महिला दिवस पर विशेष
देश में आज भी महिलाओं के स्वास्थ्य को प्रमुखता नहीं दी जाती। महिला स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही का नतीजा है कि भारत में मातृ-मृत्यु दर नेपाल, श्रीलंका जैसे कम विकसित देशों से भी अधिक है। एक रिपोर्ट के अनुसार गत वर्ष दुनिया में 15 से 49 साल की उम्र सीमा में सबसे ज्यादा एनीमिक (खून की कमी) महिलाएं भारत में ही हैं। भारत की स्थिति ज्यादा चिंताजनक इसलिए मानी जा रही है क्योंकि लक्ष्य की दिशा में आगे बढऩे की जगह हम पीछे जा रहे हैं। यहां एनीमिक महिलाओं का प्रतिशत 48 था जो इस बार 51 हो गया है।
ग्रामीण महिलाओं और लडि़कयों को बीमारी की सबसे अधिक मार झेलनी पड़ती है। इन सबके पीछे गरीबी बहुत बड़ी वजह है। गरीब परिवारों में लड़कों की अपेक्षा लड़कियों को पर्याप्त पौष्टिक भोजन कम मिलता है, जिस वह से उनका संपूर्ण विकास नहीं हो पाता है। वहीं महिलाओं को बिना किसी आराम के दिन रात परिवार के अन्य सदस्यों के लिए काम करना पड़ता है, फल स्वरूप दूसरे की सेहत का ख्याल रखने वाली महिला का ही स्वास्थ्य बदहाल हो जाता है। वैश्विक पोषण रिपोर्ट वर्ष 2017 के अनुसार महिलाओं को जरूरत अनुसार पोषण नहीं मिल पाता है, लिहाजा महिला के शरीर में पोषण तत्वों की कमी बढ़ती है। आंकड़ों के अनुसार हमारे देश में करीब 70 प्रतिशत सामान्य महिलाओं और 75 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं में खून की कमी है। गर्भावस्था के दौरान केवल 37 प्रतिशत महिलाओं को उचित देखरेख मिल पाती है। पिछले कुछ समय से सरकार द्वारा स्वास्थ्य सुविधाओं के क्षेत्र में प्रयास किए जा रहे हैं।पुरुषों की तुलना में हमारे यहां महिलाओं की स्थिति ज्यादा खराब है। भेदभाव के कारण भी महिलाएं कुपोषण की चपेट में आ जाती हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में तबियत खराब होने पर महिलाओं को सही से इलाज नहीं मिल पाता, क्योंकि सरकारी अस्पतालों में लगने वाला समय उनके पास नहीं होता और प्राइवेट डॉक्टर के पास जाने के लिए उनके पास पैसे नहीं होते हैं। ऐसे में बीमार पडऩे पर समय से इलाज नहीं मिलने से रोग बढ़ता जाता है जो बाद में विकराल रूप ले लेता है।
गर्भावस्था से जुड़ी दिक्कतों के बारे में सही जानकारी न होने तथा समय पर मेडिकल सुविधाओं के ना मिलने या फिर बिना डॉक्टर की मदद के प्रसव कराने के कारण भी मौतें हो जाती है। जच्चा और बच्चा की सेहत को लेकर आशा कार्यकर्ताओं का अहम रोल होता है लेकिन इनकी कमी से कई महिलाएं प्रसव पूर्व न्यूनतम स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित रह जाती हैं। छोटे-छोटे शहरों, कस्बों और गांवों में लोगों को प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की सुविधाएं मुहैया कराई जा रही हैं, इसके बाद भी अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों में घर में ही प्रसव कराने का चलन है। पारंपरिक सोच के कारण आज भी प्रसव के लिए अस्पताल से लोग कतराते हैं। तरक्की और विकास के बावजूद भी हमारे में देश में मातृ मृत्यु दर अन्य देशों की तुलना में अधिक है। ग्रामीण महिलाओं को होने वाली बीमारियों में सबसे प्रमुख सांस की बीमारी है। चूल्हे पर खाना बनाने वाली महिलाएं फेफड़े की गंभीर बीमारी की चपेट में आती हैं। इस वजह से महिलाएं सांस की बीमारी सीओपीडी की जद में आ रही हैं। सीओपीडी की जद में सबसे ज्यादा महिलाएं आती हैं।