स्वस्थ शरीर भगवान की अनुपम भेंट हे स्वस्थ पाचन तत्रं हमारे स्वास्थ का अभिन्न् भाग है। पाचन तंत्र की समस्याओं से अनेक रोगों का जन्म होता है वर्तमान में बदलती जीवन शैली और खान-पान से हमारा स्वास्थय बहुत प्रभावीत हुआ है । विषेषकर बच्चों में इस करण से बहुत सी समस्याएंॅ जन्म ले रही है। खराब पाचन और कब्ज की समस्या बच्चों में विकराल रूप धारण करती जा रही है । प्रस्तुत है इस समस्या से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य तथा मुख्य कारण एवं निवारण ।
बच्चों में कब्ज की उम्र क्या होती है।
बच्चों में कब्ज़ दो उम्र में ज्यादा पाया जाता है
1- जन्मजात
2- ऊपर का आहर शुरू करनें के पश्चात अर्थात जब बच्चा मॉं के दूध के अतिरिक्त ऊपरी आहार लेना शुरू कर दे इसके अलावा स्कूल जाने वाले बच्चों में अव्यवस्थित शौच की आदतों के कारण भी अधिकांश बच्चों में यह समस्या जन्म लेती है ।
बच्चों कब्ज़ के मुख्य कारण क्या है।
बच्चों में कब्ज़ के मुख्य कारण इस प्रकार है ।
1- जन्म से कब्ज़/ शौच न करना: ऑतों में नसों की चाल न होने से/ ऐसी समस्या के लिए तुरन्त शिशु शल्य चिकित्सक (अतिविशेषज्ञ) से परामर्श लेना चाहिए ।
2- जन्म के बाद बढ़ती उम्र में कब्ज़ का होना भोजन की अनियमितताओं को इंगित करता है । यह समस्या नियमित भोजन और व्यवस्थित दिनचर्या एवं दवाईयों से ठीक हो सकती है
3- कुछ बच्चों में रीढ की हड्डी, स्नायु तंत्र एवं नसों से संबंधित रोगो के कारण भी यह समस्यां हो सकती है ।
4- उपर्युक्त तीनों ही स्थितीयों में पीडियाट्रिक सर्जन (बच्चों के सुपरस्पेशिलिस्ट सर्जन) का परामर्श लेना नितांत आवश्यक है। जन्मजात एवं स्नायु रोग संबंधित समस्याओं को इस लेख में शामिल नहीं किया गया है।
2- ऊपर का आहर शुरू करनें के पश्चात अर्थात जब बच्चा मॉं के दूध के अतिरिक्त ऊपरी आहार लेना शुरू कर दे इसके अलावा स्कूल जाने वाले बच्चों में अव्यवस्थित शौच की आदतों के कारण भी अधिकांश बच्चों में यह समस्या जन्म लेती है ।
बच्चों कब्ज़ के मुख्य कारण क्या है।
बच्चों में कब्ज़ के मुख्य कारण इस प्रकार है ।
1- जन्म से कब्ज़/ शौच न करना: ऑतों में नसों की चाल न होने से/ ऐसी समस्या के लिए तुरन्त शिशु शल्य चिकित्सक (अतिविशेषज्ञ) से परामर्श लेना चाहिए ।
2- जन्म के बाद बढ़ती उम्र में कब्ज़ का होना भोजन की अनियमितताओं को इंगित करता है । यह समस्या नियमित भोजन और व्यवस्थित दिनचर्या एवं दवाईयों से ठीक हो सकती है
3- कुछ बच्चों में रीढ की हड्डी, स्नायु तंत्र एवं नसों से संबंधित रोगो के कारण भी यह समस्यां हो सकती है ।
4- उपर्युक्त तीनों ही स्थितीयों में पीडियाट्रिक सर्जन (बच्चों के सुपरस्पेशिलिस्ट सर्जन) का परामर्श लेना नितांत आवश्यक है। जन्मजात एवं स्नायु रोग संबंधित समस्याओं को इस लेख में शामिल नहीं किया गया है।
बच्चों में कब्ज़ के क्या-क्या- लक्षण होते है ।
बच्चों में कब्ज़ की बीमारी भिन्न-2 रूप से प्रस्तुत होती है। इसका मुख्य कारण प्रतिदिन शौच न करना या 2-3 दिन के अंतर पर ही शौच क्रिया करना है। अधिकांष बच्चों में यह समस्या समय के साथ बढ़ती जाती है। और उनमें कड़ा एवं सूखा मल होना तथा शौच के दौरान रोग इत्यादि लक्षण प्राय: पाये जाते है । ये बच्चें शौच क्रिया के लिए बैठने के बजाय खडे खडे मल-त्याग करते है । कुछ बच्चेे जो कि प्रतिदिन शौचालय जाते है परन्तु उनका कोई निश्चित समय नहीं होता वे भी कब्ज़ की श्रेणी में ही आते हैं और इनमें यह समस्या बढ़ती जाती है। अधिक समस्या होने पर शौच का रास्ता/मलद्वार बाहर भी निकलता है
वीनिंग क्या है और इसका सही तरीका क्या है।
प्रारंभिक लगभग 6 माह तक मां का दूध ही शिशु के लिए सर्वोत्तम आहार है । इसके बाद उसको मां के दूध के अतिरिक्त भी पोषण की आवष्यकता होती है जो कि उपरी भेाजन द्वारा पूरा किया जाना चाहिए । मॉं के दूध से उपरी आहार के परिवर्तन की प्रक्रिया को वीनिंग कहते है । इसके लिए बच्चे को मॉ के दूध के अतिरिक्त दाल का पानी, उबला चावल का पानी, दलिया, खिचड़ी, आलू इत्यादी शुरू किया जाता है और धीरे- धीरे उपरी आहार की मात्रा बढ़ाते हुए मां के दूध की मात्रा को घटाया जाता है।
बच्चों को कब्ज से दूर रखने हेतु कैसा भोजन लें!
बच्चों में कब्ज से बचने के लिए भोजन का सबसे महत्वपूर्ण स्थान है। इसके लिए निम्नलिखित भोजन का सेवन करें।
क्या खाएं- हरी पत्तेदार सब्जी, सलाद, फल, खिचडी, दलिया, दाल-चावल, /रोटी, अंडा, केला, दूध, (उपयूक्त मात्रा में ) और पानी अच्छी मात्रा में पिएं ।
क्या न खाएं- टॉफी, चॉकलेट, बिस्किट, चिप्स इत्यादी , मैदा का सामान तली चीज़े (समोसा, कचौरी) अधिक मिर्च एवं चिकनाई, नमकीन/मिक्चर और अत्यअधिक दूध का सेवन बिल्कुल न करें ।
कब्ज़ से बचने के लिए दिनचर्या में क्या परिवर्तन होने चाहिए ।
कब्ज़ आदि समस्याओं से बचने के लिए दिनचर्या व्यस्थित होना आवश्यक है । इसके लिए प्रतिदिन बच्चों को प्रात: एक कप गुनगुना (हल्का गर्म) दूध देकर 10 मिनट शौच के लिए अवश्य बैठायें। शौच न होने पर भी इसे छोड़ें नहीं और कम से कम 1 माह तक इसका पालन करें और भोजन में लिए परहेज़ का पालन करें । इसके अतिरिक्त बच्चों को साफ़ पानी अच्छी मात्रा में पिलाएंॅ और प्रति 2-3 घंटे में मूत्र-त्याग करनें कों कहें । बाहरी भेाजन से बचें और शारीरिक स्वच्छता का ध्यान रखें । बच्चें के शौच का समय प्रात: काल निश्चित करने का प्रयास करें ।
क्या खाएं- हरी पत्तेदार सब्जी, सलाद, फल, खिचडी, दलिया, दाल-चावल, /रोटी, अंडा, केला, दूध, (उपयूक्त मात्रा में ) और पानी अच्छी मात्रा में पिएं ।
क्या न खाएं- टॉफी, चॉकलेट, बिस्किट, चिप्स इत्यादी , मैदा का सामान तली चीज़े (समोसा, कचौरी) अधिक मिर्च एवं चिकनाई, नमकीन/मिक्चर और अत्यअधिक दूध का सेवन बिल्कुल न करें ।
कब्ज़ से बचने के लिए दिनचर्या में क्या परिवर्तन होने चाहिए ।
कब्ज़ आदि समस्याओं से बचने के लिए दिनचर्या व्यस्थित होना आवश्यक है । इसके लिए प्रतिदिन बच्चों को प्रात: एक कप गुनगुना (हल्का गर्म) दूध देकर 10 मिनट शौच के लिए अवश्य बैठायें। शौच न होने पर भी इसे छोड़ें नहीं और कम से कम 1 माह तक इसका पालन करें और भोजन में लिए परहेज़ का पालन करें । इसके अतिरिक्त बच्चों को साफ़ पानी अच्छी मात्रा में पिलाएंॅ और प्रति 2-3 घंटे में मूत्र-त्याग करनें कों कहें । बाहरी भेाजन से बचें और शारीरिक स्वच्छता का ध्यान रखें । बच्चें के शौच का समय प्रात: काल निश्चित करने का प्रयास करें ।
बच्चों में कब्ज़ की समस्या क्या पूर्ण रूप से ठीक हो सकती है ।
हॉ. बच्चों में कब्ज़ की समस्या का निवारण पूर्ण रूप से किया जा सकता है परन्तु उसके लिए उचित चिकित्सकीय परामर्श की महती विशेषता है। योग्य शिशु शल्य चिकित्सक का परामर्श लें। भोजन में आवश्यक परिवर्तन और बच्चों की दिनचर्या को नियंमित करें तो इस समस्या पर काबू पाया जा सकता है। यदि इसका सही समय पर उपचार न हो तो समय के साथ यह समस्या विकराल रूप धारण कर लेती है और बच्चे के शारीरिक एवं मानसिक विकास पर इसका विपरीत प्रभाप पड़ता है। कुछ बच्चों में इसके कारण सर्जरी भी करनी पड़ सकती है ।
नोट: जन्मजात एवं स्नायुरोग संबंधित पाचन तंत्र समस्याओं को इस आलेख में शामिल नहीं किया गया है। इसके लिए पीडियाट्रिक सर्जन से मिल कर परार्मश लेना उचित है ।
नोट: जन्मजात एवं स्नायुरोग संबंधित पाचन तंत्र समस्याओं को इस आलेख में शामिल नहीं किया गया है। इसके लिए पीडियाट्रिक सर्जन से मिल कर परार्मश लेना उचित है ।
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