घुटना दर्द आज एक सामान्य बीमारी बन गई है। आज लगभग हर घर में एक न एक सदस्य इससे पीडि़त है, विशेषकर 45 वर्ष से ऊपर के व्यक्ति। कई मरीज डॉक्टर से इस बात को छुपाते हैं क्योंकि वे मान लेते हैं कि अगर उन्होंने अपनी समस्या का वर्णन किया तो उन्हें घुटना बदलवाने की सलाह दें दी जाएगी एवं उन्हें टी.के.आर. जैसी जटिल प्रक्रिया से गुजरना पड़ेगा।
बहुत कम लोग यह जानते हैं कि घुटने दर्द का एक सरल एवं असरदार उपाय भी है जिसे एच.टी.ओ. कहते हैं।
एच.टी.ओ. क्या है, यह जानने के लिए हमें यह समझना होगा कि घुटने का दर्द कैसे उत्पन्न होता है। जीवन के चौथे-पांचवे दशक तक पहुंचते-पहुंचते सामान्यत: हमारे घुटनों में एक तिरछापन शुरू हो जाता है। प्रारंभ में इसे केवल एक अनुभवी डॉक्टर ही जांच सकता है लेकिन छठे दशक तक आते-आते अक्सर यह बहुत बढ़ जाता है और सभी को दिखने लगता है और मरीज की चाल प्रभावित हो जाते है। यही तिरछापन (गेपिंग) भी स्पष्ट रूप से दिखता है। इसकी वजह से घुटना स्वाभाविक लोड डिस्ट्रब्यूशन नहीं कर पाता एवं जहां अधिक लोड आता है वह भाग नष्ट होने लगता है और दर्द / पीड़ा का प्रमुख कारण बन जाता है।
एच.टी.ओ. एक ऐसी प्रणाली है जिसके द्वारा यह तिरछापन और लोड डिस्ट्रीब्युशन करेक्ट कर दिया जाता है।
इसका नतीजा यह निकलता है कि मरीज को दर्द से राहत मिल जाती है एवं घुटने को बदलना नहीं पड़ता।
घुटना ओरिजनल रहने के कारण एच.टी.ओ. के बाद किसी प्रकार की दैनिक गतिविधि बंद नहीं होती है। जैसे घुटने को पालथी लगाकर बैठना, इंडियन स्टाइल टायलेट वापरना/ सीढिय़ां उतरना / चढऩा वगैरह।
यूरोपीय देशों में एच.टी.ओ. सफलतापूर्वक किया जा रहा है एवं भारत में भी इसके कई सफल परिणाम देखने में आ रहे हैं।
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