Monday, 10 April 2017

असाध्य को साध्य बनाती होम्योपैथी



आजकल मॉडर्न मेडिसिन हर तरह की बीमारियों के लिए टेंशन को प्रमुख कारण बताती जा रही है जबकि होम्योपैथी में सभी प्रकार की बीमारियों के लिए शारीरिक के साथ-साथ मानसिक कारणों को पूर्व में ही प्रमुखता दी जा चुकी है। इसी प्रकार कैंसर के उत्पत्ति के वास्तविक कारणों की अगर चर्चा करें तो आज भी ज्ञात नहीं हो सका है। हो सकता है कि कैंसर की उत्पत्ति सिगरेट, शराब पीने, तम्बाकु, गुटके के सेवन या अनुवांशिक कारणों को माना जाता है परन्तु किसी को लगी गहरी चोट, शोक, दुख, चिंता, काम धंधे में आर्थिक हानि इत्यादि मानसिक कारणों को भी भुलाया नहीं जा सकता। होम्योपैथी में दो तरह के लक्षणों को प्रमुखता दी गई है एक तो सब्जेक्टिव लक्षण जिसे मरीज तथा उसके रिश्तेदार या उसकी शारीरिक जांच रिपोट्र्स बताते है तथा दूसरा ऑब्जेक्टिव लक्षण जिसे होम्योपैथी चिकित्सा स्वयं अनुभव करता है।
होम्योपैथिक इलाज केवल सर्दी-खंसी, बुखार अथवा त्वचा रोगों तक सीमित न रहकर निरंतर होते जा रहे अनुसंधान की बदौलत ऐसी कई असाध्य बीमारियों जैसे- कैंसर, डायबिटीज, गठिया, अस्थमा, सोरायसिस, स्पॉंइिडलाटिस्ट, टॉन्सिलाइटिस्ट, साइनोसाइटिस्ट, पथरी, प्रोस्टेट इत्यादि कई असाध्य बीमारियों के लिए साध्य बनती जा रही है। यदि यहां कैंसर के मरीजों की बात करें तो उनकी ही भाषा में कैंसर के मरीज को उसका चिकित्सक जैसा कहता है वैसा वे कराते जाते हैं। ऑपरेशन का बोलते है तो ऑपरेशन करा लेते हैं, कीमोथेरेपी का बोलते है तो कीमोथेरैपी करा लेते हैं, रेडियोथेरैपी का बोलते है तो रेडियोथेरैपी करा लेते है फिर भी कैंसर से छुटकारा मिलना असंभव सा प्रतीत होता है या शरीर के एक स्थान से दूसरे स्थान पर पुन: हो जाता है। ऐसे मरीज क्या करें, कहां जाएं? 
जब कोई राह नहीं सूझती, हर तरह के इंजेक्शन, ऑपरेशन नाकाम साबित हो जाते हैं तब लोगों को होम्योपैथी की याद आती है। जब सभी प्रकार की प्रचलित चिकित्सा पद्धतियों से आशानुरूप परिणाम लोगों को नहीं मिलता है तब एक मात्र विकल्प होम्योपैथी शेष रह जाता है। आमतौर पर होम्योपैथी डॉक्टर के पास मरीज तब पहुंचता है जब कई बार रेडियोथैरेपी, कीमोथैरेपी और ऑपरेशन करा चुका होता है, फिर भी उसे कोई फायदा नहीं होता। लेकिन जो मरीज ऑपरेशन नहीं कराना चाहते, उनके लिए भी होम्योपैथी जीने की राह को आसान बना देती है। होम्योपैथी में कैंसर की कई ऐसी दवाइयां मौजूद हैं, (कार्सिनोसिन, हाईड्रेस्टिस, फाइटोलैका, आर्सेनिक, आर्स आयोडाइड, लाइकोपोडियम, कोनियम, फॉस्फोरस, चेलिडोनियम, मर्कसॉल, एपिस-मेल, कंडुरंगो, कैप्सिकम, केमोमिला, स्टेफिसेग्रिया इत्यादि) जो मरीज के लक्षणों, रिपोट्र्स और बीमारी की स्टेज पर तय होती हैं। होम्योपैथी दवाइयों से सूजन, दर्द और जलन को भी कम किया जा सकता है। आमतौर पर लोगों का मानना है कि कैंसर में होम्योपैथिक ट्रीटमेंट काफी धीमा इलाज है, लेकिन ऐसा है नहीं। 50 मिलिसिमल पोटेंसी की होम्योपैथिक दवाइयां जल्द आराम पहुंचाती हैं। ये न सिर्फ बीमारी को फैलने से रोकती हैं बल्कि उसके बार-बार होने की संभावना भी खत्म करती हैं लेकिन मरीज जब तक होम्योपैथ डॉक्टर तक पहुंचता है उसकी बीमारी काफी बढ चुकी रहती है इसलिए कभी-कभी समय भी लगता है।
कैंसर पर एलोपैथी ट्रीटमेंट के साइड इफेक्ट जैसे कि कीमोथैरेपी से कैंसर सेल के साथ शरीर के नॉर्मल सेल्स भी मरते (टूटते) हैं। रेडियोथैरेपी से असहनीय जलन होती है साथ ही कमजोरी, बाल झडऩा, बार-बार उल्टी हो जाना, खून की कमी हो जाना, भूख नहीं लगना इत्यादि ऐसी समस्याएं है जो कैंसर मरीजों में आमतौर पर देखने को मिलती है। इस तरह की सभी समस्याओं के लिए होम्योपैथी उपचार एक सरल सामाधान हो सकता है क्योंकि होम्योपैथिक ट्रीटमेंट में साइड इफेक्ट नहीं है साथ ही दवाइयां भी लेना आसान है। होम्योपैथी दवा शुगर के मरीज भी आसानी से डिस्टिल या गर्म पानी से दवाइयां ले सकते हैं। होम्योपैथी दवाइयां रेडियोथैरेपी और कीमोथैरेपी के दुष्प्रभावों को भी कम करती हैं। 
यदि इलाज को तुलनात्मक दृष्टि से देखें तो कैंसर में एलोपैथी ट्रीटमेंट का खर्च बहुत ज्यादा होता है साथ ही रिस्क भी कई गुना ज्यादा होती है जबकि होम्योपैथी इलाज, एलोपैथी के एक महंगे इंजेक्शन या बडे अस्पताल में एक दिन भर्ती होने के खर्च से भी कम में पूरे हफ्ते या महीने भर की दवा ली जा सकती है।
महिलाओं में होने वाले प्रमुख कैंसर स्तन कैंसर, ग्रीव कैंसर, ओवेरियन कैंसर, गालब्लैडर कैंसर इत्यादि के साथ-साथ पुरूषों में मुख कैंसर, गले का कैंसर तथा प्रोस्टेट कैंसर प्रमुख रूप से पाया जाता है।

महिलाओं में स्तन कैंसर 

महिलाओं में स्तन कैंसर सबसे सामान्य होता है। और अधिकतर महिलायें इसके लक्षणों को अनदेखा करती हैं। लेकिन, ऐसा करना कई बार उनकी जान भी ले सकता है। ऐसे में महिलाओं को चाहिए कि वे इसके लक्षण नजर आते ही फौरन चिकित्सीय सहायता लें।

स्तन में गांठ

अगर कोई महिला अपने किसी भी एक स्तन में कोई गांठ महसूस करती है (जिसमें भले हीं कोई दर्द न हो) तो यह उस महिला में स्तन कैंसर का लक्षण हो सकता है। स्तन के अलावा अजीब तरह की गांठ स्तन के आस पास यानी बगल वगैरह में भी पाई जा सकती है। 

श्रोणि दर्द (पेल्विक पेन)

नाभि के नीचे होने वाले दर्द को श्रोणि दर्द कहते है। यह दर्द एंडोमेट्रियल कैंसर, डिम्बग्रंथि के कैंसर, गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर, फैलोपियन ट्यूब के कैंसर और योनि के कैंसर के लक्षण को दर्शा सकता है। अत: इसकी जांच करवाएं।

पीठ के निचले हिस्से में दर्द 

अगर किसी महिला की पीठ के निचले हिस्से में लगातार दर्द रहता हो तो इसे हल्के से नहीं लेना चाहिए और उचित जांच करवानी चाहिए। कई मामलों में यह डिम्बग्रंथि के कैंसर का एक लक्षण भी हो सकता है। 

पेट की सूजन और पेट फूला रहना

पेट की सूजन और पेट फूला फूला रहना डिम्बग्रंथि के कैंसर के आम लक्षणों में से एक है। यह एक ऐसा लक्षण है जिसे आमतौर पर महिलाएं नजरअंदाज कर देती हैं। 

असामान्य रूप से योनि से खून का स्राव

जब महिलाओं में गाईनेकोलिक कैंसर होता है तो उनकी योनी से असामान्य रूप से खून का स्राव होता है। ये गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर, गर्भाशय के कैंसर अथवा डिम्बग्रंथि के कैंसर के लक्षण भी हो सकते हैं।

अक्सर बुखार का रहना

बुखार जो जल्दी जाने का नाम नहीं लेता या जो लगभग 7 दिनों तक रहता हो या किसी को बार बार बुखार लगता हो और उसका कारण समझ  में नहीं आता हो तो यह कैंसर का लक्षण हो सकता है। हालांकि अक्सर रहने वाला बुखार और भी कई दूसरी बीमारियां होने का संकेत देता है इसलिए घबराएं नहीं और अपनी जांच करवाएं।

लगातार पेट खराब रहना

यदि आपका पेट अक्सर खराब रहता है या आप अक्सर दस्त, गैस, पतले दस्त, या कब्ज के शिकार रहते हैं या आपके मल में रक्त का अंश रहता हो तो आपको किसी योग्य डॉक्टर से मिलना चाहिए क्योंकि ये कोलोन कैंसर या गाईनेकोलिक कैंसर के लक्षण हो सकते हैं।

योनि में उत्पन्न असामान्य बातें

अगर आपकी योनी में किसी तरह का घाव, छाला रह रहा हो या वहां की त्वचा के रंग में असामान्य परिवर्तन हो रहा हो या असामान्य स्राव होता है तो आपको योनि की किसी योग्य डॉक्टर से परिक्षण करवाना चाहिए क्योंकि ये कैंसर के लक्षण हो सकते हैं।

थकान

थकान कैंसर का एक आम लक्षण है। यह आमतौर पर तब होता है जब कैंसर उन्नत अवस्था में पहुंच जाता है। लेकिन यह लक्षण प्रारंभिक अवस्था में भी उभर सकता है। अगर आपको बिना काम किये या बिना परिश्रम किये बहुत ज्यादा थकान लगे या थकान जो आपको सामान्य दैनिक गतिविधियों को करने से रोके, कैंसर का लक्षण हो सकता है। कैंसर से बचने के लिए जरूरी है कि आप नियमित जांच करवाती रहें। लक्षण नजर आते ही फौरन चिकित्सीय सलाह लें। देर से आपको काफी नुकसान हो सकता है।

पुरुषों में प्रोस्टेट कैंसर 

पुरुषों में प्रोस्टेट कैंसर बहुत खतरनाक बीमारी है। कैंसर के 5 मरीजों में से लगभग 3 की मौत प्रोस्टेट कैंसर के कारण ही होती है। अगर प्रोस्टेट कैंसर का पता शुरुआती चरणों में ही चल जाए तो इसके उपचार में आसानी होती है। बढती उम्र, आनुवांशिक और हार्मोन से संबंधित कारणों के कारण प्रोस्टेट कैंसर होता है, लेकिन प्रोस्टेट कैंसर के लक्षण सामान्य बीमारी या फिर मधुमेह के करीब नजर आते है। इसी वजह से आदमी को इसका पता देर से लगता है, जिसके कारण प्रोस्टेट कैंसर मौत का कारण बनता है। 
पेशाब में जलन, इन्फेक्शन/ दर्द के बाद सबसे आम समस्या है पेशाब का रूक जाना (रूकावट) या पेशाब की धार का पतली हो जाना, जिसके कई सारे कारण हो सकते है परन्तु पुरूषों में पाई जाने वाली प्रोस्टेट ग्रंथी जब बढऩे लगती है तो मूत्र मार्ग पर दबाव डालती है जिसके कारण पेशाब करने में परेशानी होने लगती है जिसके परिणाम स्वरूप बार-बार पेशाब जाने की आदत हो जाती है क्योंकि एक बार में पेशाब की थैली पूरी तरह खाली नहीं होती है और पुन: थोड़ी पेशाब बनने पर वापस थैली भरी हुई सी महसूस होने लगती है फिर से पेशाब करने पर पुन: थैली, पूरी तरह से खाली नहीं होती है, बची हुई पेशाब को पोस्ट वाइड यूरिन कहा जाता है।
प्रोस्टेट का साईज बढऩे के कारण धीरे-धीरे प्रोस्टेट कैंसर या प्रोस्टेट का एडिनोकार्सिनोमा हो सकता है। इसलिए समय रहते बीमारी को बढऩे से रोकने की आवश्यकता है। कई लोगों की यह सोच है कि पेशाब की समस्या सिर्फ प्रोस्टेट के कारण और केवल पुरुषों में ही होती है जबकि यदि आंकड़े देखें तो यह समस्या पुरुषों से ज्यादा स्त्रियों (महिलाओं) में अधिक होती है जिसका कारण महिलाओं में नीचे के भाग की बनावट प्रमुखता से जिम्मेदार है जिसके कारण उन्हें बार-बार इंफेक्शन होता रहता है।
कई बार कोई ऑपरेशन या इंफेक्शन के बाद या दवाईयों के अत्याधिक प्रयोग के कारण भी पेशाब में जलन/दर्द अथवा रूकावट जैसी समस्या हो सकती है। प्रोस्टेट होने के असली कारणों का पता अभी तक नहीं चल पाया है लेकिन कुछ कारण हैं जो कैंसर के इस प्रकार के लिए जोखिम कारक हैं जैसे धूम्रपान, मोटापा, सेक्स के दौरान फैला वायरस या फिर शारीरिक शिथिलता यानी की व्यायाम न करना प्रोस्टेट कैंसर का कारण हो सकता है। यदि परिवार में किसी को पहले भी प्रोस्टेट कैंसर हुआ है तो भी इस कैंसर के होने का जोखिम बना रहता है। ज्यादा वसायुक्त मांस खाना भी प्रोस्टेट कैंसर का कारण बन सकता है।