Saturday, 22 October 2022

संतोष धन के साथ स्वास्थ्य संपदा भी सहेंजे – डॉ. द्विवेदी

एडवांस आयुष वेलफेयर सेंटर द्वारा धन्वंतरि पूजन एवं संगोष्ठी, आयुर्वेद चिकित्सकों का सम्मान समारोह का आयोजन किया गया

इंदौर। एडवांस आयुष वेलफेयर सेंटर द्वारा शनिवार को  भगवान धन्वंतरि जयंती के मौके पर  श्री विष्णु स्वरुप भगवान धन्वंतरि पूजन संगोष्ठी एवं आयुर्वेदिक चिकित्सक सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। ग्रेटर ब्रजेश्वरी स्थित सेंटर पर हुए कार्यक्रम में अतिथियों एवं वक्ताओं ने भगवान धन्वंतरि को लेकर अपने विचार और आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति के बारे में विस्तार से जानकारी दी। कार्यक्रम के समापन पर स्वस्थ्य पर्यावरण के उद्देश्य से पौधारोपण किया गया।

कार्यक्रम के प्रारंभ में अतिथियों ने भगवान धन्वंतरि के चित्र पर माल्यार्पण और समक्ष दीप प्रज्जवलन किया। मुख्य अतिथि पद्मश्री डॉ. श्रीमती जनक पलटा मगिलिगन विशेष अतिथि एमआईसी मेंबर एवं पार्षद श्री राजेश उदावत, पूर्व उपाध्यक्ष खनिज निगम मप्र श्री गोविंद मालू, पार्षद श्री राजीव जैन, मनोचिकित्सक कोकिलाबेन हॉस्पिटल, इंदौर डॉ. श्री वैभव चतुर्वेदी थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता सदस्य वैज्ञानिक सलहाकार बोर्ड केंद्रीय होम्योपैथिक अनुसंधान परिषद, आयुष मंत्रालय, भारत सरकार के डॉ. श्री एके द्विवेदी ने की।  

अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ. द्विवेदी ने कहा गोधन, गजधन, बाजधन और रतन-धन खान, जब आवै संतोष धन सब धन धूरि समान... ये दोहा हममें से अधिकांश लोगों ने बचपन में कोर्स की किताबों में पढ़ा था। जिसका सार ये है कि संतोष सबसे बड़ा धन है और संतोषी प्रवृत्ति का मनुष्य ही सबसे बड़ा धनवान है। काफी हद तक ये बात सच भी है। लेकिन कोरोना काल के दौरान बनी अत्यंत दयनीय और विषम परिस्थितियों ने सिद्ध कर दिया है कि अच्छी सेहत भी बहुत बड़ी दौलत है। इसके बिना आपको कभी सच्चा आनंद और सुकून नहीं मिल सकता है। इसलिए आज धन्वंतरि जयंती पर मेरी आप सभी से गुजारिश है कि जीवन के बाकी धनों के साथ-साथ अपनी सेहत रूपी दौलत की भी पूरी हिफाजत करें, क्योंकि अच्छा स्वास्थ्य ही आपकी सबसे बड़ी संपदा है। डॉ. द्विवेदी ने कहा कि अब समय आ चुका है कि हम बेहतर स्वास्थ्य सुनिश्चित करने के लिए अलग-अलग चिकित्सा पद्धतियों को एक मंच पर लाकर सभी को सेहतमंद जीवन का वरदान दें। क्योंकि कोरोना महामारी की त्रासदी ने साबित कर दिया है कि आपदाकाल में केवल एक ही तरह की चिकित्सा पद्धति के भरोसे नहीं रहा जा सकता है।

प्रख्यात समाजसेवी पद्मश्री जनक पलटा ने संबोधित करते हुए कहा कि संसार में हमारे देवी-देवता श्री विष्णु के अंश है। हमें जो भगवान ने वेद-पुराणों के माध्यम से बताया उन्हें फालो करना चाहिए। डॉ. पलटा ने अपने जीवन के उन विशेष अनुभवों को साझा किया जिनसे आयुर्वेद की महत्ता का पता चलता है।

श्री मालू ने अपने संबोधन में कहा कि हमारे त्योहार पर्व, संस्कृति व परंपरा से जुड़े हैं और हमारे स्वास्थ्य से भी इनका जुड़ाव है। पूरा उत्सव प्रकृति का उत्सव है। भगवान धन्वंतरि के सबसे पहले डॉक्टर हुए। आज पर्व के मौके पर हमें सनातन परंपरा को आगे ले जाने का संकल्प लेना होगा। ताकि पाश्चात सभ्यता का जो रंग चढ़ा है उसे खत्म किया जा सकें। आने वाली पीढ़ी को बताना होगा कि क्या हमारे पर्व है और क्या सभ्यता है।

एमआईसी सदस्य श्री उदावत ने अपने उद्बोधन में कहा कि एक समय था जब हमारे आयुर्वेद चिकित्सक नब्ज और चेहरा देखकर व्यक्ति का मर्ज बता देते थे। लेकिन आज हमने एक्सरे, एमआरआई को अपना लिया है। मेरा मानना है कि यदि हम अपनी पुरानी चिकित्सा पद्धति को नहीं छोड़ते तो आज हम इतने बीमार नहीं होते। समाज को जागृत करना होगा और पुरानी चिकित्सा पद्धति को पुनः अपनाना होगा। हमें योग, आयुर्वेद को अपनाना होगा।

मनोचिकित्सव डॉ. चतुर्वेदी ने कहा हमारे चिकित्सा क्षेत्र में एक टैग लाइन है वो है हेल्थ इस वेल्थ यानि हेल्थ अच्छी होगी तो आपकी वेल्थ अच्छी रहेगी। क्योंकि आज देखने में आता है कि व्यक्ति कई बातों को लेकर परेशान रहता है और अपनी हेल्थ पर ध्यान नहीं दे पाता। इसमें बहुत से करोड़ों की संपत्ति वाले लोग भी आते हैं जो हेल्थ और वेल्थ को लेकर परेशान रहते हैं।

डॉ. जीके पाराशर ने कहा भगवान धन्वतंरि और उनके साथ के लोग घूम-घूमकर जड़ी-बूटियों का प्रचार करते थे। समुद्र मंथन के व्यक्त अमृत कलश निकला था। उस संदर्भ को जोड़ते हुए श्री पाराशर ने कहा कि आज हमें कुबेर का पूजन करने के साथ ही एक कलश लेना चाहिए जिसका मतलब है कि हमें पानी अधिक पीना चाहिए। श्री पाराशर ने पंचकर्म चिकित्सा से ठीक होने के बाद एक महिला द्वारा दी गई मालवी भाषा की प्रतिक्रिया भी मालवी भाषा  में ही कार्यक्रम के दौरान बताई। उन्होंने कहा कि संसार में चिकित्सा से अच्छा कोई पुण्यकर्म नहीं है।

विशेष रुप से उपस्थित कॉउ यूरिन थैरेपी विशेषज्ञ डॉ. वीरेंद्र जैन ने भी गोमूत्र. गोबर और घी से होने वाले फायदों के बताते हुए कहा कि संसार में गोमाता एक चलता-फिरता अस्पताल है। गोमाता के गोमूत्र, गोबर व घी सभी से कई बीमारियों का उपचार किया जा सकता है।

कार्यक्रम के आखिर में आयुर्वेद चिकित्सकों को सम्मानित किया गया। इनमें डॉ. जीके पाराशर, डॉ. प्रदीप कुमार जैन, डॉ. अनिल श्रीवास्तव, डॉ. वीरेंद्रकुमार जैन, डॉ. हेमंत सिंह, डॉ. ऋषभ जैन, डॉ. एमएल अग्रवाल, डॉ. प्रीति हरनोदिया, डॉ. एपीएस चौहान, डॉ. मधुसुदन शर्मा, डॉ. कंचन शर्मा, डॉ. नीरज यादव, डॉ. विमल कुमार अरोरा, डॉ. ज्योति दुबे, डॉ. धर्मेंद्र शर्मा शामिल है। इस अवसर पर डॉ. ऋषभ जैन, राकेश यादव, दीपक उपाध्याय, जितेंद्र जायसवाल, रीना सिंह सहित बड़ी संख्या में विद्वजन, गणमान्य अतिथि, आयुर्वेद के जानकार, स्टूडेंट्स और उनके पैरेंट्स भी उपस्थित थे। संचालन डॉ. विवेक शर्मा ने किया। आभार डॉ. जीतेंद्र पूरी ने माना।

Friday, 21 October 2022

केराटोसिस पिलारिस एक तरह का त्वचा रोग जानिए इसके लक्षण, कारण और इलाज

केराटोसिस पिलारिस एक हानिकारक, गैर-संक्रामक प्रकार का त्वचा विकार है, जो मुख्य रूप से शुष्क त्वचा वाले लोगों को प्रभावित करता है। इस रोग को चिकन त्वचा (चिकन स्किन), लाइफन पिलारिस या फोलिक्युलर


केराटोसिस के नाम से भी जाना जाता है। केराटोसिस पिलारिस का मूल कारण त्वचा के बालों या रोम में केराटिन बोले जाने वाले प्रोटीन का निर्मित होना है जो कि त्वचा के बालों के रोम के अवरुद्ध करता है।

केराटोसिस पिलारिस के लक्षण

यह आटोसोमल आनुवांशिक रोग है जिसे त्वचा पर खुदरेपन, हल्की लालिमा और मुंहासों जैसी बधाओं की उपस्थिति से पहचाना जाता है। यह अक्सर पीठ एवं बांहों के बाहरी हिस्सों पर दिखाई देता है तथा जांघों, हाथों पैरों और नितंबों या चिकनी त्वचा को छोड़कर शरीर के किसी भी हिस्से पर हो सकता है। यह आमतौर पर शुष्क त्वचा से पीड़ित मरीजों में पाया जाता है। कुछ मामलों में कुछ सूजन या लाली हो सकती है जो बाधाओं के साथ आता है। त्वचा अपनी मूल चमक और रंग खो देती है।

केराटोसिस पिलारिस के कारण 

केराटोसिस पिलारिस का मुख्य कारण केराटिन का निर्माण है। एक प्रोटीन है, जो हानिकारक पदार्थों और संक्रमण से त्वचा की रक्षा करता है। केराटिन एक कर्कश प्लग बनाता है, जो त्वचा की सतह पर बाल कूप को अवरुद्ध करता है। इन प्लगों के कारण त्‍वचा में खुरदरापन और केराटोसिस पिलारिस की समस्‍या होती है। हमारे शरीर के बालों में मौजूद केराटिन रोम छिद्रों में बंद हो जाते हैं, जो बढ़ते बालों के रोम की ओपनिंग ब्‍लॉक कर देते हैं। यह केराटोसिस पिलारिस के गठन का कारण बनता है। केराटोसिस पेलारिस का सटीक कारण स्किन एक्‍सपर्ट के लिए भी अज्ञात है, लेकिन यह त्वचा की स्थिति जैसे एटोपिक डर्मटाइटिस और आनुवंशिक रोग के साथ जुड़ा हो सकता है। डर्मटाइटिस भी जटिल त्वचा रोग है जिसके लक्षण भी लालिमा, सूजन, खुजली, जलन, दर्द है।


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केराटोसिस को रोकने के लिए टिप्‍स

  • केराटोसिस पिलारिस के कारण दिखाई देने वाले छोटे दानों या चकत्तों को खरोंचें या रगड़ें नहीं।
  • गर्म पानी से स्‍नान करें। यह त्वचा के रोमछिद्रों को ढीला करने में मदद कर सकता है।
  • हमेशा बंप्‍स को संभावित रूप से हटाने के लिए एक कठोर ब्रश के साथ त्वचा को धीरे से रगड़ें।
  • शॉवर के बाद हमेशा एक मॉइश्चराइज़र का इस्तेमाल करें।
  • तंग कपड़े पहनने से बचें क्योंकि इससे घर्षण हो सकता है और त्वचा में जलन हो सकती है।
  • त्वचा को रोजाना एक्सफोलिएट करें। इससे त्‍वचा की स्थिति में सुधार करने में मदद मिलती है।
बच्चों और किशोरों में आम है केराटोसिस पिलारिस

केराटोसिस पिलारिस रोग बच्चों और किशोरों में आम है और यह आमतौर पर आपके बड़ने होने के साथ अपने आप गायब भी हो जाता है। अब तक इसका कोई सटीक उपचार उपलब्ध नहीं है लेकिन इसे रोकने की कोशिश की जा सकती है।  होम्योपैथी चिकित्सक और केंद्रीय होम्योपैथिक अनुसंधान परिषद, आयुष मंत्रालय, भारत सरकार के वैज्ञानिक सलाहकार बोर्ड के सदस्य डॉ. एके द्विवेदी के अनुसार केराटोसिस पिलारिस में राहत के लिए पीड़ित एक माइस्चराइजर और क्रीम का उपयोग कर सकता है जो आपकी त्वचा पर इसके लक्षणों को कम करने में प्रभावी हो सकती है। इसके अलावा होम्योपैथिक चिकित्सा की सहायता से भी राहत पायी जा सकती है। होम्योपैथी दवाईयां काफी सुरक्षित है। इनका शरीर पर किसी भी प्रकार का कोई दुष्प्रभाव नहीं होता है। हालांकि होम्योपैथिक दवाओं का उपयोग करने से पूर्व अपनी समस्या  होम्योपैथिक चिकित्सक को विस्तार से बताकर उनसे सलाह भी ली जा सकती है।

Thursday, 20 October 2022

हेपेटाइटिस बी या पीलिया रोग से निजात दिलाने में कारगर है होम्योपैथी

व्यक्ति के शरीर में मौजूद खून में बिलीरुबिन का स्तर बढ़ने के कारण त्वचा, नाखून और आंखों का सफेद भाग पीला दिखने लगया है और यह पीलिया रोग के लक्षण है। खून में बिलीरूबिन की अत्याधिक मात्रा होने से लिवर के


काम करने की क्षमता कमजोर हो जाती है और ये धीरे-धीरे पूरे शरीर में फैल जाता है जिससे पीलिया रोग हो जाता है। पीलिया से पीड़ित मरीज का समय पर इलाज ना हो तो रोगी को लंबें समय तक इसे सहना पड़ता है। और कई बार यह जानलेवा हो जाता है।

होम्योपैथी चिकित्सक और केंद्रीय होम्योपैथिक अनुसंधान परिषद, आयुष मंत्रालय, भारत सरकार के वैज्ञानिक सलाहकार बोर्ड के सदस्य डॉ. एके द्विवेदी के अनुसार पीलिया रोग में लिवर कमजोर हो जाता है और कार्य करना बंद कर देता है।बरसाल के मौसम में पीने का पानी तथा खाद्य पदार्थ अक्सर प्रदूषित हो जाते हैं जिसके खाने-पीने से व्यक्ति में पीलिया रोग का कारण बन जाता है। पीलिया रोग होने के लक्षण की बात करे तो इस दौरान व्यक्ति की त्वचा, नाखून और आंख का सफेद हिस्सा तेजी से पीला होना, फ्लू जैसे लक्षण दिखाई देना जिसमें मितली आना, पेट दर्द, भूख ना लगना और खाना ना हजम होना जैसे लक्षण भी दिखाई देते हैं। वजन घटना, गाढ़ा पीला मूत्र आना, लगातार थकान महसूस करना पीलिया के लक्षण हैं। पीलिया रोग जानलेवा नहीं हैं लेकिन इसकी अनदेखी कई बार जानलेवा हो सकती है। इसके अलावा आपने हेपेटाइटिस बी के बारे में भी सुना होगा जो कि पीलिया रोग का बिगड़ा हुआ रूप है। वैसे तो हर चिकित्सा पद्धति में पीलिया रोग का इलाज है लेकिन आयुर्वेद और होमियोपैथी में इसका कारगर इलाज है। वहीं घरेलू उपचार भी इस रोग में आश्चर्यजनक परिणाम देते हैं।

क्या है बिलीरुबीन

यह पीले रंग का पदार्थ होता है जो रक्त कोशिकाओं में पाया जाता है। लिवर इनको खून से फिल्टर कर देता है लेकिन लिवर में कुछ समस्या आने के चलते जब यह प्रक्रिया ठीक से नहीं हो पाती तो शरीर में बिलीरुबीन की मात्रा बढ़नी लगती है। इसी के चलते व्यक्ति की त्वचा पीली नजर आने लगती है। लिवर में गड़बड़ी के कारण, बिलीरुबिन शरीर से बाहर नहीं निकलता है, और इससे पीलिया हो जाता है। इसके अलावा हेपेटाइटिस, पैंक्रियाज का कैंसर, एल्कोहल का ज्यादा सेवन, सड़क के किनारे की खुली, दूषित वस्तुएं और गंदा पानी पीने तथा कुछ दवाओं के चलते भी यह पीलिया रोग हो सकता है।

पीलिया रोग में घरेलू उपचार

गन्ने का रस - यह पीलिया के इलाज में लाभकारी हैं। दिन में 3 से 4 बार सिर्फ गन्ने का रस पीया जाए तो लाभ होता हैं। सत्तू खाकर गन्ने का रस पीने से सप्ताह भर में ही पीलिया ठीक हो सकता है।

गिलोय, पपीता - गिलोय का रस शहद में मिलाकर सुबह-सुबह सेवन करने से पीलिया रोग दूर होता है। इसके अलावा कच्चे व पके पपीते का सेवन भी पीलिया रोग में काफी लाभप्रद हेता है।

दही और छाछ - दही का सेवन करने से पीलिया रोग के लक्षणों को कम करने किया जा सकता है। जीरा और सेंधा नमक इच्छानुसार इसमें मिला सकते हैं। इसके अलावा पीलिया रोग में रोज सुबह-शाम 1-1 गिलास छाछ या मट्ठा में सेंधा नमक मिलाकर पिएं। छाछ, सेंधा नमक पीलिया जल्दी ठीक करने में सहायक है।

हल्दी से उपचार - हल्दी पीलिया रोग के उपचार के लिए कारगर होती हैं। पीलिया होने पर आप एक चम्मच हल्दी को आधे गिलास पानी में मिला लें। इसे रोजाना दिन में तीन बार पिएं। इससे शरीर में मौजूद सभी विषाक्त पदार्थ बाहर आ जाएंगे। यह नुस्खा बिलीरुबिन को शरीर से बाहर करने में भी बहुत मदद करता है। पीलिया के इलाज के लिए बहुत ही आसान नुस्खा है। जिससे शरीर के खून की सफाई भी हो जाती है।

पीलिया रोग में क्या न करें 

डॉ. द्विवेदी कहते हैं पीलिया रोग के लक्षण दिखने पर व्यक्ति को तुरन्त अपनी दिनचर्या और खानपान में बदलाव लाना चाहिए। बाहर का खाना न खायें। एक साथ पूरा खाना न खायें, थोड़ी थोड़ी देर के अंतराल पर खायें। ज्यादा मिर्च-मसालेदार तला, भुना खाना न खाएं। मैदा आदि का प्रयोग ना करें। दाल और बींस न खाएं। ये लीवर पर ज्यादा बोझ डालते हैं। हार्डवर्क करने से बचें। शराब का सेवन न करें। पीलिया में ज्यादा नमक वाली चीजें अचार आदि खाने से बचना चाहिए। कॉफी या चाय का सेवन न करें, इसमे मौजूद कैफीन पीलिया रोग को आसानी से ठीक नहीं होने देता। पीलिया में दाल खाने से परहेज करना चाहिए, इससे आंतों में सूजन हो सकती है। मक्खन, जंक फूड, मीट, अंडे, चिकन और मछली- पीलिया में कुछ प्रोटीन युक्त आहार (अंडा, मांस आदि) लेने से बचना चाहिए। क्योंकि पीलिया के मरीज के लिए इन सभी चीजों को पचा पाना मुश्किल होता है।

पीलिया रोग का बिगड़ा रूप है हेपेटाइटिस बी

हेपेटाइटिस बी एड्स से भी कई गुना खतरनाक है। यह पीलिया का बिगड़ा हुआ रूप है। रोगी को व्यक्ति से इलाज न मिलने या रोग की अनदेखी करने से यह हेपेटाइटिस बी का रूप ले लेता है जो जानलेवा हो सकता है। इसलिए पीलिया के लक्षण दिखते ही खानपान और दिनचर्या में बदलाव लाते हुये तुरन्त अच्छे डॉक्टर से संपर्क कर जरूरी उपचार लेना चाहिए।

होम्योपैथी में अपार संभावनाएं हैं- डॉ. द्विवेदी

डॉ. एके द्विवेदी के अनुसार होम्योपैथिक उपचार से हेपेटाइटिस बी या पीलिया रोग से काफी हद तक राहत मिल सकती है। चाइना, चेलिडोनियम, कारडुअस, कालमेघ-क्यू, ब्रायोनिया, मर्कसाल, फासफोरस, नैट्रमम्योर, फेरममेट सभी 30 या 200 के पॉवर में चिकित्सक की देखरेख में लक्षणानुसार ली जा सकती हैं। जिससे मरीज को राहत मिल सकती है।

Wednesday, 19 October 2022

होम्योपैथी बच्चों के स्वास्थ्य का साथी हैः डॉ. एके द्विवेदी

पालक जब भी दवाखाने पर अपने बच्चों को लेकर आते हैं तो उनके चेहरे पर अत्यंत प्रसन्नता रहती है। वे बताते हैं कि मेरा बच्चा दूसरे डॉक्टर्स के पास जाने को मना करता है परंतु आप के पास आने के लिए सहजता से तैयार हो जाता है, बल्कि स्वयं कहता है दवाईयां खत्म हो गई है। मीठी होली वाले डॉक्टर साहब के पास चलना है।


बच्चे तन-मन से अत्यंत नाजूक होते हैं। कोई भी पीड़ा या कष्ट उन्हें अत्यंत परेशान कर देता है, चाहे वह इंजेक्शन का दर्द हो या जबरदस्ती दी जाने वाली कड़वी दवाईयां। जबरदस्ती करने से डॉक्टर या चिकित्सा के खिलाफ हो जाता है। होम्योपैथी में चूंकि मीठी दवाइयों का प्रयोग किया जाता है तथा बच्चे चॉकलेट के बाद सबसे ज्यादा इन मीठी गोलियों को पसंद करते हैं।

होम्योपैथी चिकित्सक और केंद्रीय होम्योपैथिक अनुसंधान परिषद, आयुष मंत्रालय, भारत सरकार के वैज्ञानिक सलाहकार बोर्ड के सदस्य डॉ. एके द्विवेदी बताते हैं कि होम्योपैथी द्वारा हम बच्चों में होने वाले रोग जैसे दस्त, कब्ज, दांत निकलने के समय होने वाली परेशानियां, रात्रि में बिस्तर गीला करना इत्यादि से सहजता के साथ छुटकारा दिला सकते हैं। बच्चों को यदि बार-बार सर्दी-जुकाम, निमोनिया या प्राइमरी कॉम्प्लेक्स होगा तो उनका शारीरिक और मानसिक विकास स्वस्थ बच्चों जैसा नहीं हो सकेगा। होम्योपैथी ऐसी चिकित्सा प्रणाली है, जिसके प्रयोग से बार-बार होने वाले सर्दी-जुकाम, निमोनिया एवं प्राइमरी कॉम्प्लेक्स से छुटकारा पाया जा सकता है तथा इन दवाओं के प्रयोग से रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाया जा सकता है। हमारे दवाखाने पर पूर्व में आए अनेक बच्चे जिन्हें होम्योपैथी दवाइयों का सेवन कुछ माह तक उनके पालकों ने कराया। वे स्वयं ही बताते हैं कि पछले कई वर्षओं से उन बच्चों को सर्दी-जुकाम होता ही नहीं है। कई बच्चों को अस्थमा में होम्योपैथिक दवाइयों का प्रयोग 2-3 वर्षों तक कराया जिससे इन्हेलर से छुटकारा एवं अस्थमा से भी पूरी तरह निजात मिल गई है। छोटे बच्चों को भी पथरी बन जाती है, जिन्हें कुछ माह तक होम्योपैथी दवाइयां देने से पथरी निकल भी जाती है तथा बार-बार पथरी का बनना भी बंद हो जाता है। बच्चों के स्वभाग के लिए होम्योपैथी से बेहतर कुछ हो ही नहीं सकता है, ऐसे बच्चे जो दिनभर रोते रहते हैं या चिड़चिड़ करते हैं, बात-बात पर गुस्सा करते हैं एवं पालकों की बात नहीं मानते हैं उन्हें होम्योपैथिक दवाइयों की कुछ खुराक से ही पूरी तरह से ठीक किया जा सकता है। होम्योपैथिक दवाइयों द्वारा याददाशत एवं एकाग्रता को भी बढ़ाया जा सकता है।

Saturday, 15 October 2022

डर्मेटाइटिस जटिल त्वचा रोग, होम्योपैथी से काफी कारगर है इसका इलाज

र्मेटाइटिस एक त्वचा रोग है, जिससे त्वचा की ऊपरी सतह में सूजन व लालिमा हो जाती है। इसके कई अलग-


अलग प्रकार हैं, जिनके अंदरूनी कारण भी अलग-अलग हो सकते हैं। इलाज की मदद से डर्मेटाइटिस के लक्षणों को नियंत्रित किया जा सकता है। 

डर्मेटाइटिस का मतलब होता है त्वचा की सूजन और हिन्दी में इसे जिल्द की सूजन के नाम से भी जाना जाता है। यह आमतौर पर त्वचा में लालिमा, सूजन व खुजली के रूप में विकसित होती है। डर्मेटाइटिस एक्जिमा से अलग होता है। सभी एक्जिमा डर्मेटाइटिस के प्रकार होते हैं, लेकिन सभी डर्मेटाइटिस एक्जिमा नहीं होते हैं। डर्मा शब्द का मतलब त्वचा होता है और इसलिए डर्मेटाइटिस त्वचा पर होने वाली सूजन या लाल चकत्ते को संदर्भित करता है। डर्मेटाइटिस से होने वाली सूजन, लालिमा व चकत्ते सामान्य या गंभीर हो सकते हैं, जो पूरी तरह से उसके कारण पर निर्भर करते हैं। डर्मेटाइटिस से शरीर को कोई नुकसान नहीं पहुंचता है और न ही यह संक्रमण की तरह फैलती है। साथ ही डर्मेटाइटिस का त्वचा की स्वच्छता से कोई संबंध नहीं होता है। यदि डर्मेटाइटिस का इलाज समय रहते किया जाए तो इससे लक्षणों को काफी हद तक कम किया जा सकता है।

 

डर्मेटाइटिस के प्रकार

डर्मेटाइटिस अनेक प्रकार का होता है, जिनमें प्रमुख रूप से निम्न को शामिल किया जा सकता है -

इरिटेंट कॉन्टैक्ट डर्मेटाइटिस - यह आमतौर पर उत्तेजक रसायनों से होता है, जैसे डिटर्जेंट, साबुन और परफ्यूम आदि।

एलर्जिक डर्मेटाइटिस - जब आपको किसी पदार्थ से एलर्जी हो और आपकी त्वचा उसके संपर्क में आने पर आपको डर्मेटाइटिस हो जाए तो इस स्थिति को एलर्जिक डर्मेटाइटिस कहा जाता है। कुछ मामलों में यह स्थिति प्रतिरक्षा प्रणाली संबंधी समस्याओं से भी जुड़ी हो सकती है।

एटोपिक डर्मेटाइटिस - यह आमतौर पर छोटे बच्चों में देखी जाती है, जिसमें त्वचा में रूखापन, खुजली व जलन हो सकती है। अधिकतर बच्चों को यह रोग उनके जीवन के पहले वर्ष ही हो जाता है, जबकि अन्य को 1 से 5 साल के बीच यह बीमारी होती है। हालांकि, जीवनशैली में कुछ बदलावों के कारण वयस्कों में भी एटोपिक डर्मेटाइटिस देखा जा सकता है।

सेबोरेहिक डर्मेटाइटिस - यह डैंड्रफ का एक गंभीर प्रकार है, जिसमें खोपड़ी, सीने व पीठ पर पपड़ीदार चकत्ते बनने लगते हैं।

न्युमुलर डर्मेटाइटिस - इसमें विशेष रूप से त्वचा के उन हिस्सों में सफेद व लाल रंग के गोल चकत्ते बनने लगते हैं। कई बार इन चकत्तों पर पपड़ी भी आ जाती है और खुजली होती है।

आईडी इरप्शन - डर्मेटाइटिस का यह प्रकार आमतौर पर सूजन व लालिमा संबंधित किसी अन्य समस्या के कारण विकसित होता है।

पोम्फोलिक्स - इससे अधिकतर मामलों में हाथ व पैर प्रभावित होते हैं, जिन पर लाल रंग के फफोले व छाले बनने लगते हैं।

लाइकेन सिंप्लेक्स कोर्निकस - यह आमतौर पर त्वचा संबंधी किसी दीर्घकालिक समस्याओं के कारण विकसित होता है, जिसमें त्वचा के प्रभावित हिस्से की मोटाई बढऩे लगती है।

 

डर्मेटाइटिस के लक्षण

डर्मेटाइटिस से होने वाले लक्षण कुछ इस प्रकार हैं -

  • लालिमा
  • सूजन
  • खुजली
  • जलन
  • दर्द
  • वहीं गंभीर मामलों में डर्मेटाइटिस के दौरान त्वचा पर फफोले, घाव से द्रव स्राव होना और अन्य कई लक्षण हो सकते हैं।

डर्मेटाइटिस के कारण

डर्मेटाइटिस प्रमुख रूप से निम्न कारणों से होता है -

  • एलर्जी
  • अनुवांशिक स्थितियां
  • परिवार में पहले किसी को यह रोग होना
  • स्वास्थ्य या त्वचा संबंधी अन्य कोई समस्या होना
  • वहीं डर्मेटाइटिस कई बार त्वचा संबंधी किसी अंदरूनी विकार या फिर किसी रसायन के संपर्क में आने के कारण भी हो सकता है।

डर्मेटाइटिस के जोखिम कारक

डर्मेटाइटिस के जोखिम कारक उसके प्रकार के अनुसार अलग-अलग हो सकते हैं जैसे -

  • एटोपिक डर्मेटाइटिस
  • महिलाएं
  • परिवार में पहले किसी को रोग होना
  • एलर्जी की समस्याएं होना
  • कॉन्टैक्ट डर्मेटाइटिस
  • रसायनों के संपर्क में आना

डर्मेटाइटिस का निदान

डर्मेटाइटिस एक त्वचा रोग है इसलिए इस स्थिति का निदान डर्मेटोलॉजिस्ट द्वारा किया जाता है। निदान के दौरान डॉक्टर मरीज से पूछते हैं कि उनके लक्षण कैसे और कब विकसित होते हैं। यदि डॉक्टर यह पता लगा लेते हैं कि डर्मेटाइटिस एलर्जी के कारण हुआ है, तो एलर्जन की जांच की जाती है। एलर्जिक पदार्थों का पता लगाने के लिए स्किन पैच टेस्ट भी किए जा सकते हैं। निदान की पुष्टि करने के लिए कई बार रिपीटेड ओपन एप्लीकेशन टेस्ट भी किया जा सकता है।

डर्मेटाइटिस की जटिलताएं

डर्मेटाइटिस से आमतौर पर स्वास्थ्य संबंधी कोई समस्या नहीं होती है, लेकिन इससे निम्न जटिलताएं देखी जा सकती हैं -

  • आत्म विश्वास कम होना
  • शर्मिंदा महसूस करना
  • मानसिक तनाव महसूस करना
  • खुजली के कारण बार-बार खुजाने से
  • त्वचा में खरोंच आना

डर्मेटाइटिस की रोकथाम

त्वचा को हर समय नमी युक्त रखना डर्मेटाइटिस से बचने का सबसे अच्छा तरीका हो सकता है। इसके अलावा शक्तिशाली डिटर्जेंट और साबुन आदि का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए और उनका इस्तेमाल करके हाथों को गुनगुने पानी में धो लेना चाहिए। यदि त्वचा पर कोई चकत्ता हो जाता है, तो उसकी तुरंत डॉक्टर से जांच करवा लेनी चाहिए ऐसे में स्थिति को गंभीर होने से रोका जा सकता है। हालांकि, डर्मेटाइटिस के कुछ प्रकार क्रोनिक होते हैं और उन्हें सिर्फ दवाओं की मदद से ही नियंत्रित किया जा सकता है।



 

डर्मेटाइटिस में काफी कारगर है होम्योपैथी चिकित्साः डॉ. एके द्विवेदी

डर्मेटाइटिस का इलाज प्रमुख रूप से रोग के प्रकार  कारणों पर निर्भर करता है। वरिष्ठ होम्योपैथी चिकित्सक डॉ.केद्विवेदी के अनुसार होम्योपैथी चिकित्सा डर्मेटाइटिस पर काफी कारगर है। लोगों में यह भ्रांति है कि होम्योपैथी चिकित्सा कराने पर पहले त्वचा रोग बढ़ता है फिर ठीक होता है जबकि अनुभव यह बताते हैं कि होम्योपैथी इलाज से बिना बढ़े ही सभी प्रकार के त्वचा रोग पूरी तरह से ठीक भी हो जाते हैं और त्वचा का रूखापन (ड्राइनेसभी पूरी तरह ठीक हो जाता है। होम्योपैथी की 50 मिलीसिमल पोटेंसी की दवाइयां लक्षणों के आधार पर मरीज को देने से शीघ्र परिणाम मिलते हैं।

हिंदी में रचा `मानव शरीर रचना विज्ञान`, ताकि हिंदी में चिकित्सा शिक्षा हो आसान

 - इंदौर के होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ. ए.के. द्विवेदी ने हिंदी में लिखी चिकित्सा शिक्षा की किताब


इंदौर । मध्य प्रदेश में चिकित्सा शिक्षा,  हिंदी भाषा की सुविधा उपलब्ध करने की तैयारियां की जा रही हैं। इस तारतम्य में इंदौर के जाने-माने होम्योपैथी चिकित्सक और केन्द्रीय होम्योपैथिक अनुसंधान परिषद, आयुष मंत्रालय, भारत सरकार के वैज्ञानिक सलाहकार बोर्ड के सदस्य डॉ. ए.के. द्विवेदी द्वारा हिंदी  `मानव शरीर रचना विज्ञान` किताब लिखी गई है, इसे `मध्य प्रदेश हिंदी ग्रंथ अकादमी` द्वारा प्रकाशित किया गया है।

उल्लेखनीय है कि राज्य सरकार के प्रयासों से एमबीबीएस (प्रथम वर्ष) में वर्तमान सत्र से ही एनाटॉमी, फिजियोलॉजी और बायो-केमिस्ट्री जैसे विषयों को अंग्रेजी के साथ-साथ हिंदी में भी पढ़ाये जाने पर सहमति बन चुकी है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का प्रयास है कि शिक्षा का माध्यम मातृभाषा ही हो। विद्यार्थी बेशक, अंग्रेजी सीखें लेकिन उन्हें ये गलतफहमी न रहे कि मेडिकल की शिक्षा अंग्रेजी में ही संभव है। पुस्तक `मानव शरीर रचना विज्ञान` के प्राक्कथन में प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. मोहन यादव ने भी इस बिंदु को विशेष रूप से उल्लेखित किया है कि भाषा के माध्यमगत दबाव के चलते अनेक विद्यार्थी विषयगत वैशिष्ट्य अर्जित नहीं कर पाते हैं। इसके विपरीत मातृभाषा में शिक्षा सहज ग्राह्य और संप्रेष्य होती है। इसलिए चिकित्सा की उच्च शिक्षा के क्षेत्र में हिंदी पुस्तकों की नितांत आवश्यकता है ।

लेखक डॉ. द्विवेदी बताते हैं कि हिंदी भाषा में मेडिकल की उच्च शिक्षा की पुस्तक लिखने की प्रेरणा उन्हें हिंदी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति रामदेव भारद्वाज और मध्य प्रदेश चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. आर.एस. शर्मा से मिली। उनके ही आग्रह पर हमने पुस्तक को सरल हिंदी भाषा में लिखने का लक्ष्य रखा और अंततः उसे प्राप्त करने में सफल रहे। करीब पौने तीन सौ पेज की इस पुस्तक में मुख्य रूप से मानव शरीर परिचय, अस्थि संस्थान, संधियां, पेशीय संस्थान, तंत्रिका तंत्र, अंतःस्त्रावी संस्थान, रक्त परिसंचरण संस्थान, लसिकीय संस्थान, श्वसन संस्थान, पाचन, उत्सर्जन और प्रजनन संस्थान आदि अध्यायों को समाविष्ट किया गया है।


इस पुस्तक को प्रकाशित करने में अटल बिहारी वाजपेयी, हिंदी विश्वविद्यालय भोपाल के कुलपति खेमसिंह डेहरिया एवं  मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी के निदेशक अशोक कड़ेल जी का  महत्वपूर्ण सहयोग रहा।  डॉ. ए.के. द्विवेदी के साथ इस पुस्तक को लिखने एवं बनाने में डॉ. वैभव चतुर्वेदी एवं डॉ. कनक चतुर्वेदी के भी महत्वपूर्ण सहयोग मिला है।

Friday, 14 October 2022

महिलाओं की हेल्थ का सबसे अच्छा दोस्त है कैल्शियम इसलिए इसका ध्यान रखे

ड्डियों या दांतों में मजबूती हो, या ब्लड सेल्स का निर्माण, कैल्शियम हमारी बॉडी के लिए बहुत जरूरी मिनरल में से एक है। ये हर उम्र के इंसान के लिए, फिर चाहे वह बच्चा हो, बूढ़ा या फिर जवान सब के लिए जरूरी है। खासतौर पर महिलाओं के लिए तो कैल्शियम बहुत जरूरी है क्योंकि महिलाओं में कैल्शियम की सबसे अधिक


कमी होती है। महिलाओं की बॉडी में पीरियड्स, डिलीवरी के समय और ब्रेस्टफीडिंग के बाद कैल्शियम कम होने लगता है।

          जी हां मॉडर्न लाइफस्टाइल के चलते हमारी खाने-पीने की आदत काफी बदल गई है। हम पौष्टिक चीजें खाने की बजाय टेस्ट को अधिक प्राथमिकता देने लगे हैं, जैसे- जंक फूड्स, तली भुनी चीजें, कोल्ड ड्रिंक्स, चॉकलेट, चिप्स, आइस्क्रीम आदि। खानपान में गड़बड़ी के चलते बॉडी में कैल्शियम की कमी एक आम समस्या हो गई है, जिसका इतनी जल्दी तो पता नहीं चलता लेकिन भविष्य में यह आपकी हेल्थ को बुरी तरह से प्रभावित कर सकता है। बॉडी के हेल्दी और और बैलेंस ग्रोथ के लिए हर उम्र में कैल्शियम की आवश्यकता होती है। बढते बच्चों की बॉडी, दांतों के आकार और हड्डियों को मजबूत बनाने के लिए भी कैल्शियम जरूरी है। इसके अलावा आप डॉक्टरी सलाह पर होम्योपैथी दवा भी अपना सकते हैं जिसके कोई साइड इफ्कैट नहीं होते। होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ. एके द्विवेदी के अनुसार होम्योपैथी दवाईयां काफी सुरक्षित है। इनका शरीर पर किसी भी प्रकार का कोई दुष्प्रभाव नहीं होता है। हालांकि होम्योपैथिक दवाओं का उपयोग करने से पूर्व होम्योपैथिक चिकित्सक से सलाह भी ली जा सकती है। तो आइए जानें हमारी बॉडी के लिए कैल्शियम क्यों जरूरी हैं।

हड्डियों का विकास

कैल्शियम ऑस्टियोपोरोसिस को रोकने में हेल्प करता है। मजबूत हड्डियों के विकास के लिए विशेष रूप से बच्चों और युवा वयस्कों के लिए कैल्शियम सबसे महत्वपूर्ण पोषक तत्व है। कैल्शियम अवशोषण और हड्डियों का विकास 20 साल की उम्र तक अपने चरम पर होता है, और उसके बाद धीरे-धीरे घटता है। कैल्शियम और विटामिन डी की पर्याप्त मात्रा बढ़ते बच्चों और युवा वयस्कों में बोन मास में वृद्धि करने में हेल्प मिलती है।

किडनी स्टोन

कुछ लोगों का मानना है कि कैल्शियम से किडनी स्टोन हो जाता है, लेकिन यह बात मिथ है। शोध से साबित हुआ है कि कैल्शियम का सेवन बॉडी की लाइनिंग को नुकसान पहुंचाने वाले अत्यधिक दर्दनाक किडनी स्टोन से बचाता है।

ब्लड प्रेशर कंट्रोल

कैल्शियम के नेचुरल स्रोत और सप्लीमेंट को रेगुलर लेने से ब्लड प्रेशर को कंट्रोल और कम किया जा सकता है। यानि कैल्शियम ब्लड प्रेशर को ठीक करने में भी उपयोगी होता है।

पीएमएस

पीएमएस से संबंधित शोधों से पता चलता है कि कैल्शियम और विटामिन डी के कम लेवल के कारण कैल्शियम एस्ट्रोजेन और प्रोजेस्टेरोन को नेगेटिव रूप से प्रभावित कर पीएमएस को ट्रिगर करता है। इसलिए डॉक्टर पीएमएस की स्थिति में 1000 मिलीग्राम कैल्शियम और 1000 से 2000 विटामिन डी दैनिक रूप से लेने की सलाह देते हैं।

क्रोनिक बीमारी

कैल्शियम पुरानी बीमारियों के खिलाफ लडऩे में एक बहुत ही गंभीर भूमिका निभाता है। कैल्शियम का सेवन करने से क्रोनिक बीमारियों का खतरा कम हो सकता है।

पीएच लेवल का बैलेंस

प्रोसेस शुगर, सोडा, और जंक फूड पीएच पैमाने पर बॉडी को बहुत एसिडिक बनाता है। यह किडनी स्टोन और हाइपरटेंशन का कारण बन सकते हैं। कैल्शियम इस समस्या को रोक सकता है और शरीर को कम एसिडिक बनाता है।

कार्डियोवैस्कुलर डिजीज

पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम का सेवन कार्डियोवैस्कुलर बीमारियों और हाई ब्लडप्रेशर के जोखिम को कम कर सकता है। दिल और ब्लड वेसल्स हमारे नर्वस सिस्टम से जुड़े हुए हैं। कैल्शियम की कमी से दिल की समस्याएं और हाई ब्लड प्रेशर हो सकता है।

हेल्दी स्माइल

कैल्शियम हेल्दी जबड़े की हड्डियों के लिए एक महत्वपूर्ण तत्व है और दांतों को जगह पर रखता है। हालांकि, कैल्शियम को हड्डी को मजबूत करने के अधिकतम लाभ के लिए फॉस्फोरस की आवश्यकता होती है। बच्चों के दांतों को विकास में कठोर संरचना बनाने के लिए उचित कैल्शियम और फास्फोरस की आवश्यकता होती है। कैल्शियम एक स्वस्थ जबड़े की हड्डी देता है और किसी दांत टूटने के खिलाफ सुरक्षा करता है। बैक्टीरिया और टारटर अच्छी ओरल हेल्थ परिस्थितियों में आसानी से नहीं बढ़ते हैं।

वेट लॉस

कैल्शियम मेटाबॉलिज्म की स्पीड बढ़ाने में मदद करता है। कैल्शियम वजन बढ़ाने से रोकता है क्योंकि यह फैट जलता है और कम मात्रा में फैट को गलाता है।

कैल्शियम लेने के लिए कुछ जरूरी टिप्स

  • कैल्शियम के सप्लीमेंट से बचें क्योंकि इससे आपके हेल्थ पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
  • कोई भी सप्लीमेंट लेने से पहले अपने डॉक्टर से परामर्श लें।
  • कैल्शियम की कमी से ऐंठन, जोड़ों में दर्द, दिल की धडक़न का बढऩा, कोलेस्ट्रॉल के लेवल में वृद्धि, अनिद्रा, खराब विकास,
  • अत्यधिक चिड़चिड़ाहट, भंगुर नाखून, एक्जिमा, सूजन या झुकाव हो सकता है।
  • गर्भवती महिलाओं को अपने आहार में कैल्शियम की अच्छी मात्रा शामिल करनी चाहिए।
  • कैल्शियम प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त किया जाना चाहिए।

कैल्शियम के स्रोत

कैल्शियम के प्रमुख स्रोत में दूध, पनीर, दही और अंडे शामिल है। इसके अतिरिक्त फल और सब्जियों में विशेष मात्रा में कैल्शियम पाए जाते हैं। फलों में कैल्शियम जैसे; अमरूद, सीताफल, अनार, अंगूर, केला, खरबूजा, जामुन, आम, संतरा, अनानास, पपीता, लीची, सेब और शहतूत में कैल्शियम पाए जाते हैं। जबकि सब्जियों में कैल्शियम जैसे; चुकंदर, नींबू, पालक, बथुआ, बैगन, टिंडा, तुरई, लहसुन, गाजर, भिंडी, टमाटर, पुदीना, हरा धनिया, करेला ककड़ी, अरबी, मूली और पत्तागोभी में कैल्शियम पाए जाते हैं। यही नहीं, बादाम, पिस्ता, मुनक्का, खजूर जैसे सूखे मेवे और मूग, मोठ, चना, राजमा, सोयाबीन जैसे आनाज में भी कैल्शियम भरपूर मात्रा में लें। तो आज से अपनी बॉडी में कैल्शियम की कमी ना होने दें।

Wednesday, 12 October 2022

गर्दन में दर्द को अनदेखा न करें, होम्योपैथी में भी है इसका इलाज

र्दन में दर्द की समस्या सिर्फ उम्रदराज लोगों को ही नहीं, बल्कि युवाओं और छोटे बच्चों को भी हो रही है। यदि


आपको भी अक्सर गर्दन में दर्द रहता है तो इस समस्या को अनदेखा करने की बजाय डॉक्टर से सलाह लें। गलत पोश्चर में बैठने, ज़्यादा देर तक मोबाइल, कंप्यूटर स्क्रीन पर काम करते रहने की वजह से आजकल गर्दन में दर्द की समस्या आम हो गई है। गर्दन में दर्द को ही सर्वाइकल पेन कहा जाता है। दरअसल, गर्दन से होकर गुजरने वाली सर्वाइकल स्पाइन के जोड़ों और डिस्क में समस्या होने की वजह से सर्वाइकल पेन होता है। गर्दन में दर्द की समस्या सिर्फ उम्रदराज लोगों को ही नहीं, बल्कि युवाओं और छोटे बच्चों को भी हो रही है। यदि आपको भी अक्सर गर्दन में दर्द रहता है तो इस समस्या को अनदेखा करने की बजाय डॉक्टर से सलाह लें। इसके लिए आप डॉक्टरी सलाह पर होम्योपैथी दवा भी खा सकते हैं। होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ. एके द्विवेदी के अनुसार होम्योपैथी दवाईयां काफी सुरक्षित है। इनका शरीर पर किसी भी प्रकार का कोई दुष्प्रभाव नहीं होता है। हालांकि होम्योपैथिक दवाओं का उपयोग करने से पूर्व होम्योपैथिक चिकित्सक से सलाह भी ली जा सकती है।

गर्दन में दर्द के कारण

हेल्थ एक्सपर्ट्स के अनुसार गर्दन में दर्द कई कारणों से हो सकता है जिसमें कुछ कारण इस प्रकार हैं-

  • मोबाइल और कंप्यूटर के लगातार इस्तेमाल की वजह से मसल्स में खिंचाव आना
  • कुर्सी पर बैठकर काम करते या पढ़ते समय गर्दन की पोजिशन सही न होना।
  • किसी एक्सीडेंट या चोट लगने के कारण मांसपेशियों और टिशू में खिंचाव आ जाना।
  • शारीरिक गतिविधि कम होने के कारण गर्दन का अकड़ जाना।

गर्दन में दर्द के लिए होम्योपैथी दवा

हेल्थ एक्सपर्ट्स के मुताबिक, गर्दन के पोश्चर का ध्यान रखने के साथ ही कुछ होम्योपैथी दवाओं से भी गर्दन के दर्द से आराम मिल सकता है, लेकिन ऐसी दवा लेने से पहले एक बार अपने डॉक्टर से संपर्क अवश्य करें। गर्दन के दर्द में कारगर कुछ होम्योपैथी दवाएं इस प्रकार हैं।

कॉस्टिकम

जिन लोगों को गर्दन की हड्डी में अकडऩ या चोट लगी हो उनके लिए यह दवा बहुत लाभदायक मानी जाती है। जोड़ों के दर्द में भी इससे आराम मिलता है।

चेलिडोनियम मेजस

यदि आपको गर्दन में अकडऩ है गर्दन घुमाने में दिक्कत होती है और कंधे में भी दर्द रहता है तो उनके लिए यह दवा बहुत कारगर है।

सिमिसियुगा

मसल्स पेन, ऐंठन और कुछ चुभने जैसा दर्द हो या गर्दन में अकडऩ हो तो यह दवा बहुत फायदेमंद साबित होती है।

जेल्सिमियम

कमजोर मसल्स वाले ऐसे लोग जिन्हें पीठ और गर्दन के दर्द की समस्या अक्सर रहती है उन्हें इस दवा का सेवन करना चाहिए। बहुत अधिक थकान महसूस होने पर भी आप यह दवा ले सकते हैं।

ब्रायोनिया

जिन्हें गर्दन में खिंचाव, दर्द या अकडऩ की समस्या है और थोडा सा भी हिलाने पर दर्द होने लगता है उनके लिए यह दवा उपयोगी है।

कॉस्टिकम

यह दवा गर्दन में किसी भी प्रकार के दर्द में बहुत कारगर है।

हाइपेरिकम परफोरेटम

यदि गलत तरीके से सोने की वजह से गर्दन की नसों में दर्द होने लगता है तो यह दवा उपयोगी है। रीढ़ की हड्डियों में दर्द होने पर भी यह दवा कारगर है। गर्दन में दर्द कई वजहों से हो सकता है, कई बार यह दर्द अपने आप ठीक हो जाता है, लेकिन ऐसा नहीं होने पर दर्द की अनदेखी न करें और तुरंत डॉक्टर के पास जाएं। किसी भी तरह की दवा के सेवन से पहले डॉक्टर से परामर्श लेना न भूलें।

कब जाएं डॉक्टर के पास?

हेल्थ एक्सपर्ट्स के अनुसार, वैसे तो गर्दन में दर्द की समस्या बहुत गंभीर नहीं होती है, लेकिन कई बार यह गंभीर भी हो सकती है और ऐसी स्थिति में आपको तुरंत डॉक्टर से संपर्क करने की जरूरत है। जैसे यदि दर्द बढ़ जाता है, दर्द कई दिनों तक लगातार बना रहता है। गर्दन के साथ ही दर्द हाथ और पैरों तक यदि फैल जाए। इसके अलावा सिरदर्द, हाथ और पैरों का सुन्न होना या झुनझनी जैसी परेशानी हो तो तुरंत डॉक्टर के पास जाने की जरूरत है।

 

नोटः- इस लेख में बताई गईं दवाओं के प्रयोग से पहले आप अपने डॉक्टर की सलाह जरूर ले लें। ताकि आपको आपनी बीमारी अथवा परेशानी का सही इलाज मिले और आपको राहत मिल सकें।

Tuesday, 11 October 2022

फर्स्ट एड बॉक्स की तरह अपने साथ जरूर रखें कुछ होम्योपैथिक दवाएं, हर बीमारी का प्राथमिक इलाज है इनमें

म तौर पर घरों में लोग प्राथमिक उपचार लायक दवाएं और मरहम पट्टी आदि की व्यवस्था रखते हैं यानी फर्स्ट एड बॉक्स। लेकिन इसमें अक्सर ये भी देखा जाता है कि काफी दिनों तक उसकी जरूरत न पड़ने पर दवाएं


एक्सपायर भी हो जाती है। लेकिन यदि आप आपात स्थिति के लिए कुछ होम्योपैथी की दवाएं रखेंगे तो ये हमेशा सही वक्त पर काम देंगी और ये दवाएं कभी एक्सपायर भी नहीं होती। होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ. एके द्विवेदी बता रहे हैं ऐसी ही कुछ दवाओं के नाम जिन्हें हमेशा किसी घर में रखा जाए तो आपात स्थिति में राहत पहुंचा सकती हैं। डॉ. द्विवेदी के अनुसार होम्योपैथी दवाईयां काफी सुरक्षित है। इनका शरीर पर किसी भी प्रकार का कोई दुष्प्रभाव नहीं होता है। इसलिए इन्हें हमेशा साथ में रखना चाहिए। जब भी आप यात्रा कर रहे हो तब भी आप इन दवाओं को अपने साथ रख सकते हैं। हालांकि होम्योपैथिक दवाओं का उपयोग करने से पूर्व होम्योपैथिक चिकित्सक से सलाह भी ली जा सकती है। तो आइए जानते हैं कौन सी वो प्रमुख होम्योपैथी की दवाएं हैं जो आपके पास एक फर्स्ट एड बॉक्स में होना चाहिए:


अर्निका मोंटाना 30 सीएच : आज के इस दौर में व्यक्ति दिनभर की थकान, कमर में दर्द, बदन दर्द और पैरों में दर्द जैसी तमाम समस्याओं से घिरा रहता है। ऐसे में इस दवा का प्रयोग किया जा सकता है। इस दवा को दिन में 3 से 4 बार एक बूंद लेने से उक्त तरह की तमाम समस्याओं में राहत पा सकते हैं। स्कूल से आने के बाद अस्कर बच्चे भी कई बार बदन दर्द से परेशान रहते हैं तो उन्हें भी इसकी एक बूंद दे सकते हैं। ध्यान रहे ये दवा 30 CH की मात्रा में ही पिलाएं।

नक्स वोमिका सी 30 : भागदौड़ भरी लाइफ स्टाइल और अनियमित तथा फास्ट फूड के इस दौर में अपज, गैस बनना, पेट में सूजन, दस्त, उल्टी जैसी तमाम डाइजेशन संबंधी बीमारियां व्यक्ति को घेरे रहती है। ऐसे में आप इस दवा को से लकते हैं। अगर आपको रात को नींद नहीं आती है तो भी इस दवा का प्रयोग कर सकते हैं। साथ ही डायरिया में इसे भी 30 सीएच पोटेंसी में लें। डायरिया, इनसोमिया जैसी बीमारियों के लिए भी ये दवा बहुत फायदेमंद है।

एकोनिटम नेपेलस 30 सीएच : उक्त दवा आपको सर्द-गरम यानी सर्दी खांसी, बुखार के लिए काफी इफेक्टिव है। ऐसी स्थिति में इस दवा को आप 2 बूंद प्रत्येक एक घंटे ले सकते हैं। बच्चे भी अगर सर्द-गरम से परेशान हैं तो उन्हें हर घंटे एक बूंद देते रहें जब तक कि वे ठीक न हो जाएं। सर्दी-खांसी के अलावा घबराहट आना और सिर चकराने में भी यह दवा राहत देती है।

आर्सेनिक एल्बम 20 सीएच : कई बार हम बाहर का खाने और शादी-बारात के खाने से फूड पॉइजन के शिकार हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में अगर आप इस दवा का प्रयोग करते हैं तो काफी राहत मिलेगी। आर्सेनिक एल्बम 20 सीएच दवा आपको खराब खाने से उत्पन्न हुई परेशानी को तुरंत ठीक करने में कारगर है। इस दवा के जरिए आप फूड पॉइजन जैसी परेशानी से 2 – 3 घंटे में राहत पा सकते हैं।

यूपेटोरियम परफोलिएटम सीएच 30: ये दवा पेरासिटामोल की तरह असर करती है। शरीर में दर्द, बुखार, गले में इनफेक्शन में यह दवा काफी मददगार है। एक बूंद दिन में तीन से चार बार लेने से आपका बुखार उतर सकता है।

नोटः- इस लेख में दी गईं दवाओं के प्रयोग से पहले आप अपने डॉक्टर की सलाह जरूर ले लें। ताकि आपको आपनी बीमारी अथवा परेशानी का सही इलाज मिले और आपको राहत मिल सकें।