योग में सेहत का मतलब न तो तन से होता है और न मन से, इसमें सेहत का मतलब सिर्फ ऊर्जा के काम करने के तरीके से होता है। अगर आपका ऊर्जा-शरीर उचित संतुलन और पूर्ण प्रवाह में है, तो आपका स्थूल शरीर और मानसिक शरीर पूरी तरह से स्वस्थ होंगे। इसमें कोई शक नहीं है। ऊर्जा-शरीर को पूर्ण प्रवाह में रखने के लिए किसी तरह की हीलिंग की जरूरत नहीं होती। यह तो अपने मौलिक ऊर्जा-तंत्र में जाकर उसे उचित तरीके से सक्रिय करना है।
मोटापा
अगर आप नियमित तौर पर योग करते हैं तो आपका अधिक वजन जरूर कम हो जाएगा। योग सिर्फ एक व्यायाम के तौर पर ही काम नहीं करता, बल्कि आपकी पूरी शारीरिक प्रणाली को फिर से जवान बनाता है, साथ ही आपके भीतर ऐसी जागरूकता भी पैदा करता है कि आप खुद ही ज्यादा खाने से बचने लगते हैं। एक बार आपके शरीर में एक खास स्तर की जागरूकता आ जाती है तो उसके बाद आपका शरीर ऐसा बन जाता है कि यह सिर्फ उतना ही भोजन ग्रहण करता है, जितना इसके लिए जरूरी होता है। जरूरत से ज्यादा भोजन यह कभी नहीं लेगा। ऐसा इसलिए नहीं होता कि आपके शरीर को एक खास तरह से कोई नियमित या नियंत्रित कर रहा है या फिर आपसे कोई डाइटिंग करने के लिए कह रहा है। आपको तो बस योगाभ्यास करना होता है। बाकी काम यह खुद करता है। यह आपकी प्रणाली को इस तरह से तैयार करता है कि वह आपको जरूरत से ज्यादा खाने ही नहीं देती। अगर आप किसी और तरह के व्यायाम या डायटिंग आदि का सहारा लेते हैं तो उसमें आपको खाने को लेकर लगातार अपने आप पर नियंत्रण की कोशिश करनी पड़ती है। योग की मदद से वजन कम करने में सबसे बड़ा फर्क इसी चीज का है।
मधुमेह
अगर आपका ऊर्जा शरीर पूर्ण रूप से कंपायमान है और उसका संतुलन सही है तो शरीर में कोई रोग होगा ही नहीं। योग में मधुमेह को एक गड़बड़ी के तौर पर देखा जाता है। इस रोग को हल्के में नहीं लिया जा सकता। दरअसल, जब हमारे शरीर की मूल संरचना में ही कुछ गड़बड़ होनी आरंभ हो जाती है तो मधुमेह होता है।
सूर्य नमस्कार से शरीर के भीतर इतनी ऊर्जा पैदा होती है कि इसका निरंतर अभ्यास करने वालों को बाहर की सर्दी प्रभावित नहीं कर पाती।
यह हर शख्स में अलग होता है। अगर दस लोगों को मधुमेह है तो उन सभी में शरीर के अंदर होने वाली गड़बड़ी का स्तर और प्रकार दोनों अलग-अलग होंगे। यही वजह है कि मधुमेह से पीडि़त हर शख्स को व्यक्तिगत तौर पर देखे जाने की जरूरत है।
योग का काम आमतौर पर प्राणमय कोष के स्तर पर होता है। आप प्राणमय कोष से शुरुआत करते हैं। प्राणायाम के माध्यम से आप जो भी करते हैं, वह प्राणमय कोष का व्यायाम ही है। यह व्यायाम इस तरीके से किया जाता है कि प्राणमय कोष पूरी तरह दुरुस्त हो जाए। अगर आपका प्राणमय कोष सही तरीके से संतुलित है और ठीक काम कर रहा है तो आपके शरीर में कोई रोग नहीं होगा। अगर आपके ऊर्जा शरीर में संतुलन है, तो दिमाग और शरीर दोनों में रोगों का होना नामुमकिन है। अलग-अलग रोगों से पीडि़त लोग यहां आते हैं। दिल का रोग है तो इलाज वही है। अस्थमा है तो भी इलाज वही है। मधुमेह है तो भी वही इलाज है। वैसे पहले ये जान लीजिए कि यह इलाज है ही नहीं। हम तो बस स्वास्थ्य को ठीक करने की चेष्टा करते हैं। हम तो बस आपके तंत्र को बेहतर बनाते हैं।
योग का काम आमतौर पर प्राणमय कोष के स्तर पर होता है। आप प्राणमय कोष से शुरुआत करते हैं। प्राणायाम के माध्यम से आप जो भी करते हैं, वह प्राणमय कोष का व्यायाम ही है।
आप मणिपूरक चक्र को देखें, यह शरीर को दो हिस्सों में बांटता है। इसी के चलते ऐसे लोगों के शरीर का निचला हिस्सा गर्म होता है और ऊपरी हिस्सा शीतल हो चुका होता है। इसमें एक संतुलन की आवश्यकता होती है। सूर्य नमस्कार और कुछ आसनों का अभ्यास करने से यह संतुलन हासिल किया जा सकता है।
सूर्य नमस्कार से शरीर के भीतर इतनी ऊर्जा पैदा होती है कि इसका निरंतर अभ्यास करने वालों को बाहर की सर्दी प्रभावित नहीं कर पाती।
यह हर शख्स में अलग होता है। अगर दस लोगों को मधुमेह है तो उन सभी में शरीर के अंदर होने वाली गड़बड़ी का स्तर और प्रकार दोनों अलग-अलग होंगे। यही वजह है कि मधुमेह से पीडि़त हर शख्स को व्यक्तिगत तौर पर देखे जाने की जरूरत है।
योग का काम आमतौर पर प्राणमय कोष के स्तर पर होता है। आप प्राणमय कोष से शुरुआत करते हैं। प्राणायाम के माध्यम से आप जो भी करते हैं, वह प्राणमय कोष का व्यायाम ही है। यह व्यायाम इस तरीके से किया जाता है कि प्राणमय कोष पूरी तरह दुरुस्त हो जाए। अगर आपका प्राणमय कोष सही तरीके से संतुलित है और ठीक काम कर रहा है तो आपके शरीर में कोई रोग नहीं होगा। अगर आपके ऊर्जा शरीर में संतुलन है, तो दिमाग और शरीर दोनों में रोगों का होना नामुमकिन है। अलग-अलग रोगों से पीडि़त लोग यहां आते हैं। दिल का रोग है तो इलाज वही है। अस्थमा है तो भी इलाज वही है। मधुमेह है तो भी वही इलाज है। वैसे पहले ये जान लीजिए कि यह इलाज है ही नहीं। हम तो बस स्वास्थ्य को ठीक करने की चेष्टा करते हैं। हम तो बस आपके तंत्र को बेहतर बनाते हैं।
योग का काम आमतौर पर प्राणमय कोष के स्तर पर होता है। आप प्राणमय कोष से शुरुआत करते हैं। प्राणायाम के माध्यम से आप जो भी करते हैं, वह प्राणमय कोष का व्यायाम ही है।
आप मणिपूरक चक्र को देखें, यह शरीर को दो हिस्सों में बांटता है। इसी के चलते ऐसे लोगों के शरीर का निचला हिस्सा गर्म होता है और ऊपरी हिस्सा शीतल हो चुका होता है। इसमें एक संतुलन की आवश्यकता होती है। सूर्य नमस्कार और कुछ आसनों का अभ्यास करने से यह संतुलन हासिल किया जा सकता है।
योगिक अभ्यास
सूर्य नमस्कार और आसन: इनसे मरीज के शरीर में संतुलन आता है। जिन लोगों को साइनिसाइटिस यानी नजला और दमा का रोग है, उनमें नासिका छिद्र बंद होने की समस्या को यह दूर करता है। इनसे शरीर के लिए आवश्यक व्यायाम हो जाता है। शरीर के लिए आवश्यक ऊष्मा भी इनसे पैदा होती है। सूर्य नमस्कार से शरीर के भीतर इतनी ऊर्जा पैदा होती है कि इसका निरंतर अभ्यास करने वालों को बाहर की सर्दी प्रभावित नहीं कर पाती।
प्राणायाम
दमा कई तरह के होते हैं। कुछ एलर्जिक होते हैं, कुछ ब्रोंकाइल होते हैं और कुछ साइकोसोमैटिक या मनकायिक होते हैं। अगर मामला मनकायिक है तो ईशा योग करने से यह ठीक हो सकता है। ईशा योग करने से इंसान मानसिक तौर से शांत और सतर्क हो जाता है और उसका दमा ठीक हो जाता है। अगर यह एलर्जी की वजह से है तो प्राणायाम करने से यह निश्चित तौर पर ठीक हो सकता है। ईशा योग में जो प्राणायाम सिखाया जाता है, उससे ब्रोंकाइल संबंधी दिक्कत कम हो जाती हैं। अगर एक से दो हफ्तों तक प्राणायाम का रोजाना सही तरीके से अभ्यास कर लिया जाए तो दमा के मरीजों को पचहत्तर फीसदी तक का फायदा महसूस होगा।
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