हमारा देश अनेकता में एकता की परंपरा को सहेज रहा है। यहां हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, जैन, पारसी के साथ अनेक धर्म और समुदायों के लोग अपनी-अपनी संस्कृति को निभाते हुए नया साल मनाते हैं। इन सबके अपने अलग-अलग त्योहार और रीति-रिवाज हैं। जिस प्रकार सभी समुदायों के कुछ विशेष पर्व हैं जिन्हें सभी एक साथ मिलकर मनाते हैं। उसी प्रकार प्रत्येक समुदाय के नए वर्ष भी अलग-अलग हैं और सभी एक-दूसरे के पर्वों का सम्मान करते हैं। अन्य पर्वों की तरह हर समुदाय के नववर्ष भी बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाए जाते हैं। आइए जानते हैं उनके बारे में।
चैत्र प्रतिपदा
हिन्दू नववर्ष का प्रारंभ हिन्दी पंचांग के अनुसार चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से होता है। इसी दिन से वासंतेय नवरात्र का भी प्रारंभ होता है। हिन्दू नववर्ष का पंचांग विक्रम संवत से माना जाता है। एक साल में बारह महीने और सात दिन का सप्ताह विक्रम संवत से ही प्रारंभ हुआ है।
हिजरी सन
मुस्लिम समुदाय में नया वर्ष मोहर्रम की पहली तारीख से मनाया जाता है। मुस्लिम पंचांग की गणना चांद के अनुसार होती है।
ओणम
मलयाली समाज में नया वर्ष ओणम से मनाया जाता है। इस दिन प्रतिवर्ष विभिन्न सांस्कृतिक आयोजन किए जाते हैं। ओणम मलयाली माह छिंगम यानी अगस्त और सितंबर के मध्य मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन राजा बली अपनी प्रजा से मिलने धरती पर आते हैं। राजा बली के स्वागत के लिए घरों में फूलों की रंगोली सजाई जाती है और स्वादिष्ट पकवान बनाए जाते हैं।
पोंगल : सूर्य देव को अर्पित होता है प्रसाद
तमिल नववर्ष पोंगल से प्रारंभ होता है। पोंगल से ही तमिल माह की पहली तारीख मानी गई है। पोंगल प्रतिवर्ष 14-15 जनवरी को मनाया जाने वाला बड़ा त्योहार है। चार दिनों का यह त्योहार भी नई फसल आने की खुशी में मनाया जाता है।
महाराष्ट्रीयन समाज का नववर्ष
महाराष्ट्रीयन परिवारों में चैत्र माह की प्रतिपदा को ही नववर्ष की शुरुआत होना माना जाता है। इस दिन बांस में नई साड़ी पहनाकर उस पर तांबे या पीतल के लोटे को रखकर गुड़ी बनाई जाती है और उसकी पूजा की जाती है। गुड़ी को घरों के बाहर लगाया जाता है और सुख संपन्नता की कामना की जाती है।
नववर्ष बैसाखी
गीत-संगीत की अनोखी परंपरा और खुशदिल लोगों से सजी है पंजाबियों की संस्कृति। पंजाबी समुदाय अपना नववर्ष बैसाखी में मनाते हैं। यह त्योहार नई फसल आने की खुशी में मनाया जाता है। बैसाखी के अवसर पर नए कपड़े पहने जाने के साथ ही भांगड़ा और गिद्दा करके खुशियां मनाई जाती हैं।
नवरोज का प्रारंभ
पारसियों द्वारा मनाए जाने वाले नववर्ष नवरोज का प्रारंभ तीन हजार साल पहले हुआ। ऐसा माना जाता है कि इसी दिन फारस के राजा जमशेद ने सिंहासन ग्रहण किया था। उसी दिन से इसे नवरोज कहा जाने लगा। राजा जमशेद ने ही पारसी कैलेंडर की स्थापना की थी। नवरोज को जमशेदी नवरोज भी कहा जाता है।
दीपावली है नया साल : जैन समुदाय का नया साल दीपावली के दिन से माना जाता है। इसे वीर निर्वाण संवत कहा जाता है।
दीपावली है नया साल : जैन समुदाय का नया साल दीपावली के दिन से माना जाता है। इसे वीर निर्वाण संवत कहा जाता है।
पड़वा से नया साल
सभी समुदायों की तरह गुजराती बंधुओं का नववर्ष भी दीपावली के दूसरे दिन पडऩे वाली पड़वा के दिन खुशी के साथ मनाया जाता है। गुजराती पंचांग भी विक्रम संवत पर आधारित है। इस दिन तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं और एक-दूसरे को नववर्ष की शुभकामनाएं दी जाती हैं।
बंगाली समुदाय का नया वर्ष
अपनी विशेष संस्कृति से जाने-पहचाने जाने वाले बंग समुदाय का नया वर्ष बैसाख की पहली तिथि को मनाया जाता है। यह पर्व नई फसल की कटाई और नया बही-खाता प्रारंभ करने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। एक ओर व्यापारी लोग जहां नया बही-खाता बंगाली में कहें तो हाल-खाता करते हैं तो दूसरी तरफ अन्य लोग नई फसल के आने की खुशियां मनाते हैं। इस दिन कई सांस्कृतिक आयोजन होते हैं और मिठाइयां बांटी जाती हैं।
सभी कहते हैं नया वर्ष मुबारक हो
सभी समुदायों के साथ ही एक ऐसा नया साल है जिसे सभी वर्गों, समुदायों द्वारा मान लिया गया है। वह है अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार मनाया जाने वाला नया साल। जिसकी शुरुआत जनवरी में होती है। जनवरी में नए वर्ष 201५ का प्रारंभ हो गया है। आजकल इसी पंचांग को सर्वमान्य रूप से नए वर्ष की शुरुआत मान लिया गया है। सारे सरकारी कार्य और लेखा-जोखा इसी के अनुसार संचालित किए जाते हैं।