अधिकतर महिलाएं ल्यूकोरिया जैसे-श्वेतप्रदर, सफेद पानी जैसी बीमारियो से जुझती रहती हैं, लेकिन शर्म से किसी को बताती नहीं और इस बीमारी को पालती रहती हैं। यह रोग महिलाओं को काफी नुकसान पहुंचाता है। इस बीमारी से छुटकारा पाने के लिए पथ्य करने के साथ-साथ योगाभ्यास का नियमित अभ्यास रोगी को रोग से छुटकारा देने के साथ आकर्षक और सुन्दर भी बनाता है।
Thursday, 27 November 2014
ल्यूकोरिया में योग
अधिकतर महिलाएं ल्यूकोरिया जैसे-श्वेतप्रदर, सफेद पानी जैसी बीमारियो से जुझती रहती हैं, लेकिन शर्म से किसी को बताती नहीं और इस बीमारी को पालती रहती हैं। यह रोग महिलाओं को काफी नुकसान पहुंचाता है। इस बीमारी से छुटकारा पाने के लिए पथ्य करने के साथ-साथ योगाभ्यास का नियमित अभ्यास रोगी को रोग से छुटकारा देने के साथ आकर्षक और सुन्दर भी बनाता है।
Wednesday, 26 November 2014
गंभीर समस्या श्वेत प्रदर
ल्यूकोरिया (श्वेत प्रदर) की बीमारी महिलाओं की आम समस्या है। संकोच में इसे न बताना कई गंभीर समस्याओं का कारण बन सकता है। थोड़ी सी सावधानी व उपचार के जरिए इसके घातक परिणामों से बचा जा सकता है। अन्यथा यह कैंसर का कारण बन सकती है। सामान्य तौर पर गर्भाशय में सूजन अथवा गर्भाशय के मुख में छाले होने से यह समस्या पैदा होती है। उपचार न कराने से पीडि़ता को कई तरह की मानसिक व शारीरिक समस्याओं का शिकार होना पड़ता है। इसलिए महिलाएं को श्वेत प्रदर की बीमारी को हल्के में नहीं लेना चाहिए।
स्त्री-योनि से असामान्य मात्रा में सफेद रंग का गाढा और बदबूदार पानी निकलता है और जिसके कारण स्त्रियां बहुत क्षीण तथा दुर्बल हो जाती है। महिलाओं में श्वेत प्रदर रोग आम बात है। ये गुप्तांगों से पानी जैसा बहने वाला स्त्राव होता है। यह खुद कोई रोग नहीं होता परंतु अन्य कई रोगों के कारण होता है। श्वेत प्रदर वास्तव में एक बीमारी नहीं है बल्कि किसी अन्य योनिगत या गर्भाशयगत व्याधि का लक्षण है; या सामान्यत: प्रजनन अंगों में सूजन का बोधक है।
कारण
- अत्यधिक उपवास
- उत्तेजक कल्पनाए
- अश्लील वार्तालाप
- सम्भोग में उल्टे आसनो का प्रयोग करना
- सम्भोग काल में अत्यधिक घर्षण युक्त आघात
- रोगग्रस्त पुरुष के साथ सहवास
- सहवास के बाद योनि को स्वच्छ जल से न धोना व वैसे ही गन्दे बने रहना आदि इस रोग के प्रमुख कारण बनते हैं।
- बार-बार गर्भपात कराना भी एक प्रमुख कारण है।
- असामान्य योनिक स्राव से कैसे बचा जा सकता है?
योनि के स्राव से बचने के लिए
- जननेन्द्रिय क्षेत्र को साफ और शुष्क रखना जरूरी है।
- योनि को बहुत भिगोना नहीं चाहिए (जननेन्द्रिय पर पानी मारना) बहुत सी महिलाएं सोचती हैं कि माहवारी या सम्भोग के बाद योनि को भरपूर भिगोने से वे साफ महसूस करेंगी वस्तुत: इससे योनिक स्राव और भी बिगड़ जाता है क्योंकि उससे योनि पर छाये स्वस्थ बैक्टीरिया मर जाते हैं जो कि वस्तुत: उसे संक्रामक रोगों से बचाते हैं
- दबाव से बचें।
- यौन सम्बन्धों से लगने वाले रोगों से बचने और उन्हें फैलने से रोकने के लिए कंडोम का इस्तेमाल अवश्य करना चाहिए।
- मधुमेह का रोग हो तो रक्त की शर्करा को नियंत्रण में रखाना चाहिए।
ल्यूकोरिया में आयुर्वेदिक इलाज
आंवला
आंवले को सुखाकर अच्छी तरह से पीसकर बारीक चूर्ण बनाकर रख लें, फिर इसी बने चूर्ण की 3 ग्राम मात्रा को लगभग 1 महीने तक रोज सुबह-शाम को पीने से स्त्रियों को होने वाला श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) नष्ट हो जाता है।
झरबेरी
झरबेरी के बेरों को सुखाकर रख लें। इसे बारीक चूर्ण बनाकर लगभग 3 से 4 ग्राम की मात्रा में चीनी (शक्कर) और शहद के साथ प्रतिदिन सुबह-शाम को प्रयोग करने से श्वेतप्रदर यानी ल्यूकोरिया का आना समाप्त हो जाता है।
नागकेशर
नागकेशर को 3 ग्राम की मात्रा में छाछ के साथ पीने से श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) की बीमारी से छुटकारा मिल जाता है।
केला
2 पके हुए केले को चीनी के साथ कुछ दिनों तक रोज खाने से स्त्रियों को होने वाला प्रदर (ल्यूकोरिया) में आराम मिलता है।
गुलाब
गुलाब के फूलों को छाया में अच्छी तरह से सुखा लें, फिर इसे बारीक पीसकर बने पाउडर को लगभग 3 से 5 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन सुबह और शाम दूध के साथ लेने से श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) से छुटकारा मिलता है।
मुलहठी
मुलहठी को पीसकर चूर्ण बना लें, फिर इसी चूर्ण को 1 ग्राम की मात्रा में लेकर पानी के साथ सुबह-शाम पीने से श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) की बीमारी नष्ट हो जाती है।
बड़ी इलायची
बड़ी इलायची और माजूफल को बराबर मात्रा में लेकर अच्छी तरह पीसकर समान मात्रा में मिश्री को मिलाकर चूर्ण बना लें, फिर इसी चूर्ण को 2-2 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन सुबह-शाम को लेने से स्त्रियों को होने वाले श्वेत प्रदर की बीमारी से छुटकारा मिलता है।
ककड़ी
ककड़ी के बीज, कमलककड़ी, जीरा और चीनी (शक्कर) को बराबर मात्रा में लेकर 2 ग्राम की मात्रा में रोजाना सेवन करने से श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) में लाभ होता है।
जीरा
जीरा और मिश्री को बराबर मात्रा में पीसकर चूर्ण बनाकर रख लें, फिर इस चूर्ण को चावल के धोवन के साथ प्रयोग करने से श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) में लाभ मिलता है।
चना
सेंके हुए चने पीसकर उसमें खांड मिलाकर खाएं। ऊपर से दूध में देशी घी मिलाकर पीयें, इससे श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) गिरना बंद हो जाता है।
जामुन
छाया में सुखाई जामुन की छाल का चूर्ण 1 चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार पानी के साथ कुछ दिन तक रोज खाने से श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) में लाभ होता है।
फिटकरी
चौथाई चम्मच पिसी हुई फिटकरी पानी से रोजाना 3 बार फंकी लेने से दोनों प्रकार के प्रदर रोग ठीक हो जाते हैं। फिटकरी पानी में मिलाकर योनि को गहराई तक सुबह-शाम धोएं और पिचकारी की सहायता से साफ करें। ककड़ी के बीजों का गर्भ 10 ग्राम और सफेद कमल की कलियां 10 ग्राम पीसकर उसमें जीरा और शक्कर मिलाकर 7 दिनों तक सेवन करने से स्त्रियों का श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) रोग मिटता है।
गाजर
गाजर, पालक, गोभी और चुकन्दर के रस को पीने से स्त्रियों के गर्भाशय की सूजन समाप्त हो जाती है और श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) रोग भी ठीक हो जाता है।
गूलर
रोजाना दिन में 3-4 बार गूलर के पके हुए फल 1-1 करके सेवन करने से श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) के रोग में लाभ मिलता है मासिक-धर्म में खून ज्यादा जाने में पांच पके हुए गूलरों पर चीनी डालकर रोजाना खाने से लाभ मिलता है। गूलर का रस 5 से 10 ग्राम मिश्री के साथ मिलाकर महिलाओं को नाभि के निचले हिस्से में पूरे पेट पर लेप करने से महिलाओं के श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) के रोग में आराम आता है। 1 किलो कच्चे गूलर लेकर इसके 3 भाग कर लें। एक भाग कच्चे गूलर उबाल लें। उनको पीसकर एक चम्मच सरसों के तेल में फ्राई कर लें तथा उसकी रोटी बना लें। रात को सोते समय रोटी को नाभि के ऊपर रखकर कपड़ा बांध लें। इस प्रकार शेष 2 भाग दो दिन तक और बांधने से श्वेत प्रदर (ल्यूकोरिया) में लाभ होता है।
नीम
नीम की छाल और बबूल की छाल को समान मात्रा में मोटा-मोटा कूटकर, इसके चौथाई भाग का काढ़ा बनाकर सुबह-शाम को सेवन करने से श्वेतप्रदर में लाभ मिलता है। रक्तप्रदर (खूनी प्रदर) पर 10 ग्राम नीम की छाल के साथ समान मात्रा को पीसकर 2 चम्मच शहद को मिलाकर एक दिन में 3 बार खुराक के रूप में पिलायें।
बबूल
बबूल की 10 ग्राम छाल को 400 मिलीलीटर पानी में उबालें, जब यह 100 मिलीलीटर शेष बचे तो इस काढ़े को 2-2 चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम पीने से और इस काढ़े में थोड़ी-सी फिटकरी मिलाकर योनि में पिचकारी देने से योनिमार्ग शुद्ध होकर निरोगी बनेगा और योनि सशक्त पेशियों वाली और तंग होगी। बबूल की 10 ग्राम छाल को लेकर उसे 100 मिलीलीटर पानी में रात भर भिगोकर उस पानी को उबालें, जब पानी आधा रह जाए तो उसे छानकर बोतल में भर लें। लघुशंका के बाद इस पानी से योनि को धोने से प्रदर दूर होता है एवं योनि टाईट हो जाती है।
मेथी
मेथी के चूर्ण के पानी में भीगे हुए कपड़े को योनि में रखने से श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) नष्ट होता है। रात को 4 चम्मच पिसी हुई दाना मेथी को सफेद और साफ भीगे हुए पतले कपड़े में बांधकर पोटली बनाकर अन्दर जननेन्द्रिय में रखकर सोयें। पोटली को साफ और मजबूत लम्बे धागे से बांधे जिससे वह योनि से बाहर निकाली जा सके। लगभग 4 घंटे बाद या जब भी किसी तरह का कष्ट हो, पोटली बाहर निकाल लें। इससे श्वेतप्रदर ठीक हो जाता है और आराम मिलता है। मेथी-पाक या मेथी-लड्डू खाने से श्वेतप्रदर से छुटकारा मिल जाता है, शरीर हष्ट-पुष्ट बना रहता है। इससे गर्भाशय की गन्दगी को बाहर निकलने में सहायता मिलती है। गर्भाशय कमजोर होने पर योनि से पानी की तरह पतला स्राव होता है। गुड़ व मेथी का चूर्ण 1-1 चम्मच मिलाकर कुछ दिनों तक खाने से प्रदर बंद हो जाता है।
Tuesday, 25 November 2014
यौवन काल में किशोरियों की उचित देखभाल
बाल्यावस्था की सादगी और भोलेपन की दहलीज पार करके जब किशोरियां यौवनावस्था में प्रवेश करती हैं, यही वय:संधि कहलाती है। इस दौर में परिवर्तनों का भूचाल आता है। शरीर में आकस्मिक आए परिवर्तन न केवल शारीरिक वृद्धि व नारीत्व की नींव रख़ते हैं, वरन मानसिक परिवर्तनों के साथ मन में अपनी पहचान व स्वतंत्रता को लेकर एक अंर्तद्वंद भी छेड देते हैं। इन परिवर्तनों से अनभिज्ञ कई लडकियां यह सोचकर परेशान हो उठती हैं कि वे किसी गंभीर बीमारी से त्रस्त तो नहीं है।
यौन काल की यह अवधि 11 से 16 वर्ष तक होती है। कद में वृद्धि, स्तनों व नितंबों का उभार, प्यूबर्टी, शरीर में कांति व चेहरे पर लुनाई में वृद्धि- ये बाहरी परिवर्तनों का कारण होता है। आंतरिक रूप में डिंब-ग्रंथि का सक्रिय होकर एस्ट्रोजन व प्रोजेस्ट्रॉन हॉर्मोन्स का रक्त में सक्रिय होना। इस दौरान जनन यंत्रों का विकास होता है व सबसे बडा लक्षित परिवर्तन होता है मासिक धर्म का प्रारंभ होना। इस दौरान प्रकृति नारी को मां बनने के लिए शारीरिक व मानसिक रूप से विकसित करती है।
रोमांच व आश्चर्य का मिश्रित भाव
शारीरिक बदलाव अकेले नहीं आते, इनसे जुडे अनेक प्रश्न व भावनाएं मन के अथाह सागर में हिलोरें लेने लगती हैं। रोमांच और आश्चर्य मिश्रित मुग्धभाव के साथ वह एक अनजाने भय और संकोच से भी घिर जाती है। कभी सुस्त तो कभी उत्साहित। कभी लज्जाशील-विनम्र तो कभी उद्दंड, गुस्सैल और चिड़चिड़ी। उसे कुछ समझ नहीं आता कि क्या और क्यों हो रहा है और शुरू होता है परिवार वालों के साथ अपनी पहचान और स्वतंत्रता का प्रतिद्वंद्व।
मासिक धर्म से उत्पन्न परिवर्तन
मासिक धर्म से संबंधित मासिक व भावनात्मक परिवर्तन सबसे कठिन होता है। लडकी स्वयं को बंधनयुक्त व लडकों से हीन समझने लगती है। वह समाज के प्रति आक्रोशित हो उठती है। लडकियों के आगामी जीवन को सामान्य, सफल, आत्मविश्वासी, व्यवहारकुशल और तनावरहित बनाने के लिए अति आवश्यक है इस अवस्था को समझना, उन्हें शारीरिक परिवर्तनों व देखरेख से अवगत कराना, मानसिक व शारीरिक परिवर्तनों पर चर्चा करना और समय-समय पर उन्हें पोषक भोजन, व्यायाम, विश्राम, मनोरंजन आदि के प्रति जागरूक करना ताकि उनका विकास सही हो सके।
विशेष सावधानी की जरूरत
यदि वय:संधि 11-12 वर्ष से पूर्व आ जाए या 16-17 वर्ष से अधिक विलंबित हो जाए तो दोनों ही स्थितियों में यौन ग्रंथियों की गडबडिय़ों की उचित जांच व इलाज अति आवश्यक है। यदि लडकी अल्पायु में जवान होने लगे तो न केवल देखने वालों को अजीब लगता है वरन् लडकी स्वयं पर पडती निगाहों से घबराकर विचलित हो सकती है। कई बार शीघ्र कामेच्छा जागृत होकर नासमझी में अनुचित कदम उठा सकती है। ऐसे में न केवल उसे उचित शिक्षित कर सावधानियां बरतनी चाहिए बल्कि डॉक्टर की भी राय लेनी चाहिए कि डिंबकोषों की अधिक सक्रियता, कोई भीतरी खऱाबी या कोई ट्यूमर तो नहीं।
डॉक्टरी जांच की आवश्यकता
यदि वय:संधि 17 वर्ष से अधिक विलंबित हो तो भी डॉक्टरी परीक्षण अति आवश्यक है। कई बार वंशानुगत या जन्मजात किसी कमी के कारण मासिक धर्म नहीं होता। ऐसे में लापरवाही ठीक नहीं, क्योंकि लडकियां हीन भावना व उदासीनता का शिकार हो सकती है व हताश हो आत्महत्या जैसे दुष्कृत्य भी कर सकती है। समय पर इलाज से शारीरिक व मानसिक वृद्धि सुनिश्चित की जा सकती है।
मां का दायित्व
माताओं को चाहिए कि वे स्वयं लडकियों को भी उनके भीतर होने वाले परिवर्तनों के बारे में सही ज्ञान दें। पोषक भोजन, उचित व्यायाम, स्वास्थ्यवर्धक दिनचर्या व स्वच्छता के बारे में प्रेरित करें।
मासिक धर्म
प्रारंभ- अधिकांशत: 10 से 13 वर्ष की आयु में प्रथम मासिक आ जाता है, पर यदि 8 साल के पहले प्रारंभ हो जाए या 16 साल तक भी न हो तो अपने डॉक्टर से संपर्क करें।
चक्र- प्राय: 24 से 25 दिन का होता है, किंतु यदि अतिशीघ्र हो या 35 दिन से अधिक विलंब हो तो यह हारमोन की गडबडी का सूचक है।
रक्तस्राव- साधारणत: 4-5 दिन की अवधि में 50-80 मिली रक्त जाता है, किंतु यदि ज्यादा मात्रा व अवधि में खून जा रहा हो या गट्टे जाते हों तो खून की कमी होने का डर बना रहता है।
दर्द- मासिक में थोडा-बहुत दर्द होना स्वाभाविक है, पर यदि असहनीय दर्द हो तो डॉक्टरी परीक्षण आवश्यक है।
श्वेत प्रदर- माह के मध्य में जब अंडा फूटता है तो मासिक प्रारंभ होने के 1-2 दिन पूर्व जननांग से थूक समान स्राव होना स्वाभाविक है, पर गाढा दही समान व खुजलीयुक्त स्राव संक्रमण के कारण होता है।
चक्र- प्राय: 24 से 25 दिन का होता है, किंतु यदि अतिशीघ्र हो या 35 दिन से अधिक विलंब हो तो यह हारमोन की गडबडी का सूचक है।
रक्तस्राव- साधारणत: 4-5 दिन की अवधि में 50-80 मिली रक्त जाता है, किंतु यदि ज्यादा मात्रा व अवधि में खून जा रहा हो या गट्टे जाते हों तो खून की कमी होने का डर बना रहता है।
दर्द- मासिक में थोडा-बहुत दर्द होना स्वाभाविक है, पर यदि असहनीय दर्द हो तो डॉक्टरी परीक्षण आवश्यक है।
श्वेत प्रदर- माह के मध्य में जब अंडा फूटता है तो मासिक प्रारंभ होने के 1-2 दिन पूर्व जननांग से थूक समान स्राव होना स्वाभाविक है, पर गाढा दही समान व खुजलीयुक्त स्राव संक्रमण के कारण होता है।
कुछ सामान्य समस्याएं
कद
किशोरियों का कद औसतन माता-पिता के कद पर आश्रित होता है। पौष्टिक आहार एवं उचित व्यायाम द्वारा इसे प्रभावित किया जा सकता है, अत्यधिक बौनापन व ऊंचा कद दोनों ही हारमोन की गडबडी के सूचक हैं।
स्तन व नितंब में उभार
आजकल गरिष्ठ व तेलयुक्त भोजन व जंक फूड्स के सेवन के कारण किशोरियों के कम उम्र में ही वक्ष विकसित होने लगते हैं और नितंब में उभार आ जाता है। स्तनों में थोडा बहुत दर्द, विशेषकर माहवारी के दौरान स्वाभाविक है। शारीरिक विकास में अनियमितता नजऱ आने पर स्त्रीरोग विशेषज्ञ को अवश्य दिखाएं।
Monday, 24 November 2014
कैंसर की चिकित्सा के लिए होम्योपैथी सुलभ चिकित्सा
चिकित्सा जगत में निरन्तर हो रहे प्रगति के सभी उजले दावों के बावजूद दुनिया में कैंसर के लगभग 60 प्रतिशत केसेस भारत में पाए जाते हैं। कैंसर सबसे भयानक रोगों में से एक है, कैंसर के रोग की परंपरागत औषधियों में निरंतर प्रगति के बावज़ूद इसे अभी तक अत्यधिक अस्वस्थता और मृत्यु के साथ जोडा़ जाता है। और कैंसर के उपचार से अनेक दुष्प्रभाव जुडे हुए हैं। कैंसर के मरीज़ कैंसर पेलिएशन, कैंसर उपचार से होनेवाले दुष्प्रभावों के उपचार के लिए, या शायद कैंसर के उपचार के लिए भी अक्सर परंपरागत उपचार के साथ-साथ होमियोपैथी चिकित्सा के लिए निरन्तर हमारे दवाखाने पर मरीज नियमित रूप से आते रहते हैं।
दुष्प्रभावों को नियंत्रित करने के लिए होमियोपैथी चिकित्सा
रेडिएशन थैरेपी, कीमोथैरेपी और हॉर्मोन थैरेपी जैसे परंपरागत कैंसर के उपचार से अनेकों दुष्प्रभाव पैदा होते हैं। ये दुष्प्रभाव हैं - संक्रमण, उल्टी होना, जी मितलाना, मुंह में छाले होना, बालों का झडऩा, अवसाद (डिप्रेशन), और कमज़ोरी महसूस होना। होमियोपैथी उपचार से इन सभी लक्षणों और दुष्प्रभावों को नियंत्रण में लाया जा सकता है। रेडियोथेरिपी के दौरान अत्यधिक त्वचा शोध (डर्मटाइटिस) के लिए 'टॉपिकल केलेंडुलाÓ जैसा होमियोपैथी उपचार और कीमोथेरेपी-इंडुस्ड स्टोमेटाइटिस के उपचार में आर्सेनिक अलबम का प्रयोग असरकारक पाया जाता है।होमियोपैथी उपचार सुरक्षित हैं और कुछ विश्वसनीय शोधों के अनुसार कैंसर और उसके दुष्प्रभावों के इलाज के लिए होमियोपैथी उपचार असरकारक हैं। यह उपचार आपको आराम दिलाने में मदद करता है और तनाव, अवसाद, बैचेनी का सामना करने में आपकी मदद करता है। यह अन्य लक्षणों और उल्टी, मुंह के छाले, बालों का झडऩा, अवसाद और कमज़ोरी जैसे दुष्प्रभावों को घटाता है। ये औषधियां दर्द को कम करती हैं, उत्साह बढा़ती हैं और तन्दुरस्ती का बोध कराती हैं, कैंसर के प्रसार को नियंत्रित करती हैं, और प्रतिरोधक क्षमता को बढाती हैं। कैंसर के रोग के लिए एलोपैथी उपचार के उपयोग के साथ-साथ होमियोपैथी चिकित्सा का भी एक पूरक चिकित्सा के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं। सिफऱ् होमियोपैथी दवाईयां या एलोपैथी उपचार के साथ साथ होमियोपैथी दवाईयां ब्रेन ट्यूमर, अनेक प्रकार के कैंसर जैसे के गाल, जीभ, भोजन नली, पाचक ग्रन्थि, मलाशय, अंडाशय, गर्भाशय; मूत्राशय, ब्रेस्ट और प्रोस्टेट ग्रंथि के कैन्सर के उपचार में उपयोगी पाई जा रही हैं।
चूंकि होमियोपैथी उपचार चिकित्सा का एक संपूर्ण तंत्र है, यह तंत्र सिफऱ् अकेली बीमारी को ही नहीं, बल्कि व्यक्ति को एक संपूर्ण रूप में देखता है। कैंसर के मरीज़ कैंसर पेलिएशन, कैंसर उपचार से होनेवाले दुष्प्रभावों के उपचार के लिए, या शायद कैंसर के उपचार के लिए भी अक्सर परंपरागत उपचार के साथ साथ होमियोपैथी चिकित्सा को भी जोडते हैं। यदि आप कैंसर के एक रोगी हैं, और कैंसर के लिए या एलोपैथी इलाज से होनेवाले दुष्प्रभावों के इलाज के लिए होमियोपैथी चिकित्सा का उपयोग करना चाहते हैं, तो कृपया अपने चिकित्सक को इस बात की जानकारी अवश्य दें। यदि आप कैंसर के लिए होमियोपैथी की दवाईयां ले रहे हैं, तो अपने ऐलोपैथिक चिकित्सक को अवश्य बता दें,।
डॉ. ए. के. द्विवेदी
बीएचएमएस, एमडी (होम्यो)
प्रोफेसर, एसकेआरपी गुजराती होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज, इंदौर
संचालक, एडवांस्ड होम्यो हेल्थ सेंटर एवं होम्योपैथिक मेडिकल रिसर्च प्रा. लि., इंदौर
Saturday, 22 November 2014
माइग्रेन के दर्द से बचाता है ये आहार
आजकल लोगों में माइग्रेन की समस्या बढ़ती जा रही है जिसका मुख्य कारण जीवनशैली में आने वाला बदलाव है। लोगों की खान-पान व रहन सहन की आदतों में बहुत बदलाव आए हैं जो कि सेहत से जुड़ी समस्याओं को पैदा करते हैं। माइग्रेन एक मस्तिष्क विकार माना जाता है।
आमतौर पर लोग माइग्रेन की समस्या के दौरान अपने आहार पर ज्यादा ध्यान नहीं देते हैं जो कि दर्द को और भी बढ़ा सकते हैं। माइग्रेन की समस्या होने पर ज्यादातर लोग दवाओं की मदद लेकर इससे निजात पाना चाहते हैं। लेकिन वे इस बात से अनजान होते हैं कि ये दवाएं स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। जानें माइग्रेन में किस तरह के आहार का सेवन करना चाहिए।
- यूं तो हरी पत्तेदार सब्जियां सेहत के लिए काफी फायदेमंद मानी जाती है। लेकिन माइग्रेन के दौरान इनका सेवन जरूर करना चाहिए क्योंकि इनमें मैग्निशियम अधिक होता है जिससे माइग्रेन का दर्द जल्द ठीक हो जाता है। इसके अलावा साबुत अनाज, समुद्री जीव और गेहूं आदि में बहुत मैग्निशियम होता है।
- माइग्रेन से बचने के लिए मछली का सेवन भी फायदेमंद होता है। इसमें ओमेगा 3 फैटी एसिड और विटामिन पाया जाता है जो कि माइग्रेन का दर्द से जल्द छुटकारा दिलाती है। अगर आप शाकाहारी हैं तो अलसी के बीज का सेवन कर सकते हैं। इसमें भी ओमेगा 3 फैटी एसिड और फाइबर पाया जाता है।
- वसा रहित दूध या उससे बने प्रोडक्ट्स माइग्रेन को ठीक कर सकते हैं। इसमें विटामिन बी होता है जिसे राइबोफ्लेविन कहते हैं और यह कोशिका को ऊर्जा देती है। यदि सिर में कोशिका को ऊर्जा नहीं मिलेगी तो माइग्रेन दर्द होना शुरु हो जाएगा।
- कैल्शियम व मैग्निशियम युक्त आहार को अगर साथ में लिया जाए तो इससे माइग्रेन की समस्या से छुटाकारा पाया जा सकता है।
- ब्रोकली में मैग्निशियम पाया जाता है तो आप ब्रोकली को सब्जी या सूप आदि के साथ ले सकते हैं। ये खाने में अच्छी लगती है।
- बाजरा में फाइबर, एंटीऑक्सीडेंट और मिनरल पाये जाते हैं। तो ऐसे में माइग्रेन का दर्द होने पर साबुत अनाज से बने भोजन का जरुर सेवन करें।
- अदरक आयुर्वेद के अनुसार अदरक आपके सिर दर्द को ठीक कर सकता है। भोजन बनाते वक्त उसमें थोड़ा सा अदरक मिला दें और फिर खाएं।
- खाने के साथ नियमित रुप से लहसुन की दो कलियों का सेवन जरूर करें। यह आपको माइग्रेन की समस्या से बचाता है।
- जिन चीजों में प्रोटीन की मात्रा ज्यादा होती है जैसे चिकन, मछली, बीन्स,मटर, दूध, चीज, नट्स और पीनट बटर आदि। इन चीजों में प्रोटीन के साथ विटामिन बी6 भी पाया जाता है।
- माइग्रेन के दौरान कॉफी या चाय की जगह हर्बल टी पीना काफी लाभकारी है। इसमें मौजूद नैचुरल तत्व जैसे अदरक, तुलसी, कैमोमाइल और पुदीना चिंता से निजात दिलाने और मांसपेशियों को तनावरहित करने में कारगर है।
बनाएं लाइफ को स्वर्ग
1. सही रास्ता चुनें
हम तभी कुछ हासिल करते हैं, जब एक टारगेट बनाकर उसी ओर चलते रहते हैं। ऐसा करने से हमें सक्सेस मिलती है, लोग हमारी तारीफ करते हैं। हमारी कामयाबी का गुणगान भी करते हैं। हमें भी खुशी मिलती है, लेकिन यह तभी संभव है, जब हम सही रास्ते पर चलें। इस बात का ध्यान रखें कि गलत रास्ते पर चलकर कभी सक्सेस नहीं मिल सकती। करियर बनाने के लिए हमें बस एक ही राह पर चलना चाहिए। बस, उसी राह को पकडकर आप भी आगे बढते रहें।
2. जरूरी हैं एटिकेट्स
बहुत से लोग कहते हैं कि जो व्यक्ति अच्छा इंसान नहीं बन सका, वह भला रेस्पेक्ट कैसे हासिल कर सकता है। आप अच्छे इंसान बनेंगे, अच्छे-बुरे का ध्यान रखेंगे, तभी लोग आपकी अच्छाइयों को देखकर आपकी तारीफ करेंगे। अगर आप किसी से सम्मानजनक भाषा में बात नहीं करेंगे, समझदारी नहीं दिखाएंगे, तो सक्सेस भी आपके पास नहीं आएगी। आपको न तो सोशल माना जाएगा और न ही किसी खुशी में आपको शरीक होने दिया जाएगा। इन बातों से भी जुडी हुई है आपकी सक्सेस। अगर आप मार्क्स लाने में परफेक्ट हैं, लेकिन बिहेवियर ठीक नहीं है, तब भी आपकी राह में बैरियर आएंगे। इसी आधार पर चयन करने वाले सीनियर्स आपको रिजेक्ट कर सकते हैं। अगर आपने स्माइल के साथ सही आंसर दिया, तो सक्सेस श्योर है।
3. लीक से हटकर
काम तो सभी करते हैं, लेकिन हमें ऐसा कुछ करना है, जिसे देख कर दुनिया कहे- वाह, यह तो कमाल हो गया। तभी आपकी ओर लोगों का ध्यान खिंचेगा। दुनिया में आप जाने जाएंगे और इसी के साथ आपके घर तक कामयाबी आ जाएगी। सामान्य कामों में वक्त जाया करना अच्छी बात नहीं है। अगर खुद को अलग दिखाना है, तो आपको अलग करना ही होगा और इसके लिए जरूरी है, अच्छी सोच के साथ प्रॉपर तैयारी। एक्टिंग की दुनिया में बलराज साहनी, ओमपुरी, नसीर जी, दिलीप कुमार, अशोक कुमार अमिताभ बच्चन का ही नाम क्यों लिया जाता है इसीलिए न कि उन्होंने अपने काम को उस बखूबी के साथ अंजाम दिया, जो बाकी लोगों के बस की बात नहीं थी।
4. राइट डिसीजन
कोई भी काम शुरू करने से पहले उसके बारे में सोचें जरूर। सबसे पहले यह डिसाइड करें कि वर्क शुरू कैसे करना है अगर हम सही डिसीजन लेंगे, तो क्वॉलिटी वर्क भी होगा और काम में अडचन भी नहीं आएगी। मुश्किल वक्त में लिया गया हमारा डिसीजन और कॉन्फिडेंस ही हमें सक्सेस दिलाता है। हमारी लाइफ में हर टाइम कोई न कोई मुसीबत आती है, लेकिन हम सही डिसीजन लेकर उससे आसानी से निपट सकते हैं।
5. सच के साथ रहें
अगर आप झूठ का सहारा लेते हैं, तो बहुत बडी गलती कर रहे हैं। कई बार ऐसा होता है कि बच्चे करते कुछ हैं और घर में बताते कुछ और हैं। इससे दूसरे का नुकसान नहीं होता। आपकी जिंदगी का गोल्डन पीरियड होता है जब आप युवा होते हैं। यंग एज में लिया गया आपका एक सही डिसीजन आपकी जिंदगी को स्वर्ग बना सकता है और अगर डिसीजन गलत लिया है तो नर्क। इसलिए हमेशा सच की राह पर ही चलें।
Thursday, 20 November 2014
थकान भरी त्वचा को ऐसे दीजिये राहत
एक लंबे और थकान भरे दिन के बाद चेहरा बिल्कुल मुर्झाया हुआ सा दिखाई देने लगता है। ऐसा लगता है कि मानों चेहरे से सारी रौनक ही गायब हो गई हो। यही नहीं अगर आप ठीक से अपनी नींद पूरी नहीं करती तो भी चेहरा थका हुआ सा लगता है। चेहरे की थकान कई त्वचा संबन्धी समस्याएं पैदा करती है। जैसे, झुर्रियां, आंखों के नीचे डार्क सर्कल, झाइयां और काले धब्बे आदि।
चेहरे की थकान दूर करने के लिये आपको ऐसे कई छोटे उपाय करने होंगे जिससे आप का चेहरा खिल उठे। चेहरे की थकान मिटाने के लिये आपको फेस पैक बनाने होंगे जिसमें रोजवॉटर, दही, दूध और हल्दी पाउडर मिला होना चाहिये। यह एक हाइड्रेटिंग फेस मास्क हेाता है जो कि आपके चेहरे को फिर से जीवित कर देगा। इस फेस पैक को लगाने से चेहरा टाइट बन जाएगा और त्वचा गोरी और चमकदार बन जाती है। इन सब से भी ज्यादा जो सबसे खास बात है वह यह कि आपको रात की नींद अच्छे से लेनी चाहिये। आइये जानते हैं थकान भरी त्वचा के लिये और क्या क्या करना उचित रहता है।
स्क्रब करें
चेहरे को स्क्रब करना जरुरी है। इससे डेड स्किन निकल जाती है और चेहरा ग्लो करने लगता है।
कुकुंबर स्लाइस लगाएं
अगर आंखों में थकान भरी हो और आंखें सूजी हुई हों तो, खीरे या आलू की स्लाइस कर के आंखों पर रखें।
हाइड्रेटिंग क्रीम लगाएं
थके चेहरे को चमकदार बनाने का यह सबसे अच्छा तरीका है। इसे रात को लगाएं और सुबह ग्लोइंग चेहरा पाएं। क्रीम चेहरे में नमी भरती है।
फेस मास्क
घर पर ही दही, दूध , हल्दी, रोज वॉटर और नींबू का रस मिला कर पेस्ट बनाइये। इसे चेहरे पर फेस मास्क बना कर लगाएं और 15 मिनट में चमकदार त्वचा पाएं।
गुलाब जल
कॉटन बॉल्स को गुलाब जल में डुबाइये और थकी हुई त्वचा को पोंछिये। इससे त्वचा फ्रेश औ चमकदार बन जाएगी।
नमक का सेवन कम करें
ज्यादा नमक का सेवन आपकी स्किन को डीहाइड्रेट बना सकता है। इससे त्वचा हमेशा सूजी हुई और थकी हुई लगेगी।
खूब पानी पियें
अगर चमकदार, फ्रेश और थकान से राहत वाली त्वचा चाहिये तो खूब पानी का सेवन करें।
एलर्जी के लक्षण
बच्चों में एलर्जी होने की संभावना बड़ो से कहीं ज्यादा होती है, क्योंकि बच्चे बड़ो की तरह सतर्क व साफ सफाई नहीं रख पाते हैं। एलर्जी के लक्षण अक्सर यह दिखाते हैं कि बच्चों में कोई एलर्जी होने वाली है। एलर्जी से पहले बच्चों में थकान या अन्य लक्षण दिखाई देने लगते हैं।
एलर्जी व बीमारी
एलर्जी का सबसे सामान्य व खतरनाक लक्षण है आंखों का लाल व उसमें खुजली होना, आंखों के नीचे काला होना, नाक का भरा होना व बहना और सामान्य थकान। यही लक्षण बच्चों के बीमार होने से पहले दिखाई देते हैं। इनमें से कोई भी लक्षण दिखाई देने पर या कुछ घंटे में इन लक्षणों के बढऩे पर बच्चों को तुरंत चिकित्सक को दिखाना चाहिए। इन्हीं लक्षणों से बच्चों में गंभीर समस्या पैदा हो सकती है।कैसे होती है एलर्जी
फूलों को सूंघने, पालतू जानवरों के साथ खेलने खासकर फर वाले ( कुत्ता, बिल्ली, खरगोश) धूल मिट्टी के कण से बैक्टेरिया बच्चों के शरीर में पहुंच जाते हैं और एलर्जी पैदा करते हैं। बच्चों में एलर्जी के ये बहुत ही सामान्य कारण हैं। बच्चों की प्रतिरोधक क्षमता युवाओं से कमज़ोर होती है इसलिए उन पर यह बैक्टेरिया आसानी से हमला करके उनके शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। कभी कभी बच्चों में एलर्जी के कारणों को जानना मुश्किल हो जाता है क्योंकि आप नहीं जान पाते हैं कि बच्चों में आसपास के किस चीज से एलर्जी हुई है। नीचे दिए गए एलर्जी के लक्षण सभी बच्चों में सामान्य होते हैं। अगर आपके बच्चे में इनमें से कोई भी लक्षण दिखाई दे, तो आपको तुरंत उसकी पहचान कर बच्चों को उससे बचाने की कोशिश करनी चाहिए। आईए जाने उन लक्षणों के बारे में।नाक में खुजली होना
अगर बच्चों में सर्दी जुकाम की समस्या होती है तो नाक भरा होना व नाक का बहना आम बात है, लेकिन सामान्यत: इसके साथ नाक में खुजली की समस्या नहीं होती है। अगर आपका बच्चा बार-बार अपनी नाक को रगड़े तो हो सकता है कि उसके नाक में किसी तरह की एलर्जी है जिसकी वजह से उसकी नाक भरी व बह रही है। यह समस्या ज्यादातर धूल मिट्टी के कण से होती है।त्वचा संबंधी समस्या
त्वचा संबंधी समस्या भी एलर्जी का एक लक्षण हो सकता है। बच्चों में जहां की त्वचा जैसे कोहनी व घुटने मुड़े हुए होते हैं है वहां की त्वचा पर लाल चकत्ते दिखाई देते हैं। ऐसे ही चकत्ते आंखों के आसपास भी दिखाई देने लगते हैं। यह समस्या तब होती है जब बच्चे किसी चीज को छू देते हैं जिससे उन्हें एलर्जी हो जाती है।क्रोनिक कफ
जब बच्चों में पहली बार कफ के लक्षण दिखाई देते हैं तो आप मान लेते हैं कि यह एक वायरस है। अगर बच्चे में लगातार कफ बना हुआ है या वह ठीक हो कर बार बार वापस आ जाता है , तो यह एक एलर्जी है। एलर्जी में होने वाला कफ सामान्यत: सूखा होता है।Wednesday, 19 November 2014
कॉस्मेटिक सर्जरी द्वारा खूबसूरती
कॉस्मेटिक सर्जरी द्वारा खूबसूरती सुंदर चेहरा व आकर्षक व्यक्तित्व हर किसी की चाहत होती है, जिन्हें नैसर्गिक सौन्दर्य का अनुपम उपहार प्राप्त नहीं होता है वे हीनभावना से कुठित रहते हैं। कॉस्मेटिक सर्जरी से मानव शरीर के अंग प्रत्यंग को सुडौल बनाया जा सकता है।
राइनोप्लास्टी
नाक का ऑपरेशन चेहरे को आकर्षित बनाने के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं। बेडोल नाक को बिना कोई बाहरी निशान छोड़े सुडौल बनाया जा सकता है। इसमें नाक की हड्डी को चटकाकार पास में लाते हैं ताकि ऊपर का चौड़ापन कम हो सके तथा नीचे की हड्डी (कार्टिलेज) को तराशते हैं। जिससे नाक सुन्दर दिखे और जौड़े नथुनों को भी तराशकर सही आकार दिया जा सकता है। इसके जरिए नाक के टेढ़ेपन को दूर किया जा सकता है तथा बैठी हुई नाक को उठा सकते है।
लाइपोसक्शन
पेट के नीचे का हिस्सा या जांच के पीछे का चर्बी केवल व्यायाम और डायटिंग से ही कम करना संभव नहीं है। ऐसे में लाइपोसक्शन विधि से चर्बी को मशीन द्वारा खींचकर निकाला जा सकता है। पेट के आस-पास कमर एवं नितंब की चर्बी जब लम्बी अवधि से जमी रहती है तो ऐसी वसा को एक विशिष्ट प्रवाही के माध्यम से चमड़ी से अलग करते है और उसे 3 से 6 एमएम चौड़ी चुषक नलियों से विशिष्ट मशीन द्वारा निकाल लिया जाता है। एक बार में तीन या चार एक सेमी. छोटे चीरे से 8-10 लीटर वसा निकाल ली जाती है। इस तकनीक द्वारा पेट, पुट्ठे, कमर, जांघ, गले एवं चेहरे के आसपास जमा चर्बी निकालकर सही आकार में नियंत्रण किया जा सकता है। एक हफ्ते बाद काम पर जा सकते हैं। ब्रेस्ट रिडक्शन / स्तन के कसाव को लाना इस प्रक्रिया के तहत अविकसित वक्ष को सही रूप देने के लिए स्तन के नीचे छोटा सा चीरा लगाकर स्तन के नीचे की मांसपेशियों में सीलिकॉन की परत भर दी जाती है। बहुत बड़े वक्ष से उत्पन्न होने वाली तकलीफों को दूर करते हुए छोटा एवं सामान्य किया जा सकता है। इसी तरह असमान वक्ष को भी छोटा-बड़ा करने के साथ ही समान आकार का किया जा सकता है। कैंसर की वजह से निकाले गए वक्ष की जगह पुन: नया वक्ष भी बनाया जा सकता है। सर्जरी में कुल दो घंटे का समय लगता है। जनरल एनेस्थिशिया के द्वारा ऑपरेशन किया जाता हे। अगले ही दिन काम पर जा सकते हैं। कॉस्मेटिक सर्जरी की यह सब विशेषताएं अब आम आदमी के लिए भी आसानी से उपलब्ध हो गई है।
सर्दियों में दिल को रखें दुरुस्त
हाई ब्लडप्रेशर से ग्रस्त लोगों और हृदय रोगियों को खासकर सर्दियों के मौसम में अपनी सेहत पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। अक्सर ऐसा देखा गया है कि सर्दियों में तापमान में कमी आने पर हार्ट अटैक और हृदय संबंधी अन्य समस्याओं के मामले बढ़ जाते हैं, लेकिन कुछ सजगताएं बरतकर इस मौसम में स्वस्थ रहकर इसका आनंद लिया जा सकता हैं..
सर्दियों के मौसम में हृदय संबंधी समस्याओं के मामलों के बढऩे के कुछ कारण हैं। शरीर में होने वाले कुछ विशेष बदलावों और वातावरण में होने वाले परिवर्तनों के कारण हृदय संबंधी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। ये दोनों कारक मिलकर हृदय संबंधी समस्या उत्पन्न करते हैं। आइए जानते हैं इन कारणों को..
सर्दियों के परिणामस्वरूप त्वचा में स्थित रक्त वाहिनियां शरीर की गर्मी को संरक्षित (कंजर्व) रखने के लिए सिकुड़ जाती हैं। नतीजतन, ब्लडप्रेशर बढ़ जाता है। जिस तरह से गर्मियों में पसीना बहने से देह से साल्ट बाहर निकल जाते हैं, वैसा सर्दियों में नहीं होता। इस कारण शरीर में साल्ट संचित हो जाते हैं। उपर्युक्त दोनों स्थितियां मिलकर हृदय की मांसपेशियों पर अतिरिक्त दबाव डालती हैं। जिसके परिणामस्वरूप हृदय संबंझी कई जटिलताएं पैदा हो जाती हैं।
सुबह कड़ाके की ठंड पडऩे के कारण आमतौर पर लोग बाहर निकलकर व्यायाम करने या अन्य शारीरिक गतिविधियां करने से कतराते हैं। इसके अलावा सर्दियों में कई त्योहारों के पडऩे और सामाजिक समारोहों के कहींज्यादा संपन्न होने के कारण ऐसे अवसरों पर लोग बहुत ज्यादा खाते हैं। यही नहीं,अधिक कैलौरीयुक्त खाद्य पदार्थों के लेने के परिणामस्वरूप लोगों का वजन बढ़ता है और उनके कोलेस्ट्रॉल और ब्लडप्रेशर में वृद्धि होती हैं। ये सभी स्थितियां दिल की सेहत के लिए नुकसानदेह हैं।
मौसम के ठंडे होने के कारण हवा में व्याप्त प्रदूषित कण (पॉल्यूटेंट) वातावरण में ऊपर की ओर फैल नहीं पाते हैं। इस कारण हवा में प्रदूषित तत्वों का घनत्व (डेंसिटी)बढ़ जाता है, जिससे प्रदूषण भी बढ़ता है। इस कारण सर्दियों में सांस संबंधी रोग भी बढ़ जाते हैं, जिनके कारण पहले से ही हृदय रोगों से ग्रस्त लोगों के कमजोर हृदय पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है।
सार्थक सुझाव
सर्दियों में हृदय संबंधी समस्याओं से बचाव के लिए कुछ सहज सुझावों पर अमल करने की जरूरत है..
- विभिन्न खाद्य पदार्थों के जरिये नमक ग्रहण करने की मात्रा को कम से कम करें।
- नियमित रूप से ब्लडप्रेशर की जांच करें। वजन बढऩे पर भी नजर रखें। अगर ब्लडप्रेशर बढ़ता है, तो इसे नियंत्रित करने के लिए नये सिरे से दवाएं लेने की जरूरत पड़ सकती है। इस संदर्भ में अपने डॉक्टर से परामर्श लें।
- सुबह तड़के और देर गए शाम सर्दियों से बचें। व्यायाम करना जारी रखें, लेकिन सुबह तड़के कसरत न करें।
- हृदय रोगियों को सीने में संक्रमण होने, दमा या ब्रॉन्काइटिस होने की स्थिति में शीघ्र ही डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए। दूसरे लोगों के लिए सीने में संक्रमण की स्थिति उतनी समस्या पैदा नहीं करती, जितनी समस्या यह हृदय रोगियों (खासकर उन रोगियों के लिए जिनके हृदय की मांसपेशियां कमजोर हो चुकी हैं) के लिए पैदा कर सकती है।
- अगर सांस लेने में किसी तरह की कठिनाई हो, पैरों में सूजन हो और तेजी से वजन बढ़ रहा हो, तो अपने डॉक्टर से सलाह लें।
- जो लोग डाइबिटीज से ग्रस्त हैं या फिर जिनके हृदय की मांसपेशियां कमजोर हैं, उन्हें इन्फ्लूएंजा व न्यूमोनिया के संक्रमण से बचने के लिए डॉक्टर से परामर्श कर वैक्सीन लगवानी चाहिए। इन सुझावों पर अमल करने से आप हृदय संबंधी समस्याओं से मुक्त होकर सर्दियों के मौसम का आनंद उठा सकेंगे।
Tuesday, 18 November 2014
अच्छी सेहत के लिए बस अच्छा-अच्छा सोचें
सोच और सेहत एक-दूसरे के पूरक हैं। हमारी सोच का हमारी सेहत पर बहुत गहरा असर पड़ता है। इंसान जैसा सोचता है, उसका शरीर वैसा ही रिएक्ट करता है। नेगेटिव सोच शरीर को अस्वस्थ बनाती है। प्रतिरोधक क्षमता को कम कर देती है। सकारात्मक सोच शरीर को स्वस्थ और तनावमुक्त रखती है।
इन दिनों युवा डिप्रेशन से ग्रस्त हो रहे हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह यही है कि उसकी सोच आगे बढऩे की होड़ में उलझती जा रही है। इंसान अपने दिमाग का सिर्फ 10 से 15 प्रतिशत ही इस्तेमाल करता है। ऐसे में अगर सोच नकारात्मक होगी तो नि:संदेह दिमाग भ्रमित हो सकता है। अच्छी सोच से सेहत अच्छी रहती है। खुशी से शरीर की धमनियां सजग और सचेत रहती हैं। सोच का सबसे ज्यादा प्रभाव चेहरे पर पड़ता है। चिंता और थकान से चेहरे की रौनक गायब हो जाती है। आंखों के नीचे कालिख और समय से पूर्व झुर्रियां इसी बात का सबूत हैं। शरीर में साइकोसोमैटिक प्रभाव के कारण स्वास्थ्य बनता है और बिगड़ता है।
शरीर पर रोगों के प्रभाव और सोच का गहरा संबंध है। अत्यधिक सोच के फलस्वरूप गैस अधिक मात्रा में बनती है और पाचन क्रिया बिगड़ जाती है। सिर के बाल झडऩे लगते हैं शरीर कई रोगों का शिकार हो जाता है। अत्यधिक सोचने से असमय बुढ़ापा घेर लेता है। हाई ब्लडप्रेशर हार्टअटैक का कारण बनता है।
रोग का निवारण रोगी के विश्वास से होता है, डॉक्टर की दवा से नहीं। दवा दी जा रही है, यह भावना अधिक काम करती है। नदियों का स्रोत यदि हिमालय है तो हमारी सेहत का स्रोत हमारा स्वस्थ मन है।
यदि युवा रोज सोते समय पॉजिटीव थिंकिंग से खुद को सेचुरेट करे, तो वह अनेक रोगों का सफल व स्थायी उपचार कर सकता है।
स्वस्थ रहना आसान है और सोच को सकारात्मक रूप देना उससे भी आसान है। जरूरत है तो सिर्फ सकारात्मक रुख अपनाने की। अगर सोच को समय के साथ स्वस्थ रूप दिया जाए तो सोच की लकीरें चेहरे पर खिंच नहीं सकतीं।
प्रकृति के समीप रहकर सकारात्मक रहा जा सकता है। मनुष्य का दिमाग और शरीर दोनों ही संतुलित रह सकते हैं। सकारात्मक सोच का प्रभाव धीमा होता है। लेकिन होता अवश्य है।
आ रहा है अदरक का मौसम
अदरक व सौंठ हर मौसम में, हर घर के रसोई घर में प्राय: रहते ही हैं। इनका उपयोग घरेलू इलाज में किया जा सकता है। आने वाले मौसम में तो बिना अदरक की चाय की कल्पना ही नहीं कर सकते। प्रस्तुत है अदरक के घरेलू उपचार-
- भोजन से पहले अदरक को चिप्स की तरह बारीक कतर लें। इन चिप्स पर पिसा काला नम क बुरक कर खूब चबा-चबाकर खा लें फिर भोजन करें। इससे अपच दूर होती है, पेट हलका रहता है और भूख खुलती है।
- अदरक का एक छोटा टुकड़ा छीले बिना (छिलकेसहित) आग में गर्म करके छिलका उतार दें। इसे मुंह में रख कर आहिस्ता-आहिस्ता चबाते चूसते रहने से अन्दर जमा और रुका हुआ बलगम निकल जाता है और सर्दी-खांसी ठीक हो जाती है।
- सौंठ को पानी के साथ घिसकर इसके लेप में थोड़ा सा पुराना गुड़ और 5-6 बूंद घी मिलाकर थोड़ा गर्म कर लें। बच्चे को लगने वाले दस्त इससे ठीक हो जाते हैं। ज्यादा दस्त लग रहें हों तो इसमें जायफल घिसकर मिला लें।
- अदरक का टुकड़ा छिलका हटाकर मुंह में रखकर चबाते-चूसते रहें तो लगातार चलने वाली हिचकी बन्द हो जाती है।
Monday, 17 November 2014
सर्दी का मौसम लाता है स्त्री-पुरूष को करीब!
सर्दी का मौसम आमतौर पर बीमारियों के लिए ज्यादा जाना जाता है। इस मौसम में लोग ज्यादातर खांसी, जुकाम की शिकायतों से ज्यादा परेशान रहते है। वहीं आपकों यह भी यकीन करना होगा कि सर्दी का मौसम ही स्त्री व पुरूष को करीब लाता है।
यह ऐसा मौसम है जो स्त्री व पुरूष को करीब लाता है, दोनों के अंदर प्रेम का संचार करता है और एक-दूसरे को सेक्स संबंध बनाने के लिए लालायित कर देता है। सर्द मौसम की ठंड भरी रातों में ज्यादातर पुरूष अपने पार्टनर के साथ ज्यादा सेक्स करते है। आप को बता दे कि ठंड के मौसम में सबसे अधिक शादियाँ होती हैं। सबसे अधिक हनीमून टूर की बुकिंग भी ठंड के मौसम में होती है।
सेक्स पॉवर बढाने वाली दवा की बिक्री भी ठंड के मौसम में ही ज्यादा होती है। एक मेडिकल के इंस्टीट्;यूट के वरिष्ठ सलाहकार एवं आयुर्वेदिक हेल्थ केयर कहते हैं, आयुर्वेद में सर्दी को स्वस्थ मौसम कहा गया है। इस मौसम में पित्त बढ जाता है। इससे महिला व पुरूष दोनों के सेक्सुअल हार्मोन बढते हैं। पुरूष के अंडकोष का तापमान 2 डिग्री सेल्सीयस तक बढ जाता है, जिससे शुक्राणु अधिक सक्रिय हो जाता है और संभोग की इच्छा जागृत हो जाती है। आयुर्वेद में कहा गया है कि इस मौसम में पुरूष व महिलाओं की खूबसूरती बढ जाती है।
सुंदर व स्वस्थ स्त्री के अंदर भी 'कामÓ का संचार होता है। स्त्री पुरूष दोनों अधिक से अधिक समय साथ गुजारना चाहते हैं। सर्द रातों में स्त्री पुरूष का साथ दोनों के अंदर हार्मोन स्तर को बढा देता है और गर्मी पैदा होती है। तनावभरी जिंदगी में यह मौसम पति-पत्नी के लिहाज से बेहद सुकूनभरा है। इस मौसम में कसरत, बॉडी मसाज, भाप लेने, गुनगुने पानी से नहाने, सूती व ऊनी वस्त्र पहनने से सेहत बनी रहती है और मन खुश रहता है।
11 पौष्टिक चीजें अवश्य खाएं ठंड के मौसम में
खसखस
भीगी हुई खसखस खाली पेट खाने से दिमाग में तरावट और दिनभर ऊर्जा बनी रहती है।
काजू
इसमें कैलोरी ज्यादा रहती है। ठंड में शरीर का तापमान नियंत्रित रखने के लिए ज्यादा कैलोरी की आवश्यकता होती है। काजू से कैलोरी मिलती है जिससे शरीर स्वस्थ रहता है।
बादाम
यह दिमाग को तेज करने में सहायक होता है। ठंड के दौरान इसे खाने से प्रोटीन, कैल्शियम मिलता है।
अखरोट
कोलेस्ट्राल को कम करने में सहायक होता है। इसमें फायबर, विटामिन ए और प्रोटीन रहता है। जो कि शरीर को स्वस्थ रखने में सहायता प्रदान करता है।
अंजीर
इसमें आयरन होता है, जो खून बढ़ाने में सहायक होता है।
च्यवनप्राश
च्यवनप्राश प्रतिदिन खाने से शरीर का पाचनतंत्र सुदृढ़ होता है, स्फूर्ति बनी रहती है।
गजक
यह गुड़ और तिल से बनाई जाती है। गुड़ में आयरन, फास्फोरस अधिक मात्रा में पाया जाता है। तिल में कैल्शियम व वसा होता है। इसके कारण ठंड के समय शरीर को अधिक कैलोरी मिल जाती है और शरीर का तापमान भी नियंत्रित रहता है।
पिंड खजूर
इसमें आयरन के साथ मिनरल्स और विटामिन भी रहते हैं। इसे ठंड में 20 से 25 ग्राम प्रतिदिन लेना चाहिए।
दूध
रात को सोते समय केसर, अदरक, खजूर, अंजीर, हल्दी दूध में डालकर लेना चाहिए। सर्दी के मौसम में होने वाली सर्दी-खाँसी से बचाव हो जाता है।
गोंद लड्डू
इस मौसम में ज्यादा अच्छे रहते हैं क्योंकि आसानी से पच जाते हैं। एक लड्डू में 300 से 350 कैलोरी होती है।
मिक्स दाल के लड्डू
दाल में प्रोटीन होता है। यह बाल झडऩे को रोकता है और शरीर को स्फूर्ति प्रदान करते हैं।
Saturday, 15 November 2014
नारियल तेल में छुपे हैं सुंदरता के रहस्य
नारियल हमारे लिए प्रकृति का उपहार है। नारियल हमारी त्वचा के लिए बहुत उपयोगी है, लेकिन हम उसके गुणों को नजरअंदाज कर देते हैं।
प्राइमर के रूप में प्रयोग करें
जब आप बाहर जाने के लिए तैयार हों, तब आप फाउंडेशन लगाने से पहले नारियल तेल को प्राइमर के तौर पर लगाएं। इसकी सिर्फ कुछ बूंदें अपने चेहरे पर थपकाकर पूरे चेहरे पर फैला लें। यह फाउंडेशन के लिए बेस का काम करेगा और साथ ही चेहरे को मॉइश्चराइजर भी प्रदान करेगा। आप इसे चिक बोन पर थोड़ा ज्यादा लगा सकती हैं जिससे यह हाईलाइट हो जाए।
आपकी त्वचा के लिए
यदि आप अपनी त्वचा से प्यार करते हैं तो नारियल तेल आपके लिए कुंजी है। यह आपकी त्वचा को हाइड्रेटेड रखता है और प्रदूषण से बचाता है। बदलते मौसम में त्वचा की रक्षा करता रहता है। यह एक प्राकृतिक मॉइस्चराइजर है। नारियल तेल त्वचा को डिटॉक्सीफाय करता है इसलिए नहाने के बाद नियमित रूप से त्वचा पर नारियल तेल लगाएं।
बॉडी स्क्रब बनाएं
नारियल तेल में शक्कर मिलाएं और पूरे शरीर पर धीरे-धीरे रगड़ें और धो लें। आप पाएंगे अपनी त्वचा पर जादुई चमक।
बालों के लिए है संजीवनी बूटी
नियमित रूप से नारियल तेल का प्रयोग बालों की खूबसूरती को बढ़ाता है। उन्हें अल्ट्रावॉयलेट किरणों से बचाता है और उन्हें नरम और सिल्की बनाता है। डस्ट, प्रदूषित वातावरण से बचाता है। आपके बालों को प्रोटीन देता है और उन्हें मजबूत, चमकदार और स्वस्थ बनाता है। यह आपके बालों से दो मुंहे बालों वाली समस्या को पूरी तरह समाप्त करने का अद्भुत काम कर सकता है।
मैकअप रिमूवर के रूप में
नारियल तेल सबसे अच्छा क्लिंजर माना जाता है। मैकअप उतारने के लिए एक कॉटन पैड पर तेल लें और मैकअप रिमूव करें। यह मैकअप तो हटाएगा ही, साथ ही त्वचा के भीतर से गंदगी और बैक्टीरिया भी हटाएगा।
Friday, 14 November 2014
बच्चे देश का भविष्य...
बाल मन - बाल शरीर एक ऐसी सरंचना है जिससे अगर सही दिशा व सही तरीके से गढ़ा जाए तो निश्चित ही वह एक बेहतर इंसान के रूप में समाज को एवं देश को हमारी ओर से एक सहयोग है, क्योंकि बाल मन बिल्कुल भोला है, सहज है, उसमें जिन विचारों को रोपित किया जाता है वही विचार पल्लवित होते हैं, उसी तरह बाल शरीर भी सहज ही रोग ग्रसित हो जाते हैं, जो यदि समय रहते स्वस्थ न हो तो दीर्घकालिक रोगों में बदल जाते हैं और बच्चे बार-बार बिमार होने लगते हैं, जिसका प्रभाव उनके सर्वांगीण विकास पर पड़ता है, जिससे वह मानसिक एवं शारीरिक रूप से पिछड़ जाते हैं।
अत: समुचित ज्ञान व उपचार से उन्हें रोगमुृक्तकरने का प्रयास करें एवं देश के भविष्य को बेहतर बनाएं।
बाल दिवस की शुभकामनाओं के साथ...
डॉ ए के द्विवेदी
मम्मी भूख लगी है ...
बच्चों को खाना खिलाना उनकी मंम्मी के लिए सबसे बड़ी समस्या होती है। खाने की प्लेट लेकर अक्सर मम्मी बच्चों के पीछे भागती रहती है और शैतान बच्चे खाने से तौबा करते हैं।
स्कूल में भी कई बच्चे अपना लंच पूरा नहीं लेते और भोजन से भरा टिफिन वैसा का वैसा उनके घर आ जाता है। आखिर क्यों बच्चे खाने से तौबा करते हैं? क्यों न कुछ ऐसा किया जाए कि बच्चे और खाने की दोस्ती हो जाए। हर रोज एक ही प्रकार का खाना खाते-खाते बच्चे भी बोर हो जाते हैं। खाने के प्रति बच्चों का लगाव पैदा करने के लिए उनके लंच में हर रोज कुछ नयापन लाना चाहिए।
क्या होता है लंच बॉक्स में
बच्चों को अक्सर जंक फूड से प्रेम होता है। उन्हें दाल, सब्जी, रोटी आदि खाना अच्छा नहीं लगता। यही कारण होता है कि पौष्टिक आहार नहीं मिल पाने के कारण बच्चे का सर्वांगीण विकास नहीं हो पाता है।
कई शोधों से निकले परिणामों के मुताबिक करीब 50 प्रतिशत बच्चों के लंच बॉक्स में सैचुरेटेड फैट, नमक और चीनी की मात्रा ज्यादा होती है जिनमें चॉकलेट, जैम, जेली आदि प्रमुख होते हैं।
कई शोधों से निकले परिणामों के मुताबिक करीब 50 प्रतिशत बच्चों के लंच बॉक्स में सैचुरेटेड फैट, नमक और चीनी की मात्रा ज्यादा होती है जिनमें चॉकलेट, जैम, जेली आदि प्रमुख होते हैं।
क्या होना चाहिए लंच बॉक्स में
बच्चों के लंच बॉक्स में ऐसा खाना होना चाहिए। जो बच्चों को दिन भर अलर्ट व ऊर्जावान बनाए रखे। अंकुरित दालें, पौष्टिक सलाद, हरी सब्जी-रोटी, फल आदि ऐसी चीजें हैं, जो आपके बच्चे के लंच बॉक्स में होनी ही चाहिए।
कैसे करें लंच बॉक्स तैयार
हर रोज एक ही प्रकार का खाना खाते-खाते बच्चे भी बोर हो जाते हैं। खाने के प्रति बच्चों का लगाव पैदा करने के लिए उनके लंच में हर रोज कुछ नयापन लाना चाहिए।
इसके लिए सप्ताह के सात दिनों तक बच्चों के लंच में अलग-अलग प्रयोग कर सकती हैं। जिससे बच्चे को हर दिन कोई नया पौष्टिक आहार मिले।
सोमवार को यदि आप बच्चों के लंच बॉक्स में अंकुरित दाल व चपाती रखती है तो मंगलवार को फु्रट्स रख सकती है। बुधवार को आप उनके लंच बाक्स में हरी सब्जियाँ तो गुरुवार को वेज सेंडविच रख सकती हैं।
इस प्रकार बच्चों की पसंद व पौष्टिकता दोनों को ध्यान में रखकर यदि बच्चों का लंच बॉक्स तैयार किया जाए तो आपको खाना खिलाने के लिए बच्चों के पीछे भागना नहीं पड़ेगा।
इसके लिए सप्ताह के सात दिनों तक बच्चों के लंच में अलग-अलग प्रयोग कर सकती हैं। जिससे बच्चे को हर दिन कोई नया पौष्टिक आहार मिले।
सोमवार को यदि आप बच्चों के लंच बॉक्स में अंकुरित दाल व चपाती रखती है तो मंगलवार को फु्रट्स रख सकती है। बुधवार को आप उनके लंच बाक्स में हरी सब्जियाँ तो गुरुवार को वेज सेंडविच रख सकती हैं।
इस प्रकार बच्चों की पसंद व पौष्टिकता दोनों को ध्यान में रखकर यदि बच्चों का लंच बॉक्स तैयार किया जाए तो आपको खाना खिलाने के लिए बच्चों के पीछे भागना नहीं पड़ेगा।
Thursday, 13 November 2014
ठंड के मौसम में क्या करें, क्या न करें
सर्दियों का खुशनुमा मौसम आ गया है। कुछ लोगों को बदलते मौसम के साथ एडजस्ट होने में समय लगता है। विशेषकर बुजुर्गों, बच्चों और कमजोर इम्यूनिटी वाले लोगों को। उन्हें इस दौरान एहतियात बरतने की जरूरत होती है। थोड़ी लापरवाही हुई नहीं कि सर्दी-जुकाम, कफ आदि की समस्याएं खड़ी हो जाती हैं। जिन लोगों को साइनस, एलर्जी, ब्रोंकाइटिस, अस्थमा जैसे रोग होते हैं, उन्हें सावधानीपूर्वक खाने-पीने में परहेज बरतना चाहिए। उन्हें कफवर्धक चीजों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। नीचे लिखी सावधानियों पर अमल कर आप सर्दियों की तकलीफों से खुद को बचा सकते हैं।
- अगर आप सुबह सैर के लिए निकलते हैं तो आधा-एक घंटा देर से जाना शुरू करें, ताकि सवेरे की ठंड से बचाव हो सके। हल्की-हल्की गुनगुनी धूप में जाएं तो भी कोई हर्ज नहीं है। विटामिन-डी का सेवन भी हो जाएगा।
- घास पर सीधे या फर्श पर नंगे पैर न घूमें।
- अगर आपके बाल गीले हैं तो उन्हें सुखाने के बाद ही टू-व्हीलर पर निकलें।
- अलसुबह गर्म पानी जरूर पीएं।
- नहाने के लिए ठंडा पानी न लें। गर्म पानी से स्नान करें।
- ठंडी हवा सीधे कान में न जाने पाएं, मफलर, टोप, स्कार्फ आदि से खुद को बचाएं। सिर और छाती भी ढंकी होना चाहिए।
- गर्म तासीर वाली चीजों का इस्तेमाल बढ़ा दें। जैसे गर्म मसाले, अजवाइन, लौंग, जीरा, मैथीदाना, बड़ी इलायची आदि का काढ़ा बनाकर भी पिया जा सकता है।
- सुबह-शाम अदरक वाली चाय भी फायदेमंद होती है।
- ठंडी और सीधे फ्रिज से निकली चीजों का सेवन ना करें तो ज्यादा अच्छा होगा।
- खट्टी चीजें जैसे दही और नींबू के साथ ही चावल, पोहे, दूध और देशी घी जैसी चीजों से कफ भी हो सकता है।
- इस मौसम में इस्तेमाल करने के लिए नारियल तेल की जगह सरसों का तेल ज्यादा उपयुक्त है।
- सारे गर्म मसाले सर्दियों में किसी वरदान से कम नहीं होते हैं।
Wednesday, 12 November 2014
घातक हो सकता है किशोरावस्था में गर्भवती होना
20 वर्ष से कम उम्र की महिलाएं गर्भावस्था की जिन जानलेवा जटिलताओं का सामना करती हैं वहीं खतरा अन्य महिलाओं को भी होता है जैसे रक्तस्त्राव, बाधापूर्ण प्रसव, आयरन की कमी (एनिमिया)। युवा महिलाओं को प्रौढ महिलाओं की तुलना में उच्च रक्तचाप, एनिमिया और असुरक्षित गर्भपात के खतरे का सामना अधिक करना पड़ता है। युवा महिलाओं में खतरे केवल उनकी उम्र की वजह से नहीं बल्कि प्रथम प्रसव के कारण होता है जो कि दूसरे, तीसरे और चौथे प्रसव से ज्यादा जोखिम भरा होता है।
नवजात बच्चों के लिए भी जोखिम
- 20 वर्ष से पहले गर्भावस्था युवा महिलाओं के नवजात बच्चों के लिए खतरनाक है।
- डेमोग्राफिक एण्ड हेल्थ सर्वे (डीएचएस) यह दर्शाता है कि युवा महिलाओं से जन्में बच्चों की मृत्यु दर ज्यादा है।
- 15 वर्ष से कम उम्र की महिलाओं में अविकसित प्रसव, स्वत: गर्भपात, नवजातो का कम वजन आदि समस्याओं की दर काफी ज्यादा है।
- यदि किशोरावस्था में महिलाऐं बच्चों को जन्म देती है तो उन्हें हमउम्र महिलाओं की तुलना जल्दी विकसित होना पड़ेगा।
- किशोरावस्था की माँ में आर्थिक रूकावटों और समय की कमी के कारण उच्च शिक्षा कम ही लें पाती है जिसके कारण कॅरियर के कम ही विकल्प होते है और गरीबी भी बढ़ती है।
गर्भावस्था में व्यायाम के प्रभाव
- ज्यादातर विशेषज्ञों की सहमति है कि प्रसव के दौरान (सामान्य महिलाओं में) निर्धारित 25 से 35 पाउंड से ज्यादा वजन बढ़ाना, बच्चे के जन्म के बाद इसे बढ़े हुए वजन को कम करना काफी कठिन हो जाता है।
- गर्भावस्था के दौरान अपने स्वास्थ्य स्तर को सामान्य रखकर, आपके वजन में वृद्धि को रोका जा सकता है। व्यायाम की मदद से आप अपनी मांसपेशियों की गतिशीलता और मजबूती को बनाए रख सकते हैं।
- गर्भवती महिलाओं के लिए व्यायाम बहुत ही लाभप्रद है, लेकिन जिन महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान अधिक जोखिम होता है अथवा समय से पूर्व प्रसव की संभावना होती है उन महिलाओं को किसी सलाहकार के निर्देशानुसार ही व्यायाम करना चाहिए, जिससे कि यह सुनिश्चित किया जा सके कि व्यायाम से महिला और उसके बच्चे को कोई अतिरिक्त खतरा न उठाना पड़े।
- व्यायाम के दौरान, रक्त का प्रवाह आपके अंत: अंगों से (जिसमें गर्भाशय भी सम्मिलित है) आपके मांसपेशियों, फेफड़ों और हृदय को जाता है। यदि आप ज्यादा तनावपूर्ण व्यायाम करते हैं तो आप ऑक्सीजन को गर्भाशय तक जाने से रोकते हैं इसीलिए यह निर्धारित कर ले कि आपकी हृदय गति सामान्य स्तर की रहे ताकि आपके शिशु को उसकी आवश्यकतानुसार ऑक्सीजन प्राप्त हो।
- जैसे-जैसे गर्भावस्था बढ़ाती है शरीर का संतुलन केन्द्र बदलता रहता है जिससे आपके गिरने की संभावना बढ़ जाती है।
- सामान्य क्रियाएं जैसे, टहलना अथवा लो इम्पैक्ट एरोबिक्स आदि में सम्मिलित होने से गिरने या फिसलने का कोई अतिरिक्त खतरा नहीं होता है।
- कुछ क्रियाएं जैसे घुड़सवारी, पर्वतारोहण और फुटबॉल आदि खेल आपके गिरने या घायल होने के खतरे का बढ़ा देते है।
- व्यायाम आपके शरीर के तापमान को बढ़ा देता है, जो आपके शिशु के विकास को प्रभावित करता है। गर्म मौसम में व्यायाम करते समय सावधानी बरतें और हमेशा यह सुनिश्चित रहे कि व्यायाम के दौरान आपके शरीर में पर्याप्त मात्रा में तरल पदार्थ मौजूद हो। आपके शरीर का तापमान कम रहना चाहिए।
तेल मालिश से खिल जाती है रूखी त्वचा
सर्दियों का मौसम हो और त्वचा की मालिश के लिए तेल का इस्तेमाल न किया जाए, ऐसा संभव नहीं। पार्लर से लेकर मालिश सेंटर तक इन दिनों मालिश कराने वालों की भीड़ लगी रहती है। आयुर्वेद में भी तेल मालिश का काफी महत्व है। सर्दियों में रूखी त्वचा व बेजान बालों को मालिश से नमी मिल जाती है। सर्द हवाएं त्वचा को रूखी व बेजान बना देती हैं। ऐसे में मालिश से बेहतर कुछ भी नहीं। ज्यादातर लोग तरह-तरह की क्रीम व ब्यूटी प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करते हैं। नतीजा यह होता है कि थोड़ी देर बाद त्वचा को फिर नमी की जरूरत महसूस होने लगती है।
फेशियल तेल मालिश बेहतर विकल्प है त्वचा में नमी बरकरार रखने का। दादी-नानी की बातें याद करें, तो बचपन में वे हमारी मालिश किया करती थीं। जबरदस्ती हमारे बालों में ढेर सारा तेल लगा देती थीं। वह सब हमारे भले के लिए होता था। कड़ाके की ठंड में भी कभी रूखेपन का अहसास नहीं होता था। फेशियल तेल मालिश भी यही काम करता है। सर्दियों में त्वचा में नमी बनाए रखने व सुंदरता बरकरार रखने के लिए मालिश बेहतर विकल्प है। केमिकल युक्त क्रीम त्वचा के लिए नुकसानदायक साबित हो सकती है मगर अच्छा तेल आपकी त्वचा की चमक व नमी बनाए रखता है।
त्वचा को सुरक्षित रखने के लिए प्राकृतिक तेल की जरूरत होती है अगर हम त्वचा पर तेल नहीं लगाते, तो शरीर इसे बार-बार बनाता है, जिस कारण त्वचा में नमी की कमी होती है। और फिर त्वचा फटने लगती है। हेल्दी तेल कटी-फटी त्वचा को रिपेयर करता है और शरीर को नमी व माश्चराइज प्रदान करता है जिससे त्वचा रूखी बेजान नहीं बल्कि खिली-खिली दिखती है।
त्वचा के मालिश के लिए मिनरल तेल की जगह जोजोबा एप्रीकॉट और बादाम के तेल का इस्तेमाल करें। कई लोग यह सोचते हैं कि ज्यादा तेल लगाने से स्कीन ज्यादा शाइनी दिखेगी, पर ऐसा नहीं है। त्वचा की नमी के लिए दो-चार बूंद तेल काफी होता है और यह त्वचा को कांतिमय बनाने में मदद करती है। सिर्फ एक-दो बूंद तेल ही आपकी त्वचा व गर्दन के लिए पर्याप्त है। तेल में एंटी-ऑक्सीडेंट की शक्ति और विटामिन्स मौजूद होते हैं, जिससे ये त्वचा की सुरक्षा करते हैं। सर्दियों या मौसम बदलने का सीधा असर पहले हमारी त्वचा पर पड़ता है। ऐसे में ब्यूटी तेल इनकी हिफाजत करता है।
टीवी विज्ञापनों में तरह-तरह की क्रीम देखकर लोग खरीद तो लाते हैं पर इतना फायदा नहीं दिखता। साथ ही उनमें मौजूद केमिकल्स त्वचा को नुकसान भी पहुंचाते हैं। कई लोगों को इनसे एलर्जी व त्वचा संबंधी समस्याएं भी हो जाती हैं। ऐसे में ये क्रीम उनके लिए आफत बन जाती है। किसी विज्ञापन के लालच में न पड़ कर अगर हर दिन ब्यूटी तेल से त्वचा की मालिश की जाए, तो त्वचा हर पल चमकदार बनी रहती हैं।
कई क्रीम एंटी-एंजिग भी होती हैं। उम्र बढऩे के संकेत को रोकने के लिए इन्हें बनाया जाता है। मगर इसमें मौजूद केमिकल त्वचा को नुकसान पहुंचा सकते हैं। फेशियल तेल केमिकल फ्री होते हैं। यह वॉटर-बेस्ड नहीं होते। इन्हें सुरक्षित रखने के लिए किसी सिंथेटिक प्रिजरवेटिव का इस्तेमाल नहीं किया जाता। इनमें मौजूद प्रचुर मात्रा में एंटीआक्सीडेंट, विटामिन सी और ई, फ्री रेडिकल्स से लडऩे में मदद करते हैं। साथ ही अल्ट्रावायलट किरणों से त्वचा की सुरक्षा करते हैं, जो एजिंग और झुर्रियों के मुख्य कारण बनते हैं। फेशियल तेल त्वचा पर एंटीएजिंग का भी काम करता है। तो बस त्वचा की सारी समस्याओं का इलाज कीजिए एक दो बूंद तेल से और सारी समस्याओं से रहिए बेफ्रिक।
Tuesday, 11 November 2014
कुनकुनी ठंड खुद को ऐसे करें तैयार
सर्दियों का गुनगुना मौसम आ गया है। कुछ लोगों को बदलते मौसम के साथ एडजस्ट होने में समय लगता है। विशेषकर बुजुर्गों, बच्चों और कमजोर इम्यूनिटी वाले लोगों को। उन्हें इस दौरान एहतियात बरतने की जरूरत होती है। जहां थोड़ी लापरवाही हुई नहीं कि सर्दी-जुकाम, कफ आदि की समस्याएं खड़ी हो जाती हैं।
जिन लोगों को साइनस, एलर्जी, ब्रोंकाइटिस, अस्थमा जैसे रोग होते हैं, उन्हें सावधानीपूर्वक खाने-पीने में परहेज बरतना चाहिए। उन्हें कफवर्धक चीजों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। नीचे लिखी सावधानियों पर अमल कर आप सर्दियों की तकलीफों से खुद को बचा सकते हैं।
- अगर आप सुबह सैर के लिए निकलते हैं तो आधा-एक घंटा देर से जाना शुरू करें, ताकि सवेरे की ठंड से बचाव हो सके। हल्की-हल्की गुनगुनी धूप में जाएँ तो भी कोई हर्ज नहीं है। विटामिन-डी का सेवन भी हो जाएगा।
- घास पर सीधे या फर्श पर नंगे पैर न घूमें।
- अगर आपके बाल गीले हैं तो उन्हें सुखाने के बाद ही टू-व्हीलर पर निकलें।
- अलसुबह गर्म पानी जरूर पीएं।
- नहाने के लिए ठंडा पानी न लें। गर्म पानी से स्नान करें।
- ठंडी हवा सीधे कान में न जाने पाएं, मफलर स्कार्फ आदि से खुद को बचाएं। सिर और छाती भी ढंकी होना चाहिए।
- गर्म तासीर वाली चीजों का इस्तेमाल बढ़ा दें। जैसे गर्म मसाले, अजवाइन, लौंग, जीरा, मैथीदाना, बड़ी इलायची आदि का काढ़ा बनाकर भी पिया जा सकता है।
- सुबह-शाम अदरक वाली चाय भी फायदेमंद होती है।
- ठंडी और फ्रिज से निकली चीजों को न खाएं तो ज्यादा अच्छा होगा।
- खट्टी चीजें जैसे दही और नींबू के साथ ही चावल, पोहे, दूध और देशी घी जैसी चीजों से कफ भी हो सकता है।
- इस मौसम में इस्तेमाल करने के लिए नारियल तेल की जगह सरसों का तेल ज्यादा उपयुक्त है। सारे गर्म मसाले सर्दियों में किसी वरदान से कम नहीं होते हैं। एक तो इनके इस्तेमाल से शरीर को पर्याप्त गर्मी मिलती है और यदि किसी वजह से सर्दी हो जाए तो ये शरीर पर जादुई असर पैदा करते हैं। ये शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में भी अहम भूमिका निभाते हैं।
डायट चार्ट अपनाएं वजन बढ़ाएं
वजन बढ़ाने में व्यायाम के साथ-साथ स्वस्थ आहार की बहुत जरूरत होती है। यदि आप अपना वजन बढ़ाना चाहते हैं तो अपने आहार में पोषक तत्वों को शामिल कीजिए। इसके लिए एक डायट चार्ट बनाइए और उसका पालन कीजिए।
वजन बढ़ाने के लिए आहार में कैलोरी, वसा, प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेड की बहुत जरूरत होती है। इसलिए अपना डायट चार्ट बनाते वक्त इन बातों का ध्यान रखिये और इन सबको शामिल कीजिए। आइए हम आपको बताते हैं वजन बढ़ाने वाले आहार के बारे में।
वजन बढ़ाने वाले आहार
प्रोटीन शेक और प्रोटीनयुक्त भोजन वजन बढ़ाने में लाभकारी है। आपको चाहिए कि आप प्रोटीनयुक्त फिश, अंडा, अंकुरित चने, मोंठ, चिकन, चावल, दूध या दूध बनी चीजें, सोया मिल्क या पाउडर के सेवन, मछली, फलियां, मेवा, बींस, इत्यादि का सेवन सप्ताह में दो से तीन बार जरूर करें।
आप यदि दूध पीने के शौकीन हैं तो आपके लिए अच्छी बात है आप रात को सोते समय दूध में शहद डालकर नियमित रूप से लें कुछ ही दिनों में आपको अपना वजन बढ़ता दिखेगा। इसके अलावा आप रात को फुलक्रीम दूध में चने भिगोकर लें, इससे भी आपको वजन बढ़ाने में मदद मिलेगी। आप रोजना एक गिलास दूध के साथ च्यवनप्राश लेंगे तो इससे आपकी हड्डिया मजबूत होंगी और आपका वजन भी बढ़ेगा।
वजन बढ़ाने के लिए जरूरी है कि आप तैलीय और पौष्टिक भोजन का सेवन करें, इसके लिए आप पनीर, मक्खन, घी, तेल का सेवन कर सकते हैं पनीर, मक्खन, घी, तेल आप चाहे तो अपने सूप में घी, मक्खन इत्यादि मिला सकते हैं।
आपको फिट रहते हुए वजन बढ़ाने के लिए चाहिए कि आप साबुत अनाज, गेहूं, चने के आटे, बाजरे का आटा इत्यादि की बनी रोटियां खांए।
आपको गेहूं युक्त बिस्किट, ओट मील, घी युक्त चपाती, ब्राउन चावल इत्यादि का सेवन करना चाहिए।
वजन बढ़ाने में ड्राई फ्रूट्स महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। आप सूखे मेवे में अखरोट, किशमिश, बादाम, खरबूजे की गिरी इत्यादि का सेवन कर सकते हैं।
आपको अधिक से अधिक दालें, चावल की खीर इत्यादि खाना चाहिए।
वजन बढ़ाने में हरी सब्जियां खाना बहुत लाभदायक होता है, इससे आपकी सेहत भी बनती हैं और आप आसानी से बिना तनाव के अपना वजन भी बढ़ा सकते हैं।
फल, फलों का रस, सब्जियों का रस, खरबूजा, इत्यादि खाने से भी आप अपना वजन आसानी से बढ़ा सकते हैं।
आप चाहे तो हेल्दी मिठाईयां, गुड, खीर, हलवा, कस्टर्ड, फ्रूट जूस, शहद से बनी चीजें इत्यादि का सेवन भी वजन बढ़ाने के लिए कर सकते हैं।
वजन बढाऩे के टिप्स
- वजन बढ़ाने का अर्थ यह नहीं है कि आप फिट ना हो। आपको चाहिए कि आप फिट और संतुलित रहते हुए अपना वजन बढ़ाए अन्यथा आपके स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर पड़ेगा।
- वजन बढ़ाने के लिए भी आपको व्यायाम और सैर की जरूरत है ताकि आप एक्ट्रा कैलोरी बर्न कर सकें और संतुलित रूप से अपना वजन बढ़ा सकें।
- वजन बढ़ाने के लिए आपको नाश्ता हैवी करना होगा और डिनर हल्का।
- यदि आप वाकई अपने वजन को बढ़ाना चाहते हैं तो आपको हाई कैलोरी, वसायुक्त भोजन और प्रोटीन, मिनरल्स की मात्रा अपने खाने में बढ़ाने होगी।
- महीने में दो बार अपने वजन को चेक करें।
- यदि आप वजन बढ़ाना चाहते हैं तो अपना हेल्दी और हाई प्रोटीन, हाई कैलोरी युक्त डायट चार्ट बनाएं और उसे सही तरीके से फॉलो करें।
- आपको भूख नहीं लगती फिर भी आपको दिन में हर दो-तीन घंटे के अंतराल में भोजन करना चाहिए।
- जंकफूड, चिप्स, पिज्जा, बर्गर, तले पदार्थ इत्यादि खाने से बचें।
Monday, 10 November 2014
बच्चों के खेल और व्यायाम
आजकल के बच्चों के लिए खेल का मतलब है टीवी के सामने बैठना, वीडियो गेम व कंप्यूटर पर खेलना। ऐसे में बच्चों के पूरे शरीर को व्यायाम की ज़रूरत है, यानी कि उसका मैदान में खेलना ज़रूरी है। ऐसे खेल जिनमें बच्चों को मेहनत करनी पड़ती है, वे बच्चों को मजबूत बनाते है। इससे बच्चों का वजन भी कम होता है। साथ ही अतिरिक्त उर्जा या एनर्जी बाहर निकालती है।
ड्रग्स व मारपीट के डर से बहुत से माता पिता अपने बच्चों को बाहर खेलने नहीं देते। खास तौर से काम काज पर जाने वाले माता पिता, क्योंकि बच्चों की हिफाज़त के लिए वो हमेशा उनके पास नहीं रह सकते। ऐसे में अगर माता पिता को आफ्टर केयर व हॉलिडे केयर की सुविधा मिलती है, तो बच्चे को बाहर खेलने के लिए प्रोत्साहित करें। आप बच्चे को उसके दादा दादी के साथ बाहर खेलने भेज सकते है। दूसरे बच्चों के माता पिता के साथ बच्चों का एक ग्रुप बनाया जा सकता है, जो पार्क या गार्डन में साथ खेले। बड़े बच्चे भी आपके छोटे बच्चे की देखभाल कर सकते है।
अगर स्कूल नज़दीक है तो बच्चे के साथ पैदल ही स्कूल जाएं। ये बच्चे की सुरक्षा के लिहाज़ से तो अच्छा है ही साथ ही उसका व आपका व्यायाम भी हो जाएगा। ये बच्चे के साथ बेहतरीन वक्त बिताने का अच्छा तरीका भी है।
बच्चे को कंप्यूटर व टीवी के सामने 1 घंटे से ज़्यादा न बैठने दें। अगर आपका बच्चा कंप्यूटर इस्तेमाल करता है तो उस पर नजऱ रखें व देखें कि वो क्या करता है। इंटरनेट बच्चों के लिए खतरनाक भी हो सकता है।
छुट्टियों में जब भी समय मिले तो पूरे परिवार के साथ बेहतर वक्त बिताएं। बच्चों के साथ ऐसे खेल खेलें जिसमें शारीरिक मेहनत हो, जैसे मैदानी खेल, दौड़ भाग, फुटबॉल, क्रिकेट आदि। आपको सक्रिय देखकर बच्चा भी सक्रिय (एक्टिव) होने की कोशिश करेगा। बच्चे को सक्रिय बनाकर व उसके साथ खेलकर उसे सड़क व ड्रग्स आदि से दूर रखा जा सकता है। बच्चा कहां व किसके साथ है इस बात की जानकारी रखें। उसे स्कूल में या स्थानीय क्लब वगैरह में खेलने के लिए प्रोत्साहित करें। जब वो कोई मैच खेले तो उसकी तारीफ करें।
बच्चों को सुलाने के आसान तरीके
आमतौर पर बच्चों को जब नींद आती है तो वो चिड़चिड़े हो जाते हैं। फिर उन्हें किसी भी तरह बहलाने फुसलाने की कोशिशे बेकार साबित होती हैं। उस समय उन्हें जरूरत होती हैं प्यारी सी लोरी के साथ शांत माहौल और मां के गोद की। लोरी सुनाकर बच्चों को सुलाने का चलन बरसों से चला आ रहा है। आज भी मांए अपने बच्चों को लोरी सुनाकर ही सुलाती हैं। धीरे-धीरे और मीठे स्वर में गाई गई लोरी का बच्चे के दिमाग पर काफी असर होता है इसको सुनते-सुनते वे धीरे-धीरे मीठी नींद की ओर बढऩे लगते हैं।
लोरी ही जरूरी नहीं
लोरी बच्चे को सुलाने का सबसे प्यारा तरीका समझा जाता है। लेकिन सिर्फ लोरी ही जरूरी नहीं है इसके साथ बच्चे के शरीर पर हल्की-हल्की थपकी और गोद में उसे धीरे-धीरे झुलाना भी काफी मददगार साबित होते हैं। और यह प्रक्रिया आपको तब तक करनी चाहिए जब तक बच्चा गहरी नींद में ना सो जाए।
लोरी सुनते ही क्यों सो जाते हैं बच्चे
लोरी की मीठी आवाज से बच्चे का ध्यान आस-पास की आवाजों से हटने लगता है। बच्चों को लगातार गोद में झुलाते रहने से उसकी नजर किसी भी चीज पर नहीं टिक पाती। और थोड़ी ही देर में उसकी आखों में नींद आने लगती है। और वह धीरे-धीरे अपनी आंखों को बंद करने लगता है।
स्तनपान करते हुए
आमतौर पर देखा जाता है कि बच्चें मां की गोद में स्तनपान करते हुए भी सो जाते हैं। ऐसे में उनके सिर पर धीरे-धीरे हाथ से सहलाएं जिससे उनकी आंखों में नींद आने लगे। और जब वह पूरी नींद में सो जाए तो उसे धीरे से बिस्तर पर लेटा दें।
गोद में लेकर झुलाएं
बच्चो को जब नींद आती है तो वो आपकी गोद में झुलना चाहते हैं। ऐसे में बच्चे को अपनी गोद में लेकर दाएं से बाएं झुलाएं। धीरे-धीरे उसकी आंखे बोझिल होने लगती है और वह थकवाट के कारण अपनी आंखे बंद करने पर मजबूर हो जाता है। ध्यान रहे कि ज्यादा जोर से झुलाने पर बच्चा डर भी सकता है।
प्रैम या स्ट्रॉलर में
कई बार देखा जाता है कि बच्चा प्रैम या स्ट्रॉलर में बैठकर आगे-पीछे हिलाते हुए सोना चाहता है। यह प्रक्रिया बार-बार करने पर बच्चा धीरे-धीरे नींद की आगोश में चला जाता है।
बच्चे को डराएं नहीं
कभी भी बच्चों को सुलाने के लिए उसे डराएं नहीं। ऐसा करने से उसके मन में डर बैठ जाएगा जो आगे चलकर उसके व्यक्तित्व के विकास में बाधक होगा।
बच्चों का अकेला ना छोड़ें
ध्यान रखें कि बच्चों को सोते समय अकेले कमरे में ना छोड़े। जब कभी भी बच्चे की नींद खुलेगी तो वो खुद को कमरे में अकेला पाकर डर सकता है। ऐसे में जरूरी है कि आप उसके आस-पास रहें।
निम्न बातों का ध्यान रखें
- सुलाने वाली जगह साफ-सुथरी होनी चाहिए।
- जहां सोए वहां ज्यादा शोर नहीं होना चाहिए।
- थोड़ी-थोड़ी देर में देखते रहना चाहिए कि बच्चा गीले में तो नहीं सो रहा है।
- यह देख लें कि बच्चे को कोई परेशानी न हो और उस पर अच्छी तरह ओढऩा पड़ा हुआ हो।
- कमरे में अंधेरा होना चाहिए जिससे बच्चे को लगे कि अभी रात है।
Sunday, 9 November 2014
बच्चों में कुपोषण
वास्तव में कुपोषण कोई बीमारी नहीं। शरीर को पर्याप्त पोषण ना मिल पाने से कुपोषण की सिथति पैदा होती है। इससे शरीर के ज़रूरी अवयव ठीक तरीके से काम नहीं करते और बीमारियां होने लगती है।
कुपोषण एक ऐसी स्थिति है जो लम्बे समय तक पोषणयुक्त आहार ना मिल पाने के कारण पैदा होती है। कुपोषित बच्चों की रोग प्रतिरोधी क्षमता कमज़ोर होती है और ऐसे बच्चे अकसर बीमार रहते है। कुपोषण के कारण बच्चों की त्वचा और बाल रूखे-बेजान दिखते हैं और वजऩ कम होने लगता है। सिर्फ इतना ही नहीं कुपोषण के कारण बच्चे का विकास भी रूक जाता है। और अगर समय रहते कुपोषण का इलाज ना कराया जाये तो यह समस्या जानलेवा भी हो सकती है। आपका बच्चा स्वस्थ है, तो इसका मतलब यह नहीं कि आप उसके पोषण पर ध्यान ना दे। चाहे बात नवजात शिशु की करें या स्कूल जाने वाले बच्चों की, बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए पोषणयुक्त आहार बेहद अवश्यक है।
कुपोषण जैसी समस्या का सबसे बड़ा कारण गरीबी और अज्ञानता है। बच्चे को चाकलेट, बिस्किट आदि देकर आप उसका मन बहला सकते हैं, लेकिन उन्हें सही पोषक आहार देना भी जरुरी है। खासतौर पर बच्चे के लंचबाक्स में तो ऐसी चीजें बिलकुल नही देनी चाहिये, जो उनके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो। अगर अपने बच्चे को बीमारियों से दूर रखना चाहते हैं, तो उसके सम्पूर्ण पोषण पर ध्यान दे। आप घर पर ही कम खर्चे में पोषणयुक्त आहार बना सकते हैं। ध्यान रखें अपने शिशु को दिन में चार बार ठोस आहार जरुर दें और तीन बार दूध और दूध से बने उत्पाद दे।
बच्चों का पेट भरा होने का मतलब यह नहीं कि उन्हें पूरा पोषण मिल रहा है। बच्चों के खाने में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेटस, विटामिन्स, मिनरल्स जैसे पोषक तत्व होने चाहिए क्योंकि इन पोषक तत्वों की कमी से ही कुपोषण होता है।
जिन बच्चों को समय पर खाना नहीं मिलता, उनमें कुपोषण होने की सम्भावना सबसे अधिक रहती है। लेकिन जिन बच्चों को समय पर खाना मिलता है उन्हें भी कुपोषण हो सकता है। ऐसा भी ज़रूरी नहीं कि किसी एक बच्चे में सभी प्रकार के पोषक तत्वों की कमी पाई जाये। किसी एक प्रकार के पोषण तत्व की कमी से भी कुपोषण होता है। इसलिए बच्चों को अनाज, दालें, हरी सब्जीयां, सलाद, दूध और मौसमी फल ज़रूर दे।
किसी को भी हो सकता कुपोषण
सबसे आम एवं उल्लेखनीय लक्षण है वजन में कमी होना। उदाहरण के लिए, यदि आपने तीन महीनों के दौरान अपने शरीर का वजन यदि १० किलो से अधिक खो दिया है तो आपको जानने की जरूरत है कि कहीं आप कुपोषण के शिकार तो नहीं हो रहे हैं? यह आम तौर पर शरीर मास इंडेक्स या बीएमआई का उपयोग करके मापा जाता है।
कुपोषण के लक्षण
- मांसपेशियों में थकान और कमजोरी।
- थकान की बहुत से लोग शिकायत करते हैं पूरे दिन ऊर्जा की कमी रहती है। यह भी एनीमिया द्वारा कुपोषण के कारण हो सकता है।
- कुपोषित मरीजों में संक्रमण का खतरा बहुत ज्यादा होता है।
- चिड़चिड़ापन और चक्कर आना, बाल झडऩा।
- त्वचा और बाल शुष्क हो जाते हैं।
- त्वचा सूखी, और परतदार दिखाई दे सकती हैं।
- कुछ रोगियों में लगातार दस्त या दीर्घकालिक कब्ज हो सकता है।
- कुपोषण की शिकार महिलाओं में अनियमित अथवा पूरी तरह से माहवारी बंद हो सकती है।
- अवसाद में कुपोषण आम बात है।
महंगाई की सीधी मार बच्चों के विकास पर
भारत में बच्चों की आधी आबादी का विकास खाने की कमी के कारण रुक गया है. अंतरराष्ट्रीय सहायता एजेंसी 'सेव द चिल्ड्रनÓ ने कहा है कि भोजन की कमी के कारण भारत में बच्चों की आधी आबादी का पूरी तरह से शारीरिक और मानसिक विकास नहीं हो पा रहा है.
सहायता एजेंसी 'सेव द चिल्ड्रेनÓ के सर्वेक्षण में हिस्सा लेने वाले भारतीय परिवारों में से एक चौथाई परिवारों ने माना कि उनके बच्चों को अक्सर भूखा रहना पड़ता है.
ये सर्वेक्षण दुनिया के पांच देशों भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, पेरू और नाइजीरिया में किया गया है. इन देशों में दुनिया के कुपोषण के शिकार बच्चों की आधी आबादी रहती है.
संस्था का कहना है कि इससे 'अगले पंद्रह सालों में दुनिया भर के करीब 50 करोड़ बच्चों के शारीरिक और मानसिक तौर पर अविकसित रह जाने की आशंका है.Ó
इन आंकड़ों में भी मध्यम और निम्न वर्ग के गरीबों के बीच असमानता पाई गई है.
आंकड़ों के अनुसार मध्य वर्ग के 11 प्रतिशत गरीब अभिभावकों ने माना कि ऐसा कभी-कभार होता है कि उनके बच्चों को भूखे रहना पड़ता है लेकिन निम्न वर्ग के गरीबों में ये प्रतिशत बढ़कर 24 हो जाता है.
सहायता एजेंसी 'सेव द चिल्ड्रेनÓ के सर्वेक्षण में हिस्सा लेने वाले भारतीय परिवारों में से एक चौथाई परिवारों ने माना कि उनके बच्चों को अक्सर भूखा रहना पड़ता है.
ये सर्वेक्षण दुनिया के पांच देशों भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, पेरू और नाइजीरिया में किया गया है. इन देशों में दुनिया के कुपोषण के शिकार बच्चों की आधी आबादी रहती है.
संस्था का कहना है कि इससे 'अगले पंद्रह सालों में दुनिया भर के करीब 50 करोड़ बच्चों के शारीरिक और मानसिक तौर पर अविकसित रह जाने की आशंका है.Ó
इन आंकड़ों में भी मध्यम और निम्न वर्ग के गरीबों के बीच असमानता पाई गई है.
आंकड़ों के अनुसार मध्य वर्ग के 11 प्रतिशत गरीब अभिभावकों ने माना कि ऐसा कभी-कभार होता है कि उनके बच्चों को भूखे रहना पड़ता है लेकिन निम्न वर्ग के गरीबों में ये प्रतिशत बढ़कर 24 हो जाता है.
डेन्टिस्ट की ज़रूरत क्यों है?
साल में कम से कम एक बार डेन्टिस्ट के पास जाकर दांतों की सफाई कराना चाहिए। अगर आपको कैविटी या दांतों से संबंधित कोई समस्या हो तो डेंटिस्ट इलाज करेगा। डेंटिस्ट बच्चों का चेकअप करके ये देखता है कि उनके दांत सही जगह पर आ रहे हैं या नहीं। साथ ही उम्रदराज लोगों को भी अपने दांतों का उतना ही ख्याल रखना चाहिए, जितना हम बच्चों के लिए सजगता रखते हैं।
डेंटिस्ट कई बीमारियों के लिए चेकअप करता है, जैसे मसूड़े की बीमारी, ओरल कैंसर, डायबिटीज़ और कुछ सेक्सुअली ट्रांस्मिटेड डिसीज़ इत्यादि।
आप डेन्टिस्ट के पास जाने से पहले याद रखें
आपको डेन्टिस्ट से जो भी सवाल पूछना है उसे लिख लीजिए। कहीं ऐसा ना हो कि आप डेंटिस्ट से कुछ ज़रूरी सवाल पूछना भूल जाएं।
अपने इंश्योरेंस, मेडिकल और डेन्टल स्कीम की जानकारी रखें।
अपने पुराने डेन्टल रिकॉर्ड और एक्स-रे वगैरह साथ लाएं। अगर आपके पुराने डेन्टिस्ट ने आपको रिकॉर्ड नहीं दिए हैं, उससे वो रिकार्ड ले लें, या उसे नए डेंटिस्ट को रिकॉर्ड देने को कहें।
अगर बच्चे को साथ ले जा रहे है तो उसे डराए नहीं। ऐसा जताएं कि डेंटिस्ट के पास जाने के लिए आप बहुत उत्साहित हैं।
अपने इंश्योरेंस, मेडिकल और डेन्टल स्कीम की जानकारी रखें।
अपने पुराने डेन्टल रिकॉर्ड और एक्स-रे वगैरह साथ लाएं। अगर आपके पुराने डेन्टिस्ट ने आपको रिकॉर्ड नहीं दिए हैं, उससे वो रिकार्ड ले लें, या उसे नए डेंटिस्ट को रिकॉर्ड देने को कहें।
अगर बच्चे को साथ ले जा रहे है तो उसे डराए नहीं। ऐसा जताएं कि डेंटिस्ट के पास जाने के लिए आप बहुत उत्साहित हैं।
डेंटल आपका इलाज कैसे कर सकता है?
एक्स-रे निकालना - जब आप डेन्टिस्ट के क्लीनिक में जाते हैं, तो बहुत सी जांच शुरू हो जाती है। शायद आपके मुंह का एक्स रे भी निकाला जाए। एक्स रे से पता चलता है कि आपके दांत कितने स्वस्थ्य या मजबूती से अपनी जगह पर जमे हुए हैं।
एक्स रे से मुंह के अंदर की हड्डियां भी दिख जाती हैं। इससे केविटी का पता चल जाता है। एक्स रे निकालने के लिए डेन्टिस्ट आपके मुंह के अंदर एक स्पेशल फिल्म डालकर एक्स रे मशीन का इस्तेमाल करता है। डेंटिस्ट आम तौर पर चार एक्स रे निकालते हैं और आप कुछ ही मिनट में उन्हें देख भी सकते हैं।
दूसरा कदम - दांतों की सफ़ाई
दांतों की जांच के दौरान डेन्टिस्ट मिरर और मेटल इन्स्ट्रूमेंट का इस्तेमाल करते हैं। मेटल इन्स्ट्रूमेंट की मदद से वो दांतों में जमी गंदगी साफ करते हैं, क्योंकि गंदगी से धीरे-धीरे दांत कमज़ोर पड़ सकते हैं। इसके अलावा डेंटिस्ट एक ट्यूब की मदद से मुंह से लार निकाल सकता है।
आपके दांतों की सफाई के लिए डेन्टिस्ट इलेक्ट्रिक ब्रश और स्पेशल टूथपेस्ट का इस्तेमाल करता है। इससे आपके दांत चिकने और चमकीले नजऱ आते हैं। डेंटिस्ट आपके दांतों को फ्लॉस भी करता है।
तीसरा कदम - फ्लोराइड ट्रीटमेंट
आपको फ्लोराइड ट्रीटमेंट भी दिया जा सकता है। फ्लोराइड एक तरह का खनिज है, जो दांतों को मज़बूत बनाता है, साथ ही केविटी की समस्या नहीं होने देता। ज़्यादातर टूथपेस्ट में फ्लोराइड रहता है।
फ्लोराइड ट्रीटमेंट के तहत दांत का डॉक्टर आपके मुंह में लिक्विड डालकर उसे पूरे मुंह में फैलाने के लिए कहेगा। या आपके दांतों पर डेन्टिस्ट जैल भी लगा सकता है। कुछ देर मुंह में रखने के बाद आप इसे थूक सकते है या पानी से मुंह धो सकते है।
चौथा कदम - मसूड़ों की जांच
डेंटिस्ट आपके दांतों और मसूड़ों की जांच करके देखता है कि केविटी या अन्य बीमारी के लक्षण तो नहीं हैं। आप अपने डेन्टिस्ट से दांतों को स्वस्थ रखने के तरीक़े के बारे में चर्चा करने के साथ ही ये भी पूछ सकते हैं कि कौन-सा खाना दांतों के लिए अच्छा रहेगा। डेन्टिस्ट आपको दांतों को स्वस्थ रखने का तरीक़ा बताएगा।
सारी जांच के बाद अगर आपके दांतों में कुछ समस्या हुई तो डेन्टिस्ट आपको बता देगा। साथ ही वो अगली मुलाकात की तारीख़ भी बता देगा।
एक्स रे से मुंह के अंदर की हड्डियां भी दिख जाती हैं। इससे केविटी का पता चल जाता है। एक्स रे निकालने के लिए डेन्टिस्ट आपके मुंह के अंदर एक स्पेशल फिल्म डालकर एक्स रे मशीन का इस्तेमाल करता है। डेंटिस्ट आम तौर पर चार एक्स रे निकालते हैं और आप कुछ ही मिनट में उन्हें देख भी सकते हैं।
दूसरा कदम - दांतों की सफ़ाई
दांतों की जांच के दौरान डेन्टिस्ट मिरर और मेटल इन्स्ट्रूमेंट का इस्तेमाल करते हैं। मेटल इन्स्ट्रूमेंट की मदद से वो दांतों में जमी गंदगी साफ करते हैं, क्योंकि गंदगी से धीरे-धीरे दांत कमज़ोर पड़ सकते हैं। इसके अलावा डेंटिस्ट एक ट्यूब की मदद से मुंह से लार निकाल सकता है।
आपके दांतों की सफाई के लिए डेन्टिस्ट इलेक्ट्रिक ब्रश और स्पेशल टूथपेस्ट का इस्तेमाल करता है। इससे आपके दांत चिकने और चमकीले नजऱ आते हैं। डेंटिस्ट आपके दांतों को फ्लॉस भी करता है।
तीसरा कदम - फ्लोराइड ट्रीटमेंट
आपको फ्लोराइड ट्रीटमेंट भी दिया जा सकता है। फ्लोराइड एक तरह का खनिज है, जो दांतों को मज़बूत बनाता है, साथ ही केविटी की समस्या नहीं होने देता। ज़्यादातर टूथपेस्ट में फ्लोराइड रहता है।
फ्लोराइड ट्रीटमेंट के तहत दांत का डॉक्टर आपके मुंह में लिक्विड डालकर उसे पूरे मुंह में फैलाने के लिए कहेगा। या आपके दांतों पर डेन्टिस्ट जैल भी लगा सकता है। कुछ देर मुंह में रखने के बाद आप इसे थूक सकते है या पानी से मुंह धो सकते है।
चौथा कदम - मसूड़ों की जांच
डेंटिस्ट आपके दांतों और मसूड़ों की जांच करके देखता है कि केविटी या अन्य बीमारी के लक्षण तो नहीं हैं। आप अपने डेन्टिस्ट से दांतों को स्वस्थ रखने के तरीक़े के बारे में चर्चा करने के साथ ही ये भी पूछ सकते हैं कि कौन-सा खाना दांतों के लिए अच्छा रहेगा। डेन्टिस्ट आपको दांतों को स्वस्थ रखने का तरीक़ा बताएगा।
सारी जांच के बाद अगर आपके दांतों में कुछ समस्या हुई तो डेन्टिस्ट आपको बता देगा। साथ ही वो अगली मुलाकात की तारीख़ भी बता देगा।
Friday, 7 November 2014
ब्रश करने का सही तरीका
- आहिस्ता आहिस्ता ब्रश करें
- सॉफ्ट ब्रिस्टल वाले टूथ ब्रश का उपयोग करें जो आपके मुंह के आकार के हिसाब से हों। बड़ा ब्रश पीछे वाले दांतों तक नहीं पहुंच सकता और छोटे ब्रश को ज्यादा देर लगती है। अगर ब्रश चुनने में आपको कठिनाई हो रही हो तो अपने डेन्टिस्ट से बात करें।
- फ्लोराइड वाले टूथपेस्ट का उपयोग करें। बच्चों को मटर के दाने बराबर टूथपेस्ट दें, और बड़े उतना टूथपेस्ट लें, जितना ब्रिस्टल पर आ जाए।
- दिन में कम से कम दो बार ब्रश करें, पहली बार सुबह उठने के बाद, और दूसरी बार रात को सोने से पहले। अगर आप हर बार खाना खाने के बाद ब्रश करना चाहें, ये सबसे अच्छा होगा। लेकिन अगर आप ऐसा नहीं कर पाते तो पानी से मुंह धोएं, कुल्ला करें, खासकर जब आपने मीठा खाया हो।
- ब्रश सिर्फ दो मिनिट तक ही करना चाहिए। घड़ी देखकर ब्रश करें।
- हर तीन महीने मे अपना टूथब्रश बदल दीजिए, या तब ब्रश बदलिए जब इसके ब्रिस्टल मुडऩे लगें।
- दांतों को सब तरफ से ब्रश करें
- आहिस्ता आहिस्ता दातों को पीछे और आगे से मांजना चाहिए।
- जहां दांत मसूड़ों से मिलते हैं, वहां बहुत आहिस्ते से गोल घुमाकर ब्रश करें। जहां दांतों और मसूड़ों के बीच खाने के कण फंसे हों, उन्हें ब्रिस्टल से हल्के से निकालिए।
- दांतों को सभी तरफ से ब्रश से साफ कीजीए, बाहर की तरफ, अंदर की तरफ, चबाने की तरफ।
- सामने वाले दांतों के अंदर के हिस्से बड़े ब्रिस्टल से साफ करें।
- बदबू पैदा करने वाले रोगाणुओं को निकालने के लिए जीभ पर हल्के से ब्रश करें। इससे सांस में बदबू नहीं रहेगी।
जब निकलने लगे बच्चों के दाँत
बच्चों में दाँत निकलने की शुरुआत 6 से 8 वें महीने में होती है, कुछ बच्चों में देरी से भी दाँत निकलते हैं। आमतौर पर यह बच्चे के स्वास्थ्य पर निर्भर करता है। अगर बच्चों के दाँत देरी से निकलने शुरू होते हैं तो इस बारे में ज्यादा चिंता नहीं करनी चाहिए। दाँत निकलने का क्रम सही होना चाहिए। बच्चों के दाँत पहले नीचे, सामने निकलते हैं, फिर ऊपर के सामने के दाँत आते हैं।
- बच्चे के जब दाँत निकलने शुरू होते हैं तो उसके मसूड़े सूज जाते हैं। उनमें खुजली होती है, इससे उसे हर समय झुंझालाहट होती है। इस दौरान वह अक्सर अपनी ऊँगली मुँह में डालता रहता है।
- उसे अपने आसपास, जो भी चीज दिखाई देती है, वह हर चीज को मुँह में डालता रहता है। इस दौरान सबसे ज्यादा इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि बच्चा, जो कुछ भी मुँह में डाले, वह गंदा न हो।
- आमतौर पर यह कहा जाता है कि दाँत निकलते समय बच्चे को दस्त लग जाते हैं। हालांकि ऐसा होता भी है, लेकिन इसकी खास वजह होती है बच्चे की साफ-सफाई में बरती गई लापरवाही। बच्चे को इस दौरान दस्त तभी लगते हैं, जब कोई गंदी चीज उसके मुँह में चली जाती है।
- हमारे मुँह में जीवाणु हमेशा मौजूद रहते हैं। बच्चे के जब दाँत नहीं होते, उस समय उसके मुँह के अंदर जीवाणुओं की तादाद कम होती है और जैसे-जैसे बच्चे के दाँत निकलते जाते हैं, जीवाणुओं की संख्या भी बढ़ती जाती है, क्योंकि बच्चा जीवाणुओं को झेल नहीं सकता, इसलिए उस का पेट खराब हो जाता है और उसे दस्त लग जाते हैं।
- धीरे-धीरे जब बच्चा जीवाणुओं के साथ अपना तालमेल बिठा लेता है तो उस का पेट भी ठीक हो जाता है। बच्चे को शारीरिक परेशानी हो तो उसे डॉक्टर की सलाह के अनुसार दवा देनी चाहिए।
Wednesday, 5 November 2014
होम्योपैथी : बच्चों के स्वास्थ्य का साथी
पालक जब भी दवाखाने पर अपने बच्चों को लेकर आते हैं तो उनके चेहरे पर अत्यंत प्रसन्नता रहती है। वे बताते हैं कि मेरा बच्चा दूसरे डॉक्टर्स के पास जाने को मना करता है परन्तु आप के पास आने के लिए सहजता से तैयार हो जाता है, बल्कि स्वयं कहता है दवाईयां खत्म हो गई है। मीठी गोली वाले डॉक्टर साहब के पास चलना है।
बच्चे तन-मन से अत्यंत नाजूक होते हैं। कोई भी पीड़ा या कष्ट उन्हें अत्यंत परेशान कर देता है, चाहे वह इंजेक्शन का दर्द हो या जबरदस्ती दी जाने वाली कड़वी दवाईयां। जबरदस्ती करने से डाक्टर या चिकित्सा के खिलाफ हो जाता है। होम्योपैथी में चूंकि मीठी दवाइयों का प्रयोग किया जाता है तथा बच्चे चॉकलेट के बाद सबसे ज्यादा इन मीठी गोलियों को पसंद करते हैं।
होम्योपैथी द्वारा हम बच्चों में होने वाले रोग जैसे दस्त, कब्ज, दांत निकलने के समय होने वाली परेशानियां, रात्री में बिस्तर गीला करना इत्यादि से सहजता के साथ छुटकारा दिला सकते हैं। बच्चों को यदि बार-बार सर्दी-जुकाम, निमोनिया या प्रायमरी कॉम्प्लेक्स होगा तो उनका शारीरिक और मानसिक विकास स्वस्थ बच्चों जैसा नहीं हो सकेगा। होम्योपैथी ऐसी चिकित्सा प्रणाली है, जिसके प्रयोग से बार-बार होने वाले सर्दी-जुकाम, निमोनिया एवं प्रायमरी कॉम्प्लेक्स से छुटकारा पाया जा सकता है तथा इन दवाइयों के प्रयोग से रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाया जा सकता है।
हमारे दवाखाने पर पूर्व में आए कई बच्चे जिन्हें होम्योपैथी दवाइयों का सेवन कुछ माह तक उनके पालकों ने कराया। वे स्वयं ही बताते हैं कि पिछले कई वर्षों से उन बच्चों को सर्दी-जुकाम होता ही नहीं है। कई बच्चों को अस्थमा में होम्योपैथिक दवाइयों का प्रयोग २-३ वर्षों तक कराया जिससे इन्हेलर से छुटकारा एवं अस्थमा से भी पूरी तरह निजात मिल गई है।
छोटे बच्चों को भी पथरी बन जाती है, जिन्हें कुछ माह तक होम्योपैथी दवाइयां देने से पथरी निकल भी जाती है तथा बार-बार पथरी का बनना भी बंद हो जाता है। बच्चों के स्वभाव के लिए होम्योपैथी से बेहतर कुछ हो ही नहीं सकता है, ऐसे बच्चे जो दिनभर रोते रहते हैं या चिड़चिड़ करते हैं, बात-बात पर गुस्सा करते हैं एवं पालकों की बात नहीं मानते हैं, उन्हें होम्योपैथिक दवाइयों की कुछ खुराक से ही पूरी तरह से ठीक किया जा सकता है। होम्योपैथिक दवाइयों द्वारा याददाश्त एवं एकाग्रता को भी बढ़ाया जा सकता है।
डॉ. ए. के. द्विवेदी
बीएचएमएस, एमडी (होम्यो)
प्रोफेसर, एसकेआरपी गुजराती होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज, इंदौर
संचालक, एडवांस्ड होम्यो हेल्थ सेंटर एवं होम्योपैथिक मेडिकल रिसर्च प्रा. लि., इंदौर
बीएचएमएस, एमडी (होम्यो)
प्रोफेसर, एसकेआरपी गुजराती होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज, इंदौर
संचालक, एडवांस्ड होम्यो हेल्थ सेंटर एवं होम्योपैथिक मेडिकल रिसर्च प्रा. लि., इंदौर
शिशु त्वचा की देखभाल
जन्म के समय शिशु की त्वचा नर्म, चिकनी और बेदाग होती है। जैसे-जैसे समय बीतता है, त्वचा को कई प्रकार के वातावरण का सामना करना पड़ता है, जिससे त्वचा की प्राकृतिक सुंदरता नष्ट हो जाती है।
त्वचा का सौंदर्य क्षीण होने का मुख्य कारण है त्वचा की उपेक्षा और इसकी समुचित देखभाल नहीं करना। बच्चों की त्वचा कोमल होती है, इसलिए उसकी विशेष देखभाल की जरूरत होती है। त्वचा की देखभाल का मतलब सिर्फ चेहरे की त्वचा की देखभाल करना ही नहीं, बल्कि इसका अर्थ पूरे शरीर की त्वचा की सुरक्षा करना है।
बच्चों को सॉफ्ट सोप से नहलाना चाहिए। सूखे मौसम में नहाने से पहले तेल मालिश करने से उनकी त्वचा नर्म और साफ रहती है। आयुर्वेद पद्धति मौसम के अनुरूप तेल के चयन की बात कहती है। जैतून, नारियल और सूरजमुखी के तेल गर्मियों के मौसम के लिए अच्छे हैं, जबकि सरसों और बादाम का तेल जाड़ों के मौसम में गुणकारी रहता है।
तिल का तेल आयुर्वेदक मालिश के लिए बहुत लोकप्रिय है, क्योंकि यह तमाम दोषों में संतुलन बनाए रखने में सहायक है। आप अपने बच्चे के लिए इनमें से कोई भी तेल चुन सकती हैं, लेकिन सुनिश्चित कर लें कि यह शुद्ध हो। इसमें सुगंधित पुष्प के कुछ बूंदें, गुलाब या चंदन मिला सकते हैं। इससे प्राकृतिक सुगंध का एहसास होगा।
अपने बच्चे के लिए बहुत ज्यादा सुगंधित या सुवासित तेलों का इस्तेमाल न करें, क्योंकि कुछ सुगंधों से त्वचा में एलर्जी या खुजली होने लगती है। असली तेलों में कुछ मिलाए बिना कभी उनका उपयोग नहीं करें। उन्हें जैतून या तिल के तेल जैसे अन्य तेलों के साथ मिला लें।
कॉस्मेटिक का इस्तेमाल न करें
जब बच्चा छोटा हो तो क्रीम और कॉस्मेटिक्स का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। हाँ, त्वचा का रूखापन दूर करने के लिए इनका उपयोग किया जा सकता है। त्वचा की नमी बरकरार रखने के लिए हलका मॉइश्चराइजर उपयोग कर सकती हैं।
भारी क्रीम से बचें, क्योंकि वह रोमछिद्रों को बंद कर सकती है। खासकर उस समय तो इनके इस्तेमाल से बचें, जब बच्चा किशोरावस्था में प्रवेश कर रहा हो। अगर बच्चे की त्वचा रूखी हो तो बेबीलोशन या क्रीम का इस्तेमाल जारी रखा जा सकता है।
सप्ताह में एक बार दूध में बेसन मिलाकर पेस्ट बना लें। नहाने से पहले इस उबटन को हलके हाथों से बच्चे के शरीर पर रगड़ें। इससे त्वचा की भीतरी सफाई हो जाती है।
किशोरावस्था से पहले यह ध्यान रखें कि त्वचा तैलीय तो नहीं है, ताकि जरूरत पडऩे पर सुरक्षात्मक उपाय किए जा सकें। अगर त्वचा पर चिकनाहट दिखने लगे तो गुलाबजल से चेहरे को रगड़कर साफ करें।
दिन में चेहरे को दो बार से ज्यादा साबुन और पानी से नहीं धोएँ, क्योंकि इससे त्वचा क्षारीय (अल्कालाइन) बन जाती है, जिससे बैक्टीरिया सक्रिय होकर त्वचा को नुकसान पहुँचा सकते हैं।
अनेक बच्चों के शरीर पर जन्म से ही घने बाल होते हैं, लेकिन आमतौर पर समय के साथ उनके बाल कम होते जाते हैं। यह तो स्पष्ट है कि बाल हटाने के तरीके बच्चों पर नहीं आजमाए जा सकते, लेकिन बेसन और दूध का उबटन शरीर पर रगडऩे से माना जाता है कि घने बालों की बढ़त थम जाएगी। त्वचा को निखारने में भी इससे मदद मिल सकती है।
दही को त्वचा पर 15-20 मिनट तक लगाकर धोने से त्वचा में निखार आ जाता है। त्वचा का रंग ज्यादा मायने नहीं रखता। यह इतना महत्वपूर्ण नहीं है, जितना कि त्वचा का स्वास्थ्य। त्वचा का स्वास्थ्य ही सुंदरता के लिए महत्वपूर्ण है।
भारी क्रीम से बचें, क्योंकि वह रोमछिद्रों को बंद कर सकती है। खासकर उस समय तो इनके इस्तेमाल से बचें, जब बच्चा किशोरावस्था में प्रवेश कर रहा हो। अगर बच्चे की त्वचा रूखी हो तो बेबीलोशन या क्रीम का इस्तेमाल जारी रखा जा सकता है।
सप्ताह में एक बार दूध में बेसन मिलाकर पेस्ट बना लें। नहाने से पहले इस उबटन को हलके हाथों से बच्चे के शरीर पर रगड़ें। इससे त्वचा की भीतरी सफाई हो जाती है।
किशोरावस्था से पहले यह ध्यान रखें कि त्वचा तैलीय तो नहीं है, ताकि जरूरत पडऩे पर सुरक्षात्मक उपाय किए जा सकें। अगर त्वचा पर चिकनाहट दिखने लगे तो गुलाबजल से चेहरे को रगड़कर साफ करें।
दिन में चेहरे को दो बार से ज्यादा साबुन और पानी से नहीं धोएँ, क्योंकि इससे त्वचा क्षारीय (अल्कालाइन) बन जाती है, जिससे बैक्टीरिया सक्रिय होकर त्वचा को नुकसान पहुँचा सकते हैं।
अनेक बच्चों के शरीर पर जन्म से ही घने बाल होते हैं, लेकिन आमतौर पर समय के साथ उनके बाल कम होते जाते हैं। यह तो स्पष्ट है कि बाल हटाने के तरीके बच्चों पर नहीं आजमाए जा सकते, लेकिन बेसन और दूध का उबटन शरीर पर रगडऩे से माना जाता है कि घने बालों की बढ़त थम जाएगी। त्वचा को निखारने में भी इससे मदद मिल सकती है।
दही को त्वचा पर 15-20 मिनट तक लगाकर धोने से त्वचा में निखार आ जाता है। त्वचा का रंग ज्यादा मायने नहीं रखता। यह इतना महत्वपूर्ण नहीं है, जितना कि त्वचा का स्वास्थ्य। त्वचा का स्वास्थ्य ही सुंदरता के लिए महत्वपूर्ण है।
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