Wednesday, 24 June 2015

ज्यादा पसीना आता है सावधान हो जाएं


गर्मी में सामान्य पसीना आना तो ठीक है, लेकिन अधिक पसीना आना और सर्दी में भी पसीना आना एक समस्या हो सकती है। यह समस्या कई बार आपको दुर्गंध का शिकार बना कर आपको असहज कर सकती है। इस लक्षण को हाइपरहाइड्रोसिस कहा जाता है।
पसीना लगातार आए तो शारीरिक और मानसिक, दोनों तरह की असहजता पैदा हो सकती है। अत्यधिक पसीने से जब हाथ, पैर  और बगलें (कांख) तर हो जाती हैं तो इस स्थिति को प्राइमरी या फोकल हाइपरहाइड्रोसिस कहा जाता है। प्राइमरी हाइपरहाइड्रोसिस से 2-3 प्रतिशत आबादी प्रभावित है, लेकिन इससे पीडि़त 40 प्रतिशत से भी कम व्यक्ति ही डॉक्टरी सलाह लेते हैं। इसके ज्यादातर मामलों में किसी कारण का पता नहीं चल पाता। हो सकता है कि यह समस्या परिवार में पहले से चली आ रही हो। यदि अत्यधिक पसीने की शिकायत किसी डॉक्टरी स्थिति के कारण होती है तो इसे सेकेंडरी हाइपरहाइड्रोसिस कहा जाता है। पसीना पूरे शरीर से भी निकल सकता है या फिर यह किसी खास स्थान से भी आ सकता है। दरअसल, हाइपरहाइड्रोसिस से पीडि़त व्यक्तियों को मौसम ठंडा रहने या उनके आराम करने के दौरान भी पसीना आ सकता है।

बचने के उपाय

प्रभावित व्यक्ति बोटॉक्स के नाम से मशहूर बोटुलिनम टॉक्सिन टाइप ए का कांख में इस्तेमाल करते हुए पसीने की शिकायत से बच सकते हैं। यह उसके अतिसक्रिय पसीना ग्रंथि की तंत्रिकाओं पर काम करते हुए उन्हें शांत करता है, जिससे पसीना आने की रफ्तार बहुत हद तक कम हो जाती है।

बोटॉक्स भी हो सकता है इलाज

बाजुओं से आने वाले पसीने, जिसे प्राइमरी एक्सिलरी हाइपरहाइड्रोसिस कहा जाता है, के इलाज के लिए बोटॉक्स को एफडीए से मंजूरी मिली हुई है। कम मात्रा में विशुद्घ बोटुलिनम टॉक्सिन का इंजेक्शन बाजुओं में लगाने से पसीने के लिए जिम्मेदार तंत्रिकाएं अस्थायी रूप से अवरुद्घ हो जाती हैं। एक्सिलरी हाइपरहाइड्रोसिस की स्थिति के लिए यह सर्वश्रेष्ठ विकल्प है, जिससे चार-महीने तक राहत मिल जाती है और शरीर की दुर्गंध से भी निजात मिल जाती है।
ललाट या चेहरे पर अत्यधिक पसीना आने जैसी फोकल हाइपरहाइड्रोसिस की स्थिति में मेसो बोटॉक्स सबसे अच्छा उपाय है। इसमें पसीने की रफ्तार कम करने के लिए त्वचा के संवेदनशील टिश्यू (डर्मिज) में बोटॉक्स के पतले घोल का इंजेक्शन लगाया जाता है।

अन्य उपाय

एंटीपर्सपिरेंट- अत्यधिक पसीने पर काबू पाने के लिए तेज एंटी-पर्सपिरेंट का इस्तेमाल किया जा सकता है, जो पसीने की नलिकाओं को अवरुद्घ कर देते हैं। बाजुओं में पसीने के शुरुआती इलाज के लिए 10 से 20 प्रतिशत अल्युमीनियम क्लोराइड हेक्साहाइड्रेट की मात्र वाले उत्पादों का इस्तेमाल किया जा सकता है। कुछ मरीजों को अल्युमीनियम क्लोराइड की अत्यधिक मात्रा वाले उत्पादों का इस्तेमाल करने की भी सलाह दी जा सकती है। ये उत्पाद प्रभावित हिस्सों में रात के वक्त इस्तेमाल किए जा सकते हैं। एंटीपर्सपिरेंट से त्वचा में खुजलाहट हो सकती है। इसकी अधिकता कपड़ों को नुकसान पहुंचा सकती है।
याद रखें - डियोडरेंट से पसीना रुकता नहीं है, बल्कि शरीर की दुर्गंध कम होती है।
दवाएं - ग्लाइकॉपीरोलेट (रोबिनुल, रोबिनुल-फोर्ट) जैसी एंटीकोलिनर्जिक दवाएं पसीने की ग्रंथियों को सक्रिय रहने से रोकती हैं। हालांकि कुछ मरीजों पर असरकारी रहने के बावजूद इन दवाओं के असर का अध्ययन नहीं किया गया है। इसके दुष्परिणाम में ड्राई माउथ, चक्कर तथा पेशाब संबंधी समस्याएं हो सकती हैं।
ईटीएस (एंडोस्कोपिक थोरेसिस सिंपैथेक्टोमी)- गंभीर मामलों में सिंपैथेक्टोमी नामक न्यूनतम शल्यक्रिया पद्घति अपनाने की सलाह तब दी जाती है, जब अन्य उपाय विफल हो जाते हैं। यह उपाय उन मरीजों पर आजमाया जाता है, जिनकी हथेलियों पर सामान्य से ज्यादा पसीना आता है। इसका इस्तेमाल चेहरे पर अत्यधिक पसीना आने की स्थिति में भी किया जा सकता है।

Sunday, 21 June 2015

इस मौसम में ऐसे बचाएं स्किन और आंखें


मौसम का मिजाज बदलने के साथ अब संक्रामक रोगों के पैर पसारने का खतरा मंडराने लगा है। भयंकर गर्मी और लू के थपेड़ों के बीच अब काफी छिटपुट बरसात तो कभी उमस के बीच कई तरह की बीमारी होना आम बात है। इनमें सबसे ज्यादा स्किन और आंखों की बीमारियां लोगों को परेशान करती हैं।
ऐसे में चिकित्सक त्वचा पर विशेष ध्यान देने और सफाई पर जोर दे रहे हैं, जिससे स्किन सम्बन्धी रोगों से बचा जा सके और ये फैले नहीं वहीं इस मौसम में सबसे ज्यादा आंखों पर ध्यान देने की सलाह भी विशेषज्ञ दे रहे हैं। डॉक्टरों के मुताबिक बदलते मौसम में अक्सर लोग अपनी आंख को लेकर लापरवाह हो जाते हैं, जो कभी-कभी बड़ी समस्या की वजह बन जाता है। इस मौसम में आंखों में वायरल संक्रमण होने का खतरा ज्यादा रहता है। चिकित्सकों के मुताबिक कुछ छोटी-छोटी बातों को ध्यान में रखकर इन परेशानियों से बचा जा सकता है।
चिकित्सकों के मुताबिक बैक्टीरिया, वायरस और दूसरी एलर्जी गर्मियों और बरसात के मौसम में पनपती है जो आंखों को अपना शिकार बना सकती है। अगर ऐसा संक्रमण हो जाए तो फौरन डॉक्टर की सलाह लें। इसे अनदेखा करने पर आंखों के कार्निया को नुकसान पहुंच सकता है इन संक्रमण से बचने के लिए कुछ उपाय राहत दे सकते हैं।
  • आंखों को मलने से बचें और किसी दूसरे का इस्तेमाल किया हुआ तौलियां न लें।
  • हाथों को हमेशा साफ रखें।
  • अपने 'कॉन्टैक्ट लैंसÓ को अच्छे से साफ करके उपयोग में लाएं।
  • धूप निकलने पर चश्मे का इस्तेमाल करें, चश्में केवल धूप से ही नहीं बल्कि धुएं और गंदगी से होने वाली एलर्जी से भी बचाते हैं।
  • पालतू जानवरों को न छूएं और उन्हें बिस्तर पर न चढऩे दें।
  • मेकअप का सामान किसी के साथ न बांटे।
  • गर्मी और बरसात के दौरान आंखों की सफाई पर विशेष ध्यान दें।

Thursday, 18 June 2015

होम्योपैथिक और ज्वर


ज्वर या बुखार हमारे घरों मे सबसे ज्यादा होने बाली बीमारी है। बुखार कई प्रकार के और कई कारणों से होता है। साधारण ज्वर - यह कई कारणों से होता है। यह सांघातिक नही होता है, शरीर का तापक्रम 104-105 तक पहुँच जाता है। हाथ पैरों मे काफी दर्द, तेज सिरदर्द होना, कभी कभी वमन होना, बेचैनी या काफी सुस्ती होना, प्यास का होना या ना होना, पसीना आना, आदि लक्षण होते हैं। साधारणतया यह ज्वर 5 से 10 दिनों तक बना रहता है। ज्वर होने के कारणों के आधार पर इसे निम्न प्रकार में बांटा गया है -
  •     अचानक मौसम परिवर्तन के कारण होने वाला साधारण बुखार
  •     ठंड लगने के कारण होने वाला ज्वर
  •     लू लगने के कारण होने वाला ज्वर
  •     वर्षा में भींगने के कारण होने वाला ज्वर
  •     पेट की गड़बडिय़ों के कारण होने वाला ज्वर
  •     घाव, फोड़ों के पकने के कारण होने वाला ज्वर
  •     अत्यधिक शोक, या दु:ख के कारण होना

ज्वर का ईलाज

एकोनाइट

अचानक होने वाले ज्वर की प्रथम दवा है। अभी थोड़ी देर पहले बच्चा/आदमी स्वस्थ था, बीमारी का कोई भी लक्षण का नामोनिशान नहीं था और अचानक हाथ पैर गर्म हो जाते है, शरीर का तापक्रम बढ जाता है, सरदर्द एवं बेचैनी लगने लगती है।रोगी कहता है कि मैं अब नहीं बचुंगा। अक्सर गाँवों में इसे ही लोग कहने लगते है कि 'नजर लग गईÓ इस हालत में एकोनाइट -30/200 का 2-2 बूँद दवा की दो खुराक 15-15 मिनट के अन्तर से दे दें। रोगी की हालत में तत्काल लाभ होगा। तथाकथित नजर का लगना उतर जायेगा।

ब्रायोनिया

रोग के शुरुआत में यदि एकोनाइट नहीं दिया जा सका तो ज्वर का लक्षण बदल जाता है। रोगी चुपचाप पड़ा रहता है, शरीर (हाथ पैरों ) मे दर्द रहता है, आँखें, कनपटी और सिर में काफी दर्द होता है। यह दर्द हिलने डुलने के कारण, यहाँ तक कि आँखें खोलने के कारण भी सिर का दर्द बढ जाता है। मुँह का स्वाद कड़वा रहता है। जीभ के उपर सफेद/पीला लेप जैसा चढ़ा रहता है। देर देर मे ज्यादा पानी पीता है (1-2 गिलास) पीता है। मुँह सुखा रहता है कब्ज रहता है। ब्रायोनिया - 30/200 का 2-2 बुंद दवा जीभ पर तीन तीन घंटे के अन्तराल पर दें। ज्वर का कारण अचानक ठंड लगना भी होता है।

युपेटोरियम पर्फोरेटम

कुछ ज्वर मे दर्द शरीर के हड्डीयों मे ज्यादा होता है। इसे बोलचाल की भाषा मे हड्डीतोड़ बुखार भी कहते है। हाथ पैंरों की हड्डियों में तेज दर्द इसका प्रधान लक्षण है। इसके साथ जोरों का सिर दर्द, जाड़ा लगना, कँपकँपी होना, यकृत की जगह पर दर्द, जीभ पीली मैल से ढँकी आदि इसके ज्वर के द्वितीयक लक्षण है।

रस टाक्स

वर्षा मे भींगने या ज्यादा स्नान करने या बरसात के मौसम मे होने वाले ज्वर की यह स्श्चद्गष्द्बद्घद्बष् क्रद्गद्वद्गस्र4 है। यदि ज्वर के साथ खाँसी और प्यास हो तो सीधे सीधे इसे आजमाएं। शरीर मे विशेषकर कमर मे दर्द रहता है। ब्रायोनिया के विपरीत इसका दर्द आराम करने से बढ़ता है। रोगी बिस्तर से उठकर टहलने के लिए मजबुर होता है या बिस्तर पर ही करवट बदलता रहता है।

जेल्सिमियम

सुस्ती इसका प्रधान लक्षण है। रोगी ज्वर की तीब्र अवस्था में भी चुपचाप सोया रहता है। प्यास प्राय: नहीं रहती है। तमतमाया हुआ लाल रंग का चेहरा , छलछलायी जल भरी आँखें, लगातार छींकें आना, नाक से लगातार पानी आना आदि इसके मुख्य लक्षण है। रात मे ज्वर बढ जाना, और सुबह में बिना पसीना आये ज्वर उतर जाना, काफी चिढचिढापन के साथ साथ सिर्फ सोये रहने की इच्छा रहना, शरीर मे कोई ताकत नहीं मिलना (कमजोरी) आदि इस दवा कि ओर इशारा करते है। इस दवा की 2-2 बुन्द तीन तीन घंटे के अन्तराल पर दें।
डॉ. ए. के. द्विवेदी
बीएचएमएस, एमडी (होम्यो) प्रोफेसर, एसकेआरपी गुजराती होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज, इंदौर
संचालक, एडवांस्ड होम्यो हेल्थ सेंटर एवंहोम्योपैथिक मेडिकल रिसर्च प्रा. लि., इंदौर

Tuesday, 16 June 2015

रेन जैकेट से बनें स्टाइलिश


बारिश में मस्ती करना चाहती हैं और स्टाइल भी दिखाना चाहती हैं, तो वॉटर प्रूफ जैकेट ट्राई करें। बेशक यह आपके लिए दोनों मामलों में बेहतरीन साबित होगी।
मॉनसून चल रहा है, तो इसका मतलब यह नहीं कि आप इंतजार करें कि कब बारिश बंद हो और आप बाहर निकलें। आप भी ले सकती हैं इस मौसम का भरपूर मजा, लेकिन उससे पहले खरीद लें वॉटरपूफ जैकेट। एक अलग तरह की जैकेट इस बारिश में आपकी शख्सियत को एकदम अलग अंदाज देगी।

इको रेन सेल जैकेट

ये जैकेट स्पोर्ट्स वुमन के लिए बेहतरीन हैं। खास स्टाइल पाने के लिए इनका इस्तेमाल कॉलेज गोइंग गर्ल्स भी खूब कर रही हैं। ये रिसाइकल पॉलिएस्टर से तैयार की जाती हैं और इसमें हुड व सिंगल इंटरनल सिक्युरिटी पॉकेट होता है। बाहरी खूबसूरती के लिए इसमें डिजाइन किए गए दो हैंड वॉर्मर बारिश में पॉकेट्स में हाथ डालकर घूमने की आपकी इच्छा को भी पूरा कर देंगे।

रेन शेडो जैकेट

यह लाइटवेट होती है और बॉडी पर फिट रहती है। इसमें आगे से जिप और आगे बने इसके दो पॉकेट्स में भी जिप लगी होती है। इसका रोल डाउन हुड का इस्तेमाल न केवल बारिश में, बल्कि तेज धूप में भी लोग खास स्टाइल पाने के लिए इस्तेमाल करते हैं। इसमें कुछ जैकेट्स के डिजाइंस लेयरिंग में भी लाए गए हैं। ये फेमिनन लुक पाने में आपकी खासी मदद करेंगी।

फेस वेंचर जैकेट

इनका हर डिजाइन लेयरिंग वाला होता है। ये बॉडी फिटेड हैं और इसके आगे के दो लंबे पॉकेट्स इसे ग्लैमरस लुक देते हैं। इसमें आप चाहें, तो फेस को ढककर रख सकती हैं। हैप लुक पाने में ये जैकेट्स आपकी खासी मदद करेंगी।

प्रीचिप जैकेट

हल्की बारिश के लिए ये जैकेट्स कम्फर्टेबल हैं। ये बेहद हल्की होती हैं और इसमें आगे से जिप लगी होती है। फ्रंट में बनी एक पॉकेट का साइज इतना बड़ा होता है कि इसमें पानी की एक बड़ी बोटल रखी जा सकती है।

रेन शील्ड जैकेट

इसे रेन सूट के नाम से भी जाना जाता है। यह हुड व बिना हुड दोनों में पसंद की जाती है। अगर बारिश न हो रही हो और होने की आशंका हो, तो भी इसे पहना जा सकता है। यह बॉडी टेम्परेचर को ठीक बनाए रखती है और आमतौर पर ब्राइट कलर्स में मिलती हैं।

डबल ब्रेस्ट जैकेट

प्रोफेशनल लोगों पर यह जैकेट बेहद जमती है। यह ऊपर से नीचे तक फुल चेन वाली होती है।

डिजाइंस ही डिजाइंस

भीड़ में अपनी छवि और पर्सनैलिटी को अलग दिखा पाना आसान काम नहीं है। लेकिन इस सीजन में आप ऐसा कर पाएंगी, सही जैकेट को चूज करके।

रेन फॉरेस्ट

जैकेट्स में कई डिजाइंस हॉट बने हुए हैं, लेकिन रेन फॉरेस्ट सबसे ज्यादा डिमांड में है। यह नायलोन से बनी हैं और ग्रीन कलर के कई शेड्स इसमें इस्तेमाल किए गए हैं।

फ्लावर्स

फ्लावर्स वाली जैकेट्स भी इन दिनों खूब छाई हुई हैं। ये ब्राइट कलर्स के कलर कॉम्बिनेशन में हैं।

स्ट्राइप्स

मल्टीकलर स्ट्राइप्स में आपको कई डिजाइंस मिल जाएंगे।
क्रोकोडाइल प्रिंट्स
क्रोकोडाइल प्रिंट्स में भी डिजाइंस कई तरह के पसंद किए जा रहे हैं। ये हल्के डिजाइन किए होते हैं। इन्हें प्रफेशनल लुक के लिए कैरी किया जा सकता है।

कलर्स

ये जैकेट्स ग्रीन, इलेक्ट्रिक ब्लू शेड्स, डीप पर्पल कलर, यलो, ऑरेंज में खूब पसंद की जा रही हैं। 

Monday, 15 June 2015

बारिश हो या गर्मी छतरी के बिना मजा नहीं आता


रिमझिम बरसती बूंदें हों या आग उगलता सूरज, छतरी दोनों ही मौसम में अपनी जरूरत का अहसास कराते हुए आपका बचाव करती है। फैशन का पर्याय बन चुकी रंगबिरंगी छतरियां आज से ही नहीं बल्कि सदियों से अलग-अलग रूप में अपने अस्तित्व का अहसास कराती रही हैं।
बारिश के मौसम में घर से बाहर निकलना हो तो हाथ छतरी की तलाश पहले करते हैं। अगर छतरी घर पर भूल गए और रास्ते में पानी बरस पड़ा तो मुंह से यही निकलता है 'काश, छतरी न भूले होते।Ó देवि अहिल्या विश्वविद्यालय की छात्रा अर्पिता सिंह कहती हैं 'गर्मी में छतरी धूप से बचाने के काम आती है। लेकिन बारिश में छतरी लगा कर चलने का मजा ही कुछ और होता है। पिछले साल बारिश के मौसम में मेरी छतरी गुम हो गई। मैंने दूसरी छतरी खरीदी क्योंकि इसके बिना बरसात और गर्मी में काम चलने वाला नहीं है।Ó
एक सरकारी कार्यालय में क्लर्क कांता दुबे कहती हैं मैंने तो ऑफिस में अपने दराज में एक छतरी रखी हुई है। बारिश में घर से निकलते समय तो छतरी ले सकते हैं लेकिन अगर भूल गए तो ऑफिस से लौटते समय मुश्किल हो जाती है। मेरा घर वैसे भी बस स्टैंड से दूर है। छतरी कब से अस्तित्व में आई यह कहना मुश्किल है। लेकिन प्राचीन इतिहास में राजा महाराजाओं के पीछे उनके अनुचरों के छतरी लेकर चलने का जिक्र मिलता है।
ऐतिहासिक तस्वीरों में भी महाराजाओं के सर पर छतरी लेकर चलते अनुचर नजर आते हैं। कहा जा सकता है कि किसी जमाने में छाता शाही सम्मान का भी प्रतीक होता था। अलग-अलग देशों में जरूरत के अनुसार, छतरियां अलग-अलग रूप धर कर लोगों के काम आती रहीं। भारत के साथ साथ मिस्र, यूनान तथा चीन की प्राचीन कलाकृतियों में छाते की छवि स्पष्ट तौर पर दिखाई देती है।
छतरी के महत्व को देखते हुए कुछ देशों ने एक दिन इसके नाम कर दिया है। इन देशों में 10 फरवरी को अम्ब्रेला डेज मनाया जाता है। छाते की एक दुकान के संचालक गिरधारीलाल गुप्ता कहते हैं 'पहले काले छाते आते थे जो बड़े होते थे और उन्हें फोल्ड नहीं किया जा सकता था। बुजुर्गों के लिए ये छाते छड़ी की तरह सहारा देने का काम भी करते थे। अब फोल्डिंग छाते आते हैं। इन्हें मोड़ कर आसानी से बैग में रखा जा सकता है।Ó
वह बताते हैं 'छातों की कीमत उनकी क्वालिटी के अनुरूप होती है। अब बारिश में दुपहिया वाहन चलाने वाले लोग बरसाती यानी रेन कोट लेना ज्यादा पसंद करते हैं। रेन कोट पहन कर दुपहिया वाहन चलाना आसान होता है जबकि छाते को संभालते हुए दुपहिया वाहन नहीं चलाया जा सकता।Ó अर्पिता कहती हैं कि 'तेज हवा में छतरी उलट भी जाती है।Ó वह कहती हैं 'फोल्डिंग छतरियां नाजुक होती हैं। तेज हवा में ये उलट जाती हैं।Ó
छतरी आम आदमी की जिंदगी का एक हिस्सा तो है ही, फिल्मों में भी इसने अपनी जगह बनाई है। फिल्म 'चालबाजÓ में श्रीदेवी और सनी देओल को पारदर्शी छतरी ले कर 'न जाने कहां से आई हैÓ गीत पर थिरकते देखा जा सकता है। वहीं 'कोई मिल गयाÓ में प्रीति जिंटा और रितिक रोशन छतरी लेकर 'इधर गयाÓ गीत पर बारिश में झूमते दिखाई देते हैं। अगर ग्वालियर के सिंधिया घराने की बात हो तो छतरी का मतलब बदल जाता है। सिंधिया राजमहल में एक हिस्से में समाधि स्थल है जहां छतरियों के नीचे सिंधिया राजवंश के दिवंगत सदस्यों की समाधियां हैं।

Sunday, 14 June 2015

बरसात में डाइट प्लान


मॉनसून का सीजन भले ही रोमांटिक और खुशनुमा होता है, लेकिन यह अपने साथ कई बीमारियां भी लेकर आता है। इस मौसम में लोग सबसे ज्यादा बीमार पड़ते हैं। बरसात के मौसम में खानपान में थोड़ी सी भी लापरवाही सेहत का बैंड बजा सकती है। ऐसे में यदि थोड़ी सावधानी बरती जाए तो आप खुद को स्वस्थ भी रख सकते हैं और मानसून का पूरा मजा उठा सकते है। इस अनहाइजीन मौसम में फूड प्लान या डाइट चार्ट बनाना बेहद जरूरी है।

बरसात में खानपान से जुड़ी इन बातों का ध्यान रखें- 

  • इस मौसम में दाल, सब्जिय़ां व कम वसा युक्त आहार खाएं।
  • बारिश में शरीर में वात यानी वायु की वृद्धि होती है, इसलिए हल्के व शीघ्र पचने वाले वाले व्यंजनों को ही खाएं।
  • अगर आप खाने के शौकीन हैं तो घर पर ही साफ-सुथरे तरीके से बनी चीजों को खाएं।
  • बरसात के मौसम में वातावरण में काफी नमी रहती है। जिसके कारण प्यास कम लगती है। लेकिन फिर भी पानी जरूर पीयें।
  • बरसात में नींबू की शिकंजी पीयें।
  • फलों को साबुत खाने के बजाय सलाद के रूप में लें। क्योंकि इस मौसम में फलों में कीड़ा होने की संभावना काफी अधिक रहती है और अगर आप उन्हें सलाद के रूप में काटकर खाएंगे तो आप यह देख सकेंगे कि कहीं फल भीतर से खराब तो नहीं है।

कैसा हो ब्रेकफास्ट, लंच और डिनर

  • ब्रेकफास्ट में ब्लैक टी के साथ पोहा, उपमा, इडली, सूखे टोस्ट या परांठे ले सकते है।
  • लंच में तले-भुने खाने की बजाय दाल व सब्जी के साथ सलाद और रोटी लें।
  • डिनर में वेजीटेबल, चपाती और सब्जी लें।
  • इस मौसम में गर्मागर्म सूप काफी फायदेमंद रहता है।  
  • दूध में रोजाना रात को हल्दी मिलाकर पीने से पेट और त्वचा दोनों स्वस्थ रहेंगे।
  • तरबूज, मौसम्बी, खरबूज आदि मौसमी फलों से आपको जरूरी पोषक तत्व मिल सकते हैं।

इन चीजों का करें परहेज

  • बरसात में गर्मागर्म पकौड़े और समोसा खाने को मन जरूर ललचाता है। लेकिन बात अगर सेहत की हो तो इनसे दूर रहने में ही आपकी भलाई है। 
  • गरिष्ठ भोजन, उड़द, अरहर, चौला आदि दालें कम खाएं।
  • दही से बनी चीजों का सेवन भी इस मौसम में कम करें तो बेहतर। 
  • इस मौसम में फलों के जूस का सेवन सोच-समझकर करें। बारिश में फल पानी में भीगते रहते हैं इससे फलों में रस की तुलना में पानी ज्यादा भर जाता है।
  • बरसात में चारों ओर हरी-भरी नजर आने वाली सब्जियों में कीड़े होने की आशंका ज्यादा रहती है। ऐसे में पत्तेदार सब्जियों के सेवन से बचें।
  • मैदे की चीजें, आइसक्रीम, मिठाई, केला,  अंकुरित अनाज आदि कम खायें।
  • बारिश के मौसम में स्नैक्स व कूल ड्रिंस्क का सेवन भी सेहत को नुकसान पहुंचा सकता है।
  • इस मौसम में सड़कों में कीचड़ और गंदगी का अंबार रहता है। ऐसे में सड़क के किनारे मिलने वाले खाने-पीने चीजों से दूर रहें।

Thursday, 11 June 2015

बरसात के मौसम में कहीं परेशान न करें बीमारियां


आयुर्वेद के मुताबिक मानसून में हमारी पाचन क्रिया कमजोर हो जाती है। इसका असर शरीर की पित्त और वात ऊर्जा पर पड़ता है। इससे आपकी पाचन क्रिया, प्रतिरक्षा प्रणाली और जीवन शक्तिभी कमजोर हो जाती है।
वात असंतुलन होने से शरीर में दर्द, सिरदर्द और गैस जैसी समस्यायें हो सकती हैं। पित्त दोष होने से फंगल इंफेक्शन, यूरीनेरी ट्रेक्ट इंफेक्शन, त्वचा और गले में संक्रमण की परेशानी हो सकती है, लेकिन घबराने की कोई बात नहीं। कुछ बातों का खयाल रखकर आप बारिश के मौसम का पूरा मजा ले सकते हैं।

अगर आपको डायबिटीज है...

अपने पैरों का रखें खयाल

अगर आपको डायबिटीज है तो आपको अपने पैरों का अतिरिक्त खयाल रखने की जरूरत होती है। डायबिटीज के मरीजों की रक्तवाहिनियां कमजोर हो जाती हैं। इसका असर रक्तप्रवाह कम हो जाता है। इससे पैरों पर बुरा असर पड़ता है।

नंगे पैर न घूमें

यूं तो नंगे पैर कभी नहीं घूमना चाहिये। लेकिन, बारिशों के दिनों में तो ऐसा बिलकुल ही नहीं करना चाहिये। बरसात के दिनों में कई कीड़े मकौड़े घूमते रहते हैं। वे आपके पैरों पर काट सकते हैं। घर के बाहर तो नंगे पैर बिलकुल ही कदम भी न रखें।

पैरों को रखें साफ

अपने पैरों को अच्छी तरह धोयें और सुखायें। जूते पहनने से पहले पैरों पर एंटी-फंगल पाउडर डालें। अगर आपको डायबिटीज है, तो कभी भी ऐसे जूते न पहना करें जो आपके पैरों में सही से फिट न आते हों।

मसाज है बेहतर

अपने पैरों की मसाज करते रहें। रात को सोने से पहले अपने पैरों की तेल से अच्छी तरह मालिश करें। इससे आपके पैरों की सेहत अच्छी रहती है।

अगर आपको अस्थमा है


आहार का रखें ध्यान

मानसून के दिनों में अस्थमा के मरीजों को अपने आहार का विशेष ध्यान रखना पड़ता है। रात के समय खासतौर पर दही, अचार और भारी भोजन के सेवन से बचें। इससे आपकी परेशानी बढ़ सकती है।

प्राणायाम करें

प्राणायाम आपके लिए बहुत फायदेमंद हो सकता है। प्राणायाम के जरिये आप अपनी सांसों की गति को नियंत्रित कर सकते हैं। इससे अस्थमा अटैक की आशंका कम होती है। इसके साथ ही आपको पैदल चलने जैसे हल्के व्यायाम भी करने चाहिये।

सफाई रखें

साफ-सफाई का विशेष रूप से ध्यान रखें। अलमारी और अन्य बंद स्थानों पर कवक जमा न होने दें। पान और नीम के पत्ते घर और अलमारी में रखें, इससे आपको सांस लेने में आसानी होगी।

अगर आपको लिवर की समस्या है

आहार हो सही

जिन लोगों को लिवर संबंधित कोई परेशानी है, बारिशें उनके लिए किसी मुसीबत से कम नहीं होती। बरसात में यूं ही हमारी पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है। ऐसे मौसम में आपको फल, खिचड़ी, ठंडे सूप और नारियल पानी आदि का सेवन अधिक करना चाहिये। ये आहार पचने में आसान होते हैं। और लिवर के मरीजों के लिए ये काफी फायदेमंद होते हैं।

शराब के सेवन से रहें दूर

शराब का सेवन आपके लिए अच्छा नहीं। मानसून के दिनों में खासकर आपको उच्च प्रोटीन, एल्कोहल और तला हुआ भोजन नहीं करना चाहिये। इनका सेवन आपकी सेहत पर विपरीत असर डालने का काम करता है।

अगर आपकी त्वचा है संवेदनशील


मूंग और चना, फायदा दे घना

मूंग की दाल और चने का पाउडर समान मात्रा में लें। इस पाउडर को पानी या दूध में मिला लें। इस मिश्रण से दिन में दो बार चेहरा धोयें। इससे आपके चेहरे पर जमा गंदगी तो साफ होगी ही साथ ही त्वचा भी सुरक्षित रहेगी।

पपीता, शहद और दूध

पपीते, शहद और दूध का मिश्रण तैयार करें। इसे अपने चेहरे पर लगायें, और 15 मिनट के लिए छोड़ दें। इसके बाद सामान्य पानी से चेहरा धो दें।

मसाज

सप्ताह में एक बार आयुर्वेदिक तेल से बॉडी मसाज करवायें। इससे त्वचा में रक्त संचार सुचारू होगा और साथ ही त्वचा के रोम छिद्र भी खुलेंगे।

बेसन से करें साफ

अपने चेहरे को बेसन, हल्दी और कच्चे दूध के मिश्रण से साफ करें। इसे अपने चेहरे पर लगायें और 15 मिनट के लिए छोड़ दें। इसके बाद इसे साफ पानी से धो लें। इससे आपका चेहरा निखर जाएगा।  

Tuesday, 9 June 2015

हृदय समस्या से निजात पाएं


खानपान में पौष्टिकता की कमी और अनियमित दिनचर्या के कारण दिल के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है, दिल के दौरे का शिकार उम्रदराज लोग ही नहीं युवा भी हो रहे हैं।
अनियमित दिनचर्या और खानपान में लापरवाही के कारण दिल के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। 'सर्कुलेशनÓ जर्नल में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक जो लोग अपने आहार में अत्यधिक वसा, नमक, अंडे और मांस खाते हैं, दूसरों के मुकाबले उनका दिल बहुत जल्दी बीमार हो जाता है और उन्हें दिल का दौरा पडऩे का जोखिम 35 प्रतिशत अधिक होता है। हृदय की समस्याओं के उपचार के लिए वैकल्पिक चिकित्सा का प्रयोग कर सकते हैं।

ओट्स खायें

जो लोग सुबह के नाश्ते में ओट्स का सेवन करते हैं, उनमें दिल का दौरा पडऩे का जोखिम के साथ दिल की अन्य बीमारियों के होने का खतरा कम होता है। ओट्स में घुलनशील रेशे होते हैं। ये घुलनशील रेशे लो-डेंसिटी लीपोप्रोटीन (एलडीएल) या बुरे कोलेस्ट्रॉल को कम करते हैं। इसके अलावा ओट्स रक्त नलिकाओं में जमी वसा को बाहर निकालने में मदद करते हैं।

पालक खायें

दिल की बीमारियों से बचने के लिए पालक का सेवन कीजिए। पालक में विटामिन ्य भरपूर मात्रा में पाया जाता है, जो दिल को बीमारियों से बचाता है। पालक में फाइबर होता है जो एलडीएल कोलेस्ट्रॉल के स्तर को घटाता है।

मेथी का सेवन करें

मेथी में विटामिन ्य पाया जाता है। इसके अलावा इसमें फाइबर भी होता है जो बुरे कोलेस्ट्रॉल का स्तर घटाता है। यह फोलेट का स्रोत होने के कारण होमोसिस्टीन नामक एमिनो एसिड को घटाने में मदद करता है जो एथिरोस्क्लोरोसिस (इस बीमारी में धमनी की दीवारें मोटी हो जाती है और रक्त के सचल प्रवाह में समस्या होती है) जैसे रोगों को होने से रोकता है।

टमाटर खायें

हृदय संबंधी समस्या में टमाटर का सेवन बहुत फायदेमंद होता है। टमाटर में लाइकोपीन, बीटा-कैरोटीन, फोलेट, पोटैशियम, विटामिन सी, फ्लेवनाइड और विटामिन ई होते हैं, जो एलडीएल कोलेस्ट्रॉल, होमोसिस्टीन का स्तर कम कर रक्त संचार को ठीक करने में मदद करते हैं।

वाइन का सेवन

दिल को स्वस्थ रखने और दिल को बीमारियों से बचाने के लिए वाइन का सेवन कीजिए। कई शोधों में यह बात सामने आ चुकी है कि वाइन का सेवन दिल की बीमारियों से बचाता है। लेकिन इसका अधिक सेवन करने से बचें।

शिमला मिर्च खायें

शिमला मिर्च कई रंग के होते हैं, ये खाने में रंग लाने के साथ-साथ हृदय को स्वस्थ रखने में भी मदद करते हैं। इसमें विटामिन बी1 ,बी2 और बी6, विटामिन सी, फोलेट और फाइबर अधिक मात्रा में पाया जाता है, जो बुरे कोलेस्ट्रॉल और होमोसिस्टीन को कम करने में मदद करते हैं।

गाजर है फायदेमंद

गाजर में कैरोटिनॉइड, विटामिन ए और सी, फाइबर प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। इसमें कैरोटिनॉइड और विटामिन सी फ्री रैडिकल्स से रक्त धमनी को नुकसान होने से बचाते हैं। फाइबर कोलेस्ट्रॉल के सोखने की प्रक्रिया को मजबूत करके हृदय स्वास्थ्य को बेहतर करता है।

मछली का सेवन करें

मछली का सेवन करने से दिल मजबूत होता है और बीमारियों से बचाव होता है। मछलियों में ओमेगा-3 फैटी एसिड काफी मात्रा में पाए जाते हैं, जो हमारे गुड कोलेस्ट्रॉल के स्तर को बढ़ाकर दिल को स्वस्थ रखते हैं।

तनाव से बचें

तनाव दिल का सबसे बड़ा दुश्मन है, इसलिए दिल को बीमारियों से बचाने के लिए जरूरी है कि तनाव से दूर रहें। तनाव लेने से रक्त संचार प्रभावित होता है, दिल के दौरे के लिए तनाव भी जिम्मेदार है।

वजन रखें संतुलित

अधिक वजन रहने से हृदय की बीमारियों के होने का खतरा बढ़ जाता है, इसलिए वजन को नियंतत्रण में रखना बहुत जरूरी है। ऐसी डाइट लें, जिसमें वसा कम हो और फल-सब्जियों की मात्रा ज्यादा हो। इसके नियमित रूप से व्यायाम को अपनी दिनचर्या में शामिल करें।

Thursday, 4 June 2015

सिर में रूसी की जटिल समस्या


सिर में रूसी का होना एक आम समस्या है, जिससे हममें से हर कोई परेशान रहता है। जब यह रूसी हद से ज्यादा बढ़ जाती है और हमारे कपड़ों कर गिरने लगती है, तब कई बार इस समस्या के कारण हमें दूसरों के सामने शर्मिंदा भी होना पड़ता है।
आजकल विज्ञापनों में दिखाए जाने वाले महँगे और रूसी हटाने का दावा करने वाले शैंपुओं से हमारे सिर की रूसी तो नहीं जाती परंतु हमारे सिर के बचे-कुचे बाल जरूर चले जाते हैं। यदि सिर में रूसी हो तो इससे बाल झडऩे लगते हैं व उनकी वृद्धि रुक जाती है।

क्या है रूसी का कारण

बालों में तेल नहीं लगाना, कई दिनों तक सिर नहीं धोना, सिर की त्वचा में संक्रमण होना आदि सिर में रूसी होने के सामान्य कारण हैं।

क्या है उपचार

रूसी को दूर करने के कई घरेलू उपचार हैं, जिनसे इस समस्या से आसानी से निजात पाई जा सकती है। रूसी से निजात पाने के लिए आप निम्न उपाय करें -
  • आँवला, रीठा, शिकाकाई तीनों की बराबर मात्रा लेकर इससे तीन गुना पानी में इन्हें धीमी आँच पर खूब उबालें। जब पानी पहले से आधा हो जाए तब इस पानी को छानकर इसे शैंपू की तरह इस्तेमाल करें।
  • केस्टर ऑइल और जैतून का तेल दोनों को बराबर मात्रा में लेकर उसे गुनगुना गर्म करके इस तेल से बालों की जड़ों में मसाज करें।
  • रात को मसाज करने के बाद सुबह एक चम्मच आँवला पावडर में एक अंडा मिलाकर इस मिश्रण को बालों की जड़ों में आधे घंटे लगाकर छोड़ दें। इसके बाद बाल धो लें।
  • अपने भोजन में सलाद, फल व हरी सब्जियों को अवश्य शामिल करें।
  •  मेथीदाना हमारे पेट व बाल दोनों के लिए लाभकारी होता है। रात को मेथीदाना पानी में भिगोकर सुबह उसे पीसकर उस पेस्ट को बालों की जड़ों में अच्छी तरह लगाकर कुछ देर बाद बाल धो लें। इससे बाल काले व चमकदार बनते हैं।
  • जैतून के तेल में शहद व दालचीनी पावडर मिलाकर इस मिश्रण को भी सिर की त्वचा पर लगाने से रूसी व बाल झडऩे की समस्या दूर होती है।

Monday, 1 June 2015

बुखार पर सीधा वार


रिमझिम फुहारों के साथ बरसात का मौसम अपने साथ कई तरह की बीमारियां भी लाता है, जिनमें बुखार बड़ा कॉमन है। डेंगू के मामले भी बढ़ रहे हैं। डेंगू, टायफाइड और मलेरिया के बारे में आइए विस्तार से जानें-

क्या है बुखार

जब हमारे शरीर पर कोई बैक्टीरिया या वायरस हमला करता है तो शरीर अपने आप ही उसे मारने की कोशिश करता है। इसी मकसद से शरीर जब अपना टेम्प्रेचर बढ़ाता है तो उसे बुखार कहा जाता है। अगर शरीर का तापमान सुबह के समय 99 डिग्री फेरेनहाइट से ज्यादा और शाम के वक्त 99.9 डिग्री फेरेनहाइट से ज्यादा है, तो बुखार माना जाता है। अब 98.4 नॉर्मल टेम्प्रेचर का कॉन्सेप्ट बदल चुका है। मलेरिया और डेंगू में बुखार 101 से लेकर 103 डिग्री फेरेनहाइट तक पहुंच जाता है, जबकि वायरल में बुखार की रेंज को बता पाना काफी मुश्किल होता है।

खुद क्या करें

बुखार अगर 102 डिग्री तक है कोई और खतरनाक लक्षण नहीं हैं तो मरीज की देखभाल घर पर ही कर सकते हैं। इसमें तीन चार दिन तक इंतजार कर सकते हैं। मरीज के शरीर पर सामान्य पानी की पट्टियां रखें। पट्टियां तब तक रखें, जब तक शरीर का तापमान कम न हो जाए। अगर इससे ज्यादा तापमान है तो फौरन डॉक्टर को दिखाएं।
मरीज को एसी में रख सकते हैं, तो बहुत अच्छा है, नहीं तो पंखे में रखें। कई लोग बुखार होने पर चादर ओढ़कर लेट जाते हैं और सोचते हैं कि पसीना आने से बुखार कम हो जाएगा, लेकिन इस तरह चादर ओढ़कर लेटना सही नहीं है।
मरीज को हर 6 घंटे में पैरासिटामॉल की एक गोली दे सकते हैं। यह मार्केट में क्रोसिन, कालपोल  आदि ब्रैंड नेम से मिलती है। दूसरी कोई गोली डॉक्टर से पूछे बिना न दें। बच्चों को हर चार घंटे में 10 मिली प्रति किलो वजन के अनुसार इसकी लिक्विड दवा दे सकते हैं। दो दिन तक बुखार ठीक न हो तो मरीज को डॉक्टर के पास जरूर ले जाएं।
साफ-सफाई का पूरा ख्याल रखें। मरीज को वायरल है, तो उससे थोड़ी दूरी बनाए रखें और उसके द्वारा इस्तेमाल की गई चीजें इस्तेमाल न करें। मरीज को पूरा आराम करने दें, खासकर तेज बुखार में। आराम भी बुखार में इलाज का काम करता है।
मरीज छींकने से पहले नाक और मुंह पर रुमाल रखें। इससे वायरल होने पर दूसरों में फैलेगा नहीं।

बुखार कब जानलेवा

सभी बुखार जानलेवा या बहुत खतरनाक नहीं होते, लेकिन अगर डेंगू में हैमरेजिक बुखार या डेंगू शॉक सिंड्रोम हो जाए, मलेरिया दिमाग को चढ़ जाए, टायफायड का सही इलाज न हो, प्रेग्नेंसी में वायरल हेपटाइटिस (पीलिया वाला बुखार) या मेंनिंजाइटिस हो जाए तो खतरनाक साबित हो सकते हैं।

बच्चों का रखें खास ख्याल

  • बच्चों का इम्यून सिस्टम कमजोर होता है इसलिए बीमारी उन्हें जल्दी जकड़ लेती है। ऐसे में उनकी बीमारी को नजरअंदाज न करें।
  • खुले में ज्यादा रहते हैं इसलिए इन्फेक्शन होने और मच्छरों से काटे जाने का खतरा उनमें ज्यादा होता है।
  • बच्चों को घर से बाहर पूरे कपड़े और जूते पहनाकर भेजें। मच्छरों के मौसम में बच्चों को निकर व टी-शर्ट न पहनाएं। रात में मच्छर भगाने की क्रीम लगाएं।
  • बच्चा बहुत ज्यादा रो रहा हो, लगातार सोए जा रहा हो, बेचैन हो, उसे तेज बुखार हो, शरीर पर रैशेज हों, उलटी हो या इनमें से कोई भी लक्षण हो तो फौरन डॉक्टर को दिखाएं।
  • आमतौर पर छोटे बच्चों को बुखार होने पर उनके हाथ-पांव तो ठंडे रहते हैं लेकिन माथा और पेट गर्म रहते हैं इसलिए उनके पेट को छूकर और रेक्टल टेम्प्रेचर लेकर उनका बुखार चेक किया जाता है। बगल से तापमान लेना सही तरीका नहीं है, खासकर बच्चों में। अगर बगल से तापमान लेना ही है तो जो रीडिंग आए, उसमें 1 डिग्री जोड़ दें। उसे ही सही रीडिंग माना जाएगा।
  • 10 साल तक के बच्चे को डेंगू हो तो उसे हॉस्पिटल में रखकर ही इलाज कराना चाहिए क्योंकि बच्चों में प्लेटलेट्स जल्दी गिरते हैं और उनमें डीहाइड्रेशन (पानी की कमी) भी जल्दी होता है।