Tuesday, 6 November 2018

दीपावली के दौरान कैसे करें स्वास्थ्य की देखभाल


दीपावली एक खुशियो का त्योहार है और इसे सम्पूर्ण हर्ष और उल्लास के साथ मनाना चाहिए. एक छोटी सी योजना और थोड़ा सी अतिरिक्त देखभाल के साथ आप एक स्वस्थ दीवाली का आनन्द उठा सकते है. कैसे रखे शरीर कि देखभाल आइए जाने :

मिठाईयो से बचे 


ये बात शायद बहुत से लोगो को बुरी लगे परंतु त्योहारो के आते ही मिलावटी मिठाईयो कि उत्पादकता बढ़ जाती है ताकि लोग ज्यादा से ज्यादा मिलावटी मिठाई बेच कर मुनाफा कमा सके. इसलिए जितना हो सके मिठाईयो से परहेज करें या कौशिश करें कि मिठाई घर पर बनी हो. खोये से बनने वाले उत्पादो से दूर रहे या घर पर बने खोये का इस्तेमाल करें. पेठे का इस्तेमाल किया जा सकता है या फिर बेसन से बने उत्पादो का.

खुद को हाइड्रेटेड रखें 


कुछ लोग इस बात का ही पता नहीं चला पाते कि वे भूखे है या फिर प्यासे. परंतु अपने आप को हाइड्रेटेड रखना भी बहुत जरूरी है. कोल्ड ड्रिंक इत्यादि का सेवन करने कि वजाय ताज़ा जूस, दूध , नारियल का पानी या फिर नींबू पानी का सेवन करें 7 दिन में कम से कम 2-3 लिटर पानी जरूर पिये .

शरीर को आराम दे 


अपने शरीर को भरपूर आराम दे और दीवाली के दिन सफर करने से बचे. तयोहारों के बीच हम अक्सर अपने स्वास्थ्य को अनदेखा करते है जो हुमे नहीं करना चाहिए.

प्रदूषण से बचे 

पटाखो से निकलने वाला धुआँ आपके लिए नुकसानदेयक हो सकता है. पटाखे इत्यादि का उपयोग सावधानी से करे और बच्चो को अकेले इसका इस्तेमाल ना करने दे. किसी भी प्रकार कि दुर्घटना से बचे. और हो सके तो ग्रीन दीवाली का हिस्सा बने.

मन को प्रसन्न रखे 

जो खुशी दूसरों को खुशी देने में है वैसी खुशी कन्ही और नहीं 7 खुशिया बांटने से बढ़ती है इसलिए खुशिया बांटें और खुद भी खुश रहे .

आप सभी को हमारी पूरी टीम कि ओर से दीपावली कि हार्दिक सुभकामनाए. आपकी दीपावली मंगलमय हो "शुभ दीपावली" 

Thursday, 11 October 2018

नवरात्रि में क्यों खेला जाता है गरबा?


शारदीय नवरात्रि आते ही गरबे की धूम छा जाती है। गुजरात का पारम्पारिक नृत्य अब धीरे धीरे पूरे देश में नवरात्रि के दौरान बहुत ही उत्साह के साथ खेला जाता है। जानिए, क्यों नवरात्रि में अखंड ज्योत जलाई जाती है.. बहुत से लोग तो ऐसे हैं जो नवरात्रि का इंतजार ही इसलिए करते हैं क्योंकि इस दौरान उन्हें गरबा खेलने, रंग-बिरंगे कपड़े पहनने का अवसर मिलेगा। नवरात्रि में गरबा खेलना और गरबे की रौनक का आनंद उठाना तो ठीक है लेकिन क्या आप जानते हैं कि गरबा खेलने की शुरुआत कहां से हुई और नवरात्रि के दिनों में ही इसे क्यों खेला जाता है? गरबा और नवरात्रि का कनेक्शन आज से कई वर्ष पुराना है। पहले इसे केवल गुजरात और राजस्थान जैसे पारंपरिक स्थानों पर ही खेला जाता था लेकिन धीरे-धीरे इसे पूरे भारत समेत विश्व के कई देशों ने स्वीकार कर लिया। घट स्थापना से शुरु दीप गर्भ के स्थापित होने के बाद महिलाएं और युवतियां रंग-बिरंगे कपड़े पहनकर मां शक्ति के समक्ष नृत्य कर उन्हें प्रसन्न करती हैं। गर्भ दीप स्त्री की सृजनशक्ति का प्रतीक है और गरबा इसी दीप गर्भ का अपभ्रंश रूप है। घट स्थापना गरबा को लोग पवित्र परंपरा से जोड़ते हैं और ऐसा कहा जाता है कि यह नृत्य मां दुर्गा को काफी पसंद हैं इसलिए नवरात्रि के दिनों में इस नृत्य के जरिये मां को प्रसन्न करने की कोशिश की जाती है। इसलिए घट स्थापना होने के बाद इस नृत्य का आरंभ होता है।  इसलिए आपको हर डांडिया या गरबा खेलते वक्त महिलाएं सजे हुए घट के साथ दिखाई देती है। जिस पर दिया जलाकर इस नृत्य का आरंभ किया जाता है। यह घट दीपगर्भ कहलाता है और दीपगर्भ ही गरबा कहलाता है। क्यों किया जाता है तीन ताली का उपयोग आपने देखा होगा कि जब महिलाएं समूह बनाकर गरबा खेलती हैं तो वे तीन तालियों का प्रयोग करती हैं। इसके पीछे भी एक महत्वपूर्ण कारण विद्यमान है। क्या कभी आपने सोचा है गरबे में एक-दो नहीं वरन् तीन तालियों का ही प्रयोग क्यों होता है? ब्रह्मा, विष्णु, महेश, देवों की इस त्रिमूर्ति के आसपास ही पूरा ब्रह्मांड घूमता है। इन तीन देवों की कलाओं को एकत्र कर शक्ति का आह्वान किया जाता है। इसलिए तीन ताली का प्रयोग किया जाता है।

Wednesday, 10 October 2018

नवरात्रि - देवियों के नौ रूप एवं नारी सम्मान


भारत में नवरात्र का पर्व, एक ऐसा पर्व है जो हमारी संस्कृति में महिलाओं के गरिमामय स्थान को दर्शाता है. नवरात्रि संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ होता है 9 रातें. यह त्यौहार साल में दो बार आता है. एक शारदीय नवरात्रि और दूसरा है चैत्रीय नवरात्रि. यह तीन हिंदू देवियों देवी पार्वती, देवी लक्ष्मी और देवी सरस्वती के नौ विभिन्न स्वरूपों की उपासना के लिए निर्धारित है. इन्हें नवदुर्गा के नाम से भी जाना जाता है. तो आइये इन पंक्तियों के साथ देवियों के विभिन्न स्वरुपों को जानने का प्रयत्न करते हैं-

या देवी सर्वभूतेषु श्रद्धा रूपेण संस्थिता।।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।


शैलपुत्री

शैल पुत्री माता को नौ दुर्गा का पहला रूप माना जाता है. इनकी पूजा नवरात्रि के पहले दिन की जाती है. पर्वतराज हिमालय के घर जन्म लेने के कारण इनका नाम शैल पुत्री पड़ा. मां शैल पुत्री के इस रूप में दाएं हाथ में त्रिशूल और बाए हाथ में कमल सुशोभित है. वैसे तो माता को पिछले जन्म में दक्ष की भी पुत्री माना जाता है. माता को भगवान शिव की पत्नी भी कहा जाता है. माता शैल पुत्री के बारे में कहा जाता है कि अपने पिता दक्ष के द्वारा भगवान शिव का अपमान करने के बाद उन्होंने खुद को भस्म कर दिया था.
निश्चित रुप से भगवान शिव के लिए आदर का भाव रखने वाली माता शैलपुत्री से आज के समाज को सीखने की जरुरत है. अक्सर देखा जाता है कि आदर भाव तो छोडि़ए, लोग एक पल नहीं लगाते किसी को कुछ कहने के लिए. काश माता शैलपुत्री के भाव से नासमझ लोग कुछ सीख सकते.

देवी ब्रह्मचारिणी

नौ दुर्गा का दूसरा रूप मानी जाने वाली ब्रह्मचारिणी माता की पूजा नवरात्रि के दूसरे दिन की जाती है. माना जाता है कि माता ब्रह्मचारिणी की उपासना करने से संयम की वृद्धि और शक्ति का संचार होता है. नवरात्रि में भक्त मां की पूजा इसलिए करते हैं ताकि उनका जीवन सफल बन जाए और वह किसी प्रकार आने वाली परेशानी से निपट सकें. मां ब्रह्मचारिणी के दाहिने हाथ में गुलाब और बाएं हाथ में कमंडल है. मां ब्रह्मचारिणी को पर्वत हिमवान की बेटी कहा जाता है.
माता के बारे में कहा जाता है कि नारद मुनि ने उनके लिए भविष्यवाणी की थी कि उनकी शादी भोले नाथ से होगी, जिसके लिए उन्हें कठोर तपस्या करनी होगी. चूंकि माता को भगवान शिव से ही शादी करनी ही थी, इसलिए वह तप के लिए जंगल चली गई थीं.
इस कारण ही उनको ब्रह्मचारिणी कहा जाता है. आज देखा जाए तो हर घर में कलह और द्वेष का माहौल है. लोग एक दूसरे को नीचा दिखाने में लगे रहते हैं. परिवारों में सुख-समृद्धि का अकाल सा पड़ा दिखाई देता है. मां ब्रह्मचारिणी से प्रार्थना है कि वह ऐसे अशांत मन वाले भक्तों के मन में शांति और तप भाव का संचार करें.

देवी चंद्रघंटा

माता चंद्र घंटा को नवदुर्गा का तीसरा रूप माना जाता है. नवरात्रि के तीसरे दिन इनकी पूजा की जाती है. माता चंद्रघंटा के सर पर आधा चंद्र है, इसलिए माता को चंद्र घंटा कहा जाता है. माता चंद्र घंटा का यह रूप हमेशा अपने भक्तों को शांति देने वाला और कल्याणकारी होता है. वह हमेशा शेर पर विराजमान होकर संघर्ष के लिए खड़ी रहती हैं. माता चंद्र घंटा को हिम्मत और साहस का रूप भी माना जाता है, लेकिन इसके बावजूद समाज में जिस तरह से लोगों के अंदर अशांति, असहजता और अकारण किसी गलत रास्ते पर चलने का भाव तेजी से पनपता जा रहा है, वह चिंता का विषय है. उम्मीद की जानी चाहिए कि इस नवरात्र में माता चंद्रघंटा अपने भक्तों का कल्याण करेंगी, ताकि वह सही रास्ते पर चल सकें.

माँ कूष्मांडा

माता का चौथा रूप कूष्मांडा है. इनकी पूजा नवरात्री के चौथे दिन की जाती है. इन्हें ब्रह्मांड की जननी के रूप में जाना जाता है. उनके प्रकाश से ही ब्रह्मांड बनता है. माता कुष्मांडा सूर्य के जैसे सभी दिशाओं मे अपनी चमक बिखेरती रहती हैं. शेर पर बैठी माता कूष्मांडा के पास आठ हाथ हैं. माता कुष्माडा से हम सबको प्रार्थना करनी चाहिए कि इस नवरात्र में वह संसार मे फैले अंधेरे को अपने प्रकाश से प्रकाशमय कर दें, ताकि भक्तों का कल्याण हो सके.

स्कंदमाता

स्कन्दमाता को नौ देवी का पांचवा रूप कहा जाता है. इनकी पूजा पांचवे दिन होती है. भगवान स्कन्द 'कार्तिकेयÓ की माता होने की वजह से इन्हें स्कन्द माता का नाम मिला है. माता की चार भुजायें हैं. कमल पर विराजमान माता सफेद रंग की हैं और उनके दोनों हाथों में कमल रहता है. इस वजह से माता को पद्मासना और विद्यावाहिनी दुर्गा देवी भी कहा जाता है. स्कन्दमाता के बारे मेंं कहा जाता है कि वह अपने भक्तों का कल्याण करती हैं. माता से प्रार्थना है कि वह समाज में चारों ओर फैले अंध विश्वास को हर लेंगी, ताकि रूढिय़ों से परे हटकर भक्तगण मनुष्यता की राह पर अग्रसर हो सकें.

माँ कात्यायनी

कात्यायनी मां को दुर्गा का छठा रूप माना जाता है. इनकी पूजा नवरात्रि के छठें दिन की जाती है. कात्यायनी माता अपने सभी भक्तों की मुराद पूरा करती हैं. इनको पापियों का नाश करने वाली देवी भी कहा जाता है. कहते हैं कि एक संत को देवी मां की कृपा प्राप्त करने के लिए काफी लंबा तप करना पड़ा था. शेर पर सवार माता की चार भुजायेंं हैं. बायें हाथ में कमल के साथ तलवार और दाहिने हाथ में स्वास्तिक है. आज जब समाज में पापियों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है, तो माता से प्रार्थना है कि वह एक बार फिर से आकर तेजी से पनपे पापियों का नाश कर दें, ताकि समाज में अराजकता न हो.

माँ कालरात्रि

कालरात्रि माता को नौ दुर्गा का सातवां रूप माना जाता है. उनकी पूजा सातवें दिन होती है. माता कालरात्रि के बाल बिखरे हुए होते हैं. माता की तीन आंखें हैं, तो उनके एक हाथ में तलवार होती है. दूसरे हाथ से वह आशीर्वाद देती हैं. बायें हाथ में मशाल लेकर वह अपने भक्तों को निडर बनने का सन्देश देती हैं. माता को शुभ कुमारी भी कहते हैं, जिसका अर्थ हमेशा अच्छा करने वाली होती है. आज जब पूरी दुनिया में नशाखोरी, चोरी, डकैती जैसी बुरी आदतें तेजी से अपने पैर पसारती जा रही हैं, तब माता कालरात्रि के एक और जन्म की जरुरत लगती है.

महागौरी

मां महागौरी को आठवीं दुर्गा कहा जाता है. सफेद गहने और वस्त्रों से सजी मां महागौरी की तीन आंखे और चार हाथ हैं. माता के ऊपर के बायें हाथ में त्रिशूल और ऊपर के दाहिने हाथ मे डफली है. कहा जाता है कि एक बार मां महागौरी का शरीर धूल की वजह से गन्दा हो गया और साथ ही पृथ्वी भी गन्दी हो गई. तब भगवान भोले ने गंगा जल से धूल को साफ किया तो उनका पूरा शरीर उज्जवल हो गया. इस कारण उन्हें महागौरी कहा जाता है. यह भी कहा जाता है कि गौरी मां की पूजा से वर्तमान अतीत और भविष्य के पाप से मुक्ति मिल जाती है. इसलिए समाज के उन लोगों को जो कुकर्मों की कालिख से पुते पड़े हैं, इस नवरात्रि में माता महागौरी की पूजा-अर्चना करनी चाहिए, ताकि उनका मन स्वच्छ हो सके और वह नेक रास्ते पर चल सकें.

सिद्धिदात्री

सभी प्रकार की सिद्धियां देने वाली माता सिद्धिदात्री को मां दुर्गा का नौवां स्वरुप माना जाता है. कहा जाता है कि भगवान शिव ने सिद्धिरात्रि कि कृपा से ही सारी सिद्धियों को प्राप्त किया था. कमल पुष्प पर आसीन होने वाली मां सिद्धरात्रि की चार भुजायें हैं. माता सिद्धिदात्री की पूजा नौवें दिन की जाती है. इनकी पूजा करने से माता किसी को निराश नहीं करती हैं. उम्मीद है माता के भक्त भी इस नवरात्रि पर प्रतिज्ञा लेंगे कि वह सही रास्ते पर आगे बढ़ेंगे.
वैसे तो नवरात्रि की पूजा की परंपरा सदियों से चली आ रही है, किन्तु इस पूजा का उद्देश्य नारी जाति की सुरक्षा से भी गहरे तक जुड़ा है. शायद  इसलिए ही कहा गया है कि 'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवताÓ. अर्थात जहां नारी का सम्मान होता है, वही देवी देवताओं का वास होता है. 

Sunday, 30 September 2018

जुकाम और खांसी के लिए रामबाण


मौसम में बदलाव के साथ ही कई प्रकार की बीमारियां व्यक्ति को अपना शिकार बनाती है। इनमें जुकाम और खांसी सबसे सामान्य हैं। साधारण सी बीमारी लगने वाली ये बीमारी आपको बहुत परेशान कर सकती है। इसके उपचार के लिए आप घरेलू उपाय आजमा सकते हैं, ये आसानी से उपलब्ध होते हैं और इनका कोई भी साइड इफेक्ट भी नही पड़ता है।

हल्दी

जुकाम और खांसी से बचाव के लिए हल्दी बहुत ही अच्छा उपाय है। यह बंद नाक और गले की खराश की समस्या को भी दूर करता है। जुकाम और खांसी होने पर दो चम्मच हल्दी पावडर को एक गिलास दूध में मिलाकर सेवन करने से फायदा होता है। दूध में मिलाने से पहले दूध को गर्म कर लें। इससे बदं नाक और गले की खराश दूर होगी। सीने में होने वाली जलन से भी यह बचाता है। बहती नाक के इलाज के लिए हल्दी को जलाकर इसका धुआं लें, इससे नाक से पानी बहना तेज हो जाएगा व तत्काल आराम मिलेगा।

गेहूं की भूसी

जुकाम और खांसी के उपचार के लिए आप गेहूं की भूसी का भी प्रयोग कर सकते हैं। 10 ग्राम गेहूं की भूसी, पांच लौंग और कुछ नमक लेकर पानी में मिलाकर इसे उबाल लें और इसका का?ा बनाएं। इसका एक कप का?ा पीने से आपको तुरंत आराम मिलेगा। हालांकि जुकाम आमतौर पर हल्का-फुल्का ही होता है जिसके लक्षण एक हफ्ते या इससे कम समय के लिए रहते हैं। गेंहू की भूसी का प्रयोग करने से आपको तकलीफ से निजात मिलेगी।

तुलसी

सामान्य कोल्ड और खांसी के उपचार के लिए बहत की कारगर घरेलू उपाय है तुलसी, यह ठंड के मौसम में लाभदायक है। तुलसी में काफी उपचारी गुण समाए होते हैं, जो जुकाम और फ्लू आदि से बचाव में कारगर हैं। तुलसी की पत्तियां चबाने से कोल्ड और फ्लू दूर रहता है। खांसी और जुकाम होने पर इसकी पत्तियां (प्रत्येक 5 ग्राम) पीसकर पानी में मिलाएं और काढ़ा तैयार कर लें। इसे पीने से आराम मिलता है।

अदरक

सर्दी और जुकाम में अदरक बहुत फायदेमंद होता है। अदरक को महाऔषधि कहा जाता है, इसमें विटामिन, प्रोटीन आदि मोजूद होते हैं। अगर किसी व्यक्ति को कफ वाली खांसी हो तो उसे रात को सोते समय दूध में अदरक उबालकर पिलाएं। अदरक की चाय पीने से जुकाम में फायदा होता है। इसके अलावा अदरक के रस को शहद के साथ मिलाकर पीने से आराम मिलता है।

काली मिर्च पाउडर

जुकाम और खांसी के इलाज के लिए यह बहुत अच्छा देसी ईलाज है। दो चुटकी, हल्दी पाउडर दो चुटकी, सौंठ पाउडर दो चुटकी, लौंग का पाउडर एक चुटकी और बड़ी इलायची आधी चुटकी, लेकर इन सबको एक गिलास दूध में डालकर उबाल लें। इस दूध में मिश्री मिलाकर पीने से जुकाम ठीक हो जाता है। शुगर वाले मिश्री की जगह स्टीविया तुलसी का पाउडर मिलाकर प्रयोग करें।

इलायची

इलायची न केवल बहुत अच्छा मसाला है बल्कि यह सर्दी और जुकाम से भी बचाव करता है। जुकाम होने पर इलायची को पीसकर रुमाल पर लगाकर सूंघने से सर्दी-जुकाम और खांसी ठीक हो जाती है। इसके अलावा चाय में इलायची डालकर पीने से आराम मिलता है।

हर्बल टी

हर्बल टी पीना फायदेमंद है। इससे ठंड दूर होती है और पसीना निकलता है, और आराम मिलता है। यदि जुकाम खुश्क हो जाये, कफ गाढ़ा, पीला ओर बदबूदार हो और सिर में दर्द हो तो इसे दूर करने के लिए हर्बल टी का सेवन कीजिए।

कपूर

कपूर की एक टिकिया को रुमाल में लपेटकर बार-बार सूंघने से आराम मिलता है और बंद नाक खुल जाती है। इसके अलावा यह कपूर सूंघने से ठंड भी दूर होती है। कपूर की टिकिया का प्रयोग करके सर्दी और जुकाम से बचाव कर सकते हैं।

नींबू

गुनगुने पानी में नींबू को निचोड़कर पीने से सर्दी और खांसी में आराम मिलता है। एक गिलास उबलते हुए पानी में एक नींबू और शहद मिलाकर रात को सोते समय पीने से जुकाम में लाभ होता है। पका हुआ नींबू लेकर उसका रस निकाल लीजिए, इसमें शुगर डालकर इसे गाढ़ा बना लें, इसमें इलायची का पावडर मिलाकर इसका सेवन करने से आराम मिलता है।

कालीमिर्च

आधा चम्मच कालीमिर्च के चूर्ण और एक चम्मच मिश्री को मिलाकर एक कप गर्म दूध के साथ दिन में लगभग तीन बार पीने से आराम मिलता है। रात को 10 कालीमिर्च चबाकर उसके ऊपर से एक गिलास गरम दूध पीने से आराम मिलता है। कालीमिर्च को शहद में मिलाकर चाटने से सर्दी और खांसी ठीक हो जाती है।

Friday, 14 September 2018

वृद्धावस्था में होने वाले फ्रैक्चर


जीवन के उत्तरार्ध में उम्र बढऩे के साथ—साथ अस्थियों एवं जोड़ों की तकलीफे बढऩी भी शुरु हो जाती हैं। अधिकांश उम्रदराज लोग इनके रोगों से कम या अधिक मात्रा में पीडि़त होते हैं और कष्ट सहते रहते हैं। यह एक स्वभाविक प्रक्रिया है जहां शरीर के अन्य भागों में और अन्य अंगों की कार्य पद्धति में शिथिलता आने लगती है और शारीरिक क्षमता में क्षरण शुरू हो जाता है। ऐसी अवस्था में जोड़ों में विकार पैदा हो जाना या हड्डियों का मामूली चोट से टूट जाना साधारण बात है। वृद्धावस्था में प्राय: रहने वाले रोग जैसे —दमा उच्च रक्तचाप, मधुमेह, शारीरिक शिथिलता एवं रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी, बीमारी की उग्रता को और बढ़ा देता है। इन सबके लिए उत्तरदायी है हड्डियों का क्षरण जिसके फलस्वरूप उनमें खोखलापन आने लगता है और वे मजबूती से शरीर का वजन और लोच सहन नहीं कर पाती। स्त्रियों में यह स्थिति रजोनिवृति के बाद शुरू होती है और पुरूषों में 50 वर्ष के बाद। स्त्रियों में इसका कारण एन्ड्रोजन नामक हार्मोन की कमी होना है। सामान्य गतिविधियों में कमी और शारीरिक व्यायाम का अभाव भी इस रोग को बढ़ाता है। गुर्दे संबंधी रोग व स्टीरोयड दवाओं का अत्यधिक प्रयोग या समुचित पोषक आहार का अभाव भी रोग को बढ़ाता है।

लक्षण

अधिकांश समय में रोगी वृद्ध स्त्री होती है जो ऊपरी तौर से स्वस्थ और सामान्य दिखाई देती है कुछ स्त्रियों को कमर दर्द अक्सर होता रहता है। कंधे की हड्डियों व कलाइयों में दर्द रह सकता है। इसका कारण मामूली चोट के फलस्वरूप इन भागों की हड्डियों में दरार पड़ जाना हट जाना है उनके जुड़ते ही दर्द कम होने लगता है।
उपचार : नियमित हल्की कसरत शरीर के सभी भागों में रक्त संचारण बढ़ाती है। जिससे हड्डियां का क्षरण कम हो जाता है। अगर रोगी स्टीरोयड दवाईयों का उपयोग कर रहा है तो उसे बंद कर देनी चाहिए, रजोनिवृति में इस्ट्रोजन की गोलियां चिकित्सक की देखरेख में ही लाभ पहुंचाती है। विटामिन —डी, कैल्शियम भी अति आवश्यक है। दूध में भरपूर कैल्शियम होता है अत: इसे अवश्य लें। अगर रोगी मोटापे से ग्रसित है तो इसको भी कम करने का प्रयास करें।
वृद्धावस्था में होने वाले फैक्चर
उपयुक्त कारणों की वजह से कुछ फैक्चर वृद्धावस्था में सामान्यत: देखे जा सकते है। जैसे— कलाई और कूल्हे में। इसको कभी सामान्य स्थिति न समझकर उचित इलाज करवाने से जटिलताओं से बचा जा सकता है।

कंधे की हड्डियां टूटना

अक्सर यह वृद्ध स्त्रियों में होता है। हाथों के बल गिर जाना या हाथों से जोर का धक्का लगना, इस चोट का कारण बनता है। कई बार रोगी को इस चीज का आभास नहीं होता है व अपना कार्य सुचारू रूप से या कुछ दर्द के साथ करता रहता है, परंतु कई बार असहनीय दर्द या नीले रंग के चकते जोड़ के आस—पास उभर आते हैं। इसका निदान एक्स—रे से किया जा सकता है।
उपचार: निदान के बाद हड्डी रोग विशेषज्ञ की सहायता से जोड़ को आराम देने के लिए प्लास्टर लगा दिया जाता है। कभी भी ऐसी स्थिति में सेक न करें । लगभग दो माह में हड्डी जुड़ जाती है।

कलाई की हड्डी का टूटना

इसे कोलीज फैक्चर कहते हैं। यह सर्वाधिक आम चोट है। अक्सर वृद्धों में होती है। यह हाथों के बल गिरने से होती है। कलाई में दर्द व सूजन आ जाना व जोड़ दिखने में खाने में काम आने वाले कांटे की शक्ल का हो जाता है। एक्स रे से रोग का निदान कर 4 सप्ताह का प्लास्टर लगा दिया जाता है।

कूल्हे की हड्डी का टूटना

60 वर्ष की उम्र के पश्चात होने वाले फैक्चरों में इसका प्रमुख स्थान है। बढ़ती उम्र के साथ अस्थि दुर्बलता इसका मुख्य कारण है। जिसके फलस्वरूप एक हल्की सी चोट या फिसलकर गिर जाने से भी कूल्हे की हड्डी टूट जाती है, कूल्हे की हड्डी के टूटने का मुख्य कारण है बाथरूम में फिसलना या अचानक चक्कर आकर गिर पडऩा। हड्डी टूटते ही रोगी उठ नहीं सकता व असहाय पीड़ा का अनुभव करता है। एक्स—रे द्वारा निदान कर शल्य क्रिया द्वारा आजकल इसका उपचार किया जाता है। शल्य क्रिया की अनेक विधियां है जिन्हें मरीज की उम्र शारीरिक परिस्थितियों के अनुसार कार्य में लाया जाता है।
 टूटे भाग में कील, स्टील, प्लेट या स्क्रू द्वारा आपस में जोड़ देना।
 हड्डी के टूटे सिरे को निकाल कर स्टील का सिर उस टूटे भाग पर स्थापित करना।
 कूल्हे के जोड़ को निकालकर मानव निर्मित कूल्हे द्वारा बदल देना।
 अधिक समय तक रोगी को बिस्तर पर रखना हानिकारक हो जाता है। शल्य क्रिया से रोगी जल्दी स्वस्थ होकर चलने फिरने लगता है व बहुत सी जटिलताओं से बच जाता है।

अंत में— वृद्धावस्था की बेहतरी न केवल उसके शारीरिक स्वास्थ्य पर निर्भर करती है बल्कि उसे मानसिक राहत भी मिलनी चाहिए। इस उम्र में चारों ओर से व्याधियां घेर लेती है और उनका यथोचित इलाज करवाना जरूरी हो जाता है। कभी कभी एकाकीपन भी दुख का कारण बन जाता है। ऐसे में एक सहानुभूति पूर्ण दृष्टिकोण अपनाना सुखदायी होता है। वृद्धावस्था बाल्यावस्था जैसी हो जाती है। जिसके कारण चिड़चिड़ापन बढ़ जाता है और कई बार एक तनावपूर्ण वातावरण बना देता है। अत: हमें धैर्य के साथ ऐसी स्थिति से निपटना चाहिए जो कठिन हो सकती है पर असम्भव नहीं।

Thursday, 6 September 2018

बेहतर ढंग से करें वृद्धावस्था का सामना



बढ़ती आयु में अकसर लोग शांत और नीरस हो जाते हैं और अक्सर स्वास्थ संबंधी चर्चा होने पर चुप्पी साध लेते हैं। भावनाओं को दबाने से उनके दिमाग में एक तरह की भावनात्मक हलचल होती है और इससे तनाव, निराशा और चिंता में वृद्धि होती है। अपने घरेलु व अन्य समस्याओं का हल ढूंढने और उसपर सलाह मशविरा करने के लिए अपने खास लोगों के साथ उसे शेयर करना चाहिए। अपनी भावनाओं को इस तरह दूसरे लोगों के साथ शेयर करने से व्यक्ति अपनी बढती आयु से उत्पन्न होने वाली समस्याओं  से छुटकारा पा जाता है।
जीवन के प्रति हमेशा सकारात्मक सोच रखे और जीवन की मध्य अवस्था का सामना करने के लिए मानसिक तौर पर पहले से ही तैयारी कर ले। उम्र बढने के साथ स्वास्थ्य में कई तरह का परिवर्तन होता है और इससे व्यक्ति के सैक्सुअल प्रर्दशन पर भी असर दिखने लगता है जिसके परिणामस्वरूप व्यक्ति अपने आप को असक्षम और अयोग्य समझने लगता है और एक तरह से हीन भावना से ग्रस्त हो जाता है। व्यक्ति में आत्मसम्मान में कमी, तनाव और निराशा जैसी बहुत सी बीमारियां  मनौवैज्ञनिक समस्याओं के कारण पैदा होती है जो आदमी के सैक्सुअल स्वास्थ्य को प्रभावित करने के साथ ही उसके संपूर्ण स्वास्थ्य पर बुरा असर डालता है। व्यक्ति को चाहिए की अपनी पत्नी के साथ अपनी समस्याओं को शेयर करे, संभव है कि वह उन समस्याओं का हल ढूंढने के लिए कोई उपाय बताए और इससे तनाव और निराशा की स्थिति से निकलने में मदद मिले।
स्वीकार करना सीखें, उम्र बढऩा एक प्राकृतिक और अपरिहार्य प्रकिया है जिसे इंसान को हर हाल में स्वीकार करना होता है। उम्र बढने के साथ ही आपके संर्पूण स्वास्थ्य और जीवन में बहुत से बदलाव आते है जिसे आपकों स्वीकार कर उसके अनुकूल अपने आप को ढालना पड़ता है। शरीर में होने वाले बदलावों में विशेष तौर पर सैक्स क्षमता में कमी और मांस पेशियों में बदलाव आता है इसलिए आपको इसे स्वीकार कर इस परिवर्तन के साथ ही जीना पड़ेगा।
हमेशा पोषक तत्वों से भरपूर आहार ले और नियमित रूप से भोजन करे। पा्रेसेस्ड और फैटी भोजन करने से परेहज करे और इसके बदले में प्रचूर मात्रा में ताजे फल और फाइबर युक्त आहार का सेवन करें।
हर आयु में नियमित रूप से एक्सरसाइज करना जरूरी होता है लेकिन जरूरत से ज्यादा एक्सरसाइज कर अपना उर्जा नष्ट नहीं कर हल्की-फुल्की एक्सरसाइज करनी चाहिए। इससे शरीर के साथ दिमाग पर भी अच्छा प्रभाव पड़ता है। अपने वजन को हमेशा नियंत्रण में रखे। मोटापा एक साथ कई बीमारियों को निमंत्रण देता है।
भोजन में पोषक तत्वों की कमी और कुपोषण से बचने के लिए मल्टीविटामिन्स और सप्लीमेंट ले। शरीर में किसी भी तरह का असहजता महसूस होने पर तुरंत अपने डॉक्टर से संपर्क करे।
जीवन में काम-काजी बने, कुछ न कुछ  शारीरिक श्रम करते रहे। अपने शरीर को जरूरत के अनुसार आराम दे।
एक और खास बात, अपने पार्टनर के साथ वास्तविक संबंध रखे। अपने बेहतर संबंधों के लिए अपनी आकांक्षा और उम्मीदों को अपनी पत्नी के साथ शेयर करें। ऐसा महसूस करें कि आप दोनों दो जिस्म होकर भी एक जान की तरह है और दोनों की खुशी एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं।

Thursday, 16 August 2018

एलर्जी व सांस रोग का होम्योपैथी में सटीक इलाज


आज की भागदौड़ भरी जिंदगी और वातावरण में तेजी से बढ़ रहे प्रदूषण के स्तर के कारण एलर्जी, सांस व आंखों के रोग से ग्रसित होना आम बात है। ऐसे में होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति में इन रोगों का पूर्ण इलाज ही नहीं, बल्कि इससे बचाव की भी दवाएं हैं। होम्यापैथी में इलाज जहां सबसे सस्ता है, वहीं यह पूरी तरह से सुरक्षित भी होता है। इसका कोई साइड इफेक्ट भी नहीं है। 
आज शहर में तेजी से प्रदूषण का स्तर बढ़ता ही जा रहा है। इससे कई प्रकार की समस्याएं हो रही हैं। इसमें श्वास की समस्या सबसे अधिक है। त्वचा और आंखों पर भी काफी बुरा प्रभाव पड़ रहा है।
लगातार प्रदूषणयुक्त माहौल में रहने से पहले लोगों को एलर्जी की वजह से खांसी की समस्या हो जाती है। इसका शुरू में ही इलाज न करवाया जाय तो पहले गले के दोनों ओर के टांसिल बढ़ जाते हैं, जिससे लगातार जुकाम रहने लगता है। इससे नाक की हड्डी (एडोनाइड्स) बढ़ जाती है। इस दौरान भी इलाज न करवाया जाए तो यह सायनोसाइटिस में तब्दील हो जाती है। यही बढ़कर गले और फेफड़े को संक्रमित कर देता है, जिससे मरीज ब्रोंकाइटिस और अस्थमा रोग का शिकार हो जाता है।
इससे बचाव के लिए होम्योपैथी में लक्षणों के आधार पर मरीज को रोग-प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने वाली दवाइयां दी जाती हैं। ये दवाइयां शुरू में ही खांसी व सर्दी के दौरान शरीर की कोशिकाओं को टूटने से बचा लेती हैं। ज्यादातर लोग सर्दी व जुकाम को बहुत हल्के में लेते हैं। अगर लगातार नाक बंद रहे, गला सूख जाए और अकारण थकान हो तो यह सामान्य सर्दी ही नहीं, साइनस भी हो सकता है। इसमें मरीज का पॉलिप्स भी बढ़ जाता है। इसमें मरीज को आर्सेनिक एलबम, एपिकॉप, लोबेलिया आदि दवाएं दी जाती हैं। सप्ताह में दो-तीन बार एस्थाइट को गर्म पानी में डालकर उसका भाप लेने या उसे पीने से रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
प्रदूषण से त्वचा रोग एक्जिमा होने की आशंका रहती है। ऐसे में संवेदनशील त्वचा के लिए कई होम्योपैथिक औषधिया आरुम-ट्राइफआइलम, आरसेनिक्स व ग्रेफाइट्स प्रभावी होती हैं। सर्दी में एलोवेरा क्रीम भी फायदेमंद हैं। यह त्वचा को सुरक्षित रखने के साथ ही ड्राइनेस भी दूर करता है। प्रदूषण से आंखों को होने वाली समस्या को दूर रखने के लिए यूफ्रेशिया आइ ड्रॉप डालनी चाहिए। इससे आंखों में जलन व खुजली दूर करने के साथ ही साफ भी रखता है। फिर भी दवाएं लेने से पहले डॉक्टर का परामर्श अवश्य ले लें।

Monday, 13 August 2018

ब्रेस्ट मिल्क बढ़ाने के प्राकृ तिक उपाय


स्तनपान कराने वाली मां के लिए इससे ज्यादा दुखद और कुछ नहीं हो सकता कि उनके स्तन में दूध का पर्याप्त उत्पादन नहीं हो रहा है। इस स्थिति में उनका बच्चा भी भूखा रह सकता है। अगर आप के साथ भी ऐसी ही समस्या है तो क्या आप हाथ पर हाथ धरे बैठी रहेगीं? बिल्कुल नहीं! दूध का उत्पादन बढ़ाना संभव है और इसके लिए आपको जोखिम भरी दवाइयां भी नहीं लेनी पड़ेगी। आइए हम आपको बताते है स्तन में दूध की मात्रा में इजाफा करने के कुछ सुरक्षित और प्राकृतिक तरीके। ब्रेस्ट मिल्क न बढऩे के बहुत से कारण हो सकते हैं जैसे, तनाव, डीहाइड्रेशन, अनिद्रां आदि। लेकिन ऐसी कई प्रभावशाली विधियां हैं जिससे आप ब्रेस्ट मिल्क बढा सकती हैं। आपको केवल अच्छे प्रकार का आहार खाना होगा जो कि बच्चे पर कोई बुरा प्रभाव ना डाले। इन्हें अपने रोजाना के खाने में प्रयोग करें और ब्रेस्ट मिल्क की मात्रा को बढाएं।


  • पंप: विशेषज्ञ मानते हैं कि स्तनपान के दौरान पम्पिंग सेशन से स्तन में दूध की मात्रा बढ़ती है। दूध की आखिरी बूंद के बाद करीब 5 बार स्तन को पंप करें। स्तन से ज्यादा दूध की मांग करने पर शरीर को ज्यादा दूध उत्पादन का संदेश जाता है। 
  • स्तनपान कराते समय स्तन को बदलें: जब भी आप स्तनपान कराएं तो स्तन को बराबर बदलें। इससे शरीर में दूध उत्पादन की मांग बढ़ेगी। साथ ही इससे आपका बच्चा भी आराम से स्तनपान कर सकेगा। दरअसल इससे स्तन खाली होता है और ज्यादा दूध का उत्पादन होता है। एक बार स्तनपान कराते समय कम से कम दो से तीन बार स्तन बदलें। 
  •  स्तनपान कराते समय स्तन पर दबाव डालें: स्तनपान कराते समय अपने स्तन को दबाएं। इससे भी कम दूध उत्पादन की निराशा से छुटकारा मिलेगा। इससे एक बार स्तनपान कराने पर स्तन पूरी से तरह से खाली हो जाता है। 
  •  मेथी खाएं: याद है आपको, बच्चे के जन्म के दौरान अपने कई तरहे के पौधों के बीज खाएं होंगे। मेथी व अन्य इस तरह की बीज खाने से दूध का उत्पादन बढ़ता है। हालांकि इससे गैस की भी समस्या हो सकती है, इसलिए सावधान रहें। 
  •  मदर्स मिल्क टी: इस चाय के जरिए शरीर को मेथी मिलता है। हालांकि कुछ बातों को लेकर सावधान भी रहें। कुछ महिलाएं इस चाय से पेट में तकलीफ की शिकायत करती हैं। साथ ही इसकी महक मैपल सिरप की तरह होता है। 
  •  मिल्क प्रोडक्ट: ऐसी चर्बी जो कि घी, बटर या तेल से मिलती हो, वह ब्रेस्ट मिल्क बढाने में बहुत कारगर होती है। यह शरीर को बहुत शक्ति प्रदान करते हैं। आप इन्हें चावल या रोटी के साथ प्रयोग कर सकती हैं। चाहें तो सब्जी बनाते वक्त भी एक चम्मच घी डाल कर उसे पका सकती हैं। सुडौल बनना चाहती हैं? 
  •  स्वस्थ भोजन लें: अगर आप पहली बार मां बनी हैं तो आपको चाहिए कि आप अपनी पसंद को पूरी तरह से दरकिनार कर अपने बच्चे के बारे में सोचें। यानी ज्यादा से ज्यादा स्वस्थ भोजन खाएं। दूध उत्पादन के लिए शरीर को अच्छे खानपान की आवश्यकता होती है। 
  •  बीयर पीना: यह बेहतर होगा कि आप बीयर लेने से पहले डॉक्टर से जरूर परामर्श लें, फिर भी बहुतों का यह मानना है कि यह लेक्टोजेनिक डाइट का हिस्सा है। 
  •  तनाव कम करें: तनाव ऑक्सीटोसिन के उत्पादन में रुकावट पैदा करता है। ऑक्सीटोसिन ही वह हार्मोन है, जो दूध का उत्पादन बढ़ाने में सहायक होता है। 
  •  बच्चे के साथ सोएं: बच्चे के साथ सोने से स्तनपान का समय बढ़ता है। आप जितना ज्यादा स्तनपान कराएंगे, शरीर में दूध का निर्माण उतना ही ज्यादा होगा। 
  •  जई का दलिया: इससे दूध का उत्पादन बढ़ता है। कई महिलाओं ने यह माना है कि जई का दलिया खाने से उनके दूध की मात्रा में वृद्धि हुई है। 
  •  तुलसी: इसमें विटामिन के पाया जाता है, जिसे खाने से ब्रेस्ट मिल्क बढता है। इसे सूप या शहद के साथ खा सकती हैं। 
  •  करेला: इसके अंदर विटामिन और मिनरल अच्छी मात्रा में पाया जाता है, जिससे ब्रेस्ट मिल्क बढाने की क्षमता बढ जाती है। यह स्त्री में लैक्टेशन सही करता है। करेला बनाते वक्त हल्के मसालों का प्रयोग करें जिससे यह आसानी से हजम हो सके। 
  •  लहसुन: इसे खाने से भी दूध बढने की क्षमता बढती है। कच्चा लहसुन खाने से अच्छा होगा कि आप उसे मीट, करी, सब्जी या दाल में डाल कर पका कर खाएं। अगर आप लहसुन को रोजाना खाना शुरु करेंगी तो यह आपको जरुर फायदा पहुंचाएगा। 
  •  मेवा: बादाम और काजू जैसे मेवे ब्रेस्ट मिल्क बढाने में सहायक होते हैं। इसके अलावा यह विटामिन, मिनरल और प्रोटीन में काफी रिच होते हैं। अच्छा होगा कि आप इन्हें कच्चा ही खाएं।

Monday, 16 April 2018

कैंसर का इलाज होम्योपैथी में भी संभव


सामान्यत: हमारे शरीर में नई-नई कोशिकाओं का हमेशा निर्माण होता रहता हैं, परन्तु कभी-कभी इन कोशिकाओं की अनियंत्रित गति से वृद्धि होने लगती हैं और यही सेल्स जो अधिक मात्रा में होती हैं एक ट्यूमर के रूप में बन जाती हैं जो कैंसर कहलाता हैं। इसे कार्सिनोमा, नियोप्लास्म और मेलिगनेंसी भी कहते हैं। लगभग 100 प्रकार के कैंसर होते हैं, और सभी के लक्षण अलग-अलग होते हैं। एक अंग में कैंसर होने पर ये दुसरे अंगो में भी फैलने लगता हैं। सभी ट्यूमर कैंसर नहीं होते हैं।

कैंसर के प्रकार

कुछ वर्ष पहले तक कैंसर एक जानलेवा बीमारी समझी जाती थी लेकिन अब ऐसा नहीं है। मेडिकल साइंस ने इतनी तरक्की कर ली है की अगर कैंसर को शुरूआती चरण में पकड़ लिया गया तो उस पर काफी प्रतिशत मामलों में काबू पाया जा सकता है एवं मरीज की जान बचाई जा सकती है। कैंसर कई प्रकार के होते हैं। आपको यह जानकर हैरानी होगी की कैंसर लगभग सौ से भी ज्यादा प्रकार के होते हैं लेकिन आम तौर पर कैंसर के जो प्रमुख प्रकार होते हैं उनका विवरण यहाँ दिया जा रहा है।

त्वचा का कैंसर

त्वचा का कैंसर स्त्री एवं पुरुष, दोनों को अपना शिकार बनाने वाला सबसे सामान्य प्रकार का कैंसर है। हर साल लाखों स्त्री पुरुष के बारे में पता चलता है जो त्वचा के कैंसर के शिकार होते हैं। इसलिए अगर आपको त्वचा के कैंसर से बचना है तो आपको तेज धुप एवं प्रदुषण से खुद को बचाना होगा।

ब्लड कैंसर

इस प्रकार का कैंसर भी सामान्य है लेकिन त्वचा के कैंसर जितना नहीं। ल्यूकेमिया एक प्रकार ब्लड कैंसर होता है जो रक्त कोशिकाओं के कैंसरस हो जाने के कारण होता है। बोन मेरो के भीतर मौजूद कोशिकाएं लाल रक्त कोशिकाएं, सफेद रक्त कोशिकाएं एवं प्लेटलेट्स को जन्म देती हैं जो कई बार कैंसरस हो सकती हैं जिनसे ल्यूकेमिया नामक कैंसर होता है। जो व्यक्ति ल्यूकेमिया के शिकार होते हैं उनका वजन कम होने लगता है; उनमें खून की कमी होने लगती है; उन्हें रातों को पसीना आने लगता है और न समझ में आने वाला बुखार रहने लगता है।

हड्डियों का कैंसर

इस प्रकार का कैंसर ज्यादातर बच्चों एवं बड़ों को अपना शिकार बनाता है लेकिन हड्डियों का कैंसर अन्य कैंसर की तरह आम नहीं है और इसके बहुत कम मामले पाए जातें हैं। कैल्सियम का भरपूर मात्रा में सेवन करते रहने से इस प्रकार के कैंसर से काफी हद तक बचा जा सकता है लेकिन कैल्सियम के सेवन से हीं आप इस प्रकार के कैंसर से बचे रह जायेंगे इसकी कोई गारंटी नहीं है क्योंकि यह कई कारणों से होता है।

ब्रेन कैंसर

ब्रेन कैंसर दो प्रकार के होते हैं- एक कैंसरस होता है एवं दूसरा नन कैंसरस। ब्रेन कैंसर बच्चे या बड़े यानि किसी को भी हो सकता है और इसके होने के कई ऐसे कारण होते हैं जिन्हें रोक पाना इंसान के बस में नहीं होता है। ब्रेन कैंसर को ब्रेन ट्यूमर के नाम से भी जाना जाता है। कैंसरस ब्रेन ट्यूमर को यदि रोका नहीं गया तो दिमाग के एवं शरीर के अन्य भागो तक भी पहुँच सकता है।

स्तन कैंसर

स्तन कैंसर ज्यादातर महिलाओं को अपना शिकार बनता है। यूँ तो पुरुषों को भी स्तन कैंसर हो सकता है लेकिन ऐसा बहुत कम होता है। स्तन कैंसर की शिकार आमतौर पर महिलाएं हीं होती हैं। यूनाइटेड स्टेट्स में हर वर्ष लगभग 2 लाख मामले ऐसे आते हैं जिनमें महिलाएं स्तन कैंसर की शिकार पाई जाती हैं। अपने स्तन की नियमित रूप से जांच करते रहने से इस प्रकार के कैंसर से बचा जा सकता है। उचित समय पर विवाह एवं बच्चों के जन्म से भी इस प्रकार के कैंसर से काफी हद तक बचा जा सकता है। लेकिन स्तन कैंसर कई कारणों से हो सकता है जिनमें से कई कारण आपके बस में नहीं होते। ऐसे में उचित इलाज हीं इसका एकमात्र उपाय है।

मुख का कैंसर

मुख का कैंसर आम तौर पर सिगरेट, तम्बाकू इत्यादि के सेवन से होता है। लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि जो लोग सिगरेट-तम्बाकू का सेवन नहीं करते उन्हें मुख का कैंसर नहीं हो सकता। लेकिन ऐसे लोगों को मुख का कैंसर होने की संभावना 50 प्रतिशत कम हो जाती है।

गले का कैंसर

गले का कैंसर भी आमतौर पर पाया जाने वाला एक प्रकार का  कैंसर है जिसके शिकार कई लोग हर साल होते हैं। इसके होने के भी मुख्यत: वही कारण  होते हैं जो मुख के कैंसर को जन्म देते हैं मसलन सिगरेट, तम्बाकू इत्यादि का सेवन।

फेफड़ों का कैंसर

कई लोगों में फेफड़ों का कैंसर भी पाया जाता है आर इसके कारण  भी सिगरेट, तम्बाकू इत्यादि का सेवन हो सकता हैं।
पैनक्रियाटिक कैंसर
यह कैंसर पैनक्रियाज यानि अग्नाशय को अपना शिकार बनाता है। इसके मामले स्तन कैंसर, फेफड़ों का कैंसर, हड्डियों का कैंसर के मुकाबले बहुत कम पाए जाते हैं। हाल हीं में विश्व प्रसिद्द स्टेव जोब्स इसके शिकार पाए गए थे जिनका कई सालों तक इलाज चला और अंतत: जिनकी मृत्यु हो गई।
उपरोक्त विभिन्न प्रकार के कैंसर के अलावा कुछ अन्य सामान्य कैंसर के प्रकार जैसे- गुदा का कैंसर, उदर का कैंसर, आँखों का कैंसर, डिम्बग्रंथि के कैंसर, पौरुष ग्रंथि यानि प्रोस्टेट कैंसर, वृषण यानि टेस्टीक्युलर कैंसर  इत्यादि।

कैंसर की चिकित्सा के लिए होम्योपैथी

कैंसर सबसे भयानक रोगों में से एक है। कैंसर के रोग की परंपरागत औषधियों में निरंतर प्रगति के बावूद इसे अभी तक अत्यधिक अस्वस्थता और  मृत्यु के साथ जोडा़ जाता है और कैंसर के उपचार से अनेक दुष्प्रभाव जुडे हुए हैं। कैंसर के मरीज कैंसर पेलिएशन, कैंसर उपचार से होनेवाले दुष्प्रभावों के उपचार के लिए, या शायद कैंसर के उपचार के लिए भी अक्सर परंपरागत उपचार के साथ साथ होम्योपैथी चिकित्सा को भी जोडते हैं।
दुष्प्रभावों को नियंत्रित करने के लिए होम्योपैथी चिकित्सा
रेडिएशन थैरेपी, कीमोथैरेपी और हॉर्मोन थैरेपी जैसे परंपरागत कैंसर के उपचार से अनेकों दुष्प्रभाव पैदा होते हैं। ये दुष्प्रभाव हैं - संक्रमण, उल्टी होना, जी मितलाना, मुंह में छाले होना, बालों का झडऩा, अवसाद (डिप्रेशन), और कमजोरी महसूस होना। होम्योपैथी उपचार से इन लक्षणों और दुष्प्रभावों  को नियंत्रण में लाया जा सकता है। रेडियोथेरेपी के दौरान अत्यधिक त्वचा शोध (डर्मटाइटिस) के लिए 'टॉपिकल केलेंडुलाÓ जैसा होम्योपैथी उपचार और  केमोथेरेपी-इंडुस्ड स्टोमाटाटिस के उपचार में 'ट्राउमील एस माऊथवाशÓ का प्रयोग असरकारक पाया जाता है।

कैंसर के लिए होम्योपैथी उपचार

होम्योपैथी उपचार सुरक्षित हैं और कुछ विश्वसनीय शोधों के अनुसार कैंसर और उसके दुष्प्रभावों के इलाज के लिए होम्योपैथी उपचार असरदायक हैं। यह उपचार आपको आराम दिलाने में मदद करता है और तनाव, अवसाद, बैचेनी का सामना करने में आपकी मदद करता है। यह अन्य लक्षणों और उल्टी, मुंह के छाले, बालों का झडऩा, अवसाद और कमोरी जैसे दुष्प्रभावों को घटाता है। ये औषधियां दर्द को कम करती हैं, उत्साह बढा़ती हैं और तन्दुरस्ती का बोध कराती हैं, कैंसर के प्रसार को नियंत्रित करती हैं, और प्रतिरोधक क्षमता को बढाती हैं। कैंसर के रोग के लिए एलोपैथी उपचार के उपयोग के साथ-साथ होम्योपैथी चिकित्सा का भी एक पूरक चिकित्सा के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं। एलोपैथी उपचार के साथ साथ होम्योपैथी दवाईयां ब्रेन ट्यूमर, अनेक प्रकार के कैंसर जैसे के गाल, जीभ, भोजन नली, पाचक ग्रन्थि, मलाशय, अंडाशय, गर्भाशय; मूत्राशय, ब्रेस्ट और प्रोस्टेट ग्रंथि के कैन्सर के उपचार में उपयोगी पाई गई हैं।