो शैंपू झाग देता है, उसमें डिटर्जेंट जरूर होता है। हर्बल शैंपू भी इसका अपवाद नहीं है। रीठा, शिकाकाई और मेहंदी का मिक्सचर घर में बनाकर लगाएं। कई शैंपू एक्स्ट्रा प्रोटीन होने का दावा करते हैं। बाल धोने के दौरान शैंपू का प्रोटीन बालों के अंदर नहीं जाता। बालों को प्रोटीन की जरूरत है, लेकिन वह खुराक से मिलता है।

कंडीशनर का इस्तेमाल

शैंपू करने के बाद बहुत से लोग कंडीशनर नहीं लगाते। उन्हें लगता है कि इससे बाल कमजोर हो जाते हैं। यह गलत है। कंडीशनर से बालों की चमक बनी रहती है और वे उलझते नहीं हैं।

जुकाम से टूटते हैं बाल

जुकाम से बाल टूटने की भ्रांति बहुत लोगों में होती है। असल में इससे पीडित लोग ज्यादातर दवाएं खाते रहते हैं और उनकी सेहत ठीक नहीं होती। इस वजह से कई बार बाल गिरने लगते हैं।

गंजे होने से ग्रोथ तेज

कई लोग अपने बालों को बहुत छोटा करा देते हैं। उन्हें लगता है कि ऐसा करने से बालों का झडऩा कम हो जाएगा और नए बाल ज्यादा तादाद में आएंगे। यह सोच बिल्कुल गलत है। गंजा होने से बालों की ग्रोथ तेज नहीं होती।

बाल उखाडऩे से सफेद होते हैं

अक्सर लोग सफेद बाल उखाडऩे से मना करते हैं क्योंकि उनका मानना होता है कि अगर एक बाल उखाड़ेंगे, तो उसकी जड़ से द्रव निकलेगा, जो आसपास के बालों को भी सफेद कर देगा। यह गलत है।

क्या कहता है आयुर्वेद

आयुर्वेद बाल धोने के बाद तेल लगाने की हिमायत करता है। महाभृंगराज या ब्राह्मी तेल से बालों को अच्छा पोषण मिलता है। इसमें त्रिफला होता है, जो बालों की सेहत के लिए अच्छा है। महाभृंगराज तेल से बालों का कालापन भी बढ़ता है, हालांकि यह सफेद बाल काले नहीं कर सकता।आयुर्वेद के मुताबिक हफ्ते में एक-दो बार तेल लगाकर अच्छी तरह सिर की मसाज करें। मसाज किसी भी तेल से कर सकते हैं लेकिन आंवला, ऑलिव, नारियल या तिल का तेल अच्छा है। रात भर तेल रखकर सुबह किसी अच्छे हर्बल शैंपू से बाल धो लें। इसके बाद एक लोशन लगाएं। इसे बनाने के लिए गेहूं के पत्ते, दूर्वा घास, अरबी के पत्ते, गुड़हल के पत्ते, नीबू के छिलके, संतरे के छिलकों को थोड़ा-थोड़ा लें और पानी में उबाल लें। पानी को छानकर बालों की जड़ों में हल्के हाथों से लगाएं और धीरे-धीरे मसाज करें। पांच मिनट के लिए लगा रहने दें और पानी से सिर धो लें।

खुराक

ऐसी चीजों से परहेज करना चाहिए, जिनसे सर्दी, जुकाम होता है। सॉस, सिरका, अचार, नमक और खट्टी चीजें कम खाएं। बादाम, दूध, दही, घी, मक्खन का सेवन संतुलित मात्रा में करें।

ऐसे करें शैंपू

पहले बालों को गीला करें। फिर थोड़े पानी में घोलने के बाद शैंपू को बालों और स्किन पर लगाएं। झाग बनाते या बालों को रगड़ते समय उन्हें उलझाएं नहीं, न ही ज्यादा रगड़ें। शैंपू 3-4 मिनट तक लगाकर रखना चाहिए। शैंपू को अच्छी तरह साफ करने के बाद कंडीशनर लगाएं। एक मिनट तक लगाए रखने के बाद कंडीशनर को अच्छी तरह से धो डालें। इसमें शैंपू से भी ज्यादा सावधानी बरतें। गीले बालों को न तो बहुत तेजी से झटक कर सुखाएं और न ही तौलिए से रगड़कर पोंछें। ध्यान रखें कि इस स्टेज में बाल सबसे ज्यादा सॉफ्ट और कमजोर होते हैं। बाल धोने के बाद उन्हें तौलिए से हल्के से साफ करें या तौलिए को बांधकर छोड़ दें। गीले बालों में कंघी भी न करें। बारीक कंघी के इस्तेमाल से बचें। लंबे बालों में कंघी करते हुए पहले आधे बालों को कंघी करें, ताकि आसानी से सुलझ जाएं।

कैसे पाएं रेशमी जुृल्फें


आजकल की भागदौड़ और बिज़ी लाइफस्टाइल की वजह से आखिर कितनी ऐसी औरते हैं, जो अपने बालों को लंबा और रेशमी करने की सोंच सकती हैं लंबे बाल पाने के लिये खान-पान और उनकी केयर करने की आवश्यकता होती है, जो कि हर किसी के बस की बात नहींहोती। लेकिन अगर आप हमारे बताए गए इन तरीको को आजमाएंगी तो आपके भी बाल लंबे और घने हो सकते हैं।

बालों में तेल लगाएं

अगर बाल बढाना है तो उसमें तेल लगाना होगा। बालों में तकरीबन 1 घंटे के लिये तेल लगा रहने दें जिससे बालों की जड़ तेल को पूरी तरह से सोख ले। सिर पर हल्के गरम तेल से मालिश करें और गरम पानी में डुबोई हुई तौलिये से सिर ढंक कर भाप लें।

बादाम का तेल

जल्दी बाल बढाने के लिये कोई भी तेल कारगर नहीं होता। इसके लिये सबसे अच्छा तेल बादाम का होता है। बादाम के तेल में विटामिन ई भारी मात्रा में पाया जाता है।

हेल्दी खाएं

बालों के लिये कुछ आहार बहुत अच्छे होते हैं जैसे, हरी सब्जियां, बादाम, मछली, नारियल आदि। इनको अपनी डाइट में शामिल करें और लंबे बाल पाएं।

ट्रिम करवाएं

बालों को तीन महीने पर एक बार जरुर ट्रिम करवाएं, जिससे दोमुंहे बालों से निजात मिले। बालों को ट्रिम करवाने से बाल जल्दी जल्दी बढते हैं।

ड्रायर और अन्य मशीनों से दूर रहें

ब्लो ड्रायर या फिर बालों को कर्ली करने वाली मशीनों से दूर रहें क्योंकि इससे बाल खराब हो जाते हैं। अगर आपके बाल लंबे हैं तो उसे सुखाने के लिये धूप में पांच मिनट तक खड़ी हो जाएं लेकिन ड्रायर का प्रयोग ना करें।

रोजाना धुलाई

जिस तरह से बालों में तेल लगाना जरुरी है उसी तरह से बालों की सफाई और धुलाई भी बहुत जरुरी है। अगर आपके बाल लंबे हैं तो उन्हें हफ्ते में दो बार जरुर धोएं। आपके सिर की सफाई बहुत जरुरी है जिससे जड़ों को सांस लेने की जगह मिल सके।

बांध कर रखें

लंबे बालों को प्रदूषण, धूल मिट्टी और हवा से बचाना चाहिये। अगर आप कहीं सफर पर निकल रहीं हैं तो अच्छा होगा कि बालों को बांध लें या फिर जूडा बना लें।

Thursday, 23 October 2014

दीपावली पूजन के प्रतीक


दीवावली के शुभ दिन महालक्ष्मी की पूजा का विधान है। इस पूजा के साथ ही घर और पूजा घर को सजाने के लिए मंगल वस्तुओं का उपयोग किया जाता हैं आओ जानते हैं कि गृह सुंदरता, समृद्धि और दीपावली पूजन के कौन-से प्रतीक है।

दीपक

दीपावली के पूजन में दीपक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। सिर्फ मिट्टी के दीपक का ही महत्व है। इसमें पांच तत्व हैं मिट्टी, आकाश, जल, अग्नि और वायु। अत: प्रत्येक हिंदू अनुष्ठान में पंचतत्वों की उपस्थिति अनिवार्य होती है। कुछ लोग पारंपरिक दीपक की रोशनी को छोड़कर लाइट के दीपक या मोमबत्ती लगाते हैं जो कि उचित नहीं है।

 रंगोली

उत्सव-पर्व तथा अनेकानेक मांगलिक अवसरों पर रंगोली या मांडने से घर-आंगन को खूबसूरती के साथ सजाया जाता है। यह सजावट ही समृद्धि के द्वार खोलती है। घर को साफ सुथरा करके आंगन व घर के बीच में और द्वार के सामने और रंगोली बनाई जाती है।

कमल और गेंदे के फूल

कमल और गेंदे के पुष्प को शांति, समृद्धि और मुक्ति का प्रतीक माना गया है। सभी देवी-देवताओं की पूजा के अलावा घर की सजावट के लिए भी गेंदे के फूल की आवश्यकता लगती है। घर की सुंदरता, शांति और समृद्धि के लिए यह बेहद जरूरी है।

कौड़ी

पीली कौड़ी को देवी लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है। दीवापली के दिन चांदी और तांबे के सिक्के के साथ ही कौड़ी का पूजन भी महत्वपूर्ण माना गया है। पूजन के बाद एक-एक पीली कौड़ी को अलग-अलग लाल कपड़े में बांधकर घर में स्थित तिजोरी और जेब में रखने से धन समृद्धि बढ़ती है।

तांबे का सिक्का

तांबे में सात्विक लहरें उत्पन्न करने की क्षमता अन्य धातुओं की अपेक्षा अधिक होती है। कलश में उठती हुई लहरें वातावरण में प्रवेश कर जाती हैं। यदि कलश में तांबे के पैसे डालते हैं, तो इससे घर में शांति और समृद्धि के द्वार खुलेंगे। देखने में ये उपाय छोटे से जरूर लगते हैं लेकिन इनका असर जबरदस्त होता है।

मंगल कलश

भूमि पर कुंकू से अष्टदल कमल की आकृति बनाकर उस पर कलश रखा जाता है। एक कांस्य, ताम्र, रजत या स्वर्ण कलश में जल भरकर उसमें कुछ आम के पत्ते डालकर उसके मुख पर नारियल रखा होता है। कलश पर कुंकूम, स्वस्तिक का चिह्न बनाकर, उसके गले पर मौली (नाड़ा) बांधी जाती है।

श्रीयंत्र

धन और वैभव का प्रतीक लक्ष्मीजी का श्रीयंत्र। यह सर्वाधिक लोकप्रिय प्राचीन यंत्र है। श्रीयंत्र धनागम के लिए जरूरी है। श्रीयंत्र यश और धन की देवी लक्ष्मी को आकर्षित करने वाला शक्तिशाली यंत्र है। दीपावली के दिन इसकी पूजा होना चाहिए।

नैवेद्य और मीठे पकवान

लक्ष्मीजी को नैवद्य में फल, मिठाई, मेवा और पेठे के अलावा धानी, पताशे, चिरौंजी, शक्करपारे, गुझिया आदि का भोग लगाया जाता है। नैवेद्य और मीठे पकवान हमारे जीवन में मिठास या मधुरता घोलते हैं।

Thursday, 16 October 2014

पुष्य नक्षत्र का महत्व


पुष्य नक्षत्र २७ नक्षत्रो का राजा होता है क्रमानुसार आठवे क्रम का नक्षत्र होता है। इसके स्वामी शनि देव होते है एवं इसके देवता देवगुरु बृहस्पति होते है। जो की समस्त कार्यो में शुभता प्रदान करते है व इसके स्वामी शनि जो सभी कार्यो में स्थिरता लाते है। विवाह को छोड़कर अन्य समस्त कार्यो के लिए पुष्य नक्षत्र को अत्यंत शुभ बताया गया है। सामान्यजन पुष्य नक्षत्र से बहुत गहराई से परिचित नहीं हैं, लेकिन फिर भी इसके अत्यंत शुभ होने के बारे में जानकारी तो जन-जन में है। इस शुभ काल में खरीद-फरोख्‍त बहुत शुभ मानी जाती है।

स्वस्थ स्तन के लिए 8 टिप्स


बेस्ट कैंसर की चेतावनी के बावजूद कई महिलाएं नियमित रूप से सन स्क्रीन का इस्तेमाल नहीं करती हैं। छाती के संवेदनशील त्वचा पर सन लोशन नहीं लगाने से न सिर्फ सनबर्न और स्किन कैंसर का खतरा बढ़ता है। आइये और जानते हैं कुछ ऐसे ही विशेष टिप्स जिन्हें आजमा कर आप स्वस्थ स्तन पा सकती हैं।

अपना पोस्चर सुधाएं

आप अपने स्तन में तुरंत सुधार लाना चाहते हैं तो आप अपने पोस्चर को ठीक करें। जब चलते समय आपका कंधा झुका हुआ होगा तो छाती का मसल्स लचीलापन खो देगा। साथ ही समय के साथ-साथ त्वचा भी ढीली पडऩे लगेगी। वहीं बिल्कुल सीधा चलने से आपका स्तन बड़ा और आकर्षक दिखेगा। अपने अंग विन्यास में सुधार लाने के लिए आप योगा, पीलेट्स और ताइ ची का सहारा ले सकते हैं

व्यायाम करें तो स्पोर्ट्स ब्रा पहने

व्यायाम करें तो स्पोर्ट्स ब्रा जरूर पहने। हम जैसे-जैसे मूवमेंट करते हैं, हमारा स्तन भी वैसे ही मूवमेंट करता है। इसलिए बिना सही सपोर्ट के व्यायाम करने से स्तन में दर्द हो सकता है। साथ ही इसके लिगामेंट को नुकसान पहुंच सकता है और त्वचा ढीली पड़ सकती है। इन बातों को लेकर उन महिलाओं को ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है, जिनके स्तन का आकार बड़ा है।

सन स्क्रीन लगाएं

कई महिलाएं नियमित रूप से सन स्क्रीन का इस्तेमाल नहीं करती हैं। छाती के संवेदनशील त्वचा पर सन लोशन नहीं लगाने से न सिर्फ सनबर्न और स्किन कैंसर का खतरा बढ़ता है, बल्कि इससे स्किन पर समय से पहले बुढ़ापा भी दिखने लगता है। झुर्रीदार क्लीवेज से बचने और चिकना व चुस्त डेकोलेटेग के लिए जरूरी है कि जब भी आप धूप में निकलें तो कम से कम एसपीएफ 15 संसक्रीन जरूर लगाएं।

धुम्रपान छोड़ें

धुम्रपान का असर धीरे-धीरे दिखता है। हम जितने लंबे समय तक धुम्रपान करेंगे, बीमारी का खतरा उतना ही ज्यादा होगा। ऐसे में अगर आप अभी से धुम्रपान करना बंद कर देंगे तो बीमारी की संभावना भी कम हो जाएगी।

अपने स्तन को जांचें

बेहतर यह होगा कि महिलाएं हर महीने अपने स्तन की जांच करवाए और उनके माप, आकार व स्किन टेक्स्चर पर नजर रखे। साथ ही अगर स्तन पर फुंसी या सूजन आए तो इसे नजरअंदाज न करे।

अपना ब्रेस्ट साइज चेक करें

वजन बढऩे, गर्भवस्था या मेनोपॉज के कारण ब्रेस्ट साइज हमेशा बदलते रहता है। इसलिए कभी भी अपने ब्रा साइज का अनुमान न लगाएं, बल्कि उसे नियमित नापें और सही आकार के ब्रा पहनें।

व्यायाम करें

अगर आप सोचते हैं कि छाती से संबंधित व्यायाम सिर्फ पुरुषों के लिए होते हैं, तो आप गलत हैं। पुश-अप्स और बेंच प्रेसेस के जरिए पेक्टरल (छाती से संबंधित) मसल्स के लिए व्यायाम करने से आपके स्तन के उभार और आकार में सुधार आएगा। अगर आप उभार भरे स्तन के लिए फर्मिंग क्रीम और डेकोलेटेग का इस्तेमाल करते हैं, तो इन व्यायामों के जरिए आप नेचुरल लुक हासिल कर सकते हैं।

मेकअप के जरिये ब्रेस्ट को बड़ा दिखाएं

अगर आप क्लीवेज के लिए पलंगिंग नेकलाइन पहन रही हैं तो बेहतर होगा के थोड़े से मेकअप के जरिए अपने ब्रेस्ट को बड़ा दिखाया जाए और नकली क्वीवेज बनाया जाए। इसके लिए आप सबसे पहले अपना पसंदीदा ब्रा पहन लें। अब थोड़ा सा मैट ब्रांजर (एक तरह की मेकअप सामग्री) अपने दोनों स्तन के बीच में लगाएं। इसे इस तरह से लगाएं जिससे ब्रेस्ट की परछाई का भ्रम हो। अंत में लाइटर का इस्तेमाल करें और पूरे स्तन पर चमकदार पाउडर लगाएं।

Tuesday, 14 October 2014

शरीफा: जो दे भरपूर सेहत


शरीफा सिर्फ एक फल नहीं है इसमें मौजूद गुण आपको गंभीर बीमारियों से भी बचाते हैं। शरीफा का प्रयोग स्मूदीज, डेजर्ट और आइसक्रीम में भी किया जाता है। इस स्वादिष्ट फल का हर रोज सेवन आपको फिट बना सकता है। जानिए इसके सेवन से आप किन बीमारियों पर काबू पा सकते हैं।
शरीफा में विटामिन ए प्रचुर मात्रा में होता है जो त्वचा को स्वस्थ रखने में मददगार होता है। इसके अलावा यह बालों के लिए भी फायदेमंद है। यह त्वचा पर आने वाले एजिंग के निशानों से भी बचाता है।

वजन बढ़ाने में

शरीफा उन लोगों के लिए फायदेमंद हो जो वजन बढ़ाने के इच्छुक हैं। नियमित रुप से शरीफ में शहद मिलाकर इसका सेवन करने से वजन बढ़ाने में मदद मिलती है।

गर्भावस्था के दौरान

अगर गर्भावस्था के दौरान शरीफा का सेवन किया जाए तो भ्रूण के दीमाग, नर्वस सिस्टम और इम्यून सिस्टम मजबूत होता है। इसके अलावा इसके सेवन से मिसकैरिज होने की संभावना भी कम रहती है। यह गर्भावस्था से जुड़ी समस्याओं से भी निजात दिलाता है। 

अस्थमा से बचाए

शरीफा में विटामिन बी6 होता है जो रोगियों को अस्थमा के अटैक से बचाता है। इसमें ब्रोंकाइल इंफलेमेशन से बचाने का गुण होता है।

अस्थमा से बचाए

शरीफा में विटामिन बी6 होता है जो रोगियों को अस्थमा के अटैक से बचाता है। इसमें ब्रोंकाइल इंफलेमेशन से बचाने का गुण होता है।

पाचन शक्ति बढ़ाए

शरीफा में कॉपर और फाइबर होता है जो पाचन शक्ति बढ़ाने के साथ ही कब्ज से निजात दिलाता है। धूप में सुखाए हुए शरीफा को पीसकर इसका पाउडर बना कर पानी के साथ लेने डायरिया में आराम मिलता है।

मधुमेह में फायदेमंद

इसमें मौजूद फाइबर शुगर के अवशोषण को धीमा करता है जिससे टाइप-2 डायबिटीज का खतरा कम होता है। अगर आप डायबिटीज को कंट्रोल करना चाहते हैं तो शरीफा का सेवन करना क्तच्छा है।

रक्तचाप कम करें

शरीफा पौटेशियम और मैग्निशियम का एक अच्छा स्रोत है जो रक्तचाप को कम करता है।

सही पॉश्चर से रखें खुद को फिट






आप कितना भी व्यायाम करें, डाइटिंग करें या कोई गतिविधि करें, अगर आपकी दिनचर्या में आपकी शारीरिक मुद्रा (यानी पॉश्चर) सही नहीं है, तो सारी मेहनत बेकार है। आप घंटों कंप्यूटर पर काम करते हैं तो किस तरह बैठते हैं, पढ़ते वक्त सही मुद्रा क्या है, चलने का सही तरीका क्या है, क्या कभी आपने इस पर गौर किया है? अगर नहीं किया तो अब करें। बैक, स्पाइनल कॉर्ड या कंधों की परेशानियों से जूझने वालों के लिए तो फिटनेस का मूलमंत्र ही सही पॉश्चर है।

बैठने का सही तरीका

  • ज्यादा देर तक अगर आप लगातार बैठते हैं तो सोफा या बिना सपोर्ट वाली जगह जैसे दीवान वगैरह से बचें। ऑफिस चेयर पर ही बैठना बेहतर है
  • अपनी कमर को कुर्सी का सहारा देते हुए सीधा बैठें न कि आगे की ओर झुककर बैठें। लंबे समय तक कुर्सी पर बैठते हैं तो कंधों को हमेशा सीधा रखें।अपनी बाजुओं और कोहनी से 75 से 90 डिग्री का एंगल बनाकर रहें। जरूरत के हिसाब से कुर्सी एडजस्ट करें
  • ध्यान रखें कि आपका गला, कंधा और एड़ी एक लाइन में हो, कुर्सी पर बैठते वक्त दोनों पंजे जमीन पर रखें।

खड़े रहने का सही तरीका

  • खड़े होते समय शरीर का भार एड़ी के बजाय पंजों पर रखें
  • आपके दोनों पंजे कंधों के ठीक समानांतर होने चाहिए। साथ ही दोनों पैरों के बीच थोड़ी दूरी रखें।
  • ज्यादा देर खड़े हैं, तो ध्यान रहे कि कंधे सीधे हों।
  • दीवार का टेक लेकर खड़े हैं तो कंधों और बैक को ही दीवार का सहारा दें।

चलने का सही तरीका

  • चलते वक्त ध्यान रखें कि सिर सीधा रहे और नजर सामने हो।
  • कंधे सीधा रखकर ही चलें।

ड्राइविंग की सही मुद्रा

  • ड्राइविंग के दौरान जब सीट पर बैठें तो बैक को पूरी तरह सीट का सपोर्ट लें। स्टेयरिंग व्हील व पेडल पर झुकने के बजाय थोड़ी दूरी बनाकर ड्राइव करें।

सोने का सही तरीका

  • सोने के लिए थोड़ा सख्त बिस्तर आपके पॉश्चर को ठीक रखता है।
  • कोशिश करें कि कमर के बल ही सोएं। इससे कंधों को मजबूती मिलती है और शरीर को अधिक आराम मिलता है।
  • तकिये का इस्तेमाल करें पर तकिया बहुत सख्त या ऊंचा न हो।
  • गर्दन के नीचे या घुटनों के नीचे तौलिया रोल करके भी लगा सकते हैं।
  • करवट लेकर सोने की आदत है तो दोनों पैरों के बीच में भी तौलिया रोल करके लगा सकते हैं।

Sunday, 12 October 2014

पार्किंसंस रोग का खतरा कम करता है निकोटीन


अमरीकी चिकित्सकों ने ऐलान किया है कि छोटी मात्रा में निकोटीन का नियमित सेवन करने से पार्किंसंस रोग लगने का खतरा काफी घट जाता है। निकोटीन न केवल तंबाकू के पत्तों में बल्कि टमाटर और कश्मीरी मिर्च में भी मौजूद है। इसलिये सिगरेट पीनेवाले, कश्मीरी मिर्च और टमाटर को पसंद करनेवाले लोग आम तौर पर पार्किंसंस रोग के शिकार नहीं बनते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि निकोटीन पार्किंसंस रोग के इलाज के लिये इस्तेमाल किया जा सकता है।

पीठ के दर्द के लिये योग


क्या अक्सरआप का हाथ पीठ के ऊपर के हिस्से पर आसानी से चला जाता है ? अनजाने में उसे आराम पहुँचाने में या पीड़ा कम करने में हल्का धड़कने वाला दर्द होता है ? आप रसोई में घर के रोज के काम कर रहे हैं या साथी की मेज़ पर झुके हुये हैं और अचानक आप को पीठ के निचे के हिस्से पर दर्द महसूस होता है ? आप को जीर्ण या पुराना पीठ का दर्द न हो। फिर भी कभी कभी होने वाला यह दर्द हमें और सतर्क करने के लिये काफी है, कि हमें सीधा बैठना होगा और प्रतिदिन पाँच मिनट देने होंगे जिससें पीठ की मांसपेशियों योग के अभ्यास से मजबूत हो सके। इसे आज से शुरू करे और प्रतिदिन कुछ समय देना शुरू करें। इसके परिणाम बहुत अच्छे हैं। इससे आपकी पीठ स्वस्थ रहती है।

पीठ के दर्द को अलविदा कहने के लिये- योग मुद्रायें

हमारे पीठ की तीन तरह की गति होती है - ऊपर की ओर खिंचाव, घुमाव, आगे और पीछे की ओर झुकना। निम्र दी गई योग मुद्राओं/आसन के निरंतर अभ्यास से यह सुनिश्चित होगा कि जो मांसपेशी इन गतिओं की सहायता करती है, वे मजबूत हो सकें।
आप इन में से कुछ योग मुद्राओं को कभी भी और कहीं भी कर सकते हैं।यदि सुबह आप इसे करना भूल भी गये तो आप दिन में कार्य स्थल में इसके लिये पाँच मिनट निकाल सकते हैं या जब आपकी पीठ इसका संकेत दे कि उसे इनकी आवश्यकता है।
चटाई पर कर के देखें। कुर्सी पर बैठ कर भी आप इस योग मुद्रा को कर सकते हैं। क्या आप के पीठ के नीचे की मांसपेशियों ने आपको धन्यवाद किया?
सभी दिशा में पीठ का खिंचाव इस क्रम से आप की पीठ को सभी दिशा में खिंचाव मिलता है और पीठ के दर्द से प्रभावकारी राहत मिलती है। लंबे समय कार चलाने के बाद, कार से उतरकर, अपने पैर जमीन में स्थिर रखे और इन सभी खिंचाव को करें।
त्रिकोणासन (त्रिकोण मुद्रा): हाथ,पैर, और उदरीय मांसपेशियों को मजबूत करने में सहायक और रीड की हड्डी में लचीलापन। यदि आप रसोई में काफी देर से खड़े है तो कुछ सेकंडों के लिये ब्रेक लें और त्रिकोण मुद्रा को करें।
पवन मुक्तासन (घुटने ने से ठोड़ी में दबाव) : कूल्हे के जोड़ों में रक्त परिसंचरण में वृद्धि और पीठ के निचे के भाग में पीड़ा से आराम। इसे अपने योग के आसन
कटीचक्रासन(खड़े रहते हुये रीड की हड्डी में घुमाव) : इससे रीड की हड्डी का लचीलापन बढ़ता है और हाथ और पैर की मांसपेशियों को शक्ति मिलती है। आप ठीक से सीधे खड़े रह सकते हैं।
अर्ध मत्सेंयेंद्रआसन (आधे रीड की हड्डी में बैठे हुये घुमाव) और मार्जरीआसन (मार्जर खिंचाव): इससे रीड की हड्डी कोमल और लचीली होती है। इस योग मुद्रा में तबदीली आप कुर्सी में बैठे हुये कर सकते हैं।
भुजंगासन (सर्प मुद्रा) : इससे पीठ की मांसपेशियों की मालिश होती है और पीठ के ऊपर के भाग में लचीलापन आता है। क्या आप ने बच्चों को इस मुद्रा में टीवी देखते हुये या आलस करते हुये देखा है ? सोफे से उतर कर उनके साथ हो जायें।
अन्य लाभ : इन योग मुद्राओं/आसन से शरीर के कई अंग जैसे अग्नाशय, गुर्दे, आमाशय, छोटी आंत, यकृत, पित्ताशय की मालिश होती है और शक्ति मिलती है।

निर्देश

सिर्फ कुछ योग मुद्रा/आसन का अभ्यास कर के ही अपने आप को सीमित न करें। उपरोक्त योग आसन पीठ की मांसपेशियों में शक्ति देता है। लेकिन हमें हमारे शरीर के सभी अंगों पर ध्यान देना होगा जिससे पूरा शरीर स्वस्थ रह सकें।इसके लिये आवश्यक है कि हमें विभिन्न योग मुद्राओं और श्वास प्रक्रियाओं का अभ्यास करना चाहियें।
पीठ के दर्द से राहत पाने के लिये योग आसन का अभ्यास करते समय इन बिंदुओं का ध्यान रखें-
    इन योग आसनों को धीरे धीरे सावधानीपूर्वक करें क्योंकि उन्हें गलत तरीके से करने का परिणाम गंभीर पीठ का दर्द हो सकता है।
  • पीठ दर्द से निदान देने वाले इन योग आसनों को किसी प्रशिक्षक से सीख लें, इनका अभ्यास अपने घर में करने से पहले।
  • अपने शरीर का सम्मान करें। प्रत्येक शरीर का अपना लचीलापन होता है। उतना ही करें जितना आप आसानी से कर सकें।
  • ये सभी योग आसन पीठ को मजबूत करने में और रीड की हड्डी का सामान्य स्वास्थ्य बरकरार रखने में सहायक है। यदि आप को पीठ के दर्द की गंभीर पीड़ा है जैसे (स्लिप डिस्क या गठिया), तब पहले किसी डॉक्टर से विचार विमर्श कर लें।
  • गर्भवती महिलाओं ने इन योग आसनों को करने से पहले डॉक्टर की सलाह लेनी चाहियें।
  • अधिकांश महिलायें पीठ दर्द को गर्भावस्था का आम लक्षण मानती है लेकिन इस पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है अन्यथा प्रसव के उपरांत भी पीठ के दर्द की पीड़ा होती रहेगी।

पीठ के दर्द को कैसे टाल सकते हैं ?

  • अपने दोनों पैरों पर शरीर के वजऩ को संतुलित रखें।
  • योग आसनों का अभ्यास प्रतिदिन करें।
  • अपने वजऩ को बरकरार रखें।
  • तंत्र को ऊर्जावान रखने के लिये श्वास प्रक्रियाओं का अभ्यास करते रहें।
  • निरंतर पीठ की मांसपेशियों का खिंचाव करते हुयें उन्हें मजबूत रखें।

Saturday, 11 October 2014

करवाचौथ पर ऐसे दिखें परफेक्ट


अपने जीवनसाथी की लंबी उम्र के लिए व्रत और पूजा का त्योहार करवाचौथ हर विवाहित महिला के लिए काफी खास होता है। ऐसे में इस त्योहार पर जितना महत्व व्रत के विधि-विधानों क होता है, उतना ही उत्साह संजने-संवरने का भी होता है।
अगर आप भी करवाचौथ की रात परफेक्ट दिखना चाहती हैं तो हम आपको ब्यूटी एक्सपर्ट और कॉस्मेटोलॉजिस्ट भारती तनेजा के बताए कुछ ऐसे खास उपायों की जानकारी दे रहे हैं जिनकी मदद से आप अपने लुक्स को और खूबसूरत बना सकती हैं।

खुद को दें स्पेशल लुक

खास मौके पर आपका लुक भी कुछ खास होना चाहिए। इसके लिए आप अपनी पसंद और पर्सेनालिटी के अनुसार खुद को तरह-तरह का लुक दे सकती हैं- विंटेज लुक, राधा लुक और कन्टम्प्रेरी लुक।
विंटेज लुक- विंटेज या रेट्रो लुक है 60 से 70 दशक की अभिनेत्रियों का लुक जिसमें आंखों पर लंबा लाइनर, गोल बड़ी बिंदी और बालों में बड़ा सा जूड़ा लगा होता था।
राधा लुक- इसमें पूरे रीति-रिवाज के अनुसार श्रृंगार को तवज्जो देते हैं। इसमें हेवी मेकअप के साथ-साथ गोल बिंदी, छोटी-छोटी बिंदियां व नग, गजरों से सजी चोटी में लुक पूरी तरह ट्रैडिशनल दिखता है।
कन्टम्प्रेरी लुक- यह लुक आजकल लड़कियों के बीच काफी लोकप्रिय है। इसमें महिलाएं पारंपरिक नहीं बलिक इंडो-वेस्टर्न लुक में खुद को कैरी करती हैं।

इंस्टैंट ग्लो के लिए

करवाचौथ पर आप कितना भी हेवी मेकअप या बेहतरीन ज्वेलरी कैरी कर लें, लेकिन अगर आपकी त्वचा पर ग्लो नहीं होगा तो मजा किरकिरा है। इसके लिए आप गोल्ड फेशियल व अल्फा हाइड्रॉक्सी एसिड फेशियल बेहतरीन विकल्प हैं जो कम समय में आपकी त्वचा को ग्लो देंगे।
गोल्ड फेशियल- इस फेशियल से गोल्ड आयन त्वचा के भीतर पहुंचकर ब्लड सर्कुलेशन बढ़ातें हैं जिससे रक्त में उपस्थित बैक्टीरिया और अन्य टॉक्सिन्स कम हो जाते हैं और ब्लड प्यूरिफाई होता है। इससे त्वचा में चमक आती है।
अल्फा हाइड्राक्सी एसिड फेशियल- इस फेशियल को चेहरे पर लगाने से त्वचा में कोलेजन तेजी से बनने लगता है जिससे चेहरे पर झुर्रियां नहीं पड़ती हैं। यह फलों से निकाला गया एसिड है जो त्वचा में गोरापन और निखार लाता है।

आंखों के लिए न्यूड मेकअप

करवाचौथ के अवसर पर आपकी नजरों से उनकी नजर न हटे, इसका खयाल रखते हुए मेकअप में आइ मेकअप को दरकिनार न करें। इन दिनों लेटेस्ट में न्यूड आंखें व बोल्ड लिप्स का फैशन है। आंखों को बिल्कुल लाइट रखने के लिए ब्रोंज, सिल्वरिश गोल्ड, कॉपर या लाइट ब्राउन कलर का आइशैडो लगाएं।
आंखों के कोनों पर डार्क ब्राउन कलर का आइशैडो लगाएं। इस मौके पर आइब्रो के नीचे एक लाइन स्पार्कल की जरूर लगाएं। हाइलाइटर अपने पहनावे के अनुसार गोल्डन या सिल्वर कलर का सेलेक्ट कर सकती हैं। आइलाइनर ब्लैक या ब्राउन कलर का लगा सकती हैं और पलकों को घनी व खूबसूरत बनाने के लिए आइलैशस को आइलैश कर्लर से कर्ल करके लांग-लैश मसकारा लगाएं।
सौभाग्य को बढ़ाने वाले इस त्योहार में ब्लैक या डार्क ब्लू कलर की कोई भी पोशाक न चुनें। इसके अलावा, मेकअप में भी स्मोकी शैडो व ब्लैक बिंदी को इग्नोर ही करें तो बेहतर होगा।

टैटू से लगाएं मेंहदी

अभी तक मेंहदी नहीं लगा पाई हैं , तो कोई बात नहीं। टैटू मेंहदी ट्राई करें। यह आपको कई डिजाइंस व कलर में मिल जाएगी , जिसे तैयार होने के बाद तुरंत लगाया जा सकता है। इसे आप अपनी ड्रेस कलर से भी बखूबी मैच करवा सकती हैं।

Friday, 10 October 2014

दूध है जरूरी हर उम्र में


हम बचपन से ही दूध पीने लगते हैं लेकिन बड़े होने पर दूध का सेवन कम होता जाता है। कुछ लोग सोचते हैं कि इसके सेवन से उनके आहार में ज्यादा वसा हो जायेगा। कुछ लोग इसलिए दूध नहीं पीते क्योंकि वह सोचते हैं कि वह अब बड़े हो गये हैं इसलिए उन्हें अब इसकी जरूरत नहीं रही।
दूध हमारे आहार का महत्वपूर्ण हिस्सा है। दूध प्रोटीन, खनिज और विटामिन का पौष्टिक एवं सस्ता स्त्रोत है। बावजूद इसके,दूध को दरकिनार करके सोडा,जूस और स्पोर्ट्स ड्रिंक्स जैसे अधिक मीठे पेय पदार्थों का सेवन किया जाता है। इससे मोटापा,मधुमेह,हृदय रोग और कैंसर जैसी आहार संबंधी बीमारियां होने का खतरा होता है। अधिक मीठे पेय पदार्थो के स्थान पर पोषक तत्वों से युक्त दूध को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। यहां हम आपको बता रहे हैं कि हर उम्र में दूध क्यों जरूरी है?

बचपन

बचपन में शारीरिक और मानसिक विकास में सहायक बच्चों को ज्यादा शक्कर युक्त पेय पदार्थ नहीं बल्कि दूध देना चाहिए। दूध में मौजूद प्रोटीन संतुलित अमीनो एसिड से बनता है जो जैविक रूप से उपलब्ध है। यह आसानी से पच जाता है और शरीर में इसका इस्तेमाल होता है। दूध के कैल्शियम से बच्चे की विकासशील हड्डियों,दांतों और मस्तिष्क के ऊतकों को बढऩे में मदद मिलती है और यह कोशिकीय स्तर पर उन रासायनिक प्रतिक्रियाओं को बढ़ावा देता है जो मांसपेशियों एवं तंत्रिका तंत्र की कार्यक्षमता को संचालित करती है। अतिरिक्त पोषण तत्वों से युक्त दूध से विटामिन डी मिलता है। यह अत्यंत महत्वपूर्ण विटामिन है जो हड्डियों की मजबूती के लिए शरीर को कैल्शियम,फास्फोरस को पचाने में मदद करता है,लाल रक्त कोशिकाओं के उत्पादन को बढ़ाता है,पाचन और तंत्रिका प्रक्रियाओं को बढ़ावा देता है और प्रतिरोधक क्षमता को सहारा देता है। 11 साल की उम्र तक के बच्चों को रोजाना कम से कम दो बार दूध और डेयरी उत्पाद देने चाहिए।

किशोरावस्था

मजबूत हड्डियों के लिए जरूरी किशोरों को भी शुगर युक्त पेय पदार्थो के बजाय दूध देना चाहिए क्योंकि किशोर असाधारण शारीरिक परिवर्तन से गुजरते हैं। उन्हें हार्मोस संबंधी,मांसपेशियों एवं रक्त संचार के अधिकतम विकास के लिए ऊर्जा युक्त पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थो की आवश्यकता होती है। किशोरावस्था ही वह ऐसा समय होता है जब हड्डियां मजबूत होती हैं। ऐसे में दूध बहुत फायदेमंद हो सकता है ताकि जीवन में कभी भी आपकी हड्डियों में कमजोरी नहीं आए तथा ओस्टियोपोरोसिस की समस्या न हो। दूध के आश्र्चयजनक फायदों के मद्देनजर किशोरों को रोजाना तीन या अधिक बार कम वसा वाले दूध उत्पादों का सेवन करना चाहिए।

वयस्क अवस्था

इस अवस्था में भी शरीर को कैल्शियम की जरूरत होती है। विटामिन डी और फास्फोरस के बगैर सभी उम्र के वयस्कों के लिये हड्डियों के कमजोर होने का खतरा होता है,इसलिए दूध की आवश्यकता बनी रहती है। ब्रोकोली और पालक के रूप में अन्य कैल्शियम युक्त गैर डेयरी आहार का सेवन करना अच्छा विकल्प हो सकता है। लेकिन इनमें से कुछ में ऐसे यौगिक मौजूद होते हैं जिससे कैल्शियम के अवशोषण में बाधा पड़ सकती है। पालक में ऑक्सोलेट अधिक होते हैं जो कैल्शियम अवशोषण में बाधा डालते हैं जबकि ब्रोकोली आदि अन्य सब्जियों में मौजूद कैल्शियम दूध की तरह आसानी से नहीं पचता है।

अब घुटने बदलाना आवश्यक नहीं


घुटना दर्द आज एक सामान्य बीमारी बन गई है। आज लगभग हर घर में एक न एक सदस्य इससे पीडि़त है, विशेषकर 45 वर्ष से ऊपर के व्यक्ति। कई मरीज डॉक्टर से इस बात को छुपाते हैं क्योंकि वे मान लेते हैं कि अगर उन्होंने अपनी समस्या का वर्णन किया तो उन्हें घुटना बदलवाने की सलाह दें दी जाएगी एवं उन्हें टी.के.आर. जैसी जटिल प्रक्रिया से गुजरना पड़ेगा।
बहुत कम लोग यह जानते हैं कि घुटने दर्द का एक सरल एवं असरदार उपाय भी है जिसे एच.टी.ओ. कहते हैं।
एच.टी.ओ. क्या है, यह जानने के लिए हमें यह समझना होगा कि घुटने का दर्द कैसे उत्पन्न होता है। जीवन के चौथे-पांचवे दशक तक पहुंचते-पहुंचते सामान्यत: हमारे घुटनों में एक तिरछापन शुरू हो जाता है। प्रारंभ में इसे केवल एक अनुभवी डॉक्टर ही जांच सकता है लेकिन छठे दशक तक आते-आते अक्सर यह बहुत बढ़ जाता है और सभी को दिखने लगता है और मरीज की चाल प्रभावित हो जाते है। यही तिरछापन (गेपिंग) भी स्पष्ट रूप से दिखता है। इसकी वजह से घुटना स्वाभाविक लोड डिस्ट्रब्यूशन नहीं कर पाता एवं जहां अधिक लोड आता है वह भाग नष्ट होने लगता है और दर्द / पीड़ा का प्रमुख कारण बन जाता है।
एच.टी.ओ. एक ऐसी प्रणाली है जिसके द्वारा यह तिरछापन और लोड डिस्ट्रीब्युशन करेक्ट कर दिया जाता है।
इसका नतीजा यह निकलता है कि मरीज को दर्द से राहत मिल जाती है एवं घुटने को बदलना नहीं पड़ता।
घुटना ओरिजनल रहने के कारण एच.टी.ओ. के बाद किसी प्रकार की दैनिक गतिविधि बंद नहीं होती है। जैसे घुटने को पालथी लगाकर बैठना, इंडियन स्टाइल टायलेट वापरना/ सीढिय़ां उतरना / चढऩा वगैरह।
यूरोपीय देशों में एच.टी.ओ. सफलतापूर्वक किया जा रहा है एवं भारत में भी इसके कई सफल परिणाम देखने में आ रहे हैं।

Thursday, 9 October 2014

रीढ़ की हड्डी


दिल और फेफड़े की तकलीफ पैदा करने वाली पीठ यानी रीढ़ संबंधी बीमारी कूबड़ प्राचीन काल से ही कौतूहल का विषय रहा है। अभी तक लोग इसे लाइलाज समझते रहे हैं जब कि आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में रीढ़ के विकार अर्थात् कूबड़ को रोग माना जाता है।
अध्ययनों के मुताबिक इस समय करीब एक फीसदी आबादी कूबड़ सहित रीढ़ के अन्य विकार से ग्रसित है। चिकित्सा विज्ञान के अनुसार स्पाइन में असमान्य वृद्धि के कारण रीढ़ में विकार पैदा हो जाता है। जिसकी अनदेखी से या तो कूबड़ हो सकता है या रीढ़ में अन्य तरह की विकृति हो सकती है।
जाने-अनजाने में गलत तरीके से उठने, बैठने, सोने, पढऩे आदि से व्यक्ति के सेहत पर दूरगामी प्रभाव पड़ता है। इसकी वजह से रीढ़ की हड्डी में टेढ़ापन और कम व पीठ में असहनीय दर्द की शिकायत होती है। हालांकि इसका कारण आनुवांशिक और गंभीर संक्रमण भी होता है, लेकिन मुख्य वजह बचपन से जवानी तक की दिनचर्या से जुड़ा है।
यदि शुरू से ही इस ओर ध्यान दिया जाए, तो रीढ़ की हड्डी की विकृति से बचा जा सकता है। सही ढंग से नहीं बैठना, बिस्तर पर लेटटकर पढऩा या टीवी देखना, गलत तरीके से बाइक चलाना आदि ऐसी क्रियाएं हैं, जिन्हें जाने-अनजाने सभी लोग अंजाम देते हैं। बचपन से ही यदि रीढ़ की हड्डी पर दबाव बनाने वाली कार्य किए जाएं, तो बड़े होते-होते उसमें विकृति आने की आंशका बढ़ जाती है। ऐसे में लोगों को अपनी दिनचर्या में रीढ़ की हड्डी का विशेष ध्यान रखते हुए कार्यों को अंजाम देना चाहिए।
शरीर को आकार और मजबूती प्रदान करने वाला रीढ़ यानी स्पाइन दरअसल लाठी की तरह सख्त और सीधा न होकर लचीला होता है। ये खंड-खंड में बंटे होते हैं और एक-दूसरे से शॉक अब्जार्बर द्वारा जुड़े होते हैं। प्रत्येक खंड को कशेरूकी दंड या मेरूदंड कहते हैं। इसके कारण ही रीढ़ में लचीलापन होता है। रीढ़ में समस्या दो तरह से शुरू हो सकती है। एक तो यदि किसी कारणवश डिस्क की स्थिति बिगड़ जाए। दूसरे मेरूदंड में असामान्य वृद्धि होने लगे।
कूबड सहित रीढ़ के अन्य विकार का कारण मेरूदंड में असामान्य वृद्धि होना है। सामान्यत: बचपन से ही उम्र बढऩे के साथ-साथ मेरूदंड में वृद्धि बराबर अनुपात में होती है। जिससे शरीर में संतुलन कायम रहता है लेकिन विपरीत परिस्थिति में किसी कारणवश मेरूदंड में असामान्य वृद्धि और दूसरे हिस्से के मेरूदंड में कम वृद्धि हो। इस अनियमित वृद्धि के कारण कूबड़ सहित रीढ़ में अन्य विकार पैदा हो जाते हैं। जिससे शारीरिक संतुलन बिगड़ जाता  है।
कूबड़ को अंग्रेजी में स्कोलियोसिस कहते हैं, मेरूवक्रता यानी मेरूदंड में विकृति का पता यदि शुरू से चल जाए तो इलाज काफी सरल हो जाता है। मैग्नेटिक रेजोनेंस इंमेजिग या एमआरआई रीढ़ के विकारों का पता लगाने के लिए सबसे अच्छी जांच तकनीक है। कई एमआरआई में मेरूवक्रता की स्थिति और उसके कारण नसों पर पडऩे वाले दबावों को आवर्धित रूप से देखना संभव हो जाता है। इससे चिकित्सा में सुविधा होती है।
मेरूवक्रता के इलाज में पहले परम्परागत शल्य क्रिया का इस्तेमाल होता था। इसमें 3 से 5 घंटे का समय व 4 से 5 बोतल खून लगता था। साथ ही अल्परक्त दाब पर बेहोश रहना पड़ता था, लेकिन अबऐसा नहीं है। यह काम माइक्रो सर्जरी से सफलतापूर्वक किया जा रहा है। इसमें बहुत ही छोटा चीरा लगाना पड़ता है। कम समय लगता है।
रीढ़ की हड्डी के टेढ़ापन को विशेषज्ञों ने कई श्रेणियों में बांटा है। इसके टेढ़े होने के अलग-अलग कारण और प्रभाव हैं। यदि इन पर गौर किया जाए, तो समय रहते इसे रोका जा सकता है या फिर इनका उचित इलाज कराया जा सकता है।
जिस व्यक्ति की रीढ़ की हड्डी सामने सो सीधी और किनारे से झुकी हुई हो, तो समझना चाहिए कि वह स्कोलियोसिस का शिकार है। ऐसी विकृति का शिकार अधिकांशत: महिलाएं होती हैं और यह आनुंवांशिक होता है। यह देखने में बुरा तो लगता ही है, इसके हृदय व फेफड़े पर असर पडऩे की आंशका रहती है।
इसमें गर्दन व कमर से आगे की ओर झुकाव देखने में आता है। यदि कमर में पीछे की ओर झुकाव बढ़ जाए, तो उसे आम भाषा में कूबड़ निकलना कहते हैं।
कुछ बच्चों में पैदा होने के समय से ही रीढ़ की हड्डी टेढ़ी होती है। बड़ा होने के साथ उसमें टेढ़ापन बढ़ता चला जाता है। इसे कंजैनिटल स्कोलियोसिस या काईफोसिस कहते हैं। इसकी वजह बचपन से ही गलत तरीके से बैठने या सोने की आदत है। इसके अलावा, बोन टीबी, नसों व मांसपेशियों की बीमारियां भी जिम्मेदार हैं। इस प्रकार के टेढ़ेपन से नसों पर दबाव पड़ता है, जो पैरों के कमजोर होने का कारण हो सकता है। इससे लकवा होने की आशंका बनी रहती है।

ओस्टियोपोरोसिस : हड्डियों का जोखिम


ओस्टियोपोरोसिस या छिद्रित हड्डियों यह हड्डियों की एक आम बीमारी है जिसमें हड्डियाँ का द्रव्यमसन घट जाता है तथा हड्डियाँ के ऊतको का संरचनात्मक क्षरण होने लगता है जिससे हड्डियाँ की भंगुरता बढ जाती है तथा कूल्हों, रीढ तथा कलाई में फै्रक्चर होने का जोखिम बढ जाता है ओस्टियोपोरोसिस से महिला तथा पुरूष दोनो प्रभावित होते है। यह एक ऐसी बीमारी है जिसकी रोकथाम और उपचार किया जा सकता है।
ओस्टियोपोरोसिस को एक खामोश बीमारीÓ कहा जाता है कि क्योंकि हड्डियाँ का नुकसान बिना किन्हीं लक्षणों के होता हैं, उनमें से एक महिला तथा 4 में से एक पुरूष को अपने जीवन काल में ओस्टियोपोरोसिस संबंधी फ्रैक्चर होते है और तो और जिन महिलाओ को रजोनिवृति के आसपास या इसके बाद फ्रैक्चर हुआ है उन्हे दुगुनी सम्भावना होती है कि उन्हे और फ्रैक्चर हो जाये जिन लोगो की ओस्टियोपोरोसिस के कारण कूल्हे की हड्डी टूट जाती है उनमे से 20 प्रतिशत तक लोगो की साल भर में मृत्यू हो जाती है।
ओस्टियोपोरोसिस के बारे मे कुछ करने के लिए समय का इंतजार करने की जरूरत नहीं है हर व्यक्ति जीवन भर अपनी हड्डियाँ को स्वस्थ और मजबूत बनाये रखने के लिए प्रयास कर सकता है।

ओस्टियोपोरोसिस क्यों होता है?

ओस्टियोपोरोसिस हड्डियों की सशक्तता उनके द्रव्यमान तथा घनत्व पर निर्भर करती है अस्थि घनत्व तथा सबलता बनाए रखने के लिए शरीर को पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम तथा खनिज लवणो एवं अस्थि कोशिकाओ की कार्य प्रणाली को विनियमित करने में सहायता प्रदान करने वाले निश्चित प्रकार के हार्मोन्स का उचित उत्पादन तथा विटामिन डी की पर्याप्त आपूर्ति की आवश्यकता होती है, जो कि कैल्शियम के अवशोषण तथा सामान्य अस्थि निर्माण के लिए अत्यावश्यक है।
हड्डियाँ गतिशील तथा सजीव ऊतक है हमारा शरीर निरंतर रूप से नई हड्डियाँ बनाता और पुरानी को हटाता रहता है, बचपन में हटने के बजाय हड्डियाँ बनती ज्यादा हैं इसलिए हड्डियाँ का आकार बढ़ता है 30या 40 की उम्र के बाद, नई हड्डियाँ को बनाने वाली कोशिकाएं अस्थियां घटाने वाली कोशिकाओ जितना काम नही कर पाती है और हड्डियाँ की कुल मात्रा घटने लगती है तथा इसके परिणामस्वरूप ओस्टियोपोरोसिस विकसित हो सकता है।
पुरूषों में हड्डियाँ के नुकसान की औसत दर तथा जो महिलाएं अभी तक रजोनिवुत नहीं हुई उनमें कम होती है। परन्तु रजोनिवृति के बाद महिलाओ में हड्डियाँ का नुकसान औसतन वर्ष में एक से दो प्रतिशत बता है।
रजोनिवुति के बाद एस्ट्रोजन (महिला हार्मोन) स्तरो का तेजी से घटना इसका कारण होता है शरीर की हड्डियाँ बनाने वाली कोशिकाओ की क्रियाशील बनाए रखने में एस्ट्रोजन का स्तर घटता है तो कुछ संरक्षण समाप्त हो जाता है।
ओस्टियोपोरोसिस के विकसित होने का जोखिम इस बात पर निर्भर करता है कि 25 तथा 35( अधिकतम अस्थि द्रव्यमान) की आयु के बीच आपका अस्थि द्रव्यमान कितना रहा है तथा बाद में यह कितनी तेजी से घटा है आपका अस्थि द्रव्यमान जितना अधिक होगा तो आपके पास भण्डार में अधिक अस्थियां होगी जिससे आपको ओस्टियोपोरोसिस होने का अंदेशा घटेगा, क्योकिं सामान्यरूप जोखिम घटको की जल्दी जानकारी तथा उनकी डाक्टर से उचित सलाह लेकर आस्टियोपोरोसिस के रोकथाम के बारे में कदम उठाने से आनें वाली परेशानियों से बचाव संभव है।

ओस्टियोपोरोसिस विकसित होने के जोखिम घटक क्या हैं

  • महिला का होना
  • कॉकेशियन या एशियाई वंश
  • शरीर का पतला और छोटा ढांचा
  • ओस्टिपोरोसिस का पारिवारिक इतिहास (उदारहण के लिए माता को यदि ओस्टोपोरोसिस के कारण कूल्हे का फ्रैक्चर हुआ है तो आपको कुल्हे का फ्रैक्चर होने का जोखिम दुगुना हो जाता है)।
  • एक वयस्क के रूप में फ्रैक्चर संबंधी आपका व्यक्तिगत इतिहास
  • धूम्रपान करना
  • अधिक मात्रा में अल्कोहल का सेवन
  • नियमित व्यायाम न करना
  • भोजन में कैल्शियम की कम मात्रा या फास्ट फूड का अधिक सेवन करना
  • ठीक प्रकार से अवशोषण न होना (पाचनतंत्र द्वारा पोषाहारों का ठीक प्रकार से अवशोषण न किया जाना)

Wednesday, 8 October 2014

अस्थियों में वज्र तेज होता है


जब देवलोक पर वृत्रासुर नामक राक्षस ने अधिकार जमा लिया था तब उसको मारने के लिए महर्षि दधिचि ने अपनी अस्थियां देवताओं को दान किया था क्योंकि उनकी अस्थियों में ही वह ब्रह्मतेज था जिससे वज्र बनाकर राक्षस का संहार देवताओं द्वारा किया जा सका, क्योंकि उसने अस्त्र-शस्त्र पर विजय हासिल कर रखी थी।
हमारा शरीर अस्थियों से मिलकर बना होता है, इन अस्थियों के सहारे ही हम एक स्थान से दूसरे स्थान तक जा सकते हैं। उम्र ढलने के साथ-साथ हमारी अस्थियां कमजोर होने लगती हैं। आवश्यकता है इन अस्थियों को मजबूत बनाकर लम्बे समय तक रोगों से बचाए रखने की।
अत: इस आधुनिक युग में भी कितने भी भौतिक साधन जुटा लिए जाएं परन्तु बिना अस्थियों के मजबुती के एक स्थान से दूसरे स्थान तक स्वयं जा पाना मुश्किल कार्य है।
- डॉ. ए.के. द्विवेदी

महिलाओं में कैल्शियम की कमी के लक्षण


जब बात महिलाओं की होती है, तब वह आराम से हर बीमारी को नजरअंदाज कर देती हैं। यही कारण है कि आज दुनियाभर में महिलाओं को ही सबसे ज्यादा भयंकर बीमारी का समाना करना पड़ रहा है। अधिकतर महिलाएं अपने स्वास्थ्य पर ध्यान नहीं देती। कई बार इसी वजह से कोई बड़ी बीमारी बाद में या लाइलाज स्टेज पर पता चल जाती है। ऐसी कुछ बीमारियां हैं, जो अगर जल्द पहचान में न आयी तो उनसे जान को खतरा पैदा हो जाता है। इसलिये अच्छा होगा कि कोई भी बीमारी का अंदेशा होने पर जल्द से जल्द उसकी समस्या का समाधान कर लें।
ऑस्टियोपोरोसिस का नाम तो आपने सुना ही होगा, अगर नहीं तो यह हड्डी की एक अवस्था होती है जिसमें हड्डियाँ उम्र के साथ मुलायम हो कर चिटकने लगती हैं। इसका ट्रीटमेंट थोड़ा मुश्किल हो जाता है क्योंकि जब तक किसी महिला को इस बीमारी के बारे में पता चला है, तब तक बहुत देर हो जाती है। इसकी समस्या कैल्शियम की कमी से होती है।
इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप की उम्र क्या है क्योंकि अवस्था कोई भी हो अपनी हड्डी को मजबूत रखना बहुत जरुरी है। कई लोगों का यह मानना है कि हड्डी तो वैसे भी शरीर का सबसे मजबूत अंग होता है तो भला इसकी देखभाल करने से क्या फायदा। यह बीमारी जयादातर महिलाओं और लडकियों में देखने को मिलती है। यह ज्यादातर 50 की उम्र की महिलाओं को होती है। चलिए देखते हैं कि इस बीमारी को दूर करने के लिए और अपनी हड्डी को मजबूत बनाने के लिए क्या आहार ले सकते हैं-
दूध : आपकी मां आपको हर वक्त दूध पीने को हमेशा कहती हैं क्योंकि इसके पीछे एक कारण है। दूध कैल्शियम और विटामिन डी का सबसे बडा स्रोत होता है। रिसर्च के मुताबिक कुछ डेयरी प्रोडक्ट जैसे कि चीज़ और आइस्क्रीम भी कैल्शियम के अच्छे स्रोत माने जाते हैं पर उनमें विटामिन डी नहीं पाया जाता।
व्यायाम : व्यायाम न करना बहुत ही गलत आदत है। अगर आपको अपनी हड्डी को मजबूत बनाना है तो अभी से ही टहलना, जौगिंग करना, वेट लिफ्टिंग, पुश अप और सीढियां चढना शुरु कर दें। आप को हफ्ते में छह दिन 30 मिनट तक के लिए तो व्यायाम करना ही चाहिएये।
मेवा-बीज : अगर आपको किसी भी प्रकार का मेवा पसंद है तो उसे जरुर खाएं। कद्दू के बीज में मैगनीश्यिम होता है। बादाम और पिस्ता जैसे मेवे भी आप खा सकती हैं। इसमें ढेर सारे पोषक तत्व आपकी हड्डी को मजबूती देगें। अखरोट में ओमेगा 3 फैटी एसिड की मात्रा बहुत अधिक पायी जाती है। साथ ही इसमें अल्फालिनोलिक एसिड होता है जो हड्डी को मजबूती प्रदान करता है।
गाजर : इस सब्जी में अल्फा कैरोटीन, बीटा कैरोटीन और बीटाक्रप्टोएक्सथिन पाया जाता है। गाजर को आप सलाद के रुप में कच्चा खा सकते हैं।
विटामिन डी : यह पोषक तत्व कैल्शियम को सोखने और बनाये रखने में काम आता है। सूरज की धूप शरीर में विटामिन डी भरती है और इसे पाने के लिए आपको संतरे का जूस, दूध, मछली आदि खाना चाहिये।

महिलाओं में कैल्शियम की कमी के लक्षण

कैल्शियम एक ऐसा पोषक तत्व है, जिसकी शरीर को काफी जरूरत होती है। दूसरे पोषक तत्व की तरह ही हमारे डाइट में कैल्शियम की बड़ी भूमिका होती है। मजबूत हड्डी और दांत के निर्माण में कैल्शियम आवश्यक होता है। इतना ही नहीं, कैल्शियम हमारे स्वास्थ को भी बेहतर बनाता है। बेहतर स्वास्थय के लिए नि:संदेह कैल्शियम एक जरूरी पोषक तत्व है। पोषक तत्व का सेवन और इसका स्तर महिला और पुरुष में अलग-अलग हो सकता है। कई बार महिलाओं को अपने स्वास्थय को बनाए रखने के लिए कुछ अतिरिक्त पोषक तत्व की जरूरत होती है। महिलाएं अपने करियर और फैमिली का ध्यान रखते-रखते कई बार अपने आहार और फिटनेस को लेकर लापरवाह हो जाती है। वह भूल जाती है कि उनकी अपनी भी जिंदगी है और उन्हें अपना भी ख्याल रखना चाहिए। रोज कीजिये एक्सरसाइज नहीं तो हो जाएंगी हड्डियां कमजोर बुनियादी बातें इससे पहले कि आप महिलाओं में कैल्शियम की कमी के लक्षण और उसके उपचार के बारे में जानें, आपके लिए कैल्शियम के बारे में जानना अच्छा होगा।
  • यह ऐसा पौष्टिक तत्व है जो आपकी हड्डियों और दांतों को संरचना प्रदान करता है।
  • तंदुरुस्त दिल के लिए यह जरूरी होता है।
  • आपके मसल्स की कार्यप्रणाली इस पोषक तत्व पर निर्भर करती है और इसी से आपकी हड्डी भी मजबूत होती है।
  • अपने औषधीय गुण के कारण यह सबसे ज्यादा बिकने वाला सप्लीमेंट्स है।

लक्षण

अब आप जान गए हैं कि कैल्शियम कितना महत्वपूर्ण है। आइए अब कुछ और बातें जानते हैं। यहां हम आपको महिलाओं में कैल्शियम की कमी के लक्षण के बारे में बता रहे हैं।
  • महिलाओं के शरीर में 1000 से 1200 मिली ग्राम कैल्शियम होनी चाहिए। इससे कम मात्रा को कैल्शियम की कमी माना जाता है और आपको फिजिशियन से इस बारे में जरूर बात करनी चाहिए जो आपको बेहतर आहार की सलाह देंगे। महिलाओं में कैल्सिय की कमी के लक्षण साफ दिखाई नहीं देते हैं। पर अगर आप नियमित रूप से फ्रेक्चर से जूझ रही हैं और आपकी हड्डी काफी कमजोर हो गई है तो आपको ध्यान देने की जरूरत है। यह भी जरूरी है कि उम्रदराज महिलाएं भी कैल्शियम की कमी को गंभीरता से लें।
  • अगर महिलाओं में कैल्शियम की कमी के लक्षण को नजरअंदाज कर दिया जाए तो इससे आस्टिओपरोसिस का खतरा भी पैदा हो जाता है। कैल्शियम की कमी का जल्दी पता लगाने के लिए आपको ब्लड टेस्ट करवाना चाहिए।
  • महिलाओं में कैल्शियम की कमी का लक्षण संवदेनशून्यता और मसल में अकड़ आना भी है। अगर इस स्थिति का उपचार न कराया जाए तो इस बात का खतरा रहता है कि नर्व ठीक तरह से सिग्नल भेजना बंद कर दे।
  • महिलाओं में कैल्शियम की कमी को बेहतर तरह से जानने के लिए आपको हृदय के आवर्तन पर ध्यान देना चाहिए। कैल्शियम की कमी होने पर हृदय आवर्तन प्रभावित होता है।
  • कई बार महिलाओं में कैल्शियम की कमी से कंफ्यूजन, साइकोसिस और थकान भी होती है। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि दिमाग को भी कैल्शियम चाहिए होता है। हालांकि उम्रदराज महिलाओं में कैल्शियम की कमी का ध्यान बेहतर तरीके से रखना पड़ता है।

Tuesday, 7 October 2014

सर्दी की धूप बनाएं हड्डियां मजबूत


हाल ही में हुए एक नवीनतम शोध में पाया गया कि जो हिप फ्रैक्चर का शिकार है उनमें से 97 प्रतिशत रोगियों में विटामिन डी की कमी पाई गई है। विटामिन डी हड्डियों की मजबूती के लिए बेहद आवश्यक है।
धूप एक ऐसा टॉनिक है जिसके सेवन पर खर्च कुछ भी नहीं होता, परन्तु लाभ ढेर सारे होते हैं। सर्दियों में धूप सुहानी हो जाती है। यह विटामिन डी का सबसे बढिय़ा और नि:शुल्क स्रोत है अत: सर्दियों में धूप सेवन का लाभ अवश्य उठाना चाहिए। हमारी त्वचा में एर्गेस्टरॉल नामक एक पदार्थ होता है, जो सूर्य की पराबैंगनी किरणों के प्रभाव से विटामिन डी में बदल जाता है। विटामिन डी का सेवन मनुष्य को स्वस्थ, निरोगी तथा दीर्घायु बनाए रखता है। वैज्ञानिकों ने 67 हजार लोगों पर इसका अध्ययन किया और पाया कि जो लोग इसका सेवन करते थे, उनमें स्वास्थ्य समस्याएं बहुत कम पाई गई हैं। सभी जानते हैं कि कैल्शियम हड्डियों की मजबूती के लिए कितना जरूरी है। यदि आप पर्याप्त मात्रा में धूप का सेवन करते हैं तो हड्डियों से जुड़ी बीमारियों से बचाव हो सकता है। वैज्ञानिकों ने अध्ययन में पाया कि यह विटामिन न केवल मांसपेशियों को मजबूत बनाता है अपितु शरीर में ऑस्टियोकैल्किन नामक प्रोटीन के निर्माण में भी मददगार होता है जिससे फ्रैक्चर के खतरे भी कम हो जाते हैं। धूप शरीर के लिए बेहद जरूरी है, क्योंकि यह सीधे तौर पर हड्डियों के स्वास्थ्य से जुड़ी होती है। शरीर में विटामिन डी की कमी से हड्डियों की सतह कमजोर हो जाती है, जो असहनीय दर्द का कारण बन जाता है। शरीर के भार का केंद्र कमर होती है, रीढ़ की हड्डी पूरी तरह कमर पर टिकी होती है। विटामिन डी की कमी से रीढ़ के लिए शरीर का भार ढो पाना बड़ी चुनौती बन जाती है। सूर्य की किरणें यानी धूप इस समस्या से निजात दिलाती है।

हड्डियों की कुछ बिमारियां


वयस्क मानव कंकाल तंत्र कुल 206 हड्डियो से मिलकर बना है। शरीर की हर हड्डी एक जटील जीवित अंग है। मानव कंकाल द्वितरफा एक जैसा है और बीच में रीढ़ की हड्डियॉं है। रीढ़ की हड्डियॉं छोटे छोटे हिस्सों में विभाजित होने के कारण लचीली होती है। रीढ़ की हड्डियो का निचला पेडू (पेलविस) से और उपरी सिरा कपाल से जुडा होता है। दोनो हाथो की हड्डियॉ वक्षीय (पेक्टोरल) और दोनो पैरो की हड्डियॉ पेडू (पेलविस) से जुडे होते है। यह सभी अस्थि पंजर (हड्डियॉ) मिलकर एक मजबूत लचिला ढॉचा बनाते है, जो शरीर को सहारा देते है। कंकाल बनाने वाली हडडियो कि लंबाई और घनत्व शरीर की उॅचाई और चौडाई व आकार तय करते है। जीवन के लिये जो शरीर के अति आवश्यक अन्दरूनी अंगो की यह रक्षा करता है। उदाहरण के लिये मस्तिष्क (ब्रेन) कपाल और मेरूदण्ड (स्पाईनल कार्ड) रीढ की हड्डियों, दिल और फेफडे वक्ष की हड्डियो के अन्दर सुरक्षित है।
शरीर की हड्डियॉ स्थिर और मजबूत है जो एक टेकन (लीवर) की तरह काम करती है। यह लीवरों का वह तंञ है जो शरीर को गति प्रदान करने में मदद करता है। जब अस्थि से जुडी मांसपेशियॉ सिकुडती है, तो खिंचाव के कारण दबाव (भार) बनता है जिसके परिणाम स्वरूप हरकत संभव हो पाती है। अस्थि पंजर और मांसपेशियॉ साथ मिलकर काम करते है, जो शरीर को पैदल चलने, और दौडऩे, हाथो को विभिन्न तरह के काम करने आदि में सहायता करती है।
वह जगह जहॉ दो या दो से अधिक हड्डियॉ मिलती है, उसे जोड (जाईन्ट) कहते है। शरीर में मुख्त: दो तरह के जोड़ होते है।
चल जोड़ जो स्वतंत्र रूप से घूमने वाले जोड़ होते है, जो किसी भी दिशा में घूम सकते है। जैसे कोहनी, कुल्हे और कंधे। चल जोड़ो की हड्डियां सख्त किन्तु लचीली होती है उसे संयोजी उतक अपनी जगह पर बांध के रखती है ऐसी उतक को लिगामेंट कहते है।
अचल जोड़ जो आगे जाकर लॉक हो जाते है और सभी दिशाओ में नही घूम सकते है। जैसे घुटना, कपाल की हड्डियां में जबडा़ छोड़ कर।
रक्त कोशिका जीवन के लिये जरूरी पोषक तत्वों को सभी अन्य कोशिकाओं को पहुंचाने का काम करती है। लाल अस्थि मज्जा द्वारा इन कोशिकाओं का निर्माण कर, रक्त में छोड दिया जाता है। लाल अस्थि मज्जा अस्थि के अन्दर वाले हिस्से में पाया जाता है।
खून के अनिवार्य खनिज जैसे कैल्शियम, फासॅफोरस और अन्य खनिजो पर नियंत्रण भी अस्थियों द्वारा किया जाता है। दो प्रकार की अस्थि कोशिकाओं खनिजो पर नियंत्रण करती है। एक प्रकार की अस्थि कोशिकाओं खनिजो को रक्त से हड्डियो में संग्रहण करती है। अन्य प्रकार की अस्थि कोशिकाओं खनिजो की जरूरत या कमी होने पर रक्त में पुन: छोडने का काम करती है।
इस तरह से हड्डियां संरचना के अलावा ओर भी महत्वपूर्ण कार्य करती है। सामान्यत: हड्डियां और जोड़ो की आम बिमारीयों के लक्षणों और संकेत त्वचा, पाचन तंत्र और श्वसन तंत्र की बीमारीयों से कम दिखाई पड़ते है। परन्तु अगर हड्डियॉ और जोड़ो में बिमारी होती है तो वह ज्यादा जटील होती है और ठीक होने में ज्यादा समय लगता है।

कंकाल तंत्र की बिमारीयॉ

जोड़ो में दर्द के कई कारण हो सकते है । जैसे बहुत अधिक काम करना, वायरस से होने वाला बुखार, कमज़ोरी, कुपोषण या किसी विशेष मुद्रा में बैठे रहने से थकान, संक्रमण, चोट/मोच, प्रतिरक्षित तंत्र की खराबी, ऐलर्जी संबंधी (दवाओ) से, बढती उम्र और विकृत बिमारीयो के कारण हो सकता है। ज़रूरी नहीं की ऐसा हर दर्द गठिया हो। दो हड्डीयो के बीच चबनी हड्डी (कार्टलिज) जोड़ो के लिये एक गद्दे का काम करता है जिसके कारण जोड़ो में निविर्घन ओर दर्दरहित हरकत संभव हो पाता है। चबनी हड्डी (कार्टलिज) की खराबी के कारण जोड़ो में दर्द होता है।
कंकाल तंत्र की बिमारीयॉ को दो तरह से देख सकते है-
(1) हडडी से संबधित बिमारीयॉ
(2) जोडो से संबधित बिमारीयॉ।

कंकाल तंत्र से उत्पंन्न होनेवाले मुख्य लक्ष्ण दो तरह के होते है। पहला हडडी या उसकी संरचना से उठने वाला दर्द (पेन) और दुसरा सीमित हरकत (रिसटिरक्टेड मूवमेंट) है। हडडी या उसके उपर आवरण की संरचना (पैरिआसटीयम), या शरीर के जोडो को तर रखने वाला पदार्थ श्लेष्क (साईनोविआ), शिरा (टेंडन), अस्थि बंधक तंतु (लिगामेंट) या मॉसपेशी से उठने वाला दर्द है। हडडी में यह दर्द लगातार बना रहता है। सामान्यत: दर्द असहनीय और कष्ट दायक होता है। जोडो और उसके सहायक संरचना से उठने वाले दर्द तीखे होते है। जिसका संबंध जोड़ की हरकत या किसी विशेष मुद्रा में शरीर को रखने से होता है और साथ में अकडऩ (स्टिफनेस) भी महसुस होती है।
जब कंकाल तंत्र में दोष निकलता है, तब दर्द और अकडऩ के कारण सीमित हरकत (रिसटिरक्टेड मूवमेंट) होती है। अगर दर्द और अकडऩ के बिना यदि कम हरकत पायी जाती है तो, यह स्नायु तंत्र की बिमारी हो सकती है।

हड्डियों की बिमारियां

  • हड्डियों और जोडो में संक्रमण
  • रीढ की हड्डी में क्षय रोग (टी बी)
  • अस्थि में कर्क रोग (बोन कैंसर)
  • अस्थि भंग (हड्डी टुटना, फै्क्चर)
  • अस्थियो में सूजन (स्पोन्डिलाईटिस)
  • अस्थिम़ृदुता (आस्टिओमलेशिया)

जोड़ो की बिमारियां (आरथ्रोपैथी)

  • जोड़ो मे दर्द (आरथ्रेलजिआ)
  • जोड़ो में सूजन/गठिया (आरथ्राईटिस)
  • जोड़ो में चोट या मोच
  • जोड़ो में खून (हिमआरथ्रोसिस)
  • जोड़ो में अधिक पानी (हाइडरोसिस)
  • जोड़ो में अकडन (एनकाइलोसिस)
  • जोड़ो की सहायक संरचना मे सुजन (पैराआरथ्राईटिस)
  • जोड़ो का बुखार

Saturday, 4 October 2014

बालों का झडऩा : जटिल समस्या


पुरुष हो या महिला आजकल बाल झडऩे की समस्या से सभी पीडि़त एवं चिन्तित हैं।
यह तो सभी जानते ही हैं आपकी पर्सनेलिटी निखारने में बालों की अहम भूमिका होती है, ऐसे में जरूरी हो जाता है कि बालों की देखभाल अच्छे से की जाएं। आप कुछ ऐसे घरेलू नुस्खों को अपनाएं जिसके लिए आपको बहुत मेहनत ना करनी पड़े और सभी चीजें आराम से घर में ही उपलब्ध हो। बालों को झडऩे से रोकने के लिए स्वस्थ जीवनशैली अपनायें।
इंफेक्शन और डैंड्रफ फंगल इंफेक्शन से बाल झड़ सकते हैं। बरसात के दिनों में गीले बालों को ठीक से न पोंछने पर भी फंगल इंफेक्शन हो सकता है। हालांकि थोड़ी-बहुत डैंड्रफ होना सामान्य है, खासकर मौसम बदलने पर, गर्मियों और बरसात की शुरूआत में, लेकिन ज्यादा होने पर यह बालों की जड़ों को कमजोर कर देती है। यह ड्राई और मॉइश्चर, दोनों रूप में हो सकती है। इससे बचाव के लिए साफ-सफाई का पूरा ख्याल रखें।

बालों को झडऩे से रोकने में व्यायाम की भूमिका

बालों के झडऩे का मुख्य कारण शारीरिक गतिविधियों की कमी है।  अगर आप किसी भी रूप  में कसरत या व्यायाम नहीं करते तो आपके अन्दर रक्तसंचार कमज़ोर पड़ जाता है जिसकी वजह से उन छिद्रों को, जहाँ से बाल उगते हैं, ज़रुरत के हिसाब से पोषक तत्व नहीं मिल पाते क्योंकि सही रक्तसंचार ना होने की वजह से खून सही मात्रा में सिर तक नहीं पहुँचता और नतीजन बालों की जड़ें कमज़ोर हो जाती हैं और बाल गिरने लगते हैं। बालों को गिरने से रोकने के लिए रोजाना कम से कम पैंतालीस मिनिट तक कसरत करनी चाहिए। अगर आप कोई शोर्टकट  या  सरल रास्ता अपनाएंगे तो आपको फायदा होने से रहा। गोलियां और दवाइयां कुछ हद तक आपको राहत दिला सकते हैं, लेकिन कसरत की कमी से आपके बाल दोबारा झडऩा शुरू हो जायेंगे।

बालों को झडऩे से रोकने में पानी की भूमिका

बालों को गिरने से रोकने के लिये पानी भी एक सस्ता और उपयोगी नुस्खा है।  कुछ चंद जगहों को छोड़ कर पानी बिना किसी मूल्य के मिलता है। तो क्यों न खूब सारा पानी पीकर आप अपने बालों को झडऩे से रोकें!  कई लोग पानी तब पीते हैं जब उन्हें प्यास लगती है।  अगर आप भी ऐसा करेंगे तो आपके बालों को गिरने से कोई नहीं रोक सकेगा। प्यास न लगे फिर भी आप हर दो तीन घंटे पर एक ग्लास पानी पीयें। हमारे शरीर की बनावट में पानी की मात्रा कुछ ज्यादा, लगभग दो तिहाई होती है। आपकी त्वचा, बाल, रक्त, शुक्राणु, इन सबको स्वस्थ रहने के लिए और अपना कार्य सक्षमता से करने के लिए पानी की ज़रुरत पड़ती है।  
आप अगर पानी तब पीते हैं जब आपको प्यास लगती है तो यकीनन आपकी प्यास बुझती है, लेकिन जब बिना प्यास लगे आप पानी पीते हैं तो आप अपने कोशिकाओं और इन्द्रियों को एक तरह से सींचते हैं। इससे आपके रक्तसंचार में सुधार होता है और आप के अन्दर किसी भी रोग को रोकने की शक्ति पैदा होती है।  आपके शुक्राणु स्वस्थ हो जाते हैं और आपके बालों की जड़ें भी मज़बूत हो जाती हैं। पानी आपकी त्वचा को एक अनोखी चमक देता है, क्योंकि ये आपके लिवर से और आपकी त्वचा की कई सतहों के नीचे से विषैले तत्व बाहर निकाल फेंकता है। इससे एक और फायदा होता है, आपके अन्दर की पाचन शक्ति बढती है और आपका वजऩ भी कम हो जाता है। पानी आपके बालों में भी एक नयी चमक पैदा करता है, और उन्हें स्वस्थ और मज़बूत रखता है। तो अगर आप अपने बालों को गिरने से रोकना चाहते हैं तो जी भर के पानी पीजिये और पूरा दिन  अपने शरीर को सींचित और स्वस्थ रखिये।

बालों को झडऩे से रोकने में विटामिन डी की भूमिका

अन्य आवश्यकताओं की तरह बालों को विडामिन डी की भी आवश्यकता होती है । ये भी एक तरह का निशुल्क  नुस्खा है और बालों को गिरने से रोकता  है। असल में विटामिन डी बालों को बढऩे में काफी मददगार साबित होता है और बालों को बढऩे के लिए यह बहुत ज़रूरी  भी है। यह अपने आप में आयरन और  कैल्शियम  को सोख लेता है। आयरन की कमी भी बालों के गिरने की वजह होती है। लेकिन जब आप अपने शरीर पर कम से कम 15 मिनिट के लिए भी सूर्य की किरणें पडऩे देते हैं, तो आपको उस दिन के लिए ज़रूरी मात्रा में विटामिन डी की खुराक मिल जाती है। लेकिन एक बात याद रहे, जब बहुत ही ज्यादा गर्मी हो तो आप अपने सिर और त्वचा को सूर्य की किरणों से बचाकर रखिये। बहुत ज्यादा गर्मी या तपती धूप आपके लिए नुकसानदेह साबित हो सकती  है। तो बेहतर यही होगा  की आप सूर्य की किरणों का फायदा या तो सुबह उठाइए या शाम को।

बालों को गिरने से बचाने के लिए पौष्टिक खाना खाइए

कई लोग बालों की झडने का शिकार गलत खाने की वजह से होते हैं। ऐसा नहीं है की वे पौष्टिक खाने पर खर्च नहीं कर सकते लेकिन आदतन वे जंक फ़ूड  पर पैसे बर्बाद करते हैं बनिबस्त पौष्टिक आहार पर खर्च करने के । जंक फ़ूड, डब्बाबंद आहार, तैलीय खाना, वगैरह में पौष्टिक तत्वों  की कमी होती है लेकिन कई लोग इन्हें बड़े मज़े से खाते हैं। नतीजा यह होता है कि आपके शरीर को सही मात्रा में आयरन, कैल्सियम, जिंक , विटामिन  सी  और प्रोटीन वगैरह नहीं मिल पाते। यह सब बालों के बढऩे के लिए बहुत ज़रूरी होते हैं इसीलिए जहाँ तक हो सके ऐसे पोषण रहित आहार का बहिष्कार कीजिये और हरी सब्जियां, फल, सूखे मेवे, दूध, अंडे खाइए जिससे कि आपके जीवन में पौष्टिक आहारों की कमी पूरी हो सके।

बालों की समस्या का सरल समाधान -होम्योपैथी

बालों के गिरने की एक अहम् वजह तनाव भी है। तनाव तथा अन्य किसी भी प्रकार की समस्या से यदि आपके बाल रुखे, बेजान अथवा झड़ रहे हैं या उसमें रूसी हो रही है तो किसी भी योग्य होम्योपैथिक चिकित्सक को दिखा कर सरल समाधान पा सकते हैं। कुछ प्रमुख होम्योपैथिक दवाईयां - नैट्रमम्यूर, एसिड फास, फास्फोरस, कैंथरिस, सेलेनियम, सिपिया एवं आर्निका इत्यादि हैं। जिन्हें लक्षणों के आधार पर दिया जा सकता है।
 
- डॉ. ए. के. द्विवेदी
बीएचएमएस, एमडी (होम्यो)
प्रोफेसर, एसकेआरपी गुजराती होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज, इंदौर
संचालक, एडवांस्ड होम्यो हेल्थ सेंटर एवं होम्योपैथिक मेडिकल रिसर्च प्रा. लि., इंदौर

कैसे पाएं रेशमी जुृल्फें


आजकल की भागदौड़ और बिज़ी लाइफस्टाइल की वजह से आखिर कितनी ऐसी औरते हैं, जो अपने बालों को लंबा और रेशमी करने की सोंच सकती हैं लंबे बाल पाने के लिये खान-पान और उनकी केयर करने की आवश्यकता होती है, जो कि हर किसी के बस की बात नहींहोती। लेकिन अगर आप हमारे बताए गए इन तरीको को आजमाएंगी तो आपके भी बाल लंबे और घने हो सकते हैं।

बालों में तेल लगाएं

अगर बाल बढाना है तो उसमें तेल लगाना होगा। बालों में तकरीबन 1 घंटे के लिये तेल लगा रहने दें जिससे बालों की जड़ तेल को पूरी तरह से सोख ले। सिर पर हल्के गरम तेल से मालिश करें और गरम पानी में डुबोई हुई तौलिये से सिर ढंक कर भाप लें।

बादाम का तेल

जल्दी बाल बढाने के लिये कोई भी तेल कारगर नहीं होता। इसके लिये सबसे अच्छा तेल बादाम का होता है। बादाम के तेल में विटामिन ई भारी मात्रा में पाया जाता है।

हेल्दी खाएं

बालों के लिये कुछ आहार बहुत अच्छे होते हैं जैसे, हरी सब्जियां, बादाम, मछली, नारियल आदि। इनको अपनी डाइट में शामिल करें और लंबे बाल पाएं।

ट्रिम करवाएं

बालों को तीन महीने पर एक बार जरुर ट्रिम करवाएं, जिससे दोमुंहे बालों से निजात मिले। बालों को ट्रिम करवाने से बाल जल्दी जल्दी बढते हैं।

ड्रायर और अन्य मशीनों से दूर रहें

ब्लो ड्रायर या फिर बालों को कर्ली करने वाली मशीनों से दूर रहें क्योंकि इससे बाल खराब हो जाते हैं। अगर आपके बाल लंबे हैं तो उसे सुखाने के लिये धूप में पांच मिनट तक खड़ी हो जाएं लेकिन ड्रायर का प्रयोग ना करें।

रोजाना धुलाई

जिस तरह से बालों में तेल लगाना जरुरी है उसी तरह से बालों की सफाई और धुलाई भी बहुत जरुरी है। अगर आपके बाल लंबे हैं तो उन्हें हफ्ते में दो बार जरुर धोएं। आपके सिर की सफाई बहुत जरुरी है जिससे जड़ों को सांस लेने की जगह मिल सके।

बांध कर रखें

लंबे बालों को प्रदूषण, धूल मिट्टी और हवा से बचाना चाहिये। अगर आप कहीं सफर पर निकल रहीं हैं तो अच्छा होगा कि बालों को बांध लें या फिर जूडा बना लें।

Thursday, 2 October 2014

अच्छाई की जीत का प्रतीक विजय दशमी


विजय दशमी को ही अपराजिता पूजा का पर्व भी कहते हैं। नवदुर्गाओं की माता अपराजिता संपूर्ण ब्रहमांड की शक्तिदायिनी और ऊर्जा उत्सर्जन करने वाली हैं। महर्षि वेद व्यास ने अपराजिता देवी को आदिकाल की श्रेष्ठ फल देने वाली.. देवताओं द्वारा पूजित महादेव, सहित ब्रहमा विष्णु और महेश के द्वारा नित्य ध्यान में लाई जाने वाली देवी कहा है। गायत्री स्वरूप अपराजिता को निम्नलिखित मंत्रों से भी पूजा जाता है-

ओम् महादेव्यै च विह्महे दुर्गायै धीमहि। तन्नो देवी प्रचोदयात्।।
ओम् नमः सर्व हिताथौयै जगदाधार दायिके।
साष्टांगोऽप्रणामस्ते प्रयत्नेन मया कृतः।
नमस्ते देवी देवेशि नमस्ते ईप्सित प्रदे।
नमस्ते जगतां धातित्र नमस्ते शंकरप्रिये।।
ओम् सर्वरूपमयी देवी सर्वं देवीमयं जगत्।
अतोऽहं विश्वरूपां तां नमामि परमेश्वरीम्।।


 देवी अपराजिता का पूजन का आरंभ तब से हुआ यह चारों युगों की शुरुआत हुई। देव- दानव युद्ध का एक लंबा अंतराल बीत जाने पर नवदुर्गाओं ने जब दानवों के संपूर्ण वंश का नाश कर दिया तब दुर्गा माता अपनी आदि शक्ति अपराजिता को पूजने के लिए शमी की घास लेकर हिमालय में अन्तरध्यान हो गईं बाद में आर्यव्रत के राजाओं ने विजय पर्व के रूप में विजय दशमी की स्थापना की। ध्यान रहे कि उस वक्त की विजय दशमी देवताओं द्वारा दानवों पर विजय प्राप्त के उपलक्ष्य में थी। हालांकि उसमें इन्द्र आदि देवलोक के राजाओं के साथ धरती के राजा दशरथ जनक और शोणक ऋषि जैसे राजा भी थे, जिन्होंने देव दानव युद्ध में अपना युद्ध कौशल दिखाया। स्वभाविक रूप से नवरात्र के दशवें दिन ही विजय दशमी मनाने की परंपरा चली।

बाद में रामायण काल में राम ने अयोध्या का राज्याभिषेक किया लेकिन रावण एवं अन्य दानवों के पुनः जाग्रत होने से धरती फिर अशांत हो गई। राम ने अपने बाल्यकाल में एक-एक करते आर्याव्रत के कई राक्षसों को मारा। लेकिन सबसे बड़ा राक्षस रावण को मारने के लिए उन्हें जो जद्दोजहद करनी पड़ी, उसका उल्लेख रामायण में मिलता है। नवरात्रों में ही संपूर्ण रामायण की रामलीला खेली जाती है। और दशवें दिन रावण का वध किया जाता है। दशानन रावण के वध से जो उत्सव भारत में मनाया गया वही उत्सव आज दशहरा यानी दस सिरों वाले रावण को हराने का प्रतीक है। अगर कहा जाए तो रामायण काल के बाद दशहरा मूलतः राजाओं यानी क्षत्रिय राजाओं का त्योंहार रह गया है। जिस दिन वे विजयी होकर अपने राज्य पर उत्सव के रूप में जनसाधारण के बीच आते हैं।

भारत में रामायण काल से ही अयोध्या के राजा राम के द्वारा मनाए जाने वाले विजय दशमी पर्व के अलावा क्षेत्रीय स्तर पर भी वहां के राजाओं की सवारी निकलती हैं। सारी सवारी रामलीला मैदान में एकत्रित होती हैं। और दस सिर वाले रावण, उसके भाई कुंभकर्ण, पुत्र मेघनाद को अग्नि प्रज्वलित करके जला देते हैं। कुल मिलाकर विजय दशमी बुराई पर अच्छाई की विजय का ही प्रतीक है। इस विजय के लिए देवी मां अपराजिता अपनी अपार शक्ति समय समय पर शूर वीर और क्षेत्रीय राजाओं को प्रदान करती रहती है।