आज की भागदौड़ भरी जिंदगी और वातावरण में तेजी से बढ़ रहे प्रदूषण के स्तर के कारण एलर्जी, सांस व आंखों के रोग से ग्रसित होना आम बात है। ऐसे में होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति में इन रोगों का पूर्ण इलाज ही नहीं, बल्कि इससे बचाव की भी दवाएं हैं। होम्यापैथी में इलाज जहां सबसे सस्ता है, वहीं यह पूरी तरह से सुरक्षित भी होता है। इसका कोई साइड इफेक्ट भी नहीं है।
आज शहर में तेजी से प्रदूषण का स्तर बढ़ता ही जा रहा है। इससे कई प्रकार की समस्याएं हो रही हैं। इसमें श्वास की समस्या सबसे अधिक है। त्वचा और आंखों पर भी काफी बुरा प्रभाव पड़ रहा है।
लगातार प्रदूषणयुक्त माहौल में रहने से पहले लोगों को एलर्जी की वजह से खांसी की समस्या हो जाती है। इसका शुरू में ही इलाज न करवाया जाय तो पहले गले के दोनों ओर के टांसिल बढ़ जाते हैं, जिससे लगातार जुकाम रहने लगता है। इससे नाक की हड्डी (एडोनाइड्स) बढ़ जाती है। इस दौरान भी इलाज न करवाया जाए तो यह सायनोसाइटिस में तब्दील हो जाती है। यही बढ़कर गले और फेफड़े को संक्रमित कर देता है, जिससे मरीज ब्रोंकाइटिस और अस्थमा रोग का शिकार हो जाता है।
इससे बचाव के लिए होम्योपैथी में लक्षणों के आधार पर मरीज को रोग-प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने वाली दवाइयां दी जाती हैं। ये दवाइयां शुरू में ही खांसी व सर्दी के दौरान शरीर की कोशिकाओं को टूटने से बचा लेती हैं। ज्यादातर लोग सर्दी व जुकाम को बहुत हल्के में लेते हैं। अगर लगातार नाक बंद रहे, गला सूख जाए और अकारण थकान हो तो यह सामान्य सर्दी ही नहीं, साइनस भी हो सकता है। इसमें मरीज का पॉलिप्स भी बढ़ जाता है। इसमें मरीज को आर्सेनिक एलबम, एपिकॉप, लोबेलिया आदि दवाएं दी जाती हैं। सप्ताह में दो-तीन बार एस्थाइट को गर्म पानी में डालकर उसका भाप लेने या उसे पीने से रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
प्रदूषण से त्वचा रोग एक्जिमा होने की आशंका रहती है। ऐसे में संवेदनशील त्वचा के लिए कई होम्योपैथिक औषधिया आरुम-ट्राइफआइलम, आरसेनिक्स व ग्रेफाइट्स प्रभावी होती हैं। सर्दी में एलोवेरा क्रीम भी फायदेमंद हैं। यह त्वचा को सुरक्षित रखने के साथ ही ड्राइनेस भी दूर करता है। प्रदूषण से आंखों को होने वाली समस्या को दूर रखने के लिए यूफ्रेशिया आइ ड्रॉप डालनी चाहिए। इससे आंखों में जलन व खुजली दूर करने के साथ ही साफ भी रखता है। फिर भी दवाएं लेने से पहले डॉक्टर का परामर्श अवश्य ले लें।