Friday, 11 November 2022

हड्डियों के दर्द को ना करें नजरअंदाज

र्तमान के भागदौड़ भरी लाइफस्टाइल में लगभग हर कोई हड्डी के दर्द से परेशान है। हड्डियों के रोग के दो प्रमुख कारण है। इसमें पहला है उम्र बढ़ने के साथ-साथ हड्डी रोगियों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। वहीं दूसरा कारण


जागरूकता और कैल्शियम की कमी भी है। कैल्शियम की कमी के कारण यंग एज में भी हड्डी कमजोर हो जाती है, जिससे फ्रैक्चर या ज्वाइंट पेन की समस्या बन जाती है। बैक पेन और ज्वाइंट पेन में लोग नॉर्मल दर्द की दवा खाकर काम चला लेते हैं। दवा का असर कुछ देर के लिए रहता है। जैसे ही असर खत्म हो जाए तो दर्द फिर से शुरू हो जाता है। नतीजा बाद में एक बड़ा रोग जन्म ले लेता है। हड्डी रोग के इलाज में केवल दवाओं की कोई भूमिका नहीं है। किसी भी मरीज के हड्डी टूटने, घुटने में खराबी आने और पीठ की नस दबने पर सिर्फ दवा ही इलाज नहीं है। हड्डी की बीमारी में दवाओं से अधिक फिजियोथैरेपी की भूमिका अहम होती है।

अधिकांश हड्डी रोग के इलाज में ऑपरेशन ही एकमात्र इलाज होता है। किसी भी व्यक्ति की हड्डी टूट जाए, घुटने में खराबी हो अथवा कहीं की नस पर दबाव हो जाए तो इसे किसी भी दवा से दूर नहीं किया जा सकता है। इसके लिए समय पर डॉक्टर से मिलकर चेकअप कराना चाहिए, ताकि सही रोग का पता चल जाए। इन दिनों यंग एज में भी गठिया रोग के मरीजों की संख्या बढ़ रही है। उन मरीजों की संख्या अधिक है, जो स्मोकिंग और शराब का सेवन अधिक करते हैं। स्मोकिंग व शराब के सेवन से गठिया रोग का जन्म होता है।

20 से 40 वर्ष की उम्र में अधिक कार्य करें

वहीं महिलाओं की बच्चेदानी के ऑपरेशन के बाद आस्टियोपोरोसिस रोग की शिकायतें अधिक होती हैं, ऐसे में ज्वाइंट पेन और बैक पेन की समस्या बढ़ जाती है। बच्चेदानी का ऑपरेशन कराने वाली महिलाओं को रेगुलर दवा का सेवन करना चाहिए। खाने-पीने व रहन-सहन के कारण भी लोग परेशानी में आ रहे हैं तथा ज्यादा पेन किलर खाना भी खतरनाक साबित हो रहा है। हड्डी और ज्वाइंट के दर्द से बचना है तो 20 से 40 वर्ष की उम्र में अधिक से अधिक कार्य करने के साथ सेहत ठीक रखने के लिए व्यायाम करें। वरना 45 साल बाद हड्डी से जुड़े अलग-अलग रोग शुरू हो जाएंगे इसलिए हड्डी रोग के बचाव के लिए जागरूक रहें।

कमजोर क्यों हो जाती है हड्डियां?

इसे चिकित्सा शास्त्र में आस्टियोपोरोसिस कहते हैं। मतलब यह कि शरीर की हड्डियों की शक्ति इतनी कम हो जाए कि हट्टी टूटने का खतरा कई गुना बढ़ जाए। हड्डियां खोखली सी होने लगें। ढांचा तो खड़ा हो और पलस्तर झर-सा जाए, फिर छोटी सी चोट से या कभी कभी तो पता ही न चाले और हड्डी टूट जाए। जी हां ऐसा भी हो सकता है कि दर्द न हो और आपका मेरुदंड या रीढ़ की कोई हड्डी जाए। आपने शायद कभी ध्यान दिया हो कि रजोनिवृत्ति के बाद बुढ़ापे में कई औरतों का कद छोटा हो जाता है। यह बौनापन कैसे? रीढ़ की कई हड्डियां धीरे-धीरे टूटकर पिचक जाती हैं तो रीढ़ छोटी हो जाती है। इससे कद कई इंच तक छोटा हो सकता है। प्रायः आस्टियोपोरोसिस में ससबसे ज्यादा फैक्चर रीढ़ की हड्डियों के ही होते हैं या फिर कूल्हे की हड्डी के रीढ़ की हड्डी का टूटना इस मामले में थोड़ा अनोखा है कि हड्डी टूटने से वैसा दर्द कभी नहीं भी होता है जैसा हम हड्डी टूटने पर होने की सोचा करते हैं।

रीढ़ की हड्डी टूट जाने पर भी हो सकती है कब्जियत

हां टूटी हड्डी से कोई नस दब जाए तब बहुत दर्द होगा अन्यता हल्का या तेज कम दर्द हो सकता है। हो सकता है कि विशेष दर्द हो ही न, लेकिन रीढ़ के टूटने पर दर्द को छोड़कर अन्य बहुत सी और तकलीफें हो सकती हैं। मानो कि छाती की हड्डी यदि टूट जाए तो सांस फूलने की तकलीफ हो सकती है, पेट तथा कमर के हिस्से की हड्डी टूट जाए तो पेट की तकलीफें  हो सकती है यदि आपको गैस से पेट फूला लगे, भूख लगे पर रोट खाकर ही लगे कि बहुत सारा खा लिया, यदि आपको कब्जियत होने लगी हो और आपको जांच करके यदि डॉक्टर कहे कि यह सब इसीलिए हो रहा है कि आपकी रीढ़ की हड्डी टूट गई है तो आप विश्वास ही नहीं करेंगे पर ऐसा हो सकता है फिर कमर टेढ़ी होना, कमर का झुक जाना आदि भी प्रायः रीढ़ की हड्डी कई जगह से टूट जाने के कारण होता है।

हड्डी रोग में होम्योपैथिक दवाएं भी दिला सकती है राहत

होम्योपैथी चिकित्सक और केंद्रीय होम्योपैथिक अनुसंधान परिषद, आयुष मंत्रालय, भारत सरकार के वैज्ञानिक सलाहकार बोर्ड के निवर्तमान सदस्य डॉ. एके द्विवेदी के अनुसार होम्योपैथिक चिकित्सा जोड़ों से संबंधित सभी प्रकार के रोगों पर सबसे कारगर चिकित्सा प्रणाली के रूप में प्रचलित है। बिना दर्द निवारक दवाईयों तथा बगैर स्टेराइड्स के प्रयोग कराए केवल होम्योपैथी दवाईयों की मदरटिंचर व सेंटीसिमल तथा 50 मिलीसिमल पोटैंसी की मदद से गठिया व स्पॉडिलाइटिस के कई असाध्य व उम्रदराज लोगों को भी उनकी बिमारी से राहत दिलाई जा सकती है।

 

नोटः- होम्योपैथी से रोग के कारण को दूर करके रोगी को ठीक किया जाता है। प्रत्येक रोगी की दवा उसकी शारीरिक और मानसिक अवस्था के अनुसार भिन्न-भिन्न होती है। इसलिए बिना चिकित्सीय परामर्श के यहां बताई गई दवाओं का उपयोग न करें।

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