Thursday, 12 October 2017

आर्थराइटिस के दर्द को कम करने के लिए न खाएं ये फूड्स



र्थराइटिस...कहने को तो यह 40 साल के बाद होता है, लेकिन आज की जीवनशैली के चलते, इसकी चपेट में 35 से ऊपर के लोग भी हैं। यह ज़्यादातर महिलाओं को होता है, लेकिन पुरुष भी इसके शिकार होते हैं। इसमें जोड़ों का दर्द होता है और उस अंग पर सूजन भी आ जाती है। हालांकि, इसके ट्रीटमेंट के लिए पेन-किलर्स का इस्तेमाल होता है, लेकिन रिसर्च कहती है कि अगर डाइट में वो चीज़ें खाई ही न जाएं, जिनसे सूजन और जोड़ों का दर्द हो, तो इसे कंट्रोल में लाया जा सकता है। वैसे तो आर्थराइटिस 100 तरह का है, लेकिन सबसे ज़्यादा होते हैं- ऑस्टियो आर्थराइटिस और रुमेटॉयड आर्थराइटिस। जहां ऑस्टियो आर्थराइटिस का वार अक्सर उंगलियों, घुटनों और हिप्स पर होता है, वहीं रुमेटॉयड आर्थराइटिस हाथों और पैरों को दर्द से जकड़ लेता है। ऐसे में इन अंगों को दर्द के कारण हिलाने में भी दिक्कत होती है। अगर कोई फैमिली हिस्ट्री हो तो, इसका रिस्क ज़्यादा हो जाता है। इसका कोई पक्का इलाज तो नहीं है, लेकिन इसे प्रॉपर मेडिकेशन और डाइट की मदद से कंट्रोल किया जा सकता है।

आर्थराइटिस के संकेत

 जोड़ों में दर्द  लाली  सूजन  अंगों का काम न करना  अकडऩ

ट्रीटमेंट

आराम करना  ठंडी या गर्म सिकाई  वजऩ कम करना  एक्सरसाइज़  जॉएंट रिप्लेसमेंट
इसके अलावा, ये हैं 5 फूड्स जिन्हें आर्थराइटिस के रोगियों को खाने से बचना चाहिए।

तला हुआ या पैकेज्ड फूड

रिसर्च के मुताबिक अगर डाइट में तला हुआ और पैकेज्ड खाना जैसे- फ्राइड मीट, फ्रोजऩ वेजिटेबल्स नहीं ले जाएं और इनकी जगह फ्रेश फ्रूट्स और वेजिटेबल्स खाए जाएं, तो सूजन और दर्द को कम किया जा सकता है।

ओवर-हीटिड फूड

साल 2009 में हुई एक स्टडी में सामने आया की आर्थराइटिस के रोगियों को ओवर-हीटेड और ग्रिल्ड खाना खाने से भी बचना चाहिए। यानी खाने को ज़्यादा टेम्परेचर पर नहीं बनाना चाहिए।

शुगर

ज़रूरत से ज़्यादा कोई भी चीज़ शरीर को नुकसान पहुंचा सकती है, फिर चाहे वो पानी हो, नमक या चीनी। ज़्यादा मीठा खाने से भी सूजन बढ़ सकती है। इसलिए कोशिश करें कि अपनी डाइट से केक, सोडा, चॉकलेट, मैदा आदि आउट कर दें।

डेयरी प्रोडक्ट्स

कहने को तो दूध, दही शरीर के लिए लाभदायक हैं। इनसे कैल्शियम मिलता है। लेकिन आर्थराइटिस के शिकार लोगों की हेल्थ के लिए ये बिलकुल भी हेल्दी नहीं है। रिसर्च में पाया गया है कि इन डेयरी प्रोडक्ट्स में कोई ऐसा प्रोटीन होता है जो जोड़ों का दर्द तेज़ करता है। ऐसे में शरीर में प्रोटीन की कमी दूर करने के लिए, मीट और डेयरी प्रोडक्ट्स की जगह पालक, टोफू, बीन्स और दाल ज़्यादा से ज़्यादा खानी चाहिए।

अल्कोहल और टबैको

शराब और तंबाकू शरीर के लिए बेहद हानिकारक हैं। इनसे जोड़ों का दर्द तो तेज़ होता ही है, साथ ही शरीर को कई खतरनाक बीमारियां भी लग सकती हैं। हेल्दी जाएंट्स के लिए ज़रूरी है बैलेंस्ड डाइट, एक्सरसाइज़ और रेस्ट।

Tuesday, 4 July 2017

मानसून में रखें सेहत का ख्याल



चिलचिलाती गर्मी के बाद जब मानसून की ठंडी फुहार हर किसी के चेहरे पर खुशी ले आती है। बच्चों को तो बारिश में भीगना बहुत भाता है। पर ध्यान रहे, यही बारिश कई तरह की बीमारियों को भी साथ लाती है। 
आमतौर पर हम सभी को मानसून का मौसम बहुत ही पसंद होता है, क्योंकि यह रोमांटिक और एडवेंचर्स भरा होता है। बादलों से भरा आसमान, मूसलधार बारिश और चारों तरफ हरियाली से भरा यह मौसम बहुत ही आनंद देने वाला और गर्मी से राहत देने वाला होता है।
बारिश के दिनों में लोगों को तेल में तले हुए भजिए खाना बहुत अच्छा लगता है। इस मौसम में लोग चाय, कॉफी, सूप पीना भी बहुत पसंद करते हैं और कुछ लोग स्ट्रीट-फूड के भी शौकीन होते हैं, मगर इस बरसात के मौसम में स्वास्थ्य की देखभाल करना महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि यह मानसून अपने साथ कुछ नकारात्मकता भी लाता है। कई लोग इस दौरान बीमार हो जाते हैं, क्योंकि नमी के दिनों में कीड़े, संक्रमण आदि का ज्यादा डर होता है और इस वजह से डेंगू, मलेरिया, वायरल बुखार, जुकाम, फ्लू, निमोनिया आदि जैसी बीमारियां होने की संभावना बन जाती है।
अगर आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर है तो बारिश में भीगने से आपको जुकाम भी हो सकता है। स्कूल-कॉलेज जाने वाले छात्रों और कामकाजी लोगों को इस मौसम में घर से बाहर निकलना ही पड़ता है, मगर कुछ सावधानियां बरतकर आप इन बीमारियों से बच सकते हैं। आइए, अच्छी सेहत के लिए जानते हैं-
बारिश के मौसम में अपने स्वास्थ्य को बेहतर रखने के लिए हम आपको कुछ महत्वपूर्ण टिप्स बता रहे हैं-

आवश्यक वस्तुएं रखें साथ

अचानक होने वाली मूसलधार बारिश से बचने के लिए अपने साथ एक छाता अवश्य रखें, क्योंकि ऐसे मौसम में बारिश का कोई भरोसा नहीं होता है। अगर आप घर से कहीं बाहर हैं और पैदल, बाइक या स्कूटर से यात्रा कर रहे हैं तो अपने साथ रैनकोट रखना न भूलें।

स्ट्रीट-फूड से बचें

मानसून के मौसम में लोग तला हुआ खाना और स्ट्रीट-फूड खाना बहुत पसंद करते हैं, पर इस दौरान कई बार बारिश का कुछ पानी तेल में मिल जाता है, इसलिए ऐसे समय में मिनरल पानी ही पीना चाहिए और स्ट्रीट-फूड, तले हुए पदार्थ, ज्यूस और पेय पदार्थों से परहेज रखना चाहिए, क्योंकि बारिश के पानी में कई अशुद्ध लवण होते हैं, जो इन पदार्थों में मिलकर उन्हें दूषित कर देते हैं और इस वजह से हमें कई बीमारियों का सामना करना पड़ता है।

मच्छरों के प्रकोप से बचें

बरसात के दिनों में मच्छरों की आबादी में बहुत ज्यादा वृद्धि हो जाती है, क्योंकि ऐसे समय में पानी बहुत ज्यादा हो जाता है, जो कि मच्छरों के एक अच्छी प्रजजन भूमि का काम करता है। अपने घर में कूलर के पानी को अच्छे से जांच लें और रोजाना उस पानी को बदलें। घर के अन्य क्षेत्र जैसे कि फूल के बर्तन, एक्वेरियम और कुए में भी पानी एकत्रित रहता है, इन्हें किसी कीटाणुनाशक का प्रयोगकर साफ करें और ढंककर रखें।
हर्बल-टी पीएं
मानसून के मौसम में हर्बल-टी का सेवन करें, क्योंकि इसमें एंटी-बैक्टीरियल गुण होते हैं। यह हमारी प्रतिरक्षा को बढ़ाते हैं और कीटाणुओं, जीवाणुओं के खिलाफ लडऩे की ताकत प्रदान करते हैं, इसलिए क्कह्म्द्गष्ड्डह्वह्लद्बशठ्ठह्य ष्ठह्वह्म्द्बठ्ठद्द क्रड्डद्बठ्ठ4 स्द्गड्डह्यशठ्ठ रखने के लिए हर्बल-टी रोज पिएं।


स्क्रैचिंग से बचें

यदि आपको मच्छर ने काट लिया है तो उसे खुजालने से या स्क्रैचिंग से बचें, क्योंकि यह वायरस नाक, शरीर या मुंह के माध्यम से आपके अंदर प्रवेश कर सकते हैं, इसलिए मच्छर से काटे हुए प्रभावित क्षेत्र को जितना कम हो सके, उतना कम छुएं।
बीमारियों से बचने के लिए रूमाल का उपयोग करें। रूमाल को अपने साथ या अपनी जेब में रखना शिष्टाचार को दर्शाता है। बारिश के दिनों में जितना कम हो सके, अपने चेहरे को स्क्रेच करें या छुएं, क्योंकि फ्लू वायरस मुंह, आंख, नाक आदि के माध्यम से आपके अंदर प्रवेश कर सकते हैं,  इसलिए ध्यान रखें, जब भी जरूरत पड़े तो हाथ के बजाय रूमाल की मदद से चेहरे को पोछें या साफ करें और हाथों को चेहरे से दूर रखें।

त्वचा के संक्रमण से बचें

बरसात के दिनों में बहुत ही ज्यादा मात्रा में गटर, नालों में गंदा पानी एकत्रित हो जाता है और फिर सड़कों में फिर जमा होने लगता है। ऐसे में अगर आप नंगे पैर सड़कों में चलने लगते हैं तो यह दूषित और जहरीला पानी आपकी त्वचा में लगकर अवांछित त्वचा कर संक्रमण पैदा कर सकता है। इस मौसम में अपने शरीर का कोई भी भाग अगर खुला होता है तो उसमें गंदे पानी से होने वाले संक्रमण की संभावना अधिक होती है, इसलिए ॥द्गड्डद्यह्लद्ध ञ्जद्बश्च द्घशह्म् क्रड्डद्बठ्ठ4 स्द्गड्डह्यशठ्ठ के अनुसार घर से बाहर निकलते समय यह सुनिश्चित कर लें कि आपने अपने शरीर को ढंका है या नहीं और पैरों में भी जूते पहनकर उसे अवश्य ढंकें।

डायबिटीज और अस्थमा के मरीज

अगर आप या आपके कोई रिश्तेदार डायबिटीज और अस्थमा की बीमारी से पीडि़त हैं तो इस बात का अवश्य ध्यान रखें कि बारिश के दिनों में पीडि़त गीली दीवारों के पास ना सोएं, क्योंकि गीली दीवार के पास सोने से शरीर के अंदर कवक के विकास को बढ़ावा मिलता है, जो कि स्वास्थ्य के लिए बहुत ही हानिकारक साबित हो सकता है।

हाथों को धोएं

बारिश के मौसम में आप हाथ धोने की बात को अनदेखा नहीं कर सकते, वर्ना यह आपके लिए बहुत ही घातक सिद्ध हो सकता है, इसलिए इस मौसम में हाथों को नियमित रूप से धोते रहने से व्यक्ति स्वास्थ्य संकटों से दूर रहता है। ऐसा करने का मुख्य कारण यह है कि बारिश के दौरान कई तरह से बैक्टीरिया और वायरस सक्रिय हो जाते हैं और आपकी जानकारी के बिना किसी न किसी तरीके से ये आपके संपर्क में आ जाते हैं, इसलिए ध्यान रखें, रोजाना भोजन करने से पहले अपने हाथ को साबून से धोकर या सेनिटाइजर से अच्छी तरह से साफ कर लें।

Wednesday, 21 June 2017

योग का शरीर पर होने वाले प्रभाव


आयुुष मंत्री श्रीपाद नाईक से विशेष चर्चा


सेहत एवं सूरत के संपादक डॉ. ए.के. द्विवेदी की भारत के आयुष मंत्री श्रीपाद नाईक जी से योग तथा आयुष चिकित्सा पद्धतियों के विकास को लेकर चर्चा हुई जिसमें आयुष मंत्री श्रीपाद नाईक ने कहा कि योग का जन्म भारत में ही हुआ और आज भारत में ही नहीं विश्व भर में योग का बोलबाला है और निसंदेह उसका श्रेय भारत के ही योग गुरूओं को  तथा भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी को जाता है जिन्होंने योग को फिर से पुनर्जीवित किया इसी तारतम्य में भारत में आयुष मंत्रालय के गठन पश्चात प्रत्येक वर्ष दिनांक २१ जून को विश्व योग दिवस मनाया जा रहा है। इस वर्ष उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ में योग दिवस मुख्य समारोह आयुष मंत्रालय भारत सरकार द्वारा मनाया जाना है। आपने कहा कि योग दिवस मनाने का उद्ेश्य है कि लोगों में योग के प्रति जागरूकता फैलाना तथा योगासन को अपनाकर स्वास्थ्य को हासिल करना है। 
सरकार योग के प्रचार-प्रसार और विभिन्न रोगों के इलाज से इसके चिकित्सीय प्रभावों के गहन अध्ययन के साथ इसके माध्यम से एक प्रभावी चिकित्सा व्यवस्था खड़ी करने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रही है।
योगासन ऐसी पद्धति है जिसमें न तो कुछ विशेष व्यय होता है और न इतनी साधन-सामग्री की आवश्यकता होती है। योगासन अमीर-गरीब, बूढ़े-जवान, सबल-निर्बल सभी स्त्री-पुरुष कर सकते हैं। आसनों में जहां मांसपेशियों को तानने, सिकोडऩे और ऐंठने वाली क्रियायें करनी पड़ती हैं, वहीं दूसरी ओर साथ-साथ तनाव-खिंचाव दूर करनेवाली क्रियायें भी होती रहती हैं, जिससे शरीर की थकान मिट जाती है और आसनों से व्यय शक्ति वापिस मिल जाती है। शरीर और मन को तरोताजा करने, उनकी खोई हुई शक्ति की पूर्ति कर देने और आध्यात्मिक लाभ की दृष्टि से भी योगासनों का अपना अलग महत्व है। योगासनों से भीतरी ग्रंथियां अपना काम अच्छी तरह कर सकती हैं और युवावस्था बनाए रखने एवं वीर्य रक्षा में सहायक होती है। योगासनों द्वारा पेट की भली-भांति सुचारु रूप से सफाई होती है और पाचन अंग पुष्ट होते हैं। पाचन-संस्थान में गड़बडिय़ां उत्पन्न नहीं होतीं। योगासन मेरुदण्ड-रीढ़ की हड्डी को लचीला बनाते हैं और व्यय हुई नाड़ी शक्ति की पूर्ति करते हैं। योगासन पेशियों को शक्ति प्रदान करते हैं। इससे मोटापा घटता है और दुर्बल व्यक्ति तंदरुस्त होता है।
योगासन स्त्रियों की शरीर रचना के लिए विशेष अनुकूल हैं। वे उनमें सुन्दरता, सम्यक-विकास, सुघड़ता और गति, सौन्दर्य आदि के गुण उत्पन्न करते हैं। योगासनों से बुद्धि की वृद्धि होती है और धारणा शक्ति को नई स्फूर्ति एवं ताजगी मिलती है। ऊपर उठने वाली प्रवृत्तियां जागृत होती हैं और आत्मा-सुधार के प्रयत्न बढ़ जाते हैं। योगासन स्त्रियों और पुरुषों को संयमी एवं आहार-विहार में मध्यम मार्ग का अनुकरण करने वाला बनाते हैं, अत: मन और शरीर को स्थाई तथा सम्पूर्ण स्वास्थ्य, मिलता है। योगासन श्वास- क्रिया का नियमन करते हैं, हृदय और फेफड़ों को बल देते हैं, रक्त को शुद्ध करते हैं और मन में स्थिरता पैदा कर संकल्प शक्ति को बढ़ाते हैं। योगासन शारीरिक स्वास्थ्य के लिए वरदान स्वरूप हैं क्योंकि इनमें शरीर के समस्त भागों पर प्रभाव पड़ता है और वह अपने कार्य सुचारु रूप से करते हैं। आसन रोग विकारों को नष्ट करते हैं, रोगों से रक्षा करते हैं, शरीर को निरोग, स्वस्थ एवं बलिष्ठ बनाए रखते हैं। आसनों से नेत्रों की ज्योति बढ़ती है। आसनों का निरन्तर अभ्यास करने वाले को चश्में की आवश्यकता समाप्त हो जाती है।
योगासन से शरीर के प्रत्येक अंग का व्यायाम होता है, जिससे शरीर पुष्ट, स्वस्थ एवं सुदृढ़ बनता है। आसन शरीर के पांच मुख्यांगों, स्नायु तंत्र, रक्ताभिगमन तंत्र, श्वासोच्छवास तंत्र की क्रियाओं का व्यवस्थित रूप से संचालन करते हैं जिससे शरीर पूर्णत: स्वस्थ बना रहता है और कोई रोग नहीं होने पाता। शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आत्मिक सभी क्षेत्रों के विकास में आसनों का अधिकार है। अन्य व्यायाम पद्धतियां केवल बाह्य शरीर को ही प्रभावित करने की क्षमता रखती हैं, जब कि योगासन मानव का चहुँमुखी विकास करते हैं।

सोचने की शक्ति बढ़ाता है स्वस्तिकासन



य दि आप ऑफिस और घर की समस्या से अत्यधिक तनाव महसूस कर रहे हैं तो स्वस्तिकासन आपको अवश्य राहत पहुंचाएगा। साथ ही यह आसन शरीर की मांसपेशियों और रीढ़ के लिए काफी फायदेमंद है।

स्वस्तिकासन की विधि

समतल स्थान पर कंबल या कोई कपड़ा बिछाकर बैठ जाएं। इसके बाद दाएं पैर को घुटनों से मोड़कर सामान्य स्थिति में बाएं पैर के घुटने के बीच दबाकर रखें और बाएं पैर को घुटने से मोड़कर दाएं पैर की पिण्डली पर रखें। फिर दोनों हाथ को दोनों घुटनों पर रखकर ज्ञान मुद्रा बनाएं। ज्ञान मुद्रा के लिए तीन अंगुलियों को खोलकर तथा अंगूठे व कनिष्का को मिलाकर रखें। अब अपने दृष्टि को नाक के अगले भाग पर स्थिर कर मन को एकाग्र करें। आसन की इस स्थिति में जितने देर संभव हो उतने देर रहें। इस आसन को करने से मन की एकाग्रत बढ़ती है। ध्यान लगाने से सोचने की क्षमता में गुणात्मक वृद्धि होती है। दिनभर मन शांत रहता है।

डायबिटीज से है परेशान करे कुर्मासन योग



आजकल कई लोगों को शुगर की प्रॉब्लम है एवं इसी वजह से उन्हें खान-पान में काफी ज्यादा सावधानी बरतने की जरुरत होती है। जब भी कभी कोई स्वीट डिश बने या फिर किसी अन्य तरह के पकवान तो मजाल है कि कोई उन्हें स्वाद चखने के लिए बोल दे। आज कई लोग ऐसे है जो डायबिटीज की वजह से घुट-घुट कर जी रहे हैं।
लम्बी चौड़ी दवाइयों की लिस्ट के साथ आज डॉक्टर रोगियों को कुर्मासन करने की भी सलाह देते हैं। यकीन मानिये कुर्मासन योग के नियमित उपयोग से डायबिटीज के साथ-साथ पेट के अन्य विकारों से भी काफी हद तक छुटकारा पाया जा सकता है।

कुर्मासन योग कैसे करें 

(1) इस आसन को करने से पहले सबसे पहले बज्रासन के अवस्था में बैठ जाये। इसके बाद अपनी कोहनियों को नाभि के दोनों और लगाये एवं हथेलियों को मिलाकर ऊपर की और सीधा करके ऊपर उठाये।
(2) इसके बाद हलकी-हलकी श्वास छोड़ते हुए सामने की और झुके तथा
(3) अपनी ठोड़ी को जमीन पर टिका दें।
(4 इस दौरान नजर सामने की ओर बनाये रखें तथा हथेली को ठोड़ी अथवा गालो से स्पर्श कराकर रखें।
(5) कुछ देर तक इसी अवस्था में बने रहें एवं बाद में हलके-हलके श्वास छोड़ते हुए दोबारा वज्रासन की अवस्था में लौट आये। कुछ देर बाद दोबारा कोशिश करें।
कुर्मासन योग के फायदे 
(1) ये आसन डायबिटीज से पीडि़त के लिए रामबाण के रूप में काम करती है।
(2) इससे पेट के लीवर, किडनी एवं पैंक्रियास को मजबूत बनाये रखने में सहायता मिलती है जिससे की पेट की पाचन सम्बंधित विकार नहीं पनपते।
(3) पैर, पीठ एवं मेरुदंड की हड्डियों में खिचाव लाकर ये आसन शरीर को फ्लेक्सिबल बनाये रखने में काफी मदद करता है।

Tuesday, 20 June 2017

महिलाओं को शारीरिक सुंदरता देता है गोमुखासन



आ जकल युवाओं में नशे या स्मोकिंग के बढ़ते क्रेज से टीबी जैसी जानलेवा बीमारी किसी को भी कभी भी हो सकती है। नशे के अतिरिक्त दूषित वातावरण के चलते भी सांस संबंधी बीमारियां होने की संभावना काफी बढ़ जाती है। इससे बचने के लिए कुछ समय योगासन करने से ऐसी बीमारियों से बचा जा सकता है। वहीं असंतुलित खान-पान और अन्य कारणों के चलते कई महिलाओं का शरीर पूर्ण विकसित नहीं हो पाता है, उनके लिए भी यह काफी लाभदायक है। इस आसन के नियमित प्रयोग से महिलाओं को पूर्ण सौंदर्य प्राप्त होता है। साथ ही फेफड़ों से संबंधित बीमारियां तथा अन्य बीमारियों को दूर रखता है गोमुखासन।
इस आसन में हमारी स्थिति गाय के मुख के समान हो जाती है, इसलिए इसे गोमुखासन कहते हैं। स्वाध्याय एवं भजन, स्मरण आदि में इस आसन का प्रयोग किया जाता है। यह स्वास्थ्य के लिए भी काफी लाभकारी हैं।

गोमुखासन की विधि

किसी शुद्ध वातावरण वाले स्थान पर कंबल आदि बिछाकर बैठकर जाएं। अब अपने बाएं पैर को घुटनों से मोड़कर दाएं पैर के नीचे से निकालते हुए एड़ी को पीछे की तरफ नितम्ब के पास सटाकर रखें। अब दाएं पैर को भी बाएं पैर के ऊपर रखकर एड़ी को पीछे नितम्ब के पास सटाकर रखें। इसके बाद बाएं हाथों को कोहनी से मोड़कर कमर के बगल से पीठ के पीछे लें जाएं तथा दाहिने हाथ को कोहनी से मोड़कर कंधे के ऊपर सिर के पास पीछे की ओर ले जाएं। दोनों हाथों की उंगलियों को हुक की तरह आपस में फंसा लें। सिर व रीढ़ को बिल्कुल सीधा रखें और सीने को भी तानकर रखें। इस स्थिति में कम से कम 2 मिनिट रुकें।
फिर हाथ व पैर की स्थिति बदलकर दूसरी तरफ भी इस आसन को इसी तरह करें। इसके बाद 2 मिनट तक आराम करें और पुन: आसन को करें। यह आसन दोनों तरफ से 4-4 बार करना चाहिए। सांस सामान्य रखें।

गोमुखासन के लाभ

इस आसन से फेफड़े से सम्बन्धी बीमारियों में विशेष लाभ होता है। इस आसन से छाती चौड़ी व मजबूत होती है। कंधों, घुटनों, जांघ, कुहनियों, कमर व टखनों को मजबूती मिलती है तथा हाथ, कंधों व पैर भी शक्तिशाली बनते हैं। इससे शरीर में ताजगी, स्फूर्ति व शक्ति का विकास होता हैं। यह आसन दमा (सांस के रोग) तथा क्षय (टी.बी.) के रोगियों को जरुर करना चाहिए। यह पीठ दर्द, वात रोग, कन्धें के कड़ेपन, अपच, हर्नियां तथा आंतों की बीमारियों को दूर करता है। यह अण्डकोष से सम्बन्धित रोग को दूर करता है। इससे प्रमेह, मूत्रकृच्छ, गठिया, मधुमेह, धातु विकार, स्वप्नदोष, शुक्र तारल्य आदि रोग खत्म होता है। यह गुर्दे के विषाक्त (विष वाला) द्रव्यों को बाहर निकालकर रुके हुए पेशाब को बाहर करता है। जिसके घुटनों मे दर्द रहता है या गुदा सम्बन्धित रोग है उन्हें भी गोमुखासन करना चाहिए।

महिलाओं के लिए विशेष लाभ

यह आसन उन महिलाओं को अवश्य करना चाहिए, जिनके स्तन किसी कारण से दबी, छोटी तथा अविकसित रह गई हो। यह स्त्रियों के सौन्दर्यता को बढ़ाता है और यह प्रदर रोग में भी लाभकारी हैं।

देर तक बैठने से कमर दर्द होती है तो करें उत्कटासन



उत्कटा का अर्थ होता है शक्तिशाली। यह एक ऐसी योग क्रिया है जिसको करने से शरीर आकार कुर्सी के समान बन जाता है। उत्कटासन एक सबसे आसान योग क्रिया है जिसे बच्चे भी आराम से कर सकते हैं।
यह आसान पेट के लिये काफी अच्छा माना जाता है। अगर आपको अपच, कब्ज या एसिडिटी की समस्या है तो, आपको यह आसान रोजाना करना चाहिये। योग के नियमित प्रयास से कमर या पीठ दर्द ख़ासकर साइटिका और स्लिप डिस्क की संभावना नहीं रहती। ध्यान रहे कि जिन्हें पहले से दर्द हो उन्हें खड़े होने वाले यह आसन नहीं करने चाहिए।

उत्कटासन के लाभ


  • इस आसन को करने से शरीर में स्फूर्ति और ऊर्जा बढ़ती है।
  • इससे पैरों की एडयि़ां तथा मासपेशियां मजबूत बनती हैं।
  • पेट का मोटापा घटता है, रीढ़ की हड्डी मजबूत बनती है, गठिया, साईटिका और पैरों की छोटी-मोटी बीमारियां दूर होती है।
  • पेट की बीमारियां जैसे, अपच, कब्ज, एसिडिटी आदि भी दूर होती है।
  • अगर आप के पैरों में अधिक चलने से दर्द होता हो तो, वह भी ठीक हो जाता है।


उत्कटासन की विधि

इस आसन को करने के लिये सीधे खड़ें हो जाएं, अपने हाथों को सामने की ओर फैला कर सीधा कर के रखें। अब कुर्सी के आकार में पोज बनाते हुए अपने घुटनों को मोड़ें। उसके बाद धीरे से सामान्य अवस्था में आ जाएं। इसको करते वक्त अपनी एडयि़ों को भी ऊपर की ओर उठाना चाहिये, लेकिन अगर आप ऐसा नहीं कर पा रहे हैं तो कोई बात नहीं है। इस अवस्था में 1 मिनट तक रूके। इस क्रिया को 5 से 10 मिनट तक करें।
योग के नियमित प्रयास से कमर या पीठ दर्द ख़ासकर साइटिका और स्लिप डिस्क की संभावना नहीं रहती।

Monday, 19 June 2017

गुर्दा और मूत्र रोग दूर करता है गोरक्षासन



यदि आपको घुटनों, पिंडली और नितम्ब के जोड़ों की कठोरता को दूर करना है या शरीर के जोड़ों में दर्द रहता है तो गोरक्षासन आपके लिए सबसे उत्तम उपाय है। इस आसन से पैर व घुटनें मजबूत होते हैं और लचीलापन आता है। इससे जोड़ों, नाडिय़ों व धमनियों को ऊर्जा मिलती है। पेट में गैस की समस्या हो तो उसे खत्म करता है, गुर्दा रोग तथा मूत्र दोषों को दूर करता है। इस आसन को गोरक्षासन और भद्रासन कहते हैं। इस आसन में मूलाधार चक्र पर ध्यान पड़ता है जिससे कुंडलिनी चक्र को जाग्रत करने में मदद करता है।

गोरक्षासन की विधि

किसी साफ-स्वच्छ और समतल स्थान पर आसन या कंबल आदि बिछाकर बैठ जाएं। फिर अपने दोनों पैरों को घुटनों से मोड़कर सामने की ओर दोनों पैरों के तलवों व एडिय़ों को आपस में मिलाएं। अब सांस लेते हुए हथेलियों को घुटनों पर सीधा करके रखें तथा अंगुलियों को खोलकर व अंगूठे को तर्जनी अंगूली के मूल (जड़) के पास रखें। ध्यान रखें कि शरीर व हाथ सीधा रहें तथा घुटनों को जमीन पर सटाकर रखें। फिर सांस को छोड़े। ठोड़ी को छाती में सटाकर छाती पर दबाव डालें। मूलाधार चक्र पर ध्यान एकाग्र करें तथा दृष्टि भी वही पर टिकाएं। इस आसन कि स्थिति में पहले 3 मिनट तक रहें और बाद में 10 मिनट तक इस आसन का अभ्यास करें।

गोरक्षासन के लाभ

इसके अभ्यास से रोगों में लाभ इस आसन से कुंडलिनी जागृत हो कर सुष्मना नाडिय़ों में प्रवेश करती है। यह घुटनों, पिंडली और नितम्ब के जोड़ों की कठोरता को दूर करता है। इस आसन से पैर व घुटनें मजबूत होते हैं और इसमें लचीलापन आता है। इस आसन से जोड़ों, नाडिय़ों व धमनियों को ऊर्जा मिलती है। यह पेट की गैस को खत्म करता है, गुर्दा रोग तथा मूत्र दोषों को दूर करता है। कमर के नीचे के हिस्से के लिए भी यह आसन लाभकारी होता है तथा यह शरीर को शुद्ध करता है। यह आसन संकल्प शक्ति बढ़ाता है, बुद्धि को बढ़ाता है तथा पाचन शक्ति को मजबूत बनाता है। यह पिंडलियों के दर्द को ठीक करता है तथा नितम्ब के पास के अधिक चर्बी को कम करता हैं।

पूरे विश्व को जोडऩे का काम कर रहा है योग


प्रधानमंत्री मोदी ने लोगों से अपील की कि वे २१ जून को तीसरे अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर अपने परिवार की तीन पीढिय़ों के साथ योग करते हुए तस्वीर पोस्ट करें। आपने कहा कि योग  परिवार के साथ-साथ पूरे विश्व को जोडऩे का काम कर रहा है। स्वस्थ तन और मन के लिए योग कितना जरूरी है, यह प्रधानमंत्री मोदी अच्छी तरह समझते है। इसलिए मोदी ने अपनी जीवन शैली में योग को महत्वपूर्ण स्थान दे दिया है। प्रधानमंत्री चाहे कितना व्यस्त रहे, लेकिन योग के लिए वक्त निकाल लेते हैं। प्रधानमंत्री मोदी सुबह 4:45 बजे उठ जाते है। सबसे पहले वो अपनी हथेलियों को देखते हुए 'कराग्रे वसते लक्ष्मी, करमूले तू सरस्वती। करमध्ये तु गोविन्दाय, प्रभाते कर दर्द्गानमÓ मंत्र का जाप करते है। इसके बाद वे करीब 10 मिनट की प्रार्थना करते हैं। फिर वे पीएमओ के बगीचे में आ जाते है, जहां वे करीब एक घंटे तक योग करते हैं। मोदी गुजरात के सीएम होने के दौरान भी दिन की शुरूआत ऐसी ही होती थी। एक बातचीत में मोदी ने कहा था कि ये उनका सौभाग्य है कि उन्हें बचपन से ही योग की शिक्षा मिली और उन्होंने बचपन से ही प्राणायाम किया और वो उनके बचपन से किया गया योग अभी तक उपयोगी सिद्ध हो रहा है। पीएम मोदी ने साथ ही कहा कि वो सभी से ये कहना चाहते है कि योग को अपने जीवन में स्थान देना चाहिए। मोदी ने कहा कि मन कुछ कहता है और शरीर कुछ करता है और समय हमें टकराव कि दिशा में ले जाता है, जो इन तीनों चीजों में तालमेल बिठा पाता है उसे ही योग कहते है।

आँखों के लिए बेहतरीन व्यायाम



त्वचा की तरह ही चमकती हुई स्वच्छ आखें भी अच्छे स्वास्थ्य की पहचान है। अगर आपकी सेहत खऱाब चल रही हो या आप भावनात्मक या शारीरिक रूप से दुखी महसूस कर रहे हों तो आपकी आंखें सुस्त और तनाव में नजऱ आने लगती हैं। कभी-न-कभी हर किसी की आंखों में तनाव होने की शिकायत होती है। इसके प्रमुख कारण प्रदूषण, कम रोशनी, देर तक कंप्यूटर पर काम करना, पोषण की कमी मानसिक तनाव आदि है। दूसरा है अपनी आंखों के बहुत नज़दीक लाकर किसी किताब या कागज़ को पढऩा। पढऩेवाली चीजें आखों से कम-से-कम दस इंच की दूरी पर रखें। खूबसूरत स्वस्थ आंखों की बुनियादी ज़रूरत है संतुलित खाना. खानपान और पोषण के अलावा आँखों की सेहत के लिए दूसरी जरुरी चीज है आँखों के लिए व्यायाम रोज़ाना सिर्फ कुछ मिनट हल्की फुलकी एक्सरसाइज करने से आँखों की मांसपेशियां मज़बूत होती हैं और छोटी मोटी बीमारियाँ भी ठीक हो जाती है।
दूसरे महायुद्ध के ठीक बाद बेल्जियम के हज़ारों किसानों को एक अलग तरह की रतौंधी होने लगी। सर्दियां चल रही थीं इसलिए लोगो को भोजन में ताज़ा फल सब्जियां नहीं मिल रही थीं। डॉक्टर हैरान थे, क्योंकि उन पर न तो दवाइयों और न ही किसी इलाज का कोई असर हो रहा था। फिर बसंत ऋतु आई और भूखे किसानों को पेड़ो की हरी कलियां, हरी भरी फल सब्जियां और अन्य खाने पीने की वस्तुए भरपूर मात्रा में मिलने लगी जिससे उनकी रतौंधी गायब हो गई। यह पोषण की ज़बर्दस्त जीत थी।  विटामिन-ए आखों के लिए मुख्य विटामिन है। यह मक्खन, सलाद, टमाटर, पनीर, दूध, शलजम के पत्तों और गाजर के रस में पाया जाता है जो आंखों को सुस्ती व थकावट से बचाता है।

भुजांगासन

भुजंगासन को कोबरा पोज भी कहा जाता है क्योंकि इसमें शरीर के अगले भाग को कोबरा के फन के तरह उठाया जाता है। भुजंगासन की जितनी भी फायदे गिनाए जाएं कम है। भुजंगासन का महत्व कुछ ज्यादा ही है क्योंकि यह सिर से लेकर पैर की अंगुलियों तक फायदा पहुंचाता है। अगर आप इसके विधि को जान जाएं तो आप सोच भी नही सकते यह शरीर को कितना फायदा पहुँचा सकता है। लेकिन करते समय आपको इसकी सावधानियां के बारे में भी जानकारी होनी चाहिए।
भुजंगासन कैसे करें
आप सबसे पहले पेट के बल लेट जाएं। अब अपने हथेली को कंधे के सीध में लाएं। दोनों पैरों के बीच की दुरी को कम करें और पैरों को सीधा एवं तना हुआ रखें। अब साँस लेते हुए शरीर के अगले भाग को नाभि तक उठाएं। ध्यान रहे की कमर पर ज्यादा खिंचाव न आये। अपने हिसाब से इस आसान को बनाए रखें। योगाभ्यास को धारण करते समय धीरे धीरे स्वाँस लें और धीरे धीरे स्वाँस छोड़े। जब अपनी पहली अवस्था में आना हो तो गहरी स्वाँस छोडते हुए प्रारम्भिक अवस्था में आएं। इस तरह से एक चक्र पूरा हुआ। शुरुवाती दौर में इसे 3 से 4 बार करें। धीरे धीरे योग का धारण समय एवं चक्र की नंबर को बढ़ाएं।

सर्वांगासन

सर्वांगासन व्यायाम करने के लिए सबसे पहले एक सहज पोजीशन में बैठ जाए, जिससे आपका दिमाग और शरीर रिलैक्स महसूस कर सके। फिटनेस एक्सपर्ट के अनुसार टांगो को सीधा रखते हुए मेट पर लेट जाए और रिलैक्स करें। इसके बाद अपनी दोनों टांगो को ऊपर कि तरफ नब्बे डिग्री तक ले जाए और फिर टांगो को स्ट्रेच करते हुए जितना हो सके हिप्स के सहारे ऊपर तक ले जाए। आँखें बंद कर ले और घुटनो को मोड़ते हुए नीचे लाये और थोड़ी देर आराम करें। इसके बाद धीरे-धीरे बैठ जाए।

पलकें झपकाना

योग में आँखों के लिए छोटी-छोटी एक्सरसाइज बताई गई है जो बहुत ही असरदार है। जिसको हम सूक्ष्म व्यायाम कहते है। इसमें सबसे पहले आँखों के लिए पलकें झपकाना होता है। धीरे-धीरे आँखें को झपकाना होता है। फिर इसके बाद मूवमेंट को तेज करते जाते है। इसके बाद अपनी आँखों को कुछ सेकंड के लिए बंद करते है और फिर धीरे-धीरे खोलते है। पंद्रह से बीस बार इसको करना है हर बार यह व्यायाम करने के बाद आँखों को कुछ देर के लिए बंद रखना है।

Monday, 10 April 2017

असाध्य को साध्य बनाती होम्योपैथी



आजकल मॉडर्न मेडिसिन हर तरह की बीमारियों के लिए टेंशन को प्रमुख कारण बताती जा रही है जबकि होम्योपैथी में सभी प्रकार की बीमारियों के लिए शारीरिक के साथ-साथ मानसिक कारणों को पूर्व में ही प्रमुखता दी जा चुकी है। इसी प्रकार कैंसर के उत्पत्ति के वास्तविक कारणों की अगर चर्चा करें तो आज भी ज्ञात नहीं हो सका है। हो सकता है कि कैंसर की उत्पत्ति सिगरेट, शराब पीने, तम्बाकु, गुटके के सेवन या अनुवांशिक कारणों को माना जाता है परन्तु किसी को लगी गहरी चोट, शोक, दुख, चिंता, काम धंधे में आर्थिक हानि इत्यादि मानसिक कारणों को भी भुलाया नहीं जा सकता। होम्योपैथी में दो तरह के लक्षणों को प्रमुखता दी गई है एक तो सब्जेक्टिव लक्षण जिसे मरीज तथा उसके रिश्तेदार या उसकी शारीरिक जांच रिपोट्र्स बताते है तथा दूसरा ऑब्जेक्टिव लक्षण जिसे होम्योपैथी चिकित्सा स्वयं अनुभव करता है।
होम्योपैथिक इलाज केवल सर्दी-खंसी, बुखार अथवा त्वचा रोगों तक सीमित न रहकर निरंतर होते जा रहे अनुसंधान की बदौलत ऐसी कई असाध्य बीमारियों जैसे- कैंसर, डायबिटीज, गठिया, अस्थमा, सोरायसिस, स्पॉंइिडलाटिस्ट, टॉन्सिलाइटिस्ट, साइनोसाइटिस्ट, पथरी, प्रोस्टेट इत्यादि कई असाध्य बीमारियों के लिए साध्य बनती जा रही है। यदि यहां कैंसर के मरीजों की बात करें तो उनकी ही भाषा में कैंसर के मरीज को उसका चिकित्सक जैसा कहता है वैसा वे कराते जाते हैं। ऑपरेशन का बोलते है तो ऑपरेशन करा लेते हैं, कीमोथेरेपी का बोलते है तो कीमोथेरैपी करा लेते हैं, रेडियोथेरैपी का बोलते है तो रेडियोथेरैपी करा लेते है फिर भी कैंसर से छुटकारा मिलना असंभव सा प्रतीत होता है या शरीर के एक स्थान से दूसरे स्थान पर पुन: हो जाता है। ऐसे मरीज क्या करें, कहां जाएं? 
जब कोई राह नहीं सूझती, हर तरह के इंजेक्शन, ऑपरेशन नाकाम साबित हो जाते हैं तब लोगों को होम्योपैथी की याद आती है। जब सभी प्रकार की प्रचलित चिकित्सा पद्धतियों से आशानुरूप परिणाम लोगों को नहीं मिलता है तब एक मात्र विकल्प होम्योपैथी शेष रह जाता है। आमतौर पर होम्योपैथी डॉक्टर के पास मरीज तब पहुंचता है जब कई बार रेडियोथैरेपी, कीमोथैरेपी और ऑपरेशन करा चुका होता है, फिर भी उसे कोई फायदा नहीं होता। लेकिन जो मरीज ऑपरेशन नहीं कराना चाहते, उनके लिए भी होम्योपैथी जीने की राह को आसान बना देती है। होम्योपैथी में कैंसर की कई ऐसी दवाइयां मौजूद हैं, (कार्सिनोसिन, हाईड्रेस्टिस, फाइटोलैका, आर्सेनिक, आर्स आयोडाइड, लाइकोपोडियम, कोनियम, फॉस्फोरस, चेलिडोनियम, मर्कसॉल, एपिस-मेल, कंडुरंगो, कैप्सिकम, केमोमिला, स्टेफिसेग्रिया इत्यादि) जो मरीज के लक्षणों, रिपोट्र्स और बीमारी की स्टेज पर तय होती हैं। होम्योपैथी दवाइयों से सूजन, दर्द और जलन को भी कम किया जा सकता है। आमतौर पर लोगों का मानना है कि कैंसर में होम्योपैथिक ट्रीटमेंट काफी धीमा इलाज है, लेकिन ऐसा है नहीं। 50 मिलिसिमल पोटेंसी की होम्योपैथिक दवाइयां जल्द आराम पहुंचाती हैं। ये न सिर्फ बीमारी को फैलने से रोकती हैं बल्कि उसके बार-बार होने की संभावना भी खत्म करती हैं लेकिन मरीज जब तक होम्योपैथ डॉक्टर तक पहुंचता है उसकी बीमारी काफी बढ चुकी रहती है इसलिए कभी-कभी समय भी लगता है।
कैंसर पर एलोपैथी ट्रीटमेंट के साइड इफेक्ट जैसे कि कीमोथैरेपी से कैंसर सेल के साथ शरीर के नॉर्मल सेल्स भी मरते (टूटते) हैं। रेडियोथैरेपी से असहनीय जलन होती है साथ ही कमजोरी, बाल झडऩा, बार-बार उल्टी हो जाना, खून की कमी हो जाना, भूख नहीं लगना इत्यादि ऐसी समस्याएं है जो कैंसर मरीजों में आमतौर पर देखने को मिलती है। इस तरह की सभी समस्याओं के लिए होम्योपैथी उपचार एक सरल सामाधान हो सकता है क्योंकि होम्योपैथिक ट्रीटमेंट में साइड इफेक्ट नहीं है साथ ही दवाइयां भी लेना आसान है। होम्योपैथी दवा शुगर के मरीज भी आसानी से डिस्टिल या गर्म पानी से दवाइयां ले सकते हैं। होम्योपैथी दवाइयां रेडियोथैरेपी और कीमोथैरेपी के दुष्प्रभावों को भी कम करती हैं। 
यदि इलाज को तुलनात्मक दृष्टि से देखें तो कैंसर में एलोपैथी ट्रीटमेंट का खर्च बहुत ज्यादा होता है साथ ही रिस्क भी कई गुना ज्यादा होती है जबकि होम्योपैथी इलाज, एलोपैथी के एक महंगे इंजेक्शन या बडे अस्पताल में एक दिन भर्ती होने के खर्च से भी कम में पूरे हफ्ते या महीने भर की दवा ली जा सकती है।
महिलाओं में होने वाले प्रमुख कैंसर स्तन कैंसर, ग्रीव कैंसर, ओवेरियन कैंसर, गालब्लैडर कैंसर इत्यादि के साथ-साथ पुरूषों में मुख कैंसर, गले का कैंसर तथा प्रोस्टेट कैंसर प्रमुख रूप से पाया जाता है।

महिलाओं में स्तन कैंसर 

महिलाओं में स्तन कैंसर सबसे सामान्य होता है। और अधिकतर महिलायें इसके लक्षणों को अनदेखा करती हैं। लेकिन, ऐसा करना कई बार उनकी जान भी ले सकता है। ऐसे में महिलाओं को चाहिए कि वे इसके लक्षण नजर आते ही फौरन चिकित्सीय सहायता लें।

स्तन में गांठ

अगर कोई महिला अपने किसी भी एक स्तन में कोई गांठ महसूस करती है (जिसमें भले हीं कोई दर्द न हो) तो यह उस महिला में स्तन कैंसर का लक्षण हो सकता है। स्तन के अलावा अजीब तरह की गांठ स्तन के आस पास यानी बगल वगैरह में भी पाई जा सकती है। 

श्रोणि दर्द (पेल्विक पेन)

नाभि के नीचे होने वाले दर्द को श्रोणि दर्द कहते है। यह दर्द एंडोमेट्रियल कैंसर, डिम्बग्रंथि के कैंसर, गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर, फैलोपियन ट्यूब के कैंसर और योनि के कैंसर के लक्षण को दर्शा सकता है। अत: इसकी जांच करवाएं।

पीठ के निचले हिस्से में दर्द 

अगर किसी महिला की पीठ के निचले हिस्से में लगातार दर्द रहता हो तो इसे हल्के से नहीं लेना चाहिए और उचित जांच करवानी चाहिए। कई मामलों में यह डिम्बग्रंथि के कैंसर का एक लक्षण भी हो सकता है। 

पेट की सूजन और पेट फूला रहना

पेट की सूजन और पेट फूला फूला रहना डिम्बग्रंथि के कैंसर के आम लक्षणों में से एक है। यह एक ऐसा लक्षण है जिसे आमतौर पर महिलाएं नजरअंदाज कर देती हैं। 

असामान्य रूप से योनि से खून का स्राव

जब महिलाओं में गाईनेकोलिक कैंसर होता है तो उनकी योनी से असामान्य रूप से खून का स्राव होता है। ये गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर, गर्भाशय के कैंसर अथवा डिम्बग्रंथि के कैंसर के लक्षण भी हो सकते हैं।

अक्सर बुखार का रहना

बुखार जो जल्दी जाने का नाम नहीं लेता या जो लगभग 7 दिनों तक रहता हो या किसी को बार बार बुखार लगता हो और उसका कारण समझ  में नहीं आता हो तो यह कैंसर का लक्षण हो सकता है। हालांकि अक्सर रहने वाला बुखार और भी कई दूसरी बीमारियां होने का संकेत देता है इसलिए घबराएं नहीं और अपनी जांच करवाएं।

लगातार पेट खराब रहना

यदि आपका पेट अक्सर खराब रहता है या आप अक्सर दस्त, गैस, पतले दस्त, या कब्ज के शिकार रहते हैं या आपके मल में रक्त का अंश रहता हो तो आपको किसी योग्य डॉक्टर से मिलना चाहिए क्योंकि ये कोलोन कैंसर या गाईनेकोलिक कैंसर के लक्षण हो सकते हैं।

योनि में उत्पन्न असामान्य बातें

अगर आपकी योनी में किसी तरह का घाव, छाला रह रहा हो या वहां की त्वचा के रंग में असामान्य परिवर्तन हो रहा हो या असामान्य स्राव होता है तो आपको योनि की किसी योग्य डॉक्टर से परिक्षण करवाना चाहिए क्योंकि ये कैंसर के लक्षण हो सकते हैं।

थकान

थकान कैंसर का एक आम लक्षण है। यह आमतौर पर तब होता है जब कैंसर उन्नत अवस्था में पहुंच जाता है। लेकिन यह लक्षण प्रारंभिक अवस्था में भी उभर सकता है। अगर आपको बिना काम किये या बिना परिश्रम किये बहुत ज्यादा थकान लगे या थकान जो आपको सामान्य दैनिक गतिविधियों को करने से रोके, कैंसर का लक्षण हो सकता है। कैंसर से बचने के लिए जरूरी है कि आप नियमित जांच करवाती रहें। लक्षण नजर आते ही फौरन चिकित्सीय सलाह लें। देर से आपको काफी नुकसान हो सकता है।

पुरुषों में प्रोस्टेट कैंसर 

पुरुषों में प्रोस्टेट कैंसर बहुत खतरनाक बीमारी है। कैंसर के 5 मरीजों में से लगभग 3 की मौत प्रोस्टेट कैंसर के कारण ही होती है। अगर प्रोस्टेट कैंसर का पता शुरुआती चरणों में ही चल जाए तो इसके उपचार में आसानी होती है। बढती उम्र, आनुवांशिक और हार्मोन से संबंधित कारणों के कारण प्रोस्टेट कैंसर होता है, लेकिन प्रोस्टेट कैंसर के लक्षण सामान्य बीमारी या फिर मधुमेह के करीब नजर आते है। इसी वजह से आदमी को इसका पता देर से लगता है, जिसके कारण प्रोस्टेट कैंसर मौत का कारण बनता है। 
पेशाब में जलन, इन्फेक्शन/ दर्द के बाद सबसे आम समस्या है पेशाब का रूक जाना (रूकावट) या पेशाब की धार का पतली हो जाना, जिसके कई सारे कारण हो सकते है परन्तु पुरूषों में पाई जाने वाली प्रोस्टेट ग्रंथी जब बढऩे लगती है तो मूत्र मार्ग पर दबाव डालती है जिसके कारण पेशाब करने में परेशानी होने लगती है जिसके परिणाम स्वरूप बार-बार पेशाब जाने की आदत हो जाती है क्योंकि एक बार में पेशाब की थैली पूरी तरह खाली नहीं होती है और पुन: थोड़ी पेशाब बनने पर वापस थैली भरी हुई सी महसूस होने लगती है फिर से पेशाब करने पर पुन: थैली, पूरी तरह से खाली नहीं होती है, बची हुई पेशाब को पोस्ट वाइड यूरिन कहा जाता है।
प्रोस्टेट का साईज बढऩे के कारण धीरे-धीरे प्रोस्टेट कैंसर या प्रोस्टेट का एडिनोकार्सिनोमा हो सकता है। इसलिए समय रहते बीमारी को बढऩे से रोकने की आवश्यकता है। कई लोगों की यह सोच है कि पेशाब की समस्या सिर्फ प्रोस्टेट के कारण और केवल पुरुषों में ही होती है जबकि यदि आंकड़े देखें तो यह समस्या पुरुषों से ज्यादा स्त्रियों (महिलाओं) में अधिक होती है जिसका कारण महिलाओं में नीचे के भाग की बनावट प्रमुखता से जिम्मेदार है जिसके कारण उन्हें बार-बार इंफेक्शन होता रहता है।
कई बार कोई ऑपरेशन या इंफेक्शन के बाद या दवाईयों के अत्याधिक प्रयोग के कारण भी पेशाब में जलन/दर्द अथवा रूकावट जैसी समस्या हो सकती है। प्रोस्टेट होने के असली कारणों का पता अभी तक नहीं चल पाया है लेकिन कुछ कारण हैं जो कैंसर के इस प्रकार के लिए जोखिम कारक हैं जैसे धूम्रपान, मोटापा, सेक्स के दौरान फैला वायरस या फिर शारीरिक शिथिलता यानी की व्यायाम न करना प्रोस्टेट कैंसर का कारण हो सकता है। यदि परिवार में किसी को पहले भी प्रोस्टेट कैंसर हुआ है तो भी इस कैंसर के होने का जोखिम बना रहता है। ज्यादा वसायुक्त मांस खाना भी प्रोस्टेट कैंसर का कारण बन सकता है।