Thursday, 16 August 2018

एलर्जी व सांस रोग का होम्योपैथी में सटीक इलाज


आज की भागदौड़ भरी जिंदगी और वातावरण में तेजी से बढ़ रहे प्रदूषण के स्तर के कारण एलर्जी, सांस व आंखों के रोग से ग्रसित होना आम बात है। ऐसे में होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति में इन रोगों का पूर्ण इलाज ही नहीं, बल्कि इससे बचाव की भी दवाएं हैं। होम्यापैथी में इलाज जहां सबसे सस्ता है, वहीं यह पूरी तरह से सुरक्षित भी होता है। इसका कोई साइड इफेक्ट भी नहीं है। 
आज शहर में तेजी से प्रदूषण का स्तर बढ़ता ही जा रहा है। इससे कई प्रकार की समस्याएं हो रही हैं। इसमें श्वास की समस्या सबसे अधिक है। त्वचा और आंखों पर भी काफी बुरा प्रभाव पड़ रहा है।
लगातार प्रदूषणयुक्त माहौल में रहने से पहले लोगों को एलर्जी की वजह से खांसी की समस्या हो जाती है। इसका शुरू में ही इलाज न करवाया जाय तो पहले गले के दोनों ओर के टांसिल बढ़ जाते हैं, जिससे लगातार जुकाम रहने लगता है। इससे नाक की हड्डी (एडोनाइड्स) बढ़ जाती है। इस दौरान भी इलाज न करवाया जाए तो यह सायनोसाइटिस में तब्दील हो जाती है। यही बढ़कर गले और फेफड़े को संक्रमित कर देता है, जिससे मरीज ब्रोंकाइटिस और अस्थमा रोग का शिकार हो जाता है।
इससे बचाव के लिए होम्योपैथी में लक्षणों के आधार पर मरीज को रोग-प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने वाली दवाइयां दी जाती हैं। ये दवाइयां शुरू में ही खांसी व सर्दी के दौरान शरीर की कोशिकाओं को टूटने से बचा लेती हैं। ज्यादातर लोग सर्दी व जुकाम को बहुत हल्के में लेते हैं। अगर लगातार नाक बंद रहे, गला सूख जाए और अकारण थकान हो तो यह सामान्य सर्दी ही नहीं, साइनस भी हो सकता है। इसमें मरीज का पॉलिप्स भी बढ़ जाता है। इसमें मरीज को आर्सेनिक एलबम, एपिकॉप, लोबेलिया आदि दवाएं दी जाती हैं। सप्ताह में दो-तीन बार एस्थाइट को गर्म पानी में डालकर उसका भाप लेने या उसे पीने से रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
प्रदूषण से त्वचा रोग एक्जिमा होने की आशंका रहती है। ऐसे में संवेदनशील त्वचा के लिए कई होम्योपैथिक औषधिया आरुम-ट्राइफआइलम, आरसेनिक्स व ग्रेफाइट्स प्रभावी होती हैं। सर्दी में एलोवेरा क्रीम भी फायदेमंद हैं। यह त्वचा को सुरक्षित रखने के साथ ही ड्राइनेस भी दूर करता है। प्रदूषण से आंखों को होने वाली समस्या को दूर रखने के लिए यूफ्रेशिया आइ ड्रॉप डालनी चाहिए। इससे आंखों में जलन व खुजली दूर करने के साथ ही साफ भी रखता है। फिर भी दवाएं लेने से पहले डॉक्टर का परामर्श अवश्य ले लें।

Monday, 13 August 2018

ब्रेस्ट मिल्क बढ़ाने के प्राकृ तिक उपाय


स्तनपान कराने वाली मां के लिए इससे ज्यादा दुखद और कुछ नहीं हो सकता कि उनके स्तन में दूध का पर्याप्त उत्पादन नहीं हो रहा है। इस स्थिति में उनका बच्चा भी भूखा रह सकता है। अगर आप के साथ भी ऐसी ही समस्या है तो क्या आप हाथ पर हाथ धरे बैठी रहेगीं? बिल्कुल नहीं! दूध का उत्पादन बढ़ाना संभव है और इसके लिए आपको जोखिम भरी दवाइयां भी नहीं लेनी पड़ेगी। आइए हम आपको बताते है स्तन में दूध की मात्रा में इजाफा करने के कुछ सुरक्षित और प्राकृतिक तरीके। ब्रेस्ट मिल्क न बढऩे के बहुत से कारण हो सकते हैं जैसे, तनाव, डीहाइड्रेशन, अनिद्रां आदि। लेकिन ऐसी कई प्रभावशाली विधियां हैं जिससे आप ब्रेस्ट मिल्क बढा सकती हैं। आपको केवल अच्छे प्रकार का आहार खाना होगा जो कि बच्चे पर कोई बुरा प्रभाव ना डाले। इन्हें अपने रोजाना के खाने में प्रयोग करें और ब्रेस्ट मिल्क की मात्रा को बढाएं।


  • पंप: विशेषज्ञ मानते हैं कि स्तनपान के दौरान पम्पिंग सेशन से स्तन में दूध की मात्रा बढ़ती है। दूध की आखिरी बूंद के बाद करीब 5 बार स्तन को पंप करें। स्तन से ज्यादा दूध की मांग करने पर शरीर को ज्यादा दूध उत्पादन का संदेश जाता है। 
  • स्तनपान कराते समय स्तन को बदलें: जब भी आप स्तनपान कराएं तो स्तन को बराबर बदलें। इससे शरीर में दूध उत्पादन की मांग बढ़ेगी। साथ ही इससे आपका बच्चा भी आराम से स्तनपान कर सकेगा। दरअसल इससे स्तन खाली होता है और ज्यादा दूध का उत्पादन होता है। एक बार स्तनपान कराते समय कम से कम दो से तीन बार स्तन बदलें। 
  •  स्तनपान कराते समय स्तन पर दबाव डालें: स्तनपान कराते समय अपने स्तन को दबाएं। इससे भी कम दूध उत्पादन की निराशा से छुटकारा मिलेगा। इससे एक बार स्तनपान कराने पर स्तन पूरी से तरह से खाली हो जाता है। 
  •  मेथी खाएं: याद है आपको, बच्चे के जन्म के दौरान अपने कई तरहे के पौधों के बीज खाएं होंगे। मेथी व अन्य इस तरह की बीज खाने से दूध का उत्पादन बढ़ता है। हालांकि इससे गैस की भी समस्या हो सकती है, इसलिए सावधान रहें। 
  •  मदर्स मिल्क टी: इस चाय के जरिए शरीर को मेथी मिलता है। हालांकि कुछ बातों को लेकर सावधान भी रहें। कुछ महिलाएं इस चाय से पेट में तकलीफ की शिकायत करती हैं। साथ ही इसकी महक मैपल सिरप की तरह होता है। 
  •  मिल्क प्रोडक्ट: ऐसी चर्बी जो कि घी, बटर या तेल से मिलती हो, वह ब्रेस्ट मिल्क बढाने में बहुत कारगर होती है। यह शरीर को बहुत शक्ति प्रदान करते हैं। आप इन्हें चावल या रोटी के साथ प्रयोग कर सकती हैं। चाहें तो सब्जी बनाते वक्त भी एक चम्मच घी डाल कर उसे पका सकती हैं। सुडौल बनना चाहती हैं? 
  •  स्वस्थ भोजन लें: अगर आप पहली बार मां बनी हैं तो आपको चाहिए कि आप अपनी पसंद को पूरी तरह से दरकिनार कर अपने बच्चे के बारे में सोचें। यानी ज्यादा से ज्यादा स्वस्थ भोजन खाएं। दूध उत्पादन के लिए शरीर को अच्छे खानपान की आवश्यकता होती है। 
  •  बीयर पीना: यह बेहतर होगा कि आप बीयर लेने से पहले डॉक्टर से जरूर परामर्श लें, फिर भी बहुतों का यह मानना है कि यह लेक्टोजेनिक डाइट का हिस्सा है। 
  •  तनाव कम करें: तनाव ऑक्सीटोसिन के उत्पादन में रुकावट पैदा करता है। ऑक्सीटोसिन ही वह हार्मोन है, जो दूध का उत्पादन बढ़ाने में सहायक होता है। 
  •  बच्चे के साथ सोएं: बच्चे के साथ सोने से स्तनपान का समय बढ़ता है। आप जितना ज्यादा स्तनपान कराएंगे, शरीर में दूध का निर्माण उतना ही ज्यादा होगा। 
  •  जई का दलिया: इससे दूध का उत्पादन बढ़ता है। कई महिलाओं ने यह माना है कि जई का दलिया खाने से उनके दूध की मात्रा में वृद्धि हुई है। 
  •  तुलसी: इसमें विटामिन के पाया जाता है, जिसे खाने से ब्रेस्ट मिल्क बढता है। इसे सूप या शहद के साथ खा सकती हैं। 
  •  करेला: इसके अंदर विटामिन और मिनरल अच्छी मात्रा में पाया जाता है, जिससे ब्रेस्ट मिल्क बढाने की क्षमता बढ जाती है। यह स्त्री में लैक्टेशन सही करता है। करेला बनाते वक्त हल्के मसालों का प्रयोग करें जिससे यह आसानी से हजम हो सके। 
  •  लहसुन: इसे खाने से भी दूध बढने की क्षमता बढती है। कच्चा लहसुन खाने से अच्छा होगा कि आप उसे मीट, करी, सब्जी या दाल में डाल कर पका कर खाएं। अगर आप लहसुन को रोजाना खाना शुरु करेंगी तो यह आपको जरुर फायदा पहुंचाएगा। 
  •  मेवा: बादाम और काजू जैसे मेवे ब्रेस्ट मिल्क बढाने में सहायक होते हैं। इसके अलावा यह विटामिन, मिनरल और प्रोटीन में काफी रिच होते हैं। अच्छा होगा कि आप इन्हें कच्चा ही खाएं।