कैंसर के बारे में हमारी जानकारी लगातार बढ़ रही है, लेकिन अब भी यह बहुत रहस्यमय बनी हुई है। इसका ठीक-ठीक कारण भी हमें पता नहीं है और इस वजह से इसका ठीक-ठीक इलाज भी नहीं है। कैंसर का इलाज मुख्यत यही है कि कैंसरग्रस्त हिस्से को या तो दवाओं से या रेडिएशन से नष्ट कर दिया जाता है या सर्जरी करके निकाल दिया जाता है। कारण पता नहीं है, इसलिए इसे खत्म करने का कोई अचूक इलाज हमारे पास नहीं है।
हम यह जानते हैं कि कुछ आनुवंशिक कारणों और कुछ जीवन-शैली या पर्यावरण से जुड़े कारणों की वजह से कैंसर होने की आशंका बहुत बढ़ जाती है। लेकिन ये कारण कैंसर होने में सहायक होते हैं, इनकी वजह से कैंसर होता है, यह नहीं कह सकते। अब एक शोध ने बताया है कि कैंसर के एक-तिहाई प्रकार ही ऐसे हैं, जिनका आनुवंशिक कारणों या जीवन- शैली से संबंध है। बाकी दो-तिहाई सिर्फ 'बदकिस्मतीÓ से होते हैं। यानी उनके होने के कोई प्रमुख कारण नहीं बताए जा सकते।
कैंसर होने की प्रक्रिया संक्षेप में यह है कि शरीर में हर वक्त बड़ी संख्या में कोशिकाएं मरती रहती हैं और नई कोशिकाएं बनती रहती हैं। नई कोशिकाएं, पुरानी कोशिकाओं के विभाजन से बनती हैं। शरीर में यह प्राकृतिक व्यवस्था रहती है कि जितनी जरूरत हो, उतनी नई कोशिकाएं बनती हैं, उसके बाद विभाजन बंद हो जाता है। कैंसर होने का मतलब है, इस प्रक्रिया में गड़बड़ी। यानी कुछ कोशिकाओं का विभाजन बंद न होना। शरीर में नई कोशिकाएं बनाने का काम कुछ बुनियादी किस्म के 'स्टेम सेलÓ करते हैं, जो शरीर के किसी अंग की जरूरत के हिसाब से उस किस्म की कोशिकाएं बनाने लगते हैं। अमेरिका में हुए इस शोध में देखा गया कि दो-तिहाई किस्म के कैंसर में स्टेम सेल के जेनेरिक स्वरूप में बिना किसी ज्ञात कारण के बदलाव हो जाता है, उसमें न कोई आनुवंशिक कारण देखा जा सकता है, न ही जीवन-शैली संबंधी कोई कारण। लेकिन एक-तिहाई किस्म के कैंसर का आनुवंशिक या जीवन-शैली से जुड़े कारणों से सीधा संबंध देखा जा सकता है, इनमें फेफड़ों और त्वचा का कैंसर शामिल है।
यानी धूम्रपान व कैंसर का रिश्ता बहुत साफ है, वैसे ही तेज धूप की अल्ट्रावायलेट किरणों का त्वचा के कैंसर से सीधा संबंध है। किंतु इसका अर्थ यह नहीं कि धूम्रपान से ही कैंसर होता है, इसका मतलब यही है कि धूम्रपान करने पर कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है। अभी हमारी जानकारी कैंसर के आनुवांशिककारणों तक सीमित है, उसके केंद्रीय कारण तक हम नहीं पहुंच पाए हैं। कई जानकारों का कहना है कि कैंसर से संबंधित शोध में चिकित्सा तंत्र का यह अहंकार आड़े आ रहा है कि तंत्र स्वीकार करना नहीं चाहता कि वह किसी चीज के बारे में नहीं जानता। इसलिए डॉक्टर कैंसर के तरह-तरह के कारण बताते हैं और बुनियादी कारणों तक नहीं पहुंच पाते। यह शोध ईमानदारी से स्वीकार करता है कि दो-तिहाई किस्म के कैंसर के बारे में हमें कोई जानकारी नहीं है। इस स्वीकारोक्ति से कहीं न कहीं कैंसर के बहुत बुनियादी कारणों तक पहुंचने में मदद मिलेगी। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि कैंसर से बचने के एहतियात न बरते जाएं।
जिन एक-तिहाई किस्म के कैंसर पर जीवन- शैली का असर होता है, उनमें कई बहुत आम कैंसर भी हैं। स्वस्थ जीवन- शैली कैंसर से बचने की शत-प्रतिशत गारंटी नहीं है, लेकिन इससे कई किस्म के कैंसर होने की आशंका बहुत ही कम हो जाती है। वैसे भी शत-प्रतिशत जिंदगी में क्या होता है? इसलिए स्वस्थ जीवन-शैली को अपनाए रहने में ही भला है, बाकी किस्मत पर छोड़ दें।
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