Wednesday, 4 February 2015

प्रोस्टेट कैंसर से 'सेक्स लाइफÓ खतरे में?


एक आंकलन के अनुसार ब्रिटेन में करीब 160,00 लोग ऐसे हैं जिनकी सेक्स लाइफ प्रोस्टेट कैंसर के इलाज के बाद या तो खत्म हो गई, या ठंडी पड़ गई। प्रोस्टेट कैंसर से जुड़े इस तरह के मामले बढ़ते ही जा रहे हैं। माना जा रहा है कि वर्ष 2030 तक ऐसे मामले दोगुने हो जाएंगे। प्रोस्टेट कैंसर के इलाज के दौरान सर्जरी, रेडियोथेरेपी और हार्मोन थेरेपी का इस्तेमाल किया जाता है। इन सबके दुष्प्रभावों में से एक इरेक्टाइल डिस्फंक्शन (स्तंभन दोष) है।
ब्रिटेन में हर साल 40,000 से भी ज्यादा लोगों में प्रोस्टेट कैंसर की पहचान हो रही है। प्रोस्टेट कैंसर से जूझ रहे लोगों में से कुछ में शिराएं स्थाई रुप से क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। इसका नतीजा ये होता है कि उनमें इरेक्शन बना नहीं रह पाता।
कुछ लोगों में इलाज के बाद शरीर से जुड़ी तात्कालिक परेशानियां, तो कुछ में सेक्स से संबंधित मनोवैज्ञानिक समस्याएं पैदा हो जाती हैं। तीन में से दो प्रोस्टेट कैंसर पीडि़त मानते है कि उन्हें इरेक्शन में दिक्कत आती है।

तन्हा सफर

मैकमिलन ने बताया कि पुरुषों को इस बात के लिए भी आश्वस्त करने की जरूरत है कि यदि उन्हें अपने इलाज के बाद सेक्स में परेशानी हो रही है तो, वे आगे आएं। हम उनकी मदद के लिए हमेशा तैयार हैं।
प्रोस्टेट कैंसर से जिंदगी की जंग जीत चुके लंदन के 63 साल के जिम एन्ड्रूज ने अपनी आपबीती बताई। उन्होंने बताया कि जब पहली बार अपनी इस बीमारी के बारे में उन्हें पता चला तो ऐसा लगा मानो अब मौत उनसे ज्यादा दूर नहीं।
मौत के आगे कामेच्छा को शांत कर देने वाली दवाइयों की जरूरत और यौन शिथिलता की समस्या गौण हो गईं।
एन्ड्रूज ने बीबीसी को बताया, जब तक मुझे ये एहसास होता है कि मेरे जीवित होने की संभावनाएं बाकी है, मेरा सेक्स जीवन खत्म हो चुका था। मैं बर्बाद हो चुका था, हम जैसे लोगों के साथ एक और परेशानी ये है कि हमसे कोई भी इसके बारे में बात नहीं करना चाहता। हम अकेले पड़ जाते हैं।

मरीज़ों को मदद

तीन में से दो प्रोस्टेट कैंसर पीडि़त मानते है कि उन्हें इरेक्शन में दिक्कत आती है।
संबंधित आंकड़ों से पता चलता है कि अपने इलाज के बाद पीडि़तों में हताशा और अवसाद की ये भावनाएं प्रमुखता से पाई गईं। मगर इसके लिए ज्यादा कुछ नहीं किया जा सका है।
इस परेशानी से जूझ रहे पुरुषों से बेहद सतर्कतापूर्वक संवाद बनाने की ज़रूरत है, यदि समय रहते हस्तक्षेप किया जाए तो कई लोगों को राहत मिल सकती है। प्रोस्टेट कैंसर से जूझ रहे व्यक्तियों और इससे निजात पा चुके लोगों को ज्यादा से ज्यादा प्रोत्साहित करना जरूरी है।
मैकमिलन कैंसर सपोर्ट चैरिटी चाहती है कि प्रोस्टेट कैंसर से जूझ रहे मरीजों को अनुभवी नर्सें, बेहतर मनोवैज्ञानिक समर्थन और फिजियोथेरेपिस्ट ज्यादा से ज्यादा संख्या में उपलब्ध हों।
इसके अलावा पुरुषों को इस बात के लिए भी प्रोत्साहित करना होगा कि वे प्रोस्टेट कैंसर से जूझने के दौरान अपने स्थानीय डॉक्टर की भी मदद लें। एक व्यक्ति जो प्रोस्टेट कैंसर से जूझ रहा होता है, अपने इरेक्शन की समस्या को सामाजिक कलंक के रुप में देखता है। वो कहते हैं, कई लोग इसे मर्दानगी की कमी से जोड़ते हैं। अपने इरेक्शन को बनाए रख पाने में असफल होने से उनमें हीनता की भावना आ जाती है। वे इस समस्या पर बात करने से भागते हैं, अक्सर वे अपने पार्टनर से भावनात्मक रुप से दूर हो जाते हैं, समाज में अलग-थलग पड़ जाते हैं। परिणाम ये होता है कि मामला और गंभीर हो जाता है।

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