Tuesday, 25 April 2023

इंटरनेशनल होम्योपैथिक कॉन्फ्रेंस टोरंटो कनाड़ा-2023 में डॉ. द्विवेदी ने अप्लास्टिक एनीमिया का होम्योपैथिक इलाज पर अपना रिसर्च पेपर प्रस्तुत किया

- कनैडियन कॉलेज ऑफ़ होम्योपैथिक मेडिसिन टोरंटो ओंटारियो द्वारा आयोजित कॉनफेरेन्स में भारतीय समय रात 11.00 से मध्यरात्रि 12.20 तक अपना व्याख्यान ऑनलाइन प्रस्तुत किया


इंदौर ।
 श्रीमती कमलाबेन रावजी भाई पटेल गुजराती होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज इंदौर में प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष फिजियोलॉजी एंड बॉयोकेमिस्ट्री तथा सदस्य साइन्टिफिक एडवाइजरी बोर्ड, सी सी आर एच, आयुष मंत्रालय, भारत सरकार, डॉ. एके द्विवेदी इंदौर से कनाड़ा इंटरनेशनल होम्योपैथिक कॉन्फ्रेंस टोरंटो कनाड़ा-2023 कॉन्फ्रेंस में भाग लेने जाने वाले थे लेकिन वीसा नहीं मिल पाने के कारण इस कॉन्फ्रेंस में सम्मिलित नहीं हो सके। लेकिन डॉ. द्विवेदी ने  ज़ूम के माध्यम से अपना रिसर्च पेपर प्रस्तुत किया, जिसे वहां उपस्थित सभी चिकित्सकों ने खूब सराहा और ऑनलाइन प्रश्न-उत्तर का भी दौर चला। जिसमें डॉ. द्विवेदी ने लोगों के जिज्ञासा को भी बखूबी शांत भी किया।




डॉ. द्विवेदी ने अपने 25 वर्षों के होम्योपैथिक चिकित्सा द्वारा अप्लास्टिक एनीमिया बीमारी को ठीक करने के अपने


अनुभवों की गाथा को साझा किया। आपने अलग-अलग उम्र तथा महिला एवं पुरुषों  की जानकारी साझा किया जो कि डॉ. द्विवेदी द्वारा दी गए होम्योपैथिक इलाज से पूर्णतः स्वस्थ हो चुके हैं और वर्तमान में किसी प्रकार की कोई दवा अप्लास्टिक एनीमिया के लिए नहीं ले रहें हैं। डॉ. द्विवेदी ने बताया कि अप्लास्टिक एनीमिया के मरीजों को शरीर के किसी भी अंग से रक्तस्त्राव होने और उनका होम्योपैथी द्वारा ठीक करने की विस्तृत जानकारी दी जिससे चिकित्सकों को उनके अनुभव का लाभ भविष्य में मिल सकेगा। डॉ. द्विवेदी ने बताया कि रक्तस्त्राव ज्यादा होने पर मरीजों को ब्लड और प्लेटलेट्स लगाने की सलाह भी उनके सीबीसी जाँच के आधार पर समय-समय पर दी जाती है। डॉ. द्विवेदी ने उनके द्वारा समय-समय पर की जाने वाली समाज सेवा, निःशुल्क चिकित्सा तथा एनीमिया जागरूकता रथ एवं देश की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी एवं वित्तमंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण से मुलाकात और भारत सरकार द्वारा एनीमिया तथा सिकल सेल की बीमारी  पर  2047 तक जीत हांसिल करने की बात भी दोहराई।  डॉ द्विवेदी ने आर.बी.सी. डब्लूबीसी एवं प्लेटलेट्स बढ़ाने तथा हीमोग्लोबिन बढ़ाने के होम्योपैथिक तरीके एवं घरेलू खान पान के बारे में भी बताया जिसे सभी ने खूब सराहा गया। डॉ. द्विवेदी के आलावा वहां पर उपस्थित अन्य चिकित्सक डॉ. वेरोनिका झामरुको, डॉ. केपी नंदकुमार,  डॉ. शशि मोहन शर्मा,  जे डी मिलर एवं शहरम आयोब्जदेह ने भी होम्योपैथिक चिकित्सा द्वारा उनके अनुभव एवं रिसर्च पेपर्स साझा किए।

Wednesday, 19 April 2023

हिप्स यानि कुल्हों के दर्द में भी होम्योपैथी प्रभावी : डॉ. द्विवेदी

हिप्स यानी कूल्हा शरीर का वह महत्वपूर्ण हिस्सा है जो मजबूत तो होता है लेकिन इस में मामूली टूटफूट भी आप


की दिनचर्या को प्रभावित कर सकती है। हिप्स यानी कूल्हे में दर्द महिलाओं की आम परेशानी है। ज्यादातर महिलाएं डॉक्टर के पास तब जाती हैं जब दर्द के चलते घरेलू कामकाज करना भी मुश्किल हो जाता है। वरना वे लंबे समय तक उस से जूझती रहती हैं। शरीर का यह हिस्सा होता तो मजबूत है मगर इस की बनावट कुछ ऐसी है कि छोटी-छोटी चीजें इस के कामकाज में दिक्कत पैदा कर देती हैं और दर्द शुरू हो जाता है। अक्सर दर्द या तकलीफ देने वाला शरीर का यह हिस्सा आखिर है क्या-किन वजहों से हमें यहां परेशानियां होती है और उन के लिए हम क्या कर सकते हैं या हमें क्या करना चाहिए। यह शरीर का सब से बड़ा ज्वाइंट होता है। इस में एक खांचे (सौकेट) में नरम हड्डियां और कडक़ हड्डियां कुछ इस तरह से जुड़ी होती हैं कि वे आसानी से हिलडुल सकें। यहां एक तरह का फ्ल्यूड मौजूद होता है जो इस काम में मदद करता है। अगर आप के घर का दरवाजा बंद करने या खोलने पर आवाज करता है तो आप उस के कब्जों में थोड़ा मोबिल ऑयल डाल देते हैं, आवाज आनी बंद हो जाती है। बस, कुछ ऐसा ही है यह हिस्सा। यहां भी ढेर सारी मोबिल ऑयल जैसी चीजें होती हैं।

दर्द के कारण

होम्योपैथिक चिकित्सक व केन्द्रीय होम्योपैथिक अनुसन्धान परिषद्, आयुष मंत्रालय (भारत सरकार) में वैज्ञानिक सलाहकार बोर्ड के सदस्य डॉ. ए.के. द्विवेदी के अनुसार यह हिस्सा बहुत मजबूत होता है लेकिन इसमें टूटफूट भी होती है। उम्र और इस्तेमाल बढ़ने के साथ हिप्स की मसल्स भी कमजोर पड़ जाती है। यहां की नरम हड्डी कमजोर पड़ जाती है या उसमें टूटफूट आ जाती है। आप की मूवमैंट को स्मूथ बनाए रखने वाला चिपचिपा द्रव्य पदार्थ भी कम हो जाता है। कहीं जो से फिसल जाने में हिप की हड्डी में फ्रैक्चर भी आ सकता है। इन में से कोई भी चीज हिप्स में दर्द का कारण बन सकती है। यदि आप को अक्सर दर्द होता रहता है तो इन कारणों में से कोई एक बात हो सकता है।

अर्थराईटिस : हिप्स में दर्द का यह सब से बड़ा कारण है, खासकर उम्रदराज लोगों में। अर्थराईटिस आप के हिप्स ज्वाइंट में दर्द पैदा करता है। यह नरम हड्डी को काफी कमजोर कर देता है या तोड़ देता है। यह नरम हड्डी (कार्टिलेज) हिप्स की हड्डियों के लिए तकिए की तरह काम करती है। जैस-जैसे अर्थराईटिस बढ़ता है, दर्द बढ़ता है। महिलाओं को दर्द के साथ-साथ इस हिस्से में जकड़न भी महसूस होने लगती है।

हिप फ्रैक्चर : उम्रदराज लोगों में हिप फ्रैक्चर भी आमतौर पर सामने आता है। उम्र बढ़ने के साथ हड्डियां कमजोर हो जाती हैं और वे चोट बरदाश्त नहीं कर पातीं। महिलाओं को अक्सर बाथरूम में गिरने की वजह से हिप फ्रैक्चर होता है।

टैंडन में चोट : टैंडन जिस्म की मसल्स को हड्डियों से जोड़ने वाली मजबूत रस्सी जैसी चीज होती है। यह काफी ताकतवर होती है। लेकिन अगर किसी झटके या लगातार किसी गलत मूवमैंट की वजह से इसे चोट पहुंच जाए तो यह काफी दर्द देती है। इस का दर्द मसल्स के मुकाबले देर से ठीक होता है।

मसल्स पेन : आप जो भी मूवमैंट करती हैं उस का भार मसल्स, टैंडन और लिगामैंट उठाते हैं। ज्यादा इस्तेमाल और वक्त के साथ ये कमजोर पड़ते जाते हैं और दर्द देना शुरू कर देते हैं। मसल्स में आई चोट या टूटफूट जल्दी भर जाती है, मगर लिगामैंट में कोई टूटफूट आ गई तो लंबे समय के लिए आराम देना पड़ता है। ज्यादा उम्र वाली महिलाओं में अगर लिगामैंट फ्रैक्चर की बात सामने आती है तो उन्हें लंबे समय तक आराम करना पड़ता है।

कैंसर : हड्डियों का कैंसर या हड्डियों तक पहुंच जाने वाला कैंसर शरीर की अन्य हड्डियों के साथ-साथ हिप्स में भी दर्द पैदा करता है। जांघों में, हिप्स के जोड़ों के भीतर, उन के बाहर की ओर और नितंबों में दर्द होता है। कभी-कभी बैकपेन यानी पीठदर्द और हर्निया की वजह से पैदा हुआ दर्द भी यहां तक पहुंच जाता है। अगर दर्द लगातार बढ़ रहा है तो ये आर्थ्राइटिस की निशानी हो सकती है। हलकी-फुलकी कसरत, स्ट्रैचिंग व्यायाम इस में मदद करते हैं। फिजियोथैरेपी भी ले सकते हैं। वैसे, स्विमिंग बहुत अच्छी कसरत होती है। यह हड्डियों पर ज्यादा दबाव नहीं डालती। दर्द से निजात पाने के लिए आप दर्द वाले इलाके पर 15 मिनट तक बर्फ रख कर सिंकाई करें। ऐसा आप दिन में 2-3 बार कर सकते हैं। होम्योपैथी दवाओं द्वारा दर्द, फैक्चर एवं सूजन में आराम आता है एवं बिना सर्जरी कराए भी व्यक्ति अपनी दिनचर्या सुचारू रूप से कर सकता है।

Tuesday, 18 April 2023

सर्वाइकल स्पॉन्डिलाटिस के मरीज को होम्योपैथिक मिल सकता है आराम : डॉ. द्विवेदी

र्वाइकल स्पॉन्डिलाटिस गर्दन की रीढ़ की हड्डी की अकर्षक बीमारी है और गर्दन मे दर्द होने का यह एक मुख्य


कारण माना जाता है। महिलाओं की तुलना मे यह बीमारी पुरुषों मे ज्यादा पाई जाती है । बढ़ती उम्र के साथ साथ इस बीमारी के उभरने की संभावना भी बढ़ती जाती है। 70 वर्ष की आयु के लगभग 10 प्रतिशत पुरुषों में और करीब-करीब 9 प्रतिशत महिलाओं मे यह बीमारी पाई जाती है। होम्योपैथी से इस बीमारी की प्रगति को भी नियंत्रण मे रखा जा सकता है।

सर्वाइकल स्पॉन्डिलाटिस गर्दन की रीढक़ी हड्डी की अपकर्षक बीमारी है । बढ़ती आयु से रीढ़ की हड्डी उसके जोड़ और जोड़ो के बीच उपस्थित गद्दी में बदलावो के कारण इस बीमारी के लक्षण उभरते हैं। बगैर किसी चोट के बाजुओं में कमजोरी महसूस होना और गर्दन मे निरंतर रहने वाली ऐठन का मुख्य कारण सर्वाइकल स्पॉन्डिलासिस है । यह देखा गया है कि 40 वर्ष से ज्यादा आयु वाले व्यक्तियो मे रीढ की हड्डी के बीच की गद्दी निर्जालित हो जाती है इससे वे ज्यादा संपीडय बन जाते है और उनका लचीलापन भी कम हो जाता है और उनमे धातु जमा होने लगते हैं। 40 वर्ष से ज्यादा आयु के लोगो मे यह सभी महत्वपूर्ण बदलाव एक्सरे मे दिखाई पड़ते हैं पर इनमें से बहुत कम लोगों मे रोग के लक्षण उभरते हैं। ध्यान देनेवाली बात यह भी है कि कई बार यह बदलाव 30 वर्ष की आयु मे भी दिखाई देते हैं पर इन चिन्हों की वजह से उपचार शुरू करना जरुरी नही है यदि रोग के लक्षण उभरे ना हो।

 

रोग के लक्षण

  • गर्दन और कधों मे बार बार दर्द होना यह दर्द चिरकालिक या प्रासंगिक हो सकता है। बीच-बीच मे यह दर्द अपने आप से कम भी हो जाता है।
  • गर्दन में दर्द के साथ साथ मासपेशियों में अकडऩ आ जाती है । कई बार यह दर्द तेजी से कंधो और सिर की और फैलता है। कई मरीजों में वह दर्द पीठ मे और कंधो से होकर हाथो और उंगलियो तक भी फैल जाता है ।
  • सिर के पिछले हिस्से मे दर्द होता है । वह दर्द कभी गर्दन के निचले हिस्से तक या शीर्ष तक फैलता है ।
  • बगैर किसी चोट के गर्दन, कन्धे में सनसनी होना यह कुछ अन्य लक्षण है ।
  • कभी-कभी असामान्य लक्षण उभरते हैं जैसे कि छाती मे दर्द होना और मरीज इस दर्द को कभी कभी गलती मे हृदय का दर्द मान लेता है।

 

रोग के कारण

सर्वाइकल स्पान्डिलाटिस रीढ़ की हड्डी, हड्डियों के बीच के जोड़ और गद्दी मे घिसाव आने से होता है। ज्यादातर यह बदलाव 40 वर्ष से ज्यादा उम्रवाले व्यक्तियों में पाए जाते हैं । निम्नलिखित कारणों से सर्वाइकल स्पान्डिलाइटस होने की संभावना बढ़ सकती है

  • व्यवसाय संबंधित कारण- सिर पर बार बार भारी वजन उठाना, नृत्य करना, कसरत करना।
  • कई परिवारों मे सर्वाइकल स्पान्डिलाइटस होने कि प्रवृति होती है। आनुवंशिक कारण की उपेक्षा नहीं की जा सकती ।
  • धूम्रपान से भी खतरा होता है ।
  • लगातर सिर झुकाकर या गर्दन झुकाकर काम करना।
  • एक ही स्थान पर बैठकर लगातार काम करना उदाहरण कम्प्युटर के स्क्रीन/पर्दे को लगातर देखना।
  • लंबी दूरी का प्रवास करना, बैठे बैठे सो जाना।
  • टेलीफोन को कन्धे के सहारे रखकर लंबे समय तक बात करना ।
  • लगातार गर्दन को एक ही स्थिति/अवस्था में रखना उदाहरण: टीवी देखते समय, वाहन चलाते समय इत्यादि।

सर्वाइकल का होम्योपैथिक इलाज

होम्योपैथिक चिकित्सक व केन्द्रीय होम्योपैथिक अनुसन्धान परिषद्, आयुष मंत्रालय (भारत सरकार) में वैज्ञानिक सलाहकार बोर्ड के सदस्य डॉ. ए.के. द्विवेदी के अनुसार होम्योपैथिक उपचार करने से सर्वाइकल स्पॉन्डिलाटिस के मरीज को बहुत आराम मिल सकता है। बीमारी के शुरूआत में ही उपचार कराने पर परिणाम ज्यादा संतोषजनक होते हैं। चिरकालिक मरीजों में भी जम नस पर दबाव के कारण लक्षण उभरते हैं तो इनसे यह आराम दिलाने में मददगार होता है एवं बिमारी को और भी आगे बढऩे से रोकता है। जिन मरीजों में बिमारी ज्यादा संगीन हो गई हो और रीढ़ की हड्डी में बदलाव आ गए हों, उन मरीजों के दर्द में होम्योपैथिक उपचार से कम किया जा सकता है।

जिन मरीजों में रीढ़ की हड्डी में ज्यादा संरचनात्मक परिवर्तन न हुए हों उनमें होम्योपैथिक उपचार ज्यादा सफल रहता है। होम्योपैथिक उपचार पूर्ण रूप से सुरक्षित है और इस उपचार से कोई भी दुष्परिणाम नहीं होते हैं। यह जानना और समझना जरूरी है कि सर्वाइकल स्पॉन्डिलाटिस एक उम्र के साथ बढ़ते जाने वाली बीमारी है। इस बीमारी के कारण रीढ़ की हड्डी में होने वाले बदलावों को फिर से उनके मूल रूप में नहीं लाया जा सकता है। पर इन बदलावों के कारण होने वाले। लक्षणों पर जरूर नियंत्रण पाया जा सकता है और इन बदलावों को और भी आगे बढऩे से रोकने का प्रयास होम्योपैथिक उपचार से किया जा सकता है। होम्योपैथिक उपचार और सर्वाइकल स्पॉन्डिलाटिस: होम्योपैथी एक वैज्ञानिक चिकित्सा समधित उपचार प्रणाली है। होम्योपैथिक के मूल सिद्धांतों के अनुसार सर्वाइकल स्पॉन्डिलाटिस का उपचार करते समय इसको पूर्ण रूप से समझा जाता है। यह करने के लिए बिमारी के लक्षणों को बारीकी से जाँचा और समझा जाता है और साथ साथ मरीज़ को समझने में भी इतना ही महत्व दिया जाता है। 

Saturday, 15 April 2023

होम्योपैथिक चिकित्सा का अपना महत्व है यह जटिल बीमारियों के इलाज में सबसे कारगर : डॉ. चौधरी


 

- श्रीमती कमलाबेन रावजी भाई पटेल गुजराती होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज में विश्व होम्योपैथी दिवस मनाया गया

इंदौर। विश्व होम्योपैथी दिवस के उपलक्ष्य में इंदौर में श्री गुजराती समाज इंदौर द्वारा संचालित श्रीमती कमलाबेन रावजी भाई पटेल गुजराती होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज में विश्व होम्योपैथी दिवस मनाया गया साथ ही शहर के वरिष्ठतम होम्योपैथिक चिकित्सक ८३ वर्षीय डॉ. दीक्षित को सम्मानित भी किया गया।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि शहर के प्रसिद्ध सर्जन डॉ. अपूर्व चौधरी, विशेष अतिथि जिग्नेश भाई शाह कन्वीनर गुजराती समाज इंदौर थे। अध्यक्षता भरत भाई शाह अध्यक्ष कॉलेज शासी निकाय ने की। इस अवसर पर मनोज भाई परीख मंत्री ट्रस्ट बोर्ड भी विशेष रूप से मौजूद थे। अतिथि स्वागत प्राचार्य डॉ. एस पी सिंह ने किया।

कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए मुख्य अतिथि डॉ. अपूर्व चौधरी जी ने कहा कि चिकित्सा के क्षेत्र में जितना आप को अनुभव होता जाएगा उतना ही आप परिपक्व होते हैं हमें अपडेट रहने की जरूरत है इसमें गूगल हमारी सहायता करता है। आपने कहा कि होम्योपैथिक चिकित्सा का अपना महत्व है कई बीमारियों में होम्योपैथिक चिकित्सक अनुकरणीय कार्य भी कर रहे हैं। आपने कॉलेज के ही प्रोफेसर डॉ. ए. के. द्विवेदी का उदाहरण देते हुए कहा की जिस तरह से डॉ. द्विवेदी अप्लास्टिक एनीमिया का इलाज कर रहे हैं और मरीजों को इस जटिल बीमारी पर जीत हासिल हो रही है सभी छात्रों को उनसे सीख  लेने की सलाह भी दी।

कॉलेज शसी निकाय अध्यक्ष भरत भाई शाह ने केंद्रीय होम्योपैथिक अनुसन्धान परिषद् आयुष मंत्रालय भारत सरकार के साथ कॉलेज द्वारा किए गए एमओयू की जानकारी सभी छात्रों और शिक्षकों को दी। साथ ही बताया कि


श्री गुजराती समाज के इस वर्ष १०० वर्ष पूरे हो रहे हैं इसके उपलक्ष्य में होम्योपैथिक कॉलेज द्वारा एक बड़ा अस्पताल और बीमारियों पर वृहद अनुसन्धान करेगा। आपने बताया कि नई दिल्ली स्थित विज्ञान भवन में जगदीप धनखड़ उपराष्ट्रपति भारत एवं श्री सर्वानंद सोनोवाल केंद्रीय आयुष मंत्री भारत सरकार तथा महेंद्र भाई मुंज पारा आयुष राजयमंत्री भारत सरकार के समक्ष एमओयू हस्तांतरित किए गए। गुजराती होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज की तरफ से प्राचार्य डॉ. एस. पी. सिंह एवं चेयरमैन भरत भाई शाह तथा केंद्रीय होम्योपैथिक अनुसन्धान परिषद् आयुष मंत्रालय भारत सरकार के तरफ से महानिदेशक सुभाष कौशिक एवं देवदत्त नाइक के हस्ताक्षर हुए। जिसका लाभ इस होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज के छात्रों को मिलेगा। अपने रिसर्च की जिम्मेदारी कॉलेज प्राचार्य डॉ. एस. पी. सिंह वरिष्ठ प्रोफ़ेसर डॉ. राजेश बोर्दिया तथा डॉ. एके द्विवेदी की देख रेख में होने की बात भी दोहराई। कॉलेज प्राचार्य डॉ. एस.पी. सिंह ने महाविद्यालय के २५ वर्षों के सफर के बारे में अतिथियों को अवगत कराया साथ ही महविद्यालय में २५ वर्ष पूर्ण करने वाले राकेश वाघेला एवं रंजना परमार का अतिथियों से सम्मान भी कराया। वरष्ठि होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ. दीक्षित ने होम्योपैथिक चिकित्सा छात्रों को प्रतिदिन होम्योपैथिक की कोई न कोई मेडिसिन पढ़ने की सीख भी दी। आपने कहा कि पढ़ाई के साथ छात्र जीवन में खेलकूद का भी उतना ही महत्व है। कार्यक्रम का संचालन डॉ. अनुपम श्रीवास्तव ने किया।  आभार डॉ. ए. के. द्विवेदी ने व्यक्त किया।

होम्योपैथी में है डायबिटीज का इलाज

धुमेह किसी भी उम्र के व्यक्ति को प्रभावित कर सकती है। यह एक जिन्दगी भर चलने वाली बिमारी है जिसमें आपके रक्त शर्करा का स्तर नार्मल से ऊंचा हो जाता है। इस बिमारी को प्रबंधित करना कठिन लग सकता है मगर मधुमेह से प्रभावित लोगों ने एक अच्छी जीवन शैली, व्यायाम, सही डाइट प्लान को पालन कर के इस बीमारी से


जीत हासिल की है। उन्होंने अपने रक्त शर्करा के स्तर को सामान्य स्तर पर लाने के लिए कुछ दवाओं की भी आवश्यकता हो सकती है।  अधिकांश मधुमेह रोगी अक्सर एलोपैथिक दवा का विकल्प चुनते हैं। हालांकि होम्योपैथी मधुमेह के इलाज में भी फायदेमंद हो सकती है।

डायबिटीज मेलिटस या मधुमेह दुनिया भर में एक आम बीमारी है। यह एक मेटाबोलिक डिसऑर्डर है जिसमे खून मे मौजूद ग्लूकोस की मात्रा बढ़ जाती है। मधुमेह की देखभाल महत्वपूर्ण है क्योंकि रक्त शर्करा के स्तर में वृद्धि आपके शरीर के विभिन्न अंगों के कामकाज को प्रभावित करती है। मधुमेह आपकी आंखों, हृदय, यकृत, पैरों और गुर्दे को प्रभावित कर सकती है। इसके साथ ही मधुमेह से अनिद्रा, तनाव, तंद्रा, रक्तचाप में उतार-चढ़ाव आदि जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं।

हमारे शरीर मे मौजूद इन्सुलिन ब्लड ग्लूकोस को शरीर के कोशिकायों को तक पहुंचता है जिससे शरीर मे ऊर्जा पैदा होती है इन्सुलिन की कमी या इन्सुलिन रेजिस्टेंस के कारण ब्लड ग्लूकोस की मात्रा अधिक हो जाती है। अत: शरीर में इंसुलिन का अपर्याप्त या उत्पादन नहीं होने के कारण व्यक्ति को मधुमेह हो जाता है। मधुमेह के इलाज में मदद करने वाले प्राथमिक दृष्टिकोण में जीवनशैली में बदलाव और दवाएं (एलोपैथिक, होम्योपैथिक, या हर्बल) शामिल हैं। डायबिटीज रिवर्सल मेथड मधुमेह के हजारों रोगियों के लिए फायदेमंद साबित हुई है।

मधुमेह के लक्षण

मधुमेह के कई मामलों में, शुरुआत में कोई लक्षण नहीं होते हैं। हालांकि, ऐसे मधुमेह रोगी धीरे-धीरे जटिलताओं का अनुभव करने लगते हैं। इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि आप नियमित रूप से अपने ब्लड शुगर की जांच कराएं। मधुमेह के सामान्य लक्षणों में शामिल हैं-

  • थकान
  • मतली
  • बार-बार पेशाब आना
  • प्यास और भूख में वृद्धि
  • वजन घटना
  • धुंधली दृष्टि (निगाह कमजोर होना)

मधुमेह का होम्योपैथिक इलाज

मधुमेह में शरीर के विभिन्न अंगों में गंभीर जटिलताएं पैदा करने की प्रवृत्ति होती है। मधुमेह के लिए होम्योपैथिक उपचार एक समग्र दृष्टिकोण सुनिश्चित करता है। यह मधुमेह के इलाज के लिए एक गैर-पारंपरिक चिकित्सा है। आम तौर पर रोगी का एक लंबा और गहन शारीरिक और मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन उपयुक्त दवा लिखने में मदद करता है। हालांकि, मधुमेह का शायद ही कोई अन्य उपचार इन मूल्यांकनों पर विचार करता हो। होम्योपैथी का उपचार रोगी के स्वस्थ की जानकारी पर निर्भर करता है।

होम्योपैथी : मधुमेह रोगियों के लिए यह तुरंत का माध्यम नहीं

यदि आप तत्काल चिकित्सा की तलाश में हैं या अपने रक्त शर्करा के स्तर को तुरंत नियंत्रित करना चाहते हैं, तो होम्योपैथी उपचार चुनना एक अच्छा विचार नहीं है। होम्योपैथी उपचार को आपकी स्वास्थ्य स्थिति पर प्रभाव दिखाने के लिए कुछ समय चाहिए। मधुमेह को पूरी तरह से ठीक होने में लंबा समय लग सकता है। ऐसे मामलों में होम्योपैथी उपचार मधुमेह की जटिलताओं को रोकने में मदद करता हैं। आप कुछ हफ्तों से लेकर कुछ महीनों में परिणाम देखने की उ्मीद कर सकते हैं। यदि आप त्वरित परिणामों की अपेक्षा कर रहे हैं, तो आप पारंपरिक दवाओं के पूरक के रूप में होम्योपैथी दवाओं का उपयोग कर सकते हैं या होम्योपैथी दवाओं और मधुमेह उत्क्रमण कार्यक्रम को एक साथ जोड़ सकते हैं ताकि मधुमेह उत्क्रमण चिकित्सा में तेजी लाई जा सके।

होम्योपैथिक चिकित्सक व केन्द्रीय होम्योपैथिक अनुसन्धान परिषद्, आयुष मंत्रालय (भारत सरकार) में वैज्ञानिक सलाहकार बोर्ड के सदस्य डॉ. ए.के. द्विवेदी के अनुसार होम्योपैथी उपचार प्राकृतिक हैं क्योंकि इस पद्धति में खनिजों, पौधों और जानवरों के अर्क का इस्तेमाल करके दवाएं बनती हैं। होम्योपैथी सिद्धांत के अनुसार, किसी पदार्थ के तनु रूप में उसकी अधिकांश चिकित्सीय शक्ति होती है। इसलिए, डॉक्टर मधुमेह के रोगियों को अधिकांश होम्योपैथी दवाओं को को घुलने के बाद इस्तेमाल करने की सलाह देते हैं। होम्योपैथी उपचार के लिए प्राकृतिक पदार्थ घुलने की प्रक्रिया से गुजरता है जब तक कि इसमें मूल प्राकृतिक पदार्थ का केवल एक अंश न हो।

Thursday, 13 April 2023

होम्योपैथी बनाए दिल को मजबूत

क्या आपको पता है, कि जिस होम्योपैथी को कई लोग हल्के में लेते हैं, वो होम्योपैथी हृदय के कई रोगों के उपचार


में कारगर है आईये हम आपको बताते हैं, होम्योपैथी से जुड़े कुछ ऐसे कारगर उपाय जो दिल को खुश और स्वस्थ रखें। आज की इस तनाव भरी जि़ंदगी में हृदय रोग हर दस में से एक व्यक्ति को अपनी गिरफ्त में लेता जा रहा है। ऐसे में बहुत ज़रूरी हो जाता है अपने दिल का खयाल रखना और दिल का खयाल सिर्फ मोहब्बत से ही नहीं बल्कि अपनी दवाईयों और खान-पान से भी रखा जाता है। आईये जानते हैं हृदय रोग से जुड़ी कुछ अहम जानकारियां...

क्या है एथेरो स्क्लैरासिस

एथेरो स्क्लैरासिस में धमनियों की दीवारों में प्लेक्यू जमा हो जाता है, जिससे वो संकरी हो जाती है। ये ब्लड फ्लो को रोककर हार्ट अटैक का कारण बन सकती हैं। हृदय की तरफ जाने वाले रक्त में अगर कहीं थक्का जम जाए तो ये भी एक हार्ट अटैक का कारण है।

क्या है कंजैस्टिव हार्ट फेलियर

कंजैस्टिव हार्ट फेलियर नाम की इस बीमारी में हृदय उतना रक्त पंप नहीं कर पाता है, जितना कि उसके करना चाहिए।

क्या है ऐरिदमियां

ऐरिदमियां नाम की इस बीमारी में हार्ट बीट अनियमित हो जाती है और हृदय से जुड़े अन्य रोगों में हार्ट वाल्व में खराबी होने के संभावना काफी हद तक बनी रहती है। हल्की सी तकलीफ हुई नहीं कि लोग डॉक्टर के पास भागने लगते हैं, वैसे सही भी है, क्योंकि हृदय से जुड़ी दिक्कतों को बिल्कुल भी नजऱअंदाज़ नहीं करना चाहिए, लेकिन ज़रूरी नहीं कि हर बीमारी का इलाज सिर्फ एलोपैथ या आयुर्वेद में ही हो। कुछ बड़ी बीमारियां ऐसी भी हैं, जिनका होम्योपैथ में बेहतरीन इलाज है। बस ज़रूरत है जागरुक होने की।

होम्योपैथिक चिकित्सक व केन्द्रीय होम्योपैथिक अनुसन्धान परिषद्, आयुष मंत्रालय (भारत सरकार) में वैज्ञानिक सलाहकार बोर्ड के सदस्य डॉ. ए.के. द्विवेदी के अनुसार हृदय के सभी रोगों के उपचार में होम्योपैथ एक कारगर उपाय है। होम्योपैथ दवाईयों का चुनाव यदि सही तरह से किया जाए, तो यकीनन होम्योपैथी कारगर है। सही चयनित होम्योपैथी मेडिसिन धमनियों में प्लेक्यू जमा होने से रोकती है और क्लोट्स नहीं बनने देती। होम्योपैथ दवाईयां हृदय की मसल्स को मजबूत हैं और धडक़न को नियमित करने में सहायक होती हैं। होम्योपैथ दवाइयों जो सबसे अच्छी बात है, वो ये है कि ये दवाईयां हृदय के वॉल्व रोगों को रोकने में भी सहायक हैं। प्रमुख होम्योपैथी दवाइयां कैक्टस, डिजिलेटिस, लोबेलिया, नाजा, टर्मिना अर्जुना, कैटेगस, औरममेट, कैलकेरिया कार्ब जैसी दवाईयां वे प्रमुख दवाईयां है, जिन्हें हृदय को स्वस्थ रखने में इस्तेमाल में लाया जा सकता है, लेकिन इनका सेवन करने से पहले अपने चिकित्सक की सलाह लेना बिल्कुल न भूलें। याद रहे दवा हमेशा किसी अच्छे होम्योपैथ की देखरेख में ही लेनी चाहिए।

टिप्स जो बचायें हृदय रोग से

  • हर दिन लंबी वॉक पर जाएं
  • एक्सरसाइज़ को अपनी दिनचर्या में शामिल करें
  • प्राणायाम करना न भूलें
  • हर दिन बहुत नहीं, सिर्फ थोड़ी मात्रा में
  • ड्राइफ्रूट्स ज़रूर खाएं
  • हरी सब्जियों का सेवन ज्यादा से ज्यादा करें
  • कोशिश करें कि 6-8 घंटे की नींद लें
  • फास्ट-फूड से दूर रहें
  • अनियमित दिनचर्या से बचें
  • भोजन में अधिक चिकनाई का प्रयोग न करें
  • ज्यादा देर तक बैठे न रहें
  • जितना हो सके तनाव से दूर रहें ऐसा कई बार होता है, कि एलोपैथ दवाईयों का असर सीधे दिल पर होता है, इसलिए कोशिश यही हो कि जितना हो सके एलोपैथ और अस्पताल के चक्कर लगाने से बचें और होम्योपैथी को अपनाएं

Wednesday, 12 April 2023

होम्योपैथी रिसर्च के लिए गुजराती कॉलेज का सीसीआरएच से करार

- केंद्रीय आयुष राज्यमंत्री डॉ. मुंजपरा महेन्द्रभाई की उपस्थिति में आदान - प्रदान हुआ एमओयू

इंदौर। कोरोना महामारी से संघर्ष में होम्योपैथी चिकित्सा ने अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। शहर, प्रदेश और देश में जहाँ एक बार फिर कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं वहीं राहत भरी खबर ये है कि आयुष मंत्रालय की केंद्रीय


होम्योपैथी अनुसंधान परिषद् (सीसीआरएच) ने गुजराती होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज, इंदौर को होम्योपैथी से जुड़े शोध कार्य करने की सहमति प्रदान कर दी है। इससे निकट भविष्य में न केवल अनेक गंभीर बीमारियों से बेहतर ढंग से निपटा जा सकेगा बल्कि शहर के स्टूडेंट्स को भी बहुत चिकित्सीय ज्ञान के लिहाज से बेहतर प्रशिक्षण और वातावरण मिलेगा।

यह जानकारी आयुष मंत्रालय, सी सी आर एच की वैज्ञानिक सलाहकार बोर्ड के सदस्य डॉ. एके द्विवेदी ने दी। उन्होंने बताया कि शोध के लिए आयुष मंत्रालय की केंद्रीय अनुसंधान परिषद् से सहमति मिलना न केवल गुजराती होम्योपैथिक
कॉलेज बल्कि पूरे इंदौर शहर के लिए एक बड़ी सौगात साबित होगी। उल्लेखनीय है कि इसी वर्ष श्री गुजराती समाज इंदौर के 100 वर्ष भी पूरे हो रहें हैं.
उक्त एमओयू पर केंद्रीय होम्योपैथिक अनुसंधान परिषद की तरफ़ से महानिदेशक डॉ सुभाष कौशिक जी एवं डॉ देवदत्त नायक जी तथा
श्रीमती कमलाबेन रावजीभाई पटेल गुजराती होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज की ओर से चेयरमैन श्री भरत भाई शाह एवं प्राचार्य डॉ. एस.पी.सिंह ने साइन किये। इस अवसर पर केंद्रीय आयुष राज्यमंत्री डॉ. मुंजपरा महेन्द्रभाई और कॉलेज के शासी निकाय के अध्यक्ष भरतभाई शाह भी मौजूद थे। अब शीघ्र ही गुजराती समाज द्वारा संचालित होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज में आयुष मंत्रालय की केंद्रीय होम्योपैथिक अनुसंधान परिषद् की देखरेख में होम्योपैथी रिसर्च प्रारम्भ हो जायेगी।

जटिल बीमारियों के होम्योपैथिक इलाज पर होगी रिसर्च

उल्लेखनीय है कि विश्व होम्योपैथी दिवस से जुड़े गरिमामय आयोजन में हिस्सा लेने के लिए भरतभाई शाह, डॉ. सिंह और डॉ. द्विवेदी गत दिनों दिल्ली में थे। उक्त आयोजन के दौरान कैंसर, एनीमिया, सीकेडी (क्रोनिक किडनी डिसीजेज), आईबीएस तथा अन्य जटिल बीमारियों के होम्योपैथिक इलाज पर रिसर्च के बारे में विस्तृत चर्चा की गई। भविष्य में अन्य चिकित्सा पद्धतियों के साथ मिलकर होम्योपैथी के जरिये मरीजों को जटिल बीमारियों से राहत दिलाने की संभावनायें भी तलाशी गईं।

होम्योपैथिक चिकित्सा, शिक्षा और अनुसंधान हेतु प्रयासरत

आयुष मंत्रालय की वैज्ञानिक सलाहकार बोर्ड में 2015 से लगातार तीसरी बार शामिल इंदौर के प्रख्यात चिकित्सक डॉ. ए.के. द्विवेदी होम्योपैथिक चिकित्सा, शिक्षा और अनुसंधान की दिशा में विशेष रूप से प्रयासरत हैं। जटिल रोगों से पीड़ित देश-विदेश के अनेक मरीजों का होम्योपैथिक चिकित्सा से सटीक उपचार कर उन्होंने न केवल मरीजों की जिंदगी बचाई है बल्कि होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति लोकप्रिय बनाने में भी अहम भूमिका भी निभाई है। कोरोना काल के दौरान उनकी अति-विशिष्ट चिकित्सकीय सेवाओं के लिए उन्हें शासन-प्रशासन द्वारा सम्मानित भी किया जा चुका है। उनकी लिखी किताब कोरोना के साथ और कोराना के बाद भी इन दिनों चर्चा में है तथा देश-विदेश की अनेक गणमान्य विभूतियों द्वारा यह किताब सराही जा रही है।

Sunday, 9 April 2023

 विश्व होम्योपैथी दिवस पर विशेष


होम्योपैथी का जनक जर्मनी रहा तो वर्तमान और भविष्य भारत है


- डॉ. ए.के. द्विवेदी 

(सदस्य, वैज्ञानिक सलाहकार बोर्ड, सी सी आर एच. आयुष मंत्रालय, भारत सरकार)

- वरिष्ठ प्रोफेसर (एस.के.आर.पी गुजराती होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज, इंदौर)

होम्योपैथी के विकास क्रम, इसकी विश्वसनीयता और लोकप्रियता के लिहाज से पिछला साल बहुत महत्वपूर्ण रहा है। कोरोना से बचाव में होम्योपैथी की महत्ता 2020-21 में कोरोना की पहली दोनों लहरों के दौरान ही सिद्ध हो गई थी। इससे लोगों का होम्यौपैथी में विश्वास बढ़ा और ये दो मिथक भी दूर हो गये कि होम्योपैथी का इलाज बहुत धीमा होता है और ये बड़ी बीमारियों के लिए बहुत प्रभावी नहीं है। आप खुद ही सोचिये कि जब होम्योपैथिक दवाओं ने कोविड-19 जैसी महामारी के फैलाव को नियंत्रित करने में अत्यंत अहम भूमिका निभाई हो, उसे हल्के में कैसे लिया जा सकता है। यही वजह है कि अब आम अवाम से लेकर खास मकाम रखने वाले समाज के हर तबके (जिसमें हर आयु और वर्ग के लोग शामिल हैं) का विश्वास होम्यौपैथी पर बहुत बढ़ गया है। इसकी लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अब बड़ी संख्या में कैंसर, सिकल सेल, अप्लास्टिक एनीमिया जैसी बीमारियों के मरीज भी होम्योपैथी ट्रीटमेंट अपना रहे हैं और भले-चंग होकर स्वस्थ और आनंदमय जीवन का लुत्फ उठा रहे हैं।

वैसे होम्योपैथी के बारे में लोगों के विचारों में सकारात्मक परिवर्तन 2014 में आयुष मंत्रालय के गठन के बाद से ही होने लगा था। इस मंत्रालय की बहुआयामी और बहुजनहिताय योजनाओं के चलते लोग इस चिकित्सा पैथी की ओर तेजी से आकृष्ट हो रहे थे। लगातार ठीक होते मरीजों की माउथ पब्लिसिटी ने भी इस बदलाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सबसे बड़ी बात ये है कि इस पद्धति से ठीक हुए लोगों को स्थायी तौर पर आराम मिल रहा है और इसकी मीठी-मीठी गोलियों (दवाओं) का कोई साइड इफेक्ट भी नहीं है। मगर आधुनिकता की दौड़ में खुद को आगे दिखाने के चक्कर में एक दौर में कुछ लोगों ने न केवल इस पद्धति से खुद किनारा कर लिया था बल्कि वो दूसरों को भी बरगला रहे थे। लेकिन कोरोना काल में इन सबके द्वारा फैलाई गई भ्राँतियां पूरी तरह दूर हो गईं और लोग बड़ी संख्या में होम्योपैथी की ओर आकृष्ट होने लगे। 

वित्तीय वर्ष 2022-23 मेरे लिये इस मायने में भी अत्यंत महत्वपूर्ण रहा कि इस दौरान मैंने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, मध्य प्रदेश के राज्यपाल मंगूभाई पटेल, वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण, सड़क एवं परिवहन मंत्री नितिन गडकरी, पूर्व आयुष मंत्री श्रीपाद नाईक, इंदौर के सांसद शंकर लालवानी, इंदौर महापौर पुष्यमित्र भार्गव आदि स्वनामधन्य विभूतियों से निजी मुलाकातें कर उन्हें होम्योपैथी की खूबियों के बारे में विस्तार से बताया। यहाँ ये तथ्य विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि राष्ट्रपति, राज्यपाल और वित्तमंत्री से मुलाकात के दौरान मैंने उनसे सिकल सेल और अप्लास्टिक एनीमिया जैसी जानलेवा बीमारियों पर अंकुश लगाने के उपाय करने का निवेदन किया और मुझे बहुत खुशी हुई कि वित्तमंत्री द्वारा प्रस्तुत बजट में सिकलसेल बीमारी को 2047 तक पूरी तरह खत्म करने का लक्ष्य रखा गया है। 

2022-23 वित्त वर्ष के दौरान मेरे कई रिसर्च पेपर प्रकाशित हुए। जिन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहुत सराहना मिली। मुझे यकीन है कि इन शोध कार्यों से होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति की आगे की दशा व दिशा तय करने में बहुत मदद मिलेगी। मुझे यह कहने में कोई हिचक नहीं है कि होम्योपैथी का जनक बेशक जर्मनी रहा है लेकिन इसका भविष्य भारत में ही सबसे सुरक्षित है और भारत ही इसके भावी विकास क्रम को तय करेगा। होम्योपैथी को अपनाने की लिहाज से हमारी स्थिति अब भी बहुत अच्छी है और भारत को ग्लोबल लीडर के रूप में स्वीकार्यता मिल चुकी है। अंत में मेरी सभी मरीजों और आम लोगों से यही गुजारिश है कि सुनी-सुनाई बातों पर यकीन करने के बजाय आप एक बार खुले मन से होम्योपैथी को अपनायें। चिकित्सकों के परामर्श के अनुसार समग्र रूप से खान-पान और रहन-सहन पर ध्यान दें तो आप खुद ही तस्दीक करेंगे कि होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति मानव मात्र के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। इसे अपना हर व्यक्ति सुखी, सुव्यवस्थित और सुदीर्घ स्वस्थ जीवन जी सकता है। इस चिकित्सा पद्धति में भविष्य के लिहाज से अगणित संभावनायें छुपी हैं। नित नई खोजें हो रही हैं और सफलता के नये आयाम रचे जा रहे हैं।


पेश है होम्योपैथी से जुड़े कुछ रोचक सवाल और उनके जवाब .....


- क्या होम्योपैथी दवाओं के कुछ साइड इफेक्ट्स हैं? 'हीलिंग काइसिस' क्या है?

जवाब - होम्योपैथी दवाओं में साइड इफेक्ट्स के बजाय कभी-कभी 'हीलिंग काइसिस' प्रक्रिया देखने को मिलती है। जिसके द्वारा शरीर के जहरीले तत्व बाहर निकलते हैं। मसलन, किसी को बुखार की दवाई दी गई और उस व्यक्ति को लूज मोशन, उल्टी या स्किन पर एलर्जी हो जाए। दरअसल, ये दिक्कतें भी होम्योपैथी इलाज का हिस्सा हैं, लेकिन लोग इसे साइड इफेक्ट समझ लेते हैं। इस प्रक्रिया को 'हीलिंग काइसिस' कहते हैं। 


- क्या होम्योपैथी में इलाज काफी धीमा होता है? 

जवाब = 80 - 90 फीसद मामलों में लोग होम्योपैथ के पास तब पहुंचते हैं जब अन्य चिकित्सा पद्धतियों से इलाज कराकर थक चुके होते हैं। कई बार तो 15 से 20 साल से इलाज कराने के बाद पेशंट होम्योपैथ के पास पहुंचते हैं। ऐसे मामलों में इलाज में वक्त लग सकता है।


- होम्योपाथी में इलाज कैसे होता है?

जवाब - इसमें मरीज की हिस्ट्री काफी मायने रखती है। अगर किसी की बीमारी पुरानी है तो डॉक्टर उससे पूरी हिस्ट्री पूछता है। मरीज क्या सोचता है, वह किस तरह के सपने देखता है जैसे सवाल भी पूछे जाते हैं। ऐसे तमाम सवालों के जवाब जानने के बाद ही मरीज का इलाज शुरू होता है। इस पद्धित से अमूमन हर तरह की बीमारियों का समुचित इलाज हो सकता है। पुरानी और असाध्य बीमारियों के लिए तो ये सबसे अच्छा इलाज माना जाता है। एलर्जी, एग्जिमा, अस्थमा, कोलाइटिस, माइग्रेन, जैसी बीमारियों को भी होम्योपैथी जड़ से खत्म कर सकती है। कैंसर के मामलों में भी इसका परसेंटेज काफी अच्छा है। शुगर, बीपी, थाइरॉइड आदि के नए मामलों में यह पद्धति अधिक कारगर साबित होती है।


- क्या होम्योपैथी में दवा सुंघाकर भी इलाज किया जाता है?

हां, कुछ दवाएं ऐसी होती हैं, जिन्हें मरीज को सिर्फ सूंघने के लिए कहा जाता है। मसलन, साइनुसाइटिस और नाक में गांठ की समस्या होने पर डॉक्टर ऐसे ही इलाज करते हैं। 10-15 साल पहले तक होम्योपैथी इलाज के दौरान लहसुन, प्याज जैसी चीजें नहीं खाने की सलाह दी जाती थी लेकिन नए शोधों ने इस सोच को बदल दिया है। अब डॉक्टर इन चीजों को खाने की मनाही नहीं करते। अब इंसानी शरीर प्याज, लहसुन आदि के लिए नया नहीं रहा।


- क्या इस चिकित्सा पद्धति से इलाज कराते हुए कोई परहेज नहीं है?

होम्योपैथी की दवा खाने के दौरान जिस एक चीज की सख्त मनाही होती है वह है कॉफी। दरअसल, कॉफी में कैफीन होती है। कैफीन होम्योपैथी दवा के असर को काफी कम कर देती है। कुछ डॉक्टर डियो और परफ्यूम भी लगाने से मना करते हैं। माना जाता है कि इनकी खुशबू से भी दवा का असर कम हो जाता है।


- क्या दवायें प्लास्टिक या काँच की डिब्बी में होने से भी फर्क पड़ता है?

जवाब - होम्योपैथिक दवाएं कांच की बोतल में देना ही बेहतर है। अगर उस पर कॉर्क लगा हो तो और भी अच्छा। दरअसल, होम्योपैथी की दवाओं में कुछ मात्रा में अल्कोहल का उपयोग किया जाता है। अल्कोहल प्लास्टिक से रिऐक्शन कर सकता है। वैसे, आजकल प्लास्टिक बॉटल की क्वॉलिटी भी अच्छी होती है। इसलिए प्लास्टिक का इस्तेमाल भी कई डॉक्टर दवाई देने के लिए करते हैं। दरअसल, कांच की बॉटल के टूटने का खतरा होता है। इसलिए अमूमन इनका इस्तेमाल कम ही किया जाता है। 

 

- कहाँ बनी हुई दवाइयाँ ज्यादा बेहतर हैं?

जवाब - होम्योपैथी की दवाई के उत्पादन और गुणवत्ता के मामले में जर्मनी पूरी दुनिया में आगे है। इंडिया में होम्योपैथी की डिमांड को देखते कुछ जर्मन कंपनियों ने यहां भी अपने सेंटर शुरू किए हैं। कई भारतीय कंपनियां भी अच्छी दवाएं बना रही हैं। मगर मैं फिर दोहरा रहा हूँ कि होम्योपैथी का भविष्य भारत में ही है। 

 

- सफेद मीठी गोलियों और लिक्विड दवा में क्या फर्क है?

जवाब - होम्योपैथी हमेशा से ही मिनिमम डोज के सिद्धांत पर काम करती है। इसमें कोशिश की जाती है कि दवा कम से कम दी जाए इसलिए ज्यादातर डॉक्टर दवा को मीठी गोली में भिगोकर देते हैं क्योंकि सीधे लिक्विड देने पर मुंह में इसकी मात्रा ज्यादा भी चली जाती है। इससे सही इलाज में रुकावट पड़ती है। लेकिन जहाँ ज्यादा डोज दिया जा सकता है वहाँ लिक्विड फॉर्म में दवा सीधे भी दी जाती है। दरअसल होम्योपैथिक दवाएं सीधे हमारे नर्वस सिस्टम को उत्तेजित करने के लिए बनी हैं। चूंकि जीभ से पूरा नर्वस सिस्टम जुड़ा हुआ है, इसलिए हम इन दवाइयों को जीभ पर रखते हैं. अगर हम इसे जीभ पर नहीं रखेंगे तो यह सही से काम नहीं करेगी. जीभ पर रखने से दवाई का असर पूरे नर्वस सिस्टम पर एक साथ हो जाता है। जीभ से दवाई नर्वस सिस्टम में जब तक न घुसे या दवाई के साथ कुछ और चीजों का असर न हो, तब तक किसी और चीज को लेने की मनाही है। इसलिए होम्योपैथिक दवाइयों के खाने से आधे घंटा पहले और आधा घंटे बाद में कुछ भी खाने-पीने की अनुमति नहीं होती है। इन दवाओं का एक्शन मुंह से शुरू होता है।  कुछ लीक्विड फॉर्म वाली होम्योपैथिक दवाइयों को जीभ से नहीं ली जाती है. इसे पानी के साथ लिया जाता है। 


- होम्योपैथी दवायें जीभ पर रखने के पीछे क्या साइंस है?

जवाब - होम्योपैथिक दवाई में मौजूद रसायन जीभ के नीचे म्यूकस मैंब्रेन के संपर्क में आता है। यह रसायन संयोजी ऊतक तक फैल जाता है। इसके नीचे इपीथेलियम सेल्स होते हैं जिनमें असंख्य नलिकाएं होती हैं। दवाई में मौजूद रसायन इन्ही नलिकाओं के माध्यम से रक्त परिसंचरण तंत्र में पहुंच जाता है। होम्योपैथिक दवा सीधे ब्लड सर्कुलेशन में पहुंचती है। इसलिए यह तेज गति से प्रभावित अंगों तक पहुंचती है। अन्य दवाइयों के विपरीत यह सिर्फ स्लायवरी एंजाइम के संपर्क में आती है। इसलिए इसका अन्य अंगों पर कोई खास साइड इफेक्ट नहीं होता है।

Tuesday, 4 April 2023

तीन महीने चलेगा "हर इंदौरी स्वस्थ" शिविर, शुरुआत 5 अप्रैल से

इंदौर। स्वच्छता की ही तरह शहर को स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी देश का नंबर शहर बनाने के लिए प्रयत्नशील आयुष


मंत्रालय की वैज्ञानिक सलाहकार बोर्ड के सदस्य डॉ. ए.के. द्विवेदी 5 अप्रैल, बुधवार से एक विशेष चिकित्सा शिविर "हर इंदौरी स्वस्थ" का आगाज कर रहे हैं। प्रत्येक इंदौरी को स्वस्थ बनाने और विशेष रूप से युवाओं को प्राकृतिक चिकित्सा की महत्ता से रूबरू कराने के उद्देश्य से शुरू किया जा रहा ये शिविर 4 जुलाई तक जारी रहेगा। "कम्यूनिटी हेल्थ एंड वेलफेयर" के बैनर तले "एडवांस होम्योपैथिक मेडिकल रिसर्च एंड वेलफेयर सोसायटी, पीपल्याहाना" में आयोजित अपने तरह के इस अनूठे शिविर के बारे में डॉ. द्विवेदी ने बताया कि आमतौर पर सबसे ज्यादा बीमारियाँ गर्मियों के मौसम में और गर्मी तथा बरसात के संधिकाल के दौरान होती हैं। अगर हम इस दौरान इंदौरियों को सेहतमंद रखने में सफल रहे तो यह हर इंदौरी स्वस्थ अभियान के लिए मील का पत्थर साबित होगा। इसी के मद्देनजर इस त्रैमासिक शिविर के दौरान प्राकृतिक चिकित्सा सलाह पूरी तरह निःशुल्क होगी तथा उपचार भी बेहद किफायती दरों पर किया जायेगा, ताकि हर वर्ग के अधिक से अधिक लोग इस तरह त्रैमासिक स्वास्थ्य शिविर का लाभ उठा सकें।


शिविर में पूर्व पंजीयन आवश्यक कृपया कॉल 0731-4989287, +91 98935 19287
करके ही पधारें प्राकृतिक चिकित्सा हेतु एक सेट अंतः वस्त्र अवश्य लेकर आएँ.