Wednesday, 31 December 2014

एक वर्ष में मनते हैं कई नववर्ष


हमारा देश अनेकता में एकता की परंपरा को सहेज रहा है। यहां हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, जैन, पारसी के साथ अनेक धर्म और समुदायों के लोग अपनी-अपनी संस्कृति को निभाते हुए नया साल मनाते हैं। इन सबके अपने अलग-अलग त्योहार और रीति-रिवाज हैं। जिस प्रकार सभी समुदायों के कुछ विशेष पर्व हैं जिन्हें सभी एक साथ मिलकर मनाते हैं। उसी प्रकार प्रत्येक समुदाय के नए वर्ष भी अलग-अलग हैं और सभी एक-दूसरे के पर्वों का सम्मान करते हैं। अन्य पर्वों की तरह हर समुदाय के नववर्ष भी बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाए जाते हैं। आइए जानते हैं उनके बारे में।

चैत्र प्रतिपदा 

हिन्दू नववर्ष का प्रारंभ हिन्दी पंचांग के अनुसार चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से होता है। इसी दिन से वासंतेय नवरात्र का भी प्रारंभ होता है। हिन्दू नववर्ष का पंचांग विक्रम संवत से माना जाता है। एक साल में बारह महीने और सात दिन का सप्ताह विक्रम संवत से ही प्रारंभ हुआ है।

हिजरी सन 

मुस्लिम समुदाय में नया वर्ष मोहर्रम की पहली तारीख से मनाया जाता है। मुस्लिम पंचांग की गणना चांद के अनुसार होती है।

ओणम 

मलयाली समाज में नया वर्ष ओणम से मनाया जाता है। इस दिन प्रतिवर्ष विभिन्न सांस्कृतिक आयोजन किए जाते हैं। ओणम मलयाली माह छिंगम यानी अगस्त और सितंबर के मध्य मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन राजा बली अपनी प्रजा से मिलने धरती पर आते हैं। राजा बली के स्वागत के लिए घरों में फूलों की रंगोली सजाई जाती है और स्वादिष्ट पकवान बनाए जाते हैं।

पोंगल : सूर्य देव को अर्पित होता है प्रसाद 

तमिल नववर्ष पोंगल से प्रारंभ होता है। पोंगल से ही तमिल माह की पहली तारीख मानी गई है। पोंगल प्रतिवर्ष 14-15 जनवरी को मनाया जाने वाला बड़ा त्योहार है। चार दिनों का यह त्योहार भी नई फसल आने की खुशी में मनाया जाता है।

महाराष्ट्रीयन समाज का नववर्ष 

महाराष्ट्रीयन परिवारों में चैत्र माह की प्रतिपदा को ही नववर्ष की शुरुआत होना माना जाता है। इस दिन बांस में नई साड़ी पहनाकर उस पर तांबे या पीतल के लोटे को रखकर गुड़ी बनाई जाती है और उसकी पूजा की जाती है। गुड़ी को घरों के बाहर लगाया जाता है और सुख संपन्नता की कामना की जाती है।

नववर्ष बैसाखी 

गीत-संगीत की अनोखी परंपरा और खुशदिल लोगों से सजी है पंजाबियों की संस्कृति। पंजाबी समुदाय अपना नववर्ष बैसाखी में मनाते हैं। यह त्योहार नई फसल आने की खुशी में मनाया जाता है। बैसाखी के अवसर पर नए कपड़े पहने जाने के साथ ही भांगड़ा और गिद्दा करके खुशियां मनाई जाती हैं।

नवरोज का प्रारंभ 

पारसियों द्वारा मनाए जाने वाले नववर्ष नवरोज का प्रारंभ तीन हजार साल पहले हुआ। ऐसा माना जाता है कि इसी दिन फारस के राजा जमशेद ने सिंहासन ग्रहण किया था। उसी दिन से इसे नवरोज कहा जाने लगा। राजा जमशेद ने ही पारसी कैलेंडर की स्थापना की थी। नवरोज को जमशेदी नवरोज भी कहा जाता है।
दीपावली है नया साल : जैन समुदाय का नया साल दीपावली के दिन से माना जाता है। इसे वीर निर्वाण संवत कहा जाता है।

पड़वा से नया साल 

सभी समुदायों की तरह गुजराती बंधुओं का नववर्ष भी दीपावली के दूसरे दिन पडऩे वाली पड़वा के दिन खुशी के साथ मनाया जाता है। गुजराती पंचांग भी विक्रम संवत पर आधारित है। इस दिन तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं और एक-दूसरे को नववर्ष की शुभकामनाएं दी जाती हैं।

बंगाली समुदाय का नया वर्ष 

अपनी विशेष संस्कृति से जाने-पहचाने जाने वाले बंग समुदाय का नया वर्ष बैसाख की पहली तिथि को मनाया जाता है। यह पर्व नई फसल की कटाई और नया बही-खाता प्रारंभ करने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। एक ओर व्यापारी लोग जहां नया बही-खाता बंगाली में कहें तो हाल-खाता करते हैं तो दूसरी तरफ अन्य लोग नई फसल के आने की खुशियां मनाते हैं। इस दिन कई सांस्कृतिक आयोजन होते हैं और मिठाइयां बांटी जाती हैं।

सभी कहते हैं नया वर्ष मुबारक हो 

सभी समुदायों के साथ ही एक ऐसा नया साल है जिसे सभी वर्गों, समुदायों द्वारा मान लिया गया है। वह है अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार मनाया जाने वाला नया साल। जिसकी शुरुआत जनवरी में होती है। जनवरी में नए वर्ष 201५ का प्रारंभ हो गया है। आजकल इसी पंचांग को सर्वमान्य रूप से नए वर्ष की शुरुआत मान लिया गया है। सारे सरकारी कार्य और लेखा-जोखा इसी के अनुसार संचालित किए जाते हैं।

Thursday, 25 December 2014

किस तरह मिलेगी जीवन में 'शांतिÓ


ज्यादातर लोग भागदौड़ से भरा जीवन जीते हैं मगर उनमें से कुछ के चेहरे पर शांति झलकती है तो कुछ पर नहीं। कुछ के चेहरों पर तो हमेशा ही अशांति तैरती रहती है। आखिर ऐसा क्यूं?
जब हम मानसिक या शारीरिक रूप से थक जाते हैं तो शरीर और मन निढाल हो जाता है। कई दफे शरीर थका होता है, लेकिन मन नहीं, ठीक इसके विपरीत भी होता है। ऐसे में चेहरे पर शांति कहां से झलकेगी?
क्या वह अशांत था? रोग या शोक में भी प्रकृति हमें शांत कर देती है। फिर प्रकृति मुकम्मल तौर पर भी 'शांतÓ कर देती है। जब कोई मर जाता है तो हम कहते हैं कि वह 'शांतÓ हो गया। आखिर ऐसा क्यूं? इसका मतलब कि वह अशांत था? अरे भई शांत लोग भी तो मरते हैं।

क्या होती है अशांति 

बेचैनी या अशांति का कारण व्यक्ति का 'मनÓ होता है। मन का कारण विचार है, विचार का कारण जो हम देख-सुन रहे हैं वह है, अर्थात अशांति बाहर से भीतर मन में प्रवेश करती है। मन की व्यापकता को 'चित्तÓ कहते हैं।

चित्त की गति 

पागल के चित्त की गति तेज होती है। जो लोग ज्यादा बेचैन हैं उनके चित्त की गति भी तेज होती है, उनमें वाचलता और चालाकी के अलावा कुछ नहीं होता। इन चित्त वृत्तियों के निरोध को ही योग कहते हैं। नशा आदि करने के बाद भी चित्त की गति तेज हो जाती है। किसी भी प्रकार की चिंता से भी गति बढ़ जाती है। गति का बढऩा शारीरिक और मानसिक क्षरण का कारण बनता है।

क्या है चित्त 

पांचों इंद्रियों से जो भी ग्रहण किया गया है, उसका मन और मस्तिष्क पर प्रभाव पड़ता है। उस प्रभाव से ही 'चित्तÓ निर्मित होता है जो निरंतर परिवर्तित होने वाला होता है। जैसे कि एक स्थान पर कई कोण से प्रकाश डाला जाए और तब उस स्थान पर जो चीज पैदा होगी, उसे हम 'चित्तÓ मान लें।
कैसे हों शांत - जब हम चुप होते हैं तो उसे हम अपनी उदासी न समझें। चुप्पी स्वत: ही घटित होती है, उसका आनंद लें। आंखें मूंदकर गहरी सांस लें। सुबह और शाम पांच मिनट का ध्यान करें। हर तरह की बहस व्यर्थ होती है यह जान लें। क्रोध करने की आदत बन जाती है, इसे समझें। इसी तरह अशांत और बेचैन रहने की भी आदत होती है।

शारीरिक शांति 

स्वयं के शरीर का सम्मान करें। उस पर मन की बुरी आदतें न थोपें। उसकी सेहत का ध्यान रखें। पवित्रता बनाए रखने से शरीर शांत रहता है। यम, नियम, आसन और प्राणायाम के हलके से प्रयास से ही शरीर को शांति मिलती है।

मन की शांति 

मन को शांत रखने के लिए प्राणायम और ध्यान का अभ्यास करें। मानसिक द्वंद्व मन को अशांत करते हैं। मन की अशांति के कारण शरीर की सेहत खराब होना भी है। अंतत: अंग संचालन, शवासन, भ्रामरी प्राणायाम और विपश्यना ध्यान करें।

Tuesday, 23 December 2014

वजन कम करना है तो कीजिए सेक्स...


सेक्स एक प्रकार का व्यायाम है। इसके लिए खास किस्म के सूट, शू या महंगी एक्सरसाइज सामग्री की आवश्यकता नहीं होती। जरूरत होती है बस बेडरूम का दरवाजा बंद करने की। सेक्स व्यायाम शरीर की मांसपेशियों के खिंचाव को दूर करता है और शरीर को लचीला बनाता है। एक बार का हेल्दी सेक्स किसी थका देने वाले एक्सरसाइज या स्विमिंग के 10-20 चक्करों से अधिक असरदार होता है। सेक्स विशेषज्ञों के अनुसार मोटापा दूर करने के लिए सेक्स काफी सहायक सिद्ध होता है।

 390 बार चुंबन लेने से आधा किलो वजन कम

सेक्स से शारीरिक ऊर्जा खर्च होती है, जिससे चर्बी घटती है। एक बार के सेक्स में 500 से 1000 कैलोरी ऊर्जा खर्च होती है। सेक्स के समय लिए गए चुंबन भी मोटापा दूर करने में सहायक सिद्ध होते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार सेक्स के समय लिए गए एक चुंबन से लगभग 9 कैलोरी ऊर्जा खर्च होती है। इस तरह 390 बार चुंबन लेने से 1/2 किलो वजन घट सकता है।

क्योंकि स्वास्थ्य ही सेक्स का आधार है

विशेषज्ञों का कहना है कि वजन कम करने के लिए खाना छोडऩा तो दूर की बात है, एक सीमा से अधिक खाना कम कर देना भी स्वास्थ्य के लिए उचित नहीं है, क्योंकि स्वास्थ्य ही स्वस्थ सेक्स का आधार होता है। परफेक्ट फिगर की चाह  को हम एक बीमारी कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। जो दुबले हैं वे वजन बढ़ाने के लिए फैट्स आदि ज्यादा मात्रा में खाने लगते हैं और जो मोटे हैं वे वजन घटाने के लिए खाना-पीना छोड़कर डाइट व ड्रग्स लेने लगते हैं। दोनों ही बातें सेहत की दृष्टि से गलत है।
मधुमेह, अस्थमा व हृदयरोग इन जानलेवा रोगों के मूल में हैं अधिक स्टार्चयुक्त व फैट्स वाला भोजन व शारीरिक श्रम का अभाव। आज हम अपने पाचनतंत्र की डाइजेस्टिव कैपेसिटी से कई गुना अधिक खा रहे हैं। यह अतिरिक्त भोजन हमारे शरीर में तरह-तरह के विकार पैदा करता है। आधुनिक जीवनशैली के तहत वक्त-बेवक्त खाना मधुमेह, अस्थमा व हृदयरोग जैसी बीमारियों को जन्म देता है।
सुबह व शाम की सैर के साथ खुली हवा में व्यायाम से पाचनतंत्र के सभी विकार दूर होते हैं जिससे संपूर्ण शरीर हलका-फुलका, स्वस्थ व स्फूर्तिदायक बन जाता है। सुबह जल्दी उठकर खुली हवा में सांस लेने से फेफड़ों में स्वस्थ वायु का प्रवेश होता है। फेफड़े स्वस्थ रहने से न केवल हृदय को बल मिलता है बल्कि खांसी, दमा, श्वास रोग व एलर्जी आदि से भी छुटकारा मिलता है।
बदलती जीवनशैली में काम के प्रेशर के चलते स्त्री-पुरुष अपनी रूटीन लाइफ में इतने व्यस्त हो जाते हैं कि सेक्स जैसी महत्वपूर्ण क्रिया से दूर होते जाते हैं। उनकी सेक्सुअल इच्छा कम होती जाती है। पति-पत्नी में आकर्षण का अभाव अनेक पारिवारिक और सेक्स संबंधी समस्याओं को जन्म देता है।

Monday, 22 December 2014

बालों को बनाता है काला करी पत्ता और आंवले का तेल



असमय ही बाल सफेद होना आजकल आम बात है, जानना जरूरी यह है कि बालों का सफेद होने का कारण क्या है। क्यों मात्र 20 या 30 की उम्र में ही बाल सफेद होना शुरु हो जाते हैं। इसके कई कारण हो सकते हैं, जैसे खराब लाइफस्टाइल या फिर भोजन में सही प्रकार का पोषण न मिलना। अगर आप अपने सफेद बालों को काला करने के लिए हेयर डाई का प्रयोग करते हैं, तो उसे तुरंत ही बंद कर दें और प्राकृतिक नुस्खे आजमाएं। बालों में अगर साधारण तेल लगाते हैं तो उसकी जगह पर करी पत्ते और आंवले के तेल का प्रयोग करें। करी पत्ते वाला तेल बालों को काला करने में मददगार साबित होता है। इन तेलों का नियमित प्रयोग करने से आपके बालों में जान आ जाएगी और वह काले बनने लगेंगे।

करी पत्ता तेल

करी पत्ते का एक गुच्छा ले कर उसे साफ पानी से धो लें और सूरज की धूप में तब तक सुखा लें, जब तक कि यह सूख कर कड़ा न हो जाए। फिर इसे पाउडर के रूप में पीस लें अब 200 एम एल नारियल के तेल में या फिर जैतून के तेल में लगभग 4 से 5 चम्मच कड़ी पत्ती मिक्स कर के उबाल लें। दो मिनट के बाद आंच बंद कर के तेल को ठंडा होने के लिए रख दें। तेल को छान कर किसी एयर टाइट शीशी में भर कर रख लें। सोने से पहले रोज रात को यह तेल लगाएं और इससे अपने सिर की अच्छे से मसाज करें। अगर इस तेल को हल्की आंच पर गरम कर के लगाया जाए तो जल्दी असर दिखेगा। अगली सुबह सिर को नैचुरल शैंपू से धो लें। इसके आंवला ट्रीटमेंट को आप रोज या फिर हर दूसरे दिन आजमां सकते हैं। इससे आपको बहुत लाभ मिलेगा।

आंवला तेल बनाने की विधि

ताजा आंवला ले कर उसे छोटे टुकड़ों में काट लें और उसका बारीक पेस्ट बना लें। पेस्ट बनाते वक्त उसमें रोज वॉटर का भी प्रयोग कर सकते हैं। इस पेस्ट को अपने हेयर ऑयल के साथ मिक्स कर के किसी कपड़े या फिर ढक्कन से बिल्कुल कस के बांध दीजिए। अब आंवला को तेल के साथ बिल्कुल मिक्स हो जाने दीजिए, ऐसा होने में लगभग एक हफ्ता लगेगा। एक हफ्ते के बाद तेल को छान कर किसी साफ शीशी में भर लीजिए।
हफ्ते में दो बार जरूर लगाएं असमय सफेद होते हुए बालों को रोकने का आयुर्वेदिक उपचार प्रयोग करने का सही तरीका है कि आप इस तेल को हफ्ते में एक या दो बार जरूर लगाएं। अपनी उंगलियों को सिर पर हल्के-हल्के घुमाते हुए सिर पर तेल फैलाएं। सिर धोने से 40 मिनट पहले यह तेल लगाएं। इस विधि से यह तेल सफेद हो रहे बालों को काला करने में मदद करेगा। आंवला एक प्राकृतिक डाई के रूप में पुराने जमाने की महिलाओं द्वारा प्रयोग किया जाता था।

भोजन में शामिल करें करी पत्ता

यदि आप अपने भोजन में नियमित रूप से करी पत्ता शामिल करेंगे और जितना हो सके तनाव से दूर रहेंगे, तब इससे आपके बालों को काला होने में मदद मिलेगी।
आंवला अन्य अंगों के लिए भी फायदेमंद: आंवला बालों को ही नहीं आपके अन्य अंगों को भी काफी फायदा देता है। यदि आप आंवले का मुरब्बा या आंवले का अचार या अन्य कोई भी विधि से आंवला गृहण यानी खाते हैं तो आपके बालों के साथ-साथ आपकी आंखों और अन्य अंगों को भी काफी फायदा मिलेगा, इसे किसी भी रूप में जरूर खाएं।
असमय ही बाल सफेद होना आजकल आम बात है, जानना जरूरी यह है कि बालों का सफेद होने का कारण क्या है। क्यों मात्र 20 या 30 की उम्र में ही बाल सफेद होना शुरु हो जाते हैं। इसके कई कारण हो सकते हैं, जैसे खराब लाइफस्टाइल या फिर भोजन में सही प्रकार का पोषण न मिलना। अगर आप अपने सफेद बालों को काला करने के लिए हेयर डाई का प्रयोग करते हैं, तो उसे तुरंत ही बंद कर दें और प्राकृतिक नुस्खे आजमाएं। बालों में अगर साधारण तेल लगाते हैं तो उसकी जगह पर करी पत्ते और आंवले के तेल का प्रयोग करें। करी पत्ते वाला तेल बालों को काला करने में मददगार साबित होता है। इन तेलों का नियमित प्रयोग करने से आपके बालों में जान आ जाएगी और वह काले बनने लगेंगे।

Sunday, 21 December 2014

केले के पत्ते पर भोजन फायदे अनेक


केला हमारे पेट के लिए अच्छा माना जाता है, क्योकि यह पेट की आंतों को साफ करता है आंतों में मल या गंदगी चिपक नहीं पाती। केला खाने से पेट हमेशा साफ रहता है।
केले के साथ-साथ इसका पत्ता भी काफी लाभप्रद सिद्ध हुआ है।
केले का पेड़ भगवान विष्णु को अति प्रिय है इसी लिए हिंदु केले के पेड़ की पूजा भी करते हैं।
केले का पेड़ बड़ा और लम्बा होता है जो कि एक पवित्र पेड़ माना जाता है और इसके बीच में लम्बी धारी भी होती है। इसके अलावा भारत में लोग केले के पत्तों पर भोजन भी करते हैं।
यह एक ऐसा पेड़ है जो कि शादी, विवाह, मंदिर और अन्य उत्सवों पर भी इस्तेमाल किया जाता है। केले के पेड़ को घर के सामने और बगीचे में उगाना अच्छा माना जाता है। केले के पत्ते सही रूप में किचन में इस्तेमाल योग्य होता है। आप केले के पत्ते को नीचे रखकर इसमें प्लेट की भांति खाना परोस सकते हैं और बाद में इसे कंटेनर में डालने के लिए फोल्ड भी कर सकते हैं। यह नॉन स्टिकी लाइनर स्टीमर ट्रे के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है और बायो-डीग्रैडएबल भी है। केले के पेड़ का हर हिस्सा किसी न किसी रूप में उपयोगी है।
इसके उगते हुए तने के बीच का भाग खाने योग्य है। इसके फूल उबली सब्जी की भांति खाए जाते हैं। दक्षिण भारत में केले की पत्तियों और तने को पशुओं के चारे के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है। इससे प्राप्त फाइबर का इस्तेमाल चटाई, दरियां, मोटे पेपर और पेपर पल्प बनाने के काम आता है।

प्लास्टिक के बर्तन सेहत के लिए हानिकारक


प्लास्टिक निर्मित माइक्रोवेव बर्तनों के इस्तेमाल से मोटापा, प्रजनन क्षमता में गिरावट और कैंसर जैसे खतरनाक बीमारियों को बल मिल रहा है। एक रिपोर्ट के हवाले से यह खुलासा किया। रिसर्च यह स्पष्ट करती है कि प्लास्टिक के बहुत सारे बर्तनों को गर्म करने से उनमें से ऐसे रसायन निकलते हैं जो सेहत को नुकसान पहुंचाते हैं।
ये रसायन कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं को बढ़ाने का काम करते हैं जैसे कि मोटापा, पेट में संक्रमण, आईवीएफ, कैंसर, त्वचा विकार आदि. ऐसे में जहां तक हो सके हमें माइक्रोवेव में प्लास्टिक के बर्तनों के इस्तेमाल से बचना चाहिए क्योंकि अधिकतर लोगों को प्लास्टिक के ग्रेड के बारे में जानकारी नहीं होती है जो कि सेहत के लिए सुरक्षित हो। यहां तक कि जिन प्लास्किट के बर्तनों पर यह लिखा होता है कि वे माइक्रोवेव में इस्तेमाल के लिए सुरक्षित हैं उनकी सुरक्षा की जांच भी सिर्फ बर्तनों के लिए होती है उसमें गर्म किए जाने वाले खाने की नहीं। यानी प्लास्टिक के बर्तन पर सिर्फ माइक्रोवेव सेफ लिखा होने का यह मतलब नहीं है कि वह फूड सेफ भी हैं। ऐसे में लोग पैराडाइज माइक्रोवेबल फ्रीज बाउल, सेरामिक कांच या स्टेनलेस स्टील के बर्तनों के इस्तेमाल करना सेहतमंत होगा।

Saturday, 20 December 2014

बहुत फायदेमंद है नाखून काटना


लगभग हर कोई इस बात से वाकिफ हैं कि बढ़े हुए नाखूनों में गंदगी को जमा होती है जिनसे संक्रमण फैलने की संभावना रहती है। हम अपने शरीर का तो ख्याल रखते हैं, लेकिन पैरों और हाथों के नाखून की बात आती है तो शरीर के अनिवार्य लेकिन इस छोटे हिस्से की हमेशा उपेक्षा करते हैं। अपने नाखूनों को काटने या ट्रिम करने की बात आने पर इसे बोरिंग या कम महत्वपूर्ण मानकर इसे भूल जाते हैं या फिर नजरअंदाज कर देते हैं। इस लेख में विस्तार से जानिये क्यों नाखूनों को काटना जरूरी है और इन्हें नजरअंदाज करने से कौन-कौन सी बीमारियां हो सकती हैं।

नाखून काटने के स्वास्थ्य लाभ

देखा गया है कि लड़के अपने नाखूनों पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं देते। लेकिन नाखून के अंदर जमा गंदे बैक्टीरिया भयानक बीमारियां पैदा करते हैं। किसी भी प्रकार की नाखूनों की समस्याओं जैसे- अंतर्वर्धित नाखून, स्पून शेप नाखून और पिन्सर नाखून से बचने के लिए नाखूनों को ट्रिम करना बेहतर है। यहां नाखून काटने के बेहतरीन स्वास्थ्य लाभ के बारे में जानकारी दी गई है।

चोटों से बचाव

अगर आप अपने नाखून नहीं काटते हैं, तो आप वास्तव में खुद को नुकसान पहुंचा सकते हैं। कई बार नाखून नहीं काटने से दरवाजे या किसी और चीज पर लगने से चोट का कारण बन सकता है। यह निश्चित रूप से चोट के निशान पैदा कर सकता है। साथ ही यह बहुत दर्दनाक और कई महीनों तक खून के काले निशान छोड़ सकता है। इसलिए क्षति से बचने के लिए नियमित रूप से नाखूनों को काटना बेहतर होता है। 

बैक्टीरियल संक्रमण से बचाव

संक्रमण से बचने के लिए अपने नाखूनों की देखभाल करना महत्वपूर्ण होता है। अगर आप लगातार जूते या मोजे पहनते हैं तो आपके पैरों के नाखून बैक्टीरिया गठन को बढ़ा सकते हैं, क्योंकि पसीने के कारण आपके पैर ठीक प्रकार से सांस लेने में सक्षम नहीं होते हैं। इसलिए संक्रमण से छुटकारा पाने के लिए अपने नाखून को हमेशा काट कर रखें। साथ ही पैरों के नाखून के संक्रमण से बचने के लिए गंदे मोजे पहनने से बचें।

स्वच्छता

स्वस्थ और सुंदर नाखून अच्छे स्वास्थ्य और परिपक्वता की छाप देते है। लेकिन अगर आप अपने नाखूनों को नियमित रूप से नहीं काटते तो उनमें फंगल इंफेक्शन होने की संभावना रहती है। नियमित रूप से नाखून काटते रहने के स्वास्थ्य लाभों में फंगल इंफेक्शन से छुटकारा पाना भी है। खुजली और लाल दाने वाले इस संक्रमण को एथलीट फुट के नाम से भी जाना जाता है। आमतौर पर यह सफेद धब्बे के रूप में पैर की उंगलियों की बीच की त्वचा पर होता है। इस समस्या में नाखून प्रभावित होकर पीले रंग के दिखने लगते हैं।  इसलिए इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए नाखून काटने बेहतर है।

अंतर्वर्धित नाखून

यह एक गंभीर चिकित्सा हालत है जो नाखून ना काटने के कारण किसी को भी हो सकती है। यह दर्दनाक भी हो सकता है। इस समस्या को अंतर्वर्धित नाखून भी कहा जाता है। इस तरह के नाखून अधिकतर पैरों के अंगूठे में पाए जाते हैं। इस समस्या में दर्द और सूजन कुछ समय बाद संक्रमण में बदल सकता हैं। अगर आपका दर्द असहनीय है तो डॉक्टर से परामर्श करें। इसलिए नाखून चाहे हाथों के हो या फिर पैरों के, स्वास्थ्य लाभों के लिए उन्हें नियमित रूप से काटना अच्छा रहता है।

Thursday, 18 December 2014

भारतीय डेजर्ट में कैसे करें कैलोरी की गिनती



मिठाई किसी भी पार्टी, पूजा-पाठ, शादी के अवसरों की जान होती है। कोई भी त्यौहार मिठाई के बिना अधूरा माना जाता है। यहां तक कि लगभग हर भारतीय को भोजन के बाद एक छोटा टुकड़ा मीठा खाने की आदत भी होती हैं, फिर चाहे वह ताजा बेक्ड चीजकेक हो, जलेबी या फिर आइसक्रीम हो। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह खाद्य पदार्थ कैलोरी से भरपूर होते हैं और मोटापे के साथ-साथ डायबिटीज के खतरे को भी बढ़ा सकते है। इसलिए आप क्या, कितना और कितनी बार मिठाई लेते हैं, इसके बारे में सतर्क होने की जरूरत है।

डेजर्ट में हानिकारक तत्व

चॉकलेट का एक टुकड़ा आकर्षक हो सकता हैं, लेकिन इस डेजर्ट को खाना आपके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है। स्वीट ट्रीट, ट्रांस फैट और सैचुरेटेड फैट से भरपूर होने के कारण आपके कोलेस्ट्रॉल के स्तर को बढ़ा सकते हैं। भारतीय मिठाई और डेजर्ट परिष्कृत सामग्री जैसे चीनी, मैदा या सफेद आटा और सोडा से बनने के कारण शरीर को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
आहार विशेषज्ञों के अनुसार, यह चीजें हार्मोनल असंतुलन, ब्लड शुगर के स्तर, ट्राइग्लिसराइड्स के स्तर, दिल की बीमारियों, वॉटर रिटेंशन और त्वचा संबंधी समस्याओं की संभावना को बढ़ा देती है। इसके अलावा डेजर्ट में चीनी की बहुत अधिक मात्रा होती है जो आपके फैट को आसानी से बढ़ाकर शरीर में अतिरिक्त कैलोरी को जोड़ता है।

डेजर्ट के विकल्प

भले ही आपके डेजर्ट कैलोरी युक्त हैं, लेकिन कुछ स्वस्थ परिवर्तन करके आप अभी भी इन्हें अपना सकते है। इसके लिए सबसे अच्छा तरीका स्मूदी, आइसक्रीम और डेसर्ट बनाते समय स्वस्थ सामग्री का चयन करना है। आहार विशेषज्ञों के अनुसार, खजूर, फल या गुड़ माध्यम से बने डेजर्ट कैलोरी में अपेक्षाकृत कम होते हैं। गुड़, शहद और साबुत अनाज से बना केक लो फैट केक स्वस्थ होता है। इसके अलावा, मूंगफली लड्डू और नट्स से बनी चिक्की मिठाई का पौष्टिक विकल्प है। लेकिन कहते हैं न कि अति किसी भी चीज की बुरी होती है, और आपके स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकती हैं।

 

 

भारतीय डेजर्ट में मौजूद कैलोरी

हेल्दीफाइमी (भारतीय इतिहास में पहली बार, हेल्दीफाइमी कंप्यूटर और स्मार्टफोन से अपनी फिटनेस और वजन घटाने के लक्ष्य को प्राप्त करने की अनुमति देता है।) कैलोरी कांउटर का उपयोग करके आम डेजर्ट कैलोरी की जानकारी दी गई है:
गुलाब जामुन: 2 टुकड़े = 340.1 कैलोरी
जलेबी: 1 टुकड़ा = 88.8 कैलोरी
चॉकलेट केक:1 टुकड़ा = 184.1 कैलोरी
वनीला आइसक्रीम: 2 स्कूप्स = 206.7 कैलोरी
केसर पिस्ता कुल्फी: 1 कटोरी 126.6 कैलोरी
गाजर का हलवा: एक काटोरी 237.4 कैलोरी
खीर: 1 कटोरी 306.3 कैलोरी
चीजकेक: 1 टुकड़ा = 256.8 कैलोरी
रसमलाई: 1 टुकड़ा = 45.5 कैलोरी

Wednesday, 17 December 2014

ठंड में एडिय़ों को बनाएं सुंदर


जैसे-जैसे सर्दी का मौसम अपने शबाब पर पहुंचता है, पैरों की खूबसूरती को बनाए रखना मुश्किल होता जाता है। पैरों की चमड़ी का सख्त हो जाना और एडिय़ों का फटना जैसी समस्याएं इस मौसम में आम तौर पर उभरकर सामने आती हैं। इससे बचने के लिए कुछ बातों का ख्याल रखना आवश्यक है।

क्या है एडिय़ां फटने की मुख्य वजह

एडिय़ां फटने की मुख्य वजह शरीर में कैल्शियम और चिकनाई की कमी होती है। एड़ी व तलवों की त्वचा मोटी होती है, इसलिए शरीर के अंदर बनने वाला सीबम यानी कुदरती तेल पैर के तलवों की बाहरी सतह तक नहीं पहुंच पाता। फिर पौष्टिक तत्व व चिकनाई न मिल पानेकी वजह से ही एडिय़ां खुरदरी-सी हो जाती हैं और इनमें दरार पडऩे लगती है। एडिय़ा ज्यादा फटने से दर्द और जलन तो होती ही है, कभी-कभी खून भी निकल आता है।

ठंड में फटी एडिय़ों से छुटकारा पाने के नुस्खे

  • डेढ़ चम्मच वैसलीन में एक छोटा चम्मच बोरिक पावडर डालकर अच्छी तरह मिला लें और इसे फटी एडिय़ों पर अच्छी तरह से लगा लें, कुछ ही दिनों में फटी एडिय़ां फिर से भरने लगेंगी। 
  • अगर एडिय़ां ज्यादा फटी हुई हों तो मैथिलेटिड स्पिरिट में रुई के फाहे को भिगोकर फटी एडिय़ों पर रखें। ऐसा दिन में तीन-चार बार करें, इससे एडिय़ां ठीक होने लगेंगी। 
  • गुनगुने पानी में थोड़ा शैंपू, एक चम्मच सोड़ा और कुछ बूंदें डेटॉल की डालकर मिला लें। इस पानी में पैरों को 10 मिनट तक भिगोकर रखें। त्वचा फूलने पर मैथिलेटिड स्पिरिट लगाकर एडिय़ों को प्यूमिक स्टोन या झांवे से रगड़कर साफ कर लें। इससे एडिय़ों की मृत त्वचा साफ हो जाएगी। फिर साफ तौलिए से पोंछकर गुनगुने जैतून या नारियल के तेल से मालिश करें। 
  • पैरों को साफ व खूबसूरत बनाए रखने के लिए पैडिक्योर को अवश्य चुनें। यह पैरों के नाखून, एड़ी व तलवों की सफाई का शानदार तरीका है। 
  • पैडीक्योर एक आसान विधि है, इसे आप खुद घर पर भी कर सकती हैं अगर आपके पैरों की दशा ज्यादा खराब है तो पैडीक्योर किसी ब्यूटी स्पेशलिस्ट से ही करवाना मुनासिब है।

Tuesday, 16 December 2014

शाइनी स्किन, यंग लुक


एक यंग और शाइनी स्किन का ग्रेस कुछ अलग ही होता है। अगर आप भी इसे बरकरार रखना चाहती हैं तो इसके लिए आप ये दस टिप्स अपना सकती हैं-

तेज गर्म पानी

बहुत गर्म पानी से नहाना अवॉइड करें। यह स्किन के पोर्स डैमेज करता है। दरअसल हीट स्किन की कोशिकाओं को कमजोर कर देती है, जिससे स्किन खराब होती चली जाती है।

स्ट्रेस से नुकसान

स्ट्रेस का आपकी स्किन पर बेहद नेगेटिव असर पड़ता है। स्ट्रेस से बचने के लिए योगा और गहरी सांस लेने जैसी एक्सरसाइज बेस्ट रहेगी। वहीं, इससे छुटकारा पाने के लिए कॉफी और अल्कोहल जैसी चीजें अवॉइड करें।

क्लिनिंग है जरूरी

स्किन को क्लीन करने के लिए पैकिट वाइप का इस्तेमाल न करें। इस तरह जल्दबाजी में की गई क्लीनिंग स्किन में बैक्टीरिया और इन्फेक्शन की वजह बन सकती है। इससे स्किन खराब होने के चांस भी बढ़ जाते हैं।

लो फैट डाइट

स्लिम ट्रिम रहने के लिए लो फैट डाइट लेना तो ठीक है, लेकिन स्किन के लिए बिल्कुल नहीं। इस तरह की डाइट स्किन को डल कर उसकी शाइनिंग कम कर देती है। दरअसल, स्किन को हेल्दी और मॉइश्चराइजिंग युक्त रखने के लिए फैट की जरूरत होती है। इसके लिए फैटी एसिड्स मसलन, फिश, एग्स, फ्लेक्स सीड्स, वॉलनट्स और ग्रीन वेजिटेबल वगैरह आपके लिए बेहद फायदेमंद रहेंगे।

ज्यादा मीठी चीजें

ज्यादा मीठी चीजें वेस्टलाइन को चौड़ा कर देती हैं, जिससे चेहरे पर रिंकल्स भी पड़ जाते हैं। इसलिए मीठा खाएं लेकिन बैलेंस जरूरी है। मीठे की जगह प्रोटीन युक्त चीजें खाएं, जो आप नट्स व सीड्स से पा सकते हैं।

सनस्क्रीन लगाएं

अगर आप यह सोचती हैं कि एसपीएफ प्रोटेक्शन की जरूरत केवल तब ही होती है, जब आप सूरज की किरणों के संपर्क में होती हैं, तो गलत सोचती हैं। इसका इस्तेमाल हमेशा करें। यहां तक कि मेकअप की शुरुआत में ही एसपीएफ 30- 50 मॉइश्चराइजर से करें।

गर्दन को न भूलें

चेहरे पर लगाने वाली स्किन क्रीम का इस्तेमाल गर्दन व क्लीवज पर भी करें। सूरज की हानिकारक किरणों से बचने के लिए एंटीऑक्सिडेंट सीरम का इस्तेमाल करें।

पॉल्यूशन से बचें

वातावरण में फैले प्रदूषण और सिगरेट के धुएं से स्किन को बेहद नुकसान पहुंचता है। इसलिए इससे जितना हो सके बचें।

खूब पानी पिएं

रोजाना 10- 12 गिलास पानी पीएं। यह आपकी स्किन की नमी को बनाए रखता है। इससे रिंकल्स पडऩे का प्रोसेस भी स्लो हो जाता है। लेकिन अल्कोहल से बचें, क्योंकि यह विटामिन ए और दूसरे कई ऐसे जरूरी तत्वों को कम कर देता है, जो स्किन में लचीलापन बनाए रखता हैं।

नींद लें भरपूर

स्किन रात को रिजेनरेट होती है। इसलिए हर दिन कम से कम आठ घंटे की नींद लेना बेहद जरूरी है। स्टडीज के मुताबिक, कम नींद लेने से ऐजिंग प्रोसेस तेज हो जाता है। इसलिए भरपूर नींद लें।

Sunday, 14 December 2014

गुलाबी मौसम में जरा बच के...


मौसमी बदलाव की आहट आ चुकी है। सुबह-शाम ठंड और प्रदूषण वाली हल्की धुंध भी असर दिखाने लगी है। इसके साथ ही शुरू हो गई हैं सेहत से जुड़ी कई तरह की समस्याएं। लापरवाही के चलते किसी को सर्दी-जुकाम या चेस्ट कंजेशन जैसी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है तो कुछ लोग ठंड की वजह से जॉगिंग बंद करने से परेशान हैं। हम आपको बता रहे हैं कि कैसे थोड़ी-सी सावधानी आपको इस बदलते मौसम में फिट रख सकती है -
अगर आपको डायबीटीज, अस्थमा या दिल की बीमारी है तो सुबह-शाम बाहर निकलने से बचें, क्योंकि इस समय कोहरे के साथ प्रदूषण मिलकर पूरे वातावरण में फैल जाता है। इस दौरान बाहर निकलने से सांस के जरिए प्रदूषण फेफड़ों तक पहुंचकर कंजेशन बढ़ा सकता है। इससे आपको सांस लेने में तकलीफ हो सकती है या अस्थमा का अटैक आने का खतरा बढ़ जाता है। ऐेसे में या तो धूप खिलने और आसमान साफ होने के बाद जॉगिंग या एक्सरसाइज के लिए बाहर निकलें या घर में ही एक्सरसाइज कर सकते हैं। इस मौसम में दो तरह की एक्सरसाइज आपके लिए फायदेमंद हो सकती है।

कॉर्डियोवेस्कुलर वर्कआउट

सर्दियों में शरीर में जमने वाले एक्स्ट्रा फैट का सबसे ज्यादा असर दिल पर पड़ता है। यह फैट दिल की धड़कनों पर बुरा असर डालता है। ऐसे में दिल से जुड़ी बीमारियों की आशंका इस मौसम में कई गुना बढ़ जाती है। वजन बढऩे की समस्या भी इसी मौसम में ज्यादा होती है। इस तरह की परेशानी से निबटने के लिए आप घर पर ही कॉर्डियोवेस्कुलर ट्रेनिंग से जुड़ी आसान एक्सरसाइज कर सकते हैं। इसमें आपको 20 मिनट या इससे थोड़ा ज्यादा समय तक ऐसे व्यायाम करने होंगे, जो आपके दिल की धड़कनों को सामान्य से काफी तेज कर दें। घर पर आजमाई जाने वाली कॉर्डियोवेस्कुलर ट्रेनिंग के तहत अपनी जगह पर ही खड़े होकर जॉगिंग कर सकते हैं, रस्सी कूद सकते हैं, लगातार 20 से 25 बार उछल सकते हैं, घर की सीढिय़ों पर दो-तीन बार तेजी से ऊपर-नीचे कर सकते हैं। आप इनमें से हर एक को आजमा सकते हैं। हर तरह की एक्सरसाइज को 5-5 मिनट के लिए किया जा सकता है। ये तरीके आपके बाहर निकलने की परेशानी को भी दूर कर देंगे, साथ ही आपके दिल को हमेशा जवां रखेंगे।

मांसपेशियों व जोड़ों से जुड़ा वर्कआउट

सर्दियों में मांसपेशियों का जकड़ जाना भी आम समस्या है। इसके अलावा, इस मौसम में जोड़ों के दर्द की परेशानी भी देखने को मिलती है। इसके लिए घर पर ही कुछ खास तरह की एक्सरसाइज के जरिए इन्हें दूर किया जा सकता है। मांसपेशियों के जकड़ जाने पर उन्हें व्यायाम के जरिए ही आराम पहुंचाया जा सकता है। पुशअप और पुलअप मांसपेशियों को लचीला बनाए रखने का आसान तरीका है। इसके लिए कहीं भी बाहर निकलने की जरूरत नहीं है। इसके साथ घर पर ही एक्सरसाइज के कुछ खास उपकरणों के जरिए भी मांसपेशियों की जकडऩ को दूर किया जा सकता है। डंबल से वॉर्मअप किया जा सकता है। जोड़ों के दर्द को दूर करने के लिए आपको व्यायाम के लिए अलग से वक्त भी नहीं निकालना है। काम करते हुए भी कुछ मिनट का ब्रेक लें और बैठे-बैठे ही हाथ और पैरों के जोड़ को घुमाते रहें।

अपनाएं ये टिप्स

  • कपड़ों का खास ध्यान रखें, अगर सुबह बाहर निकलते हैं तो गर्म कपड़े साथ रखें ताकि ठंड लगने पर उनका इस्तेमाल कर सकें।
  • सुबह देर से घर से निकलने वाले अक्सर लापरवाही का शिकार होते हैं। देर शाम घर लौटते वक्त मौसम ठंडा हो जाता है, लेकिन दिन की गर्मी देखकर आप गर्म कपड़े आपने साथ नहीं रखते। ऐसी गलती न करें।
  • अगर डायबीटीज, हाई ब्लड प्रेशर या अस्थमा जैसी समस्या है तो अपने डॉक्टर से मिलकर मौजूदा मौसम के हिसाब से दवाओं के डोज आदि की जानकारी लें और दवाएं नियमित लें।
  • बाइक चलाते वक्त विंड शीटर और मफलर का इस्तेमाल करें, क्योंकि सीने और नाक-कान के जरिए ठंडी हवा शरीर तक पहुंचने से समस्या बढ़ती है।
  • बच्चों और बुजुर्गों का खास ध्यान रखें, क्योंकि इनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता युवा लोगों के मुकाबले कम होती है।
  • ठंड में आपको प्यास का अहसास कम होता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आपके शरीर को कम पानी की जरूरत होती है। ठंड में भी खूब सारा पानी पिएं।
  • साफ-सफाई का खास ध्यान रखें। वायरल बेहद संक्रामक होता है। साफ-सफाई में हल्की-सी लापरवाही होने पर भी यह तेजी से एक-दूसरे तक फैलता है।

Friday, 12 December 2014

सौंदर्य के लिए वरदान ठंड का मौसम


हमारे पारंपरिक ज्ञान में ही फलों और सब्जियों के फायदों की लंबी सूची मिल जाती है। आहार विशेषज्ञों ने भी इसकी पुष्टि की है। अब हर व्यक्ति ताजे फल और सब्जियां खाने के स्वास्थ्यगत लाभ जानने लगा है। कुछ उनमें ऐसे भी हैं, जो फलों और सब्जियों का स्वास्थ्य और सौंदर्य के लिए उपयोग करना भी जानते हैं।
हकीकत यह है कि फल और सब्जियां एंटीऑक्सीडेंट्स, बहुमूल्य विटामिंस, मिनरल्स और पोषक तत्व जैसे विटामिन ए, बी, सी, डी और ई, कैरोटेनाइड्स, कोएंजाइम्स क्यू 10, पॉलिफेनल्स, पोटेशियम, सेलेनियम और जिंक आदि से भरपूर होती हैं। कुछ दूसरी सामग्री के साथ मिलाने पर फल और सब्जियां बेहद उपयोगी फेस मॉस्क, स्कीन क्रीम, बॉथ ट्रीटमेंट और स्कीन ऑइन्टमेंट भी बन सकती हैं। आइए जानते हैं कैसे?
  • केले में निहित प्राकृतिक तेल त्वचा को नर्म करने के तो काम आता ही है, साथ ही ये विटामिन और दूसरे पोषक तत्वों से भी परिपूर्ण होता है, जिससे बालों में लोच आती है।
  • तरह-तरह के बीन्स उम्र के प्रारंभिक लक्षणों से लडऩे के काम आता है।
  • ब्लूबेरी, ब्लैकबेरी और रसबेरी में एंटीऑक्सीडेंट्स के साथ-साथ ही
  • प्राकृतिक एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण भी होते हैं। इसका उपयोग क्रीम में किया जाता है।
  • ये एक तरफ जहाँ त्वचा को नर्म बनाती हैं, वहीं त्वचा के सेल्स की भी मरम्मत करती हैं।
  • खरबूजे से स्कीन क्रीम बनाया जाता है, जो त्वचा को कांतिमय और चमकदार करता है।
  • गाजर में निहित बीटा-केरेटीन रुखी त्वचा को नर्म बनाता है।
  • खीरा तो बहुत लंबे समय से आंखों के आसपास के काले घेरों को दूर करने में उपयोग में लाया जा रहा है।
  • लहसुन का सेवन भी उम्र के असर को कम करने में सहायक होता है।
  • अंगूर पोलीफेरनोल्स से समृद्ध होते हैं, जो बालों और त्वचा दोनों को नमी देते हैं।
  • नींबू प्राकृतिक तौर पर त्वचा के लिए ब्लीच का काम करता है, साथ ही त्वचा को मुलायम भी बनाता है। नींबू को कोहनी और घुटनों की सफाई में भी काम में लाया जा सकता है।

फीमेल टॉनिक सीता-अशोक


सीता-अशोक या फिर असली अशोक के वृक्ष का भारतीय परंपरा में बहुत सम्मान किया जाता है। संस्कृत में इसे हेमपुष्पा, ताम्र पल्लव और कंकेली भी कहते हैं। परंपरा से इसका संबंध रामायण से, बुद्ध के जीवन से तो माना ही जाता है, इसके साथ ही आयुर्वेद और यूनानी चिकित्सा पद्धति में इसे स्त्री रोगों के लिए बहुत उपयोगी माना जाता है। लेकिन ये वो अशोक का वृक्ष नहीं है जिसे अक्सर हम बगीचों में, घरों के लॉन में और मार्ग-विभाजकों पर लगा देखते हैं जिसे पोलिअल्थिया लांगिफोलिया कहते हैं।
वैज्ञानिक तौर पर सराका इंडिका या फिर सराका असोका ही वही अशोक है जिसका भारतीय, अरबी और यूनानी चिकित्सा शास्त्र में उल्लेख है। असली अशोक एक छोटा वृक्ष है, जबकि नकली अशोक बहुत ऊँचा जाता है। हालाँकि हमारी ज्ञान पद्धति में अशोक वृक्ष के बहुत सारे लाभ गिनाए गए हैं, अब वैज्ञानिक भी इसे स्वीकार करने लगे हैं। इसकी पत्तियाँ, छाल और फूलों को दुनिया के बहुत सारे हिस्सों की पारंपरिक चिकित्सा विधा में इस्तेमाल किया जाता है।
इसका प्रयोग ट्यूमर, मासिक धर्म के दौरान अत्यधिक और अनियमित स्राव, स्त्रियों को होने वाली श्वेत प्रदर की समस्या, चर्म रोग और मधुमेह के साथ ही संक्रमण को रोकने में भी किया जाता है। शरीर में सूजन आने की स्थिति या जहरीले जानवर के काटने पर भी इसकी छाल का पेस्ट लगाने से जहर फैलने, फफोले पडऩे या फिर संक्रमण होने से बचाव करता है।

तुरंत उपचार

  • बाजार में अशोक का बना-बनाया सत्व मिलता है, लेकिन इसे खरीदने से पहले इस बात की तसल्ली कर लेना चाहिए कि एक तो ये मिलावटी न हो, दूसरा ये नकली अशोक के वृक्ष से न निकाला गया हो। जो महिलाएँ अनियमित और अत्यधिक रक्तस्राव से पीडि़त हैं, उन्हें अशोक की छाल के काढ़े के सेवन से लाभ मिलेगा। इसे हर दिन ताजा बनाया जाना चाहिए और इसे मासिक-धर्म के दौरान इस्तेमाल किया जाना चाहिए ।
  • विशेषज्ञ काढ़ा बनाने के लिए पानी के साथ दूध के इस्तेमाल की भी सलाह देते हैं। इसे हर दिन एक चाय का चम्मच भर कर लिया जा सकता है। कभी-कभी पेचिश के साथ भी रक्त-स्राव होता है, ऐसी स्थिति में भी अशोक की छाल का काढ़ा राहत पहुँचाता है। इसके साथ ही अशोक के सूखे फूलों का भी सेवन किया जा सकता है।
  • विशेषज्ञ मधुमेह के रोगियों को भी अशोक के सूखे फूलों का सेवन करने की सलाह देते हैं।
  • इन सबसे ऊपर अशोक के सत्व को बाजार में 'फीमेल टॉनिकÓ के तौर पर जाना जाता है, जो महिलाओं की प्रजनन क्षमता को बढ़ाता है। इसके साथ ही अशोक की छाल का अर्क या काढ़ा खूनी बवासीर में भी कारगर पाया गया है।

Thursday, 11 December 2014

अनचाहे बालों का उपचार लेजऱ से


अनचाहे बाल महिलाओं की एक आम समस्या है। महिलाओं के चेहरे पर पुरुषों जैसे बाल आ जाने से बहुत ही दुखद स्थिति बन जाती है। आमतौर पर ठोड़ी और होंठ के ऊपर बाल आते हैं।

कारण

हारमोनल समस्याएं : महिलाओं में हारमोन की अनियमितता के कारण चेहरे पर बाल आने लग जाते हैं। शरीर में टेस्टोस्टेरॉन हारमोन के अधिक सक्रिय होने पर चेहरे, अपर लिप व ठोढ़ी पर बाल आने लगते हैं।
वंशानुगत : चेहरे पर बाल आना एक वंशानुगत समस्याएं हैं। परिवार में यदि माता को बाल आने की समस्या है तो यह समस्या उसकी बेटी को होने की आशंका भी रहती है।
अनियमित जीवनशैली : भोजन में प्रोटीन, विटामिन और फाइबर जैसे आवश्यक पोषक तत्वों की कमी से भी अनचाहे बाल विकसित होने लगते हैं।
पॉलिसिक्टिक ओवरी : पॉलिसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम में ओवेरी में छोटी-छोटी गठानें बन जाती हैं जिससे हारमोन की एक्टिविटी पर प्रभाव पड़ता है और चेहरे पर बालों का विकास होता है।
स्टेरॉइड्स : 5-6 महीने तक लगातार स्टेरॉइड्स लेने पर मेटाबोलिक तथा हारमोनल परिवर्तन आने लगते हैं।
रजोनिवृत्ति : इस समय हारमोन के स्तर में बदलाव आते हैं जिससे अनचाहे बाल विकसित होने की आशंका रहती है।
अनचाहे बालों को लेजर द्वारा स्थायी रूप से हटाया जा सकता है। लेजर से बालों को हमेशा के लिए जड़ से खत्म किया जाता है। इसमें लगभग 7 से 8 सिटिंग्स लगती हैं। शरीर के अनचाहे बालों को दूर करने के लिए यदि वैक्सिंग, शैविंग, ट्वीजिंग आदि तरीकों से त्रस्त हो चुके हों तो लेजर उपचार अच्छा विकल्प हो सकता है।

तैयारी

  • बालों से निजात पाने के लिए किया जाने वाला लेजर उपचार आम कॉस्मेटिक प्रक्रिया से भिन्न मेडिकल प्रोसिजर है जिसे विशेष प्रशिक्षण प्राप्त प्रोफेशनल द्वारा ही किया जा सकता है। इस प्रक्रिया को कराने से पहले सुनिश्चित कर लें कि चिकित्सक या टेक्नीशियन अपने काम में कुशल हों। लेजर उपचार का मन बना चुके हों तो प्लकिंग, वैक्सिंग और इलेक्ट्रोलिसिस जैसी प्रक्रियाओं को 6 हफ्तों पहले से बंद करने की सलाह दी जाती है।
  • लेजर को बालों की जड़ों पर केंद्रित किया जाता है, वैक्सिंग या प्लकिंग जैसी प्रक्रियाओं से बाल अस्थायी रूप से जड़ समेत निकल जाते हैं इसलिए लेजर उपचार के पहले कम से कम 6 हफ्तों तक यह नहीं कराना चाहिए।
  • लेजर उपचार के पहले और बाद में 6 हफ्तों तक धूप से भी बचना चाहिए। त्वचा पर धूप के असर से लेजर उपचार का प्रभाव कम हो सकता है और प्रोसिजर के बाद जटिलताओं की आशंका भी बढ़ जाती है।
  • प्रक्रिया शुरू करने से पहले लेजर उपकरण को बालों के रंग, मोटाई और स्थान के अनुसार एड्जस्ट किया जाता है, साथ ही त्वचा के रंग का ध्यान रखना भी जरूरी होता है।

Tuesday, 9 December 2014

दूर करें स्ट्रेच मार्क्‍स को


उम्र बढऩे के साथ हमारी त्वचा पर स्ट्रेच के माक्र्स आ जाते हैं। त्वचा की तीन मुख्य परत होती हंै, एपीडर्मिस, डर्मिस और हाइपोडर्मिस। स्ट्रेच माक्र्स  मुख्यत: त्वचा की मिडल परत डर्मिस पर होता है, ऐसा इसलिए होता है क्योंकि त्वचा की इस परत में उतनी लचक नहीं होती है, जिस कारण त्वचा पर दबाव पड़ता है और त्वचा में स्ट्रेच माक्र्स  हो जाते हैं। ये स्ट्रेच माक्र्स युवावस्था के दौरान और प्रेगनेंसी के दौरान होते हैं। इन स्ट्रेच माक्र्स को दूर करने के लिए या फिर कम करने के लिए आप कुछ घरेलू और प्राकृतिक उपाय अपना सकती हैं।
स्ट्रेच माक्र्स से छुटकारा पाने के लिए कैस्टर ऑइल भी बेहद कारगर माना जाता है। इसके लिए प्रभावित हिस्से पर कैस्टर ऑइल लगा कर इस हिस्से को प्लास्टिक बैग से लपेट लें। अब हॉट वॉटर बॉटल से करीब आधा घंटे सिकाई करें और हल्का रगड़ें।

जैतून का तेल

जैतून के तेल में प्राकृतिक रूप से एंटीऑक्सीडेंट की मात्रा ज्यादा होती है जो कि त्वचा की बहुत-सी समस्याओं का निदान कर सकती है।
क्या करें : गुनगुने शुद्ध जैतून के तेल को स्ट्रेच मार्क्स पर लगाएं और हल्की मालिश करें। इससे ब्लड सर्कुलेशन सही होता है और स्ट्रेच माक्र्स  हल्के होते हैं। जैतून के तेल को आधा घंटा या उससे ज्यादा देर के लिए त्वचा पर लगा रहने दें। इससे त्वचा तेल में मौजूद विटामिन ए, डी और ई को अच्छे से सोख लेती है।

नींबू का रस

स्ट्रेच माक्र्स को दूर करने का एक तरीका है नींबू का उपयोग। नींबू में प्राकृतिक तौर पर एसिड पाया जाता है जो कि स्ट्रेच माक्र्स  को कम करने, एक्ने को खत्म करने आदि स्किन प्रॉब्लम्स में लाभकारी होता है।
क्या करें : सर्कुलर मोशन में ताजे कटे नींबू के रस को स्ट्रेच माक्र्स  पर लगाइए। नींबू के रस को कम से कम
दस मिनट तक लगा रहने दें, उसके बाद उसे पानी से धोएं। इसके अलावा खीरे के रस और नींबू के रस की बराबर मात्रा को लें और स्ट्रेच माक्र्स  पर लगाएं।

आलू का जूस

आलू में ढेर सारे विटामिन्स और मिनरल्स पाए जाते हैं जो त्वचा की ग्रोथ को बढ़ाते हैं और उसका फिर से नवीनीकरण करते हैं।
क्या करें : मध्यम आकार के आलू को थोड़ा मोटा काट लें। उसके बाद आलू के टुकड़े को स्ट्रेच माक्र्स  पर लगाएं। कुछ मिनटों बाद उस जगह को गुनगुने पानी से धो लें।

शक्कर

व्हाइट शुगर स्ट्रेच माक्र्स  को दूर करने के लिए सबसे अच्छा माना जाता है। आप शुगर का इस्तेमाल करती हैं तो यह मृत त्वचा को हटाने का काम करता है।
क्या करें : बादाम तेल के साथ एक चम्मच शक्कर मिलाएं और उसमें कुछ बूंद नींबू के रस की डाल कर अच्छे से मिला लें। मिश्रण को स्ट्रेच माक्र्स  वाले हिस्सों पर लगाएं। नहाने से दस मिनट पहले रोजाना इसे लगाएं और हल्का सा रगड़ें। एक महीने लगातार ऐसा करने पर आप पाएंगी कि आपके स्टे्रच माक्र्स  हल्के पडऩे लगे हैं।

एलोवेरा

त्वचा की विभिन्न समस्याओं में एलोवेरा बहुत लाभकारी है। इसमें पाए जाने वाले तत्व हल्की जलन और स्ट्रेच माक्र्स  को भी दूर करने में कारगर हैं।
क्या करें : आप चाहें तो डायरेक्ट एलोवेरा के जूस को स्ट्रेच माक्र्स  पर लगा सकती हैं और कुछ मिनट के बाद गुनगुने पानी से उसे धो सकती हैं। दूसरा तरीका यह है कि आप एक-चौथाई कप एलोवेरा का जूस लें और विाटामिन ई का तेल (दस कैप्सूल) लें और विटामिन ए का तेल (पांच कैप्सूल) को एक साथ मिक्स करें। इस मिश्रण को त्वचा पर हल्के हाथों से लगाएं (या रगड़ें)। ऐसा रोजाना करें। कुछ दिनों में फर्क दिखने लगेगा।

Monday, 8 December 2014

पीएमएस- मासिक धर्म की खास समस्या


पीएमएस यानि प्री मेंस्ट्रूरेशन सिंड्रोम। यह समस्या लाखों महिलाओं को सताती है। हालांकि यह बहुत ही पुरानी समस्या है फिर भी इसे कभी बीमारी नहीं समझा गया। यह एक शारीरिक-मानसिक स्थिति है, जो महिलाओं में मासिक धर्म से आठ-दस दिन पहले हो जाती है और अलग-अलग महिलाओं में इसके लक्षण भिन्न-भिन्न होते हैं।
जो महिलाएं डिलीवरी, मिस कैरेज या एबॉर्शन के समय ज्यादा हार्मोनल बदलाव महसूस करती हैं, उन्हें पीएमएस होता है। जो महिलाएं गर्भ निरोधक गोलियां लेती हैं, उन्हें गोलियां छोड़ देने पर भी यह ज्यादा होने लगता है। यह तब तक रहता है, जब तक उनका हार्मोनल स्तर नॉर्मल नहीं हो जाता। आमतौर पर महिलाओं में 20 वर्ष की आयु के बाद ही इसकी शुरुआत होने लगती है।
इन दिनों महिलाएं बेहद चिड़चिड़ी हो जाती हैं अक्सर बच्चों को भी पीट देती हैं और इससे उनकी व्यक्तिगत जिंदगी और करियर पर भी प्रभाव पड़ सकता है। पीएमएस का असली कारण अभी तक पता नहीं चल पाया है। ऐसा माना जाता है कि ये हार्मोनल असंतुलन की वजह से होता है, परंतु इस संतुलन का सही कारण कोई नहीं जानता।
हर माह पीएमएस के संकेत मेंस्ट्रूरअल साइकल के उन्हीं दिनों में होते हैं। शरीर का फूलना, पानी इक_ा होना, ब्रेस्ट में सूजन, एक्ने, वजन बढऩा, सिर दर्द, पीठ दर्द, जोड़ों का दर्द और मसल्स का दर्द इन्हीं में शामिल है। इनके साथ-साथ मूडी होना, चिंता, डिप्रेशन, चिड़चिड़ापन, मीठा और नमकीन खाने की इच्छा, नींद न आना, जी घबराना आदि भी हो सकते हैं।
कई महिलाओं को रोना, परेशान होना, आत्महत्या, हत्या और लड़ाकू व्यवहार जैसे लक्षण भी होने लगते हैं। अगर ये लक्षण बहुत तीव्र हो जाएं तो डॉक्टर को दिखाना चाहिए।

क्या आपको सचमुच पीएमएस है-

यह जानने के लिए कि आपको पीएमएस है या नहीं, बेहतर होगा अगर आप एक डायरी रखें जिसमें दो-तीन महीनों तक होने वाले लक्षणों को नोट करें। यह डायरी आपको बताएगी कि आपके लक्षण आपके मासिक धर्म से जुड़े हुए हैं या नहीं। आपको पता चल जाएगा कि आप पीएमटी (प्री मेंस्ट्रूरअल  टेंशन) से पीडि़त तो नहीं।

Sunday, 7 December 2014

पीरियड्स नहीं बनेंगे परेशानी


हर माह तय समय पर पीरियड्स न शुरू होना महिलाओं की एक आम समस्या है पर, कई बार इस आम परेशानी में किसी गंभीर बीमारी के संकेत भी छुपे होते हैं। अनियमित पीरियड्स का क्या है कारण और समाधान जानते हैं इसके बारे में-
मासिक धर्म या पीरियड्स हर माह हर युवती की जिंदगी में तीन से पांच दिन तक रहता है। दूसरे शब्दों में कहें तो, इस समय गर्भाशय से स्त्राव होता है। मासिक चक्र आपकी प्रजनन प्रणाली में परिवर्तन लाता है, जिससे महिलाएं प्रजनन के लिए तैयार होती हैं। इससे माह के 5-7 दिनों तक गर्भाशय की गर्भधारण की क्षमता बढ़ती है। यह क्षमता प्रत्येक महिला में अलग-अलग होती है और कुछ में यह महीने में केवल 2-3 दिनों की भी होती है। प्रजनन प्रणाली प्रत्येक महिला में 12-16 वर्ष की आयु से शुरू होकर मेनोपॉज तक चलती है।
अनियमित मासिक धर्म उस तरह के रक्तस्त्राव को कहते हैं जो किसी महिला में पिछले माह के चक्र से अलग होता है। ऐसे में माहवारी देर से या समय से काफी पहले शुरू हो जाती है और उस दौरान रक्तस्त्राव सामान्य या उससे कहीं अधिक होता है। स्वस्थ महिला के शरीर में एस्ट्रोजन, प्रोजेस्टेरोन और टेस्टोस्टेरोन जैसे तीन हार्मोन्स मौजूद होते हैं। कभी-कभार इन हार्मोन्स में गड़बड़ हो जाती है जिसके कारण मासिक धर्म प्रक्रिया में परिवर्तन आते दिखते हैं।

क्या है कारण

गर्भावस्था: किसी माह मासिक धर्म न आना गर्भ ठहरने का भी संकेत हो सकता है। गर्भावस्था के दौरान महिला के शरीर में अलग तरह के हॉर्मोन्स बनते हैं और इस दौरान मासिक धर्म रुक जाता है।
मेनोपॉज: यदि किसी महिला की आयु 50 के आसपास है तो ऐसे में अनियमित मासिक धर्म होना बहुत सामान्य बात है। हालांकि इस दौरान डॉक्टर की सलाह लेने में कोई हर्ज नहीं होना चाहिए।
यौवनारंभ: मासिक धर्म की शुरुआत में किसी युवती को यदि पहले दो वर्षों तक अनियमित मासिक धर्म की शिकायत रहती है तो यह बहुत सामान्य प्रक्रिया है, परंतु यदि यह हालत लंबी चले तो डॉक्टर से जरूर मशविरा करना चाहिए।
खानपान में गड़बड़ी: अनियमित खानपान, वजन घटना या सामान्य से अधिक बढ़ जाना भी मासिक धर्म में अनियमितता का कारण होते हैं। इसलिए उचित खानपान के साथ अपने वजन को सामान्य बनाए रखने के प्रयास करना चाहिए।
तनाव की अधिकता: तनाव से उपजने वाले हॉर्मोन्स का एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन पर सीधा असर पड़ता है और रक्तस्त्राव में अनियमितता आती है।
ज्यादा व्यायाम: अधिक व्यायाम से हॉर्मोनल संतुलन में बदलाव आता है। एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन आपकी मासिक धर्म प्रक्रिया को सामान्य रखते हैं और जरूरत से ज्यादा व्यायाम से एस्ट्रोजन की संख्या में वृद्घि होती है, जिस कारण पीरियड्स रुक जाते हैं।
बीमारी: महिलाएं एक माह या उससे अधिक समय तक बीमार रहती हैं तो ऐसे में उनके रक्तस्त्राव में अलग-अलग तब्दीलियां आ सकती हैं।
थायरॉइड डिसॉर्डर: थायरॉइड के कारण भी यदा-कदा असामान्य मासिक धर्म हो सकता है, इसके कारण समूचे पीरियड्स चक्र पर असर पड़ता है। ऐसे में खून की जांच करा लेना ठीक रहता है।

ऐसे दूर होगी परेशानी

  • डॉक्टर को अपनी हर समस्या के बारे में बताएं। संकोच न करें और फिर विस्तारपूर्वक सलाह लें।
  • डॉक्टर से खानपान से जुड़ी जानकारी लें। तली, डिब्बाबंद, चिप्स, केक, बिस्कुट और मीठे पेय आदि अधिक न लें। सही मासिक धर्म के लिए स्वस्थ भोजन का चयन बहुत जरूरी है।
  • सीमा में ही खाएं। पौष्टिक भोजन का ही सेवन करने का प्रयास करें। अनाज, मौसमी फल और सब्जियां, पिस्ता-बादाम, कम वसा वाले दूध से बने आहार भी रोज की खुराक में शामिल करें।
  • दिन की शुरुआत हमेशा 2-3 गिलास पानी पीकर करें और पूरे दिन में 8-10 गिलास पानी जरूर पिएं। पानी से शरीर के टॉक्सिंस निकल जाते हैं और इससे आप फिट रहती हैं।
  • वजन और कमर के आकार को नियंत्रित बनाए रखें। इसलिए नियमित रूप से व्यायाम करें, लेकिन स्वयं पर बहुत अधिक दबाव न डालें।
  • रागी, जई, हरी पत्ती वाली सब्जियों और स्किम्ड मिल्क उत्पादों का सेवन नियमित रूप से किया जाना चाहिए।

Saturday, 6 December 2014

बांझपन का कारण केवल पीसीओएस नहीं


बांझपन मूलरूप से गर्भधारण करने में असमर्थता है, बांझपन महिला की उस अवस्था को भी कहते हैं, जिसमें वह पूरे समय तक गर्भधारण नहीं कर पाती है। बांझपन हमेशा महिला की ही समस्या नहीं होती है। पुरुष तथा महिला दोनों की समस्या हो सकती है। प्रतिदिन दवाखाने में ऐसे कई मरीज आते हैं, जिनकी शादी भी नहीं हुई रहती है और यदि उनकी सोनोग्राफी रिर्पोट में सिस्ट या फाईब्राईड्स आ जाते हैं तो उनके पालकों को यह डर सताने लगता है कि कहीं उन्हें आगे चलकर बांझपन तो नहीं हो जाएगा।
अनिमित माहवारी या सिस्ट बांझपन का कारण हो सकता है परन्तु जरूरी नहीं है कि सभी पीसीओएस पीडि़त नवयुवतियों को बांझपन का शिकार होना ही पड़े।
आयु का बांझपन से सीधा सम्बंध होता है। युवावस्था में शारीरिक ताकत, रोग प्रतिरोधक क्षमता, तथा हार्मोनल बदलाव चरम पर होते हैं, इसलिए इस पहलू पर विचार करना महत्वपूर्ण है। उम्र बढऩे के साथ हमारी जीवनशक्ति और स्थिरता कम होने लगती है, इसलिए समय रहते कारणों को जानकर समय पर उपचार कराना श्रेयस्कर होगा।
अध्ययनों से पता चला है कि देर रात तक जागना या कार्य करने से हार्मोनल बदलाव चरम पर होता है, जिसके कारण पीसीओएस अथवा बांझपन जैसी परिस्थितियां उत्पन्न हो सकती हैं। अत: पूरी नींद अवश्य लें तथा देर रात तक जागने से भी बचें। सबसे पहले यह जानना आवश्यक है कि माहवारी नियमित है या नहीं? ओव्यूलेशन बराबर है अथवा नहीं? शरीर का तापमान और प्रोजेस्टेरान लेवल की जांच कराने के साथ-साथ सोनोग्राफी कराने के उपरांत यदि स्ट्रक्चरल खराबी न मिले उस स्थिति में होम्योपैथिक दवाईयां काफी हद तक कारगर सिद्ध हो सकती है।
आज भी समाज में महिला बांझपन को उपेक्षित नजरिए से देखा जाता है। जबकि हमें हमारा नजरिया बदलना होगा और कारण जानकर, निवारण कर उचित उपचार करके सफलता भी पाई जा सकती है।

डॉ. ए. के. द्विवेदी
बीएचएमएस, एमडी (होम्यो)
प्रोफेसर, एसकेआरपी गुजराती होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज, इंदौर
संचालक, एडवांस्ड होम्यो हेल्थ सेंटर एवंहोम्योपैथिक मेडिकल रिसर्च प्रा. लि., इंदौर

मॉडर्न लाइफ बीमारी की जड़


आज की तेजी से बदलती हुई जीवन शैली ने हमारे काम करने के ढंग को ही नहीं बदला है बल्कि इससे हमारी सेहत पर भ्ी बुरा असर पड़ा है। आज के युवा काम से उत्पन्न तनाव को दूर करने के लिए स्मोकिंग और जंक/फास्ट फूड, अल्कोहल का सहारा लेना शुरू कर देते हैं। इन सबसे उनकी हड्डियां व मांसपेशियां निरंतर कमजोर होती चली जाती हैं।

कम्प्यूटर

कम्प्यूटर पर लगातार टाइप करने, मोबाइल पर लगातार एसएमएस करने से 'रिपिटिटिव स्टून इंजरीÓ (आर.एस.आई.) नामक बीमारी आपकी की अंगुलियों व अंगूठे की मांसपेशियों को काफी कमजोर कर देती हैं जो बाद में हाथ, कलाई, बांहों, कंधों व गर्दन में दर्द के रूप में सामने आते हैं।
उपाय: कम्प्यूटर मेज और कुर्सी को हर एक घंटे बाद छोड़कर खड़े हो जाएं। शरीर को स्ट्रेच करें। पांच मिनट टहलें। सभी जोड़ों को हल्का झटका दें और फिर काम शुरू करें।

काउच पोटेटो लाइफ स्टाइल

इसका अर्थ है सोफे/कुर्सी पर बैठे टीवी कम्प्यूटर देखना या इंटरनेट सर्फिंग करना आदि। इससे जोड़ों में दर्द की समस्या बढ़ रही है। इस दौरान अधिकांश लोग कुछ-न-कुछ जंक फूड खाते रहते हैं जिससे उनका वजन भी लगातार बढ़ता रहता है। यह मांसपेशियों को कमजोर और जोड़ों की कार्टिलेज को क्षतिग्रस्त कर देता है जिससे ऑस्टियों आर्थराइटिस नामक बीमारी हो जाती है।

नाइट शिफ्ट

नाइट शिफ्ट में काम करने से शरीर का हार्मोनल संतुलन बिगड़ जाता है। शरीर पर सूर्य की रोशनी का एक्सपोजर न होने से शरीर में प्राकृतिक रूप से बनने वाले विटामिन डी की भारी कमी हो जाती है। यह कमर और जोड़ों के दर्द को जन्म देती है। 
उपाय: सुबह उगते सूर्य की किरणों को नंगे शरीर पर पडऩे दें और उस दौरान व्यायाम करें।

ऊची एड़ी के जूते-चप्पल

फैशनेबल ऊंची एड़ी के जूते चप्पल पहनने से पैर व टांग के सभी जोड़ों व मांसपेशियों पर अनावश्यक रूप से अवांछित तनाव पड़ता है जिससे एड़ी, घुटने और कमर दर्द का कारण बनते हैं।
उपाय : फ्लैट और सॉफ्ट सोल के जूते पहनें।

सिक्स पैक्स एब, जीरो फिगर

नई पीढ़ी के लोग आजकल सिक्स पैक्स एब और जीरो फिगर के लिए जिम में घंटों कठिन सतह की ट्रेड मिल पर दौड़ते रहते हैं। इससे टखनों व घुटनों के जोड़ों को कालांतर में नुकसान होता है।

धूम्रपान

इससे खून में विटामिन डी की कमी हो जाती है, जिससे अस्थि घनत्व निश्चित रूप से कम होता है। यह कूल्हे, कलाई या रीढ़ की हड्डी के फ्रैक्चर को जन्म देता है। महिलाओं में रजोनिवृत्ति (मीनोपॉज) समय से 4-5 वर्ष पहले हो जाती है, जिससे इस्ट्रोजन हार्मोन कम होकर ऑस्टियोपोरोसिस हो जाता है। मोटापे, हार्ट अटैक तथा थायरॉयड की संभावना कई गुना बढ़ जाती है। धूम्रपान से एड्रिनल ग्रंथि, पैराथॅयरायड ग्रंथि से निकलने वाले हार्मोन भी प्रभावित होते हैं जिससे शरीर शिथिल हो जाता है। धूम्रपान से शरीर में फ्री रेडिकल्स की मात्रा काफी बढ़ जाती है जिससे बूढ़ापे की सभी बीमारियां जवानी में ही आ जाती हैं।

जंक फूड/फास्ट फूड

शरीर में फ्री रेडिकल्स की मात्रा बढ़ाते हैं, जिससे जल्दी बुढ़ापा और बीमारियां आती हैं। अधिकतर जंक फूड/फास्ट फूड में प्रोटीन की बहुत कमी और चिकनाई तथा चीनी की अधिकता होती है जो जोड़ों की कार्टिलेज की मरम्मत के लिए काफी नुक्सानदेह है। फ्री रेडिकल्स की अधिकता से हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता काफी कम हो जाती है।

Thursday, 4 December 2014

मां बनने की क्षमता में रुकावट पीसीओएस


अत्यधिक गतिशील जीवनशैली एवं पर्यावरण प्रदूषण की बढ़ती समस्या और खान-पान में संयम न रख पाने की वजह से किशोरियां 'पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम (पीसीओएस)Ó से ग्रसित हो जाती हैं। अगर समय पर इसका इलाज न कराया जाए तो यह बीमारी मां बनने की क्षमता से वंचित कर सकती है।
यद्यपि यह प्रजनन आयु में होने वाली एक आम समस्या मानी जाती रही है लेकिन पिछले एक दशक में छोटी उम्र की लड़कियां भी इस समस्या से अछूती नहीं रही हैं। एक अनुमान के मुताबिक, आजकल हर 10 में से एक लड़की पीसीओएस की समस्या से जूझ रही है। वास्तव में यह किशोर लड़कियों के बीच एक आम समस्या बन गई है। पीसीओएस मुख्यत: एक ओवेरियन सिंड्रोम है जो अंडाशय को प्रभावित करता है। सामान्य भाषा में पॉलीसिस्टिक ओवेरियन का मतलब अंडाशय के अंदर बहुत सारे छोटे अल्सर का पाया जाना है। उन्होंने कहा कि ज्यादा मात्रा में चीनी और अत्यधिक परिष्कृत कार्बोहाइड्रेट का सेवन करने वालों में, कम उम्र में ही पीसीओएस की संभावना बढ़ जाती है। ज्यादा मात्रा में चीनी और कार्बोहाइड्रेट इंसुलिन के स्तर को बढ़ा देता है, जो हार्मोन को प्रभावित करता है।
इसके प्रमुख लक्षणों में - वजन का बढऩा, गर्दन और अन्य क्षेत्रों पर धब्बे पडऩा, पीरियड में अनियमितता, अनचाहे बालों का आना और मुंहासे शामिल हैं। पीसीओएस से ग्रसित लड़कियों में, अंडाशय सामान्य से ज्यादा मात्रा में एण्ड्रोजन विकसित करता है, जो एग के विकास को प्रभावित करता है। इस समस्या का ठीक से इलाज न किया जाना, एक लड़की को मां बनने की क्षमता से वंचित कर सकता है। साथ ही यह प्रजनन आयु में परेशानियां भी पैदा करता है।

पीसीओएस से लडऩे के लिये खाएं ये खाघ पदार्थ

सही समय पर पीसीओएस का सही इलाज, गंभीर प्रभाव और जोखिम को कम करने में मदद करता है, स्वस्थ भोजन और नियमित व्यायाम के जरिये भी इस समस्या से पार पाया जा सकता है। इसके अलावा साल में एक बार मधुमेह अथवा ग्लूकोज चैलेंज टेस्ट अवश्य कराएं। साथ ही एक स्वस्थ जीवनशैली को बनाए रखने के लिए आप चिकित्सक या आहार विशेषज्ञ से भी परामर्श ले सकते हैं। 

खाघ पदार्थ जो लड़े पीसीओएस से


आज की महिलाओं में पीसीओएस यानी कि पोलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम की बीमारी बहुत तेजी से फैल रही है। यह एक प्रकार की सिस्ट होती है जो कि ओवरी में होती है। पहले यह समस्या 25 की उम्र के बाद महिलाओं में देखी जाती थी पर अब छोटी बच्चियां भी इसकी जकड़ में आने लग गई हैं। खराब डाइट, शारीरिक व्यायाम न करना, पौष्टिकता में कमी और कुछ खराब आदते हैं जैसे , स्मोकिंग या शराब पीना आदि इस बीमारी का कारण माना जाता है।
पीसीओएस तब होता है जब सेक्स हार्मोन में असंतुलन पैदा हो जाता है। हार्मोन में जऱा सा भी बदलाव मासिक धर्म चक्र पर तुरंत असर डालता है। इस कंडीशन की वजह से ओवरी में छोटा अल्सर(सिस्ट) बन जाता है। इस बीमारी को सही किया जा सकता है लेकिन तब जब लाइफस्टाइल सही हो और खान-पान उस लायक हो तब। अगर हार्मोन लेवल को बैलेंस कर लिया जाए तो पीसीओएस को दूर भगाया जा सकता है। महिलाओं तथा लड़कियों को इससे बचने के लिये नियमित एक्सरसाइज करनी चाहिये और ऐसे आहार खाने चाहिये जिसमें फैट कम हो। अगर आप पीसीओएस डाइट लेती हैं तो, इससे आप मधुमेह से बची रहेगी और आप आगे चल कर मां भी बन सकती हैं। आइये जानते हैं पीसीओएस डाइट के बारे में-

साल्मन मछली

इस मछली में ओमेगा 3 फैटी एसिड होता है जो कि ग्लाइसेमिक इंडेक्स में कम होता है। यह न केवल दिल के बल्कि महिलाओं में एंड्रोजन हार्मोन के लेवल को भी ठीक रखता है।

सलाद पत्ता

सब्जियां पौष्टिक होती हैं। इंसुलिन प्रतिरोध पीसीओएस का एक आम कारण होता है इसलिये अपने आहार में सलाद पत्ते को शामिल करें।

जौ

यह साबुत अनाज ग्लाइसेमिक इंडेक्स में कम होता है और लो जीआई इंसुलिन को बढने से रोकते हैं और पीसीओएस से लड़ते हैं।

दालचीनी

यह मसाला शरीर में इंसुलिन लेवल को बढने से रोकता है और मोटापा भी कम करता है।

ब्रॉक्ली

इस हरी सब्जी में विटामिन्स होते हैं, कम कैलोरी और कम जी आई भी होता है। इसे हर महिला को खानी चाहिये।

मशरूम

लो कैलोरी और लो जीआई मशरूम जरुर ट्राई करें

टूना

टूना मछली बहुत पौष्टिक होती है और उसमें बहुत सारा ओमेगा 3 फैटी एसिड और विटामिन पाया जाता है जो कि पीसीओएस से लड़ता है।

टमाटर

इसमें लाइकोपाइन होता है जो वेट कम करता है और बीमारी से भी बचाता है।

शकरकंद

अगर आपको मीठा खाने का मन करे तो आप इस कम जीआई वाले खाघ पदार्थ को खा सकती हैं।

अंडा

यह पौष्टिक होता है इसलिये इसे जब भी उबाल कर खाएं तो इसके पीले भाग को निकाल दें क्योंकि यह हार्ट के लिये खराब होता है। इसमें हाई कोलेस्ट्रॉल होता है।

दही

यह न केवल कैल्शियम से भरा होता है बल्कि यह महिलाओं में मूत्राशय पथ संक्रमण से लडऩे में भी मददगार होता है।

मेवा

बादाम में अच्छा फैट पाया जाता है जो कि दिल के लिये अच्छा होता है।

पालक

इसमें बहुत कम कैलोरी होती है और यह एक सूपर फूड के नाम से जाना जाता है। इसे खाइये और पीसीओएस को दूर भगाइये।

दूध

जो महिलाएं पीसीओएस से लड़ रही हैं उन्हें कैल्शियम की आवश्यकता होती है। यह अंडे को परिपक्वत करने में, अंडाशय को विकसित और हड्डियों को मजबूत करने में मदद करता है। रोजाना दो गिलास बिना फैट का दूध पियें।

मुलहठी

यह एक हर्बल उपचार है जिसे खाने से महिला के शरीर में पुरुष हार्मोन कम होने लगता है और पीसीओएस से सुरक्षा मिलती है।

Tuesday, 2 December 2014

लड़कियों में बढ़ती पीसीओएस की समस्या


आजकल लड़कियों में बड़ी ही छोटी उम्र से पीसीओएस यानि की पोलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम की समस्या देखने को मिल रही है। चिंता की बात यह है कि कई सालों पहले यह बीमारी केवल 30 के ऊपर की महिलाओं में ही आम होती थी, लेकिन आज इसका उल्टा ही देखने को मिल रहा है।
डॉक्ट्र्स के अनुसार यह गड़बडी पिछले 10-15 सालों में दोगुनी हो गई है। लड़कियों में बढ़ती पीसीओएस की समस्या क्या है पीसीओएस तब होता है जब सेक्स हार्मोन में असंतुलन पैदा हो जाता है। हार्मोन्स में जऱा सा भी बदलाव मासिक धर्म चक्र पर तुरंत असर डालता है। इस कंडीशन की वजह से ओवरी में छोटा अल्सर(सिस्ट) बन जाता है। अगर यह समस्या लगातार बनी रहती है तो न केवल ओवरी और प्रजनन क्षमता पर असर पड़ता है बल्कि यह आगे चल कर कैंसर का रुप भी ले लेती है। दरअसल महिलाओं और पुरुषों दोनों के शरीरों में ही प्रजनन संबंधी हार्मोन बनते हैं। एंड्रोजेंस हार्मोन पुरुषों के शरीर में भी बनते हैं, लेकिन पीसीओएस की समस्या से ग्रस्त महिलाओं के अंडाशय में हार्मोन सामान्य मात्रा से अधिक बनते हैं। यह स्थिति सचमुच में घातक साबित होती है। ये सिस्ट छोटी-छोटी थैलीनुमा रचनाएं होते हैं, जिनमें तरल पदार्थ भरा होता है। अंडाशय में ये सिस्ट एकत्र होते रहते हैं और इनका आकार भी धीरे-धीरे बढ़ता चला जाता है। यह स्थिति पॉलिसिस्टिक ओवेरियन सिन्ड्रोम कहलाती है। और यही समस्या ऐसी बन जाती है, जिसकी वजह से महिलाएं गर्भ धारण नहीं कर पाती हैं।

ये हैं लक्षण

चेहरे पर बाल उग आना, मुंहासे होना, पिगमेंटेशन, अनियमित रूप से माहवारी आना, यौन इच्छा में अचानक कमी आ जाना, गर्भधारण में मुश्किल होना, आदि कुछ ऐसे लक्षण हैं, जिन की ओर महिलाएं ध्यान नहीं देती हैं।

क्यों होता है छोटी उम्र में पीसीओएस

खराब डाइट- जंक फूड, जैसे पिज्जा और बर्गर शरीर को नुकसान पहुंचाते हैं। अत्यधिक तैलीय, मीठा व वसा युक्त भोजन न खाएं। मीठा भी सेहत के लिये खराब माना जाता है। इस बीमारी के पीछे डयबिटीज भी एक कारण हो सकता है। अपने खाने पीने में हरी-पत्तेदार सब्जियों को शामिल करें और जितना हो सके उतना फल खाएं।
मोटापा- मोटापा हर मर्ज में परेशानी का कारण बनता है। ज्यादा वसा युक्त भोजन, व्यायाम की कमी और जंक फूड का सेवन तेजी से वजन बढ़ाता है। अत्यधिक चर्बी से एस्ट्रोजन हार्मोन की मात्रा में बढ़ोतरी होती है, जो ओवरी में सिस्ट बनाने के लिए जिम्मेदार माना जाता है। इसलिए वजन घटाने से इस बीमारी को बहुत हद तक काबू में किया जा सकता है। जो महिलाएं बीमारी होने के बावजूद अपना वजन घटा लेती हैं, उनकी ओवरीज़ में वापस अंडे बनना शुरू हो जाते हैं।
लाइफस्टाइल- इन दिनों ज्यादा काम के चक्कर में तनाव और चिंता अधिक रहती है। इस चक्कर में लड़कियां अपने खाने-पीने का बिल्कुल भी ध्यान नहीं देती। साथ ही लेट नाइट पार्टी में ड्रिंक और स्मोकिंग उनकी लाइफस्टाइल बन जाती है, जो बाद में बड़ा ही नुक्सान पहुंचाती है। इसलिये अपनी दिनचर्या को सही कीजिये और स्वस्थ रहिये। पीसीओएस को सही किया जा सकता है। अगर हार्मोन को संतुलित कर लिया जाए तो यह अपने आप ही ठीक हो जाएगा। आजकल की लड़कियों को खेल में भाग लेना चाहिये और खूब सारा व्यायाम करना चाहिये। इसके अलावा अपने खाने-पीने का भी अच्छे से ख्याल रखना चाहिय तभी यह ठीक हो सकेगा।

अंडाशय विकार का शिकार अक्सर होती हैं किशोरियां


भारतीय किशोरियों में सुस्त जीवनशैली, बासी भोजन की आदतें और मोटापे के कारण पोलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) फैलने की संभावना बढ़ रही है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने बताया कि एक अनुमान के मुताबिक, 10 से 30 फीसदी किशोरियां इससे प्रभावित हो रही हैं। मोटापा और पीसीओएस का गहरा संबंध है, खासकर जब यह किशोरावस्था के समय होता है। पीसीओएस की घटना बढ़ रही है और जीवनशैली में परिवर्तन हो रहा है, पोषण और आहार इसमें बहुत अहम भूमिका अदा करते हैं। पीसीओएस मामलों में हार्मोनल असंतुलन प्रमुख रूप से 'दोषीÓ हैं। अन्य कारकों में उन्होंने मोटापे का अचानक बढ़ जाना और कुछ मामलों में आनुवांशिक स्थितियों को गिनाया।
पिछले एक दशक में तंगहाल जीवनशैली हार्मोनल बदलाव के लिए पहला कारण बन चुकी है, और इससे पीसीओएस की संभावना बढ़ जाती है। अगर हम शहरी भारत की ओर देखें तो हर साल यहां लगभग 15 फीसदी लड़कियां पीसीओएस का शिकार हो जाती हैं। पीसीओएस से अंडाशय में कई प्रकार के अल्सर गठित होते हैं और एंड्रोजन (पुरुष हार्मोन) का अत्यधिक उत्पादन होने लगता है। इससे शरीर और चेहरे पर बाल, मासिक धर्म में अनियमितताएं और मुंहासे बढऩे लगते हैं।
वजन बढऩा, गले के पीछे और शरीर के अन्य भागों में काले धब्बे, अनियमित मासिक धर्म, अनचाहे बाल बढऩा और मुंहासे पीसीओएस का कारण बन सकते हैं। हालांकि, हर उस व्यक्ति को पीसीओएस नहीं होता जिसमें यह सब लक्षण हों। तीव्रता के विभिन्न लक्षणों के साथ अलग-अलग लोगों में अलग-अलग लक्षण होते हैं। कुछ किशोरियों के लिए भविष्य में यह चुनौतीपूर्ण हो जाएगा जब वह मां बनने की योजना बनाएंगी। अगर पीसीओएस का इलाज नहीं किया गया तो इससे कैंसर के साथ-साथ कई गंभीर समस्याएं पैदा हो सकती हैं।
पीसीओएस की पहचान लक्षणों और संकेतों, अल्ट्रासाउंड और हार्मोन विश्लेषण द्वारा की जा सकती है। साथ ही उन्होंने कहा कि अगर कोई महिला गर्भ धारण नहीं करना चाहती है तो इसके लिए हार्मोन की कई तरह की गोलियां उपलब्ध हैं।