Wednesday, 30 November 2022

मानसिक विकार भी दूर करती हैं होम्योपैथी की दवाइयां

ज के भागदौड़ भरे जीवन और तनाव पूर्ण काम के माहौल में व्यक्ति बहुत जल्द ही मानसिक विकारों से घिर


जाता है। क्यों मानव मन समुद्र में उठने वाली लहरों के समान है। जैसे समुद्र में लहरे उठती रहती है वैसे ही मानव मन में भी तरह-तरह के विचार समय-समय पर आते-जाते हैं। और जब तरह-तरह के विचार मन में आने-जाने लगे तो हमारे में मन में विकार पैदा करते हैं जिसे हम मानसिक विकार कह सकते हैं। इंदौर के प्रसिद्ध मनोचिकित्सक डॉ. वैभव चतुर्वेदी के अनुसार जय मनुष्य में ये मानोविकार बहुत अधिक बढ़ जाते हैं तो मानसिक के साथ-साथ शारीरिक रोग भी होने लगते हैं। जिसके लिए पीड़ित को एक अच्छे मनोचिकित्सक के पास जाकर अपनी परेशानी बताते हुए इलाज करवाना चाहिए। आजकल की लाइफस्टाइल में मनोविकार तेजी से लोगों में बढ़ रहा है। जिनके कारण बहुत से मानसिक व शारीरिक रोग होते हैं। यदि समय रहते इन विकारों को पहचानकर दूर कर दिया जाए तो बहुत से शारीरिक व मानिसक रोगों से व्यक्ति बच सकता है।

होम्योपैथी से दूर कर सकते हैं मन के विकारों को

मनोविकार विभिन्न प्रकार के होते हैं। इसमें गुस्सा आना, इस अवस्था में व्यक्ति सामान को फेंकता है, मारपीट करता है, चीखता है और धीर-धीरे यह उनका स्वभव बन जाता है। केन्द्रीय होम्योपैथिक अनुसंधान परिषद, आयुष मंत्रालय भारत सरकार के वैज्ञानिक सलाहकार बोर्ड के सदस्य एवं इंदौर के वरिष्ठ होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ. ए.के. द्विवेदी के अनुसार कुछ लोगों को बहुत गुस्सा आता है। वे छोटी-छोटी बातों पर काफी गुस्सा करते हैं। ऐसे में कई बार यह विचार वो खुद करने लगता है कि लोग क्या कहेंगे, तब उसे बहुत अधिक गुस्सा आता है तो वह अपने गुस्से व अपमान को मन में दबा कर रखता है तो कई प्रकार के शारीरिक व मानसिक रोग उत्पन्न होने लगते हैं। ऐसे विकार के लिए होम्योपैथी में कुछ दवाएं हैं जिसमें केमोमिला, नक्स वोमिका, स्टेफीसेंग्रिया, लायकोपोडियम।

  • इस तरह व्यक्ति में डर लगने का भी एक विकार पैदा हो सकता है। इस विकार के दौरान व्यक्ति को अंधेर से, अकेले रहने से, ऊंचाई से, मरने से आदि का सामना करना पड़ता है। तो इससे उसमें मानसिक व शारीरिक रोग पैदा हो सकते हैं। ऐसे में होम्योपैथिक दवा में आर्जेटिकम नाइट्रीकम, एकोनाईट, स्ट्रोमोनियम, एनाकार्डियम दी जा सकती है।
  • व्यक्ति में रोना भी एक प्रकार का विकार हो सकता है। इसमें खासकर महिलाएं हो सकती है जो जरा-जरा सी बात पर रो देती हैं। इसके लिए भी होम्योपैथी में नेट्रम म्यूर, पल्सेटिला, सीपिया दवा है।
  • आत्महत्या करने के बारे में सोचना भी एक तरह का विकार है और आज यह लोगों में काफी हावी है। इसका कारण है कि व्यक्ति भागती-दौड़ती लाइफस्टाल में सबकुछ हासिल करना चाहता है लेकिन कई बार वो इसमें पीछड़ जाता है तो हतोसाहित हो जाता है तब आत्महत्या जैसा विचार उसके मन में आने लगता है। लेकिन औरम मेट, आर्स एल्बम जैसी कुछ होम्योपैथिक दवा देने से इस प्रकार के विचार व्यक्ति में कम हो जाते हैं।
  • होम्योपथी में रोग के कारण को दूर करके रोगी को ठीक किया जाता है। प्रत्येक रोगी की दवा उसकी पोटेंसी, डोज आदि उसकी शारीरिक और मानसिक अवस्था के अनुसार अलग-अलग होती है। अतः बिना चिकित्सीय परामर्श के यहां दी हुई किसी भी दवा का उपयोग न करें।

 

ठंड में कान के दर्द से रहे सजग

मीठा संगीत सुनना तो हर किसी को अच्छा लगता है, लेकिन सोचिए अगर आपके कान में अचानक इतना दर्द होने


लगे कि आप उस संगीत को सुन ही न पाएं तो क्या होगा? ठंड में तो कान का दर्द आपको और भी ज्यादा परेशान कर सकता है। तो अब जरूरी है कि इस परेशानी से बचने के लिए सावधानी बरतनी शुरू कर दें।

हम आपको बता रहे हैं कि कैसे आप अपने कान को रख सकते हैं दर्द से कोसों दूर। केन्द्रीय होम्योपैथिक अनुसंधान परिषद, आयुष मंत्रालय भारत सरकार के वैज्ञानिक सलाहकार बोर्ड के सदस्य एवं इंदौर के वरिष्ठ होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ. ए.के. द्विवेदी के अनुसार सर्दियों का गुलाबी मौसम अपने साथ सेहत से जुड़ीं कई समस्याएं भी साथ लेकर आता है। कान में दर्द होने पर तेल डाल लेना या फिर माचिस की तीली या अन्य नुकीली चीजों की सहायता से कान को साफ करने की गलती न करें।

बहरेपन का इलाज हो सकता है संभव

मालूम हो कि कान शरीर का बेहद संवेदनशील अंग है। इसलिए इसके साथ छेड़छाड़ व्यक्ति के लिए और गंभीर परेशानियां खड़ी कर देती हैं। कान का परदा बहुत नाजुक होता है, और इसके साथ ज्यादा लापरवाही बहरेपन का कारण बन सकती है। इसलिए इस ठंड में जररूरत है आपको कान के प्रति ज्यादा सजग रहने की। कुछ साधारण बातों को ध्यान में रखकर आप सही वक्त पर सही इलाज करवा सकते हैं।

  • अगर कान के परदे का छिद्र बड़ा हो, कभी-कभी कान से खून बहता हो
  • कान में खुजली होती हो, दर्द होता हो
  • कान की समस्या के चलते चक्कर आते हों, या कान में कुछ आवाजें आती हों, तो तुरंत चिकित्सक के पास जाएं और चिकित्सक द्वारा बताई गई उपचार पद्धति अपनाएं। खून और मूत्र की जांच समेत कान का ऑडियोग्राम कराना चाहिए। ऑडियोग्राम कान की सुनने की शक्ति की पहचान करनेवाली एक वैज्ञानिक पद्धति है। इससे कान की स्थिति की समस्त जानकारी हो जाती है।

सावधानियां

  • माचिस की तीली, पिन या अन्य कोई वस्तु कान में न डालें।
  • कान में पानी या धूल-मिट्टी के कण न जाएं, इसका पूरा ध्यान रखें।
  • ठंड में बाहर निकलते समय कान ढक कर निकलें।
  • कान से जुड़ी समस्याओं को अनदेखा करने पर कान में दर्द, बहरापन और कान बहने जैसी बीमारियां हो सकती हैं।


घरेलू उपाय

  • प्याज का गुनगुना रस कान में डालने से कान के दर्द में आराम मिलता है।
  • अदरक के रस में नमक एवं शहद मिलाकर, गुनगुना कर, कानों में डालने से कान के दर्द में आराम मिलता है।
  • मूली का रस, शहद, सरसों का तेल, बराबर मात्रा में मिलाकर, दो-तीन बूंद कान में सुबह-शाम डालने से बहरेपन में राहत मिलती है।
  • कान को साफ कर दो-दो बूंद स्पिरिट तीन-चार दिन कान में डालने से कान का बहना ठीक होता है।
  • तुलसी के पत्तों का रस गुनगुना कर दो-दो बूंद प्रात: और सायं डालने से कान के दर्द में राहत मिलती है और बहरापन भी ठीक होता है। अगर इससे भी समस्या का समाधान न हो तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें और अपना इलाज कराएं।

बहरे हो जाएंगे और पता भी नहीं चलेगा

यूं तो कान से जुड़ी बीमारी का उम्र से कोई विशेष संबंध नहीं है, क्योंकि यह किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकती है। फिर भी 50 वर्ष की उम्र से अधिक व्यक्तियों में कान से जुड़ी समस्याएं बड़े पैमाने पर देखने को मिलती हैं। इसलिए ठंड में बुजुर्गों को कान के प्रति ज्यादा सजग रहना चाहिए।

Saturday, 26 November 2022

अप्लास्टिक एनीमिया में होम्योपैथिक चिकित्सा एक सफल विकल्पः डॉ. ए. के. द्विवेदी

इंदौर (लखनऊ) । हीमोग्लोबिन और प्लेटलेट्स कम होने के कारण रक्तस्राव बन्द होना आसान नहीं होता और खून की कमी हो जाती है खून की कमी से अन्य कई समस्याएँ बढ़ जाती हैं। तब, कई मामलों में होम्योपैथी से बीमारी में, लक्षणों में फायदा मिलता है. ये कहना है पत्रकारों से बात करते हुए केन्द्रीय होम्योपैथिक अनुसंधान परिषद, आयुष मंत्रालय भारत सरकार के वैज्ञानिक सलाहकार बोर्ड के सदस्य एवं इंदौर मध्य प्रदेश के वरिष्ठ होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ. ए.के. द्विवेदी का जो, एक दिन के लखनऊ प्रवास पर आये थे।

डॉ. द्विवेदी आज अप्लास्टिक एनीमिया की होम्योपैथिक चिकित्सा पर लखनऊ में आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय होम्योपैथिक सेमिनार में अपना व्याख्यान देने आये थे। बिहार के एक अप्लास्टिक एनीमिया की होम्योपैथिक चिकित्सा से ठीक हुआ मरीज मसीहा आजम ने अपनी बीमारी और होम्योपैथिक इलाज से मिले फायदे के बारे में लोगों को अवगत कराया। 

डॉ. ए.के. द्विवेदी ने बताया कि उनके पास 23 साल पहले अप्लास्टिक एनीमिया का पहला मरीज आया जिसके मुुँह के तालू (अपर पैलेट) से ब्लीडिंग (रक्तस्राव) हो रहा था जिसको चिकित्सकों ने बताया था कि हीमोग्लोबिन और प्लेटलेट्स कम होने के कारण रक्तस्राव बन्द होना बहुत मुश्किल है और समय लग सकता है। उस मरीज को शाम को होम्योपैथिक दवा दी, अगले दिन सुबह मरीज के तालू से निकलने वाला खून बंद हो गया। कुछ दिन और दवाई लेने के बाद से आज तक उन्हें इस तरह की कोई परेशानी नहीं हुई।

डॉ. द्विवेदी ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि पिछले 23 वर्षों के कठिन परिश्रम, अध्ययन और लगन का लाभ जब मुम्बई दिल्ली, पुणे, लखनऊ, जैसे बड़े शहरों के ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण देश से असाध्य बीमारियाँ लेकर मरीज आते हैं और होम्योपैथिक दवा से ठीक होकर स्वास्थ्य लाभ उठा रहे होते हैं, तब सन्तुष्टि का अनुभव होता है।

20 वर्षों से अप्लास्टिक एनीमिया के सैकड़ों मरीजोें को होम्योपैथिक दवा से मिल चुकी है राहत

बच्चे, महिलाएँ या अधिक उम्र वाले मरीजों को कैंसर के इलाज में कीमोथेरेपी रेडियोथेरेपी के बाद जब प्लेटलेट्स कम हो जाते हैं और सभी प्रकार के प्रयास के बावजूद भी ठीक नहीं होते हैं तब डाॅ. द्विवेदी के पास इन्दौर पहुँचते हैं और उनके होम्योपैथिक इलाज से स्वस्थ हो जाते हैं। अप्लास्टिक एनीमिया की होम्योपैथिक चिकित्सा पर जिस तरह से डॉ द्विवेदी प्रयास कर रहें हैं पूरे देश में इस तरह का प्रयास अन्य चिकित्सक नहीं कर रहे हैं। 

डॉ. द्विवेदी को मिला सम्मान

अन्तर्राष्ट्रीय होम्योपैथिक सेमिनार में लंदन से पधारे डॉ. शशि मोहन शर्मा ने हैनिमैन कॉलेज ऑफ होम्योपैथी, यूनाइटेड किंगडम की ओर से डॉ. ए.के. द्विवेदी को अप्लास्टिक एनीमिया के मरीजों को होम्योपैथिक चिकित्सा द्वारा राहत देने के लिए सम्मानित किया।

रक्ताल्पता : होम्योपैथी बढ़ाए आपका रक्त

क्ताल्पता का मतलब होता है रक्त की कमी, जिसका वास्तविक अर्थ है शरीर के प्रत्येक कोशिकाओं और ऊत्तक


तक रक्त की कमी, जिसके कारण रक्ताल्पता से पीड़ित व्यक्ति (मरीज) के शरीर में शक्ति की कमी होती चली जाती है। उससे दैनिक कार्य नहीं हो पाते हैं बोलने में तकलीफ होती है। श्वांस लेने में तकलीफ होती है। सीढ़िया नहीं चढ़ पाते हैं, चलने में हांफने लगते हैं। लोग यदि ध्यान न दे तो यह लक्ष्ण अस्थमा जैसे प्रतीत होते हैं।

वैज्ञानिक सलाहाकर बोर्ड, केंद्रीय होम्योपैथिक अनुसंधान परिषद, आयुष मंत्रालय भारत सरकार के सदस्य एवं सेंटर के संचालक व सुप्रसिद्ध होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ. एके द्विवेदी के अनुसार एक  बार एक मरीज अपनी पत्नी को लेकर मेरे पास आए। उन्होंने बताया कि पत्नी को अस्थमा हो गया है और काफी समय से इलाज करा रहे हैं लेकिन श्वांस की परेशानी में कोई आराम नहीं मिला है। मैंने जब बारीकी से परीक्षण किया तो मुझे पैन सिस्टोलिक मरमर मिला जो एनिमिया में मिलता है। मैंने उन्हें समझाया की कोशिश की कि आपको रक्ताल्पता है अस्थमा नहीं। तो वे पहले तो मेरी बात मानने को तैयार नहीं हुए। फिर ऐसा निर्यण हुआ कि क्यों न हिमोग्लोबिन जांच कराकर देखा जाए और जब हिमोग्लोबिन जांच कराया तो उनका 7.4 ग्राम हिमोग्लोबिन आया।

इसके  बाद 3-4 माह तक लगातार फासफोरस एवं फैरम मेट 3x दिया गया तथा खाने में चुकंदर, भूना चना, गुड़ और दूध का सेवन ज्यादा करने को बोला। फिर वे बिल्कुल ठीक हो गई और श्वांस की समस्या और कमजोरी भी ठीक हो गई।

कई बार चिकित्सक की थोड़ी सी लापरवाही भी मरीज को लंबे समय की पीड़ा दे सकती है। इसलिए केवल लक्षणों के आधार पर दवा देना पूरी तरह से ठीक नहीं है। हमें मरीजों के कुछ पैथोलॉजिकल परीक्षण एक्सरे इत्यादि समय-समय पर कराते रहना चाहिए।

फैरम फआसफोरस एवं फैरम मेट कारगर साबित होती है

डॉ. द्विवेदी बताते हैं हमारे पास कई ऐसे कैंसर के मरीज आते और जिन्हें कीमोथैरापी व रेडियोथैरापी के बाद रक्ताल्पता हो सकती है। इसमें भी फैरम फासफोरस एवं फैरम मेट अत्यंत कारगर साबित होती है। ब्लीडिंग पाईल्स अथवा महावारी में अत्याधिक रक्त स्त्राव भी रक्ताल्पता का प्रमुख कारण हो जो कि शर्म के कारण लोग तुरंत परिवार वालों को या डॉक्टर को नहीं बता पाते हैं और लंबे समय तक रक्तस्त्राव होने के कारण कमजोरी व रक्ताल्पता होना निश्चित है। ऐसे मरीजों में हेमामिलिस, लेकेसिस, फैरम फास, एसिड नाईट्रिक, आर्सेनिक, सैबाइना इत्यादि दवाई कारगर है। होम्योपैथिक दवाइयों से हम रक्तालप्ता के मरीजों को पूरी तरह से ठीक कर सकते हैं बर्शें हम रक्ताल्पता के कारण को समझकर यदि उसके कारण को भी जब दूर कर सकें।

बच्चों में आयरन की कमी से एनीमिया

बच्चों के लिए आयरन बहुत अधिक जरूरी होता है क्योंकि शरीर में आयरन की कमी से उन्हें एनीमिया नामक रोग हो सकता है। डॉ. एके द्विवेदी के अनुसार बच्चों को अपने शरीर के लिए जरूरी आयरन भोजन से मिलता है।

कुछ महत्वपूर्ण बातें जिनका रखना चाहिए ध्यान

जो आयरन एनिमल सोर्स (चिकन, फिश) आदि से शरीर में आता है उसकी उपलब्धता शरीर में अधिक होती है। कुछ खाद्य पदार्थ ऐसे होते हैं जो कि भोजन में मौजूद आयरन की शरीर में उपलब्धता बढ़ाते हैं। जैसे फिश, चिकन, संतरा, स्ट्राबेरी, अंगूर, सब्जियों में ब्रोकली, टमाटर, आलू, मिर्च आदि। अतः भोजन के साथ में इन पदार्थों के सेवन से भोजन में मौजूद आयरन बच्चों के शरीर को अधिक उपलब्ध होता है। बच्चों में आयरन की कमी को दूर करने के लिए उन्हें विटामिन सी से भरपूर खाना जैसे टमाटर, ब्रोकली, संतरा, स्ट्राबेरी आदि भी अधिक मात्रा में देना चाहिए।

एक साल के बाद बच्चे के दूध की मात्रा आधा लीटर प्रतिदिन से अधिक न हो। खाना खाने के समय के आसपास बच्चों को चाय या कॉफी नहीं देना चाहिए। चाय या कॉफी में मौजूद टेनिन आयरन के पाचन को कम करता है। शुरुआत के दो साल बच्चों को अधिक आयरनयुक्त आहार दें। मार्कट में उपलब्ध आयरन सर्टिफाइड तैयार खाद्य पदार्थ भी दे सकते हैं।

नोटः- इस लेख में बताई गईं दवाओं के प्रयोग से पहले आप अपने डॉक्टर की सलाह जरूर ले लें। ताकि आपको आपनी बीमारी अथवा परेशानी का सही इलाज मिले और आपको राहत मिल सकें।

Thursday, 24 November 2022

अंजीर खाए एनीमिया भगाएं

गर आपका इम्यून सिस्टम मजबूत है तो आपको सेहत संबंधी समस्याओं का सामना कभी भी नहीं करना पड़ेगा।


रोगों से लड़ने की क्षमता इस पर निर्भर करती है कि आप कितनी पौष्टिक और संतुलित चीजों का सेवन करती हैं। फलों में एंटीऑक्सीडेंट तत्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं जो संक्रमण और रोग से लड़ने की क्षमता बढ़ाते हैं।

ऐसा ही एक फल है अंजीर। इसमें कैल्शियम और लौह तत्व प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। यह दिमाग को शांत रखता है और शरीर को आराम देता है। डायबिटीज में अंजीर बहुत उपयोगी होता है। अंजीर में आयरन और कैल्शियम प्रचुर मात्रा में पाए जाने के कारण यह एनीमिया में लाभप्रद होता है। अंजीर में फॉस्फोरस, मैगनीज, सोडियम, पोटैशियम और क्लोरीन पाया जाता है। इसका सेवन करने से डायबिटीज, सर्दी-जुकाम, अस्थमा और अपच जैसी तमाम व्याधियां दूर हो जाती है।

  • अंजीर पोटैशियम का अच्छा स्त्रोत है जो ब्लड प्रेशर और ब्लड शुगर को नियंत्रित रखने में मदद करता है।
  • अंजीर में फाइबर होता है जो वजन को संतुलित रखता है और ओबोसिटी को कम करता है।
  • सूखे अंजीर में फेनोल, ओमगा-3, ओमेगा-6 होता है। यह फैटी एसिड कोरोनरी हार्ट डिजीज के खतरे को कम करने में मदद करता है।
  • इसमें पाए जाने वाले फाइबर से पोस्ट मेनोपॉजल ब्रेस्ट कैंसर होने का भय नहीं रहता।
  • अंजीर में कैल्शियम बहुत होता है, जो हड्डियों को मजबूत बनाने में सहायक होता है।
  • कम पोटैशियम और अधिक सोडियम लेवल के कारण हाइपरटेंशन की समस्या पैदा हो जाती है। लेकिन अंजीर में पोटैशियम अधिक होता है और सोडियम कम होता है इसलिए यह हाइपरटेंशन की समस्या होने से बचाता है।
  • दो अंजीर को बीच में से आधा काटकर एक ग्लास पानी में रातभर के लिए भिगो दें। सुबह उसका पानी पीने और अंजीर खाने से रक्त संचार बढ़ता है।

न्यूट्रीशनल वैल्यू चार्ट 

1 अंजीर में 49 कैलरी, 0.579 ग्राम प्रोटीन, 12.42 ग्राम कार्ब, 2.32 ग्राम फाइबर, 0.222 ग्राम कुल वसा, 0.0445 ग्राम सैचुरेटेड फैट. 0.106 ग्राम पॉलीअनसैचुरेटेड फैट, 0.049 ग्राम मोनोसैचुरेटेड फैट और 2 मिग्रा सोडियम मिलता है। 

एनीमिया में होम्योपैथिक उपचार से भी राहत मिल सकती है

वैज्ञानिक सलाहाकर बोर्ड, केंद्रीय होम्योपैथिक अनुसंधान परिषद, आयुष मंत्रालय भारत सरकार के सदस्य एवं सुप्रसिद्ध होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ. एके द्विवेदी के अनुसार एनीमिया के इलाज में होम्योपैथिक चिकित्सा से भी राहत पायी जा सकती है। डॉ. द्विवेदी कहते हैं कि होम्योपैथिक दवाईयों का सेवन करने से पहले अपने चिकित्सक की सलाह लेना बिल्कुल न भूलें। याद रहे दवा हमेशा किसी अच्छे होम्योपैथिक चिकित्सक की देखरेख में ही लेनी चाहिए।

Tuesday, 22 November 2022

ठंड के मौसम में गर्म पानी से नहाने पर ना करें यह बड़ी गलतियां

र्दियों का मौसम शुरू हो गया है। ठंड भी धीरे धीरे बढ़ने लगी है। ऐसे में इस बदलते मौसम में न सिर्फ व्यक्ति के खान-पान बल्कि रहन-सहन की आदतों में भी काफी बदलाव आ जाता है। लेकिन ऐसे में व्यक्ति अपनी दिनचर्या


को व्यवस्थित न रखें और सही पौषक आहार ना ले तो कई गंभीर रोगों की चपेट में आने लगता है। इसके अलावा सर्दियों के मौसम में अधिकांश लोग गर्म पानी का उपयोग नहाने में करते हैं। लेकिन आप सोच रहे होंगे कि हम सर्दियों में गर्म पानी से नहाने वाली बात क्यों कर रहे हैं जबकि ठंड में गर्म पानी से व्यक्ति को नहाने में अच्छा महसूस होता है। इसलिए व्यक्ति कई बार तो घंटों-घंटों तक गर्म पानी से नहाते हैं लेकिन क्या आपको पता है यह ज्यादा देर तक गर्म पानी से नहाते रहना आपकी खुबसूरती को भी खराब करता है। ऐसे में आइए जानते हैं कि सर्दियों में अधिकांश लोग अक्सर जाने-अनजाने में कौन कौन सी बड़ी गलतियां करते हैं....

ज्यादा देर तक गर्म पानी का शावर लेना सेहत के लिए अच्छा नहीं

 वैज्ञानिक सलाहाकर बोर्ड, केंद्रीय होम्योपैथिक अनुसंधान परिषद, आयुष मंत्रालय भारत सरकार के सदस्य एवं सेंटर के संचालक व सुप्रसिद्ध होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ. एके द्विवेदी के अनुसार ठंड के मौसम में ज्यादा देर तक गर्म पानी का शावर लेना सेहत के लिए अच्छा नहीं है। इससे हमारी बॉडी और दिमाग दोनों पर बुरा असर पड़ता है। दरअसल गर्म पानी केराटिन नाम के स्किन सेल्स को डैमेज करता है, जिससे त्वचा में खुजली, ड्रायेनस और रैशेस की समस्या बढ़ जाती है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, गर्म पानी शरीर के नैचुरल ऑयल को ज्यादा तेजी से खत्म करता है और स्किन को भी तेजी से डैमेज करता है। इस सर्कुलेशन को बैलेंस करने के लिए कई लोग या तो बहुत ज्यादा ठंडे या फिर ज्याद गर्म पानी से नहाते हैं। लेकिन सही मायने में तापमान के हिसाब से ही हमें पानी का इस्तेमाल करना चाहिए। वहीं गर्म पानी से नहाने से आंखों में समस्या होती है। गर्म पानी से आंखों की भी नमी खत्म होने लगती है जिसकी वजह से आंखों में हल्की खुजली की समस्या हो सकती है। अच्छा होगा कि गर्म या ठंडे पानी की बजाय नॉर्मल पानी का इस्तेमाल करें।

ओवरहीटिंग का शिकार हो सकता है शरीर

सर्दियों में व्यक्ति खुद को गर्म रखने के लिए ज्यादा गर्म कपड़े पहनते हैं। लेकिन ऐसा करने से उन्हें बचना चाहिए। क्योंकि ज्यादा गर्म कपड़ने पहने से आपका शरीर कई बार ओवरहीटिंग का शिकार हो जाता है। दरअसल शरीर को ठंड लगने पर व्यक्ति का इम्यून सिस्टम व्हाइट ब्लड सेल्स प्रोड्यूस करता है, जो इंफेक्शन और बीमारियों से व्यक्ति का रक्षा करते हैं। वहीं बॉडी के ओवरहीट होने पर व्यक्ति की इम्यूनिटी अपना काम नहीं कर पाती है। इसलिए ज्यादा गर्म कपड़ने पहने से बचे।

दिनभर में 2 से 3 कप ही चाय या कॉफी पिएं

सर्दियों में व्यक्ति की भूख भी बढ़ जाती है। ऐसे में अधिकांश सयम व्यक्ति सेहत की परवाह किए बिना जमकर कुछ भी खाने लगता है। ऐसे में यह आदत आपके वजन बढ़ने का कारण बन सकती है। लेकिन सर्दियों में व्यक्ति को भूख लगने पर फाइबर से भरपूर सब्जियों और फलों का सेवन करने की कोशिश करना चाहिए। साथ ही गर्म चीजें अपने भोजन में इस्तेमाल करना चाहिए। वहीं देखने में आता है कि सर्दियों में व्यक्ति शरीर को गर्म रखने और लगातार काम करने के लिए दिन में कई कई बार चाय अथवा कॉफी पिया करते हैं। लेकिन ऐसा करना भी आपकी सेहत को नुकासन पहुंचा सकता है। व्यक्ति को ध्यान रखना चाहिए और कोशिश करना चाहिए कि वो दिनभर में केवल 2 से 3 कप ही चाय अथवा कॉफी पिएं। वहीं सर्दियों में लोगों को पानी की प्यास भी कम लगती है ऐसे में शरीर को चाहिए उतना पानी नहीं शरीर में नहीं जा पाता। लेकिन लोगों को समझना होगा कि गर्मी के मौसम में जिस तरह शरीर को पानी की आवश्यकता होती है उसी तरह सर्दियों में भी शरीर को पानी की उतनी ही आवश्यकता होती है। क्योंकि यूरीनेशन, डाइजेशन और हल्के-हल्के पसीने के रूप में पानी आपके शरीर से बाहर निकलता ही है। ऐसे में पानी की कमी से आपका शरीर डीहाइड्रेट हो सकता है जो भविषअय में किडनी और आपके पाचन में समस्याएं बढ़ा सकता है।

Thursday, 17 November 2022

सर्दियों के दिन में शिशुओं के स्वास्थ्य का रखें ख्याल

पने नवजात शिशु की देखभाल के लिए हर मां चिंतित रहती है और वह इसके लिए हर संभव कोशिश भी करती


है। खासतौर से जब शिशु पहली बार सर्दी के मौसम का सामना कर रहा हो तो मां को भी कई बार समझ में नहीं आता कि वह अपने बच्चे को इस मौसम में होने वाली समस्याओं से कैसे बचाए....

सर्दी के मौसम में वायरस और बैक्टीरिया बहुत तेजी से सक्रिय हो जाते हैं। नवजात शिशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता पूर्णतः विकसित नहीं होती। इसलिए ये वायरस बहुत तेजी से उनके शरीर पर हमला करते हैं। बच्चों के शरीर में मौजूद एंटीबॉडीज और बैक्टीरिया के बीच संघर्ष होता है तो इसी की प्रतिक्रियास्वरूप उन्हें सर्दी-जुकाम, बंद नाक, सांस लेने में तकलीफ, बुखार, गले और कान में इनफेक्शन जैसी समस्याएं देखने को मिलती है। बच्चों में होने वाली इस समस्या को सीजनल एफेक्टेड डिसॉर्डर (एसएडी) कहा जाता है।

दरअसल सर्दी के मौसम को लेकर लोगों के मन में कई तरह की भ्रांतियां बनी हुई है। अकसर लोग ऐसा समझते हैं कि इस मौसम में बच्चे ज्यादातर बीमार ही रहते हैं। पर सच्चाई यह है कि यह मौसम स्वास्थ के लिए बहुत अच्छा होता है। अगर आप इन बातों का ध्यान रखें तो इस मौसम में भी आपका शिशु स्वस्थ रहेगा।

 

क्या करें....

  • शिशु की सफाई का पूरा ध्यान रखें। उसे प्रतिदिन गुनगुने पानी से नहलाएं। ऐसा सोचना गलत है कि नहलाने से बच्चों को सर्दी-जुकाम हो जाता है।
  • अगर सर्दी-जुकाम के कारण बच्चे की नाक बंद हो तो एक ग्लास पानी उबाल कर उसे ठंडा करें और उसमें ¼ टी स्पून नमक मिलाकर ड्रापर से दो-दो बूंद उसकी नाक में डालें। इससे उसकी बंद नाक आसानी से खुल जाएगी।
  • ऐसी समस्या होने पर बच्चे को स्टीम देना भी उसके लिए फायदेमंद साबित होगा।
  • आप शिशु के कमरे में रूम हीटर चलाती है तो वहां पानी से भरा बर्तन रखें, इससे कमरे में ऑक्सीजन व नमी का स्तर संतुलित रहता है।
  • रात को सुलाते समय बच्चे को डॉयपर जरूर पहनाएं वरना देर तक गीले बिस्तर पर रहने से उसे सर्दी लग सकती है।

क्या न करें

  • बच्चे को बहुत ज्यादा कपड़े न पहनाएं क्योंकि इससे पसीना आता है और पसीने की ठंडक के कारण उसे सर्दी-जुकाम हो सकता है।
  • शिशु को सुलाते समय उसका चेहरा न ढके। इससे उसकी सांस घुट सकती है।
  • बच्चे के कमरे में लगातार रूम हीटर न चलाएं।
  • नहलाने के तुरंत बाद शिशु को खुली हवा में न लेकर जाएं। इससे उसे सर्दी-जुकाम हो सकता है।
  • शाम को सूरज ढलने के बाद शिशु को साथ लेकर घर से बाहर खुली हवा में न निकलें।
  • एक वर्ष से कम उम्र के बच्चों के सिर की त्वचा बहुत कोमल होती है इसलिए उन्हें सीधे ऊनी कैप न पहनाएं बल्कि पहले सूती कपड़े के टुकड़े को स्कार्फ की तरह उसके सिर पर बांधने के बाद ही उसे ऊनी कैप पहनाएं।
  • बच्चे को सर्दी जुकाम या बुखार होने पर उसे बिना डॉक्टर की सलाह के कोई दवा न दें।

 

चिकित्सक से सलाह लेकर करें होम्योपैथिक उपचार

वहीं बच्चों में सर्दी के उपचार में कुछ होम्योपैथिक दवाएं प्रायः उपयोग में लाई जाती है। होम्योपैथिक चिकित्सक और केंद्रीय होम्योपैथिक अनुसंधान परिषद, आयुष मंत्रालय, भारत सरकार के वैज्ञानिक सलाहकार बोर्ड के सदस्य डॉ. एके द्विवेदी के अनुसार होम्योपैथी दवाईयां काफी सुरक्षित है। इनका शरीर पर किसी भी प्रकार का कोई दुष्प्रभाव नहीं होता है। हालांकि होम्योपैथिक दवाओं का उपयोग करने से पूर्व होम्योपैथिक चिकित्सक से सलाह लेकर ली जा सकती है। हालांकि कुछ लक्षण और उसमें उपयोग में लाई जाने वाली दवाएं निम्न है...

  1. लक्षण- शुष्क, ठंडी हवा लगने से अचानक सर्दी-जुकाम होना, छीकें व नाक बहना, बेचैनी एवं घबराहट होना व प्यास का बढ़ जाना। इसमें एकोनाइटम नेपेलस 30 का उपयोग किया जा सकता है।
  2. लक्षण – सर्दी-जुकाम की अचानक प्रबल शुरुआत, ज्वर के साथ सिर दर्द तथा फड़कन, गला खराब व नाक बहना। इसमें बैलाडोना 30 का उपयोग किया जा सकता है।
  3. लक्षण – शीत ऋतु में जुकाम, पतला, पानी जैसा और तीखा नासिका स्त्राव, नाक बंद का आभास होना, बार-बार छीकें आना, बार-बार थोड़ी मात्रा में पानी पीने की इच्छा, गर्म पेय लेने से अच्छा महसूस करना। इसमें आर्सेनिक ऐलबम 30 इस्तेमाल की जा सकती है।

 

नोटः- इस लेख में बताई गईं दवाओं के प्रयोग से पहले आप अपने डॉक्टर की सलाह जरूर ले लें। ताकि आपको आपनी बीमारी अथवा परेशानी का सही इलाज मिले और आपको राहत मिल सकें।

Wednesday, 16 November 2022

डॉ. द्विवेदी, तीसरी बार केंद्रीय होम्योपैथी अनुसंधान परिषद, आयुष मंत्रालय की वैज्ञानिक सलाहकार बोर्ड के सदस्य मनोनीत

इंदौर। स्वास्थ्य के चित्र में निरंतर बेहतर सेवाकार्य कर रहे इंदौर के प्रख्यात होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ. ए के. द्विवेदी को केंद्रीय होम्योपैथिक अनुसंधान परिषद 

आयुष मंत्रालय भारत सरकार की वैज्ञानिक सलाहकार बोर्ड का लगातार तीसरी बार सदस्य मनोनीत किया गया है। यह जानकारी केन्द्रीय होम्योपैथिक अनुसंधान परिषद के डायरेक्टर जनरल डॉ. सुभाष कौशिक ने पत्र द्वारा दी। उन्होंने बताया कि इस अत्यंत महत्वपूर्ण समिति में डॉ. द्विवेदी का वर्तमान कार्यकाल पुनः 3 वर्ष का होगा और उनकी सेवाएं तत्काल प्रभाव से प्रारंभ हो जाएंगी।

डॉ. द्विवेदी को सांसद ने दी दिली बधाई

आयुष मंत्रालय की वैज्ञानिक सलाहकार समिति के लगातार तीसरी बार सदस्य मनोनीत किए जाने पर इंदौर के सांसद शंकर लालवानी ने डॉ. द्विवेदी को हार्दिक बधाई दी है। उन्होंने कहा कि इस समिति की महत्ता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसमें समूचे देश के महज 10 वरिष्ठ चिकित्सकों को ही स्थान प्रदान किया गया है और डॉक्टर द्विवेदी इस समिति में शामिल मध्यप्रदेश के इकलौते प्रतिनिधि हैं। उल्लेखनीय है कि इस समिति की अध्यक्षता पद्मश्री डॉ. वी.के. गुप्ता कर रहे हैं और इसके सदस्यों में डॉ. द्विवेदी के अलावा डॉ. एन. राधा (केरल), डॉ. आलोक पारिख (आगरा), डॉ. संगीता दुग्गल (दिल्ली), डॉ. रथिन चक्रवर्ती (बंगाल), डॉ. कजंकशा घोष (मुंबई), डॉ. एम. नारा सिंह (मणिपुर), डॉ. हर्ष निगम (कानपुर) और डॉक्टर जसवंत पाटिल (महाराष्ट्र) से शामिल हैं। बोर्ड के सचिव,  केन्द्रीय होम्योपैथी अनुसंधान परिषद के महानिदेशक डॉ. सुभाष कौशिक जी हैं।

Monday, 14 November 2022

विश्व मधुमेह दिवसः डायबिटीज को हराने में मददगार हो सकती है होम्योपैथिक चिकित्सा

14 नवंबर को बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है। लेकिन 14 नवंबर को विश्व मधुमेह दिवस पर भी होता है। और आज मधुमेह यानि डायबिटीज किसी भी उम्र के व्यक्ति को प्रभावित कर रही है। मधुमेह एक जिंदगीभर चलने


वाली बिमारी है जिसमें आपके रक्त शर्करा (ब्लड शुगर) का स्तर नार्मल से ऊंचा हो जाता है वर्तमान में डायबिटीज के मरीज दुनिया में बढ़ते जा रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक दुनियाभर में हर साल डायबिटीज से करीब 40 लाख मरीजों की मौत होती है। इसलिए वैश्विक स्तर पर लोगों को मधुमेह के बारे में जागरूक करने के लिए 14 नवंबर को विश्व मधुमेह (डायबिटीज) दिवस मनाया जाता है। पहली बार साल 1991 में वर्ल्ड डायबिटीज डे मनाया गया था और इसकी घोषणा अंतराष्ट्रीय मधुमेह महासंघ  (इंटरनेशनल डायबिटीज फेडरेशन, आईडीएफ) और विश्व स्वास्थ्य संगठन ने की थी।

मधुमेह पर पाया जा सकता है काबू

वर्तमान की भागदौड़ भरी जीवनशैली और अनियमित दिनचर्या और समय पर भोजन आदि नहीं कर पाने से लोग मधुमेह की गिरफ्त में आ रहे हैं। लेकिन बीमारी का वक्त पर पता लग जाए और उपचार शुरू किया जाए तो मधुमेह पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है। एक समय था जब समाज में भ्रांतियां थी कि डायबिटीज एक बार किसी को हो जाए तो जीवनभर इससे छुटकारा नहीं मिल सकता लेकिन आज मेडिकल साइंस की दुनिया में ऐसा नहीं है। यदि बीमारी का पता लगने पर समय पर उपचार शुरू कर दिया जाए तो मधुमेह को हराया जा सकता है लेकिन इसका प्रतिशत कम है।

होम्योपैथी चिकित्सक और केंद्रीय होम्योपैथिक अनुसंधान परिषद, आयुष मंत्रालय, भारत सरकार के वैज्ञानिक सलाहकार बोर्ड के निवर्तमान सदस्य डॉ. एके द्विवेदी के अनुसार शरीर में इंसुलिन बनना एकदम से खत्म नहीं होता है। डायबिटीज की पुष्टि होते ही यदि शरीर मे पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन पहुंचा दी जाए तो निष्क्रिय बीटा सेल्स फिर से काम करने लगते हैं। ऐसे में धीरे-धीरे मरीज के शरीर का सिस्टम  फिर से सक्रिय हो जाता है और थोड़े समय नियमित इंसुलिन लेने के बाद इन्हें बंद कर दिया जाता है। मरीज को दवाईयों से छुटकारा भले ही मिल जाए पर परहेज जरूर करना पड़ता है। वहीं इस बीमारी के लिए एलोपैथिक दवाइयां दी जाती है ताकि शुगर लेवल से इंसुलिन व डायबिटीज से जुड़ी अन्य शारीरिक समस्याओं को काबू में रखा जा सके। हालांकि होम्योपैथिक चिकित्सा भी डायबिटीज बीमारी के उपचार में काफी मदद कर सकती है। खासतौर पर बीमरी से होने वाले शारीरिक कष्ट को होम्योपैथिक दवा बहुत हद तक कम कर देती है।

ब्लड शुगर के स्तर में वृद्धि से शरीर के कई अंगों के कामकाज होते हैं प्रभावित

मधुमेह की देखभाल महत्वपूर्ण है क्योंकि ब्लड शुगर के स्तर में वृद्धि आपके शरीर के विभिन्न अंगों के कामकाज को प्रभावित करती है। मधुमेह आपकी आंखों, हृदय, लीवर, पैरों और गुर्दे को प्रभावति कर सकती है। इसके साथ ही मधुमेह से अनिद्रा, तनाव, तंद्रा, रक्तचाप में उतार-चढ़ाव आदि जैसी समस्याएं भी हो सकती है।


यह भी पढ़िए... डायबिटीज की चिकित्सा के लिए होम्योपैथी

 

 

 

 












पंजीयन पत्रक - प्राकृतिक चिकित्सा दिवस के उपलक्ष्य में निःशुल्क तीन दिवसीय (दिनाँक 18, 19 एवं 20 नवम्बर 2022) मड थेरेपी (मिट्टी चिकित्सा) शिविर पंजीयन समय: सुबह 9:30 से 10:30 बजे तक


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मधुमेह के लिए होम्योपैथिक उपचार

डायबिटीज के लिए होम्योपैथिक उपचार का मुख्य उद्देश्य होता है, ब्लड शुगर लेवल को सामान्य रेंज में रखना। मधुमेह को हमारी लाइफस्टाइल से जुड़ा विकार भी माना जाता है। अपनी लाइफस्टाइल बदल कर भी इसके लक्षणों को ठीक किया जा सकता है। जैसे संतुलित आहार, रोजाना व्यायाम करना और नियमित अंतराल पर भोजन लेना आदि। लेकिन इस सब उपायों के बाद भी दवाईयां लेना जरूरी है। पारंपरिक उपचार के तहत टाइप-1 डायबिटीज मेलिटस के लिए इंसुलिन इंजेक्शन की सलाह दी जाती है जबकि टाइप-2 डायबिटीज मेलिटस के लिए मरीज को दवाएं खाने को दी जाती है।

डायबिटीज के लिए होम्योपैथिक दवाइयां

होम्योपैथी में डायबिटीज के उपचार के लिए कई दवाइयां दी जाती है। यह उपचार के प्राकृतिक नियम सिमिलिया सिमिलिबस क्यूरान्टूर पर आधारित है। सिमिलिया के नियम के अनुसार इनका उपचार लक्षणों और रोगी की प्रभाव शक्ति के आधार पर चुना जाता है। डॉ. एके द्विवेदी कहते हैं कि डायबिटीज के लिए होम्योपैथिक उपचार के लिए आपको हमेशा एक पंजीयकृत होम्योपैथिक चिकित्सक से परामर्श करना चाहिए। क्योंकि आपकी दवाओं के चयन के लिए कई कारकों पर विचार किया जाता है जैसे कि खुराक, प्रभावशीलता आदि। डायबिटीज के लिए होम्योपैथिक दवाईयों की सूची निम्नलिखित है जो आमतौर पर इस स्थिति में उपयोग की जाती है...

  • एसिटिकम एसिडम
  • आर्सेनिकम एल्बम
  • जिमनेमा सिल्वेस्ट्रे
  • इंसुलिनम
  • लैक्टिकम एसिडम
  • सीजियम जंबोलनम

होम्योपैथी से डायबिटीज में काफी राहत मिलती है

होम्योपैथी में रोगी की स्थित पर प्रभाव के लिए कुछ समय चाहिए होता है। हालांकि, मधुमेह की स्थिति में वैसे भी इसके लक्षणों के कम होने में लंबा समय ले सकता है। लेकिन डायबिटीज के लिए होम्योपैथी मधुमेह की गंभीर जटिलताओं को दूर करने में फायदेमंद है। आप कुछ महीनों में इसके अच्छे परिणा देखने की उम्मीद कर सकते हैं। लेकिन प्रत्येक व्यक्ति अलग होता है। ऐसे में हो सकता है कि कुछ लोगों को इसमें राहत जल्दी देखने को मिलें तो कुछ को कुछ देर में।

क्या है लक्षण

  • बार-बार पेशाब आना
  • आंखों में धुंधलापन
  • अचानक से भूख का बढ़ना
  • वजन में अचानक कमी
  • घाव का लंबे वक्त तक ठीक न होना

जीवन शैली में बदलाव के साथ व्यायाम बेहद जरूरी

ध्यान रहे दवाईयां या उपचार के तरीके जैसे डायबिटीज के लिए होम्योपैथी इलाज का केवल हिस्सा हैं। लेकिन अगर आप अच्छे परिणा चाहते हैं तो आपको अपने जीवन व जीवनशैली में बदलाव लाने चाहिए। वो है...

  • सही और पौष्टीकि आहार लें जिनमें उच्च मात्रा मे फाइबर, कम मात्रा में वसा, अधिक फल और सब्जियां और कम चीनी व नमक। आप चाहे तो डॉक्टर से डाइट चार्ट भी बनवा सकते हैं।
  • रोजाना करीब 45 मिनट व्यायाम करें।
  • धूम्रपान व शराब के सेवन से बचें। क्योंकि तंबाकू दिल संबंधी बीमारियों का जोखिम बढ़ाता है तो शराब ब्लड शुगर लेवल बढ़ती है।                                                                   

 

नोटः- इस लेख में दी गईं दवाओं के प्रयोग से पहले आप होम्योपैथिक डॉक्टर की सलाह जरूर ले लें। ताकि आपको आपनी बीमारी अथवा परेशानी का सही इलाज मिले और आपको राहत मिल सकें।

Saturday, 12 November 2022

आयोडीन की कमी से होते हैं कई रोग

हर साल 21 अक्टूबर को वर्ल्ड आयोडीन डेफिशिएंसी-डे के रूप में मनाया जाता है। आयोडीन हमारी सेहत के लिए एक जरूरी माइक्रोन्यूट्रिऐंट है। इसकी जरूरत शरीर में थायरॉइड फंक्शन को नॉर्मल तरीके से चलाने, फिजीकल और मेंटल ग्रोथ के लिए की जाती है। शरीर में आयोडीन की कमी कई तरह की बीमारियों की वजह बन सकती है। इनमें आयोडीन डेफिशिएंसी सिंड्रॉम भी शामिल है

मानसिक बीमारियाँ, जिनमें ज्यादातर मेंटल रिटार्डेशन के तहत आनेवाले लक्षण हैं, उनकी एक बड़ी वजह शरीर में


आयोडीन की कमी होती है। किसी भी बच्चे को आयोडीन दो तरह से सबसे ज्यादा प्रभावित करती है। पहली बार तब, जब गर्भवती महिला में आयोडीन की कमी हो तो बच्चे के मानसिक और शारीरिक विकास पर असर पड़ता है। वहीं, बचपन में पूरा पोषण नहीं मिलने के कारण भी बच्चों को यह परेशानी हो सकती है। महिलाओं में आयोडीन की कमी या आयोडीन डेफिशिएंसी डिसऑर्डर क्रेटिनिज्म, स्टिलबर्थ और मिसकैरेज का कारण हो सकता है। यहाँ तक कि गर्भावस्था के दौरान आयोडीन की थोड़ी कमी भी बच्चे में सीखने की क्षमता को प्रभावित करती है। आयोडीन डेफिशिएंसी डिसऑर्डर पूरी दुनिया में मिलने वाली समस्या है। हालांकि इस तरह के डिसऑर्डर की रोकथाम करना बहुत आसान है। इसका सबसे सरल तरीका है रोज आयोडीन युक्त नमक का सीमित मात्रा में सेवन करना।

थाइरोक्सिन हॉर्मोन्स करते हैं शरीर में आयोडीन का संतुलन

आयोडीन बढ़ते शिशु के दिमाग के विकास और थायराइड प्रक्रिया के लिए अनिवार्य माइक्रो पोषक तत्व है। आयोडीन हमारे शरीर के तापमान को भी नियंत्रित करता है, विकास में सहायक है और भ्रूण के पोषक तत्वों का एक अनिवार्य हिस्सा है। शरीर में आयोडीन को संतुलित बनाने का कार्य थाइरोक्सिन हॉर्मोन्स करते हैं।

आयोडीन की कमी से इम्यूनिटी सिस्टम पर पड़ता है बुरा प्रभाव

थाइरॉक्सिन टी-4 और ट्रीआइयोडोथायरोनाइन टी-3 दो प्रकार के थाइरॉइड हॉर्मोन होते हैं जो शरीर के हर सेल के मेटाबॉलिज्म को रेगुलेट करते हैं। शरीर में आयोडीन की कमी तब होती है जब हम कम आयोडीन से भरपूर खाद्य पदार्थों का सेवन करते हैं। यह थाइरॉइड ग्लैंड को कार्य करने में मदद करते है। आयोडीन जब अमीनो एसिड के साथ मिक्स होता है तो यह थाइरॉइड हॉर्मोन बनाता है जो हमारे शारीरिक कार्य में मदद करता है। शरीर में आयोडीन की कमी से हमारे इम्यूनिटी सिस्टम पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इसकी कमी थाइरॉइड की समस्या पैदा करता है। आज हम आपको बताने जा रहे हैं ऐसे आयोडीन रिच फूड्स के बारे में जिन्हें आपको डाइट में जरूर शामिल करना चाहिए। यह शरीर में आयोडीन की कमी को पूरा कर थाइरॉइड हॉर्मोन को नियंत्रण में रखते हैं।

आयोडीन की कमी से चेहरे पर सूजन, गले में सूजन, थाइराइड की कमी जैसे रोग हो सकते हैं

होम्योपैथी चिकित्सक और केंद्रीय होम्योपैथिक अनुसंधान परिषद, आयुष मंत्रालय, भारत सरकार के वैज्ञानिक सलाहकार बोर्ड के निवर्तमान सदस्य डॉ. एके द्विवेदी के अनुसार आयोडीन की कमी से चेहरे पर सूजन, गले में सूजन (गले के अगले हिस्से में थाइराइड ग्रंथि में सूजन) थाइराइड की कमी (जब थाइराइड हार्मोन का बनना सामान्य से कम हो जाए) और मस्तिष्क की कार्यप्रणाली में वजऩ बढऩा, रक्त में कोलेस्ट्रोल का स्तर बढऩा और ठंड बर्दाश्त ना होना जैसे आदि रोग होते हैं। गर्भवती महिलाओं में आयोडीन की कमी से गर्भपात, नवज़ात शिशुओं का वजऩ कम होना, शिशु का मृत पैदा होना और जन्म लेने के बाद शिशु की मृत्यु होना आदि शामिल हैं। एक शिशु में आयोडीन की कमी से उसमें बौद्धिक और शारीरिक विकास समस्याएं जैसे मस्तिष्क का धीमा चलना, शरीर का कम विकसित होना, बौनापन, देर से यौवन आना, सुनने और बोलने की समस्याएं तथा समझ में कमी आदि होती हैं।

आयोडीन की कमी कैसे दूर करें

डॉ. एके द्विवेदी के अनुसार मछली, अंडे, मेवे, मीट, ब्रेड, डेयरी उत्पाद और समुद्री शैवाल, कुछ ऐसे खाद्य पदार्थ हैं, जिनमें प्रचूर मात्रा में आयोडीन होता है। यदि आहार से पर्याप्त आयोडीन की आपूर्ति नहीं हो पाती, तो डॉक्टर सप्लीमेंट देते है। आयोडीन की पूर्ति के लिए नमक का इस्तेमाल कर सकते हैं। आलू, दूध, अंडा, दही, मीडियम साइज केला और स्ट्रॉबेरी को अपनी डाइट में जरूर शामिल करें। यह आपके शरीर में आयोडीन की कमी को पूरी करते हैं।

Friday, 11 November 2022

हड्डियों के दर्द को ना करें नजरअंदाज

र्तमान के भागदौड़ भरी लाइफस्टाइल में लगभग हर कोई हड्डी के दर्द से परेशान है। हड्डियों के रोग के दो प्रमुख कारण है। इसमें पहला है उम्र बढ़ने के साथ-साथ हड्डी रोगियों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। वहीं दूसरा कारण


जागरूकता और कैल्शियम की कमी भी है। कैल्शियम की कमी के कारण यंग एज में भी हड्डी कमजोर हो जाती है, जिससे फ्रैक्चर या ज्वाइंट पेन की समस्या बन जाती है। बैक पेन और ज्वाइंट पेन में लोग नॉर्मल दर्द की दवा खाकर काम चला लेते हैं। दवा का असर कुछ देर के लिए रहता है। जैसे ही असर खत्म हो जाए तो दर्द फिर से शुरू हो जाता है। नतीजा बाद में एक बड़ा रोग जन्म ले लेता है। हड्डी रोग के इलाज में केवल दवाओं की कोई भूमिका नहीं है। किसी भी मरीज के हड्डी टूटने, घुटने में खराबी आने और पीठ की नस दबने पर सिर्फ दवा ही इलाज नहीं है। हड्डी की बीमारी में दवाओं से अधिक फिजियोथैरेपी की भूमिका अहम होती है।

अधिकांश हड्डी रोग के इलाज में ऑपरेशन ही एकमात्र इलाज होता है। किसी भी व्यक्ति की हड्डी टूट जाए, घुटने में खराबी हो अथवा कहीं की नस पर दबाव हो जाए तो इसे किसी भी दवा से दूर नहीं किया जा सकता है। इसके लिए समय पर डॉक्टर से मिलकर चेकअप कराना चाहिए, ताकि सही रोग का पता चल जाए। इन दिनों यंग एज में भी गठिया रोग के मरीजों की संख्या बढ़ रही है। उन मरीजों की संख्या अधिक है, जो स्मोकिंग और शराब का सेवन अधिक करते हैं। स्मोकिंग व शराब के सेवन से गठिया रोग का जन्म होता है।

20 से 40 वर्ष की उम्र में अधिक कार्य करें

वहीं महिलाओं की बच्चेदानी के ऑपरेशन के बाद आस्टियोपोरोसिस रोग की शिकायतें अधिक होती हैं, ऐसे में ज्वाइंट पेन और बैक पेन की समस्या बढ़ जाती है। बच्चेदानी का ऑपरेशन कराने वाली महिलाओं को रेगुलर दवा का सेवन करना चाहिए। खाने-पीने व रहन-सहन के कारण भी लोग परेशानी में आ रहे हैं तथा ज्यादा पेन किलर खाना भी खतरनाक साबित हो रहा है। हड्डी और ज्वाइंट के दर्द से बचना है तो 20 से 40 वर्ष की उम्र में अधिक से अधिक कार्य करने के साथ सेहत ठीक रखने के लिए व्यायाम करें। वरना 45 साल बाद हड्डी से जुड़े अलग-अलग रोग शुरू हो जाएंगे इसलिए हड्डी रोग के बचाव के लिए जागरूक रहें।

कमजोर क्यों हो जाती है हड्डियां?

इसे चिकित्सा शास्त्र में आस्टियोपोरोसिस कहते हैं। मतलब यह कि शरीर की हड्डियों की शक्ति इतनी कम हो जाए कि हट्टी टूटने का खतरा कई गुना बढ़ जाए। हड्डियां खोखली सी होने लगें। ढांचा तो खड़ा हो और पलस्तर झर-सा जाए, फिर छोटी सी चोट से या कभी कभी तो पता ही न चाले और हड्डी टूट जाए। जी हां ऐसा भी हो सकता है कि दर्द न हो और आपका मेरुदंड या रीढ़ की कोई हड्डी जाए। आपने शायद कभी ध्यान दिया हो कि रजोनिवृत्ति के बाद बुढ़ापे में कई औरतों का कद छोटा हो जाता है। यह बौनापन कैसे? रीढ़ की कई हड्डियां धीरे-धीरे टूटकर पिचक जाती हैं तो रीढ़ छोटी हो जाती है। इससे कद कई इंच तक छोटा हो सकता है। प्रायः आस्टियोपोरोसिस में ससबसे ज्यादा फैक्चर रीढ़ की हड्डियों के ही होते हैं या फिर कूल्हे की हड्डी के रीढ़ की हड्डी का टूटना इस मामले में थोड़ा अनोखा है कि हड्डी टूटने से वैसा दर्द कभी नहीं भी होता है जैसा हम हड्डी टूटने पर होने की सोचा करते हैं।

रीढ़ की हड्डी टूट जाने पर भी हो सकती है कब्जियत

हां टूटी हड्डी से कोई नस दब जाए तब बहुत दर्द होगा अन्यता हल्का या तेज कम दर्द हो सकता है। हो सकता है कि विशेष दर्द हो ही न, लेकिन रीढ़ के टूटने पर दर्द को छोड़कर अन्य बहुत सी और तकलीफें हो सकती हैं। मानो कि छाती की हड्डी यदि टूट जाए तो सांस फूलने की तकलीफ हो सकती है, पेट तथा कमर के हिस्से की हड्डी टूट जाए तो पेट की तकलीफें  हो सकती है यदि आपको गैस से पेट फूला लगे, भूख लगे पर रोट खाकर ही लगे कि बहुत सारा खा लिया, यदि आपको कब्जियत होने लगी हो और आपको जांच करके यदि डॉक्टर कहे कि यह सब इसीलिए हो रहा है कि आपकी रीढ़ की हड्डी टूट गई है तो आप विश्वास ही नहीं करेंगे पर ऐसा हो सकता है फिर कमर टेढ़ी होना, कमर का झुक जाना आदि भी प्रायः रीढ़ की हड्डी कई जगह से टूट जाने के कारण होता है।

हड्डी रोग में होम्योपैथिक दवाएं भी दिला सकती है राहत

होम्योपैथी चिकित्सक और केंद्रीय होम्योपैथिक अनुसंधान परिषद, आयुष मंत्रालय, भारत सरकार के वैज्ञानिक सलाहकार बोर्ड के निवर्तमान सदस्य डॉ. एके द्विवेदी के अनुसार होम्योपैथिक चिकित्सा जोड़ों से संबंधित सभी प्रकार के रोगों पर सबसे कारगर चिकित्सा प्रणाली के रूप में प्रचलित है। बिना दर्द निवारक दवाईयों तथा बगैर स्टेराइड्स के प्रयोग कराए केवल होम्योपैथी दवाईयों की मदरटिंचर व सेंटीसिमल तथा 50 मिलीसिमल पोटैंसी की मदद से गठिया व स्पॉडिलाइटिस के कई असाध्य व उम्रदराज लोगों को भी उनकी बिमारी से राहत दिलाई जा सकती है।

 

नोटः- होम्योपैथी से रोग के कारण को दूर करके रोगी को ठीक किया जाता है। प्रत्येक रोगी की दवा उसकी शारीरिक और मानसिक अवस्था के अनुसार भिन्न-भिन्न होती है। इसलिए बिना चिकित्सीय परामर्श के यहां बताई गई दवाओं का उपयोग न करें।

Thursday, 10 November 2022

होम्योपैथी द्वारा मोटापा एवं गठिया का उपचार

हुत से लोगों को जैसे ही मालूम होता है कि उन्हें गठिया है, तो वे जीने की उमंग ही खो बैठते हैं। मोटे लोगों को खासतौर से इस बात का ध्या देना चाहिए उनका वजन इतना न बढ़ जाए कि उनके घुटने या पैर खुद के वजन को


एक जगह से दूसरी जगह ले जाने में असमर्थ हो जाए। हमारे पास जितने भी जोड़ों के दर्द के मरीज आते हैं आमतौर पर मोटे लोग ज्यादा होते हैं। मोटापा के कारण हमारे घुटने जल्द ही खराब होने के कारण हमारे घुटने जल्द ही खराब होने लगते हैं। क्योंकि जब हम एक जगह से दूसरी जगह चलते हैं तो हमारे घुटने को कम से ऊपर के शरीर का वजन उठाना होता है। धीरे-धीरे हमारे घुटने के बीच का गैप कम होने लगता है, असहनीय दर्द होने लगता है, सूजन आ जाती है। जिसके कारण हमारे दैनिक कार्य अवरूद्ध होने लगते हैं। यदि हम सही समय पर होम्योपैथिक दवाईयों का सेवन मरीज को कराएं तो उसका मोटापा तथा जोड़ों के दर्द (गठिया) को कम करके सेहत को बेहतर बनाया जा सकता है। जोड़ों का दर्द साधारणतया दो प्रकार के होते हैं। छोटे जोड़ों के दर्द को वात यानी रूमेटिज्म कहते हैं। वात रोग (गाउट) में जोड़ों की गांठें सूज जाती हैं, बुखार भी आ जाता है। बेहन दर्द एवं बेचैनी रहती है।

कारण

अधिक मांस खाना, नमी या सर्दी लगना, देर तक भीगना, सीसा धातुओं से कम करने वाले को लैड प्वाइजिंग होना, खटाई और ठंडी चीजों का सेवन करना, अत्यधिक मदिरा पान एवं वंशानुगत (हेरिडिटी) दोष।

लक्षण

रोग के शुरुआत में जोड़ों में दर्द तथा सूजन के साथ-साथ पाचन क्रिया का मंद पड़ना। पेट फूलना (अफारा) एवं अम्ल का रहना (एसिडीटी), कब्ज बना रहना। क्रोनिक (पुराने) रोग होने पर पेशाब गहरा लाल एवं कम मात्रा में होगा।

होम्योपैथिक दवाइयां

होम्योपैथी चिकित्सक और केंद्रीय होम्योपैथिक अनुसंधान परिषद, आयुष मंत्रालय, भारत सरकार के वैज्ञानिक सलाहकार बोर्ड के निवर्तमान सदस्य डॉ. एके द्विवेदी के अनुसार मोटापे के लक्षणानुसार कैलकेरिया कार्ब, फाइटोलाका बेरी, एपोसाइनम कैन, फ्यूकस, कैल्मिया लैटविया, कैक्टस ग्रेड़ीफ्लोरा, डल्कामारा, लाईकोपोडियम, काली कार्ब, मैगफास, रसटाक्स, कैलीबाइक्रोम इत्यादि होम्योपैथिक दवाईयां अत्याधिक कारगर सिद्ध हो रही है।

कसरतें हैं गठिया के लिए

गठिया कई किस्म का होता है और हरेक का अलग-अलग तरह से उपचार होता है। सही डायग्नोसिस से ही सही उपचार हो सकता है। सही डायग्नोसिस जल्द हो जाए तो अच्छा। जल्द उपचार से फायदा यह होता है कि नुकसान और दर्द कम होता है। उपचार में दवाइयां, वजन प्रबंधन, कसरत, गर्म या ठंडे का प्रयोग और जोड़ों को अतिरिक्त नुकसान से बचाने के तरीके शामिल होते हैं। वर्कआउट करें। कसरत करने से दर्द कम हो जाता है, मूवमेंट में वृद्धि होती है, थकान कम होती है और आप पूरी तरह स्वस्थ रहते हैं। जोड़ों पर दबाव से बचें। जितना वजन बताया गया है, उतना हीं बरकरार रखें। खाने में मांसाहार, पनीर एवं मसालेदार सब्जियों का प्रयोग न करें। साइकिलिंग एवं स्विमिंग गठिया तथा मोटापा को कम करने का बेहतर उपाय हो सकते हैं।